Monday, June 13, 2011

वह रंगों में भरते हैं जीवन

तैयार हो रही है चित्रकारों की नई पीढ़ी
• अशोक मधुप
बिजनौर। दुनिया भर में भारत के नाम को रोशन करने वाले चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन नहीं रहे। बिजनौर का रानी भाग्यवती महाविद्यालय मकबूल फिदा हुसैन जैसे चित्रकारों की नई पीढ़ी तैयार करने में लगा है।
रानी भाग्यवती महिला महाविद्यालय के ड्राईंग एवं पेंटिंग विभाग में लगी एक से एक सुंदर पेंटिंग को आप देखेंगे तो देखते ही रह जाएंगे। कहीं आप को टाट के बोरों पर बनी पेंटिंग आकर्षित करेगी तो कहीं मिट्टी के बर्तनों पर बनी आकृतियां। मुगलकालीन, राजस्थानी और पहाड़ी के कलाकृत्रियों से तो गैलरी दूर-दूर तक भरी पड़ी है।
राजस्थानी चित्रकला पर तो यहां विशेष कार्य हुआ है और चार कक्ष राजस्थान की कला की कृतियों से सजे हैं। अधिकांश कक्ष छात्र-छात्राओं की तैयार कलाकृतियों से भरे हैं। कॉलेज में एमए में ड्राइंग पेंटिंग विषय तो है ही, किंतु यहां है विभागाध्यक्ष विजय भारद्वाज के साथ समर्पित आठ शिक्षकों की टीम। यह टीम छात्राओं को कला के गुर सिखाने के साथ ही उनमें मौजूद कलाकार को निखारने और मांजने में लगी हैं।
इस कॉलेज की छात्राआें की योग्यता के लिए यही बताना काफी है कि एमजेपी रुहेलखंड विवि की मेरिट में इस कॉलेज की छात्राओं की संख्या रहती है। वर्ष 2007 में विवि की ड्राइंग पेंटिंग विषय की दस छात्राओं में प्रथम छह, 2008 में तीन, 2009 में सात, 2010 और 11 में प्रथम दस में इस महाविद्यालय की नौ छात्राओं ने स्थान पाया था। यहीं नही यहां टेक्सटाइल डिजाइनिंग और इंटीरियर डिजाइनिंग के एक-एक साल का कोर्स भी हैं, यह कोर्स छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रहा है। यहां बन रहे नए चित्रकार सभी विषयों पर तूलिका चला रहे हैं। हमारे महापुरुष और देवी देवता तो कलाकारों के मनपंसद विषय रहे हैं किंतु प्रकृति, सामाजिक जनचेतना के विषय भी बड़े प्रभावी ढंग से तूलिका का विषय बने हैं। पर प्रत्येक विषय पर तूलिका चलाते समय यह ध्यान रखा गया है कि चित्र अपने में पूर्ण हो, एक नजर में दर्शक समझ सके कि इसमें क्या कहा गया है।
कॉलेज के ड्राइंग पेंटिंग की विभागाध्यक्ष विजय भारद्वाज कहती हैं कि कला समाज को संदेश देने वाली होनी चाहिए। केवल चित्र बना देना ही काफी नहीं है। आप आम बना रहे हैं तो देखते ही पता चल जाना चाहिए कि यह आम है। यदि आम की पहचान कराने को उसके नीचे आम लिखना पड़ा तो उस चित्र में कमी है


AMAR UJALA MEERUT KE BIJNOR SANSKARAN ME 13 TUN 20111 KE EDITION ME PRAKASHIT

Wednesday, June 8, 2011

कभी रिजल्ट आता था तो मेले लगते थे

• अशोक मधुप
बिजनौर। आज बोर्ड का रिजल्ट आया । न कोई हो हल्ला , न शोरशराबा । पता ही नहीं चला कि कब रिजल्ट आया और कब छात्र अपना नतीजा पता करके निकल लिए। कंप्यूटर और नेट तो रिजल्ट की दुनिया ही बदल दी। लेकिन दस साल पहले जब इंटरनेट और कंप्यूटर सपना था, बोर्ड का रिजल्ट जानना बेहद उलझन और तनाव का काम होता था, छात्रों के लिए भी और उनके लिए भी जो रिजल्ट छात्रों तक पहुंचाते थे। नतीजा हासिल करने के लिए मेले लगते थे। हजारों की भीड़ सड़कों पर उमड़ती थी। बिजनौर मुख्यालय पर तो 24 घंटे तक पूरे जनपद के रिजल्ट देखने वालों वालों का मेला लगा रहता था।
संचार क्रांति से अब हमें परिणाम फटाफट तो मिल जाता है , पर का रिजल्ट का रोमांच कई दिनों से चंद घंटों में सिमट कर रह गया है। रिजल्ट आने के दिन सबेरे से ही जिला मुख्यालय पर रिजल्ट देखने वाले हजारों युवकों की भीड़ उमड़ती थी। कई - कई घंटे रिजल्ट का इंतजार रहता । कई बार तो पूरी - पूरी रात बिजनौर की सड़कों पर बेताब युवाओं की भीड़ रिजल्ट जानने के लिए जमी रहती। चाय - पानी के नए नए खोखे लग जाते थे। कोई गाड़ी आती दिखाई देती तो भीड़ भागकर उसके पास चली जाती। बाद में यह पता चलने पर की अखबार की गाड़ी नहीं है, लौट आती।
हाईस्कूल और इंटर के रिजल्ट के समय हम झालू से साइकिल से बिजनौर आते थे। बात 66-68 की है। तब बिजनौर - झालू सड़क नहीं बनी थी। 10 किमी का कच्चा रास्ता था। इस बीच मौका मिलता तो फिल्म देख कर कुछ टेंशन कम कर लेतेे। रिजल्ट का अखबार आता तो दस रुपये में अखबार खरीदकर घर के लिए साइकिल दौड़ाते। डर रहता कि कोई दूसरा अखबार लेकर पहले न पहुंच जाए। जितने पहले पहुंचे उतने ज्यादा दाम मिलते। झालू में भी रिजल्ट देखने वालों का ऐसा ही जमावड़ा रहता।रेट होता दो रुपये में एक रिजल्ट । अब तो विषय अनुसार रिजल्ट मिल जाता है। पहले तो बस डिवीजन पता चलती थी। अंक की जानकारी रिजल्ट आने के 10-12 दिन बाद स्कूल में मार्कशीट आने पर ही पता लगती। बिजनौर से रिजल्ट का अखबार खरीद कर ले जाने और अपने छोटे से कस्बे के छात्रों को रिजल्ट दिखाने से लोगों के बीच में खासा रौब रहता था। रिजल्ट दिखाने से हुई आय से एक माह की पाकेट मनी निकल आती थी। बाद में जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ने लगी तो रिजल्ट के पेपर के लुट जानेे के डर के कारण थानों में रिजल्ट के पेपर बांटने का इंतजाम किया गया । आज ये मेले कौतूहल के विषय हो सकते हैं , पर आज यहां पहुंचे हम इन रिजल्ट मेलों से गुजर कर ही।
•गांव में अखबार ले जाने पर खास रौब
•लुटने के डर से थाने मंे बंटता अखबार



मेरा यह लेख अमर उजाला मेरठ के बिजनौर डाक संस्करण में सात जून के अंक में पेज दो पर बाटम में छपा है