लकड़ी के बॉक्स से लेकर डिजिटल कैमरे तक पहुंचा फोटोग्राफी का संसार
फोटोग्राफी आर्ट थी, वह खत्म हो गई
व्यवसाय पैसे वाले हावी हो गए
अशोक मधुप
बिजनौर।
फोटोग्राफी का जनपद का इतिहास 75- 80 साल के आसपास का होगा। बॉक्स
कैमरों से हम आज डिजिटल कैमरों तक पहुंच गए। मोबाइल में आए कैमरों ने हर
व्यक्ति को फोटोग्राफर बना दिया। हालत यह हो गई कि आए कार्यक्रम में
कवरेज के लिए आए व्यवसायिक और प्रेस फोटोग्राफर को फोटो खींचने के लिए
जगह नहीं मिलती।मोबाइल धारक मोबाइल तान कर पहले ही तैयार हो जातें हैं।
बिजनौर
के फाइन स्टूडियों के स्वामी शकील अहमद बतातें हैं मिर्दगान के रहने वाले
हाजी जमीर अहमद कचहरी मार्ग पर स्थित सराय के प्रवेश द्वारा में बैठे
रहते थे। फोटो बॉक्स कैमरों से खींचते थे। बाद में इनका बेटा काम करने
लगा। ये लकड़ी का बड़ा बाक्स कैमरा रखते थे। इसके काले परदे में मुंह देकर
फोटा खींचा जाता था। कैमरे में लगे बॉक्स में ही फोटो बनता था। मुख्य
बाजार में तुफैल अहमद भी बॉक्स कैमरे से फोटो खींचते थे। आज यहां साहू
शंभू दयाल जी का बाजार बन गया।विशेषकर बूरे और बताशों की दुकान हैं।
लिबर्टी
फोटो स्टूडियो कि स्वामी पवन शर्मा कहतें हैं कि पहले फोटोग्राफी आर्ट
थी। इसमें फोटोग्राफर की कला का परिचय मिलता था। इस समय निगेटिव बनता था।
इसे गहरी काली पैंसिल से रिटच किया जाता था। दाग धब्बे मिटाए जाते थे।
उसके बाद कलर किया जाता था। वे बतातें हैं कि इसके लिए गुर्टू साहब, उनके
यहां काम करने वाले हरकेश सिंह, कौशिक चित्रशाला के रूपचंद, विशाल
स्टूडियो के मोहम्मद सलीम, स्कूल रोड के फोटोग्राफर सईद अहमद, आरके
स्टूडियों के राजेंद्र टांक प्रसिद्ध थे।रंगून फोटो स्टूडियों के स्वामी
नसीम अहमद कहते हैं कि विशाल फोटो स्टूडियो के सलीम साहब ने कलर निगेटिव
पर टचिंग की। उनकी देखा देख उन्होंने भी रंगीन निगेटिव पर टचिंग का
काम किया। जजी पर विजय चौधरी का अपना विजय नाम से स्टूडियो था। इसके बाद
अब उनके बेटे स्टूडियो चला रहे हैं। विजय चौधरी का बिजनौर की फोटोग्राफी
में बड़ा नाम है। जजी का ही बाना फोटो स्टूडियो बंद हो गया। अब बाना साहब
के बेटे रुपेंद्र बाना घर पर ही डबिंग और बुकिंग का कामा कर रहे
हैं।चित्रलोक स्टूडियो के मनोज पांडेय प्रसिद्ध से थे। निधन के बाद इनका
स्टेडियो बंद हो गया। इनके भाई सुधीर धर से ही काम कर रहे हैं। उत्तम कलर
लैब के ऋषिपाल सिंह बहुत पुराने फोटोग्राफर रहे हैं। मूल रुप से से
मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं।घंटाघर के नीचे अनिल पंडित का पंडित फोटो
स्टूडियो सन 1985 के आसपास बहुत प्रसिद्ध हुआ।
गूर्ट्र और कौशिक
चित्रशाला के आज के स्वामी योंगेंद्र शर्मा कहते हैं कि आज फोटोग्राफी
में धन आ गया। आधुनिक संयत्र और महंगे उपकरण वाले लोग हावी हो गए। मूलरुप
से फोटोग्राफर बेकार हो गए या कुछ और करने को मजबूर हैं। इस व्यवसाय में
आए पैसे वालों ने उन लड़कों से काम कराना शुरु कर दिया जो इसका कुछ जानते
भी नहीं। पहले फोटोग्राफर कम से कम फोटो खींचता था। क्योंकि उस समय उसके
120 एमएम के कैमरे की एक फिल्म में आठ या 12 ही फोटो खिंच पाते थे।उसके
बाद 35 एमएम के कैमरे आए। इनमें 36 फोटो खिंचते थे।अब तो डिजीटल युग है।
चाहे कितने ही फोटो खींचे जाओ।
रीगल स्टेडियों के स्वामी राज
बिहारी लाल सक्सेना उर्फ राजा कहते हैं कि उनका 40 साल पुराना स्टूडियो
है। इससे पहले कई साल गुर्टू स्टूडियो पर काम किया। इस दौरान फोटोग्राफी
की पूरी दुनिया बदल गई। पहले कैमरो में प्लेट लगती थी फिर फिल्म आईं।
डिजिटल युग शुरु हुआ तो ऐसे कैमरे आए जिनमें फ्लॉपी लगतीं थी। अब चिप और
मैमोरी कार्ड का युग आ गया।
शौकीन
राम बाग कॉलोनी के रहने
वाले विजय पंडित घुमकड़ी और फोटोग्राफी 32 साल से कर रहे हैं। पूरे भारत
वर्ष के साथ 30 देश घूम चुके हैं। जैमनी डेंटल क्लीनिक के स्वामी
डा.हेमंत रस्तोगी को फोटोग्राफी में बड़ा लगाव है। अवसर मिलते ही घूमने
निकल जाते हैं। जिला अस्पताल के नेत्र चिकित्सक मनोज सैन को फोटो के साथ
वीडियो ग्राफी में बहुत रुचि है। कचहरी रोड के रहने वाले सुनील कुमार
गुप्ता बढापुर में शिक्षक रहे। वन्य क्षेत्र होने के करण फोटोग्राफी के
शौक में वहां 30 साल मोनी का नाम से स्टेडियो चलाया। सेवानिवृति के बाद अब
बिजनौर में हैं। इनका बेटा वैन्तेय का बिजनौर में आर्ट काम ग्लेरियो के
नाम से बड़ा स्टूडियो है।
एक कैमरा से कैसे किसी अच्छे काम को समाज
में जगह दिलाई जा सकती है, आशीष लोया ने इसकी मिसाल पेश की है। श्री श्री
रविशंकर की आर्ट ऑफ लिविंग संस्था से जुड़े आशीष लोया जब बैराज होकर बिजनौर
आते -जाते थे तो उन्हें गंगा तट पर पक्षियों की चहचहाहट आकर्षित करती थी।
उन्होंने एक दिन तट पर जाकर देखा तो पता चला कि वहां प्रवासी पक्षी थे।
अपने कैमरे से उनके फोटो खिंचने शुरू किए। बाद में गंगा तट के दूसरी ओर के
हजारों प्रवासी पक्षियों के फोटो खींचकर अफसरों को दिखाए। उनके प्रयास से
ही गंगा के तटीय क्षेत्र को हैदरपुर वेटलैंड घोषित कर वन्य जीवों के लिए
आरक्षित किया गया है।
डीएफओ एम सेम्मारन ने एटा में अपनी जॉब के
दौरान जंगल में घूमना शुरू किया जंगल की सुंदरता उनके मन को भा गई। वन्य
जीवन के खूबसूरत नजारों को सभी को दिखाने के लिए करीब ढाई लाख का कैमरा
खरीदकर फोटोग्राफी शुरू कर दी। जिले के वन्य क्षेत्र में भी वे बहुत
फोटोग्राफी करते हैं। उनके खींचे गए फोटो विकास भवन में लगाए गए हैं।
वर्ड फोटोग्राफी डे पर विशेष
पुरानी यादों को ताजा करती हैं फोटो-
चांदपुर
के फोटोग्राफर सरदार परमजीत सिंह पिछले करीब 30 वर्षो से फोटोग्राफी का
काम करते हैं। परमजीत ने बताया कि तस्वीरें बोलती हैं वजह उनसे जुड़ी यादें
होती हैं। तस्वीर देखते ही पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। पिता परमजीत को
देख पुत्र मनोरथ का मन भी फोटोग्राफी में रमने लगा है। उसने भी फोटोग्राफी
में डिप्लोमा कर इस व्यवसाय को अपना लिया है।
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अखबार की फोटो देख फोटोग्राफी में बढ़ी रूचि-
फोटोग्राफर
लवली शर्मा करीब 32 साल से फोटोग्राफी का काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया
कि अखबार में छपी फोटो आकर्षित करती थी। यहीं से ही फोटोग्राफी की रूचि हो
गई। उन्होनें बताया कि लम्हों को कैद कर लेने की कला फोटोग्राफी में ही
सम्भव है।
लवली ने बताया कि पहले फोटोग्राफी काफी मुश्किल हुआ करती
थी। फोटोग्राफी में कला दिखानी पड़ती थी। कैमरे में रिल चलती थी। निगेटिव
से फोटो तैयार किए जाते थे। समय भी ज्यादा लगता था। जब से फोटोग्राफी
डिजिटल हुई है तब से फोटोग्राफी काफी आसान हो गई है। पुरानी फोटोग्राफी की
याद के लिए अभी भी पुराने कैमरे रखे हुए हैं।
सात दशक पुराना है नजीबाबाद का फोटोग्राफी इतिहास
नजीबाबाद-18 अगस्त
ब्लैक
एंड व्हाइट फोटोग्राफी में नजीबाबाद का इतिहास सात दशक पुराना है। नगर के
जानेमाने फोटोग्राफर रहे स्व. महावीर प्रसाद गुप्ता ने आजादी के मात्र छह
वर्ष बाद 1953 में नजीबाबाद में फोटोग्राफी की शुरूआत की थी। अपने मामा
देहरादून निवासी सागर मल गोयल के साथ देहरादून में 16 वर्ष फोटोग्राफी का
अनुभव लेने के बाद महावीर प्रसाद नजीबाबाद में ब्लैक एंड व्हाइट फोटोग्राफी
में मील का पत्थर बने। महावीर प्रसाद को ब्लैक एंड व्हाइट फोटो को रंगीन
फोटो में बदलने की भी महारथ थी। महावीर प्रसाद के पुत्रों फोटोग्राफर विनोद
गुप्ता और विनय गुप्ता को विरासत में फोटोग्राफी की महारथ हासिल हुई।
तीसरी पीढ़ी में कम्प्यूटराइज्ड फोटोग्राफी दौर में राजीव गुप्ता और संजीव
गुप्ता ने भी अपने पिता और बाबा का नाम रोशन रखा।
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फोटो
आर्ट और वीनस स्टूडियो के स्वामी मशहूर फोटोग्राफर मतलूब अहमद और उनके
छोटे भाई अशरफ शमीम वारसी उर्फ शब्बन की फोटोग्राफी का भी जबाव नहीं था।
ब्लैक एंड व्हाइट फोटो खींचना, संसाधनों की कमी के बावजूद उन्हे संवारने
में उस जमाने के फोटो ग्राफरों का अपना हुनर था। फोटोग्राफर स्व. मतलूब
अहमद के पुत्र अहसान उर्फ गुड्डू फोटो आर्ट स्टूडियो के माध्यम से
फोटोग्राफी की विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं।
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70
के दशक में आरके स्टूडियो के माध्यम से फोटोग्राफर राजू टांक का नगर में
नाम रहा। बाद में आरके स्टूडियो की कमान पूनम स्टूडियो के रूप में
फोटोग्राफर स्व. मुन्ने भाई ने फोटोग्राफी कला का लोहा मनवाया।
। गांव छोईया नंगली निवासी तैयब अली को बचपन से घूमने का शौक था। एक
फर्म में काम करते हुए उन्होंने अपने इस शौक को परवान चढ़ाया। वे जब घूमने
से पीछे नहीं हटते तो इन यादों को सजोने के लिए फोटोग्राफी का खुमार चढ़
जाना बहुत सामान्य है। तैयब अली जहां भी जाते हैं वहां की यादों को वे अपने
कैमरे में हमेशा के लिए सजो लेते हैं। कुछ समय पहले वे जोशीमठ में
कल्पवृक्ष देखने भी गए थे जो पूरे भारत में केवल चार ही हैं। उनके पास 25
हजार फोटो का कलेक्शन है। वे फेसबुक ब्लॉग पर नई नई जगहों के फोटो डालकर
वहां की जानकारी दे रहे हैं।
पीडब्लूडी में इंजीनियर नजीबाबाद निवासी
ज्ञान प्रकाश का शौक ही फोटाग्राफी है। वे कुदरत के खूबसूरत नजारों के
फोटो लेने के दीवाने हैं। ज्ञान प्रकाश फोटो लेने के लिए ऊंचे ऊंचे पहाड़ों
पर भी पहुंच जाते हैं। ज्ञान प्रकाश का कहना है कि उन्हें फोटोग्राफी का
शौक नहीं है बल्कि इसका नशा है। उनका कहना है कि कुदरत के नजारों के सामने
इंसानी दुनिया कुछ भी नहीं है। वे अपने फोटो से सभी को कुदरत के नजारे
दिखाते हैं।
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