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Wednesday, December 31, 2008
Monday, December 22, 2008
नेताओं की मौत पर राष्ट्रध्वज तिरगें का झुकाया जाना क्या उचित है
कवि का कहना था कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिंरगा देश के गौरव, सम्मान एवं उसकी स्मिता का प्रतीक हैं। यह देश की शान है। इसे फहराने की खातिर देश के सैंकड़ों क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्यौछावर किए। उन्होंने हंसते - हंसते सीने पर गोली खाकर प्राण न्योछावर कर दिए किंतु तिंरगे को झुकने नही दिया।देश के जवान भी तिंरगे के सम्मान की खातिर अपने प्राण दे देते हैं।
राष्ट्रध्वज तिंरगा देश के सम्मान का प्रतीक हैं। देश सबसे बडा़ है, नेताओं से भी ।नेता देश एवं तिंरगे से बडे़ नही हैं। ऍसे में उनकी मौत पर राष्ट्रीयध्वज झुकाया जाना उचित नहीं ।वह इसे राष्टी्यध्वज ही नही पूरे देश का अपमान मानतें हैं।
इस विषय पर आपकी क्या राय है।
हम भी आंतकवादी होते जा रहे हैं
हो सकता है कि आपको मेरी बात अजीब या अटपटी लगे किंतु है सहीं । हममें भी कुछ आंतकवादियों के गुण आते जा रहे हैं । हम अपनी मांग मनवाने के लिए दूसरों का अपहरण नही कर रहे। अपने बच्चों को दांव पर लगाने लगे हैं। आतंकवादी अब तक विमान ,ट्रेन या बस के यात्रियों का अपहरण करके सरकार पर दबाव डाल कर अपनी मांग मनवाते रहे है। ये हथियार अब हम प्रयोग करने लगे हैं। अपनी मांगों को मनवाने के लिए हम अपने बच्चों का जीवन दांव पर लगा रहे हैं।
भारत सहित दुनिया के कई देशों में बच्चों में वायरस से आने वाली शारीरिक विकलांगता दूर करने के लिए पोलियो अभियान चलाया हुआ है। भारत को भी पोलियो मुक्त करने के लिए अभियान चला हुआ हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की और से चलने वाले इस अभियान पर हमारी सरकार खरबों रूपया व्यय कर चुकी हैं। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि वायरसजनित बीमारी से देश का कोई बच्चा विकलांग न हो पाए। सरकार का ये अभियान आपके एवं हमारे बच्चों के लिए है किंतु हम अब यह मान बैठे हैं कि पोलियो की दवा पिलाना सरकार की मजबूरी है। पहले सरकार बूथों पर आने वाले बच्चों को दवाई पिलाती थी। क्योकि सारे बच्चे बूथ तक नही आ पाते , इसलिए सरकार ने यह किया कि पोलियो कर्मी एक सप्ताह तक लोगों के घर जाकर उनके बच्चों को दवा पिलांएगे।
हमारे बच्चो को विकलांगता से बचाने के लिए सरकार की कोशिश ,जद्दोजहद को हमने उसकी मजबूरी समझ लिया। हम समझने लगे कि इसमें सरकार की कोई मजबूरी है, जो इस प्रकार बार बार अभियान चला रही है। सरकार के प्रयास को हमने उसकी मजबूरी मान उसे ब्लैक मेल करना शुरू कर दिया। जग ह-जगह से समाचार आने लगे है कि गांव वाले किसी न किसी मांग को लेकर अड़ जाते है एवं दबाव देते है कि जब तक उनकी मांग पूरी नही होगी, वह बच्चों को दवा नही पिलांएगें। मेरे जनपद के एक गावं में आज दो घंटे तक बच्चों को इसलिए पोलियो ड्राप नही दी गई कि वहां का बिजली का ट्रांसफार्मर खराब था एवं बदला नही जा रहा था। गांव वालों के दबाव पर बिजली कर्मी आए आश्वासन दिया । उसके बाद ही बच्चों को दवा पिलाई गई।
कया यह ब्लैकमेल करना नही हैं। दवा न पीने से किसके बच्चे प्रभावित होंगे। क्या पोलियो की बीमारी को खत्म करने की सराकर की ही जिम्मेदारी हैं। ट्रांसफार्मर बदलवाने के लिए भूख हडताल या किसी अन्य प्रकार का कोई आंदोलन शुरू किया जा सकता थां। अपने बच्चो की कीमत पर तो यह सौदा नही होना चाहिए ।बच्चों को आगे करके इस प्रकार मांग मनवाना मेरी राय में तो ठीक नही हैं । अपने बच्चों कों दाव पर लगाकर कोई मांग पूरी करना ठीक नही हैं ।
Wednesday, December 17, 2008
बेटों से कम नही बेटिंया
युग बदल गया हैं। कभी लड़के लड़कियों में फर्क समझा जाता था किंतु अब ऐसा नही है। बेटी भी बेटों से कम नही है।यहां आज कुछ ऐसा ही हुआ।
मेरे पड़ौस में एक सेवानिवृत अवर अभिंयता रहते हैं किशन खन्ना । उम्र होगी ६५ साल ।पति पत्नी बहुत मस्त। बहुत मिलनसार। इनके चार बेटिंया। चारों बेटियों की उन्होंने शादी कर दी। रात किशन खन्ना की तबियत खराब हुईं। दो बार पहले हार्ट अटेक हो चुका था। ठीक से उपचार न मिलने पर रात में उनका निधन हो गया। मुहल्ले वाले परेशान थे कि अंतिम संस्कार कौन करेगा। सबसे छोटी लड़की इनके पास आई हुई थी! एक और लड़की की शहर में ही शादी हुई थी। वह तथा गाजियाबाद वाली आ चुकी थी! चौथी सबसे बड़ी लड़की नही आई थी।
Monday, December 15, 2008
छपास रोग

Sunday, December 14, 2008
एक फोटो

अब समारोह में मेहमानो के मनोरजंन के लिए भी व्यापक प्रबंध होने लगे है। कहीं शहनाई बादक शहनाई बजाते मिलते हैं तो कहीं म्युजिक कंपनी कार्यक्रम प्रस्तुत करती नजर आती हैं। हाल में एक विवाह समारोंह में एक मोटा युगल लोगो का मनोरजंन करता घूम रहा थां। यह बच्चो से हाथ मिलाता। बाद में डीजे पर डांस करता नजर आया। मुझे कुछ नया सा लगा तो मैने दोनो से फोटो खिंचाने का अनुरोध किया तो वह तैयार हो गए। मैने अपना मोबाइल निकाला एवं उनका चित्र ले लिया। मन बात करने का तो था किंतु शोर ज्यादा होने के कारण चला आया।
Saturday, December 13, 2008
मुंबई का हमला ,हमारी सोच
क्या पूरा पाकिस्तान अपराधी है
मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद देश भर से एक आवाज आ रही है कि पाकिस्तान पर हमला किया जाना चाहिए। मीडिया चिल्ला-चिल्लाकर कर रहा है कि बाप द्वारा एक आंतकवादी की शनाख्त किए जाने के बाद पाकिस्तान को और क्या सबूत चाहिए।
मै कुछ और कह रहा हूं। पाकिस्तान पर हमले की बात करने से पूर्व हमें बहुत कुछ सोचना चाहिएं। पहला प्रश्न यह उठता है कि पाकिस्तान हमले की बात कर क्या हमने यह नही मान लिया कि पूरा पाकिस्तान आंतकवादी है। क्या एक कौम या एक पूरा देश आतंकवादी हो सकता है। अब तक आंतकवाद में शामिल रहे शत प्रतिशत युवक मुस्लिम हैं,इसके बावजूद मुस्लिम समाज का बड़ा तबका इसका विरोध करता है। आंतकवाद के कारण शक के आधार पर बेगुनाह मुस्लिम के उत्पीड़न के लिए आज वह सुरक्षा बलो को कम आंतकवाद के नाम पर रास्ता भटके युवाऔ को ज्यादा जिम्मेदार मानता है। इसीका कारण है मुंबई के हमले मे मरने वाले आंतकवादियों को अपने कब्रिस्तान मे दफनाने की मुंबई के मुस्लिमों ने इजाजत नही दी।
पाकिस्तान में बड़ी तादाद में आतंकवाद है, यह भी सही है कि वहां आंतकवादियों के खुलेआम ट्रेनिग कैंप चल रहे हैं किंतु यह तो नही कहा जा सकता कि वहां पूरा देश ही आतंकवादी है । पाकिस्तान सरकार दावेकर रही है कि मंबई की आतंकवादी बारदात में उसका हाथ नही ,वह इसके सबूत भी हमसे मांग रही है किंतु मुंबई में मरने वाले आंतकवादी के गांव के लोगों से बातचीत वहां का गियो चैनल सबूत दे देता कि मुंबई के आतंकवादी हमले में फोर्स के हाथ मरने वाला पाकिस्तान का अजमल कसाब है । वह पाकिस्तान द्वारा भारत से मुंबई के हमले में पाकिस्तान के हाथ होने के सबूत खुद उपलब्ध कराता हैं। पाकिस्तान में बड़ी तादाद में आंतकवादी शिविर या उनके प्रश्यदाता हों किंतु पूरे देश के नागरिक आंतकवादी नही हो सकते।एक दो सिरफिरे की गलती पर पूरे देश कों दंड देना तो न्याय नही है। क्या आप इसे उचित मानेंगे। मै तो कमसे कम इसके लिए तैयार नही हू।
मुंबई के आंतकवादी हमले में मरने वाले युवक को उसके मां-बाप से इस रास्ते पर चलने को नही कहा होगा,मेरा एेसा मानना है।हम पूरे पाकिस्तान को आज सबक सिखाने पर उतारू होते समय यह भूल जाते है कि हम ही नही आंतकवाद का दंशा उतला ही पाकिस्तान झेल रहा है,जितना हम झेल रहे हैं। आंतकवाद के विरोध में हम ही कुरबानी नही दे रहे, पाकिस्तान भी दे रहा है! जरदारी भी दे रहे हैं। उनका भी बहुत कुछ इस आंतकवाद की बदोलत गया है।
हमारे देश में सैना अनुशासित है,उसके जवान आतंकवाद के विरूद्ध संघर्ष कर रहे है जबकि पाकिस्तानी सेना आंतकवादियों की पीठ पर खड़ी है। यही मूल फर्क भारत एंव पाक में हैं।
इसके लिए हमें अंतर्राष्टीय दबाव बनाना होगां। इसमें हम कामयाब भी हों रहे हैं। कारगिल मे आंतकवादियो को जमाने का जिम्मा पाकिस्तानी सेना का नही था अपितु उसके जवान भी उनमें शामिल थे किंतु दुनिया के सामने पूरे घटनाक्रम को लाकर जब हमने आपरेशन चलाया तो पाकिस्तानी सेना चुप ही नही रही, उसने अपने सैनिकों के शवों को भी नही स्वीकारा।
हम अपने मुंबई कांड मे लगे जख्मों के आगे आतंकवाद में पिस रहे पाकिस्तान के आवाम के जख्मो को भूल रहे है, जरदारी के जख्मों को भूल रहे हैं।
Sunday, December 7, 2008
मुंबई, धर्मशाला और मै
Friday, December 5, 2008
क्या हमारा आक्रोश सही दिशा की ओर है
मुंबई में हुई आतंकवादी घटना के बाद देश भर में आक्रोश है। प्रत्येक व्यक्ति उसे अपने ढंग से व्यक्त करने में लगा है। कोई नेताआें को जूते मारने की बात कह रहा है, तो कोई पाकिस्तान पर हमले की सलाह का पिटारा खोले है। हरेक की अपनी ढपली एवं अपन राग है। चैनल नेताआें के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं,।
इन सब के बीच भी कुछ लोग है जो अपनी दुकान लगाए कमाई कर रहे हैं! उन्होंने देख लिया कि
लोंगो में आक्रोश है। इसे भुनाने के लिए मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियो ने अपने लोगों को लगाकर आक्रोशा व्यक्त करने वाले संदेश कुछ के मोबाइल पर भेज दिए। जिसे यह एस एम एस मिला , उसने इसे अपने मित्रों को फावर्ड कर दिया। कुछ मैसेज में तो लिख दिया कि इसे आगे बढाकर राष्ट्रभक्ति का परिचय दीजिए। हम सब ने अपने गुस्से का इजहार करने के लिए ही संदेश भेजे। क्या हुआ ,इससे देश के हालात पर कुछ असर नही पडा, हां मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियो ने जरूर लाखों रूपये के वारे न्यारे कर लिए।
इससे कुछ होने वाला नही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में पुलिस में एक साल अस्सी हजार से ज्यादा भर्ती की घोषणा की। उधर एसटीएफ के गठन की घोषणा कर दी । इससे कुछ होने वाला नही है। पुलिस कर्मी को आप देखे तो वह सबेरे से शाम तक वाहनों से वसूली करते नजर आंएगे। गुप्तचर सूचना जुटाने के लिए बनी स्थानीय अभिसूचना इकाई के साथी प्राय: पास्पोर्ट की जांच के नाम पर धन बसूल करते नजर आते है। रेलवे पुलिस का काम रेलवे संपत्ति आेर इसके यात्रियों की सुरक्षा करना है किंतु वह यात्रियों के टिकेट चैक करते या यात्रियों का लगेज ज्यादा बताकर धन वसूलते नजर आते।
एसटीएम में मनमर्जी से अधिकारियों का पोस्टिंग किया जा रहा है। इनमें बे युवक लिए जाए जो खुद कुछ कर गुजरने का हौसला रखते हों। इन्हें अलग कैडर आैर वेतन मिलना चाहिए।
हमें इस प्रकार की घटनाआें केा रोकने के लिए समीक्षा करनी होगी। कंधार विमान अपहरण कांड के समय की घटना मुझे याद आती है। मीडिया विमान अपहृताआे के परिवारों को दिखाकर बार बार यही कह रहा था कि मंत्री की बेटी के लिए आंतकवादी छोडे़ जा सकते हैं तों इनके लिए क्यों नहीं। एक फिल्म आई थी 36 घंटे! एक अखबार के संपादक के घर में चार बदमाश घुंस जाते हैं। पत्रकार अपनी बेटी आैर पत्नी को बचाने के लिए बदमाशों को पुलिस की सूचनांए एकत्र कर देने लगता है। हम सबको सोचना होगा कि इन सबसे उपर हमारा देश है। उससे उपर कोई नही है।
इन सब के साथ देश में मजबूत सुरक्षां तंत्र के साथ प्रत्येक नागरिक को एक सिपाही बनाना होगा , जो जरूरत पड़ने पर जान पर खेल कर दशमन का मुकाबला कर सके। प्राचीन युद्धकला में लठैत को बहुत मजबूत माना जाता था। लाठी चलाने मे माहिर बहुत से लोगों को इसी प्रकार मार डालता था , जैसे आज आंतकवादी मार डालता है। किंतु बुजुर्ग बताते रहे है कि लठैत का एक उपाए है कि एक आदमी भागकर उसकी कौली भर ले। वह खुद तो मरेगा या घायन होगा किंतु अन्य को तो बचा पाएगा। मुंबई रेलवे स्टेशन पर हमला करने वालो मे से एक आंतकवादी के मारे जाने के पीछे की भी तो कहानी यही है।एक सिपाही ने आतंकवादी की राइफल की नाल ही नही पकडी़, अपितु सारी गोंलिया अपने सीने पर झेली। उसने खुद जान देकर दूसरो को बचा लिया। एे से अवसरों के लिए हमे अब युद्ध के समय अपनी जान पर खेल कर समाज को बचाने की कला सीख्ननी होगी। मै श्री वेद प्रकाश वैदिक जी की इस बात का कायल हूं कि हमे पूरे देश केा इन हालात से बचने के लिए आर्मी प्रशिक्षण आवशयक करना होगा। दो साल का प्रत्येक के लिए सैनिक प्रशिक्षण आवशयक किया जाना चाहिए। आज हमारे घर पर हमला था इसलिए हम परेशान हैं किंतु आंतकवाद तो विश्व व्यापी समस्या है। इससे निपटने को हमे इंस्त्राइल जैसे देशो से देशभक्ति सीख्ननी होगी ।
बशीर बद्र के एक शेर से मै अपनी बात खत्म करता हूं..
असूलों पर जो आंच आए तो टकराना जरूरी है,
जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है।
Friday, November 28, 2008
Thursday, November 27, 2008
बेनजीर को संयुक्त राष्ट्र का मनावाधिकार सम्मान

पाकिस्तान की पूर्व प्रधान मंत्री बेनजीर भुट्टों को मरणोपरांत संयुक्त राष्टृ् का सर्वोच्च मानवाधिकार सम्मान दिया गया है। यह सम्मान मानवाधिकार की रक्षा करने वाली संस्थ्राआें अथवा व्यक्तियो को दिया जाता है। इस मौके पर मै अपना वह लेख नीचे दे रहा हूं , जो मैने बेनजीर की मृत्यु पर उन्हें श्रद्धांजलि देते समय लिखा था
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बेनजीर आैर मेरी पीढ़ी
Wednesday, November 26, 2008
यादें badrinath यात्रा 2


यात्रा, अवधि, badriinaath
Monday, November 24, 2008
मीडिया दूसरों की चिंता छोड़ अपनी चिंता करे,
र्मीडिया में आजकल विमानन, आई टी,बैंकिंग क्षेत्र में नौकरियां कम किए जाने के समाचार रोज प्रमुखता के साथ जगह पा रहे है।पे घटाने के समाचार प्रमुख लीड बनाकर छापे जा रहे हैं। यह भी आ रहा है कि बड़ी कंपनियां अपने खर्चे कम कर रही है।
इतना सब हो रहा है तो क्या मीडिया इससे अछूता रहेगा,यह कोई पत्रकार या अखबार लिखने को तैयार नही। मीडिया में निवेश की बात करने वाले चैनल को यह भी तो बताना चाहिए कि सबसे ज्यादा खराब हालत मीडिया की होनी है। यहां नई नियुक्तियों पर रोक लग चुकी है। पे नही बढ़ाई जा रही।पहले हफ्ते मे मिलने वाला वेतन अब माह के अंत मे सरक कर पंहुच गया है। बड़ी कंपनियों के खर्च कम किए जाने की बात आ रही है किंतु यह नही कहा जा रहा कि मीडिया के खर्च चलाने वाले बड़ी कंपनियों के विज्ञापन अब बंद हो चुकें हैं। या होने जा रहे हैं।मल्टीनेशनल कंपनियों के विज्ञापनों से भरे रहने वाले समाचार पत्रों के पन्ने अब खाली रहने लगे है।
वे प्रकाशन समूह जो मल्टीनेशनल कंपनियो के बूते अपने काम चलाते थे, अपने विस्तार करते थे। वे अपनी योजनाआें के विस्तार रोक रहे हैं मैंने कहीं पढ़ा था कि आईटी में प्रतिवर्ष 18 प्रतिशत रिक्तिंया निकल रही हैं तो मीडिया में 38 प्रतिशत ग्रोथ है। अब यह सब खत्म होने जा रहा है। लगता है कि अब प्रकाशन समूह अपने प्रकाशान के पेज कम करेंगे।बड़ी कंपनियों के विज्ञापन पर चलने वाले मीडिया को बहुत संकट का सामना करना होगा। चैनल पहले ही संकट में हैं। प्रिट मीडिया के सामने नई चुनौती है।सिर्फ वही मीडिया समूह इस संकट में कुछ खड़े रह सकेंगे जिन्होंने तहसील एवं जिलास्तर पर अपना विज्ञापन का नेटवर्क खड़ा किया हुआ है। यह होने के बावजूद सबकों मंदी के तूफान को झेलना है।
बहुत बड़ा संकट आने वाला है मीडिया पर, किंतु हम अपनी थाली से गायब होने वाले पकवान, मेवों पर ध्यान नही दे रहे ,हमे चिंता है तो दूसरों की थाली से कम होने जा रही रोटी की। भगवान हमे संदबुद्धि दें।
Sunday, November 23, 2008
यादें, हमारे धर्मस्थल , हमारा इतिहास
हमारे धर्मस्थल धार्मिक आस्था कें तो प्रतीक हैं। वे हमारे आस्था कें साथ-साथ आत्मविश्र्वास, सहयोग भावना ओर सहृदयता को बढ़ाते है। एक बड़ा काम यह हो रहा है कि इन स्थानों पर हमारे पारिवारिक इतिहास को संजोकर रखा जा रहा है।धर्मस्थल पर पुजारी और पंडे रहते हैं। ये धार्मिकस्थल पर जाने वाले को विधि-विधान से पूजा-पाठ तो कराते ही हैं, उसके और उसके परिवार के रहने की व्यवस्था भी करते हैं। सबसे बड़ा काम यहां यह किया जाता है कि वहां जाने वाले के पारिवारिक इतिहास को संजोकर रखने का। उनके परिवार का कौन व्यक्तिं कब आया यहां, उसके बही-खातों में तो होता ही है साथ ही इतिहास होता है। पूर्वज और बच्चों का इतिहास।अक्तूबर २००७ मे बद्रीनाथ जाने का अवसर मिला। मेरे साथ गए मेरे दोस्त नरेंद्र मारवाड़ी बद्रीनाथ में, अलवर वालो की धर्मशाला में चले गए। वहां पंडित जी से बात की वंशानुक्रम कें बारे में बताया, तो पता चला कि उनके देहरादून में रहने वाले चाचा धर्मशाला के संरक्षक हैं। जल्दी में होने के कारण शाम को उनके पास बैठना हुआ। हम भी मारवाड़ी के साथ पंडित जी के पास गए। बात करते-करते पंडित जी ने अपनी बही खोलकर उनके गोत्र का विवरण खोला तो पता चला कि उनके पिता जी 41 वर्ष पूर्व यहां यात्रा को आए थे। यात्रा को आने कें बाद हुए उनके दो बच्चों का विवरण दर्ज नहीं थे। उन्होंने देखकर उनके दादा कें बारे में बताया कि वे ९३ साल पूर्व बद्रीनाथ आए थे। दोनों कें आने की तिथि तक वही में दर्ज थी। मारवाड़ी को अपने बाबा का नाम ज्ञात था। यहां बही से उन्होंने अपने बाबा कें पिता उनके भाई, बाबा कें दादा और उनके भाईयों आदि का विवरण नोट किया। पंडित जी ने अपनी वही में मारवाड़ी से अपने औरउनके बच्चे, भाई और भाइयों के बच्चों की जानकारी नोट की। नीचे तारीख, माह,सन डालकर हस्ताक्षर कराए। ऐसा यही नहीं हर तीर्थस्थल में होता है। वहां के पंडित और पुजारी अपनी-अपनी वादियों में आने वालों का इतिहास दर्ज करके रखते हैं। 41 वर्ष पूर्व पिता के आने और 93वर्ष पूर्व दादा के आने की जानकारी पाकर नरेंद्र मारवाड़ी को तो अच्छा लगा ही किंतु इतिहास बड़ा सुखद लगा। यह भी अच्छा लगा कि यहां पुजारी पारिवारिक इतिहास वंशानुक्रञ्म का इतिहास रखे हैं। हिंदुओं में पारिवारिक विवरण दर्ज करने का प्राविधान नहीं है, किंञ्तु मुस्लिमों में पारिवारिक विवरण रखने की व्यवस्था है। इसे वे शजरा कहते हैं। यह एक पेड़ की तरह का होता है। परिवार के प्रथम पुरूञ्ष का नाम लिखकर उनके नीचे तीर का निशान बनाकर उनके पुत्र का नाम लिखा जाता है। दो पुत्र होते हैं तो दो तीर बनाए, दोनों के नाम दर्ज होते हैं। इन पुत्रों के बच्चों के विवरण तथा आने वाली संतान की जानकारी इसी प्रकार दर्ज होती जाती है।इन धार्मिक स्थलों के पुजारियों से संपर्क कर पारिवारिक इतिहास तैयार कराया जा सकता है। पुजारी कहीं जातिनुसार होते हैं, तो कहीं जनपद या क्षेत्रानुसार। किसीभी धार्मिकस्थल में जाने पर आप किसी पंडा या पुजारी से पूछे तो वह बता देंगे कि आपके परिवार, गोत्र के पुजारी कौन हैं तथा कहां रहते हैं।
Saturday, November 22, 2008
दो फोटो


हाल में एक शव के साथ गंगा बैराज जाने का अवसर मिला। अंतिम संस्कार स्थल से काफी दूरी पर कोई अजीव जी चीज खड़ी दिखाई दी । कुलबुलाहट हुई। देखा तो यह मूर्ति खड़ी थी। मोबाइल से फोटों खींचे। एक साथी ने देखकर कहा कि गंगा मे विसर्जित प्रतिमा है। किसकी है यह दूसरे ने बताया कि मोर पर सवार तो भगवान कार्तिकेय होते हैं। सो उनकी प्रतिमा है।
अब यह प्रतिमा आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है
Friday, November 21, 2008
बदरीनाथ यात्रा तीन अंतिंम
Thursday, November 20, 2008
गंगा सफाई

गंगा के प्रदूषण को लेकर हाल में हमारे प्रधानमंत्री चिंतित नजर आए। बहुत समय से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास हो रहे है। गंगोत्री से कलकत्ता तक अभियान चल रहा है किंतु मुझे नजर नही आया। मैं गंगा के तट से १२ किलो मीटर दूर बिजनौर शहर में रहता हूं। यहां में गंगा के दो फोटो डाल रहा हूं। यह फोटा गंगा बैराज के स्नान घाट के पास के हैं ।

बैराज एवं घाट की देखरेख की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग की है किंतु वह धन न होने की बात कहकर पल्ला झाड़ देता है। फोटो घाट के पास शाव दाह स्थल का है। शव दाह के शव के साथ आए व्यक्ति शव के जल जाने पर बची लकड़ियों अौर राख को गंगा में बहा देते हैं।इतना ही नही वे अपने साथ मृतक के कपडे़,रजाई,गद्दे ,कमीज ,पाजामा ,पेंट, आदि कपड़े,दवाई, मेडकिल रिपो्र्ट आदि साथ लाते एवं गंगा में डाल देते हैं।ये सामान गंगा में बहकर आगे नही जा पाता। यह वही एकत्र रहता हैं तथा जल उतरने पर दिखाई देने लगता है।इतना ही नही घरों की पुरानी देवी देवताआे की मूर्तिया, पुरानी तसवीर तथा केलेंडर आदि गंगा में लाकर डाल देते है। शादियों के पुराने कार्ड, पूजा में प्रयुक्त हुई सामग्री ,दीप आदि भी गंगा में डाले जाते हैं। इन्हें गंगा में विसर्जन करना कहा जाता है। इसका परिणाम है कि यह सामग्री गंगा को प्रदूषित करने में लगी है। सरकार एवं किसी समाजसेवी संगठन का इस आैर ध्यान नही ,यदि लोगों को इसके लिए प्रेरित किया जाए कि शाव की थोडी़ राख को गंगा मे विसर्जित कर शेष बची सामग्री गंगा के तट पर गड्ढा खोद कर उसमे डालकर गड्ढे को बंद कर दिया जाए तों गंगा को बड़े प्रदूषण से मुक्त रखा जा सकता है
Monday, November 17, 2008
