हमारे धर्मस्थल, हमारा इतिहास
हमारे धर्मस्थल धार्मिक आस्था कें तो प्रतीक हैं। वे हमारे आस्था कें साथ-साथ आत्मविश्र्वास, सहयोग भावना ओर सहृदयता को बढ़ाते है। एक बड़ा काम यह हो रहा है कि इन स्थानों पर हमारे पारिवारिक इतिहास को संजोकर रखा जा रहा है।धर्मस्थल पर पुजारी और पंडे रहते हैं। ये धार्मिकस्थल पर जाने वाले को विधि-विधान से पूजा-पाठ तो कराते ही हैं, उसके और उसके परिवार के रहने की व्यवस्था भी करते हैं। सबसे बड़ा काम यहां यह किया जाता है कि वहां जाने वाले के पारिवारिक इतिहास को संजोकर रखने का। उनके परिवार का कौन व्यक्तिं कब आया यहां, उसके बही-खातों में तो होता ही है साथ ही इतिहास होता है। पूर्वज और बच्चों का इतिहास।अक्तूबर २००७ मे बद्रीनाथ जाने का अवसर मिला। मेरे साथ गए मेरे दोस्त नरेंद्र मारवाड़ी बद्रीनाथ में, अलवर वालो की धर्मशाला में चले गए। वहां पंडित जी से बात की वंशानुक्रम कें बारे में बताया, तो पता चला कि उनके देहरादून में रहने वाले चाचा धर्मशाला के संरक्षक हैं। जल्दी में होने के कारण शाम को उनके पास बैठना हुआ। हम भी मारवाड़ी के साथ पंडित जी के पास गए। बात करते-करते पंडित जी ने अपनी बही खोलकर उनके गोत्र का विवरण खोला तो पता चला कि उनके पिता जी 41 वर्ष पूर्व यहां यात्रा को आए थे। यात्रा को आने कें बाद हुए उनके दो बच्चों का विवरण दर्ज नहीं थे। उन्होंने देखकर उनके दादा कें बारे में बताया कि वे ९३ साल पूर्व बद्रीनाथ आए थे। दोनों कें आने की तिथि तक वही में दर्ज थी। मारवाड़ी को अपने बाबा का नाम ज्ञात था। यहां बही से उन्होंने अपने बाबा कें पिता उनके भाई, बाबा कें दादा और उनके भाईयों आदि का विवरण नोट किया। पंडित जी ने अपनी वही में मारवाड़ी से अपने औरउनके बच्चे, भाई और भाइयों के बच्चों की जानकारी नोट की। नीचे तारीख, माह,सन डालकर हस्ताक्षर कराए। ऐसा यही नहीं हर तीर्थस्थल में होता है। वहां के पंडित और पुजारी अपनी-अपनी वादियों में आने वालों का इतिहास दर्ज करके रखते हैं। 41 वर्ष पूर्व पिता के आने और 93वर्ष पूर्व दादा के आने की जानकारी पाकर नरेंद्र मारवाड़ी को तो अच्छा लगा ही किंतु इतिहास बड़ा सुखद लगा। यह भी अच्छा लगा कि यहां पुजारी पारिवारिक इतिहास वंशानुक्रञ्म का इतिहास रखे हैं। हिंदुओं में पारिवारिक विवरण दर्ज करने का प्राविधान नहीं है, किंञ्तु मुस्लिमों में पारिवारिक विवरण रखने की व्यवस्था है। इसे वे शजरा कहते हैं। यह एक पेड़ की तरह का होता है। परिवार के प्रथम पुरूञ्ष का नाम लिखकर उनके नीचे तीर का निशान बनाकर उनके पुत्र का नाम लिखा जाता है। दो पुत्र होते हैं तो दो तीर बनाए, दोनों के नाम दर्ज होते हैं। इन पुत्रों के बच्चों के विवरण तथा आने वाली संतान की जानकारी इसी प्रकार दर्ज होती जाती है।इन धार्मिक स्थलों के पुजारियों से संपर्क कर पारिवारिक इतिहास तैयार कराया जा सकता है। पुजारी कहीं जातिनुसार होते हैं, तो कहीं जनपद या क्षेत्रानुसार। किसीभी धार्मिकस्थल में जाने पर आप किसी पंडा या पुजारी से पूछे तो वह बता देंगे कि आपके परिवार, गोत्र के पुजारी कौन हैं तथा कहां रहते हैं।
हमारे धर्मस्थल धार्मिक आस्था कें तो प्रतीक हैं। वे हमारे आस्था कें साथ-साथ आत्मविश्र्वास, सहयोग भावना ओर सहृदयता को बढ़ाते है। एक बड़ा काम यह हो रहा है कि इन स्थानों पर हमारे पारिवारिक इतिहास को संजोकर रखा जा रहा है।धर्मस्थल पर पुजारी और पंडे रहते हैं। ये धार्मिकस्थल पर जाने वाले को विधि-विधान से पूजा-पाठ तो कराते ही हैं, उसके और उसके परिवार के रहने की व्यवस्था भी करते हैं। सबसे बड़ा काम यहां यह किया जाता है कि वहां जाने वाले के पारिवारिक इतिहास को संजोकर रखने का। उनके परिवार का कौन व्यक्तिं कब आया यहां, उसके बही-खातों में तो होता ही है साथ ही इतिहास होता है। पूर्वज और बच्चों का इतिहास।अक्तूबर २००७ मे बद्रीनाथ जाने का अवसर मिला। मेरे साथ गए मेरे दोस्त नरेंद्र मारवाड़ी बद्रीनाथ में, अलवर वालो की धर्मशाला में चले गए। वहां पंडित जी से बात की वंशानुक्रम कें बारे में बताया, तो पता चला कि उनके देहरादून में रहने वाले चाचा धर्मशाला के संरक्षक हैं। जल्दी में होने के कारण शाम को उनके पास बैठना हुआ। हम भी मारवाड़ी के साथ पंडित जी के पास गए। बात करते-करते पंडित जी ने अपनी बही खोलकर उनके गोत्र का विवरण खोला तो पता चला कि उनके पिता जी 41 वर्ष पूर्व यहां यात्रा को आए थे। यात्रा को आने कें बाद हुए उनके दो बच्चों का विवरण दर्ज नहीं थे। उन्होंने देखकर उनके दादा कें बारे में बताया कि वे ९३ साल पूर्व बद्रीनाथ आए थे। दोनों कें आने की तिथि तक वही में दर्ज थी। मारवाड़ी को अपने बाबा का नाम ज्ञात था। यहां बही से उन्होंने अपने बाबा कें पिता उनके भाई, बाबा कें दादा और उनके भाईयों आदि का विवरण नोट किया। पंडित जी ने अपनी वही में मारवाड़ी से अपने औरउनके बच्चे, भाई और भाइयों के बच्चों की जानकारी नोट की। नीचे तारीख, माह,सन डालकर हस्ताक्षर कराए। ऐसा यही नहीं हर तीर्थस्थल में होता है। वहां के पंडित और पुजारी अपनी-अपनी वादियों में आने वालों का इतिहास दर्ज करके रखते हैं। 41 वर्ष पूर्व पिता के आने और 93वर्ष पूर्व दादा के आने की जानकारी पाकर नरेंद्र मारवाड़ी को तो अच्छा लगा ही किंतु इतिहास बड़ा सुखद लगा। यह भी अच्छा लगा कि यहां पुजारी पारिवारिक इतिहास वंशानुक्रञ्म का इतिहास रखे हैं। हिंदुओं में पारिवारिक विवरण दर्ज करने का प्राविधान नहीं है, किंञ्तु मुस्लिमों में पारिवारिक विवरण रखने की व्यवस्था है। इसे वे शजरा कहते हैं। यह एक पेड़ की तरह का होता है। परिवार के प्रथम पुरूञ्ष का नाम लिखकर उनके नीचे तीर का निशान बनाकर उनके पुत्र का नाम लिखा जाता है। दो पुत्र होते हैं तो दो तीर बनाए, दोनों के नाम दर्ज होते हैं। इन पुत्रों के बच्चों के विवरण तथा आने वाली संतान की जानकारी इसी प्रकार दर्ज होती जाती है।इन धार्मिक स्थलों के पुजारियों से संपर्क कर पारिवारिक इतिहास तैयार कराया जा सकता है। पुजारी कहीं जातिनुसार होते हैं, तो कहीं जनपद या क्षेत्रानुसार। किसीभी धार्मिकस्थल में जाने पर आप किसी पंडा या पुजारी से पूछे तो वह बता देंगे कि आपके परिवार, गोत्र के पुजारी कौन हैं तथा कहां रहते हैं।
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