आज बड़ी अजीब हुई। सबेरे मोबाइल पर एक साहब का संदेशा आया कि बिजनौर गंगा बेराज से आगे नहर की पटरी पर एक दस फुट लंबा सापं पडा़ है, अनाकोंडा भी हो सकता है। संदेश था, सो भागना पडा़।रास्ते में संदेशा आया कि अमुक जगह पर जैन मुनि सफेद कार में हैं, उनके पास उस सांप के फोटो है। जैन मुनि से बात की । उनके मोबाइल में सापं के फोटो देखे। यह फोटो देते समय चाहतें थे कि सापं के साथ उनका भी फोटो पत्र में छपे। मैं बात कर मौके की ओर रवाना हो गया ! देखता क्यां हूं कि विपरीत दिशा में जाने वाले मुनि जी की गाडी हमारे पीछे है। फिर वह आगे हो गईं तथा सांप वाली जगह जाकर रूक गई।सांप एक साइड में झाडियो में पडा़ था। हमने उसे सीधा कर फोटो खींचने को सड़क पर डाला तो मुनि जी उसके पास बैठ गए एंव कहने लगे कि सांप के साथ उनका फोटो भी खींचों। फोटों खींचे जाने के दौरान वह सांप पर इस प्रकार हाथ फैरने लगे जैसे उसे प्यार कर रहे हों।
सांप अनाकोंडा नही था किंतु लगभग नौ फुट लंबा अजगर था। किसी जीव के खाने से उसका पेट बुरी तरह फूला था। उसके मुंह पर चोट के निशान नहीं थे किंतु मुंह पर खून जरूर लगा था। हो सकता है कि खून उस प्राणी का रहा हो जो अजगर के पेट में था! लगता था कि ज्यादा खा लेने के करण सांप ठंड से बचने को कहीं छुप नही सका तथा ठंड से उसकी मौत हो गई। हमारा काम हो चुका था, अत:हम बाइक उठाकर वापस लोट लिए। किंतु मुझे सारे रास्ते मुनि जी की छपास की भूख परेशान करते रही । नेता तो इस बीमारी के शिकार होतें हैं किंतु वस्त्र तक त्याग चुके मुनि जी इसरोग के शिकार होंगे ,इस प्रकार की उम्मीद न थी।
पोष्ट के साथ सांप के पास बैठे मुनि का चि़त्र यहां दे रहा हूं किंतु उनका चेहरा पोस्ट से हटा दिया है ताकि मुनि जी के प्रियजन कुछ एेसा वैसा न महसूस करें।
7 comments:
सोचना पड़ रहा है.
आदरणीय मधुप जी
आपका आलेख अच्छा लगा , बिल्कुल आपके समाचार
जैसा ,
कल ही हम एक प्रतिष्ठित अखबार के स्थानीय संपादक जी से वार्तलाप कर रहे थे,
वार्ता के दौरान उन्होंने बताया कि साहित्य लेखन की बनिस्बत पत्रकारिता में लेखक अपेक्षाकृत ज्यादा सहजता महसूस करता है, क्यों की वो सच लिखता है और सच लिखने में ज्यादा सोच विचार की आवश्यकता नहीं पड़ती,
आशय ये की आपने जो भी लिखा है वह एक दम सत्य है, की छपास की भूख भी जाती-पाँति या ऊंच-नीच नहीं देखती.
एक सच्चाई को उजागर करने के लिए धन्यवाद
आपका
डॉ विजय तिवारी 'किसलय'
chaae muni ho ya neta is chapaas rog se ki nahi bach paaya hai...
aapka bahut bahut aabhaar aapne hamaare blog par aake hamaara utsaah wardhan kiya...
MAIN AISE JAIN MUNIYON SE MILA HUN JO APNI FOTO TAK NAHI KHINCHANE DETE, ISKE BILKUL VIPRIT. NARAYAN NARAYAN
अनाकोंडा तो भारत में होता नहीं -चित्र से यह अजगर ही है -यह समय सापो की शीत निष्क्रियता का है -ठंडक से बिचारा मर गया ! अफसोस !
छ्पास रोग का संक्रमण बहुत तेजी से हुआ है और इससे कोई भी बचा नही है।इसके खिलाफ़ भी पल्स-पोलियो की तरह अभियान चलाना पडेगा लगता है।
साँप देखने में बहुत सुंदर है, सचमुच मर गया था या शायद खाना अधिक खाने से सुस्ता रहा था?
आप यूं ही बेचारे मुनि जी के बारे में गलत सोच रहे हैं. उन्हें अपनी प्रसिद्धी से अपने लिए कुछ नहीं चाहिये, वह तो केवल यह चाहते हैं कि मायाजाल में फँसे व्यक्ति उनके पास जा कर शाँती और मनन की राह पायें. :-)
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