सर छोटू राम भारतीय राजनीति के उन विरले नेताओं में गिने जाते हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन किसानों, मजदूरों और ग्रामीण समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। उन्हें आधुनिक भारत का किसान मसीहा कहा जाता है। उनका व्यक्तित्व केवल एक नेता का नहीं बल्कि सामाजिक सुधारक, दूरदर्शी चिंतक और न्यायप्रिय प्रशासक का रहा। उनके विचारों और नीतियों ने उत्तर भारत के ग्रामीण समाज को नई दिशा दी और बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में ग्रामीण चेतना को मजबूत किया।
सर छोटू राम का जन्म 24 नवंबर 1881 को तत्कालीन पंजाब प्रांत के रोहतक जिले के गढ़ी सांपला गांव में हुआ। उनका मूल नाम राऊ रिचपाल था, जिसे बाद में छोटू राम के रूप में जाना गया। सामान्य कृषक परिवार में जन्म लेने के कारण उन्होंने बचपन से ही किसानों की कठिनाइयों को नजदीक से देखा। यही अनुभव उनके पूरे जीवन के आधार बने और यही कारण था कि उन्होंने पढ़ाई-लिखाई के बाद भी शहरों की चमक-दमक से दूर रहकर ग्रामीण भारत की समस्याओं को केंद्र में रखा।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव और जिला मुख्यालय में पूरी की। आगे की उच्च शिक्षा के लिए वे दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज गए और फिर कानून की पढ़ाई के लिए आगरा और अलाहाबाद में अध्ययन किया। वे अत्यंत तेजस्वी, स्पष्टवादी और मेहनती विद्यार्थी थे। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की, परंतु उनका मन हमेशा किसानों और मजदूरों की दुर्दशा पर चिंतित रहता था। इसी चिंता ने उन्हें राजनीति और सामाजिक सेवा की ओर मोड़ा।
राजनीति में प्रवेश के बाद उनका लक्ष्य बहुत स्पष्ट था—किसानों को साहूकारों और जमींदारों की शोषणकारी व्यवस्था से मुक्त कराना। उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी के माध्यम से पंजाब के ग्रामीण समाज को संगठित किया। उस समय किसानों पर अत्यधिक कर्जा होता था और सूदखोरी की वजह से उनकी जमीनें लगातार छीनी जा रही थीं। सर छोटू राम ने इस समस्या को जड़ से समझा और किसानों के लिए ऐतिहासिक कानून बनवाए। उनमें सबसे महत्वपूर्ण था—पंजाब राहत-ए-कर्ज अधिनियम। इस कानून ने किसानों को साहूकारों की पकड़ से काफी हद तक मुक्त कराया और उनकी जमीनों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसके अलावा उन्होंने पंजाब कृषि उत्पादक विपणन अधिनियम बनवाया, जिससे किसानों को अपने उत्पादों की बेहतर कीमत मिल सके। मंडियों की व्यवस्था को नियंत्रित कर उन्होंने बिचौलियों के शोषण पर रोक लगवाई। सर छोटू राम के प्रयासों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार हुआ। उन्होंने किसान सभा, सहकारी समितियों और ग्रामीण विकास योजनाओं को बढ़ावा दिया। वे हमेशा जोर देते थे कि भारत की असली शक्ति गांवों में है और यदि गांव मजबूत होंगे, तो राष्ट्र भी मजबूत होगा।
सर छोटू राम ने केवल किसानों के आर्थिक हितों की ही नहीं, बल्कि उनके सामाजिक उत्थान की भी चिंता की। उन्होंने समाज में फैली छुआछूत, जातिगत भेदभाव और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। वे शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का सबसे बड़ा माध्यम मानते थे। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका मानना था कि शिक्षित किसान ही अपने अधिकारों और कर्तव्यों को बेहतर तरीके से समझ सकता है।
सर छोटू राम अत्यंत सादगीपूर्ण और उच्च नैतिक मूल्यों वाले व्यक्ति थे। सत्ता में रहते हुए उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाया। उनका जीवन अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का उदाहरण रहा। राजनीतिक मतभेदों के बावजूद उनके विरोधी भी उनकी सत्यनिष्ठा और दूरदर्शिता का सम्मान करते थे। ब्रिटिश सरकार ने सामाजिक योगदान और प्रशासनिक दक्षता को देखते हुए उन्हें “सर” की उपाधि दी, परंतु उन्होंने हमेशा खुद को किसानों का सेवक ही माना।
उनका प्रभाव इतना व्यापक था कि उन्हें आज भी हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण समाज में गहरी श्रद्धा से याद किया जाता है। उनकी नीतियों से लाभान्वित किसान उन्हें अपने पथप्रदर्शक के रूप में देखते हैं। कहा जाता है कि यदि सर छोटू राम का निधन 1945 में न हुआ होता, तो स्वतंत्र भारत की कृषि नीति और भी अधिक किसान-केंद्रित होती।
सर छोटू राम का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व वही है जो समाज के वंचित वर्गों को सशक्त बनाए, जो अपने पद का उपयोग सेवा और सुधार के लिए करे, न कि स्वार्थ के लिए। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे—विशेषकर आज के दौर में, जब किसान मुद्दे चर्चा के केंद्र में हैं।
अंततः, सर छोटू राम केवल एक नेता नहीं थे, बल्कि एक आंदोलन थे—ग्रामीण चेतना का, न्याय के संघर्ष का और भारत के किसानों को सम्मान दिलाने का। उनका जीवन देश के भविष्य के लिए प्रेरणा-स्रोत है और रहेगा।
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