कैसे रुकें सिवरेज की सफाई में होने वाली मौत?
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
कोलकता शहर में सिवरेज की सफाई के दौरान तीन श्रमिकों
की मौत हो गई।घटना कोतकता लेदर कंप्लेक्स में सीवरेज लाइन के साफ के दौरान हुई। सुपरिम
कोर्ट काफी पहले कह चुका है कि मरने वालों के परिवार को तीस −तीस लाख रूपया मुआवजा दिया जाए, किंतु ऐसा नही हो रहा। प्रदेश
सरकार ने बीस − बीस लाख रूपये मुआवजा देकर
ही मामला निपटा दिया। यह घटना
सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश के चार दिन बाद हुई है, जिस आदेश में सुपरिम कार्ट ने कहा कि कि दिल्ली ,मुंबई, कलकत्ता, चिननई,बंगलूरू और हैदराबाद जैसे मैट्रोपालिटिन शहरों में मैनुअल सफाई और सीवर
सफाई पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया था।दरअस्ल न्यायालय आदेश करता है किंतु उन आदेश के पालन के लिए
जिम्मेदार अधिकारियों को या तो ये आदेश
पंहुच नही पाता।आदेश पंहुच पाता है तो फाइलों के दबाव में वे उसे पढ़ नही पाते।इसीलिए बार – बार आदेशों के पालन में अनदेखी होती है। इन आदेशों को संबधित अधिकारियों तक पंहुचाने की प्रदेश स्तर पर त्वरित और
प्रभावी व्यवस्था होनी चाहिए।
जुलाई
2022 में लोकसभा में प्रस्तुत सरकारी आंकड़ों के अनुसार
पांच साल में सीवर सफाई के दौरान 347
लोगों की मौत हुई।
पांच सालों में भारत में सीवर और
सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347
लोगों की मौत हुई, जिनमें
से 40 प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु
और दिल्ली में हुईं।सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, 1993 के बाद से सीवर और सेप्टिक टैंक से होने वाली मौतों के 1,248 मामलों में से इस साल मार्च तक 1,116
मामलों में मुआवजे का भुगतान
किया गया है. हालांकि, 81 मामलों में मुआवजे का भुगतान अभी भी लंबित है।
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि राज्यों द्वारा 51
मामले बंद कर दिए गए हैं क्योंकि
मृत व्यक्तियों के कानूनी उत्तराधिकारी नहीं मिल सके। 1993 के बाद के आंकडा से पता
चलता है कि कि सीवर और सेप्टिक टैंक में होने वाली मौतों के सबसे अधिक 256 मामले
तमिलनाडु में सामने आए. इसके बाद गुजरात (204),
उत्तर प्रदेश (131), हरियाणा (115) और दिल्ली (112)
का नंबर आता है. सीवर से होने
वाली मौतों के सबसे कम मामले छत्तीसगढ़ (1)
में दर्ज किए गए हैं, इसके
बाद त्रिपुरा और ओडिशा में 2-2 मामले, दादर
और नगर हवेली (3) और झारखंड (4)
आते हैं।अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक के 58 मामलों में से सबसे ज्यादा मामले तमिलनाडु (11) से
हैं, इसके बाद महाराष्ट्र और राजस्थान (11-11 मामले), और गुजरात (8)
तथा पंजाब (6) का
नंबर आता है.आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 1993
के बाद से हुई 1,247 मौतों में से 456 मामले 2018
के बाद दर्ज किए गए हैं।
नौ अक्तूबर 2024 को दिल्ली के
सरोजिनी नगर इलाके में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर तीन मजदूरों की मौत का मामला सामने
आया है। ये मजदूर सीवर लाइन साफ करने के लिए सीवर के अंदर उतरे थे। सीवर लाइन से निकल रही जहरीली
गैस की वजह से तीनों मजदूरों का दम घुट गया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि सीवर
में उतरे मजदूरों के लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे।
23 अक्तूबर 2024 को राजस्थान के सीकर जिले में सफाई
के दौरान तीन कर्मचारियों की मौत हो गई। ये मौत लगातार होती रहती है।रूक नही पातीं
।
देश में सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौत की घटनाओं
पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 अक्टूबर 2023 को कहा था कि
सरकारी अधिकारियों को मरने वालों के परिजन को 30
लाख रुपए मुआवजा देना होगा।सीवर
की सफाई के दौरान कोई सफाईकर्मी स्थायी दिव्यांगता का शिकार होता है तो
न्यूनतम मुआवजे के रूप में उसे 20 लाख रुपए दिया जाएगा। वहीं, अन्य
दिव्यांगता पर अफसर उसे 10 लाख रुपए तक का भुगतान करेंगे।जस्टिस एस रवींद्र
भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों को लेकर
दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा
पूरी तरह खत्म हो। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट्स को सीवर से होने वाली मौतों से
संबंधित मामलों की निगरानी करने से ना रोके जाने का निर्देश दिया।
सरकारे और अधिकारी प्रायः मानते हैं कि न्यायालय
आदेश करता रहता है।वह करे।उन्हें काम अपनी मर्जी से करना है।इसी कारण सिवरेज की
सफाई में लगे कर्मचारियों को कार्य के दौरान न सुरक्षा उपकरण उपलब्ध करांए जाते
हैं, न मौत होने पर मुआवजा दिया जाता है। पीड़ित के परिवार वाले न ज्यादा
शिक्षित होते हैं, न संपन्न।उन्हें न्यायालय के आदेश की
जानकारी ही नही होती।इतना धन भी नही होता कि वह न्यायालय की शरण में जाएं। इसका
फायदा विभागीय अधिकारी उठाते हैं।वह अपनी मनमर्जी करते
हैं।ऐसा प्रायः सभी जगह होता है।सिवरेज की सफाई में लगे कर्मचारियों की मौत की
घटनाएं रोकने के लिए, उन्हें मैनुअल सिवरेज की सफाई के आदेश
देने वालों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराने से ही मौत
रूकेंगी, अन्यथा नही।
प्रदेश सरकारों को चाहिए कि वह एक
ऐसा सेल बनाए, जो इस तरह की मौत की मोनिटरिंग करें। उनकी मौत
के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई भी अमल में
लाए।एक बात और राज्य स्तर पर बनाये सैल न्यायालयों के
आदेश नगर पालिका, नगर निगम आदि में भेजने की भी तुंरत व्यवस्था हो।बताए कि यह आदेश हुआ है।सिवरेज की सफाई कराते इन नियमों
का पालन करें।ये सैल ये भी मोनिटरिंग करें कि नगर निगम या नगर पालिका के पास सिवरेज की सफाई के समय प्रयोग होने वाले उपकरण हैं या नही। क्या उनके
कर्मचारी सफाई करते सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग करते हैं या नही। जहां प्रयोग नही
करते वहां कर्मचारियों को जागरूक किया जाए। उनके इन सुरक्षा उपकरणों के प्रयोग के
लाभ बताए जाएं।उन्हें कहा जाए कि सिवरेज में उतरने से पहले सुरक्षा उपकरण पहनने से उनकी जान बच सकती है।देखने में आया
है कि प्रायः स्थानीय निकाय के के पास सुरक्षा उपकरण ही नही हैं।उन्हें दबाव देकर ये उपकरण खरीदवाएं जाएं। कर्मचारियों को
सुरक्षा उपकरण पहनने की प्रशिक्षण दिया जाए।
स्थानीय निकायों को कहा जाए कि
वह मैनुअल सिवरेज की सफाई न कराएं।इसके लिए उपकरण खरीदें। जिन स्थानीय निकायों के
पास इन उपकरण खरीदने के लिए धन नही है, उन्हें धन उपलब्ध
कराया जाए।सरकारों के इस मामले में गंभीर होने से ही सिवरेज की सफाई के दौरान सफाई
कर्मचारियों की मौत की घटनांए रूक सकेंगी।सिवरेज की सफाई में मरने वाले
कर्मचारियों के परिवार अनाथ होने से बच जाएगें।
अशोक मधुप
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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