Monday, December 4, 2023

भाजपा की इस जीत के संकेत समझिए







भाजपा की इस जीत के संकेत समझिए 
अशोक मधुप 
वरिष्ठ पत्रकार 
 पांच राज्य विधान सभा चुनाव में से तीन विधान सभाओं में पूर्ण बहुमत पाकर भाजपा ने अपने विरोधियों के सपनों को चूर− चूर कर दिया। तीन राज्यों में पूर्ण बहुमत मिलने से सिद्ध हो गया कि जनता पर किसका विश्वास है। इन चुनाव ने साबित कर दिया कि मोदी मैजिक कम नही हुआ अपितु बढ़ता ही जा रहा है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मिली इस विजय ने भाजपा में जहां नई ऊर्जा और जोश भर दिया वहीं विपक्ष को कमजोर किया है। अब विपक्षी दलों के गठबधंन इंडिया में वर्चस्व को लेकर नई रार शुरू होगी।एक बात और कांग्रेस के जातिगत जनगणना और वायदों पर जनता ने यकीन नही किया। कांग्रेस की पुरानी पेंशन योजना की गारंटी का भी इस चुनाव में कोई प्रभाव नजर नही आया। ये चुनाव भाजपा की जीत तो है ही इस चुनाव में कांग्रेस की हार भी है। इस चुनाव में यह भी लगा कि अब जनता ने आधा अधूरा समर्थन देना बंद कर दिया। जिसे दिया उसे पूरा बहुमत देकर चुना।पांच साल के लिए चुना। बार –बार चुनाव और कमजोर सरकारों को उसने अब चुनना बंद कर दिया। तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार जरूर बनी किंतु भाजपा ने यहां भी अपना प्रभाव बढ़ाया।पिछली बार यहां उसके पास एक सीट थी। इस बार उसके प्रत्याशियों ने आठ सीट पर कब्जा किया। तेलगांना में पिछली बार भाजपा को 6.98 प्रतिशत वोट मिले थे। अबकि बार उसका प्रतिशत बढ़कर 13. 9 हो गया।मिजोरम में भी इस बार भाजपा की एक सीट और बढ़ गई। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पूर्ण बहुमत मिलने के बाद अब 11 राज्यों में उसकी अपनी सरकार हो गई।वह हरियाणा महाराष्ट्र मेघालय नागालैंड और सिक्किम में सहयोगियों के बल पर सत्ता में हैं। इस तरह से देश की आधी आबादी पर उसका कब्जा है। कांग्रेस कनार्टक हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना तक ही सीमित होकर रह गई। हिंदी पट्टी में तो एक तरह से भाजपा का पूरा कब्जा हो गया। भाजपा की सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव में उतारने की नीति कामयाब रही।वे अधिकतर विजयी रहे। चुनाव में उतारे मंत्रियों और सांसदों की जगह भाजपा लोकसभा चुनाव में अब नए चेहरे उतारेगी। जिनका चुनाव में विरोध नही होगा। मध्यप्रदेश में कांग्रेस 2018 में 114 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। बहुमत से कुछ सीटें कम आने के कारण उसने निर्दलीय, समाजवादी पार्टी और बसपा विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। हालांकि, पार्टी के भीतर पैदा हुए राजनीतिक संकट ने भाजपा को 15 महीने बाद सत्ता में वापस ला दिया। मार्च 2020 में 22 कांग्रेस विधायकों के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए और कमल नाथ की सरकार सत्ता से बाहर हो गई। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव के परिणाम ने साफ कर दिया कि मध्य प्रदेश की जनता ने कांग्रेस की गारंटियों पर विश्वास नहीं किया। कांग्रेस की रणनीतिक कमजोरी भी उस पर भारी पड़ी। पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान जोर-शोर से महिलाओं को डेढ़ हजार रुपये प्रतिमाह देने, पांच सौ रुपये में रसोई गैस सिलेंडर, 100 यूनिट बिजली फ्री, 200 यूनिट बिजली हाफ, किसान कर्ज माफी, पुराने बिजली बिल की माफी, पुरानी पेंशन योजना की बहाली, जाति आधारित गणना सहित अन्य गारंटियां दी थीं। मतदाता इनके प्रभाव में नहीं आए और फिर भाजपा पर ही विश्वास जताया। मध्य प्रदेश में सरकार विराधी कोई लहर दिखाई नहीं दी। यहां भाजपा को 49 प्रतिशत और कांग्रेस का 40 प्रतिशत मत मिले। राजस्थान के रण में कांग्रेस के नेता अशोक गहलोत की जादूगरी काम नहीं आई। राजस्थान में 1993 के बाद जनता ने किसी दल को दुबारा सत्ता नही सौंपी। ऐसा ही इस बार हुआ। भाजपा राजस्थान में मोदी के नाम पर चुनाव लड़ी।यह उसके लिए फायदेमंद रहा।यदि किसी को मुख्यमंत्री बताकर लड़ती को नुकसान होता। मुख्यमंत्री उम्मीदवार के विरोधी उसे हराने में लग जाते। अब सब एकजुट नजर आए। कांग्रेस की हार का कारण शिकायतों के बाद भी विधायकों के टिकट नही कटना रहा । कांग्रेस ने पुरानों पर भरोसा किया जबकि जनता बदलाव चाहती थी। कांग्रेस को यहां अशोक गहलोत और पाइलेट को छोड़ तीसरा विकल्प चुनना था। अशोक गहलोत मद में थे। वे समझे बैठे थे कि उन्हें कोई नही हरा सकता ।कांग्रेस की 25 लाख रुपये की हेल्थ इश्योरेंस स्कीम भी काम नहीं आई। कांग्रेस की कई और योजनाएं भी जारी थीं। कांग्रेस के आलाकमान ने सचिन पायलट को इस चुनाव में शुरू से ही एक साथ काम करने के मना लिया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी प्रचार में उतरे, मगर कुछ काम नहीं आया। यहां भाजपा को 42 प्रतिशत मत मिले तो कांग्रेस को 40 प्रतिशत। तमिलनाडू में सत्तारूढ वीआरएस को हार का सामना करना पडा। 119 सीट वाली विधान सभा में यहां कांग्रेस 64 सीट लेकर पूरे बहुमत से सत्ता में आई। कांग्रेस यहां सत्ता में आई जरूर किंतु भाजपा भी यहां लाभ में रही । पिछली बार भाजपा की एक सीट थी अब आठ हैं। तेलगांना में पिछली बार भाजपा को 6.98 प्रतिशत वोट मिले थे। अबकि बार उसका प्रतिशत बढ़कर 13. 9 हो गया। छत्तीसगढ में भूपेश बघेल की हार का कारण अतिविश्वास रहा। महादेव एप जैसे घोटाले भ्रष्टाचार कांग्रेस को ले डूबा।उसके लोक लुभावने वादों पर जनता ने यकीन नही किया। छत्तीसगढ में भाजपा को 46 प्रतिशत मत मिले।कांग्रेस को 42 प्रतिशत। मिजोरम के चुनाव परिणाम आ गए । यहां जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने बहुमत पाया। कांग्रेस से यहां भी भाजपा लाभ में रही। इस विधान सभा में कांग्रेस को एक सीट मिली तो भाजपा के खाते में दो सीट गईं। कांग्रेस के राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और मल्लिकार्जुन खरगे ने जाति आधारित गणना की गारंटी को बार-बार दोहराया। इसके माध्यम से दांव यह खेला गया था कि ओबीसी मतदाताओं को प्रभावित किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।इतना जरूर हुआ कि इससे उसका परपरांगत अल्पसंख्यक वोट और छिटक गया।इस हार से कांग्रेस के सामने विपक्षी दलों के गठबंधन में ही चुनौती आने लगी हैं। अब तक सबसे बड़ा दल होने के कारण उसकी मांग की थी कि विपक्ष का प्रधानमत्री का उम्मीदवार कांग्रेस से होगा। जेडीयू के प्रदेश महासचिव निखिल मंडल ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए कांग्रेस पर हमला बोला है और कहा कि अब 'इंडिया गठबंधन' को नीतीश कुमार के अनुसार चलना होगा। एक बात और भाजपा की जीत का बड़ा कारण है उसका बूथ लेबिल तक बना संगठन, जबकि कोई और दल बूथ तक अपना संगठन नही खड़ा कर सका। भाजपा की आधी आबादी यानी महिलाओं में भी बड़ी पकड़ है। भाजपा ने महिलाओं का भी बूथ लेबिल तक संगठन खड़ा किया है। बड़ी बात यह भी है कि पार्टी के पास नरेंद्र मोदी जैसा जुझारू नेता भी है,जो बिना रूके बिना थके अनवरण कार्य में लगा रहता है। भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संगठन तो अपने कार्यकर्ताओं और संगठन के लिए विख्यात है ही। कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम् ने इस चुनाव में कांग्रेस की हार को सनातन के विरोध का नतीजा बताया। कहा कि राहुल जो कर सकते थे किया। उनकी बात में दम लगता है । आज भारत में सनातन और राष्ट्रवाद का प्रभाव नजर आ रहा है। जनता अब एक मजबूत सरकार और मजबूत देश और एक मजबूत प्रधानमंत्री चाहती है। अशोक मधुप (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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