Saturday, November 18, 2023

ऐसे संयुक्त राष्ट्र संघ औचित्य क्या है?

ऐसे संयुक्त राष्ट्र संघ औचित्य क्या है? अशोक मधुप पिछले एक माह से ज्यादा समय से हमास पर इस्राइल के हमले जारी हैं।रूस− यूक्रेन युद्ध एक साल दस माह से ज्यादा से जारी है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में की गई बरबादी पूरी दुनिया ने देखी। संयुक्त राष्ट्र संघ मानव जीवन की बरबादी देख रहा है। यह असहाय बना बैठा है। मानव जीवन का विनाश रोकने के लिए वह कुछ नही कर पा रहा।उसकी भूमिका शून्य होकर रह गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नही कर सकता। मानव जाति का विनाश रोक नही सकता।युद्ध रोकने की उसकी शक्ति नही तो उसका औचित्य क्या है? क्यों कोई देश उसका सदस्य बने।ऐसे नाकारा संगठन को भंग क्यों न कर दिया जाए। पूरी दुनिया में शांति स्थापना के लिए बना संयुक्त राष्ट्र संघ अब हाथी के सफैद दांत बन कर रह गया। वह सिर्फ दिखाने मात्र को है।संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज क्या हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में सक्षम नहीं है। हमास− इस्राइल युद्ध एक माह से ज्यादा से जारी है।हमास ने पहले इस्राइल पर अचानक बड़े पैमाने पर हमला किया। 20 मिनट में पांच हजार से ज्यादा राकेट दागे।इस्राइल में घुंसकर उसके नागरिकों का संहार किया। महिलाओं को सड़कों पर नंगाकर घुमाया गया। बच्चों , महिलाओं समेत इस्राइलवासियों का निर्ममतापूर्वक कत्ल किया गया। 250 से ज्यादा इस्राइली नागरिक बंधक बनाकर ले गए। ये घटना के एक माह बाद भी उनके कब्जे में हैं। अब हमास− इस्राइल युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रयास चल रहे हैं।कई बार प्रस्ताव के प्रयास हुए पर विटो पायर वाले देशों के अडंगे के कारण कुछ नही हो सका।हाल में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस युद्ध को रोकने के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव स्वीकार किया , किंतु इस्राइल ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। होना यह चाहिए था कि प्रस्ताव होता कि हमास ने इस्राइल पर हमला किया है, वह इस्राइल के नुकसान की भारपाई करे।इस्राइल के बंदी रिहा करे।ये भी व्यवस्था होती कि भविष्य में हमास ऐसा दुस्साहस न कर सकें। इसके बाद इस्राइल से कहा जाता कि वह युद्ध रोके,किंतु पूरी दुनिया जानती है कि हमास किसी की सुनने वाला नही। जब हमास सुनने वाला नही तो इस्राइल पर ही दबाव क्यों दिया जाए, कि वह युद्ध रोके।हमास ने इस्राइल पर हमला कर पहल की है। अब ये इस्राइल को तै करना है कि वह क्या करता हैं। कितना लड़ता है। कहां तक लड़ता है।इसका कहना है कि अब वह हमास को खत्म करके ही रूकेगा।दूसरे यदि हमास द्वारा बंदी बनाए इस्राइली नागरिक रिहा हो जांए तो इस्राइल का रवैया कुछ नरम हो सकता है, किंतु ऐसा कुछ होता नही दीख रहा। सब चाहतें हैं कि इस्राइल युद्ध रोके । कोई ये पहल नही कर रहा कि पहले हमास इस्राइल के बंदी रिहा करे। इस्राइल के हमलों में बच्चों और महिलाओं के मरने की बात हो रही है। हमास के हमले में इस्राइल में बच्चों− महिलाओं का जिस तरह कत्ल किया गया, उनकी गर्दन काटी गई। नंगा घुमाया गया, उसका कहीं जिक्र नही हो रहा। इस तरह का दूहरा आचरण दुनिया का विखंडित ही करेगा, रोकेगा नही। पिछले एक साल दस माह से रूस −यूक्रेन युद्ध जारी है। इस युद्ध में मरने और घायल होने वाले दोनों देशों के सैनिकों की संख्या पांच लाख के आसपास है।अपने सैनिकों की मौत के बारे में न रूस कुछ बता रहा है, न ही यूक्रेन।न्यूयार्क् टाइम्स ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से अगस्त में कहा है कि रूस इस युद्ध के नुकसान के बारे में कुछ नही बता रहा।यूक्रेन भी चुप्पी साधे है।अनुमान के मुताबिक युद्ध से रूस के तीन लाख सैनिक प्रभावित हुए हैं।एक लाख तीस हजार सैनिक की मौत हुई है।वहीं एक लाख सत्तर हजार से एक लाख अस्सी हजार तक सैनिक धायल हैं।वहीं यूक्रन के 70 हजार के आसपास सैनिकों की मौत हुई है।जबकि एक लाख से एक लाख बीस हजार तक घायल हुए हैं। इस युद्ध में पांच लाख से ज्यादा परिवार विस्थापत हुए।इतना सब होने के बाद भी संयुक्त राष्ट्र इस युद्ध को नही रोक पाया। न रोक पा रहा है।इस युद्ध से दोनों देशों के विकास तो रूका ही। मानव कल्याण के लिए भवन, पुल,स्कूल और उद्योग खंडहर बन गए। ये दोनों देश बड़े नाज उत्पादक देश हैं। इनके युद्ध के कारण दुनिया के अन्य देशों को होने वाली अनाज की आपूर्ति रूकी है। इससे पूरी दुनिया में मंहगाई बढ़ रही है। आज संयुक्त राष्ट्र महासभा एक ऐसा संगठन बनकर रह गया है जो कुछ देश के हाथों की कठपुलती है। न अपनी ताकत का प्रयोग कर सकता है ना अपनी क्षमता का। संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज के हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में वह सक्षम नहीं है। पांच विटो पावर देश उसे अपनी मर्जी से नचा रहे हैं।उनके एकजुट हुए बिना संयुक्त् राष्ट्र महासभा कुछ नही कर सकता।ये पांचों विटो पावर देश खुद खेमों में बंटे है।ऐसे में सर्व सम्मत प्रस्ताव पास होना एक प्रकार से नामुमकीन हो गया है। म्यांमार में सेना का जुल्म कायम है। चीन में उइगर मुसलमानों पर जुल्म जग जाहिर हैं। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। उसके यहां सरे आम आतंकवादियों को प्रशिक्षण दे रहा है। यह इन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहा।तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की बरबादी दुनिया ने देखी ।तालिबानी मदरसे तो उड़ाते ही रहे । लड़कियों के स्कूल तोड़े और जलाए ।औरतों की आजादी और शिक्षा खत्म कर दी गई। उन्हें घर की चाहरदीवारी में कैद कर दिया गया।पूरा विश्व सब देखता रहा। कोई कुछ नही कर सका। संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज क्या हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में सक्षम नहीं है। । कोरोना से दुनिया में हुई लाखों मौत के सूत्रधार को वह नही खोज पाता। दुनिया में शांति स्थापना और निरपराध का कत्ल रोकने उसकी क्षमता नहीं, फिर ऐसे संयुक्त राष्ट्र की क्या जरूरत है। हर एक को अपनी डफली अपना राग अलापना है तो क्या फायदा। जब ताकत की ही पूजा होनी है तो इस फालतू के बोझ को क्यों झेला जाए?अब समय आ गया है कि एक बार फिर से सोचा जाए किस संयुक्त राष्ट्र संघ क्योंॽ इसका क्या लाभ ॽक्यों इसका बोझ पूरी दुनिया ढोएॽ कैसे बर्दाश्त किया जाए ॽक्यों कुछ ही देशों के हाथ में वीटो पावर दे कर के उन्हें दुनिया के सामने नंगा नाच नाचने की अनुमति दी जाए । आज जरूरत आ गई है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की उपयोगिता पर विचार किया जाए ।इसे उपयोग उपयोगी बनाने पर कार्य किया जाए। खड़ा किया जाए ऐसा ढांचा कि एक देश दूसरे देश का मददगार बने।मुसीबत में उसके साथ खड़े हो ,उसकी रक्षा कर सकें। ऐसा नहीं आपदा के समय सिर्फ तमाशा देखें । सब दुनिया के सभी देश बराबर हैं तो पूरी दुनिया के पांच देशों को ही वीटो पावर का अधिकार क्यों ॽइस पर विचार किए जाने की जरूरत है ।यह प्रजातंत्र है ।संयुक्त राष्ट्र संघ में डिक्टेटरशिप लागू नहीं है जो किसी का निर्णय फाइनल होगा। किसी निर्णय को रोक सकेगा। आज के हालात में सामूहिकता बढ़ाने ,सामूहिक निर्णय पर चलने ,सामूहिक विकास का सोचने की जरूरत है। और एक ऐसे संगठन की दुनिया को जरूरत है जो निष्पक्ष और तटस्थ होकर के पूरी दुनिया में शांति स्थापना के लिए काम कर सके। ऐसे संगठन की जरूरत नहीं है जिसमें चार या पांच दादाओं का ही निर्णय चलें। अशोक मधुप

No comments: