Tuesday, June 12, 2018

चित्रकार हरिपाल त्यागी से साक्षात्कार


पहला चित्र मां के गर्भ की भित्ती पर उंगलियों से खींचा होगा
देश के जाने माने चित्रकार हरिपाल त्यागी से साक्षात्कार

फोटो

बिजनौर,जनपद में पैदा हुए देश के जाने वाने चित्रकार हरिपाल त्यागी कहतें हैं कि शायद उन्होंने पहला चित्र मां के गर्भ की भित्ती पर उंगलियों से खींचा होगा। उनकी मां ने गर्भ की ‌भित्त‌ी पर कंपन महसूस कर उन्हें आशीर्वाद दिया होगा , तभी वह बचपन से आज तक अपने कार्य में व्यस्त हैं।
बीस अप्रैल 1934 में बिजनौर जनपद के महुआ गांव में जन्में हरिपाल त्यागी मूल रूप से चित्रकार हैं किंतु वे एक विख्यात कवि भी । शिक्षा बिजनौर के राजा ज्वाला प्रसाछ स्कूल में मैट्रिक तक हुई। 55 में शादी हो गई। अपने शौक के लिए वह ‌दिल्ली आ गए। संघर्ष की शुरूआत हुई । एक पत्रिका के लिए बनाए पहले चित्र पर एक रुपया मिला।सा‌थियों की सलाह   पर भौपाल चला गया। वहां भास्कर में कार्टूनिस्ट के रूप में काम शुरू किया। सन् 60 में दिल्ली आ गया। 64 में पहली नौकरी हिंदुस्तान में शुरू की । छह -सात माह काम किया। उसके बाद से कभी नौकरी नहीं।


त्यागी बताते हैं कि अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं एवं उल्लेखनीय पुस्तकों में पेंटिंग्स तथा साहित्यिक रचनाओं प्रकाशित एवं संगृहित हुईं। देश के अनेक नगरों-महानगरों में एकल चित्रकला प्रदर्शनियां लगाई । सामूहिक कला-प्रदर्शनियों में भागीदारी की । मूलत: चित्रकार लेकिन लेखन भी किया। रचनाकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित ‘सुजन सखा हरिपाल' पुस्तक तथा ‘आधारशिलां (त्रैमासिक पत्रिका) का विशेषांक प्रकाशित हुआ। उनकी प्रकाशित पुस्तकें : ‘आदमी से आदमी तक (शब्दचित्र एवं रेखाचित्र) भीमसेन त्यागी के साथ सहयोगी पुस्तक। बच्चों के लिए कहानियों की चार पुस्तकें। किशोरों के लिए ‘ननकू का पाजामा' नामक एक लघु उपन्यास तथा ‘महापुरुषं (साहित्य के महापुरुषों पर केन्द्रित व्यंग्यात्मक निबन्ध) एवं रेखाचित्र हैं। इन्होंने कुछ साहित्यिक पत्रिकाओं में कला संपादन भी। साहित्य एवं कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक बार पुरस्कृत-सम्मानित हुए।
वे कहते हैं कि जीवन में पैसा खूब आया। किसी से मांगने की जरूरत नहीं पड़ी। लुटाया खूब।वे कहतें है कि मैँ साधारण आदकी की तरह जीता हूँ।बड़े आदमी की तरह चिंतन करता हूँ।साधारण आदमी की तरह रहता हूँ। उन्हें बेइमान किंतु पारदर्शी आदमी पंसद हैँ। ईमानदार आदमी बनता हैं और बनने वाले उन्हें पसद नहीं।
वे बताते हैँ कि शुरूआत में उनका बहुत शोषण हुआ। इसे उनका बुद्घुपना ही कहा जा सकता है। जैसे जैसे वे समाज के तौर - तरीके जानते गए शोषण कम होता गया। जीवन में समझौते तो करने ही पड़तें हैं किंतु ज्यादा समझौते नहीं किए।
युवा ‌‌चित्रकारों को वे सलाह देते हैं कि किताबी ज्ञान से कुछ होने वाला नहीं हैं। वे अपना दृष्ट‌िकोण पहचाने। ‌चित्र में क्या कहना चाहतें हैं, यह निश्चय कर काम करें। तजुर्बे और सवेंदनशीलता से अनुभव आएंगे।


बच्चन की पुस्तकों के बनाए चित्र



वे बतातें हैं कि प्रसिद्घ कवि हरिवंशराय बच्चन की पुस्तकों के कवर और अधिकांश स्केच उन्होंने ही बनाए।
वे बच्चन से पहली मुलाकात के बारे में बतातें है कि राज कमल प्रकाशन से उनकी पुस्तक छपनी थी। पुस्तक के कवर के कई ‌‌चित्र वह निरस्त कर चुके थे। मुझसे चित्र लेकर बच्चन जी से मिलने को कहा गया।बच्चन जी से मैँ उनके दिल्ली ‌स्थ‌ित निवास पर जाकर मिला। उन्होने मेंरे से चित्र लेकर बिना देखे उलटाकर रख दिया। कहा कि जिसने मेरी किताब नहीं पढ़ी ,वह उसका कवर कैसे बना सकता है। मैने उनसे कहा ‌कि ये आने कैसे कह दिया? फिर मैने छपने वाली ही नहीं उनकी पुरानी किताब कविताओं पर बेबाक टिप्पणी की । मुझ से प्रभा‌वित होकर उन्होंने राजकमल प्रकाशन को कहा कि आज से उनकी सारी किताबों के कवर और स्केच त्यागी ही करेंगे। जो ये करेंगे , वह उन्हें स्वीकर होंगे।




हरिपाल त्यागी की कविता
रेखाएं

रेखाएं-पागल हो गयी हैं
तुम्हें छूने को आतुर,
छटपटातीं, भगातीं,
बेचैन रेखाएं...

उलझ पड़तीं परस्पर और
फिर वे एक हो जातीं,
दौड़ पड़ती बावली
मासूम रेखाएं...

पगला गयी हैं सचमुच
तुम्हें छूने की धुन में।
कौन है वह, जो तड़पता
इन खरोंचों में...

रेखाएं-
पागल हो गयी हैं...


-अशोक मधुप

12 अप्रैल अमर उजाला बिजनौर के पेज ८ पर प्रकाशित