Saturday, November 4, 2023

प्रदूषण रोकने को जमीन से आक्सीजन क्यों नही उगाते?








 अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

 दिल्ली एनसीआर समेत 30 के आसपास नगर  आज बुरी तरह प्रदूषण की चपेट में हैं। बृहस्पतिवार के आंकडों के अनुसार दिल्ली की हवा  काफी  जहरीली हो गई है। इंडिया गेटअक्षरधामरोहिणीआनंद विहार समेत 13 इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 400 के ऊपर दर्ज किया गया। एक्यूआई 300 से ऊपर की रेंज बेहद खतरनाक कैटेगरी में मानी जाती है।हवा की क्वालिटी खराब होने पर कमीशन फॉर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने दिल्ली-एनसीआर में  में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के थर्ड स्टेज को लागू कर दिया। GRAP का स्टेज III तब लागू किया जाता है जब एक्यूआई 401-450 की सीमा में गंभीर हो जाता है।इसके चलते गैर-जरूरी निर्माण-तोड़फोड़ और रेस्टोरेंट में कोयले के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। बीएस−3 पेट्रोल और बीएस−4डीजल चार पहिया वाहनों के इस्तेमाल पर सरकार ने 20 हजार रुपए चालान काटने का निर्देश दिया है।मुख्यमंत्री  अरविंद केजरीवाल ने पांचवीं क्लास तक के सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों को शुक्रवार और शनिवार के लिए बंद करने का आदेश दिया है। दिल्ली में प्रदूषण पर अपोलो हॉस्पिटल के डॉ. निखिल मोदी ने लोगों को मास्क पहनने की सलाह दी है।प्रदूषण के कारण दिल्ली−एनसीआर  में  रहने वालों की अस्थमा जैसी बीमारी विकसित हो  रही हैं । प्रदूषण  बढ़ने से यहां रहने वालों की आयु कम हो रही है। सासें कम  हो रही हैं। हालत अन्य घनी आबादी वाले महानगरों की होती जा रही है। जाड़े शुरू होते ही सांसों पर संकट आ जाता है। दिल्ली एनसीआर में सरकारी  स्तर के प्रयास असफल होते देख  हर वर्ष सर्वोच्च  न्यायालय को दखल देना पड़ता है। सर्वोच्च  न्यायालय प्रदेश  सरकारों से प्रदूषणा रोकने के किए जा रहे उपाए पूछता है। प्रदेश  सरकार उपाय के नाम पर की गई  खानापूरी से अवगत करा देती हैं। मामला  अगले  साल के लिए टल जाता  है।अगले साल शीत का मौसम आते ही फिर प्रदूषण की समस्या खड़ी हो जाती है।प्रदूषण  की इस समस्या के स्थाई  निदान  के प्रयास क्यों  नही होतें? प्रदूषण  वाले क्षेत्र  में  आक्सीजन क्यों  नही उगाई  जाती। क्यों नहीं सांसों के लिए जमीन से आक्सीजन उगाने के प्रवंध होते।प्रदूषण  दूर करने के हमारे प्रयास कृत्रिम होते हैं।प्रकृति प्रदत्त संसाधन बढ़ाने की ओर हमारा ध्यान क्यों नहीं?इसके लिए हम अभियान क्यों नही चलाते?  

आक्सीजन उगाने का प्रयोग उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में एक भागीरथ  ने शुरू किया। पिछले तीन साल में बिजनौर में  इतनी आक्सीजन उगा दी कि  आने वाली सन्तति भी  उसका लाभ  उठाएंगी।   कोरोना  काल में आक्सीजन की कमी को लेकर मारामारी मची थी।  पूरी दुनिया  आक्सीजन के लिए  परेशान थी।आक्सीजन सिलेंडर पर भारी ब्लैक था।एक −एक सिलेंडर के लिए हाय− तौबा मची थी,तब उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग में कार्यरत बिजनौर नगर के विक्रांत  शर्मा  के मस्तिष्क में    जमीन से आक्सीजन उगाने का विचार आया।आइडिया   आया कि आज इंसान की सांसों  का संकट  है। सांसों के लिए आक्सीजन चाहिए।आक्सीजन को मशीन से पैदा करने की जगह जमीन से क्यों न पैदा किया जाए। इसके  लिए उन्होंने पढ़ा और सोचा कि  शहर के आसपास ऐसे  वृक्ष   लगाए जाएं जो  24 घंटे  आक्सीजन देतें  हो।बस  वह इस भगीरथ अभियान में लग गए।कोरोना  काल में जब लोग घरों में बंद थे। वे अपने बेटे को लेकर सवेरे रेलवे  लाइन और सड़क से  निकल  जाते। यहां  उन्हें  पीपल,  बरगद,  नीम आदि  के 24 घंटे आक्सीजन देने वाले जो  पौधे  दिखाई  देते,  उन्हें आराम से निकाल लेते।इन पौधों को  लाकर ये शहर की सड़कों के किनारे खाली जगह पर लगाने लगे।इनके इस कार्य को देख इनकी पत्नी  ने इन्हें पिट्ठू  बैग सिल  दिए।  अब ये  पौधे निकालते  और पिट्ठू  बैग में रख  लेते।विक्रांत शर्मा ने ये पौधे  लगाए ही नही। उन्हें पानी दिया और पाला भी। पौधों की सुरक्षा के लिए  ये  बांस खरीदते।उसकी खप्पच बनाते ।इन खप्पचों को पौधे के चारों और जमीन में गाड़कर पर सबको आपस में बांध देते।पौधों की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर  पुराना  कपड़ा लगा  देते।इनके इस जुनून  को देख काफला बनना  शुरू हो गया।  इस काफले को इन्होंने नाम दिया  पर्यावरण  प्रहरी।आज इस काफले में 150 के  आसपास कार्यकर्ता हैं। 16 के आसपास महिलायें भी इस संगठन से  जुड़ी हैं।ये अपने− अपने क्षेत्र में खाली  जगह में पौधे  लगाते  हैं।उन्हें नियमित पानी देते  और देखभाल करते है।  इन पर्यावरण प्रहरियों ने  दो−ढाई किलोमीटर में बसे  बिजनौर शहर में आज साढे   चार हजार से कहीं  से ज्यादा  आक्सीजन देने वाले पौधे  लगा  दिए।  अकेले  इसी बरसात में एक हजार  से ज्यादा पौधे  रोपें।इनकी उपलब्धि यह है कि इनके लगाए 90  प्रतिशत पौधे  चल रहे हैं।  वे ही नही चले,जिन्हें किसी ने उखाड़ दिया  या जला दिया। । बीते रक्षाबंधन पर इन पर्यावरण प्रेमियों ने  नगर में संकल्प रैली निकाली। अपने लगाए  पौधों को रक्षा सूत्र बांधे और उनकी देखरेख तथा  सुरक्षा का  संकल्प  लिया।   ये पर्यावरण  प्रेमी  ग्रीष्मकाल में यह सेवा कार्य प्रातः 05:30 से 07:30 तक व शीत ऋतु में छह बजे से आठ बजे तक कम से कम दो घण्टे अवश्य करते  हैं। इस सेवा कार्य को इन्होंने प्रकृति वन्दन का नाम दिया गया है।सुबह सबेरे ये पर्यावरण  प्रेमी नियमित रूप से प्रकृति की सेवा में लगातें हैं।  उसके बाद अपने− अपने कार्य में लग जाते हैं। विक्रांत बताते  हैं  कि लगभग  तीन साल के अपने इस कार्य में उन्होंने पाया कि पीपल और बरगद प्रायः  जंगल  में नही मिलते।ये पुरानी बस्तियों में  बहुतायत ये पाए जातें  हैं। पुराने शहर और पुराने भवन में पीपलबरगद और नीम के पौधों का  बहुतायात ये मिलने का कारण संभवतःउस क्षेत्र में आक्सीजन की कमी का होना  है।प्रकृति शायद इस कमी को महसूस  करती है।इन हर समय  आक्सीजन देने   वाले पौधों को उसी पुरानी आबादी में उगाती है।

जो काम बिजनौर शहर में विक्रांत शर्मा ने अकेले किया। वहीं काम सरकारी स्तर पर क्यों नही होता।  सरकार  प्रत्येक वर्ष  बरसात में पौधरोपण  करती हैं। करोड़ों पौधे  लगाती हैं।यदि  इनकी जगह  24 घंटे  आक्सीजन देने वाले पौधे  लगाए जांए तो कितना  बेहतर हो।सड़कों के डिवाइडर पर हम शो  के फूल वाले  पौधे लगाते हैं।इस जगह यदि  24 घंटे ऑक्सीजन  देने  वाले  आमरिका बामएलोवेरीतुलसीवाइल्ड जरबेरास्नेक प्लांटआरकिडक्रिसमस केक्टस लगांए तो ज्यादा बेहतर रहेगा। नोयडा में  कुछ मार्ग पर पीपल  लगाने का  काम हुआ  भी है। गर्मी के दिनों में बरगद छाया के साथ ठंडक प्रदान करता है। वट वृक्ष दिन ही नहींबल्कि रात में भी ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। वट वृक्ष में फैलाव अधिक होने के चलते ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलती है। इसके अलावा वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से वट वृक्ष यानि बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है। विज्ञानियों का कहना है कि बरगद पेड़ अन्य पेड़-पौधे की अपेक्षा चार-पांच गुना अधिक ऑक्सीजन देता है। शुद्ध हवा और प्रकृति ऑक्सीजन से शरीर निरोगी रहता जिस जगह बरगद पेड़ होता है उसके आसपास के 200 मीटर का क्षेत्र ठंडा रहता है।  24 घंटे आक्सीजन देने वाले आमरिका बामएलोवेरीतुलसीवाइल्ड जरबेरास्नेक प्लांटआरकिडक्रिसमस केक्टस को सोसायटी,  कॉलोनी, बस्ती के संकरे  रास्ते घर  के आसपास ,मकान की छतों  पर भी  लोगों को  लगाने के लिए प्रेरित किया  जाना  चाहिए। इन जगह के रहने वालों को  इन पौधों को लगाने के  लाभ  बतांए  जांए।कुछ एनजीओ को भी  इस कार्य के लिए प्रेरित किया जा सकता है।राजकोट गुजरात में एक वृद्धाआश्रम सेवा   समिति  इस कार्य में लगी हैं।  ये डिवाइडर पर भी  सहजन के  आठ− दस  फिट के पौधे  लगा रही है।    

एक बात और  विकास के नाम पर पेड़  काटें  न जाए।उनको  शिफ्ट किया जाना चाहिए।  इसके कार्य  में  कर्नाटक  आदि में कुछ कंपनी लगी भी है।  सड़को को चौड़ा करते समय किनारे  के पेड़  डिवाइडर पर लगाए जा सकतें हैं।

जाड़ों में आने  वाले  सांसों के संकट का खत्म करने के लिए आक्सीजन उगाने और नगरों को  आक्सीजन बैंक  में बदलना  होगा। ये भी ध्यान रहे कि आज का लगाया  पौधा  आगे 50−60  साल तक जीवित रहकर जनता को मुफ्त में आक्सीजन देगा। पीपलबरगद और नीम की आयु तो  अन्य वृक्षों से  और भी ज्यादा होती है।  हमारा आजका  लगाया  पौधा हमारी आने  वाली पीढ़ियों   को भी  भरपूर  आक्सीजन देता रहेगा।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)





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