Saturday, September 23, 2023

आर्य विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती)

24 सिंतबर 1905 के लिए आर्य विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) चारों वेदों का अंग्रेजी अनुवाद करने वाले पहले भारतीय देश के जाने माने रसायनविद और आर्य विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के बिजनौर के आर्यसमाज के एक कक्ष में 24 सिंतबर 1905 हुआ था। उन्होंने जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रसायन-विभाग के अध्यक्ष के रूप में बिताया। सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्य संन्यासी हुए। आर्य विद्वान के रूप में अपनी पहचान बनाई। वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया। डॉ. सत्यप्रकाश के पिता पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय बिजनौर राजकीय इंटर कॉलेज में अंग्रेजी के शिक्षक थे। वे आर्य समाजी थे। इसीलिए बिजनौर आर्य समाज में बने एक कक्ष में रहते थे। आज यह कक्ष महिला आर्य समाज का भाग है। इसी में 24 सितंबर 1905 को डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती का जन्म हुआ।पिता पंडित गंगा प्रसाद उपाध्याय के तबादले के बाद इनका परिवार इलाहाबाद चला गया। विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती) की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई। 1930 में ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रसायन विभाग के प्रवक्ता नियुक्त हुए। आपने रसायन शास्त्र विभाग से फीजिको कैमिकल स्टेडीज आफँ इनओरगेनिक जेलीज (Physico chemical studies of inorganic jellies )विषय पर डी.एससी. की उपाधि 1932ई.में प्राप्त की। । 1962 में विभागाध्यक्ष बने। आपके निर्देशन में 22 विद्यार्थियों ने डी.फिल. की उपाधि प्राप्त की। आपके 150 से ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित हुए। पांच साल बाद 1967 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने 17 देशों की यात्राएं की। डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती का निधन 18 जनवरी 1995 को इनके प्रिय शिष्य पंडित दीनानाथ शास्त्री के आवास पर अमेठी में हुआ। डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती ने सेवानिवृत्त होने पर संन्यास ले लिया और आर्य समाज इलाहाबाद के एक कक्ष में रहने लगे। अपने पिता पंडित गंगा प्रसाद की जन्मशती पर उन्होंने बिजनौर आर्य समाज में आयोजित कार्यक्रम में स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती आए थे। छह सिंतबर 1981 को इन्होंने बिजनौर में भवन पर लगे पत्थर का अनावरण किया था। स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती के शिष्य पंडित दीनानाथ ने अनुसार स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती ने अपने अध्यापन काल में 22 से ज्यादा छात्रों को डीफिल कराई। 150 से अधिक उनके शोध प्रकाशित हुए। अपने सेवाकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे। विश्वविद्यालयों में विज्ञान की शिक्षा हेतु ऊँचे स्तर के ग्रन्थ अंग्रेजी में अधिकतर ब्रिटिश विज्ञान विशारदों द्वारा लिखित ही उपलब्ध होते थे। डॉ॰ सत्यप्रकाश, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय में अध्यापक होने के कारण भारतीय विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को भली-भाँति अनुभव करते थे। अतः उन्होंने इसे दृष्टि में रखते हुए अंग्रेजी में विज्ञान से संबद्ध कई उपयोगी ग्रन्थ लिखे जो इस दिशा में उत्कृष्ट उदाहरण उपस्थित करते हैं। भारत ने प्राचीन काल में विज्ञान की विविध विधाओं में अन्वेषण कर विस्मयकारी प्रगति प्राप्त की थी। डॉ॰ सत्यप्रकाश ने समर्पित भाव से अथक परिश्रम कर तत्कालीन साहित्य को नवजीवन दे पूर्णरूपेण प्रमाणित कर दिया कि यह देश विज्ञान के क्षेत्र में अन्य देशों की अपेक्षा सर्वाधिक अग्रणी एवं सर्वोपरि है। विज्ञान संबन्धी अनेक पुस्तकें स्वामी जी ने लिखी हैं जो विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में तथा शोधार्थियों के पाथेय बने हुए हैं।विज्ञान नामक प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका ने दिसम्बर १९९७ का अंक 'डॉ सत्यप्रकाश विशेषांक' के रूप में निकाला था।फाउंडर ऑफ साइंसेस इन एंसिएंट इंडिया, कवांइस ऑफ एंसिएंट इंडिया, एडवांस केमिस्ट्री ऑफ रेयर एलीमेंट उनकी लिखी प्रमुख पुस्तक हैं। आर्य संन्यासी सन्यासी बनने पर उन्होंने आर्य समाज संबंधित साहित्य लिखा। अब तक वेदों को अंग्रेजी अनुवाद अंग्रेजों द्वारा किया गया था। डॉ. सत्यप्रकाश सरस्वती ने अंग्रेजी में 26 खंडों में चारों वेदों का अनुवाद किया। इसके अलावा शतपथ ब्राह्मण की भूमिका, उपनिषदों की व्याख्या, योगभाष्य आदि साहित्य का सृजन किया। जितने विविध विषयों पर स्वामी सत्यप्रकाश जी का लेखन है शायद ही विश्व के किसी व्यक्ति ने इतना लिखा हो। वेद, शुल्बसूत्र, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्, रसायन विज्ञान,भौतिक विज्ञान, अग्निहोत्र, अध्यात्म, धर्म, दर्शन, योग, आर्यसमाज, स्वामी दयानन्द, नवजागरण आदि विविध विषयों पर सैकड़ों ग्रन्थ और लेख स्वामी सत्यप्रकाश जी द्वारा लिखे गये। आप 1942 ई. में स्वतन्त्रता आन्दोलन में जेल भी गये। शतपथ ब्राह्मण पर आपके द्वारा 700 पृष्ठों में भूमिका लिखी गई जो ग्रन्थ को समग्रता से समझने में बहुत सहायक है। आपने 17 से अधिक देशों की यात्रायें की। अपने विषय में स्वामी जी ने लिखा है, मैं प्रात: सो कर उठता हूं। मैंने कार खरीदी, बेच दी, अब पैदल आने जाने का प्रयोग कर रहा हूं। मैंने डा. राम कृष्णन् (प्रसिद्ध वैज्ञानिक) के साथ कार्य किया। जेल में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के साथ रहा। मैंने हिन्दी में कम अंग्रेजी में अधिक लिखा है। मैंने विज्ञान के अध्ययन, अध्यापन और पुस्तकों के सम्पादन के साथ पुस्तकों पर पते चिपका कर उन्हें डाक से भेजने आदि का कार्य भी किया है। सन् 1983 में तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में पुरस्कार हेतु जब आयोजन में उपस्थित स्वामीजी का मंच से नाम पुकारा गया तो स्वामी जी श्रोताओं के मध्य अपने स्थान पर ही बैठे रहे। उन्हें मंच पर जाना था परन्तु वह नहीं गये। हिन्दी की प्रख्यात कवित्री डा. महादेवी वर्मा जी ने दूर बैठे स्वामी जी को देखा तो वह स्थिति समझ गईं। वह स्ंवयं व अपने अन्य सहयोगियों के साथ मंच से उतर कर स्वामी जी के पास पहुंचीं और उन्हें वहीं सम्मानित किया। स्वामीजी का मंच पर न आना संन्यास आश्रम की उच्च परम्परा का निर्वाह था। सन्यास आश्रम धर्म के पालन की एक घटना उनके अपने परिवार से जुड़ी है। प्रो. धर्मवीर अजमेर ने लिखा है कि स्वामीजी महाराज कहीं बाहर से दिल्ली पधारे।उनके पुत्र दिल्ली में कार्यरत थे। उन्हें कोई सूचना देनी थी। स्वामीजी महाराज ने अपने पुत्र के कार्यालय में दूरभाष किया, विदित हुआ कि पुत्र घर गये हैं। पुत्र के निवास पर दूरभाष किया तो पता चला कि वह बीमार है, उन्हें हार्ट अटैक हुआ था। थोड़ी देर बाद पता चला कि पुत्र दिवंगत हो गये। स्वामीजी ने किसी से चर्चा नहीं की, कोई दु:ख व्यक्त नहीं किया और न घर जाकर अन्त्येष्टि में शामिल ही हुए। दयानन्द संस्थान, दिल्ली के अध्यक्ष महात्मा वेदभिक्षु से उनका बड़ा स्नेह था। उनसे दूरभाष पर सम्पर्क किया। कहने लगे आज आपसे बात करने की इच्छा हो रही है, मेरे कमरे में आ जाओ। दिन भर उनके साथ इधर −उधर की चर्चा करते रहे। पुत्र की अन्त्येष्टि के दो तीन दिन बाद पुत्र वधु स्वामीजी महाराज के पास आई तो स्वामी जी कुछ देर बात करने के बाद उनसे बोले कि ईश्वर की इच्छा, जो होना था हो गया, अब तुम अपना काम देखो, मैं अपना काम देखता हूं। मृत्यु से पूर्व स्वामीजी के अमेठी निवासी शिष्य श्री दीनानाथ सिंह एवं उनके परिवार ने रूग्णावस्था में उनकी जो सेवा-सुश्रुषा की वह सराहनीय एवं अनुकरणीय थी। श्री सत्यदेव सैनी, लखनऊ व उनका परिवार स्वामीजी का भक्त रहा है। मृत्यु से कुछ ही दिन पूर्व लखनऊ में चिकित्सा कराकर अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर स्वामीजी कुछ देर सैनीजी के परिवार में रूके व सभी सदस्यों से मिल कर अमेठी गये थे। 18 जनवरी सन् 1995 को 90 वर्षीय स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती अनन्त यात्रा पर निकल गए। अशोक मधुप {लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं}

Thursday, September 21, 2023

नही रहे जाने माने चित्रकार सुशील वत्स

नही रहे जाने माने चित्रकार सुशील वत्स अशोक मधुप देश के जाने−माने चित्रकार सुशील वत्स का 26 जुलाई 2023 को मंडी धनौरा के आनन्द आश्रम में निधन हो गया।वे 93 वर्ष के थे। वत्स का जन्म 19 सितंबर को 1930 चांदपुर के मोहल्ला साहुआन में हुआ। सुशील वत्स के पिता मंडी रघुवीर सिंह शर्मा धनौरा के जूनियर हाईस्कूल में मुख्य अध्यापक थे। उनके पिता दीवारों पर सीमेंट से देवी- देवताओं की मूर्तियां बनाते थे। इन मँर्ति को देखकर बालक सुशील में चित्रकला के प्रति शौक पैदा हुआ। वे चित्र बनाने लगे। इस शौक में वे इतने रमें कि उसी को जीवन का लक्ष्य बना लिया। कुछ कर गुजरने के जज्बे ने सुशील वत्स के हाथ में कूंची दे दी और विश्व प्रसिद्ध बना दिया। सुशील वत्स ने कला की बारीकियों को समझा और मोड्रन आर्ट में अपना कैरियर बनाना तै किया। उन्होंने पूरी दुनिया में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई।उनकी पेंटिंग पांच लाख रूपये मूल्य तक में बिकीं। एक साक्षात्कार में सुशील वत्स बताते हैं कि जब उन्होंने कला में भविष्य बनाना तै किया और अपना निर्णय अपने पिता जी को बताया।उनके पिताजी ने समझाया कि कलाकार बनोगे तो भूखे मरोगे, किंतु उन्होंने उनकी बात नही मानी। और दिल्ली जा बसे। दिल्ली को अपना केंद्र बनाया।शुरू में 140 रूपये में नौकरी की। 20 रूपये महीना के एक टिन शेड़ में सर छुपाने की व्यवस्था हुई। कहीं जीने की सीढ़ियों पर बैठकर तो कही पेड़ की छावं में बैठकर वे अपने जुनून को परवान चढ़ाने में लग गए। वे रामजस काँलेज में कार्डिनेटर रहे।उनकी एक पेंटिग को 1956 में इंडियन अकेडमी आँफ फाइन आर्ट अमृसर ने गोल्ड मैडिल दिया।इस पुरस्कार के बाद उनकी कला को बेइंतहा सम्मान मिला। उन्होंने मुंबई, दिल्ली और केलीफोर्निया के अलावा पूरी दुनिया में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई।उन्हें कई नेशनल अवार्ड मिले।यूनेस्को फलोशिप मिली। सुशील वत्स की पेंटिंग पांच लाख रुपये तक में बिकी है। सुशील वत्स मंडी धनौरा के सन्त स्वर्गीय हीरानंद के अनुयायी है। दिल्ली में रहते हुए भी वे अधिकतर समय स्वामी हीरानंद के ही धनौरा स्थित आनंद आश्रम में बिताते रहे। मृत्यु पर्यन्त वे लंबी अवधि तक इसी आश्रम में रहे।उनके तीन पुत्री और एक पुत्र हैं।उनके शौक का उनके परिवार के किसी सदस्य ने अपना कैरियर नही बनाया। श्री सुशील वत्स की विशेषता थी कि वह कभी खाली नही बैठते थे।विजिंटिग कार्ड हो या अखबार वे उसपर कुछ न कुछ बनाते ही रहते थे।कुछ समय पूर्व कृष्णा काँलेज में चित्रकला प्रतियोगिता के उदघाटन के लिए वे आए हुए थे।काँलेज की दीवार चित्र बनाने के लिए।यहीं उन्होंने दो पेंटिंग बनाईं थीं। जीवन की यादें श्री वत्स बताते थे कि एक बार वह घर से भागकर बरेली पहुंच गए। वहां वे फौज में भर्ती हो गए। परिवार में पता चला तो हंगामा मच गया। पिता जी की लिखत –पढ़त क करने पर तीन माह बाद उन्हें सेना की सेवा से मुक्ति मिली। श्री सुशील वत्स की पुत्री सारिका पटेल कहती हैं कि उनके पिता ने आनन्द आश्रम को 70 साल दिए।किंतु आश्रम वालों ने उनकी बीमारी में उनके कमरे का ताला तोड़कर सारा सामन गायब कर दिया।आज उनके पास वत्स साहब की समृति के नाम पर कुछ भी नही है। अशोक मधुप

Thursday, September 14, 2023

हिंदी पर दोहे

 हिंदी अपनी है सखे,

अपना हिंदुस्तान,

इसपर भी अच्छा लगे ,
बजता जनमन गान।
- हिंदी का उत्थान जो,
है करने का ध्यान।
रोजगार से जोड़िए,
हिंदी को श्रीमान।
-कहीं कन्नड़ की बात तो,
कहीं सिंधी की बात।
हिंदी तो बढ़ती सदा,
सबका लेकर साथ।
-उर्दू ,कन्नड़,कोंकणी,
ओ पंजाबी दौर।
मिलकर के चल दें यदि,
हो हिंदी सिरमौर।
- किसको हिंदी दोष दे,
किस्से करे गुहार।
द्विभाषी जब हो गए,
हिंदी के अखबार।
-हिंदी,सिंधी,कोंकणी,
सब बहने श्रीमान।
एक देश, परिवार है,
सबका रखिये ध्यान।
-एक दिवस से कभी ना,
हो हिंदी उत्थान।
रोज मने हिंदी दिवस,
तब ही हो कल्याण ।
-न हिंदी हिंदी रही,
ना उर्दू श्रीमान।
दोनों मिलकर रच रहीं,
अपना हिंदुस्तान।
-देवनागरी लिपि हो,
हो हिंदवी में बात।
मिलकर सब भाषा चलें,
दें दुश्मन को मात।
- त्रिभाषा को पढ़ाइए,
बेसिक में श्रीमान ।
हिंदी इंग्लिश साथ दो ,
लोकल भाषा ज्ञान।
-हिंदी तो इस देश की ,
सदा रही है शान।
राजनीति पहुंचा रही,
बस इसको नुकसान ।
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Abhai Mital

Wednesday, September 13, 2023

हिंदी दिवस पर विदेशों में बसे भारतीय परिवार घरों में तो हिंदी में ही बोलते हैं


आज हिंदी दिवस है। हिंदी भाषी   अपने –अपने स्तर से हिंदी को बढ़ाने  और बचाए रखने में लगे हैं। विदेशों में  काम करने वाले भारतीय परिवार अपने घर में हिंदी को जिंदा रखे  हैं।  भले ही उनकी

 कामकाज और घर बाहर की  बोलचाल की भाषा अंग्रेजी हो किंतु घर में तो हिंदी में ही बातचीत होती है।

तीन बार छह− छह माह के लिए  मैं  अमेरिका  में बड़े बेटे अंशुल के पास रहा । अंशुल  यहां  पिछले  लगभग 15 साल से रह रहा है।यहां  अमेरिका में पैदा हुई अंशु और उसकी पत्नी शिल्पी के पास तीन बेटियां हैं। ऐसे ही लाखों भारतीय परिवार अमेरिका बसे  हैं।   यहां  बसे  इन  भारतीय परिवार की  कामकाज की  भाषा  अंग्रेजी है । घर से बाहर की   भाषा अंग्रेजी है। बाजार की भाषा  अंग्रेजी  है । बच्चों के स्कूल की भाषा अंग्रेजी है इसके बावजूद इनके घर की भाषा  हिंदी है।ये खुद घर में हिंदी बोलते  हैं,बच्चों को हिंदी बुलवाते  भी हैं। उन्हें  हिंदी सिखाते हैं।इनमें  से अधिकतर बच्चे  हिंदी पढ़   नही पाते। कुछ परिवार जरूर बच्चों को घर पर हिंदी पढ़ा रहे हैं।

अमेरिका  में रहने वाले भारतीयों की दोस्ती  प्रायःअपने  ही भारतीयों से हैं।यहां  बसे  अंग्रेज  और  अफ्रिकी लोगों से  इनके  आफिशियल या  व्यवयायिक 

रिश्ते हैं। जन्मदिन की पार्टी या शादी की वर्षगांठ के अवसर पर  ये आपस के सर्किल के भारतीय परिवार ही  मिलते  हैं । मिलते हैं तो  आपस में  हिंदी में ही बात करते हैं।पंजाबी ,बंगाली या  मराठी मूल के परिवार तो घर में पंजाबीबंगाली या मराठी में आपस में  बात करते  हैं किंतु ये भारतीय  परिवार जब आपस में मिलते हैं तो हिंदी में ही ज्यादा बोलते  और बात करते हैं।अमेरिका ही नही,दुनिया में जहां− जहां भारतीय  हैं,उनके परिवार की घर की बोलचाल की भाषा  हिंदी ही है।

त्यौहार पर भारतीय परिधान शान से पहले जाते  हैं।  युवक कुर्ता  −  पायजामा  और युवतियां साड़ी पहनती हैं।यहां मंदिर हैं। भारतीय  हिंदू  परिवार मंदिर जाते हैं। मंदिर ये लोग ज्यादातर भारतीय परिधान कुर्ता −पायजामा महिलांए  साड़ी  या भारतीय सूट पहनकर जाना   पसंद करती हैं।मंदिर की बोलचाल की भाषा भी  प्रायः हिंदी  ही है। मंदिर के पुजारी विद्वान हैं।  उनका    संस्कृत का तो उच्चारण  तो बढ़िया है  ही ,हिंदी भी बढ़िया बोलते हैं।तबियत खराब होने  पर पिछली बार अंशुल ने  मुझे अमेरिका में डाक्टर का दिखाया। अंशुल ने मेरी परेशानी  अंग्रेजी में डाक्टर को बता रहा था।  इसके बावजूद डाक्टर से  अपनी कंपनी के हिंदी  अंग्रेजी  ट्रांसलेटर को स्पीकर आन कर  फोन पर लिया। ट्ररंसलेटर उनकी बात सुन मुझे  हिंदी में बताता। मेरे उत्तर को अंग्रेजी में अनुवाद  कर डाक्टर को । पूरी तरह से मेरी जानकारी से संतुष्ठ  होने पर ही डाक्टर ने मुझे दवा दी।

दुबई  तो  लगता ही हिंदीभाषियों का देश है।वहां  चाहे भारतीय होबंगलादेशी हो या पाकिस्तानी  सब हिंदी बोलते  मिलेंगे।  उनकी बोलचाल से नहीलगता  कि वे भारतीय नही हैं।  उनके बताने से  पता चलता है कि वे  पाकिस्तानी हैं या बंगला देशी।भारत में दक्षिण में  हिंदी भाषियों के साथ समस्या  आ  सकती है। यहां के लोग  जानकर हिंदी नही बोलते , किंतु  दुबई में ऐसा नही है।यहीं हालत नेपाल में भी है।

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Monday, September 11, 2023

हिंदुस्तानी गजल से मशहूर हुए दुष्यंत कुमार

 आज एक सिंतबर    हिंदी साहित्यकार −गजलकार दुष्यंत कुमार का जन्म दिन  है।  बिजनौर के राजपुर नवादा गांव में एक सिंतबर 1933 में जन्मे दुष्यंत कुमार का मात्र 43 वर्ष की आयु में 30 दिसंबर 1975 को भोपाल में  उनका निधन हुआ।

हिंदी साहित्यकार −गजलकार दुष्यंत कुमार   हिंदी गजल के लिए जाने जाते हैं। वे हिंदी गजल के लिए विख्यात है किंतु उन्हें यह ख्याति हिंदी गजलों के लिए नहीं ,

हिंदुस्तानी गजलों के लिए मिली। संसद से  सड़क तब मशहूर हुए उनके शेर हिंदुस्तानी हिंदी में हैं।  हिंदुस्तानी हिंदी में  उन्होंने सभी प्रचलित शब्दों को इस्तमाल किया। शब्दों को प्रचलित रूप में इस्तमाल किया।

वे अपनी पुस्तक “साए में धूप“ की भूमिका में खुद कहते हैं “ ग़ज़लों को भूमिका की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए; लेकिन,एक कैफ़ियत इनकी भाषा के बारे में ज़रूरी है। कुछ उर्दू—दाँ दोस्तों ने कुछ उर्दू शब्दों के प्रयोग पर एतराज़ किया है .उनका कहना है कि शब्द ‘शहर’ नहीं ‘शह्र’ होता है, ’वज़न’ नहीं ‘वज़्न’ होता है।
—कि मैं उर्दू नहीं जानता, लेकिन इन शब्दों का प्रयोग यहाँ अज्ञानतावश नहीं, जानबूझकर किया गया है।

यह कोई मुश्किल काम नहीं था कि ’शहर’ की जगह ‘नगर’ लिखकर इस दोष से मुक्ति पा लूँ,किंतु मैंने उर्दू शब्दों को उस रूप में इस्तेमाल किया है,जिस रूप में वे हिन्दी में

घुल−मिल गये हैं। उर्दू का ‘शह्र’ हिन्दी में ‘शहर’ लिखा और बोला जाता है ।ठीक उसी तरह जैसे हिन्दी का ‘ब्राह्मण’ उर्दू में ‘बिरहमन’ होगया है और ‘ॠतु’ ‘रुत’ हो गई है।
—कि उर्दू और हिन्दी अपने—अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के बीच आती हैं तो उनमें फ़र्क़ कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। मेरी नीयत और कोशिश यही रही है कि इन दोनों भाषाओं को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब ला सकूँ। इसलिए ये ग़ज़लें उस भाषा में लिखी गई हैं जिसे मैं बोलता हूँ।
—कि ग़ज़ल की विधा बहुत पुरानी,किंतु विधा है,जिसमें बड़े—बड़े उर्दू महारथियों ने काव्य—रचना की है।

हिन्दी में भी महाकवि निराला से लेकर आज के गीतकारों और नये कवियों तक अनेक कवियों ने इस विधा को आज़माया है।”
ग़ज़ल पर्शियन और अरबी  से उर्दू में आयी। ग़ज़ल का मतलब हैं औरतों  से अथवा औरतों के बारे में बातचीत करना। यह भी कहा जा सकता हैं कि ग़ज़ल का सर्वसाधारण अर्थ हैं माशूक से बातचीत का माध्यम। उर्दू के  साहित्यकार  स्वर्गीय रघुपति सहाय ‘फिराक’ गोरखपुरी  ने ग़ज़ल की  भावपूर्ण परिभाषा लिखी हैं।  कहते हैं कि, ‘जब कोई शिकारीजंगल में कुत्तों के साथ हिरन का

पीछा करता हैं और हिरन भागते −भागते किसी ऐसी झाड़ी में फंस जाता हैं जहां से वह निकल नहीं सकता,

उस समय उसके कंठ से एक दर्द भरी आवाज़ निकलती हैं। उसी करूण स्वर को ग़ज़ल कहते हैं। इसीलिये विवशता का दिव्यतम रूप में प्रगट होना, स्वर का करूणतम हो जाना ही ग़ज़ल का आदर्श हैं’।

दुष्यंत  की गजलों की खूबी है साधारण बोलचाल के शब्दों का प्रयोग,  हिंदी− उर्दू के घुले मिले शब्दों का प्रयोग । चुटीले व्यंग  उनकी गजल की खूबी है।वे व्यवस्था और समाज पर चोट करते हैं। ये ही उन्हें सीधे  आम आदमी के दिल तक ले जाती है। उनकी

ये शैली उन्हें अन्य कवियों से अलग और लोकप्रिय करती है।
आम आदमी और व्यवस्था पर चोट करने वाले उनके शेर, व्यवस्था पर चोट करते उनके शेर  सड़कों से  संसद गूंजतें है।1

शायद दुष्यंत कुमार अकेले ऐसे साहित्यकार होंगे , जिसके शेर सबसे ज्यादा बार संसद में पढ़े गए हों। सभाओं में नेताओं ने उनके शेर सुनाकर व्यवस्था पर चोट की हो।सरकार को जगाने और जनचेतना का कार्य किया हो।उन्होंने हिंदी गजल भी लिखी, पर वह इतनी प्रसिद्धि  नही पा सकी, जितनी हिंदुस्तानी हिंदी में लिखी  गजल लोकप्रिस हुईं।

उनके गुनगुनाए  जाने वाले उनके कुछ  हिंदुस्तानी हिंदी के शेर हैं−

−वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, 
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है। 

−रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया, 
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारों।−कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता ,
एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारों।

− यहां तो  सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसतें है,खुदा  जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा,
−गूँगे निकल पड़े हैं ज़बाँ की तलाश में ,
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए।−पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं,
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं  ।आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है ,
पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं।
इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो,
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं ।

−सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी ,
इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है ।

−ये   जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,मै सज्दे में नही था, आपको धोखा  हुआ होगा।

−तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए,

छोटी—छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं।

−हम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत

तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठा कर फेंक दीं।

गजलहो गई है पीर पर्वत  सी पिंघलनी चाहिए,अब हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

भारत की बड़ी कामयाबी है'जी20' शिखर सम्मलेन की सफलता

 भारत की बड़ी कामयाबी है'जी20' शिखर सम्मलेन  की सफलता

 शंकाओं  और आशकांओं  के बीच 'जी20' शिखर सम्मलेन  सफलता के साथ  संपन्न  हो गया। जी20 में 'नई दिल्ली डिक्लेरेशन' का स्वीकार होना, यह कूटनीतिक मोर्चे पर भारत की बड़ी जीत है।  जी 20 में सभी महाशक्तियां शामिल हैं। उनकी मौजूदगी में भारत द्वारा  सहमति का रास्ता निकालना भारत की  बड़ी कामयाबी है। अफ्रीकन यूनियन को जी20 में शामिल कराना भी भारत की बडी सफलता  है  ।अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और जापान ने भी 'एयू' को स्थायी सदस्य बनाने के मामले में बाधा खड़ी नहीं की।भारत की छवि खराब करने का प्रयास कर रहे आंतकवादी दिल्ली की सुदृढ  सुरक्षा देख कुछ नही कर पाए। मेट्रो  स्टेशन पर रात के अंधेरे में खालिस्तान के समर्थन में चोरी छिपे कुछ नारे ही लिखे  जा सके।  मुंबई  और दिल्ली  की संसद में घुंसकर हमला  करने  वाले  आतंकी अब ऐसी घटना  करने  की सोच भी  नही पा रहे।  शनिवार को 'जी20' शिखर सम्मलेन के पहले दिन जब 'नई दिल्ली डिक्लेरेशन' के स्वीकार होने की घोषणा हुई, तो सम्मेलन को कवर करने आए  सारे पत्रकार आश्चर्य चकित रह गए। एक− दो ने तो  यहां तक कह दिया  कि अब दूसरे दिन  के कायर्क्रम कवर के लिए रूकना बेकार है।  किसी को यह उम्मीद नही थी कि घोषणापत्र सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया जाएगा। जी20 घोषणापत्र   की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसके सभी 83 पैराग्राफ चीन और रूस के साथ 100 प्रतिशत सर्वसम्मति से पारित किए गए थे। यह पहली दफा था कि घोषणा में कोई नोट या अध्यक्ष का सारांश शामिल नहीं था।विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने पत्रकारों का बताया कि 'गत वर्ष  इंडोनेशिया में हुए सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन ने पीएम मोदी से आग्रह किया था कि उसे भी समूह का सदस्य बनाया जाए। इस पर पीएम मोदी ने उन्हें गारंटी दी थी कि वे अफ़्रीकन यूनियन को जी20 का सदस्य बनवाएंगे। अब पीएम मोदी ने वह गारंटी पूरी कर दी है। जानकारों का कहना है, 'एयू' को जी20 की स्थायी सदस्यता दिलाना आसान नहीं था। इस बाबत रूस और चीन का रूख कुछ अलग था। चीन को 'जी20' का विस्तार पसंद नहीं था। वजह, इससे ग्लोबल साउथ में उसका कद प्रभावित होता है। करीब एक दशक से चीन का फोकस ऐसे देशों पर रहा है जो अमेरिका, ब्रिटेन या भारत के ज्यादा करीब नहीं हैं। ऐसे देशों को चीन उन समूहों का सदस्य बनवाने की कोशिश कर रहा है, जो उसके प्रभाव में हैं। भारत ने यहीं पर कूटनीतिक दांव चला और एयू (अफ़्रीकन यूनियन )को जी20 का सदस्य बनवा दिया। चीन का प्रयास था कि वह अफ्रीकी संघ के देशों में भारी निवेश के माध्यम से अपने आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति करे।अब इन देशों के जी20 का सदस्य बनने पर  अब चीन उन देशों का शोषण करने की साजिश में सफल नहीं हो सकेगा। एयू के 55 देशों के प्राकृतिक संसाधन, चीन के प्रभाव में आने से बच जाएंगे। आंशका  थी कि रूस – यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर   सर्व सम्मत निर्णय  नही हो सकेगा। अमेरिका  और यूरोपियन देश  चाहेंगे,कि यूक्रेन   हमले के लिए रूस को जिम्मेदार माना  जाए। इसके लिए उसकी  निंदा की जाएं।रूस  और चीन का रूख  इसके विपरीत होगा। भारत भी नही चाहता  कि उसकी भूमि से उसके परंपरागत मित्र  के विरूद्ध कोई  निदां या उन्य कोई प्रस्ताव पारित न हो। भारत ने घोषणापत्र पर सर्व समर्थन बनाने के लिए पहल से ही काम शुरू  कर दिया था।   उसके राजनयिक इस पर सहमति बनाने में  लगे थे। साझा घोषणा पत्र पर सभी देशों की सहमति इसलिए खास है, क्योंकि नवंबर 2022 में इंडोनेशिया समिट में जारी घोषणा पत्र में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई थी। तब रूस और चीन ने अपने आप को युद्ध के बारे में की गई टिप्पणियों से अलग कर लिया था। तब घोषणा पत्र के साथ ही इन देशों की लिखित असहमति शामिल की गई थी।डिक्लेरेशन पास होने के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था- सभी देशों ने नई दिल्ली घोषणा पत्र मंजूर किया। उन्होंने माना कि G20 राजनीतिक मुद्दों को डिस्कस करने का प्लेटफॉर्म नहीं है। लिहाजा अर्थव्यवस्था से जुड़े अहम मुद्दों को डिस्कस किया गया। 'नई दिल्ली डिक्लेरेशन' की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसके सभी 83 पैराग्राफ चीन और रूस के साथ 100 प्रतिशत सर्वसम्मति से पारित किए गए थे। यह पहली दफा था कि घोषणा में कोई नोट या अध्यक्ष का सारांश शामिल नहीं था।घोषणापत्र के नौवें पहरे में लिखा था, हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि जी20, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच है। यह समूह भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों को हल करने का मंच नहीं है।हालाँकि हम स्वीकार करते हैं कि इन मुद्दों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण परिणाम हो सकता है। भारत ने यह बात कह कर चीन और रूस, दोनों को संदेश दे दिया। हालांकि चीन का कहीं नाम नहीं लिया। 'नई दिल्ली डिक्लेरेशन' के 13वें पहरे में लिखा है, हम सभी राज्यों से क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को, अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक, बनाए रखने की अपील करते हैं। मानवीय कानून, शांति और स्थिरता की रक्षा करने वाली बहुपक्षीय प्रणाली सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को बनाए रखने का आह्वान करते हैं। विभिन्न देशों के मध्य संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान और संकटों के हल के हल के लिए प्रयास करने के साथ ही कूटनीति और संवाद महत्वपूर्ण हैं। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था पर युद्ध के प्रतिकूल प्रभाव को संबोधित करने के अपने प्रयास में एकजुट होंगे। यूक्रेन में व्यापक एवं न्यायसंगत और टिकाऊ शांति का समर्थन करने वाली सभी प्रासंगिक और रचनात्मक पहलों का स्वागत करेंगे। बशर्ते, ये सभी पहल, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सभी उद्देश्यों और सिद्धांतों को कायम रखें। एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य की भावना से राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण, मैत्रीपूर्ण और अच्छे पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा देना होगा। भारत ने ऐसा कर 'रूस और यूक्रेन' के लिए एक संदेश और जी20 का स्टैंड क्लीयर करदिया।  

भारत की जी20 अध्यक्षता की विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने जमकर तारीफ की है। बांगा ने कहा कि भारत ने जी20 की अध्यक्षता में दुनिया के लिए एक नया आयाम तय किया है। उन्होंने इस बात की भी सराहना की कि भारत ने जी20 घोषणापत्र पर सभी देशों की आम सहमति आसानी से बना ली।एक न्यूज एजेंसी  से बात करते हुए बंगा ने इस बात पर जोर दिया कि चुनौतियां हमेशा मौजूद रहेंगी, लेकिन भारत ने आम सहमति बनाकर दुनिया को रास्ता दिखाया है। बंगा ने कहा कि हर देश अपना फायदा देखता है, लेकिन मैंने इस सम्मेलन में जो मूड देखा, उससे मैं आशावादी हूं। विश्व बैंक अध्यक्ष ने कहा कि यहां हर देश अपने राष्ट्रीय हितों का ध्यान तो दे रहा था, लेकिन दूसरे के विचारों को भी सुन रहा था। जी20 शिखर सम्मेलन में बारे में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने शनिवार को 'जी20' की बैठक को सफल करार दिया है। दोनों राष्ट्रों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) को लेकर सार्थक नीति बनी है। गत मई में पीएम मोदी, ऑस्ट्रेलिया गए थे। तब भी दोनों देशों ने 'निवेश' की संभावनाएं तलाशी थी। 

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप शिपिंग और रेलवे कनेक्टिविटी कॉरिडोर की घोषणा को एक बड़ी बात करार देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, अगले दशक में, भागीदार देश निम्न-मध्यम आय वाले देशों में बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करेंगे। बाइडेन ने कहा, मैं प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं। एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य, यही इस जी20 शिखर सम्मेलन का फोकस है। पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (पीजीआईआई) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी व संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़े कनेक्टिविटी एवं बुनियादी ढांचे के विकास में सहयोग पर एक ऐतिहासिक पहल है। 

सउदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान ने इकानॉमिक कॉरिडोर की पहल के लिए इसके लिए काम करने वालों को धन्यवाद दिया।यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष, प्रेसीडेंट उर्सुला वॉन डेर लेन ने कहा, अर्थव्यवस्थाओं के इन्फ्रास्ट्रक्चर में इनवेस्टमेंट मिडिल इनकम वाले देशों की जरूरत है। इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकॉनामिक कॉरिडोर, ऐतिहासिक है। यह इंडिया, अरेबियन गल्फ और यूरोप के बीच सीधा संपर्क बनाने वाला है। इसके चलते भारत और यूरोप के बीच व्यापार में 40 प्रतिशत की तेजी आएगी। यह महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच ग्रीन एंड डिजिटल ब्रिज होगा। ट्रांस अफ्रीकन कॉरिडोर, यह घोषणा भी बड़े स्तर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश की पहल है। इसका लाभ सभी सदस्यों को होगा। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, ये एक बहुत महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। सभी सदस्य देश, लंबी अवधि के लिए निवेश करने के प्रतिबद्ध हैं। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने भी इसे एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट करार दिया है। इसमें जर्मनी 3500 मिलियन यूरो का वर्ल्ड बैंक के साथ अतिरिक्त निवेश करेगा। 

पीएम मोदी ने समुद्र में केबल के डिजाइन, निर्माण, बिछाने और रखरखाव में क्वाड की सामूहिक विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए 'केबल संचार-संपर्क और सहनीयता के लिए साझेदारी पर बल दिया था। राजनेताओं ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में विकास के बारे में महत्वपूर्ण बातचीत की। एक मुक्त, खुले और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपने दृष्टिकोण के तहत, इन नेताओं ने संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्व को दोहराया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- हमें चुनौतीपूर्ण समय में अध्यक्षता मिली। G20 का साझा घोषणा पत्र 37 पेज का है। इसमें 83 पैराग्राफ हैं। यहां मुख्य प्रस्तावों यह हैं−सभी देश सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल पर काम करेंगे। भारत की पहल पर वन फ्यूचर अलायंस बनाया जाएगा।प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी देशों को यूएन चार्टर के नियमों के मुताबिक काम करना चाहिए।बायो फ्यूल अलायंस बनाया जाएगा। इसके फाउंडिंग मेंबर भारत, अमेरिका और ब्राजील होंगे।एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य पर जोर दिया जाएगा।मल्टीलेट्रल डेवलपमेंट बैंकिंग को मजबूती दी जाएगी।ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं पर फोकस किया जाएगा।क्रिप्टोकरेंसी पर ग्लोबल पॉलिसी बनाई जाएगी।कर्ज को लेकर बेहतर व्यवस्था बनाने पर भारत ने कॉमन फ्रेमवर्क बनवाने की बात पर जोर दिया है।ग्रीन और लो कार्बन एनर्जी टेक्नोलॉजी पर काम किया जाएगा।सभी देशों ने आतंकवाद के हर रूप की आलोचना की है। चांद के  दक्षिण ध्रुव पर   कामयाब  लैंडिग और भारत का अंतरिक्ष यान के  कामयाबी के साथ  प्रेक्षण के बाद जी20  शिखर सम्मेलन की सफलता भारत की बड़ी कामयाबी है।कभी  सांप और सपेरों का देश कहलाने वाला भारत आज दुनिया के चंद प्रमुख देशों की लाइन में आकर खड़ा  हो गया है। पहले नारा दिया गया था इंडियन  एंड डॉग्स  आर नाट अलाउट।  आज सब बदल गया।आज भारत दुनिया  का नेतृत्व करने की हालत में है। इस भारत की बडी कामयाबी कहा जाएगा कि भारत द्वारा कही बात अब दुनिया में  गंभीरता के साथ सुनी जाती है।

अशोक मधुप

Sunday, September 3, 2023

बिजनौर के इतिहास से गायब हैं क्रांति की मशाल जलाने वाले

 बिजनौर के इतिहास से गायब हैं क्रांति  की मशाल जलाने वाले

अशोक मधुप

बिजनौर जनपद में 1857 की क्राति में  प्रथम आहूति देने वाले जेल के राम स्वरूप जमादार को कोई जानता  भी नहीं।पूरे देश में शुरू हुई 1857 की क्रांति दस मई को मेरठ से  शुरू हुई।नौ मई 1857 को चर्बी लगी कारतूस का इस्तेमाल करने से मना करने वाले 85 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर मेरठ की विक्टोरिया पार्क स्थित जेल में बंद कर दिया था। सैनिकों पर हुई इस कार्रवाई और अपमान ने क्रांति को जन्म दे दिया। 10 मई को शाम होते-होते अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा। आम जनता और पुलिस ने जहां सदर बाजार में मोर्चा संभाला। उधर उसी समय 11वीं व 20वीं पैदल सेना के भारतीय सिपाही परेड ग्राउंड (अब रेस कोर्स) में इकट्ठे हुए और वहीं से अंग्रेजी सिपाहियों और अफसरों पर हमला बोल दिया। पहली गोली 20वीं पैदल सेना के सिपाही ने 11वीं पैदल सेना के सीओ कर्नल जार्ज फिनिश को रेस कोर्स के मुख्य द्वार पर मारी थी। इस बीच थर्ड कैवेलरी के जवान अश्वों पर सवार होकर अपने उन 85 सिपाहियों को बंदी मुक्त कराने विक्टोरिया पार्क स्थित जेल पहुंच गए, जिन्हें कोर्ट मार्शल के तहत सजा दी गई थी। इस तरह से रात होते-होते क्रांति पूरे शहर में फैल गई और सभी परतापुर के पास गांव रिठानी में एकजुट हुए और दिल्ली की ओर कूच कर गए। अंग्रेजों के खिलाफ मेरठ से शुरू हुए इस विद्रोह की आग पूरे देश में फैल गई। सर सैयद अपनी पुस्तक सरकशे जिला बिजनौर में बिजनौर में  1857 के पूरे घटनाक्रम का तारीख अनुसार वर्णन करते हैं।वह 1857 के  विद्रोह के समय बिजनौर में सदर अमीन थे।  उनकी यह पुस्तक उनकी डायरी है। इसमें उन्होंने तरीख अनुसार घटनांए दर्ज की   हैं।

वे सरकशे जिला बिजनौर में कहते हैं कि मेरठ की दस तारीख के विद्रोह की सूचना 12 मई में बिजनौर पंहुची।पर कोई विशेष घटना नही हुई। 16 मई को बिजनौर थाने के अंतर्गत आने वाले झाल और उलेढ़ा  गांव के बीच देवीदास बजाज को लूट लिया गया। मेरठ की क्रांति की सूचना मिलते ही अधिकारियों हर हालत से निपटने के  लिए तैयारी शुरू कर दी थीं1 20 मई को सेपर और माइनर कंपनी के 300 जवान विद्रोह कर नजीबाबाद पंहुचे। वहां वे नवाब महमूद से मिले। वे  चाहते थे कि नवाब उन्हें संरक्षण दं किंतु नवाब ने ने उन्हें बिजनौर जाकर उत्पात करनेके  के लिए कहा। किंतु ये नगीना  पंहुच गए और वहां लूटमार की।तहसील में रखा खजाना  लूट लिया।

धामपुर के रईस हरसुख लाल  लोहिया की बेटी की बारात आई हुई थी।उसके लिए बढ़िया खाना और मिठाई बन रही थीं।हरसुख लाल लोहिया जी नगीना से मुरादाबाद जा रहे इन विद्रोही जवानों का अपने घर ले आए।  सबको पेटभर कर खाना और मिठाई खिलाईं। ये देख धामपुर के लोग भी एकत्र हो गए।  जिससे जो बन पड़ा, देकर इन जवानों की मदद की।   

इधर बिजनौर के जेल के जमादार रामस्वरूप ने जेल का दरवाजा खोल दिया।लगभग एक बजे के आसपास अधिकारियों को जेल से फायर की आवाज सुनाई दी।अधिकारी जवानों के साथ  जेल की और भागे। इन्हें डर था कि जेल से निकले बदमाश स्थानीय शरारती लोगों को लेकर लूटमार न शुरू कर दें। किंतु ये बदमाश  जेल से निकल कर जंगल की और भाग  लिए।अधिकारियों ने इनका पीछा किया।  गोली लगने से कई  कैदी मारे गए और घायल हुए।इस समय नदियां उफान पर भी। कुछ भागते कैदी लहपी नदी के बहाव में  बह गए।

लहपी नदी मंडावली और रावली क्षेत्र में  बहने वाली गंगा की एक सहयोगी नदी थी।अब यह लुप्त हो गई। कुछ पुराने लोग ही  इसके बारे में    

जानते हैं। काफी कैदी पकड़ लिए गए।पकड़े जाने वालों को जेल में लाकर बंद कर दिया गया।

सर सैयद अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि नवाब महमूद ने विद्रोही सेपर  और माइनर कंपनी के जवानों से बिजनौर जाकर हंगामा करने का कहा था, किंतु वे  बिजनौर न आकर नगीना धामपुर होते मुरादाबाद  चले गए1पहले लगा कि शायद रामस्वरूप ने स्थानीय  बदमाशों के हमले के डर से जेल का फाटक खेल दिया।किंतु हो सकता है कि इसे इन विद्रोही जवानों के बिजनौर आने की सूचना मिल गई हो,यह रामस्वरूप  भी इसी सैनिक कंपनी का जमादार था।इसलिए उसने ऐसा किया हो। सर सैयद  लिखते हैं कि नवाब महमूद को 6−7 जून की रात में जिले का चार्ज देकर अंग्रेज अधिकारी अपने परिवार के साथ  रूडकी चले गए।जिले का चार्ज मिलने के बाद से नवाब के दरबार में रामस्वरूप का सम्मान बहुत ही बढ़ गया।उनकी अदालत में उसकी रोज आवाजाही होने लगी।नवाब महमूद को जिले की बागडोर मिलने के बाद रामस्वरूप हवलदार ने नवाब के लिए सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी।

रामस्वरूप ने अपने द्वारा भर्ती किये गए सिपाही बिजनौर में बांके राय के घर के आसपास तैनात कर दिए गए।बाद में रामस्वरूप ने इन्हें बहुत प्रताड़ित किया।उनके भाई बिहारी लाल को परेशान किया तथा कुछ रूपया भी वसूला।

सर सैयद की डायरी में रामस्वरूप  जमादार का एक दो जगह और जिक्र है।इसके बाद से वह गायब है।

इतिहास के जानकारों और खोज करने वाले आजादी के इन नायकों का पता करने का कोई प्रयास नही किया।किसी ने यह जानना गंवारा नहीं किया कि रामस्वरूप कौन था। कहां का रहने वाला था।  इसके परिवार में  कौन −कौन था।राम स्वरूप का क्या हुआ।इतना महत्वपूर्ण व्यक्ति इतिहास की अंधेरी गलियों में  गायब हो गया। 

जिले में अंग्रेज जब दुबारा  आया तो  उनसे जमकर जुल्म किया।नवाब महमूद के साथी के संदेह में जाने कितनों को सरेराह गोलियों से भून दिया गया।फांसी भी  दीं गईं।कितने लोग मरे , इस बारे में सर सैयद चुप हैं।रामस्वरूप का क्या हुआ,वह नही बताते।

जानी मानी लेखिका कुरतुल एन हैदर अपनी किताब कारे जहां दराज है ,में कहती हैं कि आजादी की जंग के असफल होने के बाद 27 हजार मुसलमानों को फांसी हुई। शेष को काले पानी की सजा हुई। जिला बिजनौर के बागियों की एक लाख तिरेसठ हजार एकड़ जमीन सरकार के हक में जब्त हुई।जब्त जमीन का बड़ा हिस्सा वफादर चौधरियों को अता किया गया।शेरकोट और हल्दौर के चौधरी साहेबान को राजा की उपाधि दी गई।ताजपुर  के चौधरी साहब का अमीर खां  पिंडारी के विरूद्ध सरकार की मदद करने में राय बहादुर की उपाधि से नवाजा  गया।सैयदों की साढ़े 15 हजार एकड़  जमीन सरकारी हक में जब्त हुई।दिल्ली की आजादी की लड़ाई में शामिल हुए मीर अहमद अली की जान बक्श दी गई किंतु उनकी पुशतैनी जमीन भी इस जब्त खुदा जमीन के साथ जब्त कर ली गई।  

वे कहती हैं कि 1857 की क्रांति के बाद जब बागियों की मिलकियतें जब्त हुईं तो चांदपुर के रहने वाले मीर सादिक अली और मीर रूस्तम अली रईसों का इलाका बगावत के जुर्म में सरकार ने जब्त कर लिया। यह इलाका सरकार ने सैयद अहमद (सरकशे बिजनौर के लेखक) को देना  चाहा किंतु उन्होंने लेने से मनाकर दिया।   1857  की आजादी की लड़ाई के बारे में जो कुछ सर सैयद से छूटा,  उसे कुरतुल एन हैदर ने अपनी पुस्तक में दर्ज किया। किंतु फिर भी सब कुछ अधूरा  सा है। जो कुछ है, वह न के बराबर।

अशोक मधुप