Wednesday, May 28, 2014

चलो मंथन करते हैं


राजनीति भी अजीब शै है। जब तक सत्ता में हैं, तब तक मदमस्त हैं। किसी के दुख-दर्द से कुछ लेना-देना नहीं। बस अपना उल्लू सीधा करना है। जब सब कुछ लुट गया। सफीना मझधार में डूब गया, तो सब मंथन करते हैं।
माया मंथन कर रही हैं। वह शॉक में हैं। समझ नहीं आया- क्या हुआ? कैसे पूरी सोशल इंजीनियरिंग फेल हो गई। मुलायम मंथन कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश का यादव कैसे ′हिंदू′ बन गया? अजित गम में हैं कि उनके बिरादर जट ही उन्हें धोखा दे गए। वे जाट धोखा दे गए, जिन्हें उन्होंने कुछ ही दिन पूर्व केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण दिलाया था। खुलकर तो नहीं बोल रहे, पर सभी मन ही मन कह रहे होंगे कि सारे वोटर एहसान फरामोश निकले। सब ने धोखा दे दिया। सब हिंदू बन गए और मोदी का राजतिलक कर दिया।
सब मंथन कर रहे हैं। चुनाव में मुलायम का कुनबा तो बच गया, लेकिन लालू का परिवार राजनीतिक वैतरणी में डूब गया। पांच सांसदों के बूते केंद्रीय उड्डयन मंत्री बने अजित सिंह खुद भी गए, और बेटे को भी ले गए। बड़ी आशा लेकर राजनीति के चाणक्य अमर सिंह उनकी शरण में आए थे। सब उल्टा हो गया। सब मंथन कर रहे हैं। वह भी तब, जब पूरी बस्ती उजड़ गई। जब बस्ती बसी थी, तब नहीं सोचा कि जनता का भला कैसे हो?
चुनाव में मुलायम कहते थे, हम देखेंगे 56 इंच का सीना। पर दूसरे ने ऐसा धोबी पाट मारा कि मुलायम जैसा पुराना पहलवान भी चारों खाने चित्त हो गया। मात्र घर के बचे। सारा पार्लियामेंटरी बोर्ड घर में। किसी मसले पर बाहर जाने की जरूरत नहीं।
देवताओं और राक्षसों ने जब समुद्र मंथन किया था, तो उसमें से 14 रत्न मिले थे। वहां रत्न पाने को मंथन हुआ था, और यहां रत्न लुट जाने पर। इस बात पर मंथन हो रहा है कि वोटर हमें बेवकूफ कैसे बना गया, जबकि हम बरसों से उसे बेवकूफ बना रहे थे। मतदाताओं ने ऐसा तुरुप का इक्का मारा कि पांच साल तक हमारा संसद जाने का रास्ता ही बंद कर दिया। प्रधानमंत्री बनने की जुगाड़ में थे, मंत्री से भी गए।
अशोक मधुप
आज २८ मई के अमर उजाला में सम्पादकीय पेज पर तमाशा में छापा मेरा व्यंग लेख 

Friday, May 9, 2014

सपेरे का साक्षात्कार

बहुत भागदौड़ के बाद उस व्यक्ति को आखिर मैने खोज ही लिया , जिसने उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री की कार में सांप डाल दिया था। पत्रकारजनित उत्सुकता से मैने उससे पूछ ही लिया-भाई तुम्हें क्या सूझी? मंत्री जी की कार में सांप क्यों छोड़ दिया? वह मुसकराकर बोला -कोई खास बात नहीं । मै तो सपेरा हूं। सांपो से खेलता हूं। उन्हें दुलराता हूं। प्यार करता हूं। । अपने परिवारजनों की तरह उन्हें पालता हूं। इसी कारण वे मेरा कहा मानतें हैं। मेरी मर्जी पर जनता का मनोरंजन करतें हैं। नेता जी को देखकर मैने सोचा कि जरा इनकी विद्वता परख ली जाए। ये नए- नए नारे लगातें है । सारी जनता को मूर्ख बनाते हैं। कभी गरीबी हटाओ की बात करतें हैं। तो कभी रामराज्य का सपना दिखातें हैं। हर बार चुनाव में अलग - अलग तरह के मुखौटे लगाकर जनता के बीच आते हैं। बार - बार उसे भरमातें हैं। छलकर चले जातें हैं। बस मैने इनकी प्रतिभा परखने के लिए इनकी गाड़ी में सांप डाला था। मैं देखना चाहता था कि ये मेरे सिखाए सांप को भी बेवकू फ बना पातें हैं, या नहीं। वह ठहाका लगाते हुए बोला-कार में सांप डालते ही कमाल हो गया। सारी जनता को बेवकूफ बनाने वाले नेता जी को सांप सूंघ गया। सांप को पढ़ाने की जगह कार से भागकर जान बचाई। काश नेता जी जानते कि सांप भी दोस्त -दुश्मन को अच्छी तरह पहचानता हैं। प्यार करने वाले को नहीं काटता । काटता उसे ही है, जिससे खतरा जानता है। वैसे सापों के भी कुछ उसूल होतें हैं। वे उन्हें मानते हैं। सब जगह टेड़े चले किंतु बांबी में सीधे ही अंदर जातें हैं। दूसरे 90 प्रतिशत सांपों में जहर नहीं होता। किंतु नेता का कुछ नहीं बांबी हो या घर कब क्या करदें कुछ पता नहीं? सापंो से ज्यादा ये जहरीले होंते है। ये तो कब किसे डसलें कुछ नहीँ कहा जा सकता। मौका पड़ने पर किराए के बदमाशों से अपने ही जुलूस पर पत्थर फिंकवा लेते हैं। और को तो क्या बकशेगें, ये तो राजनीति की खातिर आतकवादियों से अपनी बेटी तक का अपहरण करा लेंते है। जीवन से ज्यादा प्यार करने वाली पत्नी और पे्रमिका को कभी भी मार या मरवा देतें हैं। कभी तो पत्नी के टूकड़ो को तंदूर में जलवा देतें हैं। कैसे नेता जी हैं ये मैने जरा सा झटका दिया तो भाग खड़े हुए। जरा सी देर में नानी याद आ गई। सब लग गये मेरी खुशामद करने। गिड़गिड़ाते देख मैन भी अपने सांप को पकड़कर अपनी झोली में डाल लिया। -अशोक मधुप