Monday, December 15, 2014

तेहरवी का रिहर्सल

        सरदार तारा सिंह को जन्म दिन पर शाल ओढ़ाकर 
सम्मानित  करते श्री जय नारायण अरुण 

नूरपुर के रहने वाले सरदार तारा सिंह बहुत ही मस्त मौला है। खालसा इंटर कॉलेज नूरपुर के प्रधानाचार्य  होने के दौरान कई  बार कार्यक्रम में उन्हें संचालन करते देखा। कार्यक्रम संचालन में वे हसीं की फुलझड़ी छोड़ते रहते। सबसे बड़ी बात यह होती कि सरदार होते भी वे सरदारोंं पर ही सबसे ज्यादा चुटकुले  सुनाते । 1933 में जन्में सरदार तारा सिंह बहुत ही मस्त व्यक्ति हैं।
प्रधानाचार्य  होते राष्ट्र पति द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया। उनके प्रधानाचार्य  होने के दौरान मैं नूरपुर जाता तो खालसा इंटर कॉलेज में जरूर जाता। स्कूल का समय होता या अवकाश का दिन वे कॉलेज में जरूर मिलते। मेरी कोशिश होती कि कॉलेज घूमूं  और देखूं कि नया क्या बना है। प्रत्येक बार कुछ न कुुछ नया जरूर होता। तारा सिंह ने इस कॉलेज को बुलंदी तक पंहुचाने में कोई  कसर नहीं छोड़ी।
मैने एक बार उनसे पढऩे के लिए सिखों का इतिहास मंगा लिया। बताता चलूं कि तारा सिंह की अपनी बहुत अच्छी लाइबे्ररी है। बहुत दुर्लभ  पुस्तकें उनके पास हैं। लगभग एक माह बाद आए और पूछा कि पुस्तक पढ़ली। मैंने उन्हीं कि भाषा में जवाब दिया कि देखिए पहला बेवकूफ  वह जो किसी को किताब पढऩे को दे और दूसरा वह जो पढ़कर लौटा दे। अब आप बन गए। मैं तो बनने से रहा। वे बिजनौर जब आते तो मेरे से मिलने आते और किताब मांगते नहीं चूकते। मेरा रटारटाया पुराना उत्तर सुनकर वह चले जाते। कई बार ऐसा हुआ।  एक बार आए और बातों में लग गए। उन्होंने किताब नही मांगी और विदा लेकर चलने लगे। मैंने उन्हें रोका । मेज की दराज से किताब निकालर उन्हें दें दी। किताब काफी पहले पढ़कर मेज की दराज में रख्र छोड़ी थी कि उस दिन दूंगा जिस दिन वह नहीं मांगेंगे। 
काफी दिनों बाद अभी तीन दिन पूर्व फोन आया । बोले कल में अपनी तेहरवीं का रिहर्सल कर रहा हूं। दुपहर में खाना है। जरूर आना। फिर बोले आओगे तो कुछ गिफ्ट  तो लाओगे ही। सौ  ग्राम मूंगफली जरूर लाना। 
सवेरे मैंने दफ्तर के एक साथी से कहा कि अच्छी वाली ढाई  सो ग्राम मूंगफली खरीद कर कहीं से बहुत सुंदर पैक कराकर लाओ। दफ्तर के और साथियों ने भी मेरी बात सुनी। कहा कुछ नहीं मुस्काराकर चुप हो गए। साथी बहुत सुंदर पैंकिग बनवाकर लाया। 
तारा सिंह जी के बेटे ने नूरपुर धामपुर मार्ग  पर एक कॉलेज चलाया हुआ है। तारा सिंह जी भी प्राय: वहीं मिलतें है।  मेरी गाड़ी ने कॉलेज में  प्रवेश किया तो सरदार जी सामने ही खड़े नजर आ गए। तपाक से गले मिले। बताया कौन -कौन आ गए हैं। मै  पहली बार कॉलेज में आया था , सो उन्होंने पूरा  कॉलेज घुमाया।   कॉलेज के दोनों साइड की बिल्डिंग के बीच खाली जगह पर टीन का शेड डालकर असेंबली के लिए जगह बनाई  हुई थी। लॉन बहुत ही खूबसूरत था। कॉलेज से सटाकर तारा सिंह जी ने मैरिज हाउस बनाया है।  इस पर काम चल रहा है। यहीं भोजन की व्यवस्था थी।  रास्ते में वे बतातें रहे । मै  सुनता रहा। बहुत दिन से उन्हें सुना नही था।
इस दौरान कुछ उनके शिष्य भी मिले । पांव छूकर जन्म दिन की बधाई दी। वे सबसे हंसकर  कहते -बधाई- वधाई गई भाड़ में ये बता गिफ्ट क्या लाया है? सरकार जी के विनोदी रवैये से परिचित सब कार्यक्रम का आनन्द लेते रहे। मुझे जल्दी लौटना था , सो खाना खाकर कॉलेज से सरकने लगा।
तारा सिंह मुझे अपनी पुस्तक  मंथन रास्ते में लिए मिले। पूरे पूछने पर बोले मंथन  कविताओंं की किताब है। मैने कहा मेरी कहां है? उत्तर दिया - ये अरूण जी के लिए है। अरूण जी  उनके शिक्षक  जगत के पुराने साथी  और देश के जाने माने आर्य समाजी नेता हैं। इतने में एक ने संदेश दिया अरूण जी को फीना जाना था। दूसरे रास्ते से निकल गए। अब सरदार जी ने पुस्तक पर मेरा नाम लिखकर मुझे दे दी  और मैं  बिजनौर के लिए रवाना हो गया।  पुस्तक अरुण जी को नही मुझे मिलनी थी। मुझे ही मिली जबकि तारासिंह अरूण  जी को देना चाहते थे।
  

Friday, November 28, 2014

एक गलती ऐसी भी


कई बार बहुत अजीब होता है। नया होता है। ऐसा होता है कि मन ही मन मुस्कराकर रह जाना पड़ता है।
दुबई  की  सवेरे की फलाइट थी। बिजनौर से चल कर रात को बिटिया के पास गाजियाबाद  रूका। छोटे बेटे को मुझे छोडऩे एयरपोर्ट  जाना था,सो वह भी लक्ष्मी नगर से गाजियाबाद आ गया।
दामाद को शुगर हुई थी । उन्होंने उसकी जांच के लिए मशीन खरीद  रखी थी। मेरी भी जांच करने की जिद करने लगे । मैने बहुत मना किया कि मुझे शुगर नहीं है। किंतु नहीं माने जांच की तो 265 आई।
उन्होंने कहा -आपको शुगर है। जांच कराओ । बेटा भी दबाव देने लगा। मुझे सुबह निकलना था सो मामला उस समय टल गया ।
दुबई  से वापसी आया तो परिवार का  दवाब कि जांच कराओ। छोटे बेटे- बिटिया और दामाद की टोका टाकी। मजबूरन जांच कराने को तैयार हुआ। सवेरे बिना कुछ खाए और नाश्ते के बाद दो बार जांच होती है। चलते समय मै  पत्नी को भी ले गया और कहा जांच करा लो।
जांच में फास्टिंग में 60 से 110 नार्मल है किंतु मेरी शुगर 300 आई। नाश्ते के बाद 60 से 140 होनी चााहिए । ये 412 रही। ऐयी ही कुछ हालत पत्नी निर्मल की भी हुई। 60 से 110 की जगह 200 और नाश्ते के बाद की 80 से 140 की जगह 260 हुई। हम दोनों को पहले  कभी शुगर थी नहीं , तो रिपोर्ट  पर यकीन नहीं हुआ। दूसरी लेब पर जांच कराई तो मेरी शुगर फास्टिंग  की  60- 110 की जगह 210 और नाश्ते के दो घंटे बाद की 336 रहीं। निर्मल की भी 230 और 300 रही।
बहुत बड़ी गलती यह हुई कि दूसरे दिन जांच कराने के दो दिन बाद दीपावली थी। अब शुगर निकल आई  तो मिठाई से बचना था। सो दीपावली की आई मिठाई खाने की जगर्ह बांटनी पड़ी। चाय भी फीकी शुरू कर दी। निर्मल पहले ही मीठा बहुत कम लेती हैँ, सो उन्हें तो कुछ परेशानी नहीं हुई। परेशानी मुझे हुई जिसे   मिठाई का बहुत शौक रहा है। फीकी चाया पीनी पड़ती तो यह लगता कि इससे तो न पी जाए तो ज्यादा बेहतर रहे।
किसी तरह एक माह काटा। इस दौरान हम दोनों ने परहेज किया और एक्सरसाइज बढ़ाई। पहले मुझे तीस चालिस मिनट घूमते भी परेशानी होती थी । नींद आने लगती थी। सो बींच में ही घूमना छोड़ आकर सो जाता था। अब शुगर के डर से सवेरे एक घंटा घूमना शुरू कर दिया। एक घंटा योगा प्राणायाम में देने लगा। शाम को भी खाना खाने से पूर्व  तीस चालिस मिनट घूमने  लगा।
 डाक्टर नीरज चौधरी  जनपद के बहुत बड़े फीजिशियन  और हार्ट स्पेशलिस्ट हैं। उनसे समय लिया। हमारी रिपोर्ट देखकर यह चौंके। उन्होंने अपने यहां शुगर टैस्टï कराई । निर्मल की 165 और मेरी 148 आई। फिर भी लैब पर सघन जांच कराने का निर्णय लिया गया।
अब जांच में  60 से 110 रहने वाली मेरी  शुगर 112 और निर्मल की 148 आई। रिपोर्ट  देखकर वह चौकें। बोले आपने बहुत कंट्रोल किया है। ऐसे ही बनाए रखो। दवाई की कोई  जरूरत नहीं।
अब हम अपनी बेवकूफी पर हंसते है कि दीपावली के बाद जांच  कराई  होती तो घर आई मिठाई  जमकर खाई  जाती।  इधर उधर बांटनी तो  न पड़ती। दूसरी ओर  ये सोचतें हैं कि शुगर आएगी, ये यकीन नहीं था। इसी गफलत में जांच करा ली। हां एक माह की  एकसरसाइज का परिणाम यह हुआ कि अब घूमते सुस्ती नहीं आती। थकान नहीं होती। घूमने का समय भी बढ़कर दो घंटे के आसपास आ गया है। अब को शिश है कि इसे बनाए रखा जाए।अब शुगर तो सही हो गई पर जिन्हे बता दिया कि शुगर है । चाय फीकी लेंगें अब उनसे कैसे कहा जाए । कि अब ठीक हैं मीठी चाय देना ।
अशोक मधुप

Sunday, July 27, 2014

व्यंग बजट और मिया जुम्मन की नाराजगी


मियां जुम्मन आज बहुत नाराज नजर आ रहे थे। आते ही फट पड़े। मोदी और मोदी के मंत्री अजीब हैं। आम  बजट में सब को कुछ न कुछ दिया। आयकर में छूट की सीमा बढ़ाई। सीनियर सिटीजन को लाभ दिया। दवाई सस्ती की। टीवी मोबाइल पर टैक्स छूट दी। गंगा सफाई के लिए बजट रखा। अभी आयकर में छूट की और तैयारी है। सब खुश हैं कि उनके लिए कुछ न कुछ जरूर किया।
मैने सवाल किया आप क्यों परेशान है? क्या बजट में आपको भी कुछ चाहिए था? वे बोले- नहीं भाई। मोदी को चाहिए था  कि एक नया विभाग खोलते । खत्म होते राजनैतिक दलों के कल्याण के लिए । उनके सुधार के लिए। बड़े दलों को तो जरूरत नहीं । पर छोटे दलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। संसद, विधान सभा में उनके लिए रिजर्वेशन का प्रावधान किया     जाना चाहिए। कोई  ओर न जीत पाए । नेता जी खुद  तो जीत कर संसद पंहुच जाए। नेता जी अपने बेटे या बेटी को तो संसद पंहुचा दें। ऐसी तो बजट में व्यवस्था की जानी चाहिए थी। हारे दलों के कल्याण के लिए बनने  वाले मंत्रालय के माध्यम से  छोटे और मझले दलों को वोट बैंक बढ़ाने, जनता मेें अपनी पकड़ बनाने की ट्रेनिंग दी जाती।  शॉक में डूबे हारने वाले राष्ट्रीय नेताओं के स्वास्थ्य की जांच के लिए व्यवस्था होती। दलितों के माध्यम से प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने वाले, तीसरे मोर्चा के माध्यम से प्रधानंत्री की कुर्सी कब्जाने का ख्वाब  संजाने  वालों के टूटे सपनों को जोड़ने की योजनाएं होती। केंद्र  में सरकार बनाने वाले दल से जोड़ -तोड़ कर जीन चाार सांसदों केे बल पर   केबनेट में स्थान पाने वाले छोटे चौधरी के लिए तो कुछ होता।  लालू और चुनाव में पराजित उनकी लड़की के लिए योजनाए होती।
बजट में नेता विरोधी दल का प्राविधान किया जाना चाहिए था। यदि सबसे बड़ी पार्टी  से नेता विरोधी दल नहीं बन सकता तो मिलीजुली सरकार की तरह कुछ दलों का गठबंधन कर नेता विरोधी दल चुने जाने का प्राविधान  तो  बजट में जरूर होना चाहिए था।
मैने  उनकी हां में हां भरते हुए कहा कि बारिश न होनेे से  सूखे की आंशका को देख सरकार तैयारी में लगी है।  सरकार की मशीनरी का प्रयास है कि  सूखे का प्रभाव कम से कम किया जा सके। अधिकतर विरोध दलों के नेताओं के  घरो में  तो लोकसभा चुनाव के दौरान ही सूखा पड़ गया । उनके लिए भी तो प्रंबध किया जाना चाहिए। अपने आप कौन अपने लिए कहता  है। मोदी तो विशाल हृदय है।  विजयी होते  ही    चुनाव पूर्व विरोध करने वाले आडवानी जी के  पंाव छूकर आशीर्वाद लिया। सुुषमा जी को विदेश मंत्रालय दिया। समृति इरानी को चुनाव के दौरान ही छोटी बहिन बना लिया। चुनाव में चारोंं खाने चित्त रहे विपक्ष के बड़बोले नेताओं के बारे में भी तो कुछ किया जाना चाहिए।
-अशोक मधुप








Thursday, July 24, 2014

सांवन की कांवड और ‌बिजनौर


सावन की शिवरात्रि से पूर्व कांवड‌‌ियों का भारी रेला रास्तों पर होता है।गंगा की दूसरी साइड मुजफ्फरनगर ,मेरठ ‌,दिल्ली व ह‌रियाणा राज्य के लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर ह‌रिद्वार से ‌निकलतें हैं। इनका रास्ता मुजफरनगर मेरठ होकर होता है।हाला‌कि व्यवस्था के ‌लिए ये सब कुछ साल से ‌कांवड लेने बिजनौर होकर ह‌रिद्वार जातें हैं।
 सावन में ही मुरादाबाद, बुलंदशहर के भारी तादाद में कांव‌‌ड‌िए ‌बिजनौर से होकर वापस अपने घर जातें हैं। आश्चर्य की बात ये है ‌कि ‌बिजनौर जनपद में सावन में कावंड  लाने का प्रचलन नहीं है।यहां फरवरी में पड़ने वाली शिवरात्रि पर कांवड लाने का प्रचलन है। कुछ समय से अब कांवड आने लगी। वरन इस शिवरात्रि पर ‌बिजनौर जनपद में भगवान शिव का पूजन भी बहुत ही कम होता था।
हाला‌कि ‌बिजनौर जनपद में भगवान राम और कृष्ण के प्राचीन  मं‌दिर नही हैं। जो मं‌दिर हैं  वे ज्यादा पुराने नहीं। पुराने मं‌दिर भगवान शिव के ही हैं। ‌जिला गजे‌टियर कहता है ‌कि ‌बिजनौर भार शिवों का क्षेत्र रहा हैं। यहां के शिव उपासक कंधे पर शिव ‌लिंग लेकर चलते थे। जनपद में पुराने शिवालय गंज में ‌निगमागम ‌विद्यालय में और शेरकोट में रानी फुलकुंमारी कन्या इंटर काॅलेज के गेट पर स्‌थ‌ति हैं। इन दोनों में प‌रिक्रमा के ‌लिए मं‌दिर में ही स्‌थान बना है। शिव ‌लिंग बड़े हैं। उनकी ‌पिंडी काफी ऊंची उठाकर बनाई गई है।मं‌दिर की दीवारों पर मुस‌लिम काल की ‌‌चित्रकला है।
  जनपद के पुराने आदमी या ‌विद्वान सावन में कावंड न लाए जाने का  कारण नहीं बता पाए। लगता है ‌कि ‌बिजनौर ह‌रिद्वार से सटा ‌जिला तो है ‌किंतु लगभग 30- 40 साल पूर्व ‌बिजनौर ह‌रिद्वार का गंगा में उफान के कारण बरसात में संपर्क खत्म हो जाता था। इसी कारण सावन में यहां कावंड  लाने का प्रचलन नहीं हैं। यहां फरवरी में अाने वाले सावन में कावंड लाने की परम्परा है।आपमें से ‌किसी की जानकारी में  ब‌िजनाैर में सावन में कांवड लाने का कोई कारण हो तो कृपया मेरी ज्ञान वृ‌द्ध‌ि करें । 

Wednesday, June 11, 2014

व्यंग




अमर  उजाला के आज ११  जून के सम्पादकीय पेज पर
तमाशा में छपा मेरा एक व्यंग लेख 

Wednesday, May 28, 2014

चलो मंथन करते हैं


राजनीति भी अजीब शै है। जब तक सत्ता में हैं, तब तक मदमस्त हैं। किसी के दुख-दर्द से कुछ लेना-देना नहीं। बस अपना उल्लू सीधा करना है। जब सब कुछ लुट गया। सफीना मझधार में डूब गया, तो सब मंथन करते हैं।
माया मंथन कर रही हैं। वह शॉक में हैं। समझ नहीं आया- क्या हुआ? कैसे पूरी सोशल इंजीनियरिंग फेल हो गई। मुलायम मंथन कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश का यादव कैसे ′हिंदू′ बन गया? अजित गम में हैं कि उनके बिरादर जट ही उन्हें धोखा दे गए। वे जाट धोखा दे गए, जिन्हें उन्होंने कुछ ही दिन पूर्व केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण दिलाया था। खुलकर तो नहीं बोल रहे, पर सभी मन ही मन कह रहे होंगे कि सारे वोटर एहसान फरामोश निकले। सब ने धोखा दे दिया। सब हिंदू बन गए और मोदी का राजतिलक कर दिया।
सब मंथन कर रहे हैं। चुनाव में मुलायम का कुनबा तो बच गया, लेकिन लालू का परिवार राजनीतिक वैतरणी में डूब गया। पांच सांसदों के बूते केंद्रीय उड्डयन मंत्री बने अजित सिंह खुद भी गए, और बेटे को भी ले गए। बड़ी आशा लेकर राजनीति के चाणक्य अमर सिंह उनकी शरण में आए थे। सब उल्टा हो गया। सब मंथन कर रहे हैं। वह भी तब, जब पूरी बस्ती उजड़ गई। जब बस्ती बसी थी, तब नहीं सोचा कि जनता का भला कैसे हो?
चुनाव में मुलायम कहते थे, हम देखेंगे 56 इंच का सीना। पर दूसरे ने ऐसा धोबी पाट मारा कि मुलायम जैसा पुराना पहलवान भी चारों खाने चित्त हो गया। मात्र घर के बचे। सारा पार्लियामेंटरी बोर्ड घर में। किसी मसले पर बाहर जाने की जरूरत नहीं।
देवताओं और राक्षसों ने जब समुद्र मंथन किया था, तो उसमें से 14 रत्न मिले थे। वहां रत्न पाने को मंथन हुआ था, और यहां रत्न लुट जाने पर। इस बात पर मंथन हो रहा है कि वोटर हमें बेवकूफ कैसे बना गया, जबकि हम बरसों से उसे बेवकूफ बना रहे थे। मतदाताओं ने ऐसा तुरुप का इक्का मारा कि पांच साल तक हमारा संसद जाने का रास्ता ही बंद कर दिया। प्रधानमंत्री बनने की जुगाड़ में थे, मंत्री से भी गए।
अशोक मधुप
आज २८ मई के अमर उजाला में सम्पादकीय पेज पर तमाशा में छापा मेरा व्यंग लेख 

Friday, May 9, 2014

सपेरे का साक्षात्कार

बहुत भागदौड़ के बाद उस व्यक्ति को आखिर मैने खोज ही लिया , जिसने उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री की कार में सांप डाल दिया था। पत्रकारजनित उत्सुकता से मैने उससे पूछ ही लिया-भाई तुम्हें क्या सूझी? मंत्री जी की कार में सांप क्यों छोड़ दिया? वह मुसकराकर बोला -कोई खास बात नहीं । मै तो सपेरा हूं। सांपो से खेलता हूं। उन्हें दुलराता हूं। प्यार करता हूं। । अपने परिवारजनों की तरह उन्हें पालता हूं। इसी कारण वे मेरा कहा मानतें हैं। मेरी मर्जी पर जनता का मनोरंजन करतें हैं। नेता जी को देखकर मैने सोचा कि जरा इनकी विद्वता परख ली जाए। ये नए- नए नारे लगातें है । सारी जनता को मूर्ख बनाते हैं। कभी गरीबी हटाओ की बात करतें हैं। तो कभी रामराज्य का सपना दिखातें हैं। हर बार चुनाव में अलग - अलग तरह के मुखौटे लगाकर जनता के बीच आते हैं। बार - बार उसे भरमातें हैं। छलकर चले जातें हैं। बस मैने इनकी प्रतिभा परखने के लिए इनकी गाड़ी में सांप डाला था। मैं देखना चाहता था कि ये मेरे सिखाए सांप को भी बेवकू फ बना पातें हैं, या नहीं। वह ठहाका लगाते हुए बोला-कार में सांप डालते ही कमाल हो गया। सारी जनता को बेवकूफ बनाने वाले नेता जी को सांप सूंघ गया। सांप को पढ़ाने की जगह कार से भागकर जान बचाई। काश नेता जी जानते कि सांप भी दोस्त -दुश्मन को अच्छी तरह पहचानता हैं। प्यार करने वाले को नहीं काटता । काटता उसे ही है, जिससे खतरा जानता है। वैसे सापों के भी कुछ उसूल होतें हैं। वे उन्हें मानते हैं। सब जगह टेड़े चले किंतु बांबी में सीधे ही अंदर जातें हैं। दूसरे 90 प्रतिशत सांपों में जहर नहीं होता। किंतु नेता का कुछ नहीं बांबी हो या घर कब क्या करदें कुछ पता नहीं? सापंो से ज्यादा ये जहरीले होंते है। ये तो कब किसे डसलें कुछ नहीँ कहा जा सकता। मौका पड़ने पर किराए के बदमाशों से अपने ही जुलूस पर पत्थर फिंकवा लेते हैं। और को तो क्या बकशेगें, ये तो राजनीति की खातिर आतकवादियों से अपनी बेटी तक का अपहरण करा लेंते है। जीवन से ज्यादा प्यार करने वाली पत्नी और पे्रमिका को कभी भी मार या मरवा देतें हैं। कभी तो पत्नी के टूकड़ो को तंदूर में जलवा देतें हैं। कैसे नेता जी हैं ये मैने जरा सा झटका दिया तो भाग खड़े हुए। जरा सी देर में नानी याद आ गई। सब लग गये मेरी खुशामद करने। गिड़गिड़ाते देख मैन भी अपने सांप को पकड़कर अपनी झोली में डाल लिया। -अशोक मधुप