Wednesday, December 31, 2008

नव वर्ष पर सबको हार्दिक शुभकांमनाए! यह वर्ष सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं सुयश लेकर आए।

Monday, December 22, 2008

नेताओं की मौत पर राष्ट्रध्वज तिरगें का झुकाया जाना क्या उचित है

पंतजलि योग पीठ हरिद्वार में आयोजित कवि सम्मेलन का आज आस्था चैनल पर प्रसारण हो रहा था ।इस कवि सम्मेलन के एक कवि की कविता ने मुझे बहुत प्रभावित किया। कवि का नाम एवं कविता तो याद नही किंतु उसका भाव यह है कि आज देश में नेताओं के मरने पर राष्ट्रीय ध्वज तिंरगें को झुकाने का प्रचलन है। नेताओं के मरने पर इसे झुकाना आम हो गया है।
कवि का कहना था कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिंरगा देश के गौरव, सम्मान एवं उसकी स्मिता का प्रतीक हैं। यह देश की शान है। इसे फहराने की खातिर देश के सैंकड़ों क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्यौछावर किए। उन्होंने हंसते - हंसते सीने पर गोली खाकर प्राण न्योछावर कर दिए किंतु तिंरगे को झुकने नही दिया।देश के जवान भी तिंरगे के सम्मान की खातिर अपने प्राण दे देते हैं।
राष्ट्रध्वज तिंरगा देश के सम्मान का प्रतीक हैं। देश सबसे बडा़ है, नेताओं से भी ।नेता देश एवं तिंरगे से बडे़ नही हैं। ऍसे में उनकी मौत पर राष्ट्रीयध्वज झुकाया जाना उचित नहीं ।वह इसे राष्टी्यध्वज ही नही पूरे देश का अपमान मानतें हैं।
इस विषय पर आपकी क्या राय है।

हम भी आंतकवादी होते जा रहे हैं

हो सकता है कि आपको मेरी बात अजीब या अटपटी लगे किंतु है सहीं । हममें भी कुछ आंतकवादियों के गुण आते जा रहे हैं । हम अपनी मांग मनवाने के लिए दूसरों का अपहरण नही कर रहे। अपने बच्चों को दांव पर लगाने लगे हैं। आतंकवादी अब तक विमान ,ट्रेन या बस के यात्रियों का अपहरण करके सरकार पर दबाव डाल कर अपनी मांग मनवाते रहे है। ये हथियार अब हम प्रयोग करने लगे हैं। अपनी मांगों को मनवाने के लिए हम अपने बच्चों का जीवन दांव पर लगा रहे हैं।

भारत सहित दुनिया के कई देशों में बच्चों में वायरस से आने वाली शारीरिक विकलांगता दूर करने के लिए पोलियो अभियान चलाया हुआ है। भारत को भी पोलियो मुक्त करने के लिए अभियान चला हुआ हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की और से चलने वाले इस अभियान पर हमारी सरकार खरबों रूपया व्यय कर चुकी हैं। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि वायरसजनित बीमारी से देश का कोई बच्चा विकलांग न हो पाए। सरकार का ये अभियान आपके एवं हमारे बच्चों के लिए है किंतु हम अब यह मान बैठे हैं कि पोलियो की दवा पिलाना सरकार की मजबूरी है। पहले सरकार बूथों पर आने वाले बच्चों को दवाई पिलाती थी। क्योकि सारे बच्चे बूथ तक नही आ पाते , इसलिए सरकार ने यह किया कि पोलियो कर्मी एक सप्ताह तक लोगों के घर जाकर उनके बच्चों को दवा पिलांएगे।

हमारे बच्चो को विकलांगता से बचाने के लिए सरकार की कोशिश ,जद्दोजहद को हमने उसकी मजबूरी समझ लिया। हम समझने लगे कि इसमें सरकार की कोई मजबूरी है, जो इस प्रकार बार बार अभियान चला रही है। सरकार के प्रयास को हमने उसकी मजबूरी मान उसे ब्लैक मेल करना शुरू कर दिया। जग ह-जगह से समाचार आने लगे है कि गांव वाले किसी न किसी मांग को लेकर अड़ जाते है एवं दबाव देते है कि जब तक उनकी मांग पूरी नही होगी, वह बच्चों को दवा नही पिलांएगें। मेरे जनपद के एक गावं में आज दो घंटे तक बच्चों को इसलिए पोलियो ड्राप नही दी गई कि वहां का बिजली का ट्रांसफार्मर खराब था एवं बदला नही जा रहा था। गांव वालों के दबाव पर बिजली कर्मी आए आश्वासन दिया । उसके बाद ही बच्चों को दवा पिलाई गई।

कया यह ब्लैकमेल करना नही हैं। दवा न पीने से किसके बच्चे प्रभावित होंगे। क्या पोलियो की बीमारी को खत्म करने की सराकर की ही जिम्मेदारी हैं। ट्रांसफार्मर बदलवाने के लिए भूख हडताल या किसी अन्य प्रकार का कोई आंदोलन शुरू किया जा सकता थां। अपने बच्चो की कीमत पर तो यह सौदा नही होना चाहिए ।बच्चों को आगे करके इस प्रकार मांग मनवाना मेरी राय में तो ठीक नही हैं । अपने बच्चों कों दाव पर लगाकर कोई मांग पूरी करना ठीक नही हैं ।

Wednesday, December 17, 2008

बेटों से कम नही बेटिंया







युग बदल गया हैं। कभी लड़के लड़कियों में फर्क समझा जाता था किंतु अब ऐसा नही है। बेटी भी बेटों से कम नही है।यहां आज कुछ ऐसा ही हुआ।


मेरे पड़ौस में एक सेवानिवृत अवर अभिंयता रहते हैं किशन खन्ना । उम्र होगी ६५ साल ।पति पत्नी बहुत मस्त। बहुत मिलनसार। इनके चार बेटिंया। चारों बेटियों की उन्होंने शादी कर दी। रात किशन खन्ना की तबियत खराब हुईं। दो बार पहले हार्ट अटेक हो चुका था। ठीक से उपचार न मिलने पर रात में उनका निधन हो गया। मुहल्ले वाले परेशान थे कि अंतिम संस्कार कौन करेगा। सबसे छोटी लड़की इनके पास आई हुई थी! एक और लड़की की शहर में ही शादी हुई थी। वह तथा गाजियाबाद वाली आ चुकी थी! चौथी सबसे बड़ी लड़की नही आई थी।


बिजनौर जैसे छोटे शहर में कोई सोच भी नही सकता था। कि गाजियाबाद में रहने वाली बेटी मुक्ता ने पिता के अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। उसने घर पर पिता का पिंडदान किया। तीनों बहने नंगे पांव शव यात्रा में साथ नहीं । गंगा बैराज पर गईं। वही चौथी भी आ गई। मुक्ता ने पिता की चिता को आग दी आैर कपाल क्रिया सहित सभी रस्म अदा की। गंगा बैराज पर कई शवों का अंतिम संस्कार चल रहा था ,उनके साथ आए व्यक्ति एक युवती को अंतिम संस्कार की क्रिया करते देख आश्चर्यचकित थे। शहरों में तो लड़कियां यह कार्य करने लगी है किंतु बिजनौर जैसे छोटे शहर के लिए यह सब नया था किंतु मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि इन बेटियों ने साबित कर दिया कि वे बेटों से कम नही हैं ।

Monday, December 15, 2008

छपास रोग


आज बड़ी अजीब हुई। सबेरे मोबाइल पर एक साहब का संदेशा आया कि बिजनौर गंगा बेराज से आगे नहर की पटरी पर एक दस फुट लंबा सापं पडा़ है, अनाकोंडा भी हो सकता है। संदेश था, सो भागना पडा़।रास्ते में संदेशा आया कि अमुक जगह पर जैन मुनि सफेद कार में हैं, उनके पास उस सांप के फोटो है। जैन मुनि से बात की । उनके मोबाइल में सापं के फोटो देखे। यह फोटो देते समय चाहतें थे कि सापं के साथ उनका भी फोटो पत्र में छपे। मैं बात कर मौके की ओर रवाना हो गया ! देखता क्यां हूं कि विपरीत दिशा में जाने वाले मुनि जी की गाडी हमारे पीछे है। फिर वह आगे हो गईं तथा सांप वाली जगह जाकर रूक गई।सांप एक साइड में झाडियो में पडा़ था। हमने उसे सीधा कर फोटो खींचने को सड़क पर डाला तो मुनि जी उसके पास बैठ गए एंव कहने लगे कि सांप के साथ उनका फोटो भी खींचों। फोटों खींचे जाने के दौरान वह सांप पर इस प्रकार हाथ फैरने लगे जैसे उसे प्यार कर रहे हों।


सांप अनाकोंडा नही था किंतु लगभग नौ फुट लंबा अजगर था। किसी जीव के खाने से उसका पेट बुरी तरह फूला था। उसके मुंह पर चोट के निशान नहीं थे किंतु मुंह पर खून जरूर लगा था। हो सकता है कि खून उस प्राणी का रहा हो जो अजगर के पेट में था! लगता था कि ज्यादा खा लेने के करण सांप ठंड से बचने को कहीं छुप नही सका तथा ठंड से उसकी मौत हो गई। हमारा काम हो चुका था, अत:हम बाइक उठाकर वापस लोट लिए। किंतु मुझे सारे रास्ते मुनि जी की छपास की भूख परेशान करते रही । नेता तो इस बीमारी के शिकार होतें हैं किंतु वस्त्र तक त्याग चुके मुनि जी इसरोग के शिकार होंगे ,इस प्रकार की उम्मीद न थी।


पोष्ट के साथ सांप के पास बैठे मुनि का चि़त्र यहां दे रहा हूं किंतु उनका चेहरा पोस्ट से हटा दिया है ताकि मुनि जी के प्रियजन कुछ एेसा वैसा न महसूस करें।

Sunday, December 14, 2008

एक फोटो




अब समारोह में मेहमानो के मनोरजंन के लिए भी व्यापक प्रबंध होने लगे है। कहीं शहनाई बादक शहनाई बजाते मिलते हैं तो कहीं म्युजिक कंपनी कार्यक्रम प्रस्तुत करती नजर आती हैं। हाल में एक विवाह समारोंह में एक मोटा युगल लोगो का मनोरजंन करता घूम रहा थां। यह बच्चो से हाथ मिलाता। बाद में डीजे पर डांस करता नजर आया। मुझे कुछ नया सा लगा तो मैने दोनो से फोटो खिंचाने का अनुरोध किया तो वह तैयार हो गए। मैने अपना मोबाइल निकाला एवं उनका चित्र ले लिया। मन बात करने का तो था किंतु शोर ज्यादा होने के कारण चला आया।

Saturday, December 13, 2008

मुंबई का हमला ,हमारी सोच



क्या पूरा पाकिस्तान अपराधी है


मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद देश भर से एक आवाज आ रही है कि पाकिस्तान पर हमला किया जाना चाहिए। मीडिया चिल्ला-चिल्लाकर कर रहा है कि बाप द्वारा एक आंतकवादी की शनाख्त किए जाने के बाद पाकिस्तान को और क्या सबूत चाहिए।



मै कुछ और कह रहा हूं। पाकिस्तान पर हमले की बात करने से पूर्व हमें बहुत कुछ सोचना चाहिएं। पहला प्रश्न यह उठता है कि पाकिस्तान हमले की बात कर क्या हमने यह नही मान लिया कि पूरा पाकिस्तान आंतकवादी है। क्या एक कौम या एक पूरा देश आतंकवादी हो सकता है। अब तक आंतकवाद में शामिल रहे शत प्रतिशत युवक मुस्लिम हैं,इसके बावजूद मुस्लिम समाज का बड़ा तबका इसका विरोध करता है। आंतकवाद के कारण शक के आधार पर बेगुनाह मुस्लिम के उत्पीड़न के लिए आज वह सुरक्षा बलो को कम आंतकवाद के नाम पर रास्ता भटके युवाऔ को ज्यादा जिम्मेदार मानता है। इसीका कारण है मुंबई के हमले मे मरने वाले आंतकवादियों को अपने कब्रिस्तान मे दफनाने की मुंबई के मुस्लिमों ने इजाजत नही दी।

पाकिस्तान में बड़ी तादाद में आतंकवाद है, यह भी सही है कि वहां आंतकवादियों के खुलेआम ट्रेनिग कैंप चल रहे हैं किंतु यह तो नही कहा जा सकता कि वहां पूरा देश ही आतंकवादी है । पाकिस्तान सरकार दावेकर रही है कि मंबई की आतंकवादी बारदात में उसका हाथ नही ,वह इसके सबूत भी हमसे मांग रही है किंतु मुंबई में मरने वाले आंतकवादी के गांव के लोगों से बातचीत वहां का गियो चैनल सबूत दे देता कि मुंबई के आतंकवादी हमले में फोर्स के हाथ मरने वाला पाकिस्तान का अजमल कसाब है । वह पाकिस्तान द्वारा भारत से मुंबई के हमले में पाकिस्तान के हाथ होने के सबूत खुद उपलब्ध कराता हैं। पाकिस्तान में बड़ी तादाद में आंतकवादी शिविर या उनके प्रश्यदाता हों किंतु पूरे देश के नागरिक आंतकवादी नही हो सकते।एक दो सिरफिरे की गलती पर पूरे देश कों दंड देना तो न्याय नही है। क्या आप इसे उचित मानेंगे। मै तो कमसे कम इसके लिए तैयार नही हू।

मुंबई के आंतकवादी हमले में मरने वाले युवक को उसके मां-बाप से इस रास्ते पर चलने को नही कहा होगा,मेरा एेसा मानना है।हम पूरे पाकिस्तान को आज सबक सिखाने पर उतारू होते समय यह भूल जाते है कि हम ही नही आंतकवाद का दंशा उतला ही पाकिस्तान झेल रहा है,जितना हम झेल रहे हैं। आंतकवाद के विरोध में हम ही कुरबानी नही दे रहे, पाकिस्तान भी दे रहा है! जरदारी भी दे रहे हैं। उनका भी बहुत कुछ इस आंतकवाद की बदोलत गया है।

हमारे देश में सैना अनुशासित है,उसके जवान आतंकवाद के विरूद्ध संघर्ष कर रहे है जबकि पाकिस्तानी सेना आंतकवादियों की पीठ पर खड़ी है। यही मूल फर्क भारत एंव पाक में हैं।

इसके लिए हमें अंतर्राष्टीय दबाव बनाना होगां। इसमें हम कामयाब भी हों रहे हैं। कारगिल मे आंतकवादियो को जमाने का जिम्मा पाकिस्तानी सेना का नही था अपितु उसके जवान भी उनमें शामिल थे किंतु दुनिया के सामने पूरे घटनाक्रम को लाकर जब हमने आपरेशन चलाया तो पाकिस्तानी सेना चुप ही नही रही, उसने अपने सैनिकों के शवों को भी नही स्वीकारा।

हम अपने मुंबई कांड मे लगे जख्मों के आगे आतंकवाद में पिस रहे पाकिस्तान के आवाम के जख्मो को भूल रहे है, जरदारी के जख्मों को भूल रहे हैं।







Sunday, December 7, 2008

मुंबई, धर्मशाला और मै

[ एक हास्य व्यंग]
आज मोहन लाल मिले। बहुत प्रसन्न नजर आ रहे थे। राजे महाराजों के समय की एक धर्मशाला के मैनेजर हैं। बहुत दिनों बाद उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि धर्मशाला में आना । आज कल उसके मोड्रनाईजेशन का काम रहा चल रहा है। मोहन लाल को अंग्रेजी बोलते देख मुझे कुछ अटपटा लगा, पर सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ धर्मशाला में मोड्रनाइजेशन की बात सुनकर। मै 25 साल से ज्यादा से मोहन लाल के संपर्क में हूं। मोहन लाल एवं उसकी धर्मशाला के प्रबंधकों से मैने एवं मेरे जैसे लोगो ने धर्मशाला में सुधार करवाने का अनेक अनुरोध किया ,पर उनके कानों पर कभी जूं नही रेंगी। धर्मशाला शहर के प्रमुख स्थान पर स्थित हैं, यदि इसका प्रबंधन थोडा़ सा परिवर्तन करा लेता, तो उसकी आय बहुत बढ़ सकती थी, किंतु कभी हुआ नहीं,।


एक बार किसी प्रकार ईंट आ गई तो वह तबसे ऍसे ही रखी जगह घेर रही हैं। धर्मशाला का प्रबंधन बनाने वालों को वह रेट देने की बबात कर रहा था जो कभी बीस साल या उससे पहले रहे होंगे । इसी कशमकशा में धर्मशाला में कुछ नया नहीं हुआ।


मोहन लाल की बातों से मै आश्चर्यचकित था, सो अपने को न रोक सका एवं मोहन लाल को अपनी बाइक के पीछे बैठाकर धर्मशाला का मोड्रनाइजेशान होता देखने चला गया। मोहन लाल ने मुझे धर्मशाला मे हो रहा कार्य दिखाया। उन्होंने बताया कि सभी कमरों को हवादार बनाया जा रहा है। कमरों में पंखे ही नही अब कूलर लगेंगे। कुछ में एेसी भी लगाए जाने है। जिस धर्मशाला के कमरों में कभी पंखे तक न लगे हों। शोचालय सामूहिक रहा हो बाबा आदम के जमाने का, उसमे यह परिवर्तन होते देख मै आशचर्य में था, एक दो बार मुझे लगा कि मै सपना तो नही देख रहा ।


मै मोहन लाल से बात करही रहा था कि इतनी देर में धर्मशाला का चौकीदार भी आ गया।वह शराबी के फिल्म के मांगे लाल की भांति छोटे कद का था एवं मूछ बिल्कुल मांगे लाल की तरह रखता था। उसका नाम रामू था किंतु हम उसे मांगे लाल कहकर चिड़ाते थे। हम कहते थे,मूछ हो तो मांगे लाल जैसी आैर वह कहा करता था नही सर आप गलत कह रहे हैं सुधार करें आैर कहें कि मूछ हो तो रामू जैसी।आज उसकी मूछों मे मुझे कुछ ज्यादा ही चमक नजर आई। बालों को भी काला कराया हुआ था।रामू ने बाल भी बड़े स्टाइल से बा रखे थे।


मै अब तक मोहन लाल की ही बातों से आश्चर्य में था कि रामू को देखकर मुझे लग गया कि हाल में कोई बडा़ परिर्वतन जरूर हो गया जो ,पुराने जमाने के इन दोनो में इतना परिवर्तन आ गया है। मै सोचने लगा कि कहीं इनके हाथ कारू का खजाना तों नही लग गया।


उनकी बातों से मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। मैनू पूछा माजरा क्या है। मोहन लाल बोले कैसे अखबार वाले हों , तुमने सुना नही कि मुंबई के ताज जैसे बड़े होटलों पर आंतकवादियों ने हमला कर वहां रह रहे 20 से ज्यादा विदेशी नागरिकों का कत्ल किया है। इस घटना के बाद अब विदेशी नागरिक वहां तो जाकर रूकेंगे नहीं, उन्हें ठहरने को सुरक्षित जगह चाहिए तो हमारी धर्मशाला से सुरक्षित जगह थोडा़ई होगी किसी आंतकवादी को भनक तक नही लगेगी कि विदेशी कहां टिके हैं। अब तक तो एेरा गैरा नत्थूखेरा हमारी धर्मशाला में आकर टिकते थे, इसलिए हमने कभी ध्यान नही दिया,अब विदेशी मेहमान आने वाले हैं। आराम से सस्ते मे रहेंगें। अब तक हमे कभी कभाक कोई ग्राहक एक दो पैग देशी पिला देता था, अब तो रोज अंग्रेजी बढ़िया वाली मिलेगी।


उनकी बातों को मै सुनकर चकरा रहा था कि रामू ने अपनी मूछो को ताव देते हुए जेब से पास्पोर्ट निकाल कर दिखाते हुए कहा कि देख लेना अब कोई अंग्रेज मेम अपनी भी मूछो पर फिदा हो जाएगी।अभी से पास्पोर्ट बनवा लिया है कि एेसा मौका आया तो छोडूंगा नही, यदि वह अपने साथ ले जाने कौ तैयार हो गई, तो तुंरत उसके साथ उड़ जाउगां। उनकी बातो में मुझे मजा तो बहुत आ रहा था कितु आफिस का टाइम होते देख मैने वहां से खिसकना ही बेहतर समझा।

Friday, December 5, 2008

क्या हमारा आक्रोश सही दिशा की ओर है



मुंबई में हुई आतंकवादी घटना के बाद देश भर में आक्रोश है। प्रत्येक व्यक्ति उसे अपने ढंग से व्यक्त करने में लगा है। कोई नेताआें को जूते मारने की बात कह रहा है, तो कोई पाकिस्तान पर हमले की सलाह का पिटारा खोले है। हरेक की अपनी ढपली एवं अपन राग है। चैनल नेताआें के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं,।



इन सब के बीच भी कुछ लोग है जो अपनी दुकान लगाए कमाई कर रहे हैं! उन्होंने देख लिया कि


लोंगो में आक्रोश है। इसे भुनाने के लिए मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियो ने अपने लोगों को लगाकर आक्रोशा व्यक्त करने वाले संदेश कुछ के मोबाइल पर भेज दिए। जिसे यह एस एम एस मिला , उसने इसे अपने मित्रों को फावर्ड कर दिया। कुछ मैसेज में तो लिख दिया कि इसे आगे बढाकर राष्ट्रभक्ति का परिचय दीजिए। हम सब ने अपने गुस्से का इजहार करने के लिए ही संदेश भेजे। क्या हुआ ,इससे देश के हालात पर कुछ असर नही पडा, हां मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियो ने जरूर लाखों रूपये के वारे न्यारे कर लिए।



इससे कुछ होने वाला नही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में पुलिस में एक साल अस्सी हजार से ज्यादा भर्ती की घोषणा की। उधर एसटीएफ के गठन की घोषणा कर दी । इससे कुछ होने वाला नही है। पुलिस कर्मी को आप देखे तो वह सबेरे से शाम तक वाहनों से वसूली करते नजर आंएगे। गुप्तचर सूचना जुटाने के लिए बनी स्थानीय अभिसूचना इकाई के साथी प्राय: पास्पोर्ट की जांच के नाम पर धन बसूल करते नजर आते है। रेलवे पुलिस का काम रेलवे संपत्ति आेर इसके यात्रियों की सुरक्षा करना है किंतु वह यात्रियों के टिकेट चैक करते या यात्रियों का लगेज ज्यादा बताकर धन वसूलते नजर आते।


एसटीएम में मनमर्जी से अधिकारियों का पोस्टिंग किया जा रहा है। इनमें बे युवक लिए जाए जो खुद कुछ कर गुजरने का हौसला रखते हों। इन्हें अलग कैडर आैर वेतन मिलना चाहिए।


हमें इस प्रकार की घटनाआें केा रोकने के लिए समीक्षा करनी होगी। कंधार विमान अपहरण कांड के समय की घटना मुझे याद आती है। मीडिया विमान अपहृताआे के परिवारों को दिखाकर बार बार यही कह रहा था कि मंत्री की बेटी के लिए आंतकवादी छोडे़ जा सकते हैं तों इनके लिए क्यों नहीं। एक फिल्म आई थी 36 घंटे! एक अखबार के संपादक के घर में चार बदमाश घुंस जाते हैं। पत्रकार अपनी बेटी आैर पत्नी को बचाने के लिए बदमाशों को पुलिस की सूचनांए एकत्र कर देने लगता है। हम सबको सोचना होगा कि इन सबसे उपर हमारा देश है। उससे उपर कोई नही है।


इन सब के साथ देश में मजबूत सुरक्षां तंत्र के साथ प्रत्येक नागरिक को एक सिपाही बनाना होगा , जो जरूरत पड़ने पर जान पर खेल कर दशमन का मुकाबला कर सके। प्राचीन युद्धकला में लठैत को बहुत मजबूत माना जाता था। लाठी चलाने मे माहिर बहुत से लोगों को इसी प्रकार मार डालता था , जैसे आज आंतकवादी मार डालता है। किंतु बुजुर्ग बताते रहे है कि लठैत का एक उपाए है कि एक आदमी भागकर उसकी कौली भर ले। वह खुद तो मरेगा या घायन होगा किंतु अन्य को तो बचा पाएगा। मुंबई रेलवे स्टेशन पर हमला करने वालो मे से एक आंतकवादी के मारे जाने के पीछे की भी तो कहानी यही है।एक सिपाही ने आतंकवादी की राइफल की नाल ही नही पकडी़, अपितु सारी गोंलिया अपने सीने पर झेली। उसने खुद जान देकर दूसरो को बचा लिया। एे से अवसरों के लिए हमे अब युद्ध के समय अपनी जान पर खेल कर समाज को बचाने की कला सीख्ननी होगी। मै श्री वेद प्रकाश वैदिक जी की इस बात का कायल हूं कि हमे पूरे देश केा इन हालात से बचने के लिए आर्मी प्रशिक्षण आवशयक करना होगा। दो साल का प्रत्येक के लिए सैनिक प्रशिक्षण आवशयक किया जाना चाहिए। आज हमारे घर पर हमला था इसलिए हम परेशान हैं किंतु आंतकवाद तो विश्व व्यापी समस्या है। इससे निपटने को हमे इंस्त्राइल जैसे देशो से देशभक्ति सीख्ननी होगी ।


बशीर बद्र के एक शेर से मै अपनी बात खत्म करता हूं..


असूलों पर जो आंच आए तो टकराना जरूरी है,


जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है।


Friday, November 28, 2008

शोक

हमे शोक के साथ साथ गर्व देश के उन रणबांकुरों पर जो मुंबई के आंतकवादी हमलों में शहीद हो गए।




मुंबई के आंतकवादी हमलो में शहीद होने वालों की मृत्यु पर हार्दिक शोक

Thursday, November 27, 2008

बेनजीर को संयुक्त राष्ट्र का मनावाधिकार सम्मान


पाकिस्तान की पूर्व प्रधान मंत्री बेनजीर भुट्टों को मरणोपरांत संयुक्त राष्टृ् का सर्वोच्च मानवाधिकार सम्मान दिया गया है। यह सम्मान मानवाधिकार की रक्षा करने वाली संस्थ्राआें अथवा व्यक्तियो को दिया जाता है। इस मौके पर मै अपना वह लेख नीचे दे रहा हूं , जो मैने बेनजीर की मृत्यु पर उन्हें श्रद्धांजलि देते समय लिखा था
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बेनजीर आैर मेरी पीढ़ी
और मेरी पीढ़ी पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर अली भुट्टों के निधन से हुई क्षति के बारे लोगों की अलग-अलग राय होगी। कोई इसे जमहूरियत पर कुर्बानी करार दे रहा है तो कोई इसे पाकिस्तान में अमेरिकी पॉलिसी की हार बता रहा है । किसी का कहना है कि यह पाकिस्तान की बहुत बड़ी क्षति है तो कोई बेनजीर के पति और उनके बच्चों के लिए असहनीय हादसा मान रहा है। कुछ भी हो बेनजीर का निधन भारत में जन्मी मेरी पीढ़ी का बहुत बड़ा नुकसान है । और है उनके एक खूबसूरत सपने का अंतः। बेनजीर की मौत ने मेरी पीढ़ी के समय की धुंध में छिपे घाव को फिर कुरेद दिया। फिर से उन्हे एक नई हवा दे दी। 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ। इस जंग में पाकिस्तान को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। दुनिया के नक्शे पर बांग्ला देश नाम से नया मुल्क उभरा। भारत से सात पीढ़ी तक युद्ध करने का दंभ भरने वाले पाकिस्तान के प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को समझौते के लिए मजबूर होना पड़ा। समझौता वार्ता भारत में होनी थी। वार्ता के लिए इंद्र की नगरी जैसे खूबसूरत पर्वतीय शाहर शिमला को चुना गया। जुल्फिकार अली भुट्टो वार्ता के लिए भारत आए। उनके साथ आई सतयुग काल की अप्सरा रंभा,उर्वषी और मेनका की खूबसूरती को याद दिलाती उनकी बेटी बेनजीर । बेनजीर वास्तव में बेनजीर थी। जब यह भारत आई तो उसकी उम्र 19 साल के आसपास रही होगी। उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा की मृगनयनी जैसी बेनजीर मेरी पीढ़ी के युवाओं को रांझा बना देने के लिए काफी थी।आज मेरी पीढ़ी बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ी है। बेनजीर के शिमला आने के समय वह नौजवान थी। उसकी उम्र 18 से 21 साल के बीच रही होगी। प्रत्येक नौजवान की तरह इसके भी अपने - अपने सपने थे। सबकी अपनी अपनी हीर थी ,सबकी अपनी -अपनी राधा थी। मेरी जवानी के दौर की प्रसिद्ध हिरोइन थीं- मधुबाला,मीना कुमारी,आशा पारिख,वहीदा रहमान आदि- आदि।हरेक नौजवान की तमन्ना थी कि उसकी सपनों की रानी इनसे कुछ कम न हो। बेनजीर भारत आई तो समझौते की खबरों के साथ-साथ उसकी खूबसूरती,स्टाइल की खबरें मेरी पीढ़ी को मिली। इन खबरों ने उसकी सपनों की रानी की छवि ही बदल दी। उस समय के हर नौजवान की तमन्ना हुई कि उसके आंगन की तुलसी कोई और नही सिर्फ- और सिर्फ बेनजीर हो।उस समय समाचार सुनने के लिए रेडियो ही था। मेरी पीढ़ी ने शिमला समझौते के समाचार आकाशवाणी और बीबीसी से सुने। भारत युद्ध में जीत चुका था। देश भक्ति का जोश सबमें भरा था। हरेक जानना चाहता था कि शिमला में क्या हो रहा है, किंतु मेरी पीढ़ी की इच्छा यह जानने में रहती कि बेनजीर कैसी हैं। क्या पहने हैं,क्या कर रही है। परिवार से बचकर छुपकर या परिवार वालों के समाचार सुनने के दौरान बुलैटिन में बेनजीर के बारे में प्रसारित होने वाले समाचारो को सुनने की उत्सुक होती। अखबारों में छपे बेनजीर के फोटो ,उसकी चर्चा में युवाओं की ज्यादा रूचि रहती। आपस में चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा उस समय बेनजीर ही रही।शिमला के बेनजीर के प्रवास के पांच दिन मेरी पीढ़ी के युवाओं में एक ऐसा अहसास और ऐसा नशा भर गए कि उनके सपनों की रानी ही बदल गई। बेनजीर के भारत से वापस जाने का बहुत अहसास रहा। उनकी तमन्ना यह थी कि यह परी भारत के आंगन को ही महकाए।पर ऐसा हुआ नहीं।शिमला वापसी के बहुत दिन बाद तक मेरी पीढ़ी के युवाओं ने जमकर आहें भरी। कुछ की यह दीवानगी तो काफी समय तक जारी रही।वख्त के साथ साथ जिंदगी की 35-36 साल की जददोजहद में बहुत कुछ पीछे छूट गया। बेनजीर की यादें भी धुंधला गईं । जीवन के इस सफर में क्या छूटा पता नहीं,किंतु जो मिल गया उसको मुकद्दर समझकर जीवन की जंग जारी रखी। जवानी के तेज से चमकने वाली आंखों पर कब चश्मा आ गया ,केशा?वदास के सफैद बालों को देख सोने के बदन वाली मृगलोचनी कब बाबा कहने लगी,पता नही चला। किंतु बेनजीर के निधन के समाचार ने मुझे आज 35-36 साल पीछे धकेल मेरी पीढ़ी की जवानी की, उसकी हीर , उसकी उर्वश की याद ताजा करा दी। जिंदगी की जंग में मेरी पीढ़ी ने हार नहीं मानी। बहुत कुछ खोने के बाद भी दुनिया के विकास में कोई कसर नही छोड़ी ,किंतु जवानी का बेनजीर जैसा खूबसूरत सपना टूट जाए ,तो बहुत ज्यादा मलाल होता है। पाकिस्तान , पाकिस्तान के आवाम को नुकसान हुआ हो या नही किंतु बेनजीर के निधन से हिंदुस्तान की मेरी पीढ़ी को तो बहुत नुकसान हुआ है।

Wednesday, November 26, 2008

यादें badrinath यात्रा 2





यात्रा, अवधि, badriinaath
मार्ग दो फोटो एक बद्रीनाथ में पड़ी बर्फ, दूसरा भारत का अंतिम गांव माणा
ऋषिकेश से माणा सीमा का अंतिम गांव तक का मार्ग नेशनल हाईवे है, इसके बावजूद इसकी हालत बहुत खराब है। श्रीनगर से ऋषिकेश के बीच कई जगह हाटमिक्स से बना होने के कारण यह मार्ग बहुत अच्छा है, किंतु ऋषिकेश से देवप्रयाग के बीच बहुत खराब। जबकि यहां सडक़ काफी चौड़ी है और इसे हाटमिकस से बनाया जा सकता है। उतरांचल के वासी कहते हैं कि इस मार्ग की मरम्मत को प्रत्येक वर्ष करोड़ो रूपया आता है और केंद्रींय सडक़ संगठन के अधिकारी उसे खुर्द-बुर्द करते रहते हैं। खैर आज भी २००७ में हमें ऋषिकेश से बद्रीनाथ आने-जाने में १५ से 16 घंटे लगे।किंतु आज से पहले क्या हालत होगी इस बारे में हमारे बस चालक ने बताया कि 20 साल पूर्व पांच दिन में बद्रीनाथ पहुंचा जाता था। चढ़ाई ज्यादा थी, गाडिय़ों के इंजन ज्यादा पावर के न होने के कारण गर्म जल्दी होते थे। लौटते दो दिन लगते थे। क्योंकि ढ़ाल पर आना होता है। सोचता हूं कि यह हालत 20 साल पहले की थी। नरेंद्र मारवाड़ी के बाबा तो 93 साल पूर्व बदीनाथ गए थे, उस समय कैसे होता था। बुजुर्ग बताते हैं कि तीन चार माह लगते थे, क्योंकि पूरी यात्रा पैदल होती थी। गांव-कस्बे से परिजन-मिलने वाले बद्रीनाथ यात्री को माला आदि पहनाकर बस्ती से बाहर तक विदा करने आते थे। शायद यह सोचकर कि यह न लौटे। यात्री अपने तेहरवीं आदि के संस्कार स्वयं कर यात्रा शुरू करते थे कि रास्ते में मर खप गए तो कोई अंतिम संस्कार भी नही करेगा। यात्री अपने साथ हल्के विस्तर के अलावा खाने-पीने का सामान रखते थे। जगह-जगह यह काफिला रूकता । वहीं बनाकर भोजन आदि करता और आगे बढ़ जाता। ज्यादा सामान ले जाना संभव नही होता। रास्ते में पडऩे वाले बाजार एवं दुकान आदि से सामान खरीदते जाते थे। काफी व्यक्ति तो बीमारी, ठंड आदि के कारण रास्ते में ही मर-खप जाते थे। बद्रीनाथ की हमारे धर्मशाला के पंडित बताते हैं कि सीजन में यहां १०,15हजार तक यात्री प्रतिदिन आते हैं जबकि इतने लोगों की व्यवस्था नहीं है। धर्मशाला के बरांडे तक में श्रद्धालु रात को भरे होते हैं। कुछ इस दौरान यहां मर भी जाते हैं। नवंबर के मध्य बर्फ पडऩे के कारण बद्रीनाथ और माणा बंद कर दिया जाता है। यहां के निवासी नीचे आ जाते हैं। बताया जाता है कि ठंड के मौसम में यहां १० से १५ फुट तक बर्फ पड़ती है। वे बताते हैं कि यहां भवनों की छते ढालदार इसीलिए हैं कि बर्फ इनके ऊपर न रूके, अन्यथा वे फट जाएंगी। यहां के पुजारी बताते हैं कि नवंबर के मध्य तक तक का सामान आदि को पैक कर स्टोर में रख नीचे चले जाते हैं। ठंड के तीन-चार माह में यहां काफी नुकसान हो जाता है। लौटने पर मरम्मत आदि करानी होती है। ठंड और आैर बर्फ के मौसम में भी बद्रीनाथ में भी कुठ साधु रूकते और मनन चिंतन तथा साधना करते हैं। इस बार उतरांचलप्रशासन ने इन्हें भी नोटिस देकर कहा है कि वे भी १८ को बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर वह भी नीचे चलें जाएंगे। हालांकि इस आदेश को लेकर यहां के पुजारी, पंडा आदि में रोष है।वह इसे परंपराओं से चलती आ रही व्यवस्था के विपरीत बताते हैं। उधर, जहां ये सब गतिविधि roon जाती है।वहीं माणा के पास बने सैन्य शिविर में जीवन चलता रहता है। माणा से चीन सीमा पांच किलोमीटर होने के कारण यहां शिविर में तैनात जवानों को हड्डियां गलाने वाली ठंड में भी देश की खातिर सीमाओं पर सर्किय रहना होता है। नजर रखनी होती है।

Monday, November 24, 2008

मीडिया दूसरों की चिंता छोड़ अपनी चिंता करे,

मंदी मीडिया के द्वारे पर भी
र्मीडिया में आजकल विमानन, आई टी,बैंकिंग क्षेत्र में नौकरियां कम किए जाने के समाचार रोज प्रमुखता के साथ जगह पा रहे है।पे घटाने के समाचार प्रमुख लीड बनाकर छापे जा रहे हैं। यह भी आ रहा है कि बड़ी कंपनियां अपने खर्चे कम कर रही है।
इतना सब हो रहा है तो क्या मीडिया इससे अछूता रहेगा,यह कोई पत्रकार या अखबार लिखने को तैयार नही। मीडिया में निवेश की बात करने वाले चैनल को यह भी तो बताना चाहिए कि सबसे ज्यादा खराब हालत मीडिया की होनी है। यहां नई नियुक्तियों पर रोक लग चुकी है। पे नही बढ़ाई जा रही।पहले हफ्ते मे मिलने वाला वेतन अब माह के अंत मे सरक कर पंहुच गया है। बड़ी कंपनियों के खर्च कम किए जाने की बात आ रही है किंतु यह नही कहा जा रहा कि मीडिया के खर्च चलाने वाले बड़ी कंपनियों के विज्ञापन अब बंद हो चुकें हैं। या होने जा रहे हैं।मल्टीनेशनल कंपनियों के विज्ञापनों से भरे रहने वाले समाचार पत्रों के पन्ने अब खाली रहने लगे है।
वे प्रकाशन समूह जो मल्टीनेशनल कंपनियो के बूते अपने काम चलाते थे, अपने विस्तार करते थे। वे अपनी योजनाआें के विस्तार रोक रहे हैं मैंने कहीं पढ़ा था कि आईटी में प्रतिवर्ष 18 प्रतिशत रिक्तिंया निकल रही हैं तो मीडिया में 38 प्रतिशत ग्रोथ है। अब यह सब खत्म होने जा रहा है। लगता है कि अब प्रकाशन समूह अपने प्रकाशान के पेज कम करेंगे।बड़ी कंपनियों के विज्ञापन पर चलने वाले मीडिया को बहुत संकट का सामना करना होगा। चैनल पहले ही संकट में हैं। प्रिट मीडिया के सामने नई चुनौती है।सिर्फ वही मीडिया समूह इस संकट में कुछ खड़े रह सकेंगे जिन्होंने तहसील एवं जिलास्तर पर अपना विज्ञापन का नेटवर्क खड़ा किया हुआ है। यह होने के बावजूद सबकों मंदी के तूफान को झेलना है।
बहुत बड़ा संकट आने वाला है मीडिया पर, किंतु हम अपनी थाली से गायब होने वाले पकवान, मेवों पर ध्यान नही दे रहे ,हमे चिंता है तो दूसरों की थाली से कम होने जा रही रोटी की। भगवान हमे संदबुद्धि दें।

Sunday, November 23, 2008

यादें, हमारे धर्मस्थल , हमारा इतिहास

हमारे धर्मस्थल, हमारा इतिहास
हमारे धर्मस्थल धार्मिक आस्था कें तो प्रतीक हैं। वे हमारे आस्था कें साथ-साथ आत्मविश्र्वास, सहयोग भावना ओर सहृदयता को बढ़ाते है। एक बड़ा काम यह हो रहा है कि इन स्थानों पर हमारे पारिवारिक इतिहास को संजोकर रखा जा रहा है।धर्मस्थल पर पुजारी और पंडे रहते हैं। ये धार्मिकस्थल पर जाने वाले को विधि-विधान से पूजा-पाठ तो कराते ही हैं, उसके और उसके परिवार के रहने की व्यवस्था भी करते हैं। सबसे बड़ा काम यहां यह किया जाता है कि वहां जाने वाले के पारिवारिक इतिहास को संजोकर रखने का। उनके परिवार का कौन व्यक्तिं कब आया यहां, उसके बही-खातों में तो होता ही है साथ ही इतिहास होता है। पूर्वज और बच्चों का इतिहास।अक्तूबर २००७ मे बद्रीनाथ जाने का अवसर मिला। मेरे साथ गए मेरे दोस्त नरेंद्र मारवाड़ी बद्रीनाथ में, अलवर वालो की धर्मशाला में चले गए। वहां पंडित जी से बात की वंशानुक्रम कें बारे में बताया, तो पता चला कि उनके देहरादून में रहने वाले चाचा धर्मशाला के संरक्षक हैं। जल्दी में होने के कारण शाम को उनके पास बैठना हुआ। हम भी मारवाड़ी के साथ पंडित जी के पास गए। बात करते-करते पंडित जी ने अपनी बही खोलकर उनके गोत्र का विवरण खोला तो पता चला कि उनके पिता जी 41 वर्ष पूर्व यहां यात्रा को आए थे। यात्रा को आने कें बाद हुए उनके दो बच्चों का विवरण दर्ज नहीं थे। उन्होंने देखकर उनके दादा कें बारे में बताया कि वे ९३ साल पूर्व बद्रीनाथ आए थे। दोनों कें आने की तिथि तक वही में दर्ज थी। मारवाड़ी को अपने बाबा का नाम ज्ञात था। यहां बही से उन्होंने अपने बाबा कें पिता उनके भाई, बाबा कें दादा और उनके भाईयों आदि का विवरण नोट किया। पंडित जी ने अपनी वही में मारवाड़ी से अपने औरउनके बच्चे, भाई और भाइयों के बच्चों की जानकारी नोट की। नीचे तारीख, माह,सन डालकर हस्ताक्षर कराए। ऐसा यही नहीं हर तीर्थस्थल में होता है। वहां के पंडित और पुजारी अपनी-अपनी वादियों में आने वालों का इतिहास दर्ज करके रखते हैं। 41 वर्ष पूर्व पिता के आने और 93वर्ष पूर्व दादा के आने की जानकारी पाकर नरेंद्र मारवाड़ी को तो अच्छा लगा ही किंतु इतिहास बड़ा सुखद लगा। यह भी अच्छा लगा कि यहां पुजारी पारिवारिक इतिहास वंशानुक्रञ्म का इतिहास रखे हैं। हिंदुओं में पारिवारिक विवरण दर्ज करने का प्राविधान नहीं है, किंञ्तु मुस्लिमों में पारिवारिक विवरण रखने की व्यवस्था है। इसे वे शजरा कहते हैं। यह एक पेड़ की तरह का होता है। परिवार के प्रथम पुरूञ्ष का नाम लिखकर उनके नीचे तीर का निशान बनाकर उनके पुत्र का नाम लिखा जाता है। दो पुत्र होते हैं तो दो तीर बनाए, दोनों के नाम दर्ज होते हैं। इन पुत्रों के बच्चों के विवरण तथा आने वाली संतान की जानकारी इसी प्रकार दर्ज होती जाती है।इन धार्मिक स्थलों के पुजारियों से संपर्क कर पारिवारिक इतिहास तैयार कराया जा सकता है। पुजारी कहीं जातिनुसार होते हैं, तो कहीं जनपद या क्षेत्रानुसार। किसीभी धार्मिकस्थल में जाने पर आप किसी पंडा या पुजारी से पूछे तो वह बता देंगे कि आपके परिवार, गोत्र के पुजारी कौन हैं तथा कहां रहते हैं।

Saturday, November 22, 2008

दो फोटो



हाल में एक शव के साथ गंगा बैराज जाने का अवसर मिला। अंतिम संस्कार स्थल से काफी दूरी पर कोई अजीव जी चीज खड़ी दिखाई दी । कुलबुलाहट हुई। देखा तो यह मूर्ति खड़ी थी। मोबाइल से फोटों खींचे। एक साथी ने देखकर कहा कि गंगा मे विसर्जित प्रतिमा है। किसकी है यह दूसरे ने बताया कि मोर पर सवार तो भगवान कार्तिकेय होते हैं। सो उनकी प्रतिमा है।
अब यह प्रतिमा आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है

Friday, November 21, 2008

बदरीनाथ यात्रा तीन अंतिंम

प्रसिद्धि रही है कि उत्तरांचल के निवासी बहुत सीधे और भोले होते हैं ,किन्तु जैसे-जैसे भौतिकता की बयार उत्तरांचल में पहुंच रही है।पर्यटको की आवाजाही बढ़ी है, ये भी तेज-तर्रार होते जा रहे हैं। हरिद्वार से बद्रीनाथ कें रास्ते में जगह-जगह बस स्टैंड पर महिलाएं नग एवं रूद्राक्ष बेचेतीं दिखाईं दीं। प्रत्येक महिला कें डिホबे में कई-कई एक मुखी रूञ्द्राक्ष तक दिखाई देंगे। मान्यता है कि यह रूञ्द्राक्ष बहुत कम मिलता है। मिलता है तो बहुत मूल्य पर। ये 1100 या 2100 रूपए में एक मुखी रूद्राक्ष देने की बात करते, इसे असली बतांते। ग्राहक के न फंसने पर उसे आखिर में दस-पंद्रह रूपए तक में बेच देते हैं। यहां के बारे में प्रसिद्ध रहा है कि यहां अपराध नहीं होते। चोरी बिल्कुल नहीं होती। इसीलिए यहां घरों में ताले लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। उतरांचल के दौरे में भी दिमाग में बचपन से सुनी जा रही यह बात गलत साबित हुई। जब हम बद्रीनाथ से आगे देश के अंतिम गांव माणा पहुंचे। तो ठंड पडऩे लगी थी। यहां के निवासी नीचे जाने लगे थे। माणा के भी काफी व्यक्ति घर छोडक़र चले गए थे। घरों में ताले लटके देख मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। मैंने अपने कैमरे से उसका फोटो खींचा। यहां से कुछ आगे बढ़ा तो एक अन्य स्थान पर ताला लगा ही नहीं मिला, उस पर सील भी लगी देखी। गांव के प्रधान हमारे साथ थे। किन्तु अन्य लोगों ने बताया कि अब प्लेन की हवा यहां भी आ गई है। भवनों में चोरी होने लगी। इसीलिए पहाड़ के रहने वाले अब घरों पर ताले लगाने लगे हैं।

Thursday, November 20, 2008

गंगा सफाई


गंगा के प्रदूषण को लेकर हाल में हमारे प्रधानमंत्री चिंतित नजर आए। बहुत समय से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास हो रहे है। गंगोत्री से कलकत्ता तक अभियान चल रहा है किंतु मुझे नजर नही आया। मैं गंगा के तट से १२ किलो मीटर दूर बिजनौर शहर में रहता हूं। यहां में गंगा के दो फोटो डाल रहा हूं। यह फोटा गंगा बैराज के स्नान घाट के पास के हैं ।



बैराज एवं घाट की देखरेख की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग की है किंतु वह धन न होने की बात कहकर पल्ला झाड़ देता है। फोटो घाट के पास शाव दाह स्थल का है। शव दाह के शव के साथ आए व्यक्ति शव के जल जाने पर बची लकड़ियों अौर राख को गंगा में बहा देते हैं।इतना ही नही वे अपने साथ मृतक के कपडे़,रजाई,गद्दे ,कमीज ,पाजामा ,पेंट, आदि कपड़े,दवाई, मेडकिल रिपो्र्ट आदि साथ लाते एवं गंगा में डाल देते हैं।ये सामान गंगा में बहकर आगे नही जा पाता। यह वही एकत्र रहता हैं तथा जल उतरने पर दिखाई देने लगता है।इतना ही नही घरों की पुरानी देवी देवताआे की मूर्तिया, पुरानी तसवीर तथा केलेंडर आदि गंगा में लाकर डाल देते है। शादियों के पुराने कार्ड, पूजा में प्रयुक्त हुई सामग्री ,दीप आदि भी गंगा में डाले जाते हैं। इन्हें गंगा में विसर्जन करना कहा जाता है। इसका परिणाम है कि यह सामग्री गंगा को प्रदूषित करने में लगी है। सरकार एवं किसी समाजसेवी संगठन का इस आैर ध्यान नही ,यदि लोगों को इसके लिए प्रेरित किया जाए कि शाव की थोडी़ राख को गंगा मे विसर्जित कर शेष बची सामग्री गंगा के तट पर गड्ढा खोद कर उसमे डालकर गड्ढे को बंद कर दिया जाए तों गंगा को बड़े प्रदूषण से मुक्त रखा जा सकता है

Monday, November 17, 2008



जिंदगी का सफर कैसा भी कितना भी कठोर क्यो न हो ,यह जीने वाले की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है कि वह उसे कैसे जिए।बच्चों की साइकिल पर सवार इन मियां जी को देखकर कोई हंसे या मजाक उड़ाए किंतु अपने ढंग से जीवन जीने वाले पर कुछ फर्क नही पड़ता। उसने अगर जीवन को जीने की ठान ली तो वह हर हालत में मस्त रहता है। इन साइकिल सवार मौलाना के चेहरे की मुस्कराहट में तो मुझे फकीरो की मस्ती,मस्तों की मुस्कराहट,प्रेम करने वालों की दीवानगी नजर आती है। सड़क चलते मौलाना को साइकिल चलातें देख मेरे मन का फोटोग्राफर के जागते समय यह नही लगा था कि बच्चों की साइकिल पर सफर कर रहा यह व्यक्ति अपने में इतना मस्त होगा।