Wednesday, February 28, 2024

छात्रों को नही मिली टयूशन से मुक्ति




केंद्र सरकार  ने  2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)  लागू कर  दी।  इसके हिसाब से पढाई में भी शुरू हो गई किंतु छात्र पर पढ़ाई का बोझ कम नही हुआ।स्कूल के बाद भी बच्चे का  तीन−चार  ट्यूशन पढ़ने पड़ते  हैं।बस्ते का बोझ भी  पहले जैसा ही है, वह भी कम नही हुआ।

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत सभी राज्यों में लागू  कर दी।  अब कक्षा   एक  में एडमिशन की उम्र सीमा को लेकर जारी किया गया है।केंद्र द्वारा राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को लिखे पत्र में शिक्षा मंत्रालय (एमओई) के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने 2020 में एनईपी लॉन्च होने के बाद से कई बार जारी किए गए अपने निर्देशों को दोहराया है। इन निर्देशों में  कक्षा एक  में दाखिले के लिए बच्चे की उम्र कम से कम छह  वर्ष होनी चाहिए। इसी तरह का एक नोटिस पिछले साल भी जारी किया गया था.शिक्षा मंत्रालय की ओर से 15 फरवरी 2024 को जारी पत्र में कहा गया है कि नए शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए जल्द ही एमडिशन प्रक्रिया शुरू होने वाली है। उम्मीद है कि राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में अब ग्रेड- एक  में प्रवेश के लिए आयु 6+ कर दी गई है।मार्च 2022 में केंद्र ने लोकसभा को सूचित किया था कि 14 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जैसे असमगुजरातपुडुचेरीतेलंगानालद्दाखआंध्र प्रदेशदिल्लीराजस्थानउत्तराखंडहरियाणागोवाझारखंडकर्नाटक और केरल में उन बच्चों के लिए एक  प्रवेश की अनुमति हैजिन्होंने छह वर्ष पूरे नहीं किए हैं।पूर्व में केंद्र ने कहा था कि एनईपी शर्त के साथ न्यूनतम आयु को संरेखित नहीं करने से विभिन्न राज्यों में शुद्ध नामांकन अनुपात की माप प्रभावित होती है। एनईपी 2020 की 5+3+3+4 स्कूल प्रणाली के अनुसारपहले पांच वर्षों में तीन से छह वर्ष के आयु समूह के अनुरूप प्रीस्कूल के तीन वर्ष और छह से आठ वर्ष के आयु समूह के अनुरूप कक्षा और के दो वर्ष शामिल हैं.केंद्र ने जारी निर्देश में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कक्षा एक  में दाखिले के लिए न्यूनतम उम्र सीमा छह वर्ष अपनाने को कहा है।

केंद्र सरकार  नई शिक्षा नीति लागू करने के बाद भी छात्रों के   बस्ते का  बोझ कम नही कर सकी।कई  बच्चों के बस्ते का  बोझ  उनके खुद के वजन से ज्यादा होता है।जबकि ऐसा नही होना  चाहिए ।पीठ पर बोझ लदने से बच्चे का   मानसिक और शारीरिक विकास रूक  जाता है। शिक्षाविद और मनोवैज्ञानिक कई बार बस्तों के बोझ को लेकर चिंता  जारी कर चुके हैं। पर इस पर रोक  नही लगी।छात्र को होमवर्क देना तो  रोजमर्रा  का काम  है।  इसके लिए  उसे दो से  तीन घंटे  चाहिए।स्कूल में पांच घंटे के बाद  दो से तीन घंटे  उसे  होम वर्क करना  है।  इस तरह से छोटे स्तर से ही उस पर आठ नौ घंटे पढ़ाई का बोझ रहता है।यह उम्र  बच्चे के खेलने− कूदने  की है ताकि उसका समुचित शारीरिक और मानसिक   विकास हो। हमारी पोती अमेरिका में पढती है। कक्षा पांच तक  उसे कोई  किताब नही दी जाती। बस स्कूल में ही क्रिटीविटी सिखाई जाती है। कहानी की  पुस्तकें दो घर जाकर पढ़ने को दी जाती हैं ताकि बच्चे  की रीडिंग की आदत   बढ़े।बाकी कुछ नही।

दूसरा भारत का  कितना ही मंहगा स्कूल हो, कक्षा  पांच के बाद छात्र का  टयूशन  पढ़ना  उसकी मजबूरी है। घर आकर होमवर्क में दो −तीन घंटे लगाने के बाद प्रत्येक विषय के टयूशन के लिए उसे  एक घंटा देना ही होता  है। इस ट्यूशन में आने −जाने में भी समय लगता  है।पांच टयूशन  हुए तो  पांच घंटे टयूशन में लगेंगे।एक से दो घंटे आने−  जाने में ।इस तरह से  एक छात्र को  पांच घंटे स्कूल में , एक से दो घंटा  स्कूल से घर आने − जाने में, दो से तीन घंटे होमवर्क करने में, पांच घंटे टयूशन में  और दो घंटे के  आसपास  उसे टयूशन आने – जाने में लगते हैं। इस प्रकार  एक छात्र प्रतिदिन पढ़ाई पर 14 से  17 घंटे लगाता है।  इसके पास खेलने के लिए उसे एक मिनट  का भी समय नही।इसी भागदौड़ में वह बुरी तरह से थककर चकनाचूर हो  जाता है।इस शिक्षा ने बच्चे को पढ़ाई के नाम पर मशीन बनाकर  रख दिया।उससे  बच्चे का  मानसिक और शारीरिक विकास रूक गया। इसके लिए सोचने को न सरकार के पास  समय  है, न शिक्षाविद के पास।ये भी  हो सकता है कि पढाई कें घंटो में पांच− पांच मिनट कम करके एक नया परियड  बनाया जाए।उसमें छात्र को घर के लिए दिया  होमवर्क स्कूल में ही पूरा कराया  जाए।

देश में स्कूल बढ़िया  बन रहे हैं। मोटी −मोटी फीस ली जा रही है। इसके बावजूद इनके भी छात्र टयूशन क्यों पढ़ रहे हैं। महंगे स्कूलों से तो अपेक्षा  की जाती है कि ये  विश्व स्तर की शिक्षा  दें।दरअस्ल देश की शिक्षा के प्राइवेट  सैक्टर में जाने के बाद कुकुरमुत्तों की तरह शिक्षण  संस्थांए   उग गईं।इन  अधिकाशं का  पढ़ाई−लिखाई से कोई लेना  देना  नही।  इनका उद्देश्य तो ऐन− केन प्रकरेण  अभिभावक से पैसा वसूलना  है।सबने  अपने कोर्स तै कर दिए। कहां से  खरीदने हैं ये तै कर दिया। स्कूल ड्रेस ही नही, जूते मौजे,बैल्ट तक स्कूल बेचने  लगे। वह भी   बाजार से कई  गुने मंहगे दामों पर।  कोई देखने  वाला  नही कोई सुनने  वाला  नही।देखने में आ रहा है कि कुछ अभिभावक बच्चे काआईएएस और आईपीएस बनाने की इच्छा और इरादा बच्चे  पर लाद देते  हैं। कक्षा दस के बाद उन्हें आए एस और आईपीएस की तैयारी की कोचिंग देने  वाले संस्थानों में भेज दिया जाता है।इन अभिभावकों के काफी बच्चे पढ़ाई का ये दबाव नही बर्दाश्त कर पाते । वे  डिपरशेन में  चले जाते हैं। कुछ आत्म हत्याएं तक कर लेते हैं।

ऐसे में  सरकार को समान शिक्षा नीति बनाने पर भी सोचना  होगा। ये भी सोचना  होगा कि अभिभावक अपने वार्ड को सरकारी स्कूल में भेजते गर्व महसूस करें। ये माने  की इनमें इनके बेटे – बेटी को प्राईवेट स्कूल से अच्छी शिक्षा मिलेगी।  

शिक्षाविद और सरकार को अपनी शिक्षा नीति में फिर से विचार करने की जरूरत है।जरूरत है ऐसी शिक्षा की जिसमें बच्चे  का समुचित विकास हो।छात्र पर बस्ते   का बोझ कम से कम हो। स्कूल से आने के बाद के घर पर बच्चे को ट्यूशन की जरूरत ही न महसूस हो। बच्चों को घर पर टयूशन पूरी तरह से बंद हों। माध्यमिक स्तर तक छात्र को ऐसी शिक्षा मिले कि स्कूल के बाद  उस पर पढ़ाई  का दबाव  न रहे।  वह आराम  से खेले −कूदे। हां  उसमें कोई हाबी खेल,  गायन, वादन, नृत्य आदि विकसित किया जाना  चाहिए।  एक चीज और स्कूली छात्रों को आत्म सुरक्षा भी इसी स्तर पर सिखा कर इतना निपुण  बना दिया जाए कि वह विपरीत हालात का  समय पड़ने पर मुकाबला कर सके।

 अशोक मधुप

  (लेखक वरिष्ठ  पत्रकार  हैं)

−−−

Thursday, February 22, 2024

क्या ये पूरे देश के किसानों का आंदोलन है

 



क्या
 ये पूरे देश के किसानों का  आंदोलन है

अशोक मधुप

पंजाब और हरियाणा को  जोड़ने वाले शंभू बोर्डर पर 13 फरवरी से किसान जमा हैं।सरकार का कहना  है कि उन्हें  आगे नही जाने दिया जाएगा।ये  जाकर  दिल्ली का  आम जीवन प्रभावित करते  हैं। ये बजिद हैं कि हमें दिल्ली जाना  है।शंभू बॉर्डर में किसानों ने घमासान मचाया हुआ है। पुलिस बेरिकेडिंग्स को तहस-नहस कर दिया है। इसके चलते पुलिस ने कई आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया है। कई बार झड़प  हो  चुकी ।  पुलिस को अश्रु गैस छोड़नी पड़ी। आंदोलनकारियों पर पैलेट गन भी  चलानी पड़ी। ये दिल्ली  आने को बजिद हैं।  कुछ जगह इन्होंने   पंजाब में हाइवे के टोल प्लाजा फ्री करा  दिए  हैं। पंजाब में ही रेलवे ट्रैक पर इनका धरना  भी कुछ  जगह जारी है। हालात ठीक नही हैं।  तीन कृषि कानून को वापिस लेने के लिए चले पिछले किसान आंदोलन की सफलता से किसान उत्साहित हैं और अग्रेसिव हैं। किंतु  सवाल यह है कि क्या ये  देश के किसानों का  आंदोलन है।  इसमें तो  पंजाब के भी  पूरे किसान संगठन शामिल नही हैं।

इस आंदोलन को  देखकर ऐसा लग नहीं रहा कि किसान वापस जाएंगे। इस बार किसान अपनी अलग-अलग मांगों को लेकर अड़े हुए हैं।इनकी मांग हैं, किसान नेता न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कानून बनाए ,किसानों ने दिल्ली मोर्चा के दौरान केंद्र सरकार की ओर से जिन मांगों को पूरा करने का भरोसा दिया गया था ,उन्हें तुरंत पूरा करे, साल 2021-22 के किसान आंदोलन में जिन किसानों पर मुकदमें दर्ज किए गए थेउन्हें रद्द करने किया  जाए,पिछले आंदोलन में जिन किसानों की मौत हुई थीउनके परिवार को मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए,लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को केंद्र सरकार न्याय दे और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दें,सभी  किसान और खेतिहर मजदूरों का कर्जा माफ हो ,60 साल से ऊपर के किसान, मजदूरों  को 10 हजार रुपये पेंशन मिले,कृषि व दुग्ध उत्पादोंफलोंसब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए,कीटनाशकबीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन करके कपास सहित सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधारी जाए  आदि ।

आंदोलनकारी किसान नेताओं से  केंद्र सरकार तीन दौर की इनसे बातकर चुकी किंतु समस्या  का हल नही निकल रहा। पंजाब में किसानों के  40 संगठन हैं। इस बार के इस आंदोलन में  32 संगठन शामिल है।  एक बड़ा  सवाल यह है कि क्या से सिंधु  बार्डर  पर जमें किसान पूरे देश के किसानों का  प्रतिनिधित्व करते हैं। क्या इन्हें आम नागिरकों का  जीवन प्रभावित करने का  अधिकार है?इस आंदोलन को भी साल 2021 के आंदोलन से ही जोड़कर देखा जा रहा हैलेकिन इस बार के आंदोलन को सभी किसान संगठनों का समर्थन हासिल नहीं है।इस आंदोलन की बात यह है कि ये आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले नहीं हो रहा। पंजाब के भी सभी  किसान संगठनों का ये आंदोलन नही है।हरियाणा के एक अन्य प्रमुख किसान नेताबीकेयू चढूनी समूह के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने  बताया कि उन्हें 'दिल्ली चलो मार्चऔर चंडीगढ़ में सरकार के प्रतिनिधियों के साथ होने वाली बैठकों में आमंत्रित नहीं किया गया। उन्होंने कहा, 'एमएसपी पर कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं हैकेंद्र सरकार का लिखित आश्वासन ही काफी है' पूर्ववर्ती संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल रहे कुछ बड़े किसान नेताओं को यह भी संदेह है कि 'दिल्ली चलो मार्चअप्रत्यक्ष रूप से पंजाब सरकार द्वारा  प्रायोजित हैक्योंकि उसे मूंग के लिए एमएसपी जैसे चुनावी वादों को पूरा करने में विफल रहने के कारण किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।हरियाणा सरकार द्वारा पंजाब सरकार पर आरोप लगाए गए हैं कि पंजाब ने उन प्रदर्शनकारियों को नहीं रोका जो बिना किसी बाधा का सामना किए बड़ी संख्या में शंभू और खनौरी सीमाओं तक पहुंचने में कामयाब रहे।बीकेयू के राकेश टिकैत  का भी मानना ​​है कि मौजूदा विरोध प्रदर्शन में कुछ कट्टरपंथी तत्व शामिल हो रहे हैं ! बातचीत मेंराकेश टिकैत ने कहा कि वर्तमान आंदोलन में भाग लेने वाले कई नेता सतलज-यमुना लिंक नहर जैसे मुद्दों को उठाना चाहते हैंजो पंजाब और हरियाणा के किसानों के बीच दरार पैदा कर सकते हैं. इसी तरहकुछ लोग सांप्रदायिक मतभेद भी पैदा करना चाहते हैं. इसलिएहम उनके आंदोलन में नहीं शामिल हैंलेकिन हम उन उन्हें मुद्दा-आधारित समर्थन प्रदान कर रहेंगे। राकेश टिकैट ने सिसौली की बैठक के बाद कहा कि 21 फरवरी को जिला मुख्यालयों पर ट्रैक्टरों के साथ प्रदर्शन  होगा। राकेश टिकैट ने कहा कि पंजाब में तीन मोर्चे हैं जिनमें से एक मोर्चा आंदोलन कर रहा है। यह संयुक्त किसान मोर्चा का आह्वान नहीं था और ना किसी से बात हुई थी लेकिन हम किसानों के साथ हैं। किसानों पर अत्याचार होगा तो हम चुप नहीं रहेंगे।कभी  किसानों के  देश का बडा केंद्र  सिसौली था, किसानों की मांग और समस्याओं को  लेकर यहां से मांग उठती थी।  आंदोलन के  निर्णय भी सिसौली से ही होते थे, अब ये  सब पंजाब में  चला गया। वहां आंदोलन की बात चलती है तो  समर्थन देना अब सिसौली की  मजबूरी हो  जाती है।

लोकसभा चुनाव से पहले प्रस्‍तावित किसान आंदोलन को बेहद ही अहम माना जा रहा है।  इन  पंजाब के आंदोलनकारी किसान  ने मानकर आए  हैं, कि चुनाव सिर  पर हैं, ऐसे  में दबाव देकर वह अपनी मांग पूरी करा सकतें हैं।  असल में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्‍ली की सीमाओं पर 13 महीने तक चले आंदोलन पर केंद्र सरकार  ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया था।इससे  वह उत्साहित हैं और सोचे बैठें हैं कि वह दबाव देकर सरकार  से अपनी मांग पूरी करा  लेंगे। हालाकि संयुक्त  किसान मोर्चा ने 16 फरवरी के  भारत बंद का आह्वान करके देख  लिया, कि पंजाब  में ही   उसके बंद का असर हुआ,  बाकी सब जगह सामान्य  रहा।

दरअस्ल सरकार भी किसानों को प्रसन्न करने के लिए उल्टे –सीधे  निर्णय लेती रहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2019 में किसान सम्मान निधि की शुरूआत  की। इसके तहत किसान को  साल में छह हजार रूपया अर्थात महीने का 500 रूपया किसान को दिया  जाता  है।  इसे  देने की क्या जरूरत थी। आज के मंहगाई  के युग में इस 500 रूपये की राशि से  क्या होता  है?  इस  निर्णय से मोदी सरकार ने  केंद्र पर करोड़ो रूपये प्रतिवर्ष   का  बोझ बढ़ा दिया। ये निर्णय ऐसा  है  कि आगे आने वाली  सरकारें किसानों को प्रसन्न करने के लिए उस सम्मान निधि की राशि बढ़ाएंगी ही, कम नही कर पांएगी।  समाज में और भी  वर्ग हैं । सबसे  बड़ा वर्ग  व्यापारी है। वह सरकार को लगातार टैक्स  देता है।सरकार उसे  क्या देता है। यही  हाल  आयकरदाता का है। पत्रकारों के लिए  कभी सरकारी स्तर से कुछ नही हुआ।  जब आप खुद किसानों को सम्मान निधि के नाम पर धन बांटने   लगोगे तो  फिर तो  वह आगे चलकर उल्टी साधी मांग करेंगे ही ।  किसान को किसान क्रेडिट कार्ड दिया हुआ है। इस पर चार प्रतिशत पर कर्ज दिया  जा सकता  है। सहकारी समिति तो डेढ  प्रतिशत पर कर्ज देने लगी। पिछली कुछ सरकारों  ने किसानों के कर्ज माफ किए हैं।  बिजली बिल माफ  किए हैं तो अब तो  ये मांग  होनी स्वाभाविक है। किसान नेता  कहते  हैं कि सरकार व्यापारियों के कर्ज माफ  करती रही है। व्यापारी को कोई कर्ज वैसे ही नही देता। दी  गई  राशि से  ज्यादा मूल्य की सपत्ति रहन रखता है।  कुछ बड़े व्यापारी जो देश से बाहर भाग  गए ,उनकी  भी देश में मौजूद संपत्ति सरकार  जब्त करने में लगी है।

कल  रविवार में केंद्र के तीन  मंत्रियों की आंदोलनकारी किसान  नेताओं से बात हुई।केंद्र सरकार धान और गेंहू के अलावा  मसूर,उड़द, मक्का और कपास पर भी न्यूनतम मूल्य देने को  तैयार हो गई  है किंतु  इसके लिए किसानों को  एनसीसीएफ,नेफेड और सीसीआई से  पांच  साल के लिए अनुबंध  करना होगा। किसान नेताओं ने सरकार के फैसले पर विचार करने का  निर्णय लिया है।किसान नेता  21 फरवरी से   पहले  सरकार  को जवाब देंगे।इस दौरान आंदोलन जारी रहेगा।उम्मीद  है कि पिछली बार वाला   अडियल रूख किसान नेता  नही अपनाएंगे।  समस्या का  समाधान निकल आएगा। पर सरकार  को यह तो  सोचना  ही पड़ेगा कि देश में  किसान ही अकेला  उत्पादक नही है।और भी  हैं। व्यापारी भी हैं, वे भी  उत्पादक हैं। घाटे में आने पर  उनके भी प्रतिष्ठान बंद  हो  जाते  हैं। व्यापारी से  तो  बिजली की दर और ज्यादा  वसूली जाती है।उनके लिए भी   सरकार को   सोचना और करना चाहिए।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Monday, February 12, 2024

एक भारत रत्न ने बदली पश्चिम यूपी की राजनीति

 एक भारत रत्न ने बदली पश्चिम यूपी की राजनीति

अशोक  मधुप

कल  तक विपक्ष  आई­.एन­.डी.आई.ए. बनाकर  एकजुट दिखाते हुए  दिल्ली फतह करने की तैयारी में था। अब भाजपा के बिहार के बाद यूपी में किए खेल में विपक्ष के सारे समीकरण बिगड़ गए। भाजपा की इस गुगली में  विपक्ष धराशाही हो गया।बिहार का अभी नितीश कुमार  का भाजपा से गठबंधन का मामला  ठंडा  नही पड़ा था कि   भाजपा  ने   किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दे  दिया।इस एक भारत रत्न  से भाजपा पश्चिम उत्तर प्रदेश  की राजनीति का नक्शा  बदलने में कामयाब हो गई।इस भारत रत्न ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता की पूरी तरह से जड़े हीं हिलाकर रख दीं।इस भारत रत्न से जहां भाजपा को सीधे  लाभ मिलेगा, वहीं विपक्ष को भारी नुकसान होगा। पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाटों की   केंद्र में  जाट  आरक्षण की मांग को  नुकसान होगा।

पिछले काफी समय से  पश्चिम उत्तर प्रदेश का जाटों    का काफी तबका भाजपा से जुड़ गया  था। मुजफ्फर नगर के दंगे ने इसे  और एकजुट किया। राम मंदिर के नाम पर तो ये  ध्रुवीकरण और हुआ।रालोद का  परंपरागत  वोट ही   उसके पास बचा था।  इस भारत रत्न के बाद भाजपा−रालोद गठबधंन से यह वोट  भाजपा को लाभ

ही पंहुचाएगा ।

अब तक का राजनैतिक दृश्य  कह रहा है कि उत्तर प्रदेश में  बसपा और सपा का गठबंधन नही होगा।  बसपा सुप्रिमो सुश्री मायावती इसकी कई  बार घोषणा कर चुकी हैं।सपा  पश्चिम में रालोद के साथ मिलकर भाजपा के सम्मुख मैदान में उतरने की तैयारी में थीं।सीट भी तै हो गईं थीं कि कौन किस सीट पर चुनाव लड़ेगा,पर ये  राजनीति है। इसमें अगले पल क्या हो जाए  , कुछ नही कहा जा सकता। और ये हो गया। किसान नेता चौधरी चरणसिंह को भारत रत्न मिलने के बाद रालोद का भाजपा के साथ जाना  सरल हो गया। रालोद के भाजपा के साथ जाने से पश्चिम उत्तर प्रदेश के पूरे ही समीकरण   बदल गए। तै  हो गया कि पश्चिम का भाजपा – रालोद में बंटा  18 प्रतिशत जाट वोट सीधा अब रालोद −भाजपा गठबंधन को जाएगा। सपा अब यहां कोई  करिश्मा नही दिखा पाएगी।

 सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस  से गठबंधन से पहले इंकार कर दिया है। बाद में रालोद के साथ रहने के दौरान उन्होंने  यूपी में कांग्रेस को सिर्फ  11 सीट देने की घोषणा की थी, अब बदले में हालात में रालोद के भाजपा के साथ जाने के बाद वे क्या करेंगे,  यह समय ही बताएगा। अब तक कांग्रेस के सामने हेकड़ी दिखा रहे सपा सुप्रिमों अखिलेख  का चुनावी समीकरण औरं गठबंधन कांग्रेस से अपनी शर्त पर होगा  या कांग्रेस की ,यह अभी नही कहा  जाकता, किंतु यह तै है  कि  अब तक का उसका कांग्रेस  के प्रति कठोर रवैया जरूर मुलायम होगा।

पिछले विधान सभा  चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश ने सपा− रालोद गठबधंन के  जाट-मुस्लिम समीकरण के बावजूद बीजेपी ने कुल 136 विधानसभा सीटों में से 94 सीटों पर कब्जा किया था। पश्चिमी यूपी की 22 जाट बहुल सीटों पर बीजेपी  ने विजय हासिल की थी। पश्चिम यूपी में करीब 18 प्रतिशत जाट आबादी हैजो सीधे चुनाव पर असर डालती है. यानी जाट समुदाय का एकमुश्त वोट पश्चिमी यूपी में किसी भी दल की हार-जीत तय करता  है।2019 के चुनाव में जाटलैंड की सात सीटों पर बीजेपी को हार मिली थी. बीजेपी को मुजफ्फरनगरमेरठ समेत तीन सीटों पर काफी कम अंतर से जीत मिली थी। आरएलडी के भाजपा नीत गठबधंन एडीए के साथ आने से यहां बीजेपी की जीत की राह आसान हो जाएगी।

2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। किसान आंदोलन के बाद उपजे किसान आक्रोश को कम करने के लिए भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भी  रालोद प्रमुख जयंत को साधने की कोशिश की थीलेकिन वे उन्हें जोड़ने  में कामयाब नहीं हो पाई। लोकसभा चुनाव में अपने मिशन को पूरा करने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी की जरूरत भाजपा को महसूस हो रही थी। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के बाद  अब यह खेला पूरा हो    गया।

यहां लोकसभा की 27 सीटें हैं। 2019 के चुनाव में भाजपा ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की। वहींसपा- बसपा महागठबंधन को आठ सीटों पर जीत मिली थी। पश्चिमी यूपी की चार सीटों पर सपा और चार पर बसपा उम्मीदवारों को जीत मिली।हालांकिरालोद को इस चुनाव में कोई सीट नहीं मिल सकी। जाट समाज ने भी रालोद का साथ नहीं दिया। 2014 के बाद 2019 में भी आरएलडी को निराशा ही हाथ आई थी। जाट समाज के दिग्गज नेता अजित सिंह और जयंत चौधरी भी सपा- बसपा गठबंधन के साथ रहने के बाद भी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। एनडीए के साथ आने से आरएलडी की उम्मीदें बढ़ती दिख रही हैं। फायदा भाजपा को भी होना तय माना जा रहा है किंतु  ये भी निश्चित है कि इस गठबंधन से शून्य पर पंहुची रालोद को भी संजीवनी मिलेगी।पश्चिमी यूपी की 27 लोकसभा सीटों का गणित भाजपा- आरएलडी गठबंधन के बाद बदलना तय माना जा रहा है। जयंत चौधरी की स्वीकार्यता हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज में है। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के बीच अपनी राजनीति शुरू की थी। इसमें धर्म कहीं नहीं था। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद धार्मिक आधार पर मतों का विभाजन हुआ। इसने पश्चिमी यूपी की राजनीति को बदलकर रख दिया। जाट समाज का एक बडा हिस्सा भाजपा के पाले में आया। हालांकि, 2020 के किसान आंदोलन के बाद एक बार फिर किसान एकजुट होने लगे हैं। यूपी चुनाव 2022 में सपा- आरएलडी गठबंधन का पश्चिमी यूपी में प्रभाव कुछ इसी प्रकार की स्थिति को दिखाता है। ऐसे में भाजपा के साथ आरएलडी के आने के बाद विपक्षी गठबंधन रनर  की भूमिका में ही सिमट जाएगा।

एक बात और भाजपा के साथ गठबंधन से रालोद  की इज्जत भी बच जाएगी।  राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के बाद हिंदू वोट का  भाजपा के पक्ष में  बुरी तरह धुर्वीकरण  हुआ है। ऐसे में   हो सकता था कि सपा− गठबंधन में  चुनाव लड़ने से पश्चिम में रालोद का  सूपड़ा ही साफ हो जाता। पिछले लोकसभा चुनाव में भी  उसे कुछ नही मिला था।इस भारत रत्न से भाजपा  राजस्थान के उन जाटों की   भी  नाराजगी कम करने का काम  करेगी, जो  काफी समय  से वहां आरक्षण की मांग कर रहे हैं।

चौधरी चरणसिंह को भारत रत्न मिलने  के बाद केंद्र में जाटों के  आरक्षण की  मांग करने वालों के सुर भी बदले हैं।  ये कहते हैं कि चौधरी चरणसिंह को भारत रत्न मिलना बहुत बड़ा कार्य है।जाट आरक्षण  और गन्ना मूल्य तो छोटे – मोटे मामले  हैं। ये तो  चलते ही रहते हैं। चलते रहेंगे। य

पश्चिम के  भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश  टिकैत का राजनीति   से पहले से ही प्रत्यक्ष रूप से  वास्ता नही। वह तो  जब तक किसानों की बात कर रहे हैं तब तक पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट  उनके साथ हैं, राजनीति में आते  ही उनका प्रभाव खत्म हो  जाता है। वह और उनके पिता स्वर्गीय  महेंद्र सिंह टिकैत राजनीति में  उतरकर देख चुके हैं।

पूरब में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी  के प्रमुख  ओम प्रकाश  राजभर का अपना प्रभाव है।पिछले चुनाव में सपा में रहकर चुनाव लड़े थे।अब तो वह काफी समय से  भाजपा के भजन गाते घूम रहें हैं। इस तरह से अब उत्तर प्रदेश का  चुनावी परिदृश्य बिलकुल साफ हो  गया  है।मुस्लिम यादब समीकरण के बूते सत्ता के रास्ते तक पहुंचती रही सपा का यादव वोट राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा  कार्यक्रम के बाद सपा के पास कितना बचा रहेगा,  ये  चुनाव के बाद ही साफ होगा। इतना जरूर कहा  जा सकता है, कि अब यादव वोट भी  भाजपा की ओर जाने  लगा है।      

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

 

 

Monday, February 5, 2024

देश का गौरव बढ़ाती खबरें

 

 देश  का गौरव बढ़ाती खबरें

अशोक  मधुप

मीडिया में कई  बार  खबरें आती हैं, मीडिया में कई बार ऐसी खबर आती हैं, जिन्हें पढ़कर या सुनकर गौरव महसूस होता है।ऐसी ही खबर पिछले दिनों लद्दाख सीमा से आई। लद्दाख के पूर्वी इलाके के स्थानीय चरवाहों और चीनी सैनिकों का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें देखा जा सकता है कि चीनी (पीएलए) सैनिक लद्दाखी चारवाहों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास भेड़ चराने से रोकने की कोशिश कर रहे हैंलेकिन लद्दाखी उन्हें पूरी निडरता के साथ जवाब दे रहे हैं। 2020 के गलवान संघर्ष के बाद स्थानीय चरवाहों ने इस क्षेत्र में जानवरों को चराना बंद कर दिया था। वीडियो में मौके पर लगभग तीन चीनी बख्तरबंद वाहन और कई सैनिक दिखाई दे रहे हैं। वाहन अलार्म बजाते हैंजाहिर तौर पर चरवाहों को वहां से चले जाने का संकेत देते हैं, लेकिन लद्दाखी अपनी जिद पर अड़े हैं और पीएलए सैनिकों के साथ बहस करते नजर आ रहे हैं। चरवाहों का कहना है कि वे भारतीय क्षेत्र में मवेशी चरा रहे हैं। कुछ मौकों पर जब झगड़ा बढ़ जाता है तो कुछ चरवाहे पत्थर उठाते नजर आते हैं। लेकिन वीडियो में हिंसा भड़कती नहीं दिख रही है। वीडियो में दिख रहे चीनी सैनिक हथियारबंद नहीं हैं। चरवाहों के विरोध के बाद ची सैनक वापिस चले जातें हैं।  चुशूल के पार्षद कोंचोक स्टैनजिन ने स्थानीय चरवाहों द्वारा दिखाए गए प्रतिरोध की सराहना की और उनका समर्थन करने के लिए भारतीय सेना की प्रशंसा की। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ''पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चरवाहों और खानाबदोशों को पैंगोंग के उत्तरी तट के साथ पारंपरिक चरागाहों में अपने अधिकारों का दावा करने की सुविधा प्रदान करने में भारतीय सेना द्वारा किए गए सकारात्मक प्रभाव को देखना खुशी की बात है। उन्होंने  कहा, 'मैं ऐसे मजबूत नागरिक-सैन्य संबंधों और सीमा क्षेत्र की आबादी के हितों की देखभाल के लिए भारतीय सेना को धन्यवाद देता हूं।'चुशूल पार्षद ने कहा कि भारतीय बलों के समर्थन के कारण चरवाहे चीनी सैनिकों का बहादुरी से सामना कर सके। उन्होंने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारी सेनाएं पीएलए के साथ चराई संबंधी मुद्दों को सुलझाने में हमेशा नागरिकों के साथ हैंयह सब उनके समर्थन के कारण ही है कि हमारे खानाबदोश पीएलए का बहादुरी से सामना कर सके।

एक जमाना था  कि  चीन के कहने पर भारत सरकार अपने  सैनिकों को आदेश देकर  अपने कब्जे  वाले क्षेत्र मे बनाए बंकर तुड़वा देती थी। सीमा क्षेत्र में यातायात और संचार के साधन चीन के दबाव के कारण पिछली सरकारों में  नही बढ़ाए जा सके थे ।2020 में चीन से विवाद के बाद हालात बदले हैं।सीमावर्ती क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रास्ते  ही नहीं बन रहे, हवाई सेवाओं का  विस्तार हो  रहा है।चीन सेना के सामने भारतीय सेना सीना  ताने खड़ी है।आधुनिक शस्त्र चीन की सीमा  पर तैनात किये गए हैं। 

पिछले दिनों   कनाडा ने आरोप लगाया था कि  उसके नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की  भारत ने हत्या कराई। हरदीप सिंह निज्जर   भारत का  इनामी आंतकी था। यह विवाद चल ही रहा था कि अमेरिका भी   कहने  लगा कि  उसके नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू  की हत्या कराने  की कोशिश हुई है। भारत ने इन दोनों घटनाओं का खंडन किया है। अमेरिका के आरोप की जांच कराने का आदेश किया गया है । इसी बीच   पाकिस्तान भी कहने लगा कि भारतीय गुप्तचर संगठन  उसके यहां  रहने वालों की हत्या करा रहे हैं।  बतातें चलें कि पिछले कुछ समय में पाकिस्तान में रह रहे भारत के कई  प्रसिद्ध  आतंकियों की हत्याएं हुई हैं।पाकिस्तान में  रह रहे  आतंकी डरे हुए  हैं।वे पाकिस्तान से लगातार अपनी सुरक्षा बढाने की मांग कर रहे हैं।  उन्हें खतरा  लग रहा है  कि भारत उनकी हत्या करा  सकता है।   भारत कहता रहा है  कि उसका इसमें कोई   हाथ नही किंतु दुनिया में जा रहा यह मैसेज बहुत अच्छा है  कि भारत अपने  दुश्मन को माफ करने वाला  नही है।चाहे वो कहीं जाकर छिप जाए।पहले यह धारणा इस्राइल की गुप्तचर संस्था मोसाद  के बारे में थी। मौसाद और इस्राइल के बारे में विख्यात था कि वह अपने  दुश्मन को माफ  करना  नही जानता। वह कहीं भी छिप जाए  उसका मरना  तय है।  दुनिया में भारत के बारे में भी अब ऐसी  धारणा वन रही है,बन रही है।  ये  बहुत अच्छा है।देश के दुश्मन के दिल में खौफ होना  ही चाहिए।

अभी  कनाडा की सुरक्षा खुफिया एजेंसी की  एक रिपोर्ट आई है।इसमें आरोप लगाया गया कि  भारत उसके देश के होने वाले  चुनाव में हस्तक्षेप करना चाहता है। अपनी रिपोर्ट में एजेंसी ने  कहा कि कनाडा में होने वाले  चुनाव में भारत और चीन हस्तक्षेप कर सकता  है।कनाडाई मीडिया ग्लोबल न्यूज ने अपने ब्रीफिंग रिपोर्ट में कहा- यह पहली बार है जब कनाडा ने भारत पर चुनाव में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया है। चीन और रूस पर पहले से ही कनाडा की राजनीति में दखल देने के आरोप लग रहे थे।ये  आरोप  हैं।इनका लगना  अच्छा है।ऐसे आरोप लगते रहने चाहिए।दुनिया  और भारत के दुश्मनों के दिमाग में यह भय घुंस जाना चाहिए कि भारत का दुश्मन कही भी हो सुरक्षित नही है। दूसरा भय दुश्मन में यह होना चाहिए  की भारत अपने दुश्मन को माफ  नही करता।

पिछले  अक्टूबर से इस्राइल अपने  देश पर हमला करने वाले हुति आंतकवादियों के खिलाफ युद्ध छेड़े  है। इस मामले में न वह संयुक्त राष्ट्र  की मान रहा है,  न अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट  की।यही हाल अमेरिका का है। यह अपने दुश्मनों को कहीं भी माफ नही करता।अमेरिका  वर्ड  ट्रेड सैंटर पर हमला  कराने वाले ओसामा बिन लादेन को og  दस साल तक खोज करता  रहा।दस साल बाद लादेन उसके हाथ आया। और हत्या कर दी गई।अभी अमेरिकी सेना ने सीरिया और इराक़ में मिलाकर कुल 85 ठिकानों पर हमले किए गए हैं।अमेरिकी  सेंट्रल कमान ने कहा है कि इन हमलों में ईरान के इस्लामिक रेवल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के 'कुद्स फ़ोर्सऔर उससे जुड़े मिलिशिया समूहों को निशाना बनाया गया है। इराक़ ने बताया है कि इन हमलों में कुल 16 लोगों की मौत हुई है और 25 लोग घायल हुए हैं।यह हमले अमेरिका ने  अपनी सेना  पर एक द्रोण  हमले के विरोध में किए।

क्या अमेरिका और इस्राइल के पास कोई  विशेष  पावर है। ऐसा नही है। वे मजबूत हैं। वे अपने दुश्मन को माफ करने को तैयार नही हैं। वह दूसरे देशों मे रह रहे अपने दुश्मनों को  मार डालते हैं और सब देखते रह जातें हैं। दरअस्ल आप  मजबूत बनिए। ताकतवर बनिए।दुनिया आप को सलाम करेगी।  कमजोर को सब दबाना चाहते हैं।मजबूत इच्छा  शक्ति वाले देश का कोई कुछ नही बिगाड़ पाता। रूस  से S-400 ट्रायम्फ  मिजाइलरोधक प्रणाली  लेते समय भी अमेरिका ने भारत को धमकाया था। रूस – यूक्रेन युद्ध के समय भी अमेरिका  और उसके मित्र देशों ने रूस से तेल लेने पर भारत को धमकी दी थी कि उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाएं  जाएंगे, किंतु  कुछ भी  नही हुआ। दरअस्ल इन देशों को अपने हथियार बेचने है।ये धमकी दे सकते  है,कर कुछ नही सकते। आज भारत ने अरब सागर में दस समुद्री युद्धपोत तैनात किए हुए हैं। ये अरब सागर से निकलने वाले दुनिया भर  के जहाजों को  समुद्री  लुटेरों से बचा रहे है। विपदा में पड़े  जहाजों की मदद कर रहे हैं। भारत  कोरोनो काल में दुनिया को वैक्सीन और अन्य उपकरण देकर अपना  लोहा  मनवाता  रहा है।आज भारत शक्तिशाली देश बनकर उभर रहा है।  उसकी ताकत और शक्ति का दुनिया लोहा मान रही है। ये ही होना चाहिए।ये भी होना चाहिए कि दुनिया जाने की भारत  अपने दुश्मन को माफ करने वाले और छोड़ने वाला नही हैं। एक बात और जब देश मजबूत होता है।देश की सेना मजबूत होती है।सुरक्षा  एजेंसियां  मजबूत होती हैं तो देश  का आम आदमी मजबूत होता है। सीमा पर रहने  वाले  मजबूत होते  हैं।  

अशोक  मधुप

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)  


Thursday, February 1, 2024

नीतीश ने पाला बदलकर विपक्षी एकता की जड़ें हिला दीं


अशोक मधुप

आखिर बिहार में  नीतीश  और उनके जदयू  ने विपक्ष के गठबंधन आई­.एन­.डी.आई.ए. से अपना  नाता  तोड लिया। नीतीश कुमार विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया अलायंस के सूत्रधार रहे हैं। उन्होंने ही भाजपा के विरूद्ध विपक्ष को एकजुट करने की शुरूआत की।एक दूसरे के धूर विरोधी दलों को एक साथ  बैठाया, ऐसे में उनके पलटी मार देने से इस गठबंधन को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। नीतीश  को  बिहार का पलटू राम कहा  जाता  है, पलटू राम इस बार पलटीमार कर विपक्ष की एकता की जड़े ही हिंला  गए।उनके भाजपा  के साथ जाने से जनता में साफ  संदेश गया कि ये एका सिद्धांत का नही स्वार्थ  का  था। नीतीश  का प्रयास विपक्ष का  प्रधानमंत्री पद का उम्मीवार बनने का था।उसमें असफल होने और अपने प्रदेश में हुए घटनाक्रम के कारण वे अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए भाजपा के साथ  चले गए।  

नीतीश कुमार ने खुद विपक्षी दलों को एकजुट करने में पिछले कई माह काफ़ी मेहनत की थी। उन्होंने शुरुआत में ऐसे दलों को कांग्रेस के साथ बिठाने में कामयाबी हासिल की जो राहुल गांधी और उनकी पार्टी को लेकर सवाल उठाते रहे थे।नीतीश कुमार पश्चिम बंगाल में सरकार चला रहीं ममता बनर्जीदिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को साथ लाने में कामयाब रहे। पटना में गठबंधन की पहली बैठक कराने को भी उनकी कामयाबी माना गया। दूसरी बैठक के बाद से ही नीतीश कुमार के असहज होनी की चर्चा शुरू हो गई। तब कांग्रेस फ़्रंट फ़ुट पर आती दिखी ।  रिपोर्टों में दावा किया गया कि गठबंधन संयोजक न बनाए जाने से वो नाखुश हैं।विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया रखने को लेकर भी मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि नीतीश कुमार ने शिकायत की थी कि उनसे सलाह नहीं ली गई।  उनका मानना था  कि इंडिया में एनडीए आता है,  इसलिए ये नाम न रखा जाए, कितुं उनकी नही सुनी गई। हालांकि नीतीश कुमार ने अपनी नाराजगी की  रिपोर्टों को खारिज कर दिया था।

रविवार को बीजेपी के अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए के साथ जाने का फैसला करने के बाद खुद नीतीश कुमार ने अपनी असहजता को साफ़ बयां किया कि कुछ ठीक नहीं चल रहा था।  दरअस्ल यह चाहते थे कि उन्हें गठबंधन का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए, किंतु

19 दिसंबर को हुई इंडिया गठबंधन की बैठक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सुझाए जाने पर उन्होंने कोई  प्रतिक्रिया तो नही दी  किंतु उनका गठबंधन  से मन उचटने लगा। उन्हें लगने लगा कि कांग्रेस विपक्षी गठबंधन पर हावी होना  चाहती है। राहुल की भारत न्याय   यात्रा ने  इस  विद्रोह में  आग में घी का काम किया। कायदे ये यात्रा उन प्रदेशों में निकलनी चाहिए थी,  जहां कांग्रेस की सरकार हैं।  बिपक्षी दलों के   सरकार वाले प्रदेश में स्थानीय  दल की मर्जी से  उसे  साथ लेकर ये यात्रा की जानी चाहिए थी।किंतु ऐसा  नही हुआ। बंगाल में यात्रा पह़ुंचने पर ममता  बनर्जी  को लगा कि उन्हें कमजोर  करने के लिए उनके प्रदेश से यात्रा निकाली  जा रही है। जरा−जरासी बात पर नाराज होने वाली ममता  इस यात्रा के बंगाल में आते ही उछल गईं। उन्हें लगा कि राह़ुल और कांग्रेस  इसके माध्यम से उन्हें कमजोर करना  चाहती है। सो उन्होंने बंगाल में अकेले अपने बूते  पर पूरे प्रदेश में  चुनाव लडने की घोषणा कर दी।यात्रा बिहार में भी आनी थी।          

 

 बिहार में  नीतीश  को अपने   सहयोगी रहे लालू यादव के रवैये से  लगा कि वह उनकी पार्टी में तोड़फोड़  करना  चाहते हैं। दरअस्ल  नीतीश  कुमार के इस पलट के पीछे  उनकी पार्टी में चल रही राजनीति  थी।  नीतीश  कुमार को पिछले महीने इसकी भनक तब लगी जब पार्टी के कुछ विधायकों ने पार्टी लाइन से हटकर मीटिंग की थी। इसके साथ ही नीशीथ ने तेजी दिखाते हुए ललन सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया था तथा खुद पार्टी के अधयक्ष बन गए थे।तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि उनकी पार्टी में सब कुछ सही नही चल रहा है और उनके और  लालू यादव के रास्ते अलग होने  वालें हैं। लालू यादव  नीतीश  पर दबाव दिए थे कि वे  तेजस्वी को मुख्य मंत्री बनाए।नीतीश कुमार ने रविवार को बिहार के महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का हाथ थाम लिया। दोनों ने मिलकर सरकार बना  ली। शपथ भी हो गई। ये भी तै  हो गया कि जदयू और भाजपा  मिलकर बिहार में लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।

बीजेपी  का प्रयास था कि वह विपक्ष की एकता  तोड़ सके, सो वह उसमें कामयाब हो गई।उसने बड़ा  सोच समझकर ये निर्णय लिया।  भाजपा को  नीतीश  के साथ लेने से लोकसभा चुनाव में  बिहार में फायदा ही होगा नुकसान नही।दूसरे विपक्ष में टूट करके वह   इस टूट का फायदा उठाने में लग गई  है।  उसने प्रचार शुरू कर दिया कि ये स्वार्थ का गठबंधन है। बिहार में सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि इंडी अलायंस’ सैद्धांतिक रूप से असफल हो चुका है।नड्डा ने पत्रकारों से कहा, “हम पहले भी कह चुके हैं कि इंडिया अलायंस अवित्रग़ैरवैज्ञानिक है और यह ज्य़ादा दिन तक नहीं चलेगा. और भारत जोड़ो यात्रा जो बेनतीजा समाप्त हुई और अभी की इनकी अन्याय यात्रा और भारत तोड़ो यात्रा और इंडी अलांयस हैयह सैद्धांतिक तौर पर विफल हो चुका है.ये माना जाता है कि उनका संकेत विपक्षी गठबंधन में उनकी भूमिका को लेकर असमंजस की ओर था।

 नीतीश  के निर्णय  से पहले  ही टीएमटी भी बंगाल में अकेला  चलो की राह पर   निकल  गई। पंजाब में आप कह ही चुकी है कि वह वहां अकेले  चुनाव लड़ेगी। उत्तर प्रदेश में अखिलेश कांग्रेस को 11 सीट से ज्यादा देने  को तैयार नही।  

 नीतीश कुमार के रुख को एकजुट होने में लगे सभी विपक्षी दल आश्चर्य में हैं। कांग्रेस अब भी असमंजस में दिख रही है। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा, ‘जिस इंडिया गठबंधन के लिए 23 जून को नीतीश कुमार जी ने विपक्ष की 18 पार्टी को निमंत्रण दिया थाजिसकी पटना में बैठक हुईफिर जुलाई में बंगलुरु में बैठक हुईउसके बाद अगस्त में मुंबई में बैठक हुई और तीनों बैठकों में नीतीश जी का बड़ा योगदान रहा. तो हम मान कर चल रहे थे कि वो बीजेपी के खिलाफ लड़ेंगे।

दरअस्ल गैर सिद्धांत की एकजुटता  में ऐसा ही होता है। यह एकता सिद्धांत को लेकर नही थी। स्वार्थ की एकता थी। मतलब का  संबंध था। सब इसलिए एक हुए थे ,कि लोक सभा चुनाव में भाजपा को हराना है,  इसलिए ये टूटना ही था।टूटने लगा। इससे  पहले भी   जब− जब ऐसी एकता हुई है तब – तब स्वार्थ के कारण  यह टूटी है। इंदिरा गांधी को हराने के लिए हुआ एका  हो या राजीव गांधी को सत्ता से बाहर रखने के लिए किया गया  गठबंधन ।सब की परिणाम सदा टूटना  और बंटना  रही है।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 −−−−