Thursday, July 24, 2014

सांवन की कांवड और ‌बिजनौर


सावन की शिवरात्रि से पूर्व कांवड‌‌ियों का भारी रेला रास्तों पर होता है।गंगा की दूसरी साइड मुजफ्फरनगर ,मेरठ ‌,दिल्ली व ह‌रियाणा राज्य के लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर ह‌रिद्वार से ‌निकलतें हैं। इनका रास्ता मुजफरनगर मेरठ होकर होता है।हाला‌कि व्यवस्था के ‌लिए ये सब कुछ साल से ‌कांवड लेने बिजनौर होकर ह‌रिद्वार जातें हैं।
 सावन में ही मुरादाबाद, बुलंदशहर के भारी तादाद में कांव‌‌ड‌िए ‌बिजनौर से होकर वापस अपने घर जातें हैं। आश्चर्य की बात ये है ‌कि ‌बिजनौर जनपद में सावन में कावंड  लाने का प्रचलन नहीं है।यहां फरवरी में पड़ने वाली शिवरात्रि पर कांवड लाने का प्रचलन है। कुछ समय से अब कांवड आने लगी। वरन इस शिवरात्रि पर ‌बिजनौर जनपद में भगवान शिव का पूजन भी बहुत ही कम होता था।
हाला‌कि ‌बिजनौर जनपद में भगवान राम और कृष्ण के प्राचीन  मं‌दिर नही हैं। जो मं‌दिर हैं  वे ज्यादा पुराने नहीं। पुराने मं‌दिर भगवान शिव के ही हैं। ‌जिला गजे‌टियर कहता है ‌कि ‌बिजनौर भार शिवों का क्षेत्र रहा हैं। यहां के शिव उपासक कंधे पर शिव ‌लिंग लेकर चलते थे। जनपद में पुराने शिवालय गंज में ‌निगमागम ‌विद्यालय में और शेरकोट में रानी फुलकुंमारी कन्या इंटर काॅलेज के गेट पर स्‌थ‌ति हैं। इन दोनों में प‌रिक्रमा के ‌लिए मं‌दिर में ही स्‌थान बना है। शिव ‌लिंग बड़े हैं। उनकी ‌पिंडी काफी ऊंची उठाकर बनाई गई है।मं‌दिर की दीवारों पर मुस‌लिम काल की ‌‌चित्रकला है।
  जनपद के पुराने आदमी या ‌विद्वान सावन में कावंड न लाए जाने का  कारण नहीं बता पाए। लगता है ‌कि ‌बिजनौर ह‌रिद्वार से सटा ‌जिला तो है ‌किंतु लगभग 30- 40 साल पूर्व ‌बिजनौर ह‌रिद्वार का गंगा में उफान के कारण बरसात में संपर्क खत्म हो जाता था। इसी कारण सावन में यहां कावंड  लाने का प्रचलन नहीं हैं। यहां फरवरी में अाने वाले सावन में कावंड लाने की परम्परा है।आपमें से ‌किसी की जानकारी में  ब‌िजनाैर में सावन में कांवड लाने का कोई कारण हो तो कृपया मेरी ज्ञान वृ‌द्ध‌ि करें । 

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