Wednesday, April 30, 2014

उनकी लुटिया डूब रही है

उनकी लुटिया डूब रही है


मियां जुम्मन आज बहुत गुस्से में दिखाई दिए। जाने कहां से बड़बड़ाते चले आ रहे हैं। मैंने उनका गुस्सा शांत करने के लिए ठंडा पानी पिलाया। किंतु वह मानने को तैयार नहीं। मैंने पूछ ही लिया, आखिर बात क्या हुई? क्यों नाराज हो?

वह बोले, चुनाव में ये नेता एक-दूसरे को गाली दें। एक दूसरे को चोर या उचक्का बताएं। भाजपा वाड्रा का इतिहास बताए अथवा कांग्रेस मोदी का अडाणी से संबंध। हमें इससे कोई लेना-देना नहीं। हम जानते हैं कि ये सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। जिसे जहां मौका मिल रहा है, लूट में लगा है अथवा लूटने वालों की गैंग में शामिल है। गुस्सा इस बात का है कि आपस में गाली-गलौज करते ये नेता अब जनता को गाली देने लगे हैं। फारूख अब्दुल्ला को ही लो। वह फरमा रहे हैं कि मोदी को वोट देने वाले समुद्र में डूब जाएं। इस तरह उन्होंने मोदी को वोट देने वालों को गाली दी। अब मोदी वाले कांग्रेस के वोटर को गाली देंगे। सब कहते है कि लोकतंत्र का आधार वोटर है। नेता तो उसे ही गाली देने पर उतर आए हैं।

मैने उन्हें समझाया, मियां जुम्मन, गुस्सा मत करो। गर्मी के मौसम में चुनाव हो रहे हैं। गर्मी का असर दिमाग का पारा चढ़ाएगा ही। दूसरे, वोटर के रुख ने बड़े-बड़ों के होश उड़ा दिए हैं। सारे नेता बौखलाए हुए हैं। बाजार में नमो गान ही चल रहा है। इस मंत्र से अन्य पार्टियों के तमाम नेता परेशान हैं। इस चुनावी तूफान में बड़े-बड़े तंबू उखड़ते नजर आ रहे हैं। ऐसे में नेता आखिर झल्लाएं नहीं, तो क्या करें? वोटर उनकी लुटिया डूबोने में लगा है। बड़े बड़े दिग्गज-मठाधीश अपनी लुटिया डूबती देख रहे हैं।

चुनाव जीतने के अथवा वोटर को लुभाने के सारे हथकंडे फेल होते नजर आ रहे हैं। न गुरु जी काम आ रहे हैं, और न गंडे-ताबीज। वोटर से भयभीत नेता अब गुस्से में कुछ तो कहेंगे ही। अच्छा यह है कि इन नेता जी के मुंह से दिल की बात निकल गई। अब इंतजार तो चुनाव परिणाम आने का है। देखते हैं कि समुंदर में कौन डूबता है- वोटर को गाली देने वाले नेता या वोटर।

अशोक मधुप
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अमर उजाला के ३० अप्रैल के अंक में सम्पादकीय पर नुक्कङ मे छपा मेरा   एक व्यंग लेख


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