पूछ ताछ के दौरान एक ने कहा था कि जहां भीड़ ज्यादा नजर आए , वहीं पासपोर्ट कार्यालय है। बहुत देर से गाड़ी में सफर कर रहे थे। सो पहुंचतें ही पहला काम टायलेट की खोज से शुरू किया। आफिस के सिक्युरिटी स्टॉफ ने कहा कि यहां कोई व्यवस्था नही हैं। कहीं भी खुले में करलें। बड़ा आश्चर्य हुआ कि जहां तेरह जिलों के निवासी पासपोर्ट बनवाने आतें हैं, वहां कोई रेस्ट रूम नहीं है। एक ठेले वाले से पूछा तो उसने कहा कि बहुत सारे प्लाट खाली हैं ,कहीं भी कर लें। पास में एक अस्पताल था ।उसमें जाकर काम चलाया। सोचता हूं कि पुरूष तो खुले में जा सकतें है किंतु यहां आने वाली महिलाओं पर क्या बीतती होगी। क्या जरूरत पर वे भी खुले में जाती होंगी। या वह भी हमारी तरह आसपास की किसी दुकान या अस्पताल के रेस्ट रूम को प्रयोग करती होंगी।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी खुले में शौच का विरोध करते हैं। उनकी केंद्र सरकार के एक महत्वपूर्ण पासपोर्ट कार्यालय की क्या हालत है। इससे सरकारी कार्यालयों की स्थिति पर विचार किया जा सकता है।
एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन एक हजार व्यक्ति यहां आते होंगे। महिलाओं के साथ तो उनके परिवार जन भी आतें है। निर्धारित समय में अंदर प्रवेश दिया जाता है। अंदर बैठने के लिए सीट का प्रबंध है किंतु बाहर बैठने की कोई व्यवस्था नहीं। मेरी तरह कोई 190 किलो मीटर का सफर कर बिजनौर से आता है। तो इटावा कासगंज फिरोजाबाद से तो आने वाले और ज्यादा दूरी से आतें हैं। सब निर्धारति समय से एक दो घंटा पहले आते हैं। प्रयास होता है कि जल्दी पहुंच जाए। यहां इनके बैठने के लिए कोई व्यवस्था नहीं । चाहे महिला हों या सीनियर सिटीजन यां विकलांग।
मेरी साथी नरेंद्र् मारवाड़ी ने यहां एक पासपोर्ट अधिकारी को पकड़ मेरी समस्या बताई। कहां इन्हें जल्दी- जल्दी लघुशंका जाना पड़ता है। उन्होंने मेरी मदद की । मै लगभग आधे घंटे में फ्री हो गया। अंदर रो रहे एक बच्चे की मां को भी उन्होंने आगे बुलाकर उनके आवेदन की प्रक्रिया पूरी कराई । पर ऐसा सबके साथ तो नहीं होता। मैने एक बुजुर्ग सरदार जी को काफी समय लाइन में लगे देखा।
मजेदार बात यह भी है कि बाार से आने वालों के वाहन के पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं। ये वाहन सब सड़क के किनारे दूसरे प्रतिष्ठानों के आगे खड़े रहतें हैं।