Sunday, July 27, 2014

व्यंग बजट और मिया जुम्मन की नाराजगी


मियां जुम्मन आज बहुत नाराज नजर आ रहे थे। आते ही फट पड़े। मोदी और मोदी के मंत्री अजीब हैं। आम  बजट में सब को कुछ न कुछ दिया। आयकर में छूट की सीमा बढ़ाई। सीनियर सिटीजन को लाभ दिया। दवाई सस्ती की। टीवी मोबाइल पर टैक्स छूट दी। गंगा सफाई के लिए बजट रखा। अभी आयकर में छूट की और तैयारी है। सब खुश हैं कि उनके लिए कुछ न कुछ जरूर किया।
मैने सवाल किया आप क्यों परेशान है? क्या बजट में आपको भी कुछ चाहिए था? वे बोले- नहीं भाई। मोदी को चाहिए था  कि एक नया विभाग खोलते । खत्म होते राजनैतिक दलों के कल्याण के लिए । उनके सुधार के लिए। बड़े दलों को तो जरूरत नहीं । पर छोटे दलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। संसद, विधान सभा में उनके लिए रिजर्वेशन का प्रावधान किया     जाना चाहिए। कोई  ओर न जीत पाए । नेता जी खुद  तो जीत कर संसद पंहुच जाए। नेता जी अपने बेटे या बेटी को तो संसद पंहुचा दें। ऐसी तो बजट में व्यवस्था की जानी चाहिए थी। हारे दलों के कल्याण के लिए बनने  वाले मंत्रालय के माध्यम से  छोटे और मझले दलों को वोट बैंक बढ़ाने, जनता मेें अपनी पकड़ बनाने की ट्रेनिंग दी जाती।  शॉक में डूबे हारने वाले राष्ट्रीय नेताओं के स्वास्थ्य की जांच के लिए व्यवस्था होती। दलितों के माध्यम से प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने वाले, तीसरे मोर्चा के माध्यम से प्रधानंत्री की कुर्सी कब्जाने का ख्वाब  संजाने  वालों के टूटे सपनों को जोड़ने की योजनाएं होती। केंद्र  में सरकार बनाने वाले दल से जोड़ -तोड़ कर जीन चाार सांसदों केे बल पर   केबनेट में स्थान पाने वाले छोटे चौधरी के लिए तो कुछ होता।  लालू और चुनाव में पराजित उनकी लड़की के लिए योजनाए होती।
बजट में नेता विरोधी दल का प्राविधान किया जाना चाहिए था। यदि सबसे बड़ी पार्टी  से नेता विरोधी दल नहीं बन सकता तो मिलीजुली सरकार की तरह कुछ दलों का गठबंधन कर नेता विरोधी दल चुने जाने का प्राविधान  तो  बजट में जरूर होना चाहिए था।
मैने  उनकी हां में हां भरते हुए कहा कि बारिश न होनेे से  सूखे की आंशका को देख सरकार तैयारी में लगी है।  सरकार की मशीनरी का प्रयास है कि  सूखे का प्रभाव कम से कम किया जा सके। अधिकतर विरोध दलों के नेताओं के  घरो में  तो लोकसभा चुनाव के दौरान ही सूखा पड़ गया । उनके लिए भी तो प्रंबध किया जाना चाहिए। अपने आप कौन अपने लिए कहता  है। मोदी तो विशाल हृदय है।  विजयी होते  ही    चुनाव पूर्व विरोध करने वाले आडवानी जी के  पंाव छूकर आशीर्वाद लिया। सुुषमा जी को विदेश मंत्रालय दिया। समृति इरानी को चुनाव के दौरान ही छोटी बहिन बना लिया। चुनाव में चारोंं खाने चित्त रहे विपक्ष के बड़बोले नेताओं के बारे में भी तो कुछ किया जाना चाहिए।
-अशोक मधुप








Thursday, July 24, 2014

सांवन की कांवड और ‌बिजनौर


सावन की शिवरात्रि से पूर्व कांवड‌‌ियों का भारी रेला रास्तों पर होता है।गंगा की दूसरी साइड मुजफ्फरनगर ,मेरठ ‌,दिल्ली व ह‌रियाणा राज्य के लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर ह‌रिद्वार से ‌निकलतें हैं। इनका रास्ता मुजफरनगर मेरठ होकर होता है।हाला‌कि व्यवस्था के ‌लिए ये सब कुछ साल से ‌कांवड लेने बिजनौर होकर ह‌रिद्वार जातें हैं।
 सावन में ही मुरादाबाद, बुलंदशहर के भारी तादाद में कांव‌‌ड‌िए ‌बिजनौर से होकर वापस अपने घर जातें हैं। आश्चर्य की बात ये है ‌कि ‌बिजनौर जनपद में सावन में कावंड  लाने का प्रचलन नहीं है।यहां फरवरी में पड़ने वाली शिवरात्रि पर कांवड लाने का प्रचलन है। कुछ समय से अब कांवड आने लगी। वरन इस शिवरात्रि पर ‌बिजनौर जनपद में भगवान शिव का पूजन भी बहुत ही कम होता था।
हाला‌कि ‌बिजनौर जनपद में भगवान राम और कृष्ण के प्राचीन  मं‌दिर नही हैं। जो मं‌दिर हैं  वे ज्यादा पुराने नहीं। पुराने मं‌दिर भगवान शिव के ही हैं। ‌जिला गजे‌टियर कहता है ‌कि ‌बिजनौर भार शिवों का क्षेत्र रहा हैं। यहां के शिव उपासक कंधे पर शिव ‌लिंग लेकर चलते थे। जनपद में पुराने शिवालय गंज में ‌निगमागम ‌विद्यालय में और शेरकोट में रानी फुलकुंमारी कन्या इंटर काॅलेज के गेट पर स्‌थ‌ति हैं। इन दोनों में प‌रिक्रमा के ‌लिए मं‌दिर में ही स्‌थान बना है। शिव ‌लिंग बड़े हैं। उनकी ‌पिंडी काफी ऊंची उठाकर बनाई गई है।मं‌दिर की दीवारों पर मुस‌लिम काल की ‌‌चित्रकला है।
  जनपद के पुराने आदमी या ‌विद्वान सावन में कावंड न लाए जाने का  कारण नहीं बता पाए। लगता है ‌कि ‌बिजनौर ह‌रिद्वार से सटा ‌जिला तो है ‌किंतु लगभग 30- 40 साल पूर्व ‌बिजनौर ह‌रिद्वार का गंगा में उफान के कारण बरसात में संपर्क खत्म हो जाता था। इसी कारण सावन में यहां कावंड  लाने का प्रचलन नहीं हैं। यहां फरवरी में अाने वाले सावन में कावंड लाने की परम्परा है।आपमें से ‌किसी की जानकारी में  ब‌िजनाैर में सावन में कांवड लाने का कोई कारण हो तो कृपया मेरी ज्ञान वृ‌द्ध‌ि करें ।