Sunday, March 9, 2014

मशहूर डायलॉग राइटर अख्तर उल ईमान की पुण्य तिथि नौ मार्च पर विशेष


मशहूर डायलॉग राइटर अख्तर उल ईमान की पुण्य तिथि पर विशेष

अख़्तर उल ईमान के डायलॉग ने कई फिल्मों में डाली जान
बिजनौर के राहूखेड़ी के रहने वाले थे अख्तर साहब

बिजनौर, ०८ मार्च

चुनाये सेठ जिनके घर शीशे के हो, वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते......, ये बच्चों के खेलने की चीज नहीं, हाथ में लग जाए तो खून निकल आता है। ७० के दशक में बनी फिल्म वक्त के इन डायलॉग ने अपने जमाने में खूब धूम मचाई। फिल्म वक्त ही नहीं बल्कि अपने दौर की रोटी, सोना चांदी, अपराध, हमराज, गुमराह, आदमी, दाग जैसी तमाम मशहूर फिल्मों में डायलॉग लिखने और फिल्म लहू पुकारेगा का निर्देशन करने वाले मरहूम अख़्तर-उल-ईमान बिजनौर जिले की वो शख्सियत हैं, जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में कामयाबी की बुलंदियों को छुआ और बिजनौर जिले का नाम भी रोशन किया।

अख़्तर-उल-ईमान बिजनौर जिले के छोटे से गांव राहूखेड़ी(नजीबाबाद) में १२ नवंबर १९१५ को सामान्य परिवार में जन्मे। इनके पिता फतेह मुहम्मद मदरसे में शिक्षक एवं पेश इमाम थे। बचपन में अख्तर साहब पेड़ नीचे बैठकर परिंदों की आवाज सुना करते थे। कम उम्र में ही शिक्षा के लिए अख्तर उल ईमान अपनी खाला के साथ दिल्ली चले गये। १९३४ में फतेहपुर मुस्लिम हाई स्कूल में दाखिला लिया और गुजारे के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगे। यहीं से इन्होंने नज्म निगारी का आगाज किया। शुरू में स्कूल की मैग्जीन में छपते और पसंद किये जाते थे। हाई स्कूल पास करके दिल्ली में ही एग्ंलो अर्बिक कॉलेज(जाकिर हुसैन कालेज) में दाखिला लिया। इसी कालेज से संबद्ध एडल्ट शिक्षा के केंद्र में ये रात के समय पढ़ाते थे।

जनपद के प्रसिद्ध उर्दू विद्वान इकबाल सिद्दीकी के अनुसार अख्तर साहब इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ चले गये। अलीगढ़ में १९४४ में इन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से फारसी साहित्य में एमए किया। इसके बाद अख़्तर साहब ने मुंबई का रूख किया और फिल्म डायरेक्टर बीआर चोपड़ा के साथ काम करने लगे। यहीं से फिल्मी दुनिया में इनकी एंट्री दर्ज हुई। फिर क्या था, अख़्तर साहब लिखते गये और वालीवुड की दुनिया में नाम कमाते गये। सफलता के इस दौर में इन्होंने विजय, चोर पुलिस, दो मुसाफिर, चांदी सोना, जमीर, छत्तीस घंटे, रोटी, नया नशा, दाग, धुंध, दास्तान, जुल्म का उस्ताद, आदमी, हमराज, फूल और पत्थर, मेरा साया, यादे, गुमराह, अपराध, धर्मपुत्र, इस्तेफाक, आदमी और इंसान समेत लगभग सौ फिल्मों में डायलॉग लिखे। फिल्म वक्त, फूल और पत्थर एवं रोटी में लिखे डायलॉग काफी चर्चित रहे। धर्मवीर और वक्त के डालाग के लिए उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड मिला। फिल्म लहु पुकरेगा का निर्देशन भी किया, हालांकि यह फिल्म धूम नहीं मचा पाई। फिल्म डायलॉग लिखने के अलावा अख़्तर साहब ऊर्द नज्म के मशहूर शायर भी थे। इनके काव्य संकलन-गरदाब, यादें, तारीक सय्यारा, आबजू, सबरंग, बिन्ते-लम्हात, नया अहंग, सरो-सामां और ज़मीन-ज़मीन आदि काफी मशहूर रहे। काव्य संकलन गरदाब को पढ़कर मशहूर शायर फिराक़ गोरखपुरी ने कहा था कि.... ऐसा मालूम होता है शायर नागफनी निगल गया है। १९६० में काव्य संकलन बिन्ते-लम्हात को साहित्यिक एकाडमी का इनाम मिला। यूपी ऊर्दू एकादमी में ने भी इन्हें नवाजा। नया अहंग पर महाराष्ट्र ऊर्दू एकादमी का इनाम मिला। इसके बाद सरो सामान पर हिंदी साहित्य एकादमी ने इकबाल सम्मान से नवाजा। सरोसामान पर ही गालिब एकादमी दिल्ली और ऊर्दू एकादमी दिल्ली ने भी इनामात दिये.....। एक छोटी सी नज्म एक लड़का से ऊर्दू नज्मों की दुनिया में तहलका मचाने वाले मशहूर शायर अख्तर उल ईमान फिल्मी अदब की दुनिया की ८० बहारे देखने के बाद ०९ मार्च १९९६ में हृदय गति रूकने के कारण इस दुनिया से रूखसत हो गये। उन्हीं के शब्द-मेरे बोसीदा लिबादे में रहेगी न सकत, माहो साल और लगा दें नया पेवंद कहीं, जागते जागते थक जाऊंगा, सो जाऊंगा। उनके देहांत पर सभी प्रसिद्ध क़लमकारों ने कहा कि वो जदीद शायरी के कबीले के आखिरी सरदार थे। आइये हम सब आज अपने जिले की इस महान हस्ती को उनकी मशहूर नज्म के साथ फिर से याद करें।ं

इस भरे शहर में कोई ऐसा नहीं

जो मुझे राह चलते को पहचान ले

और आवाज दे, ओ बे ओ सर फिरे

दोनों एक दूसरे से लिपटकर रहे

गालियां दे, हसें, हाथापाई करें

घंटो एक दूसरे की सुनें और कहें

और इस नेक रूहों के बाजार में

मेरी ये क़ीमती बेबहा ज़िंदगी

एक दिन के लिए अपना रूख मोड़ दे।





फिल्म अभिनेता अमजद खान थें दामाद

बिजनौर। फिल्म अभिनेता अमजद खान से अख्तर उल ईमान की बड़ी बेटी शहला का विवाह हुआ था। शहला के अतिरिक्त दो बेटियां इस्मा और र$खशंदा, एक बेटा रामिश है। रामिश फिल्मों में काम करते हैं।

अशोक मधुप