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अशोक मधुप
वरिष्ठ पत्रकार
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को
मंदिरों में 'वीआईपी दर्शन' सुविधा को चुनौती देने वाली याचिका भले ही खारिज कर दी, किंतु
इस याचिका पर कोर्ट द्वारा कही गई बातों की गूंज दूर तक जाएगी। यह गूंज केंद्र सरकार को विवश करेगी कि वह मंदिरों में हाने वाले
वीवीआईपी दर्शन पर रोक लगाने वाला निर्णय लें । कार्ट की ये गूंज आने वाले समय
में मंदिरों के वीवीआईपी दर्शन कर रोक लगाने का रास्ता प्रशस्त करेगी।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता
वाली बेंच ने कहा कि यह एक नीतिगत मामला है। इस पर केंद्र सरकार को विचार करना होगा। बेंच ने यह भी कहा कि
वीआईपी के लिए ऐसा विशेष व्यवहार मनमाना है। यह याचिका मंदिरों की तरफ से वसूले
जाने वाले वीआईपी दर्शन शुल्क को समाप्त करने की मांग कर रही थी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि बेंच इस मुद्दे से
सहमत है, लेकिन अनुच्छेद 32 के तहत निर्देश जारी नहीं कर
सकती। उन्होंने कहा, 'हालांकि हमारी राय है कि
मंदिरों में प्रवेश के संबंध में कोई विशेष व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन हमें नहीं लगता कि यह अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का उपयुक्त मामला है।' यह आदेश में दर्ज किया गया लेकिन मामला सरकार के विचार के लिए
छोड़ दिया गया।मुख्य न्यायधीश खन्ना ने कहा कि यह मामला कानून-व्यवस्था का प्रतीत होता है और
याचिका इस पहलू पर होनी चाहिए थी। बेंच ने कहा, 'हम स्पष्ट करते हैं कि
याचिका खारिज होने से संबंधित अधिकारियों को जरूरत के हिसाब से कार्रवाई करने से
नहीं रोका जाएगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, 'आज 12 ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ इस
प्रैक्टिस को फॉलो करते हैं। ये मनमाना और भेदभाव वाला है। यहां तक कि गृह मंत्रालय
ने भी आंध्र प्रदेश से इसकी समीक्षा करने को कहा है। चूंकि, भारत में 60 प्रतिशत पर्यटन धार्मिक है, इसलिए ये भगदड़ की प्रमुख वजह भी है।' सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका
विजय किशोर गोस्वामी ने डाली थी। उन्होंने मंदिरों में अतिरिक्त शुल्क लेकर 'वीआईपी दर्शन' के चलन को आर्टिकल 14 के तहत समानता के अधिकार और आर्टिकल 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताया।
उन्होंने दलील दी कि जो लोग इस तरह का शुल्क अदा करने में असमर्थ हैं, ये उनके खिलाफ भेदभाव है। याचिका में जोर देकर कहा गया था कि कई मंदिर 400 से 500 रुपये में लोगों के लिए
विशेष दर्शन की व्यवस्था करते हैं। इससे आम श्रद्धालु और खासकर महिलाएं, स्पेशली एबल्ड लोग और सीनियर सिटिजंस को दर्शन में चुनौतियों का
सामना करना पड़ता है। यह मामला देश भर के मंदिरों
में आम लोगों और वीआईपी के बीच भेदभाव के मुद्दे को उठाता है। वीआईपी दर्शन की
सुविधा से आम लोगों को लंबी कतारों में इंतजार करना पड़ता है, जबकि वीआईपी आसानी से दर्शन कर लेते हैं।
ये एकजगह नही है,श्रृद्धालू को इस
समस्या से सभी जगह रूबरू होना पड़ता है। जगह –जगह मंदिरों में इस समस्या का सामना करना
पड़ा है। लगभग 40 साल पहले हम
कोलकत्ता गए। कालिका जी मंदिर में हम
श्रृद्धालुओं की लाइन में लगे थे कि हमारे
एक साथी ने देखा और हमें इशारा कर अपने
पास बुला लिया। यहां पुजारी पांच रूपया प्रति व्यक्ति लेकर सीधे दर्शन करा रहे थे। अभी
वेट द्वारिका जाना हुआ। हम परिवार
के छह सदस्य थे। एक पंडित जी ने हमसे पांच सौ रूपये लिए।अलग लाइन से हमें आराम से
दर्शन कराए। भीड़− भाड़ भी बची।वैसे दर्शन में दो से तीन घंटे लगते पांच सौ रूपये में आधा घंटा में दर्शन कर मंदिर
से बाहर आ गए। करीब दस साल पहले हम गुजरात में अम्बा जी गए थे। दर्शन की लाइन
में लगे थे कि कर्मचारियों ने यह कह कर
हमके रोक दिया कि दर्शन का समय समाप्त हो गया, जबकि कुछ अन्य को लगातार
प्रदेश दिया जा रहा। किसी तरह हम अन्यों
वाली पंक्ति में शामिल हुए। तब दर्शन हुए। दर्शन भी बड़े
आराम से हुए। काफी समय हम मंदिर में रूके , जबकि ऐसा पहले संभव नही था। इस तरह का भेदभाव हमें कई
जगह देखने को मिला। उज्जैन में तो आप
पंडित को पांच सौ के आसपास रूपये
दीजिए।वह मंदिर के गर्भ गृह में ले जाकर पूजन अर्चन कराते हैं। जो ये रकम नही देते
वे गर्भगृह के बाहर ही दूर से दर्शन कर तृप्त
हो जाते हैं।ओंकारेश्वर में तो पंडित जी पूजा भी आराम से और श्रद्धालुओं की
पंक्ति से अलग लेकर कराते हैं। मथुरा जी
के बांके बिहारी मंदिर में सुपरिम आदेश
से यह व्यवस्था रूकी है, अन्यथा
लगभग सभी मंदिरों की हालत ऐसी ही है।
सुपरिम कोर्ट ने याचिका तो खारिज
कर दी, किंतु इस वीआईपी दर्शन पर रोक वाली
गेंद केंद्र सरकार के पाले में यह कह कर डाल दी । बेंच ने कहाकि बेंच इस मुद्दे से
सहमत है, लेकिन अनुच्छेद 32 के तहत निर्देश जारी नहीं कर
सकती। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह एक
नीतिगत मामला है। इस पर केंद्र सरकार को विचार करना होगा। बेंच ने यह भी कहा कि
वीआईपी के लिए ऐसा विशेष व्यवहार मनमाना है।
सुपरिम कोर्ट का यह
निर्देश अब केंद्र सरकार को विवश
करेगा कि मंदिरों में आम आदमी के साथ हो रहे भेदभाव को रोके और बांके बिहारी मंदिर
की तरह पैसा लेकर कराए जा रहे वीआईपी दर्शन
की व्यवस्था खत्म करे। व्यवस्था
अयोध्या जी के श्रीराम मंदिर जैसी
हो, जहां श्रद्धालू बिना भेदभाव आराम से 25−30 मिनट में दर्शन कर बाहर आ सके।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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