Saturday, November 18, 2023

कागजी ही रहा एससी का पटाखों पर रोक का आदेश

अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार सर्वोच्च न्यायालय का दीपावली पर आतिबाजी की रोक का आदेश कागजी ही रह गया। दीपावली पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने राजधानी दिल्ली एनसीआर में पूरी तरह आतिशबाज़ी पर प्रतिबंध लगाया था । सुप्रीम कोर्ट ने सात नवंबर को यह भी कहा था कि बेरियम युक्त पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश हर राज्य पर लागू होता है। आदेश हुआ। आदेश सरकारों को भी गया। आदेश को लागू करने वाली नियामक एसेंसियों को भी गया। किंतु इसका असर कहीं दिखाई नही दिया। दीपावली पर आतिशबाजी के प्रतिबंध के बावजूद राजधानी दिल्ली और एनसीआर में जमकर पटाखे फोड़े गए। अन्य प्रदेशों में तो लगा ही नही कि कहीं कोई आदेश भी है। दिल्ली एनसीआर की रिपोर्ट के अनुसार रविवार (12 नवंबर) को दीपावली के दिन सुबह से ही कई इलाकों में आतिशबाजी शुरू हो गई थी जो शाम होते ही बड़े पैमाने पर बढ़ती चली गई। राजधानी के कमोबेश हरेक इलाके समेत एनसीआर में हर तरफ रात करीब 10 बजे तक चंद सेकेंड के अंतराल पर 90 डेसीबल की आवाज की सीमा को पार कर पटाखों का शोर सुना जाता रहा है। दस बजे के बाद भी कई जगह से पटाखों के छूटने की आवाज आती रही।इस भारी आतिशबाजी के कारण और इसकी वजह से दिल्ली−एनसीआर में प्रदूषण भी सामान्य से कई गुना बढ़ गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी ) के आंकड़े के अनुसार दिल्ली में सोमवार (13 नवंबर) की सुबह ही एयर क्वालिटी इंडेक्स (आईक्यूआई) 296 रहा जो सामान्य से करीब छह गुना अधिक है। सीपीसीबी के मुताबिक –तड़के 2.5 पर और छह बजे लोनी गाजियाबाद में एक्यूआई- 414 था जबकि नोएडा सेक्टर 62 में - 488 , पंजाबी बाग - 500 और रोहिणी में एक्यूआई 456 रहा है। आईक्यूआई के डाटा के मुताबिक सोमवार को दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित शहर है. यहां सुबह पांच बजे दिल्ली में वायु गुणवत्ता का स्तर 514 पर है जो खतरनाक रूप में चिन्हित है। मौसम एजेंसी एक्यूआईसीएन.ओआरजी के अनुसार दिल्ली के आनंद विहार क्षेत्र में वायु प्रदूषण सबसे खराब दर्ज किया गया है। यहां सुबह पांच बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर पर 969 था ।यह सामान्य से 20 गुना अधिक है। हालाकि दीपावली के दिन रविवार को राजधानी दिल्ली में इस साल साफ हवा रही। उसने ने पिछले इठ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, राजधानी में रविवार सुबह साफ आसमान और खिली धूप के साथ हुई और शहर के वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 218 रहा, जो पिछले आठ साल में दीपावली के दिन सबसे कम था। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में पिछले साल दिवाली पर एक्यूआई 2022 में 312, 2021 में 382, 2020 में 414, 2019 में 337, 2018 में 281, 2017 में 319 और 2016 में 431 दर्ज किया गया था. अपने आदेश में वायु प्रदूषण से जूझ रहे दिल्ली एनसीआर के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर लिया था की राजधानी में आतिशबाजी नहीं होनी चाहिए। दिल्ली में तो आतिशबाजी रूकी ही नही। पूरे देश में भी ये ही साल रहा। जमकर बेरियम युक्त पटाखे फोड़े गए। देश के अन्य प्रदेशों में तो लगाही नही कि बेरियम से बने पटाखों पर रोक है। वहां तो हर साल जैसा ही माहौल रहा। आतिशबाजी का जमकर प्रयोग हुआ। रात एक बजे तक जमकर आतिशबाजी हुई। उसके बाद भी पटाखें छूटने की आवाज आती रहीं। दरअस्ल हर साल दीपावली से कुछ पहले ही पटाखों के प्रयोग का आदेश होता है। इनके निर्माण और बिक्री पर रोक का आदेश नही होता। 12 नवंबर को दीपावली थी। यह आदेश सात नवंबर को हुआ तब तक आतिशबाजी बड़ी संख्या में बाजार से छोड़ने वालों के पास पंहुच गई थी। आतिशबाजी की आवाजाही प्रायः बरसात के मौसम में होती है।ऐसा इसलिए होता है कि तुरंत बनी नमी वाली आतिशबाजी को ले जाने के दौरान ऐसा न हो।सुरक्षा के लिहाज से आतिशबाजी बरसात में ले जाई जाती है। जो बरसात में ही बाजार में या व्यापारियों के गोदाम में पंहुच जाती है। इस सीजनल सामान से व्यापारी को भी गोदाम खाली करने होते हैं।इसलिए उन्होंने इस आदेश को धत्ता बताया और अपना माल बेचा। इस तरह का आदेश नियामक एजेंसियों के लिए भी लाभकर होता है। वे जानती है कि व्यापारी मानेगा नहीं।इसलिए वह भी इसे अपने आर्थिक हित में मान उनके बिकी करने को नजर अंदाज कर देते हैं।एक बात और दीपावली पर आतिशबाजी हिंदुओं की आस्थाओं से जुड़ी है।पिछले कुछ दिन से इस प्रकार का अभियान चल रहा है। कुछ लोग प्रचार कर रहे हैं कि बहुंसख्यकों की धार्मिक आस्थाओं के मामले में न्यायालय इस तरह के आदेश करते हैं। अन्य लोगों की आस्थाओं के बारे में नहीं। ऐसे में अब इन आदेश के विपरित बहुसंख्यक आचरण करने लगे हैं। जानकर वह आतिशबाजी छोड़ते हैं।दिखाते हैं कि उसकी आस्था का मामला है,वह आदेश तोड़ेगा। न्यायालय के आदेश को लागू करने वाली एजेंसी और पुलिस आम लोगों का क्यों विरोध ले,इसलिए वह भी चुप्पी साध लेतें है। न्यायालय हर साल आदेश करता है। करता है दीपावली से कुछ पूर्व । जब वह जानता और मानता है कि बेरियम वाले पटाखें नुकसान दायक हैं।पूरे देश में उनके प्रयोग पर उसने रोक भी लगाई है।प्रश्न यह है कि बेरियम युक्त पटाखों के प्रयोग पर ही रोक क्यों लगती है। उनके निर्माण पर रोक क्यों नही लगती। सर्वोच्च न्यायालय एक बार आदेश पर इनके निर्माण पर रोक लगवा दे।ज्यादा आवाज करने वाले पटाखों के निर्माण पर भी प्रतिबंध लगा दे। आदेश के पालन से जुड़ी एजेंसी को सख्त आदेश करे कि इनका निर्माण ही न होने दिया जाए।समय− समय पर आतिशबाजी निर्माताओं के प्रतिष्ठानों का निरीक्षण कर देखा जाए कि आदेश का पालन हो रहा है, या नही। अपने इस आदेश की मोनिटरिंग को आदेश जिला न्यायालयों को सौंपे।ऐसा आदेश होगा तभी घातक श्रेणी के पटाखों पर रोक लग सकेगी। एक चीज और न्यायालय के आदेश के साथ ही प्रदेश सरकार और नियामक एजेंसियों को इनके प्रयोग पर रोकके ,इनके बारे में जनजागरण अभियान चलाना होगा। जनजागरण अभियान में समाज और जनता को बताना होगा कि ये पटाखें, अतिशबाजी प्रदूषण बहुत करती हैं। ये हमारे स्वास्थय के लिए हानिकारण है। नुकसानदेह है। अस्थमा के साथ कई तरह की बीमारी पैदा करते हैं। हमें अपने और अपने परिवार के स्वास्थय के लिए इतना प्रयोग नही करना चाहिए।ये ही बात पटाखा निर्माताओं को समझानी होगी, तभी इन पर रोक लग सकेंगी। बेरियम से बने पटाखें क्या हैं? उनके नुकसान क्या हैं? इसके लिए भी जनजागरण चलाने की जरूरत है। एक बात और न्यायलय को पटाखों पर बिक्री पर रोक के आदेश से पूर्व यह भी देखना चाहिए कि भारत चीन के बाद दूसरा सबसे ज्यादा पटाखा उत्पादक देश है। । तमिलनाडु के शिवकाशी में पहली पटाखा फैक्ट्री शुरू हुई। आज शिवकाशी भारत में पटाखों का सबसे बड़ा बाजार है। देश के 85 प्रतिशत पटाखे सिर्फ शिवकाशी में ही बनते हैं। भारत में पटाखों का शिवकाशी का ही व्यापार 2600 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।बाकी पटाखे भारत में आतिशबाजों द्वारा अपने स्तर पर परंपरात ढंग से लघू उद्योग के रूप में बनाए जाते हैं। उनके उत्पादन और उनके बाजार के कोई आंकडे नही हैं।न्यायालय को ये भी देखना होगा कि लगभग 3000 करोड़ रूपये का यह व्यापार चलता भी रहे। केंद्र और प्रदेश सरकारों को भी चाहिए कि वह पटाखा निर्माताओं के लिए ऐसी तकनीकि विकसित कराकर इन्हें अवगत कराए कि पटाखों से कम से कम प्रदूषण हो।भारतीय पटाखा उद्योग को ग्रीन पटाखें विकसित करने के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा। अशोक मधुप ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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