पाकिस्तान की पूर्व प्रधान मंत्री बेनजीर भुट्टों को मरणोपरांत संयुक्त राष्टृ् का सर्वोच्च मानवाधिकार सम्मान दिया गया है। यह सम्मान मानवाधिकार की रक्षा करने वाली संस्थ्राआें अथवा व्यक्तियो को दिया जाता है। इस मौके पर मै अपना वह लेख नीचे दे रहा हूं , जो मैने बेनजीर की मृत्यु पर उन्हें श्रद्धांजलि देते समय लिखा था
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बेनजीर आैर मेरी पीढ़ी
और मेरी पीढ़ी पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर अली भुट्टों के निधन से हुई क्षति के बारे लोगों की अलग-अलग राय होगी। कोई इसे जमहूरियत पर कुर्बानी करार दे रहा है तो कोई इसे पाकिस्तान में अमेरिकी पॉलिसी की हार बता रहा है । किसी का कहना है कि यह पाकिस्तान की बहुत बड़ी क्षति है तो कोई बेनजीर के पति और उनके बच्चों के लिए असहनीय हादसा मान रहा है। कुछ भी हो बेनजीर का निधन भारत में जन्मी मेरी पीढ़ी का बहुत बड़ा नुकसान है । और है उनके एक खूबसूरत सपने का अंतः। बेनजीर की मौत ने मेरी पीढ़ी के समय की धुंध में छिपे घाव को फिर कुरेद दिया। फिर से उन्हे एक नई हवा दे दी। 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ। इस जंग में पाकिस्तान को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। दुनिया के नक्शे पर बांग्ला देश नाम से नया मुल्क उभरा। भारत से सात पीढ़ी तक युद्ध करने का दंभ भरने वाले पाकिस्तान के प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को समझौते के लिए मजबूर होना पड़ा। समझौता वार्ता भारत में होनी थी। वार्ता के लिए इंद्र की नगरी जैसे खूबसूरत पर्वतीय शाहर शिमला को चुना गया। जुल्फिकार अली भुट्टो वार्ता के लिए भारत आए। उनके साथ आई सतयुग काल की अप्सरा रंभा,उर्वषी और मेनका की खूबसूरती को याद दिलाती उनकी बेटी बेनजीर । बेनजीर वास्तव में बेनजीर थी। जब यह भारत आई तो उसकी उम्र 19 साल के आसपास रही होगी। उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा की मृगनयनी जैसी बेनजीर मेरी पीढ़ी के युवाओं को रांझा बना देने के लिए काफी थी।आज मेरी पीढ़ी बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ी है। बेनजीर के शिमला आने के समय वह नौजवान थी। उसकी उम्र 18 से 21 साल के बीच रही होगी। प्रत्येक नौजवान की तरह इसके भी अपने - अपने सपने थे। सबकी अपनी अपनी हीर थी ,सबकी अपनी -अपनी राधा थी। मेरी जवानी के दौर की प्रसिद्ध हिरोइन थीं- मधुबाला,मीना कुमारी,आशा पारिख,वहीदा रहमान आदि- आदि।हरेक नौजवान की तमन्ना थी कि उसकी सपनों की रानी इनसे कुछ कम न हो। बेनजीर भारत आई तो समझौते की खबरों के साथ-साथ उसकी खूबसूरती,स्टाइल की खबरें मेरी पीढ़ी को मिली। इन खबरों ने उसकी सपनों की रानी की छवि ही बदल दी। उस समय के हर नौजवान की तमन्ना हुई कि उसके आंगन की तुलसी कोई और नही सिर्फ- और सिर्फ बेनजीर हो।उस समय समाचार सुनने के लिए रेडियो ही था। मेरी पीढ़ी ने शिमला समझौते के समाचार आकाशवाणी और बीबीसी से सुने। भारत युद्ध में जीत चुका था। देश भक्ति का जोश सबमें भरा था। हरेक जानना चाहता था कि शिमला में क्या हो रहा है, किंतु मेरी पीढ़ी की इच्छा यह जानने में रहती कि बेनजीर कैसी हैं। क्या पहने हैं,क्या कर रही है। परिवार से बचकर छुपकर या परिवार वालों के समाचार सुनने के दौरान बुलैटिन में बेनजीर के बारे में प्रसारित होने वाले समाचारो को सुनने की उत्सुक होती। अखबारों में छपे बेनजीर के फोटो ,उसकी चर्चा में युवाओं की ज्यादा रूचि रहती। आपस में चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा उस समय बेनजीर ही रही।शिमला के बेनजीर के प्रवास के पांच दिन मेरी पीढ़ी के युवाओं में एक ऐसा अहसास और ऐसा नशा भर गए कि उनके सपनों की रानी ही बदल गई। बेनजीर के भारत से वापस जाने का बहुत अहसास रहा। उनकी तमन्ना यह थी कि यह परी भारत के आंगन को ही महकाए।पर ऐसा हुआ नहीं।शिमला वापसी के बहुत दिन बाद तक मेरी पीढ़ी के युवाओं ने जमकर आहें भरी। कुछ की यह दीवानगी तो काफी समय तक जारी रही।वख्त के साथ साथ जिंदगी की 35-36 साल की जददोजहद में बहुत कुछ पीछे छूट गया। बेनजीर की यादें भी धुंधला गईं । जीवन के इस सफर में क्या छूटा पता नहीं,किंतु जो मिल गया उसको मुकद्दर समझकर जीवन की जंग जारी रखी। जवानी के तेज से चमकने वाली आंखों पर कब चश्मा आ गया ,केशा?वदास के सफैद बालों को देख सोने के बदन वाली मृगलोचनी कब बाबा कहने लगी,पता नही चला। किंतु बेनजीर के निधन के समाचार ने मुझे आज 35-36 साल पीछे धकेल मेरी पीढ़ी की जवानी की, उसकी हीर , उसकी उर्वश की याद ताजा करा दी। जिंदगी की जंग में मेरी पीढ़ी ने हार नहीं मानी। बहुत कुछ खोने के बाद भी दुनिया के विकास में कोई कसर नही छोड़ी ,किंतु जवानी का बेनजीर जैसा खूबसूरत सपना टूट जाए ,तो बहुत ज्यादा मलाल होता है। पाकिस्तान , पाकिस्तान के आवाम को नुकसान हुआ हो या नही किंतु बेनजीर के निधन से हिंदुस्तान की मेरी पीढ़ी को तो बहुत नुकसान हुआ है।
1 comment:
बहुत खूब अशोक जी, अगली पोस्ट का इंतजार है..
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