अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
अयोध्या में चल रहा महाकुंभ पूरी दुनिया आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. दुनिया के लोग इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं.ज्यादा से ज्यादा समझना चाहतें हैं. सबकी समझ में यह नही आ रहा कि कुंभ में करोड़ों तीर्थ यात्री क्यों अपने आप मात्र एक स्नान के लिए परेशानी झेलने, जान जोखिम में डालने के लिए चले आतें हैं. आसपास के श्रद्धालु आएं तब भी माना जा सकता है किंतु ये तो पूरे भारत से आ रहे हैं. इस मेले के लिए विदेशों में बसे भारतीयों में तो आकर्षण है ही,काफी दूसरे संप्रदाय और धर्म वाले भी रूचि रखते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार तो अब तक इस मेले में 38 करोड़ से ज्यादा लोग आकर स्नान कर चुके हैं. पूजन कर चुके हैं. ये सब पूर्ण लाभ कमा रहे हैं. सरकार का मानना है कि इस महाकुंभ में आने वालों की संख्या 40 करोड़ से ज्यादा हो सकती है.
महाकुंभ में उत्तर दक्षिण, पूरब पश्चिम के भेद को खत्म कर दिया. मेले में स्नान के लिए आने वाले आर्य भी हैं तो द्रविड़ भी हैं. सवर्ण भी आए तो दलितों ने भी आकर स्नान किया. पिछड़ी जाति वालों ने भी आकर त्रिवेणी स्नानकर पुण्य लाभ अर्जित किया. कहीं कोई भेदभाव नहीं.कहीं कोई छुआछूत नहीं. कोई विद्वेष नही. स्नान के समय दलित सवर्ण और पंडित का हाथ पकड़कर कहीं सहारा देता दिखाई दिया, तो कहीं सवर्ण दलित की मदद करता नजर आया.कुंभ की श्रद्धा ने, सनातन की आस्था ने सब भेद−भाव समाप्त कर दिया. भंडारे में सब एक ही पंक्ति में बैठकर खाना खाते नजर आए.कुंभ को देखकर, कुंभ के श्रद्धालुओं को देखकर कोई ये नही मान सकता था कि जाति –पातिं, छुआ −छूत और ऊंच −नीच में बंटा सनातन समाज आपस में ऐसे भी मिलकर रह सकता है। यहां के लिए मौजू तो नही किंतु अल्लामा इक़बाल का ये शेर फिट बैठता है− एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद व अयाज़, न कोई बंदा रहा और ना कोई बंदा नवाज़'.
इस महाकुंभ में अधिकतर आने वाले तीर्थ यात्री भारत से तो थे ही, दुनिया भर के देशों से भी आए. अंग्रेज आये तो सिखों ने भी पूर्ण लाभ कमाया. मुस्लिम भी इस मेले में शामिल होने के लिए पहुंचे. इस मेले में आने वाली न अलग धर्म से थे, नहीं जाति से. वे सब सनातनी थे. ये सब वे थे, जिनकी सनातन धर्म ,सनातन मान्यताओं में आस्था है.
कुम्भ मेले में आने वाले को सुविधा और आराम उपलब्ध कराने में अयोध्यावासियों ने कोई कसर नही छोड़ी। उन्होंने होम स्टे के नाम पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को अपने घरों में टिकाया. भोजन कराया. परिवार के सदस्यों की तरह रखा. अयोध्या के मुसलमान ने भी पूरी शक्ति और लग्न से इन कुंभ यात्रियों का स्वागत किया. सम्मान किया. उन्होंने श्रद्धालुओं के लिए गाइड का काम किया. उन्हें घाट तक पहुंचाने के लिए रास्ते बताएं. वाहन उपलब्ध कराये.इससे बड़ी बात क्या होगी कि प्रयागराज के मुसलमानों ने श्रद्धालुओं की भारी संख्या देखते हुए अपनी मस्जिदों के दरवाजे इन सनातनी श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए. नमाज पढ़ने के लिए बिछाए सफ हटाकर श्रद्धालुओं के बिस्तर लगा दिए.मंस्जिदों में उनके आराम के लिए गद्दे बिछाए गए. ओढने के लिए कंबल का इंतजाम किया गया.नमाजियों के लिए की गई व्यवस्था कुंभ यात्रियों के लिए उपलब्ध करा दी गई. कुंभ यात्रियों के मस्जिदों में ठहरने के कारण इस दौरान मुसलमानों ने नवाज घर पर ही पढ़ना अच्छा समझा.इतना ही नहीं मुस्लिम समाज ने मिलकर कुंभ यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था की. लंगर चलाये. उन्होंने यह भी ध्यान रखा कि ये कुंभ की यात्री हैं ,इसलिए भोजन शुद्ध और सात्विक हो।ये तब हुआ जबकि कुंभ क्षेत्र में मुस्लिम का प्रवेश वर्जित था.
मेले में इतना सब हुआ, किंतु यहां प्रदर्शित किये किए गए सांप्रदायिक सौहार्द की खबरे नहीं बनी. बनी तो अंदर के पेज में दब कर रह गई. होना यह चाहिए था की ये खबरें मुख्य पृष्ठों पर आतीं .मुख्य पृष्ठों के लीड बनती. लगता यह है कि हमारा मीडिया भी कम्युनल हो गया. उसकी रुचि ऐसी खबरों में नहीं है.उसकी रूचि सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने वाली खबरों में नही है. अगर थूक लगाकर खाना बनाने की खबर होती तो वह अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से सजती. फलों पर थूक लगाकर स्टीकर चिपकाने की खबर भी, अखबारों के पहले पन्नों में ही प्रमुखता से जगह पातीं.दरअसल आज की मीडिया को चटपटी खबरें चाहिएं. उसे सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा की खबरों से कोई लेना-देना नहीं है.
चार धाम यात्रा हो या केदारनाथ यात्रा सभी जगह मुसलिम श्रृद्धालुओं की सहायता करते मिलते है. हालाकिं ये सेवा के लिए पैसा लेतें है किंतु कहीं श्रद्धालुओं को घोड़े उपलब्ध कराते हैं तो कहीं अपनी पीठपर लाद कर उन्हें दर्शन के लिए ले जाते हैं.लेखक को द्वारिका और सोमनाथ में मंदिर घुमाने वाले दोनों आटों के चालक मुस्लिम थे, किंतु उनकी जानकारी स्थानीय हिंदुओं से ज्यादा थी.आटो चलाने के दौरान उनसे बातचीत में पता चलता था कि वे शानदार गाइड भी हैं.एक −एक स्थान के बारे में विस्तार से हमें बता भी रहे थे.हम भारतीयों के धर्म भले ही अलग हों कितुं संस्कृति एक ही है.जरूरत पड़ने पर सब अपना प्रेम और भाईचारा प्रदर्शित करते और एक दूसरे की मदद करते रहतें हैं.
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