Sunday, February 16, 2025

प्रयागराज की मस्जिदों में कुंभ यात्रियों को ठहरना नहीं बना अखबारों की लीड


अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
अयोध्या में चल रहा महाकुंभ पूरी दुनिया आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. दुनिया के लोग इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं.ज्यादा से ज्यादा समझना चाहतें हैं. सबकी समझ में यह नही आ रहा कि कुंभ में करोड़ों तीर्थ यात्री क्यों अपने आप मात्र एक स्नान के लिए परेशानी झेलने, जान जोखिम में डालने के लिए चले आतें हैं. आसपास के श्रद्धालु आएं तब भी माना जा सकता है किंतु ये  तो पूरे भारत से आ रहे हैं.  इस मेले के लिए विदेशों में बसे भारतीयों में तो आकर्षण है ही,काफी दूसरे संप्रदाय और धर्म वाले भी रूचि रखते हैं.   सरकारी आंकड़ों के अनुसार तो अब तक इस मेले में 38 करोड़ से ज्यादा लोग आकर स्नान कर चुके हैं. पूजन कर चुके हैं. ये सब  पूर्ण लाभ कमा रहे हैं. सरकार का मानना है कि इस महाकुंभ में आने वालों की संख्या 40 करोड़ से ज्यादा हो सकती है.
महाकुंभ में उत्तर दक्षिणपूरब पश्चिम के भेद को खत्म कर दिया. मेले में स्नान के लिए आने वाले आर्य भी हैं तो द्रविड़ भी हैं. सवर्ण भी आए तो दलितों ने भी आकर स्नान किया. पिछड़ी  जाति वालों  ने भी आकर त्रिवेणी स्नानकर पुण्य लाभ  अर्जित किया. कहीं कोई भेदभाव नहीं.कहीं कोई छुआछूत  नहीं. कोई विद्वेष नही. स्नान के समय दलित सवर्ण और पंडित का हाथ पकड़कर कहीं सहारा देता दिखाई दिया, तो  कहीं सवर्ण दलित की मदद करता नजर आया.कुंभ की श्रद्धा ने, सनातन की आस्था ने सब भेद−भाव  समाप्त कर दिया. भंडारे में सब एक ही पंक्ति  में बैठकर खाना खाते नजर आए.कुंभ को देखकर, कुंभ के श्रद्धालुओं को देखकर कोई ये नही मान सकता था कि जाति –पातिं,  छुआ −छूत और ऊंच −नीच में बंटा सनातन समाज  आपस में ऐसे भी मिलकर रह सकता है। यहां के लिए मौजू तो नही किंतु अल्लामा इक़बाल का  ये शेर फिट बैठता है− एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद व अयाज़न कोई बंदा रहा और ना कोई बंदा नवाज़'.

 
इस महाकुंभ  में अधिकतर आने वाले तीर्थ यात्री भारत से तो थे हीदुनिया भर के देशों से भी आए. अंग्रेज आये तो सिखों ने भी पूर्ण लाभ कमाया. मुस्लिम भी इस मेले में  शामिल होने के लिए पहुंचे. इस मेले में  आने वाली न अलग धर्म  से थेनहीं जाति से. वे सब  सनातनी थे. ये सब वे थे, जिनकी सनातन धर्म ,सनातन मान्यताओं में आस्था है.
कुम्भ मेले में आने वाले को सुविधा और आराम उपलब्ध कराने में अयोध्यावासियों ने कोई कसर नही छोड़ी। उन्होंने होम स्टे के नाम पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को अपने घरों में टिकाया. भोजन कराया. परिवार के सदस्यों की तरह रखा. अयोध्या  के मुसलमान ने भी पूरी शक्ति और लग्न से इन कुंभ यात्रियों का स्वागत किया. सम्मान किया. उन्होंने श्रद्धालुओं के लिए गाइड का काम किया. उन्हें घाट तक पहुंचाने के लिए रास्ते बताएं. वाहन उपलब्ध कराये.इससे बड़ी बात क्या होगी कि प्रयागराज के  मुसलमानों ने श्रद्धालुओं की भारी संख्या देखते हुए अपनी मस्जिदों के दरवाजे इन सनातनी श्रद्धालुओं   के लिए खोल दिए. नमाज पढ़ने के लिए बिछाए सफ हटाकर श्रद्धालुओं के बिस्तर लगा दिए.मंस्जिदों में उनके आराम के लिए गद्दे बिछाए गए. ओढने के लिए कंबल का इंतजाम किया गया.नमाजियों के लिए की गई व्यवस्था कुंभ यात्रियों के लिए उपलब्ध करा दी गई. कुंभ यात्रियों के मस्जिदों में ठहरने के कारण इस दौरान मुसलमानों ने नवाज घर पर ही पढ़ना अच्छा समझा.इतना ही नहीं  मुस्लिम समाज ने मिलकर कुंभ यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था की. लंगर चलाये. उन्होंने यह भी ध्यान रखा कि ये कुंभ की यात्री हैं ,इसलिए भोजन शुद्ध और सात्विक हो।ये तब हुआ जबकि कुंभ क्षेत्र में मुस्लिम का प्रवेश वर्जित था.
मेले में इतना सब हुआकिंतु यहां प्रदर्शित किये किए गए सांप्रदायिक सौहार्द की खबरे नहीं बनी. बनी तो अंदर के पेज में दब कर रह गई. होना यह चाहिए था की ये खबरें मुख्य पृष्ठों  पर आतीं .मुख्य पृष्ठों के लीड बनती. लगता यह है कि हमारा मीडिया भी  कम्युनल हो गया. उसकी रुचि ऐसी खबरों में नहीं है.उसकी रूचि सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने  वाली खबरों में नही है. अगर थूक लगाकर खाना बनाने की खबर होती  तो वह   अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से  सजती. फलों पर थूक लगाकर स्टीकर चिपकाने की खबर भीअखबारों के पहले पन्नों में ही प्रमुखता से जगह पातीं.दरअसल आज की मीडिया को चटपटी खबरें चाहिएं. उसे सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा की खबरों से कोई लेना-देना नहीं है. 

चार धाम यात्रा हो या केदारनाथ यात्रा  सभी जगह मुसलिम श्रृद्धालुओं की सहायता करते मिलते है. हालाकिं ये सेवा के लिए पैसा लेतें है किंतु कहीं श्रद्धालुओं  को घोड़े उपलब्ध कराते हैं तो कहीं अपनी पीठपर लाद कर उन्हें दर्शन के लिए ले जाते हैं.लेखक को द्वारिका और सोमनाथ में मंदिर घुमाने वाले दोनों आटों के चालक मुस्लिम थे, किंतु  उनकी जानकारी स्थानीय हिंदुओं से ज्यादा थी.आटो चलाने के दौरान उनसे बातचीत में पता चलता था कि वे शानदार गाइड भी हैं.एक −एक स्थान के बारे में विस्तार से हमें बता भी रहे थे.हम भारतीयों के धर्म भले ही अलग हों कितुं संस्कृति एक ही है.जरूरत पड़ने पर सब अपना प्रेम और भाईचारा प्रदर्शित करते और एक दूसरे की मदद करते रहतें हैं.


मणिपुर का राष्ट्रपति शासन पार्टी की टूट रोकने में सहायक होगा



भाजपा ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगवा कर राज्य की पार्टी में पैदा हुए अंतर विरोध पर, पार्टी मेंविद्रोह के हालात को पूरी तरह से खत्म कर दिया। पार्टी के कई दिग्गजों द्वारा मुख्यमंत्री बनने के देखे जा रहे सपनों को तोड़ दिया। भाजपा ने पार्टी गठबंधन के कुछ दलों द्वारा विरोध की आवाज उठाने को भी एक तरह से चुप कर दिया। इसके साथ ही उसने मणिपुर की कानून व्यवस्था की समस्या के निदान का रास्ता अपने हाथ में ले लिया। इस निदान के लिए मणिपुर में चल रही राजनीति और तोड़फोड़ को विराम लग जाएगा। एक बात और है, लगता यह है कि  यहां की कानून व्यवस्था की हालत के सामने भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कीपार्टी सरकार बनाने में रुचि नहीं रख रहा, उसकी रुचि समस्या के निदान में है आनहीं होगा ।उसे मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए पूरी शक्ति और प्रयास करने होंगे।
मणिपुर में भाजपा के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह  ने रविवार को  त्यागपत्र देकर पार्टी की टूटन तो बचाली, किंतु भाजपा के लिए नए मुख्यमंत्री का  चयन बड़ा  कठिन होगा,  उससे ज्यादा कठिन होगा वहां बने नए मुख्य मंत्री को सत्ता संभालकर वहां के हालात को  सही करना। राज्य की बिगडी कानून व्यवस्था को सुधारना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। लगभग दो साल से  राज्य में  फैली हिंसा पर नियंत्रण पाना उसके सामने दातों चने चबाने जैसा होगा।  
मणिपुर की सीमा म्यांमार से लगीहै।आरोप लगते रहे हैं कि चीन यहां के आतंकवादी संगठन , यहां  के आदिवासी को पहले से ही भड़काता रहा है।मणिपुर में विवाद और जातिय संघर्ष की शुरूआत का कारण मणिपुर उच्च न्यायालय का 19 अप्रैल 2023 का आदेश रहा। इस आदेश में  राज्य के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया गया था। हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफारिश को लागू करे जिसमें गैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी। इस आदेश के बाद राज्य में मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय के बीच विवाद शुरू हो गया और धीरे-धीरे यह हिंसक रूप लेने लगा।
मणिपुर में 16 जिले हैं, लेकिन, पूरा राज्य दो हिस्सों में बंटा हुआ है।पहला इंफाल घाटी, दूसरा पहाड़ी जिले। इंफाल घाटी मैतेई बहुल इलाका है. वहीं,पहाड़ी जिलों में नागा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है। विशेष तौर पर चार पहाड़ी जिलों में कुकी समुदाय के लोगों का राज है। मणिपुर की आबादी लगभग 28 लाख है. इसमें मैतेई समुदाय के लोग लगभग 53 फीस दी हैं।मणिपुर के भूमि क्षेत्र का लगभग 10% हिस्सा इन्हीं लोगों के कब्जे में हैं।वहीं, कुकी समुदाय की राज्य में कुल आबादी30 फीसदी हैं. इसी समुदाय के द्वारा मैतेई समुदाय को आरक्षण देने का विरोध किया जाता रहा है। इसके पीछे इनकी दलील यह है कि अगर मैतेई समुदाय को आरक्षण मिलता है तो वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले से वंचित हो जाएंगे। मैतेई लोग अधिकांश आरक्षण हथिया लेंगे। ज्ञातव्य है कि मैतेई समुदाय के द्वारा करीब 10 साल से राज्य सरकार से आरक्षण की मांग की जा रही है। मांग के पक्ष में फैसला नहीं आने के बाद मैतेई जनजाति कमेटी ने कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने इस मांग को लेकर राज्य सरकार से केंद्र से सिफारिश करने की बात कही है। 
इस सिफारिश के बाद ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने विरोध जताना शुरू कर दिया।इस आदेश के बाद राज्य में मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय के बीच विवाद शुरू हो गया और धीरे-धीरे यह हिंसक रूप लेने लगा।मैतेई को एसटी का दर्जा दिए जाने के हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ आदिवासी छात्र संघ के तीन  और चार मई 2023 'एकजुटता मार्च'के दौरान इंफाल और कुकी बहुलजिलों में हिंसा भड़क उठी। मणिपुर सरकार ने अगले पांच दिनों के लिए पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया और आठ जिलों में कर्फ्यू लगा दिया।इंफाल में 4मई 2023 को भाजपा विधायक वुंगजागिन वाल्टे पर भीड़ ने हमला किया। इस दौरान करीब नौ हजार लोगों को हिंसा वाले क्षेत्र से निकाला गया। मणिपुर में जातीय हिंसा बढ़ने के वहां सेना को तैनात किया गया।राज्यपाल ने बढ़ती हिंसा के बीच देखते ही गोली मारने का आदेश जारी किए।हालत इतने खराब हुए कि आठ  मई 2023 को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने बताया कि  कि,राज्य में जातीय संघर्षों में60निर्दोष लोगों की जान चली गई। 200 से अधिक घायल हो गए। इस जातीय हिंसा के कारण 35 हजार लोग बेघर हो गए। हिंसा में लगभग 1700 घर जला दिए गए,और पुलिस शस्त्रागार से 1041हथियार और 7460 राउंड गोला-बारूद लूट लिया गया।केंद्र सरकार ने मणिपुर में हिंसा की जांच के लिए गुवाहाटी हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस अजय लांबा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया। दस जून2023 को केंद्र ने विभिन्न जातीय समूहों के बीच शांति स्थापित करने के लिए मणिपुर के राज्यपाल और एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में 51सदस्यीय शांति समिति का गठन किया।14 जून 2023 और 15 जून 2023 को मणिपुर की एक मात्र महिला मंत्री नेम्फा किपगेन के इंफाल स्थित सरकारी आवास में आग लगा दी गई। 15जून 2023 मेंमणिपुर में फैली जातीय हिंसा की आग के कारण राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई। हिंसा की आग में विदेश राज्य मंत्री आरके रंजन का आवास भी जलकर खाक हो गया।हालत इतने खराब हुए कि मणिपुर में हथियारबंद भीड़ ने भाजपा नेताओं के घरों और कार्यालयों को निशाना बनाया। इंफाल में भाजपा मंडल कार्यालय को जला दिया गया. हालांकि,समय रहते सेना और रैपिड एक्शनफोर्स ने भाजपा कार्यालयों और पार्टी के मणिपुर प्रमुख और एक राज्य मंत्री के घर में आग लगाने के कई प्रयासों को विफल कर दिया. वहीं, 24 जून 2023 को भीड़ ने इंफाल पूर्वी जिलेके कांगला सांगोमसांग में मणिपुर के कैबिनेट मंत्री एल सुसिंड्रो के गोदाम और फार्महाउस को जला दिया।  चार  अगस्त 2023 को मणिपुरकी भीड़ ने आईआरबी (मणिपुर के बिष्णुपुर में द्वितीय भारत रिजर्व बटालियन (आईआरबी)मुख्यालय) से एलएमजी,मोर्टार,ग्रेनेड लूटे। 500 की भीड़ ने शस्त्रागार कोनिशाना बनाया और 298राइफलें,एसएलआर और एलएमजी के साथमोर्टार,ग्रेनेड और 16हजार से अधिक राउंड मिक्सडगोला-बारूद लूट कर फरार हो गए।
हालाकि न्यायालय ने अपने आदेश पर आरक्षण पर रोक लगा दी ,किंतु हालात उसके बाद भी सामान्य नही हुए।प्रदेश सरकार के नियआत्रण मेंहालत न देख मणिपुर कांग्रेस ने घोषणा की कि वह 10फरवरी को बीरेन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी।  मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने नौ फरवरी 2025को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के करीब पौने दो साल बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया।नवंबर 2024 तक मणिपुर की जातीय हिंसा में 258 लोगों की जान जा चुकी है। राज्य को 60 हजार से ज्यादा लोगों को विस्थापित करना पड़ा।
खास बात यह रही कि 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में कई भाजपा विधायक अब सीएम बीरेन सिंह के कामकाज का खुलकर विरोध कर रहे हैं।वर्तमानमें 60 सदस्यीय सदन में सत्तारूढ़ भाजपा के 37विधायक हैं। हालांकि,बिरेन सिंह की चिंता तब शुरू हुई जबपिछले साल 19नवंबर को मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक में कई विधायक शामिल नहीं हुए। छह विधायकों वाली एनपीपी जो भाजपा की सहयोगी थी,उसने पहले ही बीरेन सिंह से नाराजगी जताते हुए समर्थन वापस ले लिया है।दिलचस्प बात यह है कि एनपीपी प्रमुख और मेघालय के सीएम कोनराड के संगमा ने भी अपनी पार्टी के समर्थन के लिए पूर्व शर्त के रूप में बीरेन के प्रतिस्थापन की मांग की है।राज्य में शांति स्थापित करने में बीरेन सिंह सरकार की विफलता पर 10 कुकी विधायकों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है,जिनमें से सात भाजपा के हैं।
अब बीरेन सिंह के त्यागपत्र के बाद राज्य के खराब हालात में भाजपा के लिए सर्व सम्मति  से मुख्यमंत्री का नाम तै करना बड़ा   चुनौती पूर्ण था। पार्टी के बड़े-बड़े छत्रप मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहे थे। प्रदेश पार्टी में गुटबन्दी कर रहे थे। तोड़फोड़ में लगे थे।राष्ट्रपति शासन लगने के बाद लगता है कि अब ये सब समाप्त हो जायेगा।अब केंद्र को यहां की समस्या का निदान करना सरल होगा।यहां के हालात से निपटना आसान होगा।

-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Thursday, February 13, 2025

बड़ी चुनौती होगीं मणिपुर के नए मुख्यमंत्री के सामने

  

 


अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

मणिपुर में भाजपा के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह  ने रविवार को  त्यागपत्र देकर पार्टी की टूटन तो बचाली, किंतु भाजपा के लिए नए मुख्यमंत्री का  चयन बड़ा  कठिन होगा,  उससे ज्यादा कठिन होगा वहां बने नए मुख्य मंत्री को सत्ता संभालकर वहां के हालात को  सही करना। राज्य की बिगडी कानून व्यवस्था को सुधारना  उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। लगभग दो साल से  राज्य में  फैली हिंसा पर नियंत्रण पाना उसके सामने दातों चने चबाने जैसा होगा। मणिपुर की जनता का विश्वास जीतने के लिए उन्हें कठिन परिश्रम करना होगा।

मणिपुर की सीमा म्यांमार से लगी है।आरोप लगते रहे हैं कि चीन यहां के आतंकवादी संगठन , यहां  के आदिवासी को पहले से ही भड़काता रहा है।मणिपुर में विवाद और जातिय संघर्ष की शुरूआत का कारण मणिपुर उच्च न्यायालय का 19 अप्रैल 2023 का आदेश रहा। इस आदेश में  राज्य के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया गया था। हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफारिश को लागू करे जिसमें गैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी। इस आदेश के बाद राज्य में मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय के बीच विवाद शुरू हो गया और धीरे-धीरे यह हिंसक रूप लेने लगा।

मणिपुर में 16 जिले हैं, लेकिन, पूरा राज्य दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पहला इंफाल घाटी, दूसरा पहाड़ी जिले। इंफाल घाटी मैतेई बहुल इलाका है. वहीं, पहाड़ी जिलों में नागा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है। विशेष तौर पर चार पहाड़ी जिलों में कुकी समुदाय के लोगों का राज है। मणिपुर की आबादी लगभग 28 लाख है. इसमें मैतेई समुदाय के लोग लगभग 53 फीसद हैं। मणिपुर के भूमि क्षेत्र का लगभग 10% हिस्सा इन्हीं लोगों के कब्जे में हैं।वहीं, कुकी समुदाय की राज्य में कुल आबादी 30 फीसदी हैं. इसी समुदाय के द्वारा मैतेई समुदाय को आरक्षण देने का विरोध करते रहा गया है। इसके पीछे इनकी दलील यह है कि अगर मैतेई समुदाय को आरक्षण मिलता है तो वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले से वंचित हो जाएंगे। मैतेई लोग अधिकांश आरक्षण हथिया लेंगे। ज्ञातव्य है कि मैतेई समुदाय के द्वारा करीब 10 साल से राज्य सरकार से आरक्षण की मांग की जा रही है। मांग के पक्ष में फैसला नहीं आने के बाद मैतेई जनजाति कमेटी ने कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने इस मांग को लेकर राज्य सरकार से केंद्र से सिफारिश करने की बात कही है। इस सिफारिश के बाद ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने विरोध जताना शुरू कर दिया।इस आदेश के बाद राज्य में मैतेई समुदाय और कुकी समुदाय के बीच विवाद शुरू हो गया और धीरे-धीरे यह हिंसक रूप लेने लगा।

मैतेई को एसटी का दर्जा दिए जाने के हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ आदिवासी छात्र संघ के तीन  और चार मई 2023 'एकजुटता मार्च' के दौरान इंफाल और कुकी बहुल जिलों में हिंसा भड़क उठी। मणिपुर सरकार ने अगले पांच दिनों के लिए पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया और आठ जिलों में कर्फ्यू लगा दिया। इंफाल में 4 मई 2023 को भाजपा विधायक वुंगजागिन वाल्टे पर भीड़ ने हमला किया। इस दौरान करीब नौ हजार लोगों को हिंसा वाले क्षेत्र से निकाला गया। मणिपुर में जातीय हिंसा बढ़ने के वहां सेना को तैनात किया गया। राज्यपाल ने बढ़ती हिंसा के बीच देखते ही गोली मारने का आदेश जारी किए।हालत इतने खराब हुए कि आठ  मई 2023 को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने बताया कि  कि, राज्य में जातीय संघर्षों में 60 निर्दोष लोगों की जान चली गई । 200 से अधिक घायल हो गए। इस जातीय हिंसा के कारण 35 हजार लोग बेघर हो गए। हिंसा में लगभग 1700 घर जला दिए गए, और पुलिस शस्त्रागार से 1041 हथियार और 7460 राउंड गोला-बारूद लूट लिया गया।केंद्र सरकार ने मणिपुर में हिंसा की जांच के लिए गुवाहाटी हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस अजय लांबा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया। दस जून 2023 को केंद्र ने विभिन्न जातीय समूहों के बीच शांति स्थापित करने के लिए मणिपुर के राज्यपाल और एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में 51 सदस्यीय शांति समिति का गठन किया।14 जून 2023 और 15 जून 2023 को मणिपुर की एकमात्र महिला मंत्री नेम्फा किपगेन के इंफाल स्थित सरकारी आवास में आग लगा दी गई। 15 जून 2023 मणिपुर में फैली जातीय हिंसा की आग के कारण राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई। हिंसा की आग में विदेश राज्य मंत्री आरके रंजन का आवास भी जलकर खाक हो गया।हालत इतने खराब हुए कि मणिपुर में हथियारबंद भीड़ ने भाजपा नेताओं, घरों और कार्यालयों को निशाना बनाया। इंफाल में भाजपा मंडल कार्यालय को जला दिया गया. हालांकि, समय रहते सेना और रैपिड एक्शन फोर्स ने भाजपा कार्यालयों और पार्टी के मणिपुर प्रमुख और एक राज्य मंत्री के घरों में आग लगाने के कई प्रयासों को विफल कर दिया. वहीं, 24 जून 2023 को भीड़ ने इंफाल पूर्वी जिले के कांगला सांगोमसांग में मणिपुर के कैबिनेट मंत्री एल सुसिंड्रो के गोदाम और फार्महाउस को जला दिया।  चार  अगस्त 2023 को मणिपुर की भीड़ ने आईआरबी (मणिपुर के बिष्णुपुर में द्वितीय भारत रिजर्व बटालियन (आईआरबी) मुख्यालय) से एलएमजी, मोर्टार, ग्रेनेड लूटे. 500 की भीड़ ने शस्त्रागार को निशाना बनाया और 298 राइफलें, एसएलआर और एलएमजी के साथ मोर्टार, ग्रेनेड और 16 हजार से अधिक राउंड मिक्सड गोला-बारूद लूट कर फरार हो गए।हालाकि न्यायालय ने अपने आदेश पर रोक लगा दी ,किंतु हालात उसके बाद भी सामान्य नही हुए।

प्रदेश सरकार के निय्रत्रण में हालत न देख मणिपुर कांग्रेस ने घोषणा की कि वह 10 फरवरी को बीरेन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी. 9 फरवरी 2025 को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने नौ फरवरी 2025 को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के करीब दो साल बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया।नवंबर 2024 तक मणिपुर की जातीय हिंसा में 258 लोगों की जान जा चुकी है। राज्य को 60 हजार से ज्यादा लोगों को विस्थापित करना पड़ा।

खास बात यह रही कि 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में कई भाजपा विधायक अब सीएम बीरेन सिंह के कामकाज का खुलकर विरोध कर रहे हैं।वर्तमान में 60 सदस्यीय सदन में सत्तारूढ़ भाजपा के 37 विधायक हैं. हालांकि, उनकी चिंता तब शुरू हुई जब पिछले साल 19 नवंबर को मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठक में कई विधायक शामिल नहीं हुए। छह विधायकों वाली एनपीपी जो भाजपा की सहयोगी थी, उसने पहले ही बीरेन सिंह से नाराजगी जताते हुए समर्थन वापस ले लिया है।दिलचस्प बात यह है कि एनपीपी प्रमुख और मेघालय के सीएम कोनराड के संगमा ने भी अपनी पार्टी के समर्थन के लिए पूर्व शर्त के रूप में बीरेन के प्रतिस्थापन की मांग की है।राज्य में शांति स्थापित करने में बीरेन सिंह सरकार की विफलता पर 10 कुकी विधायकों ने अपनी नाराजगी जाहिर की है, जिनमें से सात भाजपा के हैं।

अब बीरेन सिंह के त्यागपत्र के बाद राज्य के खराब हालात में भाजपा के लिए सर्व सम्मति  से मुख्यमंत्री का नाम तै करना बड़ा   चुनौती पूर्ण होगा। क्योंकि उसे  ऐसा आदमी खोजना होगा कि वह आंदोलनरत संगठनों  का विश्वास जीत सके।  वहां के हालात सुधारने में सक्षम हो।आने वाले मुख्य मंत्री के लिए भी  हिंसा की आग में फैले राज्य में शांति स्थापना का कार्य बड़ा चुनौती पूर्ण होगा।।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

 

 

 

 

 

 



Thursday, February 6, 2025

कैसे रुकें सिवरेज की सफाई में होने वाली मौत?

 

कैसे रुकें सिवरेज की सफाई में होने वाली मौत?

अशोक  मधुप

वरिष्ठ पत्रकार 

 कोलकता शहर में सिवरेज की सफाई के दौरान तीन श्रमिकों की मौत हो गई।घटना कोतकता  लेदर कंप्लेक्स में सीवरेज लाइन के साफ के दौरान हुई। सुपरिम कोर्ट काफी पहले  कह चुका है कि मरने वालों के परिवार को तीस −तीस लाख रूपया मुआवजा दिया जाए, किंतु ऐसा नही हो रहा। प्रदेश सरकार ने बीस − बीस लाख रूपये मुआवजा देकर ही मामला निपटा दिया। यह घटना सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश के चार दिन बाद हुई है, जिस  आदेश में सुपरिम कार्ट ने कहा कि कि दिल्ली ,मुंबई, कलकत्ता, चिननई,बंगलूरू और हैदराबाद जैसे मैट्रोपालिटिन शहरों में मैनुअल सफाई और सीवर सफाई पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया था।दरअस्ल न्यायालय आदेश करता है किंतु  उन आदेश के पालन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को   या तो ये आदेश  पंहुच नही पाता।आदेश पंहुच पाता है तो फाइलों के दबाव में वे उसे पढ़ नही पाते।इसीलिए बार बार आदेशों के  पालन में अनदेखी होती है। इन आदेशों को संबधित अधिकारियों तक पंहुचाने की प्रदेश स्तर पर त्वरित और प्रभावी व्यवस्था होनी चाहिए।

जुलाई 2022 में लोकसभा में प्रस्तुत सरकारी आंकड़ों के अनुसार पांच साल में सीवर सफाई के दौरान 347 लोगों की मौत हुई। पांच सालों में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 40 प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुईं।सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, 1993 के बाद से सीवर और सेप्टिक टैंक से होने वाली मौतों के 1,248 मामलों में से इस साल मार्च तक 1,116 मामलों में मुआवजे का भुगतान किया गया है. हालांकि, 81 मामलों में मुआवजे का भुगतान अभी भी लंबित है। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि राज्यों द्वारा 51 मामले बंद कर दिए गए हैं क्योंकि मृत व्यक्तियों के कानूनी उत्तराधिकारी नहीं मिल सके। 1993 के बाद के आंकडा से पता चलता है कि कि सीवर और सेप्टिक टैंक में होने वाली मौतों के सबसे अधिक 256 मामले तमिलनाडु में सामने आए. इसके बाद गुजरात (204), उत्तर प्रदेश (131), हरियाणा (115) और दिल्ली (112) का नंबर आता है. सीवर से होने वाली मौतों के सबसे कम मामले छत्तीसगढ़ (1) में दर्ज किए गए हैं, इसके बाद त्रिपुरा और ओडिशा में 2-2 मामले, दादर और नगर हवेली (3) और झारखंड (4) आते हैं।अप्रैल 2023 से मार्च 2024  तक के 58 मामलों में से सबसे ज्यादा मामले तमिलनाडु (11) से हैं, इसके बाद महाराष्ट्र और राजस्थान (11-11 मामले), और गुजरात (8) तथा पंजाब (6) का नंबर आता है.आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 1993 के बाद से हुई 1,247 मौतों में से 456 मामले 2018 के बाद दर्ज किए गए हैं।

नौ  अक्तूबर 2024 को दिल्ली के सरोजिनी नगर इलाके में एक कंस्ट्रक्शन साइट पर तीन मजदूरों की मौत का मामला सामने आया है। ये  मजदूर सीवर लाइन साफ करने के लिए सीवर के अंदर उतरे थे।  सीवर लाइन से निकल रही जहरीली गैस की वजह से तीनों मजदूरों का दम घुट गया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि सीवर में उतरे मजदूरों के लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे।

23 अक्तूबर 2024 को राजस्थान के सीकर जिले में सफाई के दौरान तीन कर्मचारियों की मौत हो गई। ये मौत लगातार होती रहती है।रूक नही पातीं ।

 देश में सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौत की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 अक्टूबर 2023 को कहा था कि सरकारी अधिकारियों को मरने वालों के परिजन को 30 लाख रुपए मुआवजा देना होगा।सीवर की सफाई के दौरान कोई सफाईकर्मी ​​​​​​स्थायी दिव्यांगता का शिकार होता है तो न्यूनतम मुआवजे के रूप में उसे 20 लाख रुपए दिया जाएगा। वहीं, अन्य दिव्यांगता पर अफसर उसे 10 लाख रुपए तक का भुगतान करेंगे।जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों को लेकर दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट्स को सीवर से होने वाली मौतों से संबंधित मामलों की निगरानी करने से ना रोके जाने का निर्देश दिया।

सरकारे और अधिकारी प्रायः मानते हैं कि न्यायालय आदेश करता रहता है।वह करे।उन्हें काम अपनी मर्जी से करना है।इसी कारण सिवरेज की सफाई में लगे कर्मचारियों को कार्य के दौरान न सुरक्षा उपकरण उपलब्ध करांए जाते हैं न मौत होने पर मुआवजा दिया जाता है। पीड़ित के परिवार वाले न ज्यादा शिक्षित होते हैं, न संपन्न।उन्हें न्यायालय के आदेश की जानकारी ही नही होती।इतना धन भी नही होता कि वह न्यायालय की शरण में जाएं। इसका फायदा विभागीय अधिकारी उठाते हैं।वह अपनी मनमर्जी  करते हैं।ऐसा प्रायः सभी जगह होता है।सिवरेज की सफाई में लगे कर्मचारियों की मौत की घटनाएं रोकने के लिए, उन्हें मैनुअल सिवरेज की सफाई के आदेश देने वालों पर  हत्या का मुकदमा दर्ज कराने से ही मौत रूकेंगी, अन्यथा नही।

प्रदेश  सरकारों को चाहिए कि वह एक ऐसा सेल बनाए, जो इस तरह की मौत की मोनिटरिंग करें। उनकी मौत के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई भी अमल में लाए।एक बात और राज्य स्तर पर बनाये सैल न्यायालयों  के आदेश नगर पालिका, नगर निगम आदि में भेजने की भी   तुंरत व्यवस्था हो।बताए कि यह आदेश हुआ है।सिवरेज की सफाई कराते इन नियमों का पालन करें।ये सैल ये भी मोनिटरिंग करें कि नगर निगम या नगर पालिका के पास  सिवरेज की सफाई के समय प्रयोग होने वाले उपकरण हैं या नही। क्या उनके कर्मचारी सफाई करते सुरक्षा उपकरणों का प्रयोग करते हैं या नही। जहां प्रयोग नही करते वहां कर्मचारियों को जागरूक किया जाए। उनके इन सुरक्षा उपकरणों के प्रयोग के लाभ बताए जाएं।उन्हें कहा जाए कि सिवरेज में उतरने से पहले सुरक्षा उपकरण  पहनने से उनकी जान बच  सकती है।देखने में आया है कि प्रायः स्थानीय निकाय के के पास सुरक्षा  उपकरण  ही नही हैं।उन्हें दबाव देकर ये उपकरण खरीदवाएं जाएं। कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण  पहनने की प्रशिक्षण  दिया जाए।

 स्थानीय निकायों को कहा जाए कि वह मैनुअल सिवरेज की सफाई न कराएं।इसके लिए उपकरण खरीदें। जिन स्थानीय निकायों के पास इन उपकरण खरीदने के लिए धन नही है, उन्हें धन उपलब्ध कराया जाए।सरकारों के इस मामले में गंभीर होने से ही सिवरेज की सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की मौत की घटनांए रूक सकेंगी।सिवरेज की सफाई में मरने वाले कर्मचारियों के परिवार अनाथ होने से बच जाएगें।

अशोक  मधुप

 ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)