Friday, December 5, 2008

क्या हमारा आक्रोश सही दिशा की ओर है



मुंबई में हुई आतंकवादी घटना के बाद देश भर में आक्रोश है। प्रत्येक व्यक्ति उसे अपने ढंग से व्यक्त करने में लगा है। कोई नेताआें को जूते मारने की बात कह रहा है, तो कोई पाकिस्तान पर हमले की सलाह का पिटारा खोले है। हरेक की अपनी ढपली एवं अपन राग है। चैनल नेताआें के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं,।



इन सब के बीच भी कुछ लोग है जो अपनी दुकान लगाए कमाई कर रहे हैं! उन्होंने देख लिया कि


लोंगो में आक्रोश है। इसे भुनाने के लिए मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियो ने अपने लोगों को लगाकर आक्रोशा व्यक्त करने वाले संदेश कुछ के मोबाइल पर भेज दिए। जिसे यह एस एम एस मिला , उसने इसे अपने मित्रों को फावर्ड कर दिया। कुछ मैसेज में तो लिख दिया कि इसे आगे बढाकर राष्ट्रभक्ति का परिचय दीजिए। हम सब ने अपने गुस्से का इजहार करने के लिए ही संदेश भेजे। क्या हुआ ,इससे देश के हालात पर कुछ असर नही पडा, हां मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियो ने जरूर लाखों रूपये के वारे न्यारे कर लिए।



इससे कुछ होने वाला नही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में पुलिस में एक साल अस्सी हजार से ज्यादा भर्ती की घोषणा की। उधर एसटीएफ के गठन की घोषणा कर दी । इससे कुछ होने वाला नही है। पुलिस कर्मी को आप देखे तो वह सबेरे से शाम तक वाहनों से वसूली करते नजर आंएगे। गुप्तचर सूचना जुटाने के लिए बनी स्थानीय अभिसूचना इकाई के साथी प्राय: पास्पोर्ट की जांच के नाम पर धन बसूल करते नजर आते है। रेलवे पुलिस का काम रेलवे संपत्ति आेर इसके यात्रियों की सुरक्षा करना है किंतु वह यात्रियों के टिकेट चैक करते या यात्रियों का लगेज ज्यादा बताकर धन वसूलते नजर आते।


एसटीएम में मनमर्जी से अधिकारियों का पोस्टिंग किया जा रहा है। इनमें बे युवक लिए जाए जो खुद कुछ कर गुजरने का हौसला रखते हों। इन्हें अलग कैडर आैर वेतन मिलना चाहिए।


हमें इस प्रकार की घटनाआें केा रोकने के लिए समीक्षा करनी होगी। कंधार विमान अपहरण कांड के समय की घटना मुझे याद आती है। मीडिया विमान अपहृताआे के परिवारों को दिखाकर बार बार यही कह रहा था कि मंत्री की बेटी के लिए आंतकवादी छोडे़ जा सकते हैं तों इनके लिए क्यों नहीं। एक फिल्म आई थी 36 घंटे! एक अखबार के संपादक के घर में चार बदमाश घुंस जाते हैं। पत्रकार अपनी बेटी आैर पत्नी को बचाने के लिए बदमाशों को पुलिस की सूचनांए एकत्र कर देने लगता है। हम सबको सोचना होगा कि इन सबसे उपर हमारा देश है। उससे उपर कोई नही है।


इन सब के साथ देश में मजबूत सुरक्षां तंत्र के साथ प्रत्येक नागरिक को एक सिपाही बनाना होगा , जो जरूरत पड़ने पर जान पर खेल कर दशमन का मुकाबला कर सके। प्राचीन युद्धकला में लठैत को बहुत मजबूत माना जाता था। लाठी चलाने मे माहिर बहुत से लोगों को इसी प्रकार मार डालता था , जैसे आज आंतकवादी मार डालता है। किंतु बुजुर्ग बताते रहे है कि लठैत का एक उपाए है कि एक आदमी भागकर उसकी कौली भर ले। वह खुद तो मरेगा या घायन होगा किंतु अन्य को तो बचा पाएगा। मुंबई रेलवे स्टेशन पर हमला करने वालो मे से एक आंतकवादी के मारे जाने के पीछे की भी तो कहानी यही है।एक सिपाही ने आतंकवादी की राइफल की नाल ही नही पकडी़, अपितु सारी गोंलिया अपने सीने पर झेली। उसने खुद जान देकर दूसरो को बचा लिया। एे से अवसरों के लिए हमे अब युद्ध के समय अपनी जान पर खेल कर समाज को बचाने की कला सीख्ननी होगी। मै श्री वेद प्रकाश वैदिक जी की इस बात का कायल हूं कि हमे पूरे देश केा इन हालात से बचने के लिए आर्मी प्रशिक्षण आवशयक करना होगा। दो साल का प्रत्येक के लिए सैनिक प्रशिक्षण आवशयक किया जाना चाहिए। आज हमारे घर पर हमला था इसलिए हम परेशान हैं किंतु आंतकवाद तो विश्व व्यापी समस्या है। इससे निपटने को हमे इंस्त्राइल जैसे देशो से देशभक्ति सीख्ननी होगी ।


बशीर बद्र के एक शेर से मै अपनी बात खत्म करता हूं..


असूलों पर जो आंच आए तो टकराना जरूरी है,


जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है।


1 comment:

अनुराग गौतम said...

आप जैसे बड़े लेखक ने मेरे ब्लॉग पर लिखा,
अच्छा लगा..
देशभक्ति SMS फॉरवर्ड करने में नही है...
देशभक्ति पाकिस्तान को गालियाँ देने में भी नही है...
देशभक्ति अपने नेताओं को बुरा भला कहने में भी नही है...
ख़ुद को आईने में देखिये, और ख़ुद से पूछिए, की आपने देश के लिए क्या किया....
घर के विभीषणों को देखिये, और समूल नाश करें....
समय रहते पुलिस को बताएं, बहुत ज़्यादा नही मांगता किसी से...
ख़ुद को परदे के पीछे रख कर ही सही, सूचना तो दी जा सकती है....
कोशिश तो कीजिये, सब बदल जायेगा...
लेकिन,...
कोशिश तो करनी होगी,
कहते हैं.... स्वयं मरे बगैर तो स्वर्ग भी नही मिलता.....