Friday, November 21, 2008

बदरीनाथ यात्रा तीन अंतिंम

प्रसिद्धि रही है कि उत्तरांचल के निवासी बहुत सीधे और भोले होते हैं ,किन्तु जैसे-जैसे भौतिकता की बयार उत्तरांचल में पहुंच रही है।पर्यटको की आवाजाही बढ़ी है, ये भी तेज-तर्रार होते जा रहे हैं। हरिद्वार से बद्रीनाथ कें रास्ते में जगह-जगह बस स्टैंड पर महिलाएं नग एवं रूद्राक्ष बेचेतीं दिखाईं दीं। प्रत्येक महिला कें डिホबे में कई-कई एक मुखी रूञ्द्राक्ष तक दिखाई देंगे। मान्यता है कि यह रूञ्द्राक्ष बहुत कम मिलता है। मिलता है तो बहुत मूल्य पर। ये 1100 या 2100 रूपए में एक मुखी रूद्राक्ष देने की बात करते, इसे असली बतांते। ग्राहक के न फंसने पर उसे आखिर में दस-पंद्रह रूपए तक में बेच देते हैं। यहां के बारे में प्रसिद्ध रहा है कि यहां अपराध नहीं होते। चोरी बिल्कुल नहीं होती। इसीलिए यहां घरों में ताले लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। उतरांचल के दौरे में भी दिमाग में बचपन से सुनी जा रही यह बात गलत साबित हुई। जब हम बद्रीनाथ से आगे देश के अंतिम गांव माणा पहुंचे। तो ठंड पडऩे लगी थी। यहां के निवासी नीचे जाने लगे थे। माणा के भी काफी व्यक्ति घर छोडक़र चले गए थे। घरों में ताले लटके देख मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। मैंने अपने कैमरे से उसका फोटो खींचा। यहां से कुछ आगे बढ़ा तो एक अन्य स्थान पर ताला लगा ही नहीं मिला, उस पर सील भी लगी देखी। गांव के प्रधान हमारे साथ थे। किन्तु अन्य लोगों ने बताया कि अब प्लेन की हवा यहां भी आ गई है। भवनों में चोरी होने लगी। इसीलिए पहाड़ के रहने वाले अब घरों पर ताले लगाने लगे हैं।

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