Sunday, July 25, 2021

आस्तिक ऋषि का मठ

आस्तिक ऋषि के मठ पर मेरी स्टोरी

नाग पंचमी पर विशेष

जिले में है नाग प्रजाति का विनाश रोकने वाले आस्तिक ऋषि का मठ

मान्यता है कि इन अस्तिक ऋषि ने राजा जन्मेजय के नाग यज्ञ को रूकवाया था

बहुत ही कम लोग जानते हैं कि बिजनौर में आस‌्त‌िक ऋषि का मठ है।

फोटो

अशोक मधुप

बिजनौर। बहुत कम लोग जानते हैं कि महाभारत काल में राजा जन्मेजय का नाग यज्ञ रूकवाने वाले आस्तिक ऋषि का मठ बिजनौर जनपद में है। यह मठ बिजनौर से लगभग चार पांच किलोमीटर दूर नीलावाला गांव के जंगल में स्थ‌ित है। पुराने लोग इस मठ के बारे में जानते हैं। नई पीढ़ी को इस बार में कोई रूचि नहीं है।

बिजनौर से पांच किलोमीटर दूर गांव आलमपुर उर्फ नीलावाला है। इसके जंगल में आस्तिक मठ है। इतिहास के जानकारों का कहना है कि वर्तमान स्थल पुराना तो नहीं है। हो सकता है कि गंगा के बहाव क्षेत्र में होने के कारण अवशेष खत्म हो गए हों। 25 साल से आस्तिक मठ के पुजारी मुन्ना भगत यहां आने वालों को बताते थे कि जन्मेजय के यज्ञ को रुकवाने वाले आस्तिक ऋषि की यहां समाधि है।

मुन्ना भगत की मृत्य़ के बाद तीन चार साल से अब इस मठ की देखरेख गंभीर भगत कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यहां आसपास काफी सांप होते हैं। मठ पर मौजूद गांव के बलजीत सिंह बताते हैं कि मठ के पास के पीपल के नीचे काफी बड़े तीन सांप दिखाई देते रहते हैं। गंभीर भगत कहते हैं कि मठ की बहुत मान्यता है। रविवार और सोमवार को काफी श्रद‍्धालु यहां आते आकर पूजा करते हैं।

हैं।

नीलावाला के निवासी शिक्षक हंरवत सिंह का कहना है कि आस्तिक मठ की बहुत मान्यता है। किंतु सरकारी स्तर पर इसके लिए कोई कार्य नहीं हुआ। जनपद महाभारत सर्किट में आता है किंतु महाभारत कालीन इस स्थल की हालत पहले जैसी ही है।

कथा

महा भारत की कथाओं में आता है कि राजा परीक्षित एक बार शिकार के लिए निकले थे और जल की खोज में वे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। उन्होंने तपस्या में लीन ऋषि से पानी मांगा। तपस्यारत ऋषि के ध्यान न देने पर उन्होंने पास में पड़ा मृत सांप बाण की नोक से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। तपस्या में लीन ऋषि को तो इस घटना का पता नहीं चला, किंतु उनके पुत्र श्रृंगि ऋषि ने घटना का पता लगते ही परीक्षित को श्राप दिया कि सातवें दिन उन्हें तक्षक सर्प डसेगा।तक्षक के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई। इससे गुस्साए उनके बेटे राजा जन्मेजय ने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प प्रजाति के विनाश का निर्णय लिया।उन्होंने सर्प यज्ञ कराया। मंत्रों के प्रभाव से सर्प यज्ञ कुंड में आकर भस्म होने लगे।

जाति का विनाश होते देख सारे नाग भाग कर अपने नाग ऋषि आस्तिक के पास आए। उन्होंने उनसे नाग प्रजाति का विनाश रोकने का प्रयास करने का आह्वान किया। उनके अनुरोध पर आस्तिक ऋष‌ि यज्ञ स्थल पर गए।अपनी बातों से इन्होंने राजा जन्मेजय का प्रभावित कर लिया। जन्मेजय को समझाया कि एक व्यक्ति की गलती का दंड पूरी प्रजाति को देना ठीक नहीं। नाग प्रजाति का नाश होने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा ।उनके समझाने पर यह यज्ञ नाग यज्ञ रोक दिया गया। यज्ञ रुकने के दिन पंचमी थी। तभी से ये पंचमी नागपंचमी के रूप में मनाई जाती है।

अशोक मधुप



 

Monday, July 5, 2021

पंडित भवानी प्रसाद




पंडित भवानी प्रसाद

 

आर्य विद्वान पंडित भवानी प्रसाद   जन्म 1878  में हल्दौर में हुआ। वे गुरूकुल कांगड़ी के स्नातक रहे। वहां से विद्यालकार तक शिक्षा ग्रहण की। आपके परिवारजन भी इनके बारे में कुछ नहीं बता पाते। इनके चार पुत्र और दो पुत्री हुईं। एक पुत्री सुशीला का विवाह  प्रसिद्ध इतिहासकार और गुरूकुल विशवविद्यालय के कुलपति डा सत्यकेतु विद्यालंकार से हुआ।

इनके पुत्र डा. क्षेमेंद्र गुप्ता रिषीकेश ने बताया कि मूल रूप से उनका परिवार मीरापुर का रहने वाला था। वे वैश्य हैं।हल्दौर रियासत के राजा लोग उनके पूर्वजों से कर्ज लेते रहते थे।क्योंकि गंगा हल्दौर −मीरापुर के बीच में पड़ती थी। उन्हें परेशानी होती थी। सो पूर्वजों को अपने महल के पास उन्होंने आठ बीघे जमीन दे दी। जिन्हें जमीन दी , वे दो भाई थे।बड़े  भाई ने अपने और दूसरे भाई के लिए आमने –सामने  बिल्कुल एक जैसे दो महल बनवाए।दोंनों भाई उसमें रहने लगे। उनकी परिवार की जमींदारी जिले में कई जगह थी। नजीबाबाद के पास जहानाबाद खोबड़ा में भी जमींदारी थी। पिता भवानी प्रसाद जहानाबाद खोबड़ा में रहकर जमींदारी देखते थे। वहीं1948  में उनका निधन हुआ।

भवानी प्रसाद जी हल्दौर आने वाले पूर्वजों की चौथी पीढी से थे। वे पांच भाई और दो बहने हैं।

पंडित भवानी प्रसाद ने बिजनौर मंडल आर्य समाज का इतिहास लिखा। ये एक तिहासिक दस्तावेज है।लेखक के पास इसकी मूल प्रति है। लेखक ने इस पुस्तक की चार फोटो स्टेट कराकर  डीएम निवास बिजनौर,आर्य विद्वान जयनारायण अरूण, इस्माइलपुर निवासी बिजनौर गीतानगरी में रहने वाले  कुशलपाल सिंह और चिंगारी के संपादक सूर्यमणि रघुवंशी  जी को सौंप दी , ताकि शोधकर्ताओं को सरलता से उपलब्ध रहे। 

पंडित भवानी प्रसाद ने आर्य पर्व पद्यति , आर्य पर्वावलि,संस्कृत चारूचरितावलि,कांगड़ी− गुरूकुलीय आर्यभाषा −पाठावलि  नामक पुस्तक लिखीं।इनकी संग्रहित पुस्तक है−कांगडी़−गुरूकुल−विश्वविद्यालय अंतर्गत−महाविद्यालयपाठ्य  बिंदुचतुष्टयात्मक  साहित्य सुधा संगृह।  



Friday, July 2, 2021

अब्दुर्रहमान बिजनौरी

 क्या आप जानते हैं?

दुनिया जिसे  #अब्दुर्रहमान #बिजनौरी के नाम से जानती है। वे #स्योहारा के थे। 


मेरी किताब "मेरे देश की धरती" से 

स्योहारा के रत्न 4 

अब्दुर्रहमान बिजनौरी 

के बारे में जाने--


वो अब्दुर्रहमान  बिजनौरी है, हमारा है, सिबारा है।

उर्दू अदब के आसमान पर चमकता जो सितारा है।

प्रोफेसर ज्ञान चंद जैन का ये शेर उर्दू अदब में अब्दुर्रहमान बिजनौरी के योगदान का मुखर प्रमाण है। ग़ालिब के दीवान की समालोचना के कारण अदब की दुनिया में ऊंचा मक़ान बनाने वाले डा. अब्दुर्रहमान बिजनौरी भी स्योहारा (तब सिबारा) के थे। उन्होंने पूरी दुनिया को ग़ालिब से परिचित ही नहीं कराया वरन उन्होंने ग़ालिब की शायरी को अपनी समालोचना से उस मर्तबे तक पहुंचाया जहां आज उनकी गिनती महान शायरों में होती है। यह कहना गलत न होगा कि बिजनौरी की समालोचना से पहले ग़ालिब जैसा अजीम शायर शोहरत की बुलंदियों से दूर एक आम शायर की तरह ही थे। उनके द्वारा पांच भागों में लिखा गया "मोहसिन ए कलाम ए ग़ालिब" उर्दू समालोचना साहित्य की बहुमूल्य समावेश है, जो अपने साथ नए दृष्टिकोण और नई विचारधारा लाया है। बिजनौरी ने ग़ालिब के दामन पर लगे उन तमाम एतराज को हटा दिया। जो दूसरे आलोचकों ने बेबुनियाद उनके सर पर मंढ रखे थे। बिजनौरी की समालोचना ही के कारण ग़ालिब पश्चिमी शायरों के मुकाबले ऊंचे दिखाई देने लगे। उन्होंने अपनी किताब 'मुहासिने कलाम ग़ालिब' के पहले पेज के दूसरे पैरा में लिखा कि ' हिंदुस्तान की अवतरित किताबें दो हैं, एक मुकद्दस वेद और दूसरी दीवाने ग़ालिब। बिजनौरी का ये कथन विस्तृत अध्ययन और ग़ालिब की बुलन्दियों में चार चांद लगाने वाला है। 

डा. अब्दुर्रहमान बिजनौरी के पत्रों और उनके घटनाक्रम पर दो और किताबें भी प्रकाशित हुईं थीं। 'बाकयाते बिजनौरी' और 'यादगार बिजनौरी'। इन किताबों में इनकी कुछ नज्में भी हैं। उनके द्वारा भेजे गए पत्रों में अपने छोटों और बड़ों के परम्परागत शिष्टाचार का अद्भुत नमूना है। उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि को सर्व प्रथम उर्दू में प्रकाशित किया था। 

बिजनौरी की गिनती अपने समय के अरबी, फारसी, जर्मनी, अंग्रेजी, उर्दू के वरिष्ठ साहित्यकारों और शायरों में होती थी। उन्होंने जर्मन भाषा में क़ुरआने मजीद का तर्जुमा भी किया। उनके वालिद का नाम नुरुलइस्लाम था। जिन्हें खान बहादुर की पदवी मिली थी। वे स्योहारा के मुहल्ला काज़ियान के सम्मानित परिवार से सम्बंधित थे। बिजनौरी की वालेदा नाम आमना खातून और भाई का नाम हबीबुर्रहमान था। वे सन 1882 में पैदा हुए थे। प्रारम्भिक शिक्षा सिबारा में मुंसी रहीमुद्दीन द्वारा दी गयी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवसिर्टी से डिग्री हासिल की। उसके बाद विलायत चले गए।  वहां बैरिस्टरी का इम्तहान पास किया। बाद में जर्मन की बर्लिन यूनिवर्सिटी से अरबी फारसी में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। मजहबी जुनून चढ़ा तो अपने जर्मन में रहते हुए जर्मनी भाषा में 'शआयर ए मौहम्मदी' किताब लिखी। सैर सपाटे के लिये बाल्कान के युद्ध के समय में क़ुस्तुन्तुनिया गए। वतन वापस आने के बाद दो वर्ष तक मुरादाबाद में बैरिस्टरी की। उसके बाद रियासत भोपाल में नबाब हमीदुल्ला खां के यहां शिक्षा प्रोत्साहन की जिम्मेदारी का वहन किया।  बिजनौरी पर तुर्की के प्रवास के दौरान जासूसी का इल्जाम लगा और लगभग छह माह वहां की जेल में भी रहे। बिजनौरी हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में गांधी जी के विचारों से सहमत थे। आप की मृत्यु मात्र मात्र 37 वर्ष की उम्र में 1919 में भोपाल में हो गयी। बिजनौरी की मृत्यु से उर्दू साहित्य ने महान साहित्यकार खो दिया। 

चर्चित उर्दू साहित्यकार डा. तक़ी आबिदी का कहते हैं कि बिजनौरी की समालेाचना का कोई जवाब नहीं। गुलशने दीवाने गालिब का पहला दरवाजा खोलने वाला पहला शख्स बिजनौरी ही हैं। साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष तथा उर्दू के प्रख्यात समालोचक प्रो. गोपीचंद नारंग ने कहा है कि बिजनौरी में एक-एक शब्द में हिंदुस्तान और उसके मजहबों की मोहब्बत से भरे हैं।  उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध जुमला है कि हिंदुस्तान की दो पवित्र किताबें है, पहली-वेद ए मुक़द्दस और दूसरी दीवाने ग़ालिब। ऐसी बात भारत जैसे सांस्कृतिक बहुलता वाले उदार देश में ही स्वीकार्य हो सकता है। उन्होंने बिजनौरी को इंसानियत के सच्चे पुजारी बताते हुए कहा कि बिजनौरी जैसी शख्सियत कोई दूसरी नहीं हो सकती। 

प्रसिद्ध शायर मासूम रज़ा का कहते हैं कि मिर्ज़ा ग़ालिब के प्रख्यात समालोचक अब्दुर्रहमान बिजनौरी थे। ग़ालिब के संबंध में उनका एक वाक्य काफ़ी मशहूर हुआ, "भारत में दो ही महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं, वेद मुकद्दस (पावन) और दूसरा दीवाने ग़ालिब." पता नहीं अब्दुर्रहमान बिजनौरी को वेदों की संख्या का ज्ञान था या नहीं लेकिन एक पुस्तक की चार ग्रंथों से तुलना तर्क संगत नहीं लगती। फिर भी यह वाक्य बिजनौर के एक क़लमकार की कलम से निकला था और पूरे उर्दू-संसार में मशहूर हुआ।

तन्जो मिजाह के इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त शायर हिलाल स्योहारवी कहते थे कि डा. अब्दुर्रहमान बिजनौरी ने मिर्ज़ा ग़ालिब के कलाम के कई अनछुए पहलू के नए अंदाज से दुनिया को परिचित कराया है।

डॉ वीरेंद्र सेवहारा की फेसबुक वॉल से