Tuesday, September 3, 2024

समय के पास भी नहीं कुछ सवालों का जवाब

 

 समय के पास भी नहीं कुछ सवालों का जवाब

अशोक मधुप

कुछ सवाल हैं ।मनमें आतें  हैं।उत्तर नही मिलता।इन सवालों का  जवाब न  इतिहास के पास है।न समय के पास।न मेरे पास  न आपके पास।पर सवाल तों हैं।

 हिंदू मान्यताओं के अनुसार, दीपावली के दिन ही भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद अपनी पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण और अपने उत्साही भक्त हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे। यह अमावस्या की रात थी। अमावस्या की रात होने के कारण  काफी अंधेरा होता है। इसी वजह से उस दिन पूरे अयोध्या को दीपों और फूलों से श्री रामचंद्र के लिए सजाया गया था ।इसलिए   सजाया  गया था कि भगवान राम के आगमन में उन्हें कोई परेशानी न हो, तबसे लेकर आज तक इसे दीपों का त्योहार और अंधेरे पर प्रकाश की जीत के रूप में मनाया जाता है।कभी  अयोध्या में भगवान राम की विजय के बाद  आने पर दीप जले थे,  आज पूरी दुनिया के हिंदू परिवार में दीपावली पर दीप  जलते हैं।

उत्तर भारत का तो दीपावली  मुख्य  पर्व  है।

रावण से युद्ध के दौरान भगवान राम ने  अंगद का अपना  दूत बनाकर रावण के पास भेजा  था।भगवान राम चाहते थे। युद्ध   न हो  और  रावण  वैसे  ही उसे सीता को  सौंप दे।अंगद ने  रावण के दरबार में जाकर अपनी  बात रख  दी। अहंकारी रावण  यह मानने  को तैयार नही था,कि राम   उससे  ज्यादा शक्तिशाली हैं। वह अपनी शक्ति  का बखान  करने में लगा था। तब अंगद रावण  को सच्चाई  बताते कहता  है - सिंधु तरो उनको बनरा, तुसपै धनुरेख गई न तरी। बाँध्यो इ बाँधत सो न बँध्यो उन बारिधि बाँधि कै बाट करी। अजहूँ रघुनाथ-प्रताप की बात तुम्हैं दसकंठ न जानि परी। तेलनि तूलनि पूँछि जरी (जड़ी हुई, युक्त) न जरी ,गढ़, लंक जराई जरी।

वह कहता है  कि  उनका  बंदर  समुद्र पार कर लंका आ गया, और  तू  है कि तुझसे धनुष की लकीर ही पार न की गई।तू अपने बल का बखान करता है,  तुझसे तो उनका  बंदर ही बांध कर  नही रखा गया। वे भगवान राम समुद्र को लांघकर श्री लंका के द्वार तक  आ पंहुचे।अंगद कहता  है कि दशकंध  तुझे अब भी भगवान राम के प्रताप की बात  समझ में नही आई। तेरा  तेल लगा, कपड़ा  लगा।इसके बावजूद हनुमान  की पूंछ नही जली।उसने  तेरी  लंका को   जलाकर खाक कर दिया।

अंगद बार – बार रावण को   समझाना  चाहता  है किंतु वह अपने  और अपने सेनापतियों की ताकत का बखान  करता  है।  विवश  हो अंगद उसे  सीख  देने के  लिए अपना  पांव   यह कहकर रावण के दरबार में जमा देता है कि चल में  तेरे शूरवीरों की परीक्षा लेता  हूं। घोषणा  करता  हूं कि यदि तेरा  कोई भी सेनापति मेरा   पांव  जमीन से हिला  देगा तो मैं  सीता को हार जांगा  और भगवान राम   वापस  लौट जाएंगे। 

इसके बाद बारी −बारी से रावण के दरबारी शूरवीर आते  हैं। अंगद के पांव पर  जोर लागतें  हैं, किंतु पांव हिला  भी   नही पाते।महाबलि मेघनाथ भी   पांव  हिलाने के प्रयास में सफल हो जाता  है।रावण  के आने पर  अंगद   पांव हटा लेता है।

 रावण की सेना में एक से  एक− एक बलि,दैविक शक्ति  से प्राप्त  वीर थे।वे  किसी कारण से  पांव नही हटा पाए, किंतु यदि कोई भी   अंगद के   पांव को   हिला  देता ,तो  क्या  होताॽशर्त  हारने के बाद क्या अंगद   वापस भगवान राम के पास   जा पाता। भगवान राम ने तो  अंगद को कोई ऐसा आदेश दिया नही था। अंगद  ने  ही जोश  में  इस  तरह का निर्णय  लिया।  पराजित अंगद शर्म के कारण कहीं जा  छिपता ,  तो राम को  पता  भी  नही लगता  कि रावण  के दरबार में क्या  हुआ था।अंगद के   वापस     पहुंचने  पर राम और  अन्य मान लेते  कि हो  सकता है, गुस्से में रावण  ने  अंगद को   जान से मार दिया  होगा।

यदि किसी तरह शर्म और अपमान भूल अंगद  राम के पास  चला  जाता तो क्या  राम उसकी कही  बात मान   लेते।  उनका  तो   शर्त लगाने का  आदेश  था  नही,फिर  शर्त लगाना तो  अंगद की गलती थी, राम की नहीं।क्या वह सीता  को छोड़कर  वापस लौट जाते। लौटकर कहां जाते।क्या पत्नी को  गवांकर वे  अयोध्या   वापस   लौट पाते।क्या पत्नी गवांकर लौटने  पर उनका   वैसे  ही स्वागत  होता,  जैसे  लकां  विजेता होने  पर   उनका  हुआ है।   

विश्व के दो  महान युद्ध हुए। लगभग  सात   हजार साल पहले राम  और  रावण का युद्ध   हुआ।इसके बाद लगभग  पांच    हजार साल पहले  महाभारत हुआ।अंगद की तरह से भगवान कृष्ण भी हस्तिनापुर दरबार में सुलह का लगभग प्रस्ताव   लेकर गए थे।सुलह का कोई  रास्ता न  निकल  उन्होंने धृतराष्ट्र  से  कहा कि आधा शासन नही दे सकते  तो   पांच  गांव ही दे दें। इस पर दुर्योधन ने कहा था कि मैं सुईं  की नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूंगा।यदि दुर्योधन पांच  गांव देने की बात स्वीकार कर लेता तो  क्या पांडव कृष्ण के इस प्रस्ताव   पर सहमत होते। क्योंकि उन्होंने तो कृष्ण  को आधा  राज लेने तक के प्रस्ताव पर  सहमति दी थी।ये सवाल  बार− बार मन में आते  हैं और अनुतरित  रह जाते  हैं।सवाल का  जवाब  तो समय ही देता।और अब तो  वह बहुत  आगे निकल गया।

दुनिया के दो महायुद्ध  हुए।  एक  राम −  रावण  युद्ध  दूसरा महा भारत। दोनों के काल में दो हजार साल के आसपास का  अंतर है किंतु दोनों की घटनाओं में काफी समानता  है।

रामायणकाल की मुख्य पात्र  सीता थी। वह मौन रहने वाली बहुत ही  सहनशील थीं। जबकि महाभारत काल की द्रोपदी  वाचाल थी।उसने अपने महल को  देखने  आए दुर्याधन को अंधे  का अंधा  कहकर आग में घी डालने का काम किया  था। सीता और द्रोपदी दोनों  ने बहुत सहन किया।अंतर यह है कि एक ने मौन रहकर और एक ने बोलते हुए सहन किया l दौपदी वाचाल है और सीता मौन हैं l द्रोपदी कृष्णा है सीता श्वेता है।द्रोपदी अग्नि से प्रकट हुई हैं इसलिए उनके व्यक्तित्व में अग्नि सी दाहकता है ।सीता में तितिक्षा है ।पृथ्वी की सहनशीलता और मौन रहकर सहन करना सीता का गुण है।

दोनों के लिए  स्वयंबर  हुए। भगवान राम को

स्वंयवर में  धनुष तोड़ना पड़ा। अर्जुन को बाण चढ़ाना मछली की आंख बेंधनी पड़ी।पिता के आदेश पर राम को  14 वर्ष के  लिए वनवास भोगना  पड़ा  और  जुए में हारने पर पांडव का 12 साल का  वनवास जाना   पड़ा।  11 साल के वनवास के साथ  एक साल का इसमें अज्ञात  वास भी शामिल था।

दोनों बार दूसरे पक्ष को समझाने के  लिए  शांति दूत भेजे  गए। दूत इस  तरह के व्यक्ति   चुने गए कि वह अपने व्यवहार से  अपने पक्ष  की शक्ति बताकर दूसरे पक्ष को नैतिक रूप से कमजोर कर सके।उनका  मौरल डाउन  कर सके। सीता की खोज में गए  हनुमान ने सीता  माता  को भगवान राम का संदेश देने के  बाद अपनी भूख  शांत करने के नाम पर अशोक वाटिका को  उजाड़  दिया।पकड़ने के लिए आए रावण के छोटे पुत्र  अक्षय कुमार को मार डाला।अक्षय कुमार की दरबार में पंहुची मौत की सूचना  पर मेघनाथ ने कहा  कि अक्षय  तो  मेरे बराबर बलशाली था। उसे कैसे  मारा  जा सकता  है।बाद में रावण के कहने पर मेघनाथ  बानर को पकडने  गए।  रावण ने आदेश दिया था कि  उत्पाती  बानर को  पकड़कर लाना।युद्ध हुआ। मेघनाथ  के ब्रह्मास्त्र  से  हनुमान बेहोश हो गए।  वह हनुमान को  बांध कर रावण के सामने ले  आया।

रावण अक्षय  कुमार के बद्ध से बहुत उत्तेजित था।   वह  हनुमान को  मारना  चाहता  था किंतु छोटे  भाई विभीक्षण ने रावण को सुझाया कि आप  नीतिवान है। नीति के अनुसार दूत  का वद्ध उचित नही, आप इसे कोई  दूसरा दंड  दे।  इस पर पूंछ जलाना तै  हुआ। हनुमान की पूंछ पर रूई, कपड़ा और  अन्य ज्वलनशील सामग्री बांध तेल डालकर आग लगा दी। पूंछ में आग लगते ही  हनुमान ने  बंधन  तोड़  डाले।लंका के भवनों पर चढ़ उन्हें  जलाना  शुरू कर दिया।इससे   लंका के राक्षस और रावण  के महाबलि में संदेश  गया कि जब एक बंदर इतनी बरबादी कर सकता है, तो  राम की पूरी सेना से  पार भी   पाना संभव न होगा।अंगद

द्वारा रावण  के दरबार में पांव  जमाना  भी   इसी तरह का  संदेश  देना था।रावण  के दरबार  का कोई  भी   सेनापति और वीर उनका  पांव  नही उठा पाया।महाबलि मेघनाथ भी   पांव उठाने के  प्रयास में  विफल  रहा। रावण के पांव उठाने के लिए आने पर अंगद ने  यह कहकर ही अपना  पांव पीछे कर लिया था कि मेरे पांव में  गिरने से कोई  लाभ  नही होगा, गिरना  है तो भगवान राम के पांव में जाकर गिरकर अपनी गलती के  लिए क्षमा मांगिए।

महाभारत में हस्तिनापुर दरबार में सुलह का प्रस्ताव लेकर गए कृष्ण  के सामने भी कुछ सा ही    हुआ।दुर्योधन के उत्तेजित  होने और कृष्ण के बंदी बनाने के  आदेश पर भगवान कृष्ण  को  अपना   विशाल रूप दिखाना पड़ा।

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

संपादक  जी,

कुछ प्रश्न  हैं  जिनका  उत्तर न  इतिहास के पास  है  न समय के।दीपावली का  पर्व भगवान राम के श्रीलंका   विजय कर लौटने की खुशी में   मनाया  जाता  है। प्रश्न यह  है कि सुलह  का प्रस्ताव   लेकर  राम के दरबार में गया  अंगद रावण के सेनापतियों की परीक्षा लेने के लिए अपना पांव रावण  के दरबार में यह कहकर जमा  देता है कि यदि कोई तेरा वीर मेरे  पांव  को हिला  देगा तो मैं  सीता माता  को हार जांगा। भगवान राम लौट जाएंगे।  रावण में दरबार में एक से एक बलि,शक्तिशाली और दैविक क्षमता संपन्न शूरवीर थे।यदि इनमें कोई भी   अंगद का  पांव  हिला देता,  तो  क्या भगवान राम बिना सीता  को लिए वापस आ जातेइन्हीं सवालों  पर ये लेख प्रेषित है। आशा है पसंद आएगा।

सादर

अशोक मधुप

व्हाटसएप नंबर 942215678,9675899803

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