Tuesday, July 24, 2012

जिले में है नाग जाति का विनाश रोकने वाले आस्तिक ऋषि का मठ
असाढ़ में मठ पर मन्नत मांगते हैं लोग
बिजनौर। यह बहुत ही कम लोग जानते हैं कि महाभारत काल में पिता परीक्षित की मौत का बदला लेने के लिए कराए जा रहे राजा जन्मेजय के नाग यज्ञ को रुकवाने वाले आस्तिक ऋषि का मठ बिजनौर से लगभग साढे़ चार किलोमीटर दूर स्थित नीलावाला के जंगल में है। असाढ़ मास में बड़ी तादाद में श्रद्धालु यहां आते और  मन्नत मांगते हैं।
कथा है कि राजा परीक्षित एक बार शिकार के लिए निकले थे और जल की खोज में वेे शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। उन्होंने तपस्या में लीन ऋषि से पानी मांगा। तपस्यारत ऋषि के ध्यान न देने पर उन्होंने पास में पड़ा मृत सांप बाण की नोक से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। तपस्या में लीन ऋषि को तो इस घटना का पता नहीं चला, किंतु उनके पुत्र श्रृंगि ऋषि ने घटना का पता लगते ही परीक्षित को श्राप दिया कि सातवें दिन तुझे तक्षक सर्प डसेगा।
तक्षक के डसने से गुस्साए परीक्षित के पुत्र राजा जन्मेजय ने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प जाति के विनाश का निर्णय लिया, उन्होंने सर्प यज्ञ कराया। मंत्रों के प्रभाव से सर्प यज्ञ कुंड में आकर भस्म होने लगे। इससे विश्व में त्राहि त्राहि मच गई। ऐसे में नाग जाति के ही आस्तिक ऋषि यज्ञ में पहुंचे और जन्मेजय को समझाया कि एक व्यक्ति की गलती का दंड पूरी जाति को देना ठीक नहीं। वैसे भी नाग जाति का नाश होने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा, उनके समझाने पर यह यज्ञ रुका।
आस्तिक ऋषि के बारे में पुराने लोग कहते हैं कि नाग यज्ञ को रुकवाने वाले आस्तिक ऋषि का मठ बिजनौर से पांच किमी दूर आलमपुर उर्फ नीलावाला के जंगल में है। इतिहास के जानकारों का कहना है कि वर्तमान स्थल पुराना तो नहीं है, हो सकता है कि गंगा के बहाव क्षेत्र में होने के कारण अवशेष खत्म हो गए हों।
25 साल से आस्तिक मठ के पुजारी मुन्ना भगत का कहना है कि जन्मेजय के यज्ञ को रुकवाने वाले आस्तिक ऋषि की यहां समाधि है। यहां असाढ़ में बड़ी तादाद में श्रद्धालु पूजन करने और मनौती के लिए आते हैं।
नीलावाला के निवासी शिक्षक हंरवत सिंह का कहना है कि आस्तिक मठ की बहुत मान्यता है।
अमर उजाला  
यह मेरा लेख 24 जुलाई  के अमर उजाला के बिजनोर संस्करण में प्रकाशित हुआ

Monday, July 23, 2012



रेहड़ में थी जाहरवीर की ननसाल
हर साल लगता है रेहड़ में जाहरदीवान का मेला
लाखों श्रद्धालु उनकी म्हाढ़ी पर चढ़ाते हैं निशान
हिंदू व मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग में माने जाते हैं जाहरवीर(जाहरपीर)
अशोक मधुप
बिजनौर,देश भर में गोगा जाहरवीर उर्फ जाहरपीर के करोड़ों भक्त  हैं। सावन में हरियाली तीज से भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी तक  देश भर में बनी इनकी म्हाढ़ी पर  श्रद्धालु आकर  निशान चढ़ाते और पूजन अर्चन करते हैं। गोगा हिंदुओं में जाहरवीर है तो मुस्लिमों में जाहरपीर । दोनों संप्रदाय में  इनकी बड़ी  मान्यता है।  यह बात कम ही लोग जानते है कि राजस्थान में जन्में गोगा उर्फ  जहरवीर की ननसाल बिजनौर जनपद के रेहड़ गांव में थी। उनके नाना का नाम  राजा कोरापाल सिंह था। गर्भावस्था में काफी समय उनकी मां बाछल अपने  पिता के घर रहीं। रेहड़ गांव में आज भी जाहरदीवान का बड़ा मेला लगता है।
रेहड़ के राजा कुंवरपाल की बिटिया  बाछल और कांछल का विवाह राजस्थान के चुरू जिले के ददरेजा गांव में राजा जेवर सिंह व उनके भाई राजकुमार नेबर सिंह से हुआ। जाहरवीर के इतिहास के जानकार रेहड़ के डाक्टर आशुतोष शर्मा के अनुसार जाहरवीर की मां  बांछल ने पुत्र प्राप्ति के लिए गुरू गोरखनाथ की लंबे समय पूजा की। गोरखनाथ ने उन्हेें झोली से गूगल नामक औषधि निकालकर दी और कहा जिन्हें बच्चा न होता हो  उन्हें यह औषधि खिला देना। रानी बाछल से थोड़ा-थोड़ा गूगल अपनी पंडितानी, बांदी को और अपनी घोड़ी को देकर बचा काफा भाग खुद खा लिया। उनके द्वारा आशीर्वाद स्वरूप दी गुग्गल नाम की औषधि के खाने से जन्में बच्चे का नाम गूगल से गोगा हो गया। वैसे रानी ने अपने बेटे का नाम जाहरवीर रखा। पंडितानी ने अपने बेटे का नाम नरङ्क्षसह पांडे और बांदी के बेटे का नाम भज्जू कोतवाल पड़ा। घोड़ी के नीले  रंग का बछेड़ा हुआ। गोगा की मौसी के भी गुरू गोरखनाथ के आशीर्वाद से दो बच्चे हुए। ये सब साथ साथ खेलकर बड़े हुए। बाछल ने जाहरवीर को वंश  परपंरा के अनुसार शस्त्र कला सिखाई और विद्वान बनाया। जाहरवीर नीले घोड़े पर चढ़कर  निकलता और सबके साथ मिल जुलकर रहता। गुरू गोरखनाथ के ददरेजा  आने पर जाहरवीर ने गुरू की सेवा की  और फिर उन्हीं के साथ उनकी जमात में निकल गए। गुरू के साथ वह काबुल, गजनी,  इरान, अफगानिस्तान  आदि देशों में घूमे, उनके उपदेश हिंदू मुस्लिम एकता पर आधारित होते थे। भाषा के कारण वे मुस्लिमों में जाहरपीर हो गए। जाहरपीर का नीला घोड़ा और  हाथ का निशान उनकी पहचान बन गए।
मां बाछल द्वारा किसी बात पर इन्हें घर न आने की शपथ दी गई थी, किंतु ये पत्नी से मिलने छिपकर महल आते। श्रावण मास की हरियाली तीज के अवसर पर  मां के द्वारा देख लिए जाने और पीछा किए  जाने पर हनुमानगढ़ के निर्जन स्थान में अपने घोड़े समेत जमीन में समा गए। उस दिन भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी थी तभी से देश के कोने कोने से आज तक प्रतिबर्ष लाखों श्रृद्धालु राजस्थान के ददरेवा में स्थित जाहरवीर के महल एवं गोगामेढ़ी नामक स्थान पर उनकी म्हाढ़ी पर प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगते है।  देश भर में जहां जहां जाहरवीर गए। वहां उनकी म्हाड़ी बन गई। इन स्थान पर  प्रत्येक वर्ष हरयाली तीज से शुरू होकर भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी तक जाहरवीर के विशाल मेले लगते है। मान्यता है कि गर्भावस्था  में  रेहड़ में  राजा कोरापाल के महल में जहॉ पर मां बाछल रही थी, वहॉ पर महल के नष्ट हो जाने के बाद जाहरवीर गोगा जी की म्हाढी़ बना दी गई। जहॉ प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की नवमी को हजारों श्रृद्धालु प्रसाद चढ़ाकर अपना सुखी वैवाहिक जीवन शुरू करते है। बिजनौर के पास गंज, फीना और गुहावर में भी इस अवधि में मेले लगते हैं। किवंदति है कि जिस दंपति को संतान सुख नही मिलता उन्हे जाहरवीर गोगा जी की म्हाढ़ी पर सच्चे मन से मुराद मांगने पर संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है।

  

झंडे के साथ पीले वस्त्र पहनकर पंखे से हवा करते हुए चलते हैं भक्त
बिजनौर,जाहरवीर के भक्त पीले कपड़े पहनकर हाथ में झंडे  और  पंखे लेकर  चलते हैं। पंखो से ये आसपास के व्यक्ति को हवा करते चलते हैं। इसके बारे में जनपद के इतिहास के जानकर प्रसिद्ध  आर्य समाज जयनारायण अरूण कहते हैं कि झंडा जाहरवीर के निशान का प्रतीक है। यह म्हाढ़ी पर जाकर चढ़ाया जाता है।   मेले  लगने के  समय गर्मी  ज्यादा पड़ती है, इसलिए मेले में जाने वाले हाथ में लिए पखेें से आसपास के व्यक्ति को हवा करते चलते हैं। जनपद के किसान नेता शूरवीर सिंह कहते हैं कि प्राय: महिलाएं कह देती है कि वे बच्चा होने पर जाहरदीवान की जात देंगी। कुछ श्रद्धालु बच्चे के दीर्घायु की कामना के लिए जाहरदीवान की जात दिलाने  उनकी म्हाढ़ी पर ले जाते हैं। जाहरदीवान के  बारे में विख्यात है कि उन्हें सांप के काटे  के जहर उतारने की कला आती थी। इस मौसम में सांप का  प्रकोप ज्यादा होता है। इसलिए सांप के काटें के बचाव के इरादे से भी भक्त इनकी माढ़ी पर प्रसाद चढ़ाने आते हैं। जात देने वाले बच्चे या व्यक्ति को मोटे खादी के पीले कपड़े  पहनाए जाते हैं। जात देने वाले के हाथ में जाहरदीवान का झंड़ा  होता है और गर्मी से उसे राहत देने के लिए परिवार के सदस्य पंखों से हवा करते चलते हैं। वर्धमान कालेज के हिंदी के पूर्व  प्रवक्ता डा चंद्रपाल शर्मा मधु का कहना है कि जाहरदीवान गुरू गेारखनाथ क भक्त थे, इसीलिए ये योगियों के पहने जाने  वाले   पीले कपड़े पहनते हैं। वर्धमान कालेज के  हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा  राम स्वरूप आर्य कहते हैं कि  देश भर में जाहर दीवान के करोड़ों भक्त हैं। उनकी बड़ी मान्यता है।

मेरा यह लेख अमर उजाला के 23 जुलाई के बिजनोर   संस्करण में प्रकाशित हुआ 
अशोक मधुप

Saturday, July 7, 2012




18 में सतरह मुस्लिम जीते
नगर पालिका  और नगर पंचायतों के चुनाव संपन्न हो गए। बिजनौर जनपद की 12 नगर पालिका और छह नगर पंचायतों के लिए चुनाव हुआ। 18 पदों के लिए हुए मतदान में 17 पर मुस्लिम प्रत्याशी विजयी हुए। भाजपा ने 14 प्रत्याशी  मैदान में उतारे। सारे प्रत्याशी परास्त हुए।दस पदों पर सपा समर्थक या सपा नेता विजयी हुए! सहसपुर से एक पीस पार्टी और मंडावर से कांग्रेस का प्रत्याशी विजयी हुआ।

Thursday, July 5, 2012


हज ही नहीं, कैलाश यात्रा के प्राइवेट आपरेटर पर भी सख्ती हो
अशोक मधुप
हज यात्रा कराने वाले  निजी आपरेटर के लिए विदेश मंत्रालय ने नियम कड़े करने का फैसला लिया है। आज जरूरत इस बात की है कि  हज यात्रा  के साथ- साथ   सरकार  कैलाश की यात्रा कराने वाले प्राइवेट आपरेटर  पर भी सख्ती करे। उनके लिए नियम बनाए। सुविधानुसार रेट निर्धारित करें।
 ये आपरेटर कैलाश यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं से मनमानी वसूली तो कर ही रहे है। घोषित सुविधाए उपलब्ध नहीं कराते। इनकी धींगामुश्ती का विरोध करने वालों को  डराया और  धमकाया तक जाता है। खर्च  ज्यादा आने के कारण ये कैलाश परिक्रमा नहीं कराना चाहते हैँ। मानसरोवर झील के तटपर तीन चार दिन रोक कर श्रद्धालुओं को वापस ले आतें हैँ। कैलाश परिक्रमा न कराने के लिए कई आपरेटर  चीन सरकार के   बारे में उल्टी सीधी अफवाह फैलाते है। ये अफवाहें कभी भी भारत और चीन के संबध खराब कर सकती हैँ।
भगवान शिव पूरे भारत में हिंदू समाज के आराध्य हैं। सभी समान रूप से श्रद्धा के साथ  उनकी पूजा अर्चना करते हैँ। भारत के साथ विदेशों मे बसे भारतीय भी भगवान शिव के आराध्य हैं। प्रत्येक शिव उपासक  भगवान श्ंाकर के निवास कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर पूण्य कमाना चाहता है। इनकी इसी आस्था का प्राइवेट टूर आपरेटर लाभ कमा रहें हैं।  आज  देश के लगभग पांच लाख श्रद्धालु प्रतिवर्ष प्राइवेट आपरेटर द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाते हैं। भारत और काठमांडू का एक बड़ा आपरेटर अकेले  दो से ढाई  लाख यात्रियों को प्रतिवर्ष कैलाश की यात्रा कराता रहा है।  सरकार का नियंत्रण न होने  से ये आपरेटर ७० हजार से सवा लाख रूपये तक प्रतियात्री वसूलते हैं। और सेवा के नाम पर यात्रियों को सब्जबाग  ही दिखाते हैं। दावा करते  है कि तिब्बत में यात्रा के लिए लैंड कू्रजर गाड़ी मिलेंगी। इसमें तीन यात्री और उनके साथ के आक्सीजन सिलेंडर और जरूरी सामान के साथ एक एक शेरपा रहेगा। किंतु  तीस मई को यात्रा पर जाने वाले बजाज हिंदुस्तान के बत्तीस सदस्य और २८  मई को  जाने वाले राजस्थान के ६० सदस्य यात्री दल को लैंड कू्रूजर गाड़ी की जगह बस उपलब्ध कराई गई।  यात्रा के दौरान काठमांडू समेत यात्रा  मार्ग में पांच सितारा होटल में रहने की व्यवस्था  कराने का दावा किया जाता है,किंतु एक सितारा होटल में भी नही ठहराया जाता। गुजरात के पैतालिस सदस्य दल को  आपरेटर ने बाकायदा इश्तहार जारी कर दावा किया कि यात्रा के दौरान भागवत किंकर अनुराग कृष्ण जी शास्त्री कनहैया जी के सानिध्य में अटठाइस मई से होने वाली यात्रा के पड़ाव के दौरान प्रतिदिन सांयकाल कन्हैया जी के मुख से भागवत प्रवचन और सत्संग,मानसरोवर पर कनहैया जी के सानिध्य में  महारूद्राभिषेक यज्ञ होगा। यात्रा के दौरान गे्रटर हैदराबाद के भजन गायक तरूण कुमार झंवर की श्रीश्याम भजन संध्या प्रतिदिन होगी। किंतु इस यात्री दल के साथ न कन्हैया जी आए और न ही भजन गायक झंवर। इनके न आने पर यात्री दल अ पने को ठगा महसूस करता रहा। ये भी दावा किया गया कि यात्रा के दौरान शुद्ध सात्विक देशी घी का बना भोजन उपलब्ध कराया जाएगा। देशी घी का भोजन तो क्या मिलता ,उसकी सुंगध तक का श्रद्धालु आनंद नही ले सके। इस दल में   ६१ सदस्य थे किंतु २३ सदस्य तिबबत बार्डर पर अधिकारियों द्वारा इसलिए रोक दिए गए कि आपरेटर की गलती से उनके  परमिट के पास्पोर्ट के नंबर और पास्पोर्ट के नंबर एक नहीं थे।
आपरेटर  नही चाहतें कि यात्री कैलाश की  परिक्रमा करें। क्यांकि इसकी व्यवस्था पर उनका खर्च काफी ज्यादा  आता है। इसलिए कभी कहतें हैं, मौसम खराब होने से यात्रा बंद है, तो कभी कहतें है कि चीन ने यात्रा पर रोक लगा दी है। मानसरोवर पर हमारे एक सौ अड़तालिस सदस्य यात्री दल को और अन्य यात्री दलोँ को भी आपरेटर द्वारा  बताया गया कि दारचैन में बौद्धों का बड़ा कार्यक्रम  था। इसमें दो बौद्ध भिक्षुओं ने आत्मदाह कर लिया। चीन ने यह कार्यक्रम रोक दिया और दारचैन जाने  पर रोक लगा दी।  दरचैन से ही कैलाश को रास्ता जाता है। इसके बद  होने से अब   अब परिक्रमा नही होगी। जबकि              
ऐसा कुछ नहीं था। मानसरोवर पड़ाव के तीसरे दिन हमारे एक साथी ने चीनी एजेंट से पूछ लिया कि यात्रा रूकने का कया कारण है। उनसे बताया कि भारतीय आपरेटर उनका भुगतान नही कर रहा। इसलिए वे यहां रूके हैं। पैसा मिलते ही यात्रा शुरू हो  जाएगी। दारचैन में प्रवेश की किसी भी प्रकार की रोक को उसने गलत बताया।शोर शराबा करने के बाद  शाम को हम दारचेन पंहुचे तो वहां सब कुछ सामान्य था। दारचैन में प्रवेश पर रोक की बात केवल अफवाह थी।
ये अफवाहें चीन सरकार  तक पंहुच कर कभी भी हमारे  और चीन के रिश्तें खब कर सकती हैं।  इसलिए अब जरूरी हो गया है कि इन आरपेटर की गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगाई जाए। प्रत्येक प्रकार की सुविधा के रेट निर्धारित हो। सुविधा देने की शिकायत पर इन आपरेटर के विरूद्ध कठोर कार्रवाई का प्रावधान हो। अच्छा यह रहे कि भारत सरकार हज यात्रा की तरह काठमांडू वाले कैलाश मानसरोवर यात्रा के रूट पर श्रद्धालुओं को अपने आप यात्रा कराए।
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अमर उजाला में  2अमर उजाला में  29 जून को श्रद्धा 
 पेज पर प्रकाशित मेर लेख का चित्र उपर और मूल लेख साथ में 9 जून को श्रधा पेज पर प्रकाशित मेर लेख का चित्र उपर और मूल लेख साथ में