Friday, December 1, 2023

समाज को देहदान के लिए प्रेरित करेगी ये शपथ


समाज को देहदान के लिए प्रेरित करेगी ये शपथ अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन ने अपने 64वें वार्षिक अधिवेशन में एक ऐसा कार्य किया कि आना वाला समय उन्हें याद रखेगा। बहुत से लोग उनके पदचिन्हों का अनुसरण करेंगे।उनके इस कार्य से प्रेरणा लेंगे।इन चिकित्सकों ने महर्षि दधिचि की देहदान की परम्परा को आगे बढ़ाया।इस अधिवेशन में बीस हजार चिकित्सकों ने अपनी देहदान करने की शपथ ली। जो कार्य चिकित्सकों ने किया, वह कार्य अन्य संगठनों को भी करना चाहिए।काँलेज को करना चाहिए,विश्वविद्यालयों को करना चाहिए। भारत में प्रतिवर्ष पांच लाख से ज्यादा लोग वक्त पर अंग न मिलने से मौत का शिकार हो जाते हैं।इनमें से दो लाख के आसपास लोगों की मौत लिवर नहीं मिलने की वजह से होती है।इन मरने वालो में अधिकतर वे लोग होतें हैं जो पैसा देकर अंग नही खरीद सकते। पैसे वाले तो मन मांगा मोल देकर अंग खरीद लेते हैं।इसी कारण मानव अंगों के अवैध कारोबार को बढ़ावा मिलता है।भारत में प्रतिवर्ष दस लाख व्यक्तियों में अंगदान करने वालों की संख्या 0.8 है। विकसित देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड और जर्मनी में यह संख्या 10 से 30 के मध्य है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार एक मृत व्यक्ति के अंगदान से नौ लोगों को नया जीवन मिल सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण प्रतीक्षा सूची में 1,04999 पुरुष, महिला और बच्चे आज भी इस इंतज़ार में हैं कि कोई अंगदान करेगा और वे अपना जीवन जी सकेंगे। राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण प्रतीक्षा सूची में अकेले किडनी के जरूरतमंद व्यक्ति ही 88551 है।भारत में प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ लाख मौतें सड़क हादसों से होती हैं। वर्ष 2022 में ही 168491 मौत हुईं। इनमें सबसे पहले मस्तिष्क पूरी तरह से कार्य करना बंद कर देता है, ऐसा शरीर अंगदान के लिए उपयुक्त होता है। इसके बावजूद बमुश्किल दो -तीन प्रतिशत भाग्यशाली लोगों को नए अंग मिलते हैं।हृदय, फेफड़े, लिवर, किडनी, आंत, पैंक्रियाज ऐसे अंग हैं, जो मृत व्यक्ति के परिजनों द्वारा दान किए जा सकते हैं। आंख का कॉर्निया, हड्‌डी, त्वचा, नस, मांसपेशियां, टेंडन, लिगामेंट, कार्टिलेज, हृदय वाल्व भी मृत्यु के बाद किसी अन्य व्यक्ति के काम आ सकते हैं। जीवित व्यक्ति एक पूरी किडनी व लिवर का कुछ हिस्सा दान में दे सकता है। शेष एक किडनी से दानदाता का जीवन व्यतीत हो सकता है । लिवर समय के साथ बढ़ जाता है और पुन: अपनी पुरानी अवस्था में लौट आता है इसलिए दाता को किसी प्रकार की कोई दिक़्क़त नहीं होती है। भारत में अंगदान दाताओं की संख्या के कम होने के कारण हैं-सही जानकारी का अभाव, धार्मिक मान्यता, सांस्कृतिक भ्रांतियां और पूर्वाग्रह। लोगों में अंधविश्वास है कि यदि मृत व्यक्ति की आंखों को दान दिया जाता है तो उसे मरने के उपरांत स्वर्ग नहीं मिलता या अगले जन्म में वह आंख या दान दिए अंग के बिना पैदा होगा। जबकि अंगों को शरीर से निकालने से परंपरागत अंत्येष्टि क्रिया या दफन क्रियाओं में कोई बाधा नहीं आती। इससे शरीर के में भी कोई परिवर्तन नहीं होता। जबकि मृतक के परिजन मृतप्राय: रोगियों को अंग को बहुमूल्य उपहार के रूप में दान देकर अपने परिजन के जीवन को सार्थक बना सकते हैं। एक बात और रिपोर्ट बताती हैं कि जीवित व्यक्ति में भारत में अंग दान करने वाली महिलाएं ज्यादा है।पांच किडनी दान करने वालों में चार महिलांए हैं।वे भी ज्यादा पत्नी हैं। हिंदू पत्नी की इच्छा होती है कि पति के सामने उसका निधन हो। उसे वैधव्य न देखना पड़े। मान्यता है कि पति से सामने मरने वाली महिला पति के कंधे पर बैठकर सीधी स्वर्ग जाती है। भारतीय समाज में कुछ धार्मिक कार्यों में विधवा का शामिल होना निषिद्ध है। इसलिए महिला अपने पति के लिए प्रत्येक प्रकार का उत्सर्ग करने को तैयार हो जाती है। समाज में घर कर गई इस धारणा दो बदलना होगा।बताना होगा कि पति −पत्नी दोनों समान रूप से सामज के लिए उपयोगी है।इसलिए पत्नी की जरूरत पर पति को अंगदान करने के लिए आगे आना चाहिए। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं महान संस्कृति है। दान, धर्म एवं उच्च संस्कार प्राचीन काल से ही हमारे समाज में वरिष्ठ स्थान रखते रहे हैं। महर्षि दधीचि ने अंगदान की पराकाष्ठा का उदाहरण समाज के समक्ष रखा। वह भारतीय संस्कृति के प्रथम अंगदानी कहे जाते हैं। देवता और दानव में युद्ध चल रहा था !दानव देवताओं पर भारी पड़ रहे थे। देवताओं को समझ नहीं आ रहा था कि युद्ध में कैसे विजय पाई जाए। इसके लिए वे ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने सुझाव दिया कि महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने अस्त्र से दानवों को पराजित किया जा सकता है। देवता महर्षि दधीचि के पास गए। याचना की। महर्षि दधीचि द्वारा दी गई अस्थियों से बने वज्र से राक्षास ब्रजासुर का बद्ध हुआ। दानव पराजित हुए। आर्यव्रत की हजारों साल पुरानी देहदान और अंगदान की इस परंपरा में आज भी लोगों की रुचि नहीं है। मुझे याद है कि लगभग 40 साल पहले उत्तर प्रदेश के बिजनौर के स्टेडियम में खेल प्रतियोगिता के दौरान भाला लगने से एक कर्मचारी घायल हो गया था। उसे खून की जरूरत थी।कहे जाने पर भी उसके परिवार जनों ने खून नहीं दिया था। उसकी मदद के लिए स्टेडियम के खिलाड़ी आगे आये। उनके रक्त देने से कर्मचारी की जान बची।अच्छा यह है कि अब रक्तदान के प्रति तो लोगों में जागरूकता बढ़ी है, किंतु अंगदान के प्रति अभी चेतना नही है।अंगदान के प्रेरित करने वाले चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मियों की भी कमी है।यदि बड़े और सरकारी अस्पताल के चिकित्सक मृतक के परिजनों को अंगदान के लिए प्रेरित करने लगे तो बड़ा काम हो सकता है। अंगदान की प्रक्रिया बहुत लाभकर है पर जिस तेजी से बढ़नी चाहिए, उस तेजी से नहीं बढ़ी। अभी भी दुनिया के करोड़ों लोग इसलिए मर जाते हैं क्योंकि क्योंकि उनकी देह के अंग कार्य करना बंद कर देते हैं। यदि अन्य मरने वाले के सही अंग उनके परिवारजन दान करने लगें तो बहुतों की जान बच सकती है।अंगदान के नाम पर आंख देना ही शुरू हुआ है।यह भी न के बराबर। मानव कल्याण के लिये अंगदान का प्रचार प्रसार बहुत जरूरी है। अंगदान के लिए जनजागरण की जरूरत है। स्कूली शिक्षा से छात्रों में जनजागरण के लिए जागरूकता विकसित की जानी चाहिए। अन्य अभियानों की तरह अंगदान के लिए भी अभियान चलाने की जरूरत है।इसके लिए विभिन्न धर्मगुरूओं से संपर्क कर उनसे अनुरोध किया जाए कि वह अंगदान के लिए अपने समर्थकों को प्रेरित करें। वैसे हाल में अंगदान के लिए कई अच्छे स्लोगन सामने आए हैं।मरने के बाद भी यदि दुनिया की खूबसूरती देखते रहना चाहते हों तो आंखे दान करो।मरने के बाद भी दिल की धड़कन महसूस करनी हों, तो दिल दान करों।इस तरह के और रोचक नारे और स्लोगन बनाकर बढ़ियाकर प्रचार करने महर्षि दधीचि की देहदान की परम्परा को ओर आगे बढ़ाया जा सकता। और लोगों की जान बचायी जा सकती हैं। अशोक मधुप (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) https://www.hindi.awazthevoice.in/opinion-news/this-oath-will-inspire-people-to-donate-their-bodies-37443.html

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