वृद्धावस्था अभिशाप भी वरदान भी। ये अपके जीने का तरीका है कि आप उसे अभिशाप समझतें हैं या वरदान।अभिशाप समझेंगे तो जल्दी चल देंगे।वरदान समझेंगे तो आनंद लेंगे। ज्यादा जीवन जिएंगे।वृद्धावस्था में भी युवा जैसा भोगेंगे ।
इस ब्लाँग पर दिए लेख लेखक की संपत्ति है। कृपया इनका प्रयोग करते समय ब्लाँग और लेखक का संदर्भ अवश्य दें।
Friday, August 15, 2025
वृद्धावस्था अभिशाप भी वरदान भी
धर्म के पाखंड में फंसी सभ्यता
प्रारंभ में आदमी जंगल में रहता। शिकार करता और अपना पेट भरता। ये जंगल का कानून था। समय सबको बदलता है। इस व्यवस्था में बदलाव शुरू हुआ। पहले महिला -पुरूष अकेले थे। इसके बच्चे हुए। इनकी संख्या बढ़ी।धीरे - धीरे परिवार बनने बना।
परिवार बनने के साथ इस कानून को बदलने की प्रक्रिया प्रांरभ हुई।जंगल राज में शक्ति संपन्न की महत्ता थी। परिवार बनने पर सबके लिए संसाधन के बंटवारे की बात हुई। संसाधनों के बंटवारे पर काम शुरू हुआ। परिवार के लिए नियम कायदे बनने लगे। कई परिवारों का कबीला बना। यहां संसाधनों के कबीले में बांटने की बात हुई। इन संसाधनों के बंटवारे की व्यवस्था बनाने के लिए एक प्रमुख की जरूरत हुई।ऐसे व्यक्ति की जो ताकतवर को कमजोर का हक न मारने दें। जो सही को सही कह सके, जनता के साथ न्याय कर सके , ऐसा ही व्यक्ति कबीले का मुखिया बना।
विकास के सिद्वान्त के अनुसार कबीले बढ़ने लगे । कई कबीलों बने ।इन कबीलों की बस्ती बनी।इन बस्तियों के गांव बने। गांवों की सुरक्षा और व्यवस्था के लिए कबीले के प्रमुख की तरह इनका भी एक प्रमुख बनाया गया। कई गांव के प्रमुखों पर व्यवस्था बनाने के लिए समाज ने जरूरत महसूस की। इस संरचना में राजा की उत्पत्ति हुई। एक कबीला प्रमुख बना। कई कबीलों और गांव पर राजा बना।
राजा की व्यवस्था निर्माण के समय किसी के दिमाग में आया कि राजाओं के ऊपर भी व्यवस्था की देेखरेख करने वाला कोई होगा। इसी सोच से ईश्वर की उत्पत्ति हुई। राजा अपनी राज व्यवस्था देखने वाला और ईश्वर राजा प्रजा सबका नियन्ता।सबका दाता। सबका खेवन हार। सबके ऊपर शासन करने वाला हो गया।
ईश्वर बनाने की प्रक्रिया में धर्म और समाज की व्यवस्था करने वालों ने अपने को सबसे ऊपर रखा।राजा की व्यवस्था बनाने वाले ने राजा को प्रमुख रखा किंतु राजा से गुरू को भी बड़ा बना दिया। परिवार के लिए सलाह हो या राज्य के लिए कोई व्यवस्था । इसके लिए गुरू का निर्णय राजा से ऊपर रहा । किसी भी राजा की हिम्मत नहीं हुई कि अपने गुरू की बात टाल दे। गुरू का वाक्य उनके लिए ब्रहम वाक्य बन गया। ऐसा वाक्य जिसे टाला नहीं जा सकता। इस व्यवस्था में ब्राहण सर्वोपरि है। ब्राहण हत्या ,ब्रह्म हत्या हो गई। वो हत्या जिससे बढ़कर कोई पाप नहीं हो सकता। राजगुरू राजा से ऊपर पंहुच गया। व्यवस्था बनाने वाला ब्राह्मण श्रेष्ठ हो गया।
राजा राजगुरू और व्यवस्था बनाने वाला ब्राह्मण आम जनता से ऊपर हो गया।।व्यवस्था बना दी कि जिस अपराध को करने में आग आदमी का सिर काटना चाहिए। ब्राहमण के लिए उसका सिर घुटना देना काफी है। क्योकि व्यवस्था बनाने वाले सत्ता के नजदीक थे, तो उन्होंने सत्ता के बाद अपना लाभ देखा। अपने हिसाब से नियम बनाए। अपने को प्रमुख बनाए रखने के लिए काम किया।यहीं सब गड़बड़ हुआ।
राज व्यवस्था में गुरू को बड़ा दर्जा मिला। राजा से भी बड़ा। राजाज्ञा से बड़ी गुरू आज्ञा हो गई।
धर्म में इससे भी आगे हो गया। धर्म में गुरू भक्त को गोविदं से मिलवाने का माध्यम बन गया। इस व्यवस्था में गुरू गोविंद (भगवान) से ऊपर जा बैठा। गुरू गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय, बलियारी गुरू आपने गोविंद दिया बताए। जैसे दोहे लिखे गए। गुरू महिला पर साहित्य रखा गया। भगवान की व्यवस्था बनाने वालों ने अपने को भगवान से बड़ा बनाया।
ये गुरू सर्व सत्ता संपन्न हो गए। भगवान को मिलवाने वाले गुरू भगवान बन बैठे।खुद को भगवान घोषित करने लगे।भक्तों के लिए सही रूप में यहीं भगवान हो गए।भक्त इन्हें भगवान मानने लगे।इनके कहने पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करना आम हो गया। इसे ये बड़ा पूण्य मानने लगे। राम-रहीम के कहने पर
अपनी बेटी डेरे में सेवा के देते इन्हें झिझक महसूस नहीं होती। बेटी को डेरे को सौंपते उसे समझातें हैं मनसा, वाचा कर्मणा भगवान की सेवा करना । बेटी डेरे और आश्रम के हाल देख ,मां बाप को मर्यादा के तहत सब सही नहीं बताती। बस इशारों में इतना ही कहती है कि यहां कुछ गड़बड़ है। ठीक नहीं है। मां -बाप अपनी बेटी की बात पर यकीन नहीं करते। कहतें हैं। तेरा मन भटक रहा है। भगवान में मन लगा। भगवान की सेवाकर । उनका कहा मान । उनके लिए बेटी छोटी पड़ गई। गुरू बड़ा हो गया। जब गुरू बड़ा हो गया तो फिर उसके पापाचार का विरोध कैसे हो।
समाज में परेशानी ज्यादा है। कोई बेटे की नौकरी के लिए परेशान है। किसी को बिटिया के लिए ठीक से वर नहीं मिल रहा। जो मिल रहा है वह दहेज ज्यादा मांग रहा है। कहीं भाइयों में बटवारें का विवाद है। कोई इसलिए परेशान है कि इसके माता- पिता संपत्ति का भाइयों में बराबर बंटवारा नहीं कर रहे। किसी को डर है कि उसका पिता भाई कें बटवांरे में ज्यादा संपत्ति न दे दे। किसी की पत्नी पड़ौसी से लगी है तो किसी का पति दूसरी महिला के चक्कर में पड़ा है। पति- पत्नी इसलिए परेशान हैं कि बेटा बेटी उनकी बताई जगह शादी करने को तैयार नहीं हैं। कहीं परिवार में पति बीमार है तो कहीं पत्नी में ।
हालात यह है कि समाज का लगभग प्रत्येक आदमी किसी ने किसी कारण परेशान है।किसी न किसी समस्या से ग्रस्त है। ऐसे में आदमी अपनी समस्या का निदान खोजना चाहता है। इस दौरान इन गुरूओं और उनके शिष्यों के आडंबर की कहानियों उस तक पंहुचती रहती हैं। वह इन्हें सत्य मान लेता है। इन समस्याओं का निदान उसे गुरू की शरण ही नजर आती है। अब चाहे गुरू समोसा हरी चटनी से खाने को कहे या लाल से।शुगर के मरीज को जमकर मीठा खाने की सलाह ही क्यों न दें।
इन गुरूओं ,बाबाओं और भगवानों के बड़े बडे मायाजाल है। इनकी अपनी अपनी कथांए हैं। अपना अपना प्रचार तंत्र है। इसमें इन्होंने नई नई कथाएं फैला रखी है। अपनी गाथांए फैला रखी हैं। कोई कहता है कि उसके बाबा ने कैँसर के मरीज को भभूत देकर ठीक कर दिया। कोई कहता है कि बाबा के आशीर्वाद से उसका मुकदमा छूट गया। नही तो ऐसा लग रहा था हकि उसे फांसी नहीं तो आजीवन कारावास जरू र होता। एक बाबा के बारे में तो प्रसिद्घ है कि उनके बीमारी की जगह हाथ फैरने से बीमारी ठीक हो जाती है।किसी के छूने मात्र से जिन्न या भूत भाग जाता है। जो जितना बड़ा गुरू है। जितना बड़ा महात्मा हैै, उसका उतना ही बड़ा माया जाल है। कहीं निर्मल बाबा की दुनिया है। कहीं राम रहीम का डेरा। कहीं आश्राराम बापू का आश्रम।
इसी धर्म की व्यवस्था के मायाजाल में धर्म ज्ञानी किसी की सुनने को तैयार नहीं। महाराजा जनक की सभा में इसी कारण , इससी अहम ,इसी शक्ति के बल पर गार्गी को सुनना पडता है। उसे आगह करते कहा जाता है- बस गार्गी बस । आगे बोली तो सिर धड़ से अलग हो जाएगा। बेचारी गार्गी शास्त्र ही जानती थी। शास्त्रार्थ ही समझती थी। तलवार नहीं। इसीलिए नही समझ पाई कि कैसे सिर अलग हो जाएगा।ऐसा ही यहां होता है। इस व्यवस्था के खिलाफ बोलने वाले की जवान बंदकर दी जाती है। कही धन से कही ताकत से। फंस जाने पर ये दंगे करवाने से भी बाज नहीं आते।
एक बात और गुरू शिष्य केे गलत रास्ते से रोकने वाला है, किंतु गुरू को रोकने वाला कोई नहीं। अपने को सबसे ऊपर मानने वाले गुरू केे सही या गलत बताने वाला कोई नहीं। रामायण में रावण को विभीषण,कुंभकरण पत्नी मंदोदरी सही गलत का ज्ञान तो कराने का प्रयास करतें हैँ । इन गुरूओं को तो कोई कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं हैं। क्योंकि भक्तों के लिए इनका एक-एक शब्द भगवान का आदेश है। एक एक वाक्य ब्र्र्र्रह्म है।ऐसा भगवान का आदेश जहां किंतु -परंतु को जगह नहीं है। धन के लोभ में न पड़ने की सलाह देने वाले गुरू खुद धन के चक्कर में पड़ जातें हैं। काम को पाप बताने वाले आशाराम बापूू,रामरहीम खुद काम और कामनी के रम जातें है। भक्त इनके पापकर्म को जानते भी कृष्ण की रासलीला समझ सबको नजर अंदाज कर देतें हैं। वे उनके पापाचार को गलत नही मानते। गलत मानते तो गोपियों संग कृष्ण का कृत्य रासलीला न होती ।
किसी विद्वान ने धर्म को अफीम का नशा कहा गया है। ये नशा हम भारतीयों के रोम- रोम मे समा गया है। भगवान का परिचय कराने वाले वालें गुरूओं की सर्वोपरि सत्ता से हम निकल नहीं पाते। इस नशे में फंसकर उसके बाहर की दुनिया हमें नजर नहीं आती। गुरूओं का मायाजाल हमें इससे मुक्ति से बाहर की सोचने नहीं देता।
अशोक मधुप
Wednesday, August 13, 2025
पूरे देश के आवारा कुत्तों पर कार्रवाई क्यों नही?
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली एनसीआर में आवारा कुत्तों के बढ़ते खतरे पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली/ एनसीआर के नागरिक प्रशासन और स्थानीय निकाय को सख्त निर्देश जारी किए हैं। इनमें आवारा कुत्तों को पकड़ने, उनकी नसबंदी करने और उन्हें आश्रय गृह में रखने के निर्देश दिये गए हैं।सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन आवारा कुत्तों के खिलाफ कार्रवाई में अड़ंगा डालता है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई करें। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि 'एनसीटी-दिल्ली, एमसीडी, एनए
जस्टिस पारदीवाला ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि 'नसबंदी हो चुकी है या नहीं, सबसे पहली चीज है कि समाज आवारा कुत्तों से मुक्त होना चाहिए। एक भी आवारा कुत्ता शहर के किसी इलाके या बाहरी इलाकों में घूमते हुए नहीं पाया जाना चाहिए। हमने नोटिस किया है कि अगर कोई आवारा कुत्ता एक जगह से पकड़ा जाता है और उसकी नसबंदी करके उसे उसी जगह छोड़ दिया जाता है, ये बेहद बेतुका है और इसका कोई मतलब नहीं बनता। आवारा कुत्ते क्यों वापस उसी जगह छोड़े जाने चाहिए और किस लिए?' पीठ ने कहा कि हालात बेहद खराब हैं और इस मामले में तुरंत दखल दिए जाने की जरूरत है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने भी अदालत से अपील की कि वे इस मामले में सख्ती से दखल दें ताकि आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान हो सके। मेहता ने कहा कि नसबंदी से कुत्तों की सिर्फ संख्या बढ़नी रुकती है, लेकिन रेबीज का संक्रमण फैलाने की उनकी क्षमता कम नहीं होती।
सवाल यह है कि ये आदेश दिल्ली /एनसीआरके लिए ही क्यों हैं।देश में भी तो नागरिक रहते हैं। उनके लिए क्यों नही। आवारा कुत्तों का आंतक तो पूरे देश में है। देश में कुत्तों के काटने से औसतन प्रति वर्ष 29 हजार से ज्यादा व्यक्ति मरते हैं। यह तो संख्या वह है जो रिपोर्ट हो जाती है। गांव देहात के मामले से रिपोर्ट ही नही हो पाते। न वे खबरों की सुर्खियां बनते हैं।
उत्तर प्रदेश का बिजनौर बहुत छोटा जिला है। यहां हाल ही में 24 जुलाई की शाम थाना अफजलगढ़ क्षेत्र के गांव झाड़पुरा भागीजोत में खेत पर काम कर रहीं 65 वर्षीय वृद्धा को आवारा कुत्तों के झुंड ने नोच कर मार डाला। तीन अगस्त को हीमपुर दीपा के गांव गांगू नंगला में हिंसक कुत्ते ने हमला कर दो बच्चों सहित 10 लोगों को बुरी तरह से घायल कर डाला। छह जून 2025 को अफजलगढ़ में पांच साल की बच्ची यास्मीन को आवारा कुत्तों के झुंड ने नोच-नोचकर मार डाला. दरअसल, बच्ची मां के साथ दूध लेने गई थी और पीछे रह जाने पर बच्ची कुत्तों के हि लग गई।
23 अक्तूबर 2023 को देश की प्रमुख चाय कंपनियों में से एक वाघ बकरी चाय के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का निधन हो गया है। मीडिया खबरों के मुताबिक 49 साल के पराग पिछले हफ्ते अहमदाबाद में मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। इस दौरान आवारा कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया। खुद को बचाने में वह फिसलकर गिर गए और उन्हें ब्रेन हेमरेज होने से निधन हो गया ।
भारत सरकार के स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने पिछले साल संसद में हुए एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि 2019 में 72 लाख 77 हजार 523 कुत्तों के हमले रिपोर्ट हुए। वहीं साल 2020 में कुल 46 लाख 33 हजार 493 कुत्तों के हमलों रिपोर्ट हुए, जबकि साल 2021 में कुल 1701133 कुत्तों के काटने के मामले रिपोर्ट हुए।साल 2022, जुलाई तक भारतीय लोगों पर हुए कुत्तों के हमले की कुल संख्या स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 14 लाख 50 हजार 666 थी। इन हमलों में कई लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है। ये हमले आवारा और पालतू दोनों कुत्तों के हैं। इसके साथ ही इन हमलों के शिकार, बच्चे, बुजुर्ग और जवान तीनों हुए हैं।
साल 2018 में मेडिकल जर्नल लैंसेट में छापी इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में हर साल 20 हज़ार लोग रेबीज के कारण मरते हैं. इनमें से ज्यादातर रेबीज के मामले कुत्तों द्वारा इंसानों तक पहुंचे हैं।ऐसा नहीं है कि हर कुत्ते के काटने से आपको रेबीज हो सकता है, लेकिन ज्यादातर आवारा कुत्तों के काटने से रेबीज का खतरा रहता है। कुत्तों के इन हमलों के सबसे ज्यादा शिकार छोटे बच्चे ,महिलाएं और जवान होते हैं।
सुप्रीम कार्ट को यह समझना होगा कि अवारा कुत्तों की परेशानी दिल्ली− एनसीआर में ही नही है, ये पूरे भारतवर्ष की समस्या है।देश के देहात के तो हडवार ( मरे जानवर डालने के स्थान के पास) रहने वाले कुत्ते तो और भी ज्यादा खतरनाक होते हैं।ये महिलाएं,बीमार और बच्चों समेत अकेले आते जाते व्यक्ति को मारकर उसके मांस से अपना पेट भरतें हैं ।आवारा कुत्तों की समस्या भारत व्यापी है । इसलिए इस मामले पर कार्रवाई भी देशव्यापी होनी चाहिए।
अशोक मधुप
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Monday, August 4, 2025
टैरिफ वार से अमेरिका का ही नुकसान कर रहे हैं ट्रंप
टैरिफ वार से अमेरिका का ही नुकसान कर रहे हैं ट्रंप
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ को सात दिन के लिए टाल दिया है। ये एक अगस्त से लागू होना था, जो अब सात अगस्त से लागू होगा।
ट्रम्प ने 92 देशों पर नए टैरिफ की लिस्ट जारी की है। इसमें भारत पर 25 प्रतिशत और पाकिस्तान पर 19 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है। हालांकि, कनाडा पर एक अगस्त से ही 35 प्रतिशत टैरिफ लागू हो गया है।
साउथ एशिया में सबसे कम टैरिफ पाकिस्तान पर लगा है। अमेरिका ने पहले पाकिस्तान पर 29 प्रतिशत टैरिफ लगा रखा था।वहीं दुनियाभर में सबसे ज्यादा 41 प्रतिशत टैरिफ सीरिया पर लगाया गया है। इस लिस्ट में चीन का नाम शामिल नहीं है।
ट्रम्प ने दो अप्रैल को दुनियाभर के देशों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, लेकिन सात दिन बाद ही इसे 90 दिनों के लिए टाल दिया था। कुछ दिनों बाद ट्रम्प ने 31 जुलाई तक का समय दिया था।इसके बाद ट्रम्प सरकार ने 90 दिनों में 90 सौदे कराने का टारगेट रखा था। हालांकि, अमेरिका का अब तक सिर्फ सात देशों से समझौता हो पाया।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। साथ ही रूस से तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त जुर्माना लगाने की भी बात कही है। जानकारों का कहना है कि उनके इस कदम से भारत की ग्रोथ पर ज्यादा असर नहीं होगा। एसबीआई रिसर्च ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय एक्सपोर्ट्स पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का असर अमेरिका के लिए भारत से ज्यादा बुरा होगा। अमेरिका को कम जीडीपी, ज्यादा महंगाई और डॉलर के कमजोर होने का सामना करना पड़ सकता है। एसबीआई रिसर्च ने इस टैरिफ को 'बुरा बिजनेस फैसला' बताया।
एसबीआई रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत के मुकाबले अमेरिका की डीजीपी , महंगाई और करंसी के नीचे जाने का ज्यादा रिस्क है। रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा ट्रेड वार के आर्थिक नतीजों को देखें तो यह अचरज की बात नहीं है कि अमेरिका पर भारत के मुकाबले अधिक बुरा असर पड़ेगा। रिसर्च ने बताया कि अमेरिका में फिर से महंगाई का दबाव दिखना शुरू हो गया है।
अनुमान है कि अमेरिका में महंगाई 2026 तक दो प्रतिशत के तय टारगेट से ऊपर ही रहेगी। ऐसा टैरिफ के सप्लाई-साइड इफेक्ट्स और एक्सचेंज रेट में बदलाव की वजह से होगा। एसबीआई रिसर्च ने बताया कि शॉर्ट-टर्म में अमेरिकी टैरिफ की वजह से एक औसत अमेरिकी घर पर करीब 2,400 डॉलर का बोझ पड़ने का अनुमान है। वजह, टैरिफ से बढ़ने वाली महंगाई के कारण कीमतें बढ़ना है।
अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने चेताया है कि गर्मियों के मौसम तक अमेरिका की सभी सहयोगी व्यापार साझेदार देशों से मतभेदों का असर दिखने लगेगा और नियुक्तियों में कमी खतरे की घंटी है। ग्लासडूर के मुख्य अर्थशास्त्री डेनियल झाओ ने कहा कि मंदी आ नहीं रही है बल्कि आ चुकी है।अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप के व्यापार एजेंडा का असर दिखने लगा है और रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका मंदी की चपेट में आता दिख रहा है। अमेरिकी कंपनियां कर्मचारियों की नियुक्तियां घटा रही हैं। अमेरिकी श्रम विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी नियोक्ताओं ने बीते महीने 73 हजार नौकरियां दीं। यह अनुमान के 1,15,000 से काफी कम हैं।मई और जून में 2,58,000 कर्मचारियों की छंटनी हुई और बेरोजगारी दर बढ़कर 4.2% हो गई । अमेरिका में बेरोजगारों की संख्या में 2,21,000 की बढ़ोतरी हुई। बीएमओ कैपिटल मार्केट्स के मुख्य अर्थशास्त्री स्कॉट एंडरसन ने कहा, 'अमेरिकी श्रम बाजार की स्थितियों में उल्लेखनीय गिरावट आ रही है। हम टैरिफ और व्यापार युद्ध शुरू होने और अधिक प्रतिबंधात्मक आव्रजन नीति के बाद से ही अर्थव्यवस्था में मंदी का अनुमान लगा रहे थे। श्रम विभाग की रिपोर्ट श्रम बाजार के लिए एक मुश्किल हालात का सबूत है।'अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने चेताया है कि गर्मियों के मौसम तक अमेरिका की सभी सहयोगी व्यापार साझेदार देशों से मतभेदों का असर दिखने लगेगा और नियुक्तियों में कमी खतरे की घंटी है। ग्लासडूर के मुख्य अर्थशास्त्री डेनियल झाओ ने कहा कि मंदी आ नहीं रही है बल्कि आ चुकी है। शुक्रवार को अमेरिकी शेयर बाजार में भी गिरावट दिखाई दी। राष्ट्रपति ट्रंप ने श्रम विभाग द्वारा जारी आंकड़ों को खारिज कर दिया है। इतना ही नहीं उन्होंने श्रम विभाग की निदेशक एरिका मेकएंटरफेर को भी पद से हटाने के निर्देश दिए हैं। एरिका की नियुक्ति पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल में हुई थी। राष्ट्रपति ट्रंप ने कई देशों पर टैरिफ लगा दिए हैं। ट्रंप प्रशासन को उम्मीद है कि टैरिफ से मैन्यफैक्चरिंग सेक्टर अमेरिका में फिर से मजबूत होगा। हालांकि अर्थशास्त्रियों का मानना है कि टैरिफ का असर अमेरिकी जनता पर ही सबसे ज्यादा पड़ेगा।
भारत और अमेरिका के बीच लगभग 130 अरब डॉलर का व्यापार होता है। अमेरिका भारत से लगभग 87 अरब डॉलर के उत्पादों का आयात करता है वहीं, भारत अमेरिका से मात्र 41.8 अरब डॉलर के उत्पादों का आयात करता है। अब अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद, यह सवाल उठ रहा है कि इसका क्या असर होगा। भारत से सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक और आईटी सेक्टर में बनने वाले उत्पादों को अमेरिका भेजा जाता है। पिछले कुछ समय से भारत में बने स्मार्टफोन्स से लेकर लैपटॉप, सर्वर और टैबलेट्स की डिमांड अमेरिका में बढ़ी थी। ऐसे में सात अगस्त से लागू होने वाले अमेरिकी टैरिफ का सबसे ज्यादा असर इसी सेक्टर पर पड़ने की संभावना है।
भारत के 11 से 13 मई 1998 में सफलतापूर्वक परमाणु परीक्षण किया । इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा भारत पर अनेक प्रतिबंध लगाए गए। उस समय विशेषज्ञों की ऐसी राय थी कि भारत अलग-थलग पड़ जाएगा और इसकी अर्थव्यवस्था प्रतिबंधों के बोझ तले दब जाएगी। इन प्रतिबंध का भारत सफलतापूर्वक सामना कर अपने को अडिग साबित करने में कामयाब रहा। सात साल बाद अमेरिका ने इसे एक असाधारण मामले के रूप में मानते हुए, भारत को मुख्य धारा में लाने के लिए पहला कदम उठाया, जिसकी परिणति 2005 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के रूप में हुई।
भारत परमाणु परीक्षण के बाद के प्रतिबंधों में नही झुका तो अब तो उसकी हालत बहुत मजबूत है।एक कुशल नेतृत्व उसके पास है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से तेल न ले।भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपने हितों से कोई समझौता नही करेगा। भारत रूस से पहले की तरह तेल लेता रहेगा। इतना ही नही भारत ने अमेरिका की आंख की किरकिरी ईरान से भी तेल खरीदने की घोषणा कर दी है। उधर अमेरिका को इस घटनाक्रम के बाद साफ कर दिया कि वह अमेरिका से एफ−35 लड़ाकू विमान नहीं ख़रीदेगा।
अमेरिका भारत से लगभग 87 अरब डॉलर के उत्पादों का आयात करता है। भारत ने तै किया है कि अब वह दुनिया के अन्य देशों में बाजार खोजेगा। अमेरिका से होने वाले नुकसान की भरपायी अन्य जगहों से की जाएगी।हाल ही में एक सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मादी ने देशवासियों से स्वदेशी अपनाने की अपील ही है।यह घोषणा भी अमेरिकी टैक्स वृद्धि की घोषणा को लेकर की गई लगती है। स्वदेशी अपनाने से हमें देश के बाहर बाजार खोजने की जरूरत नही रहेगा। दूसरे अपने उत्पाद की प्रयोग होंगे तो आयातित सामान पर निर्भरता कम होगी।इतना सब होने के बावजूद हमें अपना कंप्यूटर आपरेटिंग सिस्टम , अपना नेविगेशन सिस्टम और अपने कम्प्यूटर और मोबाइल के सोफ्टवेयर विकसित करने होंगे ताकि दूसरे देशों के सोफ्टवेयर और आपरेटिंग सिस्टम पर निर्भरता कम हो। भारत और टैरिफ वार के शिकार देशों को डालर में खरीद −फरोख्त बंद करनी पर होगी। भारत ने रूस और कुछ अन्य देशों के साथ अपनी मुद्रा में खरीदारी शुरू कर दी है। यदि सभी देशों द्वारा डालर का विकल्प खोजकर व्यापार शुरू किया जाता है तो अमेरिका के लिए ये बड़ा झटका होगा।
अशोक मधुप
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Monday, July 21, 2025
कांवड़ यात्रा के साथ आम यातायात पर भी ध्यान दें
कांवड़ यात्रा के साथ आम यातायात पर भी ध्यान दें
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
अबसे एक दिन बाद 23 जुलाई को शिवरात्रि का पर्व है। लगभग एक सप्ताह से कावंड़ यात्रा चल रही है।सड़कों पर कांवड़ियों के समूह पवित्र नदियों से जल लेकर अपने गन्तव्यों के लिए रवाना हो चुके हैं। शिवरात्रि पर जलाभिषेक के बाद कावंड़ यात्रा पूर्ण हो जाएगी।सड़कों से गुजरते भोले के भक्तों के काफले अपनी मंजिल पर पंहुचकर अगले छह माह के लिए रूक जाएंगे।।जाड़ों में दुबारा शिवरात्रि पड़ेगी, तब ये यात्रा फिर शुरू होगी।फिर कांवड़ियों के काफलें सड़कों पर होंगे। ज्योतिर्लिंग वाले सभी प्रदेशों में इस यात्रा को देखते हुए व्यापक व्यवस्था की जाती है। अन्य शिवालयों पर भी भारी तादाद में श्रद्धालु जल चढ़ाते हैं।कई बार किसी कांवड़ से किसी के टकराने या कावड़िए के दुर्घटनाग्रस्त होने पर कावड़िए प्रायः हंगामा करते हैं। कई जगह तोड़−फोड आगजनी आदि पर उतर आते हैं,इसलिए प्रशासन पहले से सचेत रहता है। केंद्र में भाजपा सरकार आने और कई प्रदेशों में भाजपा की सरकार होने के बाद से इस कांवड़ यात्रा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा।इनके लिए आने −जाने के मार्ग निर्धारित होने लगे।इन कांवड़ियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। अधिकतर महत्वपूर्ण मार्ग इनके लिए आरक्षित किए जाने के कारण इन मार्ग के वाहन दूसरे मार्ग पर भेजे जाने लगे। इससे आम लोगों को परेशानी होने लगी। तीन घंटे का रास्ता छह से सात घंटे में पूरा होने लगा। वाहनों को 60 से 70 किलो मीटर ज्यादा चलना पड़ा। वाहनों के ज्यादा चलने के तेल ज्यादा लगा। तेल का ज्यादा लगना राष्ट्रीय नुकसान है और व्यक्ति की समय की बरबादी। व्यवस्था ऐसी बनाई जाए कि कांवड़ यात्रा भी निर्विघ्न रूप से पूरी हो और दूसरे वाहन और यात्रियों को कोई परेशानी न हो। नियमित यातायात इस यात्रा के दौरान सुगमता से चलता रहे।
आज हालत यह है कि कई दिन से उत्तर प्रदेश− दिल्ली एनसीआर और उत्तरांचल के मार्गों पर दिन में ट्रकों की आवाजाही बंद है।सड़कों के किनारे ट्रकों की लंबी− लंबी लाइन लगी है।पूरे दिन वह सड़क किनारे खड़े रहते हैं। रात में उन्हें चलने की अनुमति मिलती है। इस प्रक्रिया से राष्ट्र की कितनी शक्ति व्यर्थ जाती है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
शिवरात्रि भगवान शिव का पर्व है।यह पर्व पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता है।करोड़ों की संख्या में शिव के उपासक पवित्र नदियों के स्थलों से उनका जल कांवड़ में लेकर आते और शिवालयों पर जाकर चढ़ाते हैं। ज्योतिर्लिंग पर तो शिवरात्रि पर जल चढ़ाने के साथ उत्तर भारत क्या पूरे देश में यह पर्व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। कांवड़ यात्रा कई –दिन चलती है। सड़कों पर कावड़ियों का रेला ही रेला दिखाई देता है। श्रद्धालु कावंड़ियों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा उपलब्ध कराकर पुण्य लाभ पाने के लिए तत्पर रहतें हैं।ये कांवड़ियों मार्ग पर उनके खाने –पीने की ठहरने आदि की निशुल्क व्यवस्था करते हैं।भंडारे लगाते हैं। यात्रा पर निकलने से पहले कावंड़िए तैयारी करते हैं।कांवड़ , उसके सजाने आदि और अपनी यात्रा का सामान खरीदते हैं।अपने साथ चलने वाले वाहन किराए पर लेते हैं। इन पर किराए का म्युजिक सिस्टम लगाते हैं।कांवडिए की अलग तरह की भगवा रंग की टीशर्ट चल पड़ी ।इसका ही अब लाखों रूपये का कारोबार बन गया। कांवड़ यात्रा से हजारों लोगों का रोजगार चलता है। इस यात्रा पर खरबों रूपये का बिजनेस होता है। इसलिए ये यात्रा होनी चाहिए ।इस यात्रा की व्यवस्थाएं भी भव्य होनी चाहिए।कांवड़ियों की व्यापक सुरक्षा और बढ़िया मार्ग की व्यवस्था होनी चाहिए।जगह− जगह आपातकाल में इनके उपचार के प्रबंध हों । इनकी सुविधा के लिए कोई कसर उठकर नही रखी जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस व्यवस्था पर स्वंय नजर रखते हैं।वे हैलिकाप्टर से कांवड़ियों पर फूलों की वर्षा भी करते हैं।
उत्तर भारत में सावन की शिवरात्रि पर श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह रहता है।कावड़ यात्रा के कारण उत्तर भारत में यातायात बुरी तरह प्रभावित होता है। हरिद्वार प्रशासन के अनुसार पिछले साल साढ़े चार करोड़ से ज्यादा शिवभक्त जल लेने हरिद्वार पंहुचे।2023 में चार करोड़ श्रद्धालु आए थे।ये यात्रा अभी चल रही है,अनुमान है कि इस बार अकेले हरिद्वार से ही कांवड़ लाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या पांच करोड़ से ज्यादा हो जाएगी,किंतु कुछ स्थानों पर पूरे सावन कांवड़ चढ़ती हैं।श्रद्धालु के समूह हरिद्वार आते और जल लेकर अपने गंत्व्यों की ओर रवाना होते रहते हैं।
उत्तर भारत की इस कांवड़ यात्रा को देखते हुए उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश,दिल्ली और हरियाणा सरकार व्यापक व्यवस्थाएं करती हैं, किंतु यात्रा के समय ये सब व्यवस्थांए बौनी पड़ जाती हैं।इसी कारण कई जगह कांवड़ियों के हंगामा करने की सूचनाएं आती हैं।कुछ जगह तोड़फोड़ और आगजनी तक हो जाती है।इस सबका कारण यात्रा से कुछ पहले तैयारी करना है, जबकि इसके लिए पूरे साल तैयारी की जाती चाहिए। इसके लिए अलग से विभाग होना चाहिए, किंतु ऐसा होता नहीं।
केंद्र और राज्य सरकारों को कावंड़ियों की सुविधा के साथ आम आदमी की सुविधा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। व्यवस्था की जानी चाहिए कि कांवड़ यात्रा के दौरान आम यातायात प्रभावित न हो।केंद्र एक्सप्रेस वे बना रहा है ताकि यातायात के किसी वाहन को परेशानी न हो। इसके लिए कांवड यात्रा वाले प्रदेश की सरकारों का केंद्र के साथ मिल बैठ कर प्लान करना चाहिए। कावंड यात्रा वाले मार्ग पहले ही इस तरह बनाए जांए कि उसकी साइड से आम यातायात सुगमता से अनवरत चलता रहे। कांवड1 यात्रा वाले मार्ग पर कांवड़ यात्रियों के लिए पहले से ही दो अलग लेन बनाकर रखी जा सकती हैं। यात्रा के समय में इन पर कांवड़िए और उनके वाहन चलें , बाद में ये लेन आम ट्रैफिक के लिए प्रयोग हों।कांवड़ यात्रा वाले मार्ग पर कांवड़ यात्रियों के आराम रूकने के स्थान पहले से चिंहित हों।स्थान ऐसे हों कि यहीं कांवड़ शिविर भी लग सकें।
1990 के आसपास कांवड़ यात्रा का इतना प्रचलन नही था। आज यह बढ़ता जा रहा है।अब साढे चार करोड़ के आसपास कांवड़िए हरिद्वार से कांवड़ ला रहे हैं। इनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए हो सकता है कि आने वाले कुछ सालों में यह संख्या बढ़कर दुगनी या उससे भी ज्यादा हो जाए। इसलिए हमें अभी से इसके लिए व्यवस्था बनानी होगी। प्लानिंग करनी होगी। हरिद्वार आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए हरिद्वार के लिए अतिरिक्त ट्रेन चलानी होंगी। कावंड़ यात्रा के समय आम यात्री को कांवडियों की भीड़ के कारण भारी परेशानी होती है। ट्रेन के साथ –साथ इनकी संख्या को देखते हुए स्पेशल बसे चलाईं जांए।कांवड़ यात्रा के कारण छात्रों की परेशानी को देखते हुए कई जगह स्कूल काँलेज बंद करने पड़तें हैं। शहरों के स्थानीय निवासियों की गतिविधि और आवागमन प्रभावित होता है,व्यवस्था ऐसे बनाई जाए कि कांवड़ यात्रा भी चले और उस क्षेत्र के आम निवासी की गतिविधि और दिनचर्या भी प्रभावित न हों। इस पार उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल सरकार ने हुडदंग करने वाले कांवड़ियों के विरूद्ध कार्रवाई शुरू की है। ये व्यवस्था तो पहले से होनी चाहिए।भगवान शिव के भक्तों को तो बहुत सरल और सौम्य होना होगा।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Tuesday, July 1, 2025
बड़ी चुनौती है फैक्ट्री के धमाकों को रोकना
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के पासमैलारम फेज एक इलाके में सोमवार को एक केमिकल फैक्टरी में हुए विस्फोट में 34 कर्मचारियों की मौत हो गई । तीन दिन पहले उत्तर प्रदेश के नोएडा के थाना फेस वन क्षेत्र स्थित डी-93 सेक्टर-दो स्थित शाम पेंट इंडस्ट्रीज केमिकल की कंपनी में भीषण आग लग गई। आग इतनी भयावह थी कि लपटें आसमान तक छूती नजर आई। करीब ढाई घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका। फायर ब्रिगेड टीम ने इस आग की घटना में किसी प्रकार के जानमाल के नुकसान न होने की बात कही है। इसी 16 जून को उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद के रजबपुर थाना क्षेत्र के गांव अतरासी से करीब दो किलोमीटर दूर यह फैक्ट्री चार महिलाओं की मौत हो चुकी थी। नौ घायल मजदूरों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।आरोप है कि फैक्ट्री संचालक ने पटाखे बनाने के लिए आसपास की रहने वाली महिलाओं को कम मजदूरी पर रखा था। उन्हें केवल 300 रुपये दिहाड़ी दी जाती थी। मजदूरों को न कभी ट्रेनिंग दिलाई और नही आपातस्थित से निपटने का कोई प्रशिक्षण दिया गया। फैक्ट्री में दुर्घटनाएं होने पर कुछ दिन शोर मचता है। मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा होने के बाद सब शांत हो जाता है।दुर्घटनाएं रोकने की कोई योजना नही बनती।नही फैक्ट्री के श्रमिकों को दुर्घटना होने के समय की चुनौती बताई जाती हैं। दुर्घटना होने के समय की चुनौती के समय के लिए प्रशिक्षित भी नही किया जाता।दुर्घटना होने पर क्या किया जाए इसका भी प्रशिक्षण नही दिया जाता। फैक्ट्री लगती है किंतु उनका तकनीकि निरीक्षण नही होता। निरीक्षण करने वाली अधिकारी पैसे के बल पर अपने आफिस में ही बैठकर रिपोर्ट बना देते है। सही मायने में फैक्ट्रियों में होने वाली दुर्घटनाओं और उनमें होने वाली मौत का जिम्मेदार वह अमला भी है जो समय −समय पर इनके सुरक्षा तंत्र का निरीक्षण करता है।
श्रम और रोजगार मंत्रालय के महानिदेशालय फ़ैक्ट्री सलाह सेवा और श्रम संस्थान (DGFASLI) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत के पंजीकृत फ़ैक्ट्रियों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन मज़दूरों की मौत हुई है और 11 घायल होते हैं।नवंबर 2022 में आरटीआई जवाब के अनुसार, भारत में रजिस्टर्ड फ़ैक्ट्रियों में हर साल होने वाली दुर्घटनाओं में 1,109 वर्करों की मौत हो गई और 4,000 से अधिक वर्कर घायल हुए। ये 2017 से 2020 के बीच आंकड़ों के आधार पर है।वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह संख्या और भी ज्यादा है क्योंकि बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्रों में होने वाले हादसों की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं की जाती है।
निदेशालय जनरल फैक्ट्री एडवाइस सर्विस एंड लेबर इंस्टीट्यूट्स की रिपोर्ट, 2022 के अनुसार 2021 में, महाराष्ट्र में 6,492 खतरनाक फैक्ट्रियों में से केवल 1,551 का निरीक्षण किया गया, जिससे 23.89 प्रतिशत निरीक्षण दर प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त, 39,255 पंजीकृत फैक्ट्रियों में से केवल 3,158 का निरीक्षण किया गया। इससे 8.04 प्रतिशत निरीक्षण मिली। अन्य प्रमुख औद्योगिक राज्यों में भी यह प्रवृत्ति दिखाई देती है। तमिलनाडु में सामान्य निरीक्षण दर 17.0 प्रतिशत और खतरनाक फैक्ट्रियों की निरीक्षण दर 25.39 प्रतिशत थी। गुजरात में सामान्य निरीक्षण दर 19.33 प्रतिशत और खतरनाक फैक्ट्रियों की निरीक्षण दर 19.81 मिली।। 2021 के लिए अखिल भारतीय आंकड़े सामान्य निरीक्षणों के लिए 14.65 प्रतिशत और खतरनाक फैक्ट्रियों के लिए 26.02 प्रतिशत थे। उपर्युक्त विवरण से लिया गया है।
खराब निरीक्षण दरों का एक कारण कर्मचारियों की कमी है। महाराष्ट्र में निरीक्षकों की नियुक्ति दर केवल 39.34 प्रतिशत थी। इसमें 122 स्वीकृत अधिकारियों में से केवल 48 कार्यरत थे। गुजरात में नियुक्ति दर 50.91 प्रतिशत रही , तो तमिलनाडु में यह 53.57 प्रतिशत थी। अखिल भारतीय नियुक्ति दर 67.58 प्रतिशत थी। स्वीकृत पदों की संख्या पंजीकृत फैक्ट्रियों की संख्या के सापेक्ष वार्षिक निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त रही है। 2021 में, अखिल भारतीय स्तर पर 953 स्वीकृत निरीक्षकों में से प्रत्येक को वार्षिक रूप से 337 पंजीकृत फैक्ट्रियों का निरीक्षण करना पड़ता है ।
मई 2024 में, महाराष्ट्र इंडस्ट्री डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष ने एक मीडिया रिपोर्ट में स्वीकार किया कि सुरक्षा निरीक्षण और प्रमाणन अक्सर ऑडिटरों और फैक्ट्री मालिकों या प्रबंधकों के बीच "समझ" के आधार पर किए जाते थे। यह संकेत देता है कि नियोक्ता भी श्रम निरीक्षकों के समान ही दोषी हैं, और भ्रष्ट प्रथाओं की "आपूर्ति पक्ष" को संबोधित करना "मांग" पक्ष के सुधार के समान ही महत्वपूर्ण है।
प्रदेश सतर पर विशिष्ट सीमा मात्रा के साथ खतरनाक रसायनों और ज्वलनशील गैसों की एक सूची स्थापित की जानी चाहिए।प्रत्येक राज्य को प्रमुख खतरे वाले कार्यस्थलों की सूची बनाए रखनी चाहिए। समें सुविधा का प्रकार, उपयोग किए गए रसायन और संग्रहीत मात्रा का विवरण हो। खतरनाक सामग्री की सूची और इन्वेंट्री को एक केंद्रीकृत डेटाबेस में संग्रहीत करें, जिस तक नियामक निकाय, आपातकालीन प्रतिक्रियाकर्ता, और जनता आसानी से पहुंच सकें।निरीक्षण प्रणाली को उदार बनाने के बजाय, सरकारों को आईएलओ सम्मेलन के प्रावधानों का पालन करके मजबूत श्रम बाजार शासन सुनिश्चित करना होगा। प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति और खतरनाक और रासायनिक पदार्थों के उपयोग को देखते हुए, सख्त निरीक्षणों की आवश्यकता है।
औद्योगिक आपदाओं की पुनरावृत्ति सरकार की विफलता को दर्शाती है कि उसने पिछले घटनाओं से सबक नहीं सीखा है। सुधारों और कमजोर शासन के नाम पर, राज्य अपने मूल कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकता कि वह एक सुरक्षित कार्य और जीवन सुनिश्चित करे। एक प्रभावी और नैतिक श्रम निरीक्षण प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए सार्थक सुधारों की आवश्यकता है जो श्रमिकों और समुदाय की सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता दें। इसके साथ ही फैक्ट्री श्रमिकों का आपदा के समय सुरक्षा के उपाए, कैसे बचाव करें आदि का बार −बार प्रशिक्षण देना होगा। सभी उद्योगों के निरीक्षण के लिए तकनीकि विशेषज्ञों की टीम बनानी होगी। उन्हें नियमित निरीक्षण के निर्देश करने होंगे। इससे किसी दुर्घटना होने पर मौत और घायलों का आंकड़ा कम किया जा सकता है। दुर्घटना होने के हालात में इन तकनीकि अधिकारियों की जिम्मेदारी भी फिक्स करनी होगी।देखने में आ रहा है कि निरीक्षण स्टाफ की फेक्ट्री स्वामियों से मिलीभगत होने के कारण उद्योग स्वामी प्रायः प्रशिक्षित स्टाफ नही रखते । उत्तर प्रदेश के अमरोहा के अगवानपुर की दुर्घटना ग्रस्त पटाखा फैक्ट्री का भी ये ही कारण रहा। फैक्ट्री स्वामी ने सस्ते के चक्कर में फैक्ट्री के आसपास रहने वाली महिलाएं रख रखी थी। उन्हें वह मात्र तीन सौ रूपया रोज मजदूरी देता था। उनकी सामजिक सुरक्षा आदि का भी प्रबंध नही था।
केंद्र ही नही प्रदेश सरकारों को भी उद्योग स्वामियों को बताना होगा कि उनके यहां काम करने वाले श्रमिक और तकनीकि विशेषज्ञ देश की धरोहर है। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उद्योग के साथ देश और समाज की भी है।घटना होने पर मात्र जांच के आदेश और मुआवजा देने से ही काम नही चलेगा। दुर्घटना के लिए जिम्मेदारी भी तै करनी होगी। जिम्मेदार लोगों को दंडित भी करना होगा तभी जाकर ये दुर्घटनाएं रूकेगी। एक बात और यदि उद्योग में सुरक्षा मानक कड़े हों, उद्योग श्रमिकों को समय −समय पर सुरक्षा संबधी प्रशिक्षण मिले तो दुर्घटनाएं ही न हों। हों तो मौत और घायलों की संख्या बहुत कम रहे। दुर्घटनाएं न हो तो उद्योग भी न मरे।दुर्घटनाएं होने से श्रमिकों के साथ एक प्रकार से संबधित उद्योग भी मर जाता है। अधिकतर दुर्घटनाग्रस्त उद्योग के स्वामी दुर्घटना के कारण हुए नुकसान ,श्रमिकों को मुआवजा आदि देने के कारण बर्बाद हो जाते हैं। वे दुबारा से मुश्किल से ही काम को जोड़ पाते हैं। इससे देश का एक व्यापारी,एक व्यवसायी भी एक प्रकार से मर जाता है।उसका आर्थिक रूप से मरना देश की प्रगति को भी नुकसान देता है।
अशोक मधुप
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Sunday, June 22, 2025
बिजनौर में केंद्रीय विद्यालय की स्थापना
आज केंद्रीय विद्यालय का सुहाहेड़ी ( बिजनोंर) भूमि पूजन हुआ। केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी ने भूमि पूजन और हवन कर विद्यालय की आधार शिला रखी ।
भाजपा कह रहे हैं की केंद्रीय विद्यालय की स्थापना में उनका योगदान है जबकि वास्तविकता कुछ और है।
केंद्रीय विद्यालय की स्वीकृति सन 2004 आसपास हुई।
इसका भवन बने इसपर विचार होने लगा ।मुंशी रामपाल जी 2004 में बिजनौर के सांसद बने।
तत्कालीन जिलाधिकारी ने संसद जी के सामने समस्या रखी और मुंशी राम पाल ने अपनी सांसद निधि से केंद्रीय विद्यालय के कक्षा के लिए राशि दी।
इस राशि से सिविल लाइंस के पूर्व राजकीय महिला अस्पताल में गेट के सामने कुछ कक्षा विद्यालय के लिए तैयार कराए गए। प्रशासन चाहता था कि इस भवन में एक से पांच तक के कक्षाएं शुरू हो जाएं और बाद में जमीन देखकर उसमें केंद्रीय विद्यालय का अपना भवन बनवा दिया जाए। इसके लिए केंद्रीय विद्यालय संगठन तैयार नहीं हुआ और तब से मामला टल रहा है। काफी पहले सुहाहेड़ी पंचायत ने केंद्रीय विद्यालय को जमीन आवंटन का प्रस्ताव कर दिया था। अब तक केंद्रीय विद्यालय बन भी जाता किंतु जनपद के प्रतिनिधि इस केंद्रीय विद्यालय को उलेढा क्षेत्र में बनवाना चाहते थे इसलिए मामला अटक गया।
बिजनोंर महोत्सव में मामला फिर उठा।जनपद के निवासी आईएस/पीसीएस और अन्य वरिषठ अधिकारी सक्रिय हुए।
ये कार्य किसी एक दल या व्यक्ति का प्रयास न होकर पूरे जनपद वालों की मेहनत का नतीजा है।
https://www.facebook.com/share/p/15gLsU8hKb/
Monday, June 16, 2025
पुस्तक समीक्षा फुर्सत के झोंके
पुस्तक समीक्षाफुर्सत के झोंके
कवयित्री अनिदीपम
प्रकाशक वनिका पब्लिकेशन्स बिजनौर
फुर्सत से पढ़ने के लिए हैं फुर्सत के झोंके
समीक्षक अशोक मधुप
बिजनौर की अनिदीपक (श्रीमती) लंबे समय से कवितांए लिख रही हैं किंतु उनकी कविताओं का संग्रह फुर्सत के झोंके हाल ही में बाजार में आया।यह संकलन कवयित्री की रचनाओं की गंभीरता बताता है।कवयित्री का नया नाम होने के कारण शुरूआत में भले ही नया सा लगे किंतु पुस्तक पढ़नी शुरू करने के बाद उसे समाप्त करके ही रूका जाता है। कविताओं में दर्शन के साथ −साथ कवयित्री का गंभीर चिंतन भी पता चलता है।
21 जनवरी 1971 को जनपद के एतिहासिक महत्व के नांगल सोती में जन्मी अनीदीपम एम.ए हैं ।क्रेटिव राइटिंग में उन्होंने डिप्लोमा किया ।पुस्तक की भूमिका में वह कहती हैं कि पांच −भाई बहिनों में वह सबसे छोटी है।सबसे बड़े भाई बाहर पढ़ते थे।वे बचपन से ही मेरे पढ़ने के लिए चंपक, लोटपोट आदि बाल पत्रिकाएं लाते थे।इससे स्कूली शिक्षा के साथ साथ साहित्य में भी रूचि होने लगी।16 कमरों वाले बड़े घर में बड़ी− बड़ी दो अलमारियों में मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद, रविन्द्र नाथ टैगौर के उपन्यास, महात्मा गांधी की आत्मकथा और चंद्रकांता आदि बहुमूल्य पुस्तकें सुंदर नगीनों की तरह रखी रहतीं।समय− समय पर आंगन में चटाई बिछाकर पुस्तकों को धूप लगाई जाती तो पढ़ा भी जाता। छोटे भाई की लग्न और प्रोत्साहन से हाई स्कूल में मेरे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बाद हमारे घर में टेलीविजन आया।रामायण, विक्रम बेताल , चंद्रकांता आदि हिंदी के सीरियल हम देखते−सुनते। दीदी के साथ मैंने शुद्ध हिंदी में बातचीत करनी शुरू की।छोटो− छोटे विचार कविताओं का रूप लेने लगे।लेखन चलता रहा।इसी बीच शादी हो गई। परिवार में दो बच्चे हुए।बच्चों के बड़े होने पर युवावस्था का शौक फिर शुरू हो गया।
अनिदीपम की रचनांए नजीबाबाद के आकाशवाणी केंद्र से निरंतर लम्बे समय से प्रसारित होती और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपती रही हैं।ग्रहणी होकर भी वह लगातार लिख रही हैं। इनकी पहली पुस्तक फुर्सत है छपी। फुर्सत के झोंके इनकी दूसरी पुस्तक है।इनकी कविताओं में दर्शन के साथ समाज को अलग से समझने की सोच है।
शुभ दीपावली शीर्षक की कविता में अनीदीपम कहती हैं−स्याह ओढ़नी पर /टँके सिलवरी सितारे... दीप मालाओं से सजा/ सुनहरी गोटा /सौंदर्य बोध कराता है,/ अमावस्या का।
गोरी चिट्टी पूर्णिमा /ईर्ष्यावश खिसियाकर /लुप्त हो जाती है /जब-/झिलमिलाती अद्भुत त्योहारों से लदी/ मावस/ बाँटती फिरती है-/रंग-बिरंगी खुशियाँ... मीठी उमंगें.../सकारात्मकता के दिये/सुगंधित आशाओं की धूप/खिलखिलाहट भरे सुंदर सपने.../अपने सखा कार्तिक के संग।
दिवाली निर्धनों की में कवयित्री कहती हैं कि चाँद का भी /अपहरण होता है/ अमावस्या के हाथों । फिरौती में/ माँगे जाते हैं.. /रोशनी के साधन लाखों । राशन में मिला/ महीने भर का घासलेट,दिया सलाई ,मोमबाती, झरोखों से आती/ टिमटिमाहट/ महलों की/ प्रतिवर्ष/ निर्धनता/दिवाली के दियों में/ कलेजा जलाती।
हर माह नामक कविता में वह कहती हैं कि अमावस्या भी,/ करती है श्रृंगार /पूर्णिमा के दिन../.चाँद की बड़ी-सी बिंदी /लगाती है- साँवले चेहरे पर /जरा-सी हँसी पर/ चमक जाते हैं /बत्तीसों तारे।निकल पड़ती है-/जुगनुओं को साथ लेकर/ संघर्षरत, /हताश पीड़ितों के बीच,/ हौसला बढ़ाने हर माह !
निगरानी नामक कविता कहती हैं −अटारी की पहरेदारी करते /दरवाज़े हैं बंद/ छत बेचारी ऊँघ-ऊँघ /रोशनदानों से झाँका करती।तपती धूप, ज्येष्ठ दोपहरी/ पेड़ों की छाया भाँय-भाँय /खूँखार हो उठती।'समय का कुछ पता नहीं' यही सोच खूँसर बुढ़िया /लाठी टेक-टेक/ आमों के पेड़ों की निगरानी करती /झोपड़-पट्टी के निर्धन बच्चे /ललचाई लार लिए /कभी लदे पेड़... कभी खाली पेट... और कभी तंबू में/ बाट जोहती माँ /चंद सिक्कों को तरसती ! विश्वासघात में वह कहती हैं कि प्यार के टुकड़े, विश्वास की फाँक /जब कर दी उसने /खूब रोया कोमल मन/ खत्म हो चुकी थी जिजीविषा। शिथिल देह, छटपटाती आत्मा को, कोई न दे सका ढाड़स। दिन से रात/ रात से दिन/ वार से महीने /न जाने कब गुजर गए /वर्ष शातिर चोरों की तरह !
समुद्र खुश है में कवयित्री कहती हैं−देखा है मैंने... राह के चिराग को/ अँधेरा करते।देखा है मैंने...पूर्णिमा की रात को /अमावस्या करते।देखा है...सूरज की पहली किरण को /कोख फूँकते। देखा है...अनाथ बनते चाँद को।
समुद्र खुश है/ बाँटता है जल /माँ के आँसुओं को/ निःशुल्क !
कविताओं और पुस्तक को सुंदर रूप देने में प्रकाशक ने भी बड़ी मेहनत की है।पुस्तक के साथ− साथ पुस्तक कविता को भी शानदार क्लेवर दिया है।
समीक्षक −अशोक मधुप
उद्देश्य से भटके संयुक्त राष्ट्र संघ को भंग क्यों नही करते?
अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) का मुख्य औचित्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, मानव अधिकारों की रक्षा करना, और विभिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना है। इसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में 51 देशों द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य था कि भावी युद्धों को रोका वैश्विक सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके। आज 193 देश इसके सदस्य हैं। इतने बड़े संगठन का लगता है कि आज कोई देश कहना मानने को तैयार नहीं। सबकी अपनी ढपली अपना राग है। संयुक्त राष्ट्र संघ तमाशबीन बन कर रह गया है।लगभग एक साल आठ माह से इस्राइल −हमास युद्ध चल रहा है। अब इस्राइल से ईरान पर हमलाकर दिया है। इस्राइल− ईरान युद्ध में बैलिस्टिक मिजाइल प्रयोग हो रही हैं।सवा दो साल से रूस− यूक्रेन युद्ध चल रहा है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में की गई बरबादी पूरी दुनिया ने देखी। संयुक्त राष्ट्र संघ मानव जीवन की बरबादी देख रहा है। यह असहाय बना बैठा है। मानव जीवन का विनाश रोकने के लिए वह कुछ नहीं कर पा रहा। उसकी भूमिका शून्य होकर रह गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नहीं कर सकता। को देश उसकी मानने को तैयार नही।युद्ध रोकने की उसकी शक्ति नहीं तो उसका औचित्य क्या है? दुनिया के देश क्यों इस सफैद हाथी को पाले हैं। क्यों इसका खर्च वहन कर रह हैं।इस भंग क्यों नही कर दिया जाता।
एक साल आठ माह से से हमास- इस्राइल युद्ध चल रहा है।लगभग डेढ़ साल पूर्व हमास- इस्राइल युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रयास हुए। कई बार प्रस्ताव के प्रयास हुए पर वीटो पावर वाले देशों के अडंगे के कारण कुछ नहीं हो सका। बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस युद्ध को रोकने के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव स्वीकार किया, किंतु इस्राइल ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। होना यह चाहिए था कि प्रस्ताव होता कि हमास ने इस्राइल पर हमला किया है, वह इस्राइल के नुकसान की भारपाई करे। इस्राइल के बंदी रिहा करे। ये भी व्यवस्था होती कि भविष्य में हमास ऐसा दुस्साहस न कर सके। सब चाहते हैं कि इस्राइल युद्ध रोके। कोई ये पहल नही कर रहा कि पहले हमास इस्राइल के बंदी रिहा करे। इस्राइल के हमलों में बच्चों और महिलाओं के मरने की बात हो रही है। मुख्य मामला पीछे चला गया।अब ये सब बात बंद हो गई। साफ हो गया कि इस्राइल मानने वाला नही है। हमास के हमले में इस्राइल में बच्चों- महिलाओं का जिस तरह कत्ल किया गया, उनकी गर्दन काटी गई। उसका कहीं जिक्र नहीं हो रहा। इस तरह का दोहरा आचरण दुनिया का विखंडित ही करेगा, रोकेगा नही। पिछले तीन साल चार माह से रूस -यूक्रेन युद्ध जारी है। इस युद्ध में मरने और घायल होने वाले दोनों देशों के सैनिकों की संख्या पांच लाख के आसपास है।अपने सैनिकों की मौत के बारे में न रूस कुछ बता रहा है, न ही यूक्रेन।
रूस− यूक्रेन युद्ध में सीएसआईएस के जून 2025 के अनुमान के अनुसार रूस के लगभग 250,000 सैनिकों की मौत हुई।साढ़े सात लाख गंभीर रूप से घायल हैं । यूक्रेन की और से 21 मई 2025 तक 70,935 यूक्रेनी सैनिक मारे जा चुके हैं। सीएसआईएस का जून 2025 अनुमान: कुल 400,000 हताहत ( इसमें 60 हजार से एक लाख मारे और 300–340 हजार घायल हुए) ।यूक्रेनी ऑफिशियल आंकड़े के अनुसार 43,000 मारे और 370,000 घायल हुए । यूएनएचसीआर के अनुसार, लगभग 10.6 मिलियन यूक्रेनियन विस्थापित हुए हैं। 3.7 मिलियन देश के अंदर, 6.9 मिलियन विदेश में विस्थापित हुए। यूएन के अनुसार यूक्रेन में लगभग 13,134 नागरिकों की मौत हुई है (2025 तक सत्यापित); 2022–2024 में मान्यता प्राप्त कुल नागरिक मृत्यु 50,000 तक हो सकती है।उधर इज़राइल− हमास संघर्ष में इस्राइल के 831 सैनिक मरे, 5,617 घायल हुए। 924 नागरिक मरे, 14,000 से ज्यादा घायल हुए। हमास/गाज़ा के 20,000 से ज्यादा मिलिटेंट मरे। (सटीक घायलों का डेटा नहीं)55,000 से ज्यादा गाज़ाई महिला –बच्चे मरे ।
इतना सब होने के बाद भी संयुक्त राष्ट्र इस युद्ध को नहीं रोक पाया। न रोक पा रहा है। इस युद्ध से दोनों देशों के विकास तो रुका ही। मानव कल्याण के लिए भवन, पुल, स्कूल और उद्योग खंडहर बन गए। इनके युद्ध के कारण दुनिया के अन्य देशों को होने वाली अनाज की आपूर्ति रुकी है। इससे पूरी दुनिया में मंहगाई बढ़ रही है। हाल ही में यूक्रेन ने रूस पर बड़ा हमला किया।इससे रूस को भारी क्षति हुई । कई आधुनिक लड़ाकू विमान तबाह हुए।उसका जबाव रूस ने भी दिया। जिस तरह से रूस लड रहा है। मित्र देश यूक्रेन को पीदे से मदद कर रहे है, उससे लगता है कि गुस्साकर कभी भी रूस परमाणु हमला कर सकता है। किंतु इसकी किसी को चिंता नहीं। हमास −इस्राइल युद्ध के बीच हुति विद्रोहियों ने इस्राइल पर मिजाइल से हमले किए।इस्राइल समर्थक देशों के मालवाहक जहाजों पर मिजाइल दागीं। इस सब के बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ की नींद नही खुली।
आज संयुक्त राष्ट्र महासभा कुछ देश के हाथों की कठपुतली बन गया है। अन्य देश न अपनी ताकत का प्रयोग कर सकता है ना अपनी क्षमता का। संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज के हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में वह सक्षम नहीं है। पांच वीटो पावर देश उसे अपनी मर्जी से नचा रहे हैं। उनके एकजुट हुए बिना संयुक्त राष्ट्र महासभा कुछ नहीं कर सकता। ये पांचों विटो पावर देश खुद खेमों में बंटे है। ऐसे में सर्व सम्मत प्रस्ताव पास होना एक प्रकार से नामुमकिन हो गया है। म्यांमार में पिछले दिनों सेना का जुल्म देखने को मिला। चीन में उइगर मुसलमानों पर जुल्म जग जाहिर हैं। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। पुलबामा कांड के बाद भारत ने पाकिस्तान में आंतकी ठिकानों पर मिजाइल से हमले किए।पाकिस्तान के जवाब में चार दिन युद्ध चल कर रूका। संयुक्त राष्ट्र संघ इसे रोकने के लिए भी कुछ नहीं कर सका। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की बरबादी दुनिया ने देखी। पूरा विश्व सब देखता रहा। कोई कुछ नहीं कर सका। आज आतंकवाद पूरे विश्व की बड़ी समस्या है। सब जानते हैं कि कौन देश इसे पाल पोस रहे हैं।इस आंतकवाद के खात्मे के लिए कोई संयुक्त प्रयास नही हो रहे। कभी इस बारे में प्रस्ताव आता है तो पांच विटो पावर दादाओं में से कोई न कोई उस प्रस्ताव को विटो कर देता है।
जिस तरह से इस्राइल हमास और ईराक में संघर्ष चल रहा है। अमेरिका इस्राइल के पीछे खड़ा है।यूक्रेन के पीछे मित्र राष्ट्र हैं। ऐसे में कभी भी दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध का सामना करना पड सकता है।
आज जरूरत आ गई है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की उपयोगिता पर विचार किया जाए। इसे उपयोगी बनाने पर कार्य किया जाए। ऐसा ढांचा खड़ा किया जाए कि एक देश दूसरे देश का मददगार बने। मुसीबत में उसके साथ खड़े हो, उसकी रक्षा कर सकें। ऐसा नहीं आपदा के समय सिर्फ तमाशा देखें। सब दुनिया के सभी देश बराबर हैं तो पूरी दुनिया के पांच देशों को ही वीटो पावर का अधिकार क्यों? उनकी ही पूरी दुनिया पर दादागिरी क्यों?इस पर विचार किए जाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र संघ में डिक्टेटरशिप लागू नहीं है जो किसी विशेष का निर्णय फाइनल होगा। किसी निर्णय को रोक सकेगा। आज के हालात में सामूहिकता बढ़ाने ,सामूहिक निर्णय पर चलने, सामूहिक विकास का सोचने की सबसे बडी जरूरत है। और एक ऐसे संगठन की दुनिया को जरूरत है जो निष्पक्ष और तटस्थ होकर पूरी दुनिया में शांति स्थापना के लिए काम कर सके। ऐसे संगठन की जरूरत नहीं है जिसमें चार या पांच दादाओं का ही निर्णय चले। पूरी दुनिया निरीह बनी लूटी −पिटी मौन खड़ी रहे।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)Wednesday, June 11, 2025
आईएएस अधिकारी के रिश्वत में पकड़े जाने पर उठे सवाल
अशोक मधुप
वरिष्ठ
पत्रकार
उडीसा के कलाहांडी जिले के धरमगढ़ में 2021 बैच के आईएएस अधिकारी डिप्टी कलेक्टर धीमन चकमा को ओडिशा
विजिलेंस ने 10 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा ।उनके
निवास से 47 लाख रूपये अतिरिक्त बरामद हुए।
विजीलेंस की जांच जारी है। मात्र चार
साल के शुरूआती कैरियर में रिश्वत लेते
पकड़े जाना, यह बताने के लिए काफी है कि आज भारतीय समाज के भ्रष्टाचार की जड़ कितनी गहराई तक पहुंच गई हैं।व्यवस्था की सभी
खंबे आज बेईमानी की जद में हैं।हम अधिकारी ,राजनेता और व्यवस्था के भ्रष्टाचार के
खिलाफ तो खूब बोलते और लिखते है, किंतु न्यायपालिका के कदाचार पर चुप्पी साध जाते
हैं, जबकि वहां भी हालत सब जगह जैसी ही
है। दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर नई दिल्ली स्थित 30, तुगलक
क्रीसेंट स्थित सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में 14 मार्च की रात आग लग गई।इसमें बड़ी तादाद में नोट जले।जस्टिस वर्मा को
दिल्ली से इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया,किंतु लगभग तीन माह बीत जाने के बाद भी उनके खिलाफ कोई आरोप दर्ज नही हुआ।यदि
यह ऐसा मामला किसी मंत्री, राजनेता या प्रशासनिक अधिकारी का होता तो उसके खिलाफ
मुकदमा ही दर्ज नहीं होता, जेल भी जाना पड़ता।न्यायिक अधिकारी अपने को मिले विशेष
अधिकार के बूते मामले दबा रहे हैं।राज्य सभा अध्यक्ष जगदीप जाखड़ भी इस पर तीखी टिप्पणी कर चुके हैं।
रिश्वत के आरोपी अधिकारी धीमन चकमा का जन्म त्रिपुरा के एक
छोटे से कस्बे कंचनपुर में हुआ। उनके पिता स्कूल टीचर हैं,
जबकि
मां हाउस वाइफ हैं। धीमन ने अगर्तला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी )
से
कंप्यूटर साइंस में बी.टेक किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद धीमन ने यूपीएससी की तैयारी शुरू की।
उन्हें पहले भारतीय वन सेवा (आईएफएस) में जगह मिली और वह ओडिशा
के मयूरभंज जिले में आईएफएस अधिकारी के तौर पर तैनात
हुए।उनका सपना आईएएस बनने का था। 2020 में उन्होंने फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी और इस बार 482वीं रैंक हासिल की। इस सफलता ने उन्हें 2021 बैच का IAS अधिकारी बनाया और वह
ओडिशा कैडर में शामिल हुए।2020 की कामयाबी के बाद उन्होंने एक साल की
ट्रेनिंग ली ।इसके बाद वर्ष 2021 बैच का आईएएस नियुक्त
किया गया।आठ जून 2025 को ओडिशा विजिलेंस ने धीमन चकमा को 10 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा।बताया
जा रहा है कि एक स्थानीय व्यापारी से 20 लाख रुपये मांगे गए थे।इसी
तय राशि में से आधी रकम दी गई थी।व्यापारी का आरोप था कि चकमा ने उनके स्टोन क्रेशर
यूनिट के खिलाफ कार्रवाई की धमकी दी थी।इसके बाद विजिलेंस ने जाल बिछाया और चकमा
अपने सरकारी आवास पर रिश्वत लेते पकड़े गए। केमिकल टेस्ट में उनके हाथ और दराज
दोनों पॉजिटिव पाए गए। इसके बाद उनके आवास से 47 लाख रुपये नकद और बरामद
हुए।सोशल
मीडिया पर इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं.कई लोगों ने इसे
सिस्टम की नाकामी बताया, तो
कुछ ने इसे व्यक्तिगत लालच का नतीजा माना। एक यूजर ने लिखा-चार साल की नौकरी में
इतना भ्रष्टाचार? ये
लोग यूपीएससी में एथिक्स कैसे पढ़ते हैं?।यह पहला मामला नही है।
अधिकारी रिश्वत लेते पकड़े जाते रहे हैं किंतु सेवा प्रारंभ होने के दौरान ही रिश्वत लेने का पहला मामला है।इस मामले से
समझा जा सकता है कि ये अब न पकड़े गए होते तो सेवा के दौरान जनता का कितना खून चूसते।
दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस वर्मा के घर नई दिल्ली स्थित 30, तुगलक क्रीसेंट स्थित सरकारी आवास के
बाहरी हिस्से में 14 मार्च की रात करीब 11:30 बजे आग लगी।इसमें
बड़ी तादाद में नोट जले।जस्टिस वर्मा कहते रहे कि रूपये उनके नही है।पूरी कोशिश
मामले को दबाने की हुईं। मामले के न दबने पर इन्हें दिल्ली
से इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया,हालाकि इलाहाबाद के वकीलों ने इनके आने का
विरोध किया।परिणाम स्वरूप इन्हें कार्य नही दिया गया,किंतु लगभग तीन माह बीत जाने
के बाद भी उनके खिलाफ कोई आरोप दर्ज नही हुआ। जबकि सामान्य मामले में
बड़े से बडे अधिकारी, जनसेवक, नेता और
मंत्री के खिलाफ मुकदमा ही दर्ज नही होता,
वे जेल भी जाते।इन घटनाओं के उदाहरण थोक में
मिल जाएंगे। जस्टिस वर्मा का मामला राज्य सभा
में भी उठ चुका है।
हाल ही में उपराष्ट्रपति
जगदीप धनखड़ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों को संबोधित
करते हुए न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी पर गंभीर चिंता व्यक्त की
है। उन्होंने एक पुराने न्यायिक आदेश के कारण एफआईआर दर्ज न होने और जस्टिस वर्मा
के आवास से बरामद नकदी के मामले पर सवाल उठाए। उपराष्ट्रपति ने न्यायिक समितियों
की भूमिका और न्यायिक निर्णयों पर पैसों के संभावित प्रभाव पर भी चिंता जताई।उन्होंने
कहा कि सरकार आज “लाचार” है क्योंकि एक न्यायिक आदेश एफआईआर दर्ज करने में बाधा बना हुआ है। अगर
कोई अपराध हुआ है तो उसकी एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी। यह सबसे बुनियादी और शुरुआती
कदम है, जो पहले ही दिन उठाया जा सकता था।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि मौजूदा
स्थिति में जब तक न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर से अनुमति नहीं मिलती, तब तक एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती।
उन्होंने सवाल उठाया कि ‘अगर यह अनुमति नहीं दी गई तो क्यों?’ ‘क्या किसी न्यायाधीश को हटाने का
प्रस्ताव ही इस संकट का समाधान है? उपराष्ट्रपति
ने जस्टिस यशवंत वर्मा के निवास से बरामद नकदी की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि
यह न्यायपालिका की छवि को गहरा आघात देने वाला मामला है। उन्होंने पूछा, अगर यह घटना सामने नहीं आती, तो क्या हमें कभी पता चलता कि और भी ऐसे
मामले हो सकते हैं?जगदीप धनखड़ ने जोर दिया कि जब नकदी
मिलती है तो हमें यह जानना चाहिए कि वह पैसा किसका है, उसकी मनी ट्रेल क्या है, और क्या उस पैसे ने न्यायिक निर्णयों को
प्रभावित किया।जगदीप धनखड़ ने कहा कि जब जनता का अन्य संस्थाओं से विश्वास उठता है, तब भी वे न्यायपालिका की ओर आशा से देखते
हैं। उन्होंने कहा, हमारे न्यायाधीशों की बुद्धिमत्ता और
परिश्रम अद्वितीय है लेकिन अगर वहीं संदेह की दृष्टि में आ जाएं तो लोकतंत्र की
नींव ही हिल जाएगी। यह सोचना कि मीडिया का ध्यान हटते ही मामला ठंडा पड़ जाएगा, एक बहुत बड़ी भूल होगी। इस अपराध के लिए
जो भी जिम्मेदार हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए।धनखड़ ने
आगे कहा, मैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश का आभार
व्यक्त करता हूं कि उन्होंने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया। हम ये कह सकते हैं कि
नकदी की जब्ती हुई क्योंकि रिपोर्ट कहती है और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक
की। हमें लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए। हमें अपनी नैतिकता को इस कदर
गिराना नहीं चाहिए। हमें ईमानदारी को समाप्त नहीं करना चाहिए।
इन मामलों को देख हमें सोचना होगा कि समाज कहां जा रहा है।प्रशासन तंत्र,जनसेवक और न्यायपालिका को
सामाजिक मानदंड और
एथिक्स में क्या पढ़ाया जा रहा है,कैसे पढ़ाया जा रहा
है। दरअस्ल भारतीय
समाज में बढ़ा कदाचार समाज में बढ़ी
भौतिकता की देन है।पहले जीवन आदर्श महत्वपूर्ण थे।ईमानदार व्यक्ति को समाज
में सम्मान मिलता था। अब समाज के मानक बदल गए। अब पैसे वाले को सम्मान मिलता है।ये कोई नही पूछता कि
पैसा आया कहां से और कैसे आया।परिवार
सदस्य ही परिवार के ईमानदार मुखिया
को बेवकूफ मानते हैं।ईमानदारी के
लिए समय − समय पर उसका अपमान करते हैं। बढ़ते कदाचार को रोकने के लिए हमें
अपने सामाजिक मिथक का पाठ प्रारंभ से ही
बच्चों को पढ़ाना होगा।उन्हें ये भी
बताना होगा कि कानून के हाथ बड़े लंबे
हैं।इसके चंगुल में फंसने पर सजा तो काटनी ही पड़ेगी। सम्मान को भी बट्टा लगेगा।
निगरानी तंत्र को मजबूत करना होगा।इन मामलों में त्वरित न्याय की व्यवस्था करानी
होगी ताकि इनकी सजा से अन्य सीख लें।
अशोक
मधुप
(
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)