Monday, June 16, 2025

पुस्तक समीक्षा फुर्सत के झोंके




 पुस्तक समीक्षा

फुर्सत के झोंके
कवयित्री अनिदीपम
प्रकाशक वनिका पब्लिकेशन्स बिजनौर

फुर्सत से पढ़ने के लिए हैं फुर्सत के झोंके
समीक्षक अशोक  मधुप
बिजनौर की अनिदीपक (श्रीमती)  लंबे समय से कवितांए लिख  रही हैं किंतु  उनकी कविताओं का संग्रह फुर्सत के झोंके हाल ही में  बाजार में आया।यह संकलन कवयित्री की रचनाओं की गंभीरता  बताता है।कवयित्री का नया नाम होने के कारण शुरूआत में भले ही नया सा लगे किंतु पुस्तक पढ़नी शुरू करने के बाद उसे समाप्त करके ही रूका जाता है। कविताओं में दर्शन के साथ −साथ  कवयित्री का गंभीर चिंतन भी पता चलता है।
21 जनवरी 1971 को जनपद के एतिहासिक महत्व के नांगल सोती में जन्मी अनीदीपम एम.ए हैं ।क्रेटिव राइटिंग में उन्होंने डिप्लोमा किया ।पुस्तक की भूमिका में वह कहती हैं कि पांच −भाई बहिनों में वह सबसे छोटी है।सबसे बड़े भाई बाहर पढ़ते थे।वे बचपन से ही मेरे पढ़ने के लिए चंपक, लोटपोट आदि बाल पत्रिकाएं लाते थे।इससे स्कूली शिक्षा के साथ साथ साहित्य में भी रूचि होने लगी।16 कमरों वाले बड़े घर में बड़ी− बड़ी दो अलमारियों में मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद,  रविन्द्र नाथ टैगौर के उपन्यास,  महात्मा गांधी की आत्मकथा और चंद्रकांता आदि बहुमूल्य पुस्तकें सुंदर नगीनों की तरह रखी रहतीं।समय− समय पर आंगन में चटाई बिछाकर पुस्तकों को  धूप लगाई जाती तो पढ़ा भी जाता। छोटे भाई की लग्न और प्रोत्साहन से हाई स्कूल में मेरे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने  के बाद हमारे घर में टेलीविजन आया।रामायण, विक्रम बेताल , चंद्रकांता आदि हिंदी के सीरियल हम देखते−सुनते। दीदी के साथ  मैंने शुद्ध हिंदी में बातचीत करनी शुरू की।छोटो− छोटे विचार कविताओं का रूप लेने लगे।लेखन चलता रहा।इसी बीच शादी हो गई। परिवार में दो बच्चे  हुए।बच्चों के बड़े होने पर युवावस्था का शौक फिर शुरू हो गया।
अनिदीपम की रचनांए नजीबाबाद के आकाशवाणी केंद्र से निरंतर लम्बे समय से प्रसारित होती और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपती रही हैं।ग्रहणी होकर भी वह लगातार लिख  रही हैं। इनकी पहली पुस्तक फुर्सत है छपी। फुर्सत के झोंके   इनकी दूसरी पुस्तक है।इनकी कविताओं में दर्शन के साथ समाज को अलग से समझने की सोच है।
शुभ दीपावली शीर्षक की कविता में अनीदीपम कहती हैं−स्याह ओढ़नी पर /टँके सिलवरी सितारे... दीप मालाओं से सजा/ सुनहरी गोटा /सौंदर्य बोध कराता है,/ अमावस्या का।
गोरी चिट्टी पूर्णिमा /ईर्ष्यावश खिसियाकर /लुप्त हो जाती है /जब-/झिलमिलाती अद्भुत त्योहारों से लदी/ मावस/ बाँटती फिरती है-/रंग-बिरंगी खुशियाँ... मीठी उमंगें.../सकारात्मकता के दिये/सुगंधित  आशाओं की धूप/खिलखिलाहट भरे सुंदर सपने.../अपने सखा कार्तिक के संग।  
दिवाली निर्धनों की में कवयित्री कहती हैं कि चाँद का भी /अपहरण होता है/ अमावस्या के हाथों । फिरौती में/ माँगे जाते हैं.. /रोशनी के साधन लाखों । राशन में मिला/ महीने भर का घासलेट,दिया सलाई ,मोमबाती, झरोखों से आती/ टिमटिमाहट/ महलों की/ प्रतिवर्ष/ निर्धनता/दिवाली के दियों में/ कलेजा जलाती।
हर माह  नामक कविता में वह कहती हैं कि अमावस्या भी,/ करती है श्रृंगार /पूर्णिमा के दिन../.चाँद की बड़ी-सी बिंदी /लगाती है- साँवले चेहरे पर /जरा-सी हँसी पर/ चमक जाते हैं /बत्तीसों तारे।निकल पड़ती है-/जुगनुओं को साथ लेकर/ संघर्षरत, /हताश पीड़ितों के बीच,/ हौसला बढ़ाने हर माह !
निगरानी  नामक कविता  कहती हैं −अटारी की पहरेदारी करते /दरवाज़े हैं बंद/ छत बेचारी ऊँघ-ऊँघ /रोशनदानों से झाँका करती।तपती धूप, ज्येष्ठ दोपहरी/ पेड़ों की छाया भाँय-भाँय /खूँखार हो उठती।'समय का कुछ पता नहीं' यही सोच खूँसर बुढ़िया /लाठी टेक-टेक/ आमों के पेड़ों की निगरानी करती /झोपड़-पट्टी के निर्धन बच्चे /ललचाई लार लिए /कभी लदे पेड़... कभी खाली पेट... और कभी तंबू में/ बाट जोहती माँ /चंद सिक्कों को तरसती ! विश्वासघात में वह कहती हैं कि प्यार के टुकड़े, विश्वास की फाँक /जब कर दी उसने /खूब रोया कोमल मन/ खत्म हो चुकी थी जिजीविषा। शिथिल देह, छटपटाती आत्मा को, कोई न दे सका ढाड़स। दिन से रात/ रात से दिन/ वार से महीने /न जाने कब गुजर गए /वर्ष शातिर चोरों की तरह !
समुद्र खुश है में कवयित्री कहती हैं−देखा है मैंने... राह के चिराग को/ अँधेरा करते।देखा है मैंने...पूर्णिमा की रात को /अमावस्या करते।देखा है...सूरज की पहली किरण को /कोख फूँकते। देखा है...अनाथ बनते चाँद को।
समुद्र खुश है/ बाँटता है जल /माँ के आँसुओं को/ निःशुल्क !
कविताओं और पुस्तक को सुंदर  रूप देने में प्रकाशक ने भी  बड़ी मेहनत की है।पुस्तक के साथ− साथ पुस्तक कविता को भी शानदार क्लेवर दिया है।
समीक्षक −अशोक  मधुप

उद्देश्य से भटके संयुक्त राष्ट्र संघ को भंग क्यों नही करते?


अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

 

 

संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) का मुख्य औचित्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखनामानव अधिकारों की रक्षा करनाऔर विभिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना है। इसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में 51 देशों द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य  था कि भावी युद्धों को रोका  वैश्विक सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके। आज 193 देश इसके सदस्य हैं। इतने बड़े  संगठन का लगता है कि आज कोई देश कहना मानने को तैयार नहीं। सबकी अपनी ढपली अपना राग है। संयुक्त राष्ट्र संघ तमाशबीन बन कर रह गया है।लगभग  एक साल आठ माह से   इस्राइल −हमास युद्ध चल रहा है। अब इस्राइल से ईरान पर हमलाकर दिया है। इस्राइल− ईरान युद्ध में बैलिस्टिक मिजाइल प्रयोग  हो रही हैं।सवा दो साल से रूस− यूक्रेन युद्ध  चल रहा है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में की गई बरबादी पूरी दुनिया ने देखी। संयुक्त राष्ट्र संघ मानव जीवन की बरबादी देख रहा है। यह असहाय बना बैठा है। मानव जीवन का विनाश रोकने के लिए वह कुछ नहीं कर पा रहा। उसकी भूमिका शून्य होकर रह गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नहीं कर सकता। को देश  उसकी मानने को तैयार नही।युद्ध रोकने की उसकी शक्ति नहीं तो उसका औचित्य क्या हैदुनिया के देश क्यों इस सफैद हाथी को पाले हैं। क्यों इसका खर्च वहन कर रह हैं।इस भंग क्यों नही कर दिया जाता।

एक साल आठ माह से    से हमास- इस्राइल युद्ध चल रहा है।लगभग डेढ़ साल पूर्व हमास- इस्राइल युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रयास हुए। कई बार प्रस्ताव के प्रयास हुए पर वीटो पावर वाले देशों के अडंगे के कारण कुछ नहीं हो सका। बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस युद्ध को रोकने के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव स्वीकार कियाकिंतु इस्राइल ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। होना यह चाहिए था कि प्रस्ताव होता कि हमास ने इस्राइल पर हमला किया हैवह इस्राइल के नुकसान की भारपाई करे। इस्राइल के बंदी रिहा करे। ये भी व्यवस्था होती कि भविष्य में हमास ऐसा दुस्साहस न कर सके। सब चाहते हैं कि इस्राइल युद्ध रोके। कोई ये पहल नही कर रहा कि पहले हमास इस्राइल के बंदी रिहा करे। इस्राइल के हमलों में बच्चों और महिलाओं के मरने की बात हो रही है। मुख्य मामला पीछे चला गया।अब ये सब बात बंद हो गई। साफ हो गया कि इस्राइल मानने वाला नही है। हमास के हमले में इस्राइल में बच्चों- महिलाओं का जिस तरह कत्ल किया गयाउनकी गर्दन काटी गई। उसका कहीं जिक्र नहीं हो रहा। इस तरह का दोहरा आचरण दुनिया का विखंडित ही करेगारोकेगा नही। पिछले तीन साल चार माह से   रूस -यूक्रेन युद्ध जारी है। इस युद्ध में मरने और घायल होने वाले दोनों देशों के सैनिकों की संख्या पांच लाख के आसपास  है।अपने सैनिकों की मौत के बारे में न रूस कुछ बता रहा हैन ही यूक्रेन।

रूस− यूक्रेन  युद्ध में सीएसआईएस के जून 2025 के अनुमान के अनुसार रूस के लगभग 250,000 सैनिकों की मौत हुई।साढ़े सात लाख गंभीर रूप से घायल हैं । यूक्रेन की और से  21 मई 2025 तक 70,935 यूक्रेनी सैनिक मारे जा चुके हैं। सीएसआईएस का जून 2025 अनुमान: कुल 400,000 हताहत ( इसमें 60 हजार से एक लाख    मारे और 300–340 हजार  घायल  हुए)  ।यूक्रेनी ऑफिशियल आंकड़े के अनुसार 43,000 मारे और 370,000 घायल हुए । यूएनएचसीआर  के अनुसारलगभग 10.6 मिलियन यूक्रेनियन विस्थापित हुए हैं। 3.7 मिलियन देश के अंदर, 6.9 मिलियन विदेश में   विस्थापित हुए। यूएन के अनुसार यूक्रेन में लगभग 13,134 नागरिकों की मौत हुई है (2025 तक सत्यापित); 2022–2024 में मान्यता प्राप्त कुल नागरिक मृत्यु 50,000 तक हो सकती है।उधर इज़राइल− हमास संघर्ष में इस्राइल के 831 सैनिक मरे, 5,617 घायल हुए। 924 नागरिक मरे, 14,000 से ज्यादा घायल हुए।    हमास/गाज़ा के 20,000 से ज्यादा मिलिटेंट मरे। (सटीक घायलों का डेटा नहीं)55,000 से ज्यादा गाज़ाई  महिला बच्चे मरे     ।

 

इतना सब होने के बाद भी संयुक्त राष्ट्र इस युद्ध को नहीं रोक पाया। न रोक पा रहा है। इस युद्ध से दोनों देशों के विकास तो रुका ही। मानव कल्याण के लिए भवनपुलस्कूल और उद्योग खंडहर बन गए। इनके युद्ध के कारण दुनिया के अन्य देशों को होने वाली अनाज की आपूर्ति रुकी है। इससे पूरी दुनिया में मंहगाई बढ़ रही है। हाल ही में यूक्रेन ने रूस पर बड़ा हमला किया।इससे रूस को भारी क्षति हुई । कई आधुनिक लड़ाकू विमान तबाह हुए।उसका जबाव रूस ने भी दिया।  जिस तरह से  रूस लड रहा है। मित्र देश  यूक्रेन को पीदे से मदद कर रहे हैउससे लगता है कि गुस्साकर कभी भी रूस परमाणु हमला कर सकता है। किंतु इसकी किसी को चिंता नहीं। हमास −इस्राइल युद्ध के बीच  हुति विद्रोहियों ने इस्राइल पर मिजाइल से हमले किए।इस्राइल समर्थक  देशों के मालवाहक जहाजों पर मिजाइल दागीं। इस  सब के बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ की नींद नही खुली।  

 आज संयुक्त राष्ट्र महासभा  कुछ देश के हाथों की कठपुतली बन गया है। अन्य देश न अपनी ताकत का प्रयोग कर सकता है ना अपनी क्षमता का। संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज के हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में वह सक्षम नहीं है। पांच वीटो पावर देश उसे अपनी मर्जी से नचा रहे हैं। उनके एकजुट हुए बिना संयुक्त राष्ट्र महासभा कुछ नहीं कर सकता। ये पांचों विटो पावर देश खुद खेमों में बंटे है। ऐसे में सर्व सम्मत प्रस्ताव पास होना एक प्रकार से नामुमकिन हो गया है। म्यांमार में पिछले दिनों सेना का जुल्म देखने को मिला। चीन में उइगर मुसलमानों पर जुल्म जग जाहिर हैं। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। पुलबामा कांड के बाद भारत ने पाकिस्तान में आंतकी ठिकानों पर मिजाइल से हमले किए।पाकिस्तान के जवाब में चार दिन युद्ध  चल कर रूका। संयुक्त राष्ट्र संघ इसे रोकने के  लिए भी  कुछ नहीं कर सका। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की बरबादी दुनिया ने देखी। पूरा विश्व सब देखता रहा। कोई कुछ नहीं कर सका। आज आतंकवाद पूरे विश्व की बड़ी समस्या है। सब जानते हैं कि कौन देश  इसे पाल पोस रहे हैं।इस आंतकवाद के खात्मे के लिए  कोई  संयुक्त प्रयास नही हो रहे। कभी इस बारे में प्रस्ताव आता है तो पांच  विटो पावर दादाओं में से कोई न कोई उस प्रस्ताव को विटो कर देता है।

जिस तरह से इस्राइल हमास और ईराक में संघर्ष  चल रहा है। अमेरिका इस्राइल  के पीछे खड़ा है।यूक्रेन के पीछे मित्र राष्ट्र हैं। ऐसे में कभी भी दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध  का सामना करना पड सकता है।

आज जरूरत आ गई है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की उपयोगिता पर विचार किया जाए। इसे  उपयोगी बनाने पर कार्य किया जाए। ऐसा ढांचा  खड़ा किया जाए कि एक देश दूसरे देश का मददगार बने। मुसीबत में उसके साथ खड़े होउसकी रक्षा कर सकें। ऐसा नहीं आपदा के समय सिर्फ तमाशा देखें। सब दुनिया के सभी देश बराबर हैं तो पूरी दुनिया के पांच देशों को ही वीटो पावर का अधिकार क्योंउनकी ही पूरी दुनिया पर दादागिरी क्यों?इस पर विचार किए जाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र संघ में डिक्टेटरशिप लागू नहीं है जो किसी विशेष का निर्णय फाइनल होगा। किसी निर्णय को रोक सकेगा। आज के हालात में सामूहिकता बढ़ाने ,सामूहिक निर्णय पर चलनेसामूहिक विकास का सोचने की सबसे बडी जरूरत है। और एक ऐसे संगठन की दुनिया को जरूरत है जो निष्पक्ष और तटस्थ होकर  पूरी दुनिया में शांति स्थापना के लिए काम कर सके। ऐसे संगठन की जरूरत नहीं है जिसमें चार या पांच दादाओं का ही निर्णय चले। पूरी दुनिया निरीह बनी लूटी −पिटी मौन खड़ी रहे।

 

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Wednesday, June 11, 2025

आईएएस अधिकारी के रिश्वत में पकड़े जाने पर उठे सवाल

 


अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

उडीसा के कलाहांडी जिले के धरमगढ़ में 2021 बैच के आईएएस अधिकारी डिप्‍टी कलेक्टर धीमन चकमा को ओडिशा विजिलेंस ने  10 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा ।उनके निवास से 47 लाख रूपये अतिरिक्त बरामद हुए।  विजीलेंस की जांच  जारी है। मात्र चार साल के शुरूआती कैरियर में  रिश्वत लेते पकड़े जाना, यह बताने के लिए काफी है कि आज भारतीय समाज के भ्रष्टाचार की जड़  कितनी गहराई तक पहुंच गई हैं।व्यवस्था की सभी खंबे आज बेईमानी की जद में हैं।हम अधिकारी ,राजनेता और व्यवस्था के भ्रष्टाचार के खिलाफ तो खूब बोलते और लिखते है, किंतु न्यायपालिका के कदाचार पर चुप्पी साध जाते हैं, जबकि वहां भी हालत सब  जगह जैसी ही है। दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर नई दिल्ली स्थित 30, तुगलक क्रीसेंट स्थित सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में 14 मार्च की रात  आग लग गई।इसमें बड़ी तादाद में नोट जले।जस्टिस वर्मा को दिल्ली से इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया,किंतु लगभग तीन माह बीत  जाने  के बाद भी उनके खिलाफ कोई आरोप दर्ज नही हुआ।यदि यह ऐसा मामला किसी मंत्री, राजनेता या प्रशासनिक अधिकारी का होता तो उसके खिलाफ मुकदमा ही दर्ज नहीं होता, जेल भी जाना पड़ता।न्यायिक अधिकारी अपने को  मिले विशेष  अधिकार के बूते मामले दबा रहे हैं।राज्य सभा अध्यक्ष  जगदीप जाखड़ भी   इस पर तीखी टिप्पणी कर चुके हैं।

रिश्‍वत के आरोपी अधिकारी  धीमन चकमा का जन्म त्रिपुरा के एक छोटे से कस्‍बे कंचनपुर में हुआ। उनके पिता स्कूल टीचर हैं, जबकि मां हाउस वाइफ हैं। धीमन ने अगर्तला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी ) से कंप्यूटर साइंस में बी.टेक किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद धीमन ने यूपीएससी  की तैयारी शुरू की। उन्हें पहले भारतीय वन सेवा (आईएफएस) में जगह मिली और वह ओडिशा के मयूरभंज जिले में आईएफएस अधिकारी के तौर पर तैनात हुए।उनका सपना आईएएस बनने का था। 2020 में उन्होंने फिर से  यूपीएससी की  परीक्षा दी और इस बार 482वीं रैंक हासिल की। इस सफलता ने उन्हें 2021 बैच का IAS अधिकारी बनाया और वह ओडिशा कैडर में शामिल हुए।2020 की कामयाबी के बाद उन्‍होंने एक साल की ट्रेनिंग ली ।इसके बाद वर्ष 2021 बैच का आईएएस नियुक्‍त किया गया।आठ जून 2025 को ओडिशा विजिलेंस ने धीमन चकमा को 10 लाख रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा।बताया जा रहा है कि एक स्‍थानीय व्‍यापारी से 20 लाख रुपये मांगे गए थे।इसी तय राशि में से आधी रकम दी गई थी।व्‍यापारी का आरोप था कि चकमा ने उनके स्टोन क्रेशर यूनिट के खिलाफ कार्रवाई की धमकी दी थी।इसके बाद विजिलेंस ने जाल बिछाया और चकमा अपने सरकारी आवास पर रिश्वत लेते पकड़े गए। केमिकल टेस्ट में उनके हाथ और दराज दोनों पॉजिटिव पाए गए। इसके बाद उनके आवास से 47 लाख रुपये नकद और बरामद हुए।सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं.कई लोगों ने इसे सिस्टम की नाकामी बताया, तो कुछ ने इसे व्यक्तिगत लालच का नतीजा माना। एक यूजर ने लिखा-चार साल की नौकरी में इतना भ्रष्टाचार? ये लोग यूपीएससी  में एथिक्स कैसे पढ़ते हैं?यह पहला मामला नही है। अधिकारी रिश्वत लेते पकड़े जाते रहे हैं किंतु सेवा प्रारंभ होने के दौरान  ही रिश्वत लेने का पहला मामला है।इस मामले से समझा जा सकता है कि ये अब न पकड़े गए होते तो सेवा के दौरान जनता का कितना खून  चूसते।  

दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस वर्मा के घर नई दिल्ली स्थित 30, तुगलक क्रीसेंट स्थित सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में 14 मार्च की रात करीब 11:30 बजे आग लगी।इसमें बड़ी तादाद में नोट जले।जस्टिस वर्मा कहते रहे कि रूपये उनके नही है।पूरी कोशिश मामले को दबाने की हुईं। मामले के न दबने पर इन्हें   दिल्ली से इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया,हालाकि इलाहाबाद के वकीलों ने इनके आने का विरोध किया।परिणाम स्वरूप इन्हें कार्य नही दिया गया,किंतु लगभग तीन माह बीत  जाने  के बाद भी उनके खिलाफ कोई आरोप दर्ज नही हुआ। जबकि सामान्य मामले में बड़े  से बडे अधिकारी, जनसेवक, नेता और मंत्री के खिलाफ  मुकदमा ही दर्ज नही होता, वे जेल भी जाते।इन घटनाओं के उदाहरण थोक में  मिल जाएंगे। जस्टिस वर्मा का मामला राज्य सभा में भी उठ चुका है।

हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों को संबोधित करते हुए न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने एक पुराने न्यायिक आदेश के कारण एफआईआर दर्ज न होने और जस्टिस वर्मा के आवास से बरामद नकदी के मामले पर सवाल उठाए। उपराष्ट्रपति ने न्यायिक समितियों की भूमिका और न्यायिक निर्णयों पर पैसों के संभावित प्रभाव पर भी चिंता जताई।उन्होंने कहा कि सरकार आज लाचारहै क्योंकि एक न्यायिक आदेश एफआईआर दर्ज करने में बाधा बना हुआ है। अगर कोई अपराध हुआ है तो उसकी एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी। यह सबसे बुनियादी और शुरुआती कदम है, जो पहले ही दिन उठाया जा सकता था।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि मौजूदा स्थिति में जब तक न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर से अनुमति नहीं मिलती, तब तक एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर यह अनुमति नहीं दी गई तो क्यों?’ ‘क्या किसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव ही इस संकट का समाधान है? उपराष्ट्रपति ने जस्टिस यशवंत वर्मा के निवास से बरामद नकदी की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि यह न्यायपालिका की छवि को गहरा आघात देने वाला मामला है। उन्होंने पूछा, अगर यह घटना सामने नहीं आती, तो क्या हमें कभी पता चलता कि और भी ऐसे मामले हो सकते हैं?जगदीप धनखड़ ने जोर दिया कि जब नकदी मिलती है तो हमें यह जानना चाहिए कि वह पैसा किसका है, उसकी मनी ट्रेल क्या है, और क्या उस पैसे ने न्यायिक निर्णयों को प्रभावित किया।जगदीप धनखड़ ने कहा कि जब जनता का अन्य संस्थाओं से विश्वास उठता है, तब भी वे न्यायपालिका की ओर आशा से देखते हैं। उन्होंने कहा, हमारे न्यायाधीशों की बुद्धिमत्ता और परिश्रम अद्वितीय है लेकिन अगर वहीं संदेह की दृष्टि में आ जाएं तो लोकतंत्र की नींव ही हिल जाएगी। यह सोचना कि मीडिया का ध्यान हटते ही मामला ठंडा पड़ जाएगा, एक बहुत बड़ी भूल होगी। इस अपराध के लिए जो भी जिम्मेदार हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए।धनखड़ ने आगे कहा, मैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया। हम ये कह सकते हैं कि नकदी की जब्ती हुई क्योंकि रिपोर्ट कहती है और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक की। हमें लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए। हमें अपनी नैतिकता को इस कदर गिराना नहीं चाहिए। हमें ईमानदारी को समाप्त नहीं करना चाहिए।

 इन मामलों को देख हमें  सोचना होगा कि समाज कहां जा  रहा है।प्रशासन तंत्र,जनसेवक और न्यायपालिका को   सामाजिक मानदंड और एथिक्स में क्या पढ़ाया जा रहा है,कैसे पढ़ाया जा रहा है। दरअस्ल भारतीय समाज में बढ़ा कदाचार समाज में बढ़ी  भौतिकता की देन है।पहले जीवन आदर्श महत्वपूर्ण थे।ईमानदार व्यक्ति को समाज में सम्मान मिलता था। अब समाज के मानक बदल गए। अब पैसे  वाले को सम्मान मिलता है।ये कोई नही पूछता कि पैसा आया कहां से और कैसे आया।परिवार  सदस्य ही परिवार के ईमानदार मुखिया  को बेवकूफ  मानते हैं।ईमानदारी के लिए समय − समय पर उसका अपमान करते हैं। बढ़ते कदाचार को रोकने के लिए हमें अपने  सामाजिक मिथक का पाठ प्रारंभ से ही बच्चों को पढ़ाना  होगा।उन्हें ये भी बताना  होगा कि कानून के हाथ बड़े लंबे हैं।इसके चंगुल में फंसने पर सजा तो काटनी ही पड़ेगी। सम्मान को भी बट्टा लगेगा। निगरानी तंत्र को मजबूत करना होगा।इन मामलों में त्वरित न्याय की व्यवस्था करानी होगी ताकि इनकी सजा से  अन्य सीख लें।  

 

अशोक मधुप

( लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Sunday, June 1, 2025

खबरों के साधन बढ़े पर खबर का स्तर गिरा

 

हिंदी पत्रकारिता दिवस 30 मई पर विशेष

  खबरों   के साधन बढ़े पर खबर का स्तर गिरा

अशोक मधुप

वरिष्ठ पत्रकार

भारत में पत्रकारिता एक समय पर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती थी। समाज की आवाज़ उठाने, सत्ता से सवाल पूछने और जनभावनाओं को मंच देने में इसकी भूमिका अविस्मरणीय रही है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में पत्रकारिता का स्तर चिंताजनक रूप से गिरा है, जबकि पत्रकारों की प्रसिद्धि, प्रभाव और पहुंच पहले से कहीं अधिक बढ़ी है। यह विरोधाभास क्यों? पत्रकार बड़े होते जा रहे हैं, पर पत्रकारिता क्यों सिकुड़ रही है?आज फेसबुक पत्रकार, न्यूज पोर्टल चलाने वाले पत्रकार ,यूटयूब चैनल चलाने  वाले पत्रकारों की देश में बाढ़ सी आ गई है।दैनिक अखबार भी तेजी से बढ़ रहे हैं। आन लाइन समाचार  पत्रों की रोज गिनती बढ़ती जा रही है। जिसे देखो पत्रकारिता कर रहा है।इतना सब होने के बावजूद पिछले कुछ साल में खबर की विश्वसनीय घटी है। पत्रकारिता का स्तर गिरा है।पत्रकार का सम्मान घटा है।पहले माना जाता कि अखबार में छपा है तो सही होगा ,किंतु मीडिया में आई खबर की आज कोई गारंटी देने को तैयार नहीं। आज का  पत्रकार खबर लिख रहा है किंतु खबर की गांरटी से भाग रहा है। वह  यह दावा करने को कोई तैयार नही कि जो खबर उसने लिखी है,  वह सही है। विश्वनीय है। जब तक खबरों को चेहरों से बड़ा नहीं समझा जाएगा और पत्रकारिता को फिर से जनसेवा के रूप में नहीं देखा जाएगा, तब तक यह गिरावट जारी रह सकती है।

पत्रकारिता के नए हाल पर न्यूज पोर्टल और यूटयूब चैनल पर  चलती फर्जी खबरों का लेकर  देश के लगभग  20 अखबारों ने एक अभियान शुरू किया है। इसके तहत वे प्रचार कर रहे हैं कि  न्यूज पक्की और सच्ची खबर−प्रिंट मतलब पक्का सबूत ।  इन्होंने ये अभियान तो शुरू किया किंतु अभियान चलाते समय वे  ये  भूल गए कि वे  भी फेसबुक  और यूटयूब चैनल चला रहे हैं,इतना जरूर है कि इनके पास प्रोफेशनल की टीम है, इसलिए  इनकी खबरें ज्यादा प्रभाणित है, ज्यादा विश्वसनीय हैं।

पत्रकारिता  कभी मिशन था। आजादी के आंदेलन तक मिशन रहा। धीरे− धीरे इसमें व्यापारी आने लगे।औद्योगिक घराने उतर  गए।इनका उद्देश्य समाज सेवा नही रहा, व्यापार  हो गया। ये व्यापार करने लगे।वह छापने लगे जिस्से इन्हें लाभ हो।इन्होंने पत्रकारिता और अखबारों के नाम पर  दुकाने खोल लीं। लेकिन इन्होंने  समाज की जरूरतों का ध्यान रखा। करोड़ों रूपये लगाकर ये सर्वे कराते कि किस  उम्र का पाठक क्या पढ़ना चाहता है,उस रिपोर्ट के आधार पर ये खबरे कराते। लेख लिखाते।बस अपने हितों का ध्यान रखते।इन प्रतिष्ठानों को पैसा मिलने लगा तो इनसे जुड़े पत्रकारों और कर्मचारियों को आकर्षक वेतन और कमीशन मिलने लगे। मिशन की भावना पत्रकारिता से गायब हो गई।मीडिया संस्थान अब स्वतंत्र नहीं रहे। बड़े मीडिया हाउस कॉरपोरेट पूंजी से संचालित हो रहे हैं और कई बार सरकार के नजदीक दिखते हैं। इससे खबरों की निष्पक्षता और निर्भीकता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।नतीजाजांच रिपोर्टिंग, जमीनी सच्चाई और सत्ता से सवाल पूछने की परंपरा लगभग गायब होती जा रही है।

गांव देहात से छोटे मोटे पत्रकार अब भी मिशन के तहत लगे थे। डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम के किस्से भी स्थानीय ऐसे ही एक सांध्य दैनिक समाचार पत्र से प्रकाश में आए। सिरसा के सांध्य दैनिक 'पूरा सच' के संपादक रामचंद्र छत्रपति, राम रहीम और  डेरा सच्चा सौदा पर आश्रम में होरही ख़बरें लिख रहे थे । वहां हो रहे कारनामों का भांडाफोड़ कर रहे थे। उन  रामचंद्र छत्रपति को गोलियां मारी गईं। हत्या करा दी गई। आरोप राम रहीम पर आया।सीबीआई जांच हुई और अपराध  साबित हुआ।

समय तेजी से बदल रहा है। आज पत्रकार अपना न्यूज पोर्टल ही नही चला रहे। यूटयूब् चैनल चला रहे है।  फेसबुक लाइव पर लगे है।रोज नए ब्लागर पैदा हो रहे है।आज का पत्रकार खुद एक ब्रांडबन चुका है। सोशल मीडिया ने रिपोर्टिंग को व्यक्ति-केंद्रित बना दिया है। पहले खबरें केंद्र में होती थीं, अब पत्रकार। टीवी डिबेट्स और यूट्यूब चैनलों पर पत्रकार अपनी पहचान, विचारधारा और नाटकीयता को प्राथमिकता देते हैं। खबर से ज़्यादा चर्चित चेहरा बनना आज का लक्ष्य बन गया है। पहले विज्ञापन के लिए उद्योगपतियों की ओर देखना पड़ता था, अब  ऐसा नही है। अब आपकी साम्रग्री के हिसाब से गूगल   भुगतान कर रहा है।  जिनकी सामग्री अलग और नई है, वे मौज ले रहे हैं। इससे  सबसे ज्यादा नुकसान ये हुआ कि कुछ अपने  लाइक लेने , व्यूज और टीआरपी की दौड़ में मीडिया अतिंरजित खबरे चला रहा है। उसे खबरों के पुष्ट करने का समय नही।फर्जी खबरे चल रही हैं। अभी आपरेशन सिंदूर के दौरान किसी ने खबर चला दी कि भारतीय सैना पाकिस्तान में प्रवेश कर गई तो एक ने चला दिया कि भारत का लाहौर पर कब्जा हो  गया।जबकि ऐसा कुछ नही था।

डिजिटल युग में टीआरपी और व्यूज़ ही सफलता का पैमाना बन गए हैं। गंभीर पत्रकारिता की जगह सनसनीखेज खबरें, गॉसिप, और डिबेट तमाशाने ले ली है। तथ्य की जगह धारणा, विश्लेषण की जगह उत्तेजना, और संवाद की जगह शोर ने कब्जा कर लिया है। एंकर शोर मचाकर चीखकर पाठकों को आकृषित करन में लगे हैं। खबरों के हैंडिग गलत लगाकर पाठक को खबर पढ़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि खबरों में हैंडिंग के अनुरूप कुछ नही होता।इससे पत्रकारिता का स्तर और विश्वसनीयता तेजी से गिर रही है।अखबारों में झूठी खबरों को रोका जाता था।कोशिश  रहती  कि खबरों की विश्वसनीयता बनी रहे। व्यक्तिवादी तंत्र में  अब ऐसा नही हो रहा। जल्दी  दिखाने की होड़ में और टीआरपी बटोरने के लिए आधी− अधूरी खबरे चलने लगी है।मुंबई पर आतंकवादी हमले और कंधार विमान अपहरण कांड के दौरान मीडिया ने कुछ ऐसी खबरे चलाईं  जिससे  दुश्मन और आंतकवादियों को ज्यादा लाभ  हुआ। इन्होंने देश हित नही देखा।मुंबई हमले को चैनल द्वारा लाइव दिखाने के कारण पाकिस्तान में बैठे हमलावरों के आका चैनल देखकर  आंतकवादियों को  दिशा निर्देश  दे रहे थे। इसकी आलोचना भी हुई। मीडिया के लिए  दिशा −निर्देश  बनाने की मांग भी हुई।

धीरे− धीरे गांव-कस्बों की खबरें गायब हो चुकी हैं। रिपोर्टर अब स्टूडियो में बैठकर 'नेरेटिव' बनाते हैं ग्राउंड पर जाने की ज़हमत नहीं उठाते। इससे पत्रकारिता का मूल उद्देश्यजनता की आवाज़ को मंच देनाकमज़ोर हो गया है। अब ये जरूरी होता  जा रहा है कि मीडिया में  आने वाले पत्रकारिया या वीडियो  पत्रकारिता का प्रशिक्षण लेकर आए। नए शासनादेश , देश हित और कानून की उन्हें जानकारी हो। सरकार द्वारा प्रत्येक पत्रकार के लिए ये प्रशिक्षण  अनिवार्य किया जाना चाहिए।बार कौंसिल की तरह पत्रकार कौंसिल जैसी संस्था बने जो पत्रकारों पर नजर रखे।उनके लिए दिशा −निर्देश तैयार करे।ऐसा  होता है तो सरकार को मीडिया पर नियंत्रण  की जरूरत नही पड़ेगी।वरन सरकार  को इस पर नियंत्रण के लिए कभी  न कभी दिशा निर्देश जारी ही करने होंगे।जैसे की अभी आपरेशन सिंदुर के समय जारी किये गए।

नवोदित पत्रकारों के लिए पत्रकारिता अब 'मिशन' नहीं बल्कि 'कैरियर' बनती जा रही है। कई संस्थानों में उन्हें बहुत कम वेतन पर काम कराया जाता है, जिससे उनमें पेशे के प्रति समर्पण घटता है। वहीं वरिष्ठ पत्रकारों का आभा मंडल इतना विशाल हो गया है कि नए लोगों को उभरने का मौका कम मिलता है। इसलिए जरूरत है कि स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा मिले।पब्लिक फंडिंग या सब्सक्रिप्शन आधारित मॉडल को प्रोत्साहित किया जाए।नए पत्रकारों को प्रशिक्षण और संरक्षण मिले।ग्राउंड रिपोर्टिंग को बढ़ावा दिया जाए।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Monday, May 26, 2025

आत्महत्या करने वाले सभी छात्रों की सोचें


अशोक मधुप

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कोटा में हुई छात्रों की मौत पर सुनवाई की।इन पर चिंता जाहिर की। स्टूडेंट्स सुसाइड के मामलों को भी गंभीर बताया और राजस्थान सरकार को फटकार लगाई, जबकि अकेले कोटा ही नही देशभर के छात्रों की मौत पर  कार्रवाई होनी चाहिए। इन मौत की जांच होनी चाहिए। देशभर के छात्रों की आत्महत्या और  इनको रोकने पर विचार होना  चाहिए।

स्टूडेंट्स सुसाइड  मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कोटा में हो रहे स्टूडेंट्स सुसाइड के मामलों को भी गंभीर बताया और राजस्थान सरकार को फटकार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा, 'कोटा में इस साल अब तक 14 स्टूडेंट्स सुसाइड कर चुके हैं। आप एक राज्य के तौर पर इसे लेकर क्या कर रहे हैं? स्टूडेंट्स कोटा में ही क्यों आत्महत्या कर रहे हैं? एक राज्य के तौर पर क्या आपने इस पर कोई विचार नहीं किया?'सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी कोटा में छात्रा का शव मिलने और आईआटी खड़गपुर के छात्र के सुसाइड मामले की सुनवाई के दौरान की। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी।

चार  मई को एनइइटी एग्जाम से कुछ ही घंटे पहले कोटा के हॉस्टल में 17 साल की छात्रा का शव मिला था। चार मई को ही, आईआईटी खड़गपुर में पढ़ने वाले 22 साल के स्टूडेंट ने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगा ली थी। इन्हीं दोनों मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने छह मई को स्वतः संज्ञान लिया था।

आईआईटी खड़गपुर सुसाइड को लेकर कोर्ट ने 14 मई को कहा था वो सिर्फ यह पता लगाने के लिए संज्ञान ले रहे हैं कि प्रशासन ने 'अमित कुमार एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य' मामले में जारी कोर्ट के निर्देशों का पालन कर एफआईआर  दर्ज कराई है या नहीं।वहीं, कोटा में हुए सुसाइड को लेकर कोर्ट ने जवाब मांगा था कि एफआईआर  दर्ज क्यों नहीं की गई। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने ये सुनवाई की थी। इसी के साथ कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश भी दिया था कि मेंटल हेल्थ और सुसाइड प्रिवेंशन के लिए बनने वाली नेशनल टास्क फोर्स यानी एनटीएफ के गठन के लिए 20 लाख रुपए दो दिन में जमा कराएं।

बात पिछले सालों की करें, तो साल 2024 में कोटा में रहने वाले 17 स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया था। पिछले साल जनवरी के महीने में 2 और फरवरी के महीने में 3 सुसाइड हुए थे। वहीं साल 2023 में कोटा में स्टूडेंट सुसाइड के कुल 26 मामले सामने आए थे।

एमपी  सुसाइड प्रिवेंशन टास्क फोर्स के मेंबर और साइकेट्रिस्ट डॉ सत्यकांत त्रिवेदी ने कोटा में हो रहे स्टूडेंट सुसाइड को लेकर कहा, ‘किसी भी आत्महत्या का कोई एक कारण नहीं होता। वही एग्जाम सभी बच्चे दे रहे होते हैं। ऐसे में सुसाइड के लिए मिले-जुले फैक्टर्स जिम्मेदार होते हैं। इसमें जेनेटिक्स कारण, सामाजिक कारण, पियर प्रेशर, माता-पिता के एक्सपेक्टेशन्स, शिक्षा तंत्र सब शामिल है।

डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि कहीं न कहीं हम बच्चों को ये सिखाने में नाकामयाब हो जाते हैं कि स्ट्रेस, रिजेक्शन या फेलियर से कैसे डील करना है। आज बच्चा ये मानने लगा है कि उसका एकेडमिक अचीवमेंट उसके एग्जिस्टेंस से भी बड़ा है। बच्चा तैयारी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, जीवन छोड़ने के लिए तैयार है। सोसायटी ने प्रतियोगी परीक्षाओं को बहुत ज्यादा महिमामंडित कर दिया है जिसकी वजह से बच्चा ये महसूस करता है कि मैं पूर्ण तभी हो सकूंगा जब कोई एग्जाम क्रैक कर लूंगा।

   देश में आत्महत्या के हर साल आने वाले मामलों में छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। आंकड़ों की बात करें तो साल 2021 में 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की थी. जबकि, साल 2022 में 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की। वहीं 2018 से 2020 के दौरान कुल 33,020 छात्रों ने आत्महत्या कर ली।भारत युवाओं का देश है. यहां की 60 फीसदी से ज्यादा आबादी युवा है. लेकिन, अब इसी देश में हर 40 मिनट में एक युवा अपनी जान दे रहा है। ये आंकड़े स्टूडेंट सुसाइड- एन एपिडेमिक स्वीपिंग इंडिया रिपोर्ट की ओर से जारी किए गए हैं। दरअसल, देश में हर दिन 35 से ज्यादा छात्र आत्महत्या कर रहे हैं। साल 2018 से 2022 तक देश में 59,153 छात्रों ने आत्महत्या कर ली।

स्टूडेंट सुसाइड - एन एपिडेमिक स्वीपिंग इंडिया रिपोर्ट, आईसी थ्री  की साला कॉन्फ्रेंस में साझा की गई। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो  के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। आईसी− 3 एक नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन है जो पूरी दुनिया में शिक्षा के क्षेत्र में काम करती है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जहां आत्महत्या की दर हर साल दो फीसदी की दर से बढ़ रही है, वहीं छात्रों में आत्महत्या की दर चार  फीसदी की दर से हर साल बढ़ रही है। यानी देश में आत्महत्या के जितने मामले हर साल आते हैं, उनमें छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। आंकड़ों की बात करें तो साल 2021 में 13,089 छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी. जबकि, साल 2022 में 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की। वहीं 2018 से 2020 के दौरान कुल 33,020 छात्रों ने आत्महत्या की।

छात्रों की आत्महत्या के अलग-अलग मामलों में अलग-अलग वजहें हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में सिर्फ एक वजह है। ये वजह है मेंटल हेल्थ। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 15 से 24 साल का हर सात  में से एक आदमी खराब मेंटल हेल्थ की समस्या से जूझ रहा है।

सबसे बड़ी बात तो ये है कि लोग अपनी मेंटल हेल्थ की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते. यूनिसेफ के इस सर्वे में ही जितने लोगों ने भाग लिया, उसमें से सिर्फ 41 फीसदी लोग ही अपनी मानसिक समस्या के समाधान के लिए काउंसलर के पास गए। यानी 59 फीसदी लोगों ने इस समस्या को जैसे का तैसा छोड़ दिया।

देश को चाहिए कि वरिष्ठ मनोवैज्ञानिकों  की कोई प्रदेश स्तर पर ऐसी कोई संस्था बनाए तो तकनीकि शिक्षा के  लिए कोचिंग करने वालों और तकनीकि शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र− छात्राओं  के मानसिक स्तर की समय – सयम पर जांच करे।  उनकी कोंसलिंग करे।उनकी समस्याओं पर विचार कर छात्र− छात्राओं का सही मार्ग  दर्शन करे, ताकि वह आत्महत्या न कर ,  विपरीत परिस्थिति से संघर्ष करना  सीखें। उन्हें जीवन जीने की कला  सिखाई जाए। अगर विशेषज्ञ समझें तो  कोचिंग करने वाले और  तकनीकि शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं को मैडिटेशन या ध्यान से भी जोड़ा  जा सकता है। इससे  युवाओं में विषय के प्रति एकाग्रता बढ़ेगी।चिंतन शक्ति का विकास होगा। निगेटिव विचार कम होंगे।ये   मैडिटेशन या ध्यान उन्हें पूरे जीवन के लिए नई र्जा प्रदान करेगा।

 

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)