Tuesday, September 17, 2024

चीन पर कभी यकीन नही किया जा सकता

 

चीन पर कभी यकीन नही किया  जा  सकता

अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

लगातार चार साल से चले  आ रहे भारत चीन के बीच तनाव के कम होने के संकेत हैं।  भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों को लेकर हाल में घटनाक्रम  बहुत तेजी से घटा है। चीन भारत सीमा से सेना का पीछे हटना  बहुत अच्छा  है किंतु चीन की बात पर आंख मुंदकर यकीन नही किया जा सकता। समझौते करने के बाद अपनी बात से मुकरना उसकी आदत रही है। धोखा  देना  चीन का चरित्र है। उसपर पूरी तरह से नजर रखनी होगी। उसकी चाल के अनुरूप हमें अपना  व्यवहार  और तैयारी करना होंगी।

भारत चीन सीमा विवाद के सुलझने के संकेत गुरुवार को ही सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स एनएसए लेवल की समिट के साइडलाइन्स पर हुई उस बैठक के दौरान ही दिख गए थे जो एनएसए अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई थी। भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से बैठक के बाद जारी प्रेस नोट में इस बात का जिक्र था कि दोनों देशों ने बचे हुए क्षेत्रों में भी पूर्ण डिसएंगेजमेंट की दिशा में काम करने को लेकर सहमति जताई है। जानकार मानते हैं कि गतिरोध दूर करने करने की दिशा में ले जाने की प्रक्रिया एकाएक नहीं होती। इसके लिए बैकग्राउंड में काम होता रहता है ।

ओआरएफ में फेलो और चीन मामलों के जानकार कल्पित मणकिकर कहते हैं कि ' ऐसा एक लंबी प्रक्रिया के तहत होता है। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और दोनों देशों के विदेश मंत्री लगातार मुलाकात करते आ रहे हैं। पिछले चार सालों से बॉर्डर मुद्दों को सुलझाने को लेकर कोशिशें लगातार हो रही है। सेना के कमांडर स्तर पर बातें अलग से होती रही हैं।भारत और चीन दोनों की ओर से इस तरह की कोशिशें की जा रही थी। हालांकि अब जो दिख रहा है, उसके मद्देनजर इस तरह की कोशिशें क्या दिशा लेंगी, इसे लेकर अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में ही रहा जा सकता है। बॉर्डर पर आए गतिरोध के मद्देनजर विदेश मंत्रियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की बैठकें किए जाने का एक मैकेनिज्म तैयार किया गया है।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख में सीमा मुद्दे पर गुरुवार को कहा कि सैनिकों की वापसी से संबंधित मुद्दे लगभग 75 प्रतिशत तक सुलझ गए हैं लेकिन बड़ा मुद्दा सीमा पर बढ़ते सैन्यीकरण का है। जिनेवा में थिंकटैंक के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जून 2020 में गलवन घाटी में हुए टकराव ने भारत-चीन संबंधों को समग्र रूप से प्रभावित किया।

जयशंकर ने कहा कि विवादित मुद्दों का समाधान ढूंढ़ने के लिए दोनों पक्षों में बातचीत चल रही है। हमने कुछ प्रगति की है। मोटे तौर पर सैनिकों की वापसी संबंधी करीब तीन-चौथाई मुद्दों का हल निकाल लिया गया है। लेकिन इससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि हम दोनों ने अपनी सेनाओं को एक-दूसरे के करीब ला दिया है और इस लिहाज से सीमा का सैन्यीकरण हो रहा है।

सूत्रों का  कहना  है कि भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख में कुछ टकराव वाले बिंदुओं पर गतिरोध बना हुआ है। भारत कहता रहा है कि सेना  के पूर्व स्थान पर पहुंचे  बिना सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते। जयशंकर ने कहा कि 2020 में जो कुछ हुआ, वह कुछ कारणों से कई समझौतों का उल्लंघन था जो अभी भी हमारे लिए पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया और स्वाभाविक रूप से जवाबी तौर पर हमने भी अपने सैनिकों को भेजा।

2020 की झड़प के बाद से दोनों देश सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा के रूप में भी जाना जाता है। भारत द्वारा उच्च ऊंचाई वाले हवाई अड्डे तक एक नई सड़क का निर्माण चीनी सैनिकों के साथ 2020 में होने वाली घातक झड़प के मुख्य कारणों में से एक माना जा रहा है ।

इस बार चीनी सेना के सीमा से पीछे हटने का कारण चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य वांग काबयान भी है। उन्होने इस बात पर जोर दिया कि अशांत विश्व का सामना करते हुए, दो प्राचीन पूर्वी सभ्यताओं और उभरते विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत को स्वतंत्रता पर दृढ़ रहना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि एकता और सहयोग का चयन करना चाहिए तथा एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए। वांग ने उम्मीद जताई कि दोनों पक्ष व्यावहारिक दृष्टिकोण के जरिए अपने मतभेदों को उचित ढंग से हल करेंगे और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने का उचित तरीका ढूंढेंगे । चीन-भारत संबंधों को स्वस्थ, स्थिर और सतत विकास के रास्ते पर वापस लाएंगे।

 

इतना सब हो रहा है पर जरूरी यह है कि दोनों का मई 2020 की यथास्थिति  पर वापस लौटना ही समाधान है। निश्चित रूप से पीछे हटना समाधान नहीं है। यदि निश्चित रूप से समाधान के रास्ते पर चले तो भारत नुकसान में  ही रहेगा। इन सब को देखकर भारत को चलना होगा। मई 2020 की स्थिति पर चीन सहमत होगा, ऐसा नही लगता।

 

 

सीमा  विवाद के चार साल के दौरान समाचार आए की चीन सीमा पर नए हवाई  अड्डे−सैनिक छावनी उनके लिए बंकर बना रहा है। अपने   सीमा से सटे क्षेत्र में गांव विकसित कर  रहा  है।भारतीय क्षेत्र के स्थानों क नाम  बदल रहा है।हालाकि विवाद की अवधि में भारत ने भी  सीमा पर सुरक्षा ढांचा विकसित किया है।नए एयरबेस तैयार कर रहा है। ठंडे स्थानों में रहने के लिए सैनिकों को प्रशिक्षित करने के साथ ही उनके लिए बर्फ के दौरान भी  रहने के लिए  सौलर से गर्म करने  वाले   उनके टैंट बना  रहा है।  इस प्रक्रिया  को भारत का और तेज करना  होगा।  सीमा रेखा के सटाकर गांव विकसित करने होंगे तोकि चीन की गतिविधि पर नजर रखी जा सके।एक तरह से चीन की प्रत्येक कार्रवाई का उत्तर उसके कदम ही से आगे बढकर देना  होगा।

एक बात और  चीन कभी का काबू में आ गया होगा, काश हम भारतीय सही अर्थ में देशभक्त होते।मई 2020 में चीन से विवाद होने पर भारतीयों की फेसबुक पर बड़ी देशभक्ति  दिखाई दी। लगाकि अब भारत में चीन का बना सामान नही आएगा। दीपावली पर व्यापारियों के आंकड़े भी आए कि चीन से बना  कोई सामान नही मंगाया गया। जबकि आंकड़े  इसके विपरीत हैं।आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई)   के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और चीन के बीच कुल 118.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। वहीं, अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 118.3 अरब डॉलर रहा। 2021-22 और 2022-23 में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार अमेरिका रहा था। अब चीन है।अमेरिका से हम अस्त्र− शस्त्र  जैसे  महंगे सामान लेते हैं। इसलिए वहां से आयात जयादा होना चाहिए था।  चीन जानता  है कि भारतीय और भारतीय व्यापारी सस्ते के लालच में उसका ही माल खरीदेंगे। इसलिए वह हठधर्मी पर है,यदि चीन का  आयात दस प्रतिशत भी घट  गया  होता तो चीन कभी का भारत के आगे झुककर समझौता करने को मजबूर हो   जाता।   

Wednesday, September 11, 2024

अच्छी पहल है सीमाओं से सेना की वापसी

 अच्छी पहल है सीमाओं से सेना की वापसी

अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

 

 

भारत चीन दोनों ने दावा किया है कि पूर्वी लद्दाख सेक्टर के डेमचोक और देपसांग में दो टकराव बिंदुओं पर भारत और चीन के सैनिकों की वापसी शुरू हो गई है। रक्षा अधिकारियों ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच हुए समझौतों के अनुसारभारतीय सैनिकों ने संबंधित क्षेत्रों में पीछे के स्थानों पर अपने उपकरण वापस खींचना शुरू कर दिया है।ऐसा होने से पिछले चार साल से अधिक समय से चल रहा सैन्य गतिरोध समाप्त हो गया है। चीन ने भी ऐसा ही दावा किया है।सीमा से सेना की वापसी एक अच्छी पहल  है। इससे विवाद वाले देशों  में शांति होती है।विकास होता है। अब तक तनाव के दौरान सीमा और  सेना पर किया जा रहा व्यय देश के विकास पर खर्च  होगा। इतना  सब होने  पर भी चीन के रवैये को देखकर उस पर यकीन नही किया जा सकता।  उसके बहुत सावधान रहने की जरूरत है। सीमा  पर विकास  कार्य लगातार चलाए रखने होंगे । सीमा तक सेना के अवागमन को सरल करने की प्रक्रिया  चलती रहनी चाहिए।  सीमा क्षेत्र में सूचना  तंत्र विकसित करने का  कार्य  लगातार चलना  चाहिए ।

24 अक्टूबर को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि  भारत और चीन दोनों देश समान और पारस्परिक सुरक्षा के सिद्धांतों के आधार पर जमीनी स्थिति” बहाल करने के लिए आम सहमति पर पहुंच गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इसमें पारंपरिक क्षेत्रों में गश्त और चराई” की बहाली शामिल है। रक्षा मंत्री ने संबंधों में प्रगति का श्रेय निरंतर बातचीत में संलग्न होने की शक्ति को दियाक्योंकि जल्द या बाद मेंसमाधान निकलेगा।

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गश्त व्यवस्था पर दोनों देशों के बीच हुए समझौते का स्वागत किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना दोनों देशों की प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए और आपसी विश्वास द्विपक्षीय संबंधों का आधार बना रहना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत-चीन संबंध न केवल दोनों देशों के लोगों के लिए बल्कि वैश्विक शांतिस्थिरता और प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। वहीं विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने 22 अक्टूबर को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ने चीन के साथ गश्त व्यवस्था पर एक समझौता किया हैजिससे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति मई 2020 से पहले जैसी हो जाएगी।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पेट्रोलिंग (गश्त) को लेकर हुए समझौता का श्रेय भारतीय सेना और कूटनीति को दिया। पूर्वी लद्दाख में देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में दोनों देशों की सेनाओं के बीच शुक्रवार को डिसएंगेजमेंट (सैनिक वापसी) की प्रक्रिया शुरू हुईजो 29 अक्टूबर तक पूरी हो जाएगी। इसके बाद 30-31 अक्टूबर से गश्त फिर से शुरू की जाएगी।

पुणे में छात्रों के साथ संवाद करते हुए जयशंकर ने कहा कि संबंधों के सामान्य होने में अभी समय लगेगाक्योंकि विश्वास और सहयोग को दोबारा स्थापित करना लंबी प्रक्रिया है। विदेश मंत्री ने बताया कि हाल ही में रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक में यह निर्णय लिया गया कि दोनों देशों के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बैठक करेंगे और आगे की रणनीति पर विचार करेंगे।

जयशंकर ने कहा, "अगर आज हम उस मुकाम पर पहुंचे हैंजहां हम हैं...तो इसका एक कारण यह है कि हमने अपनी जमीन पर डटे रहने और अपनी बात रखने के लिए बहुत दृढ़ प्रयास किया। सेना देश की रक्षा के लिए बहुत ही अकल्पनीय परिस्थितियों में (एलएसी पर) मौजूद थीऔर सेना ने अपना काम किया और कूटनीति ने अपना काम किया।" उन्होंने यह भी बताया कि भारत अब पिछले एक दशक की तुलना में पांच गुना अधिक संसाधन लगा रहा हैजिससे सेना को प्रभावी ढंग से तैनात किया जा सका है।

ओआरएफ में फेलो और चीन मामलों के जानकार कल्पित मणकिकर कहते हैं कि ऐसा एक लंबी प्रक्रिया के तहत होता है। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और दोनों देशों के विदेश मंत्री लगातार मुलाकात करते आ रहे हैं। पिछले चार सालों से बॉर्डर मुद्दों को सुलझाने को लेकर कोशिशें लगातार हो रही है। सेना के कमांडर स्तर पर बातें अलग से होती रही हैं।भारत और चीन दोनों की ओर से इस तरह की कोशिशें की जा रही थी। हालांकि अब जो दिख रहा हैउसके मद्देनजर इस तरह की कोशिशें क्या दिशा लेंगीइसे लेकर अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में ही रहा जा सकता है।

2020 की झड़प के बाद से दोनों देश सीमा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैंजिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा के रूप में भी जाना जाता है। भारत द्वारा उच्च ऊंचाई वाले हवाई अड्डे तक एक नई सड़क का निर्माण चीनी सैनिकों के साथ 2020 में होने वाली घातक झड़प के मुख्य कारणों में से एक माना जा रहा है । अच्छा यह है कि दोनों देश  मई 2020 की यथास्थिति  पर वापस लौटने पर सहमत ही नही हुए,  इस प्रक्रिया के लिए कार्य भी शुरू हो गया।

सीमा  विवाद के चार साल के दौरान समाचार आए की चीन सीमा पर नए हवाई  अड्डे−सैनिक छावनी उनके लिए बंकर बना रहा है। अपने   सीमा से सटे क्षेत्र में गांव विकसित कर  रहा  है।भारतीय क्षेत्र के स्थानों क नाम  बदल रहा है।हालाकि विवाद की अवधि में भारत ने भी  सीमा पर सुरक्षा ढांचा विकसित किया है।नए एयरबेस तैयार कर रहा है। ठंडे स्थानों में रहने के लिए सैनिकों को प्रशिक्षित करने के साथ ही उनके लिए बर्फ के दौरान भी  रहने के लिए  सौलर से गर्म करने  वाले   उनके टैंट बना  रहा है।  इस प्रक्रिया  को भारत का और तेज करना  होगा।  सीमा रेखा के सटाकर गांव विकसित करने होंगे तोकि चीन की गतिविधि पर नजर रखी जा सके।एक तरह से चीन की प्रत्येक कार्रवाई का उत्तर उसके कदम ही से आगे बढकर देना  होगा।

एक बात  और  सेना की वापसी के बावजूद सीमा क्षेत्र  का विकास कार्य अनवरत चलता रहना चाहिए।। सीमा  पर विकास  कार्य लगातार चलाए रखने होंगे । सीमा तक सेना के अवागमन को सरल करने की प्रक्रिया  चलती रहनी चाहिए।  सीमा क्षेत्र में सूचना  तंत्र विकसित करने का  कार्य  लगातार चलना  चाहिए । सीमा क्षेत्र के गांव वालों को इसके लिए शिक्षित किया  जाना  चाहिए कि वे दुषमन देश की गतिविधि पर नजर रखें।अपने क्षेत्र में तैनात अधिकारियों और सेना को छोटी –बड़ी सब सूचना  दें।

    अशोक मधुप

 ( लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

आम कश्मीरी की सोच बतांएगे विधान सभा चुनाव


अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

जम्मू-कश्मीर विधानसभा लिए 18 सितंबर से  एक अक्टूबर 2024 तक  तीन  चरणों में  चुनाव होने हैंनतीजे आठ अक्टूबर 2024 को घोषित किए जाएंगे। इन चुनाव के परिणाम बताएंगे कि कश्मीर की जनता क्या  चाहती है। आर्टिकल  370  हटने के बाद जम्मू – कश्मीर में बडी तादाद में विकास  हुआ। शांति लौटी। रोज की होने  वाली पत्थरबाजी से  जम्मू− कश्मीर की  मुक्ति  मिली।  सिनेमा हाल खुल गए। पर्यटक आने लगे। मुहर्रम के जुलूस निकलने लगे। कश्मीर में  बहुत कुछ बदल गया है,इसके बावजूद देखना  यह है कि कश्मीर का मतदाता क्या  इस विकास को पसंद  करता है,या उसे मजहबी कट्टरता ही मंजूर है।   

जम्मू-कश्मीर में कुल 114 विधानसभा सीटें हैं लेकिन राज्य में विधानसभा सीटों के डिलीमिटेशन के बाद चुनाव केवल 90 सीटों पर ही होंगे।  इसकी भी वजह है कि   24 सीटें पीओके यानि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए हैं। राजनीतिक और प्रशासनिक परिवर्तनों के कारण इनमें से केवल 90 सीटों के लिए चुनाव होना तय है।वर्ष 2019 में जब जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के जरिए जब आर्टिकल 370 को हटाया गया तो राज्य में चुनावी सीटों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने के लिए परिसीमन प्रक्रिया शुरू की। मार्च 2020 में एक परिसीमन आयोग की स्थापना की गई। इसकी अंतिम रिपोर्ट मई 2022 में जारी की गई। इस रिपोर्ट ने विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी।  इसमें छह सीटें जम्मू और एक  कश्मीर में बढ़ी है।114 सीटों में 24 सीटें पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के क्षेत्रों के लिए आरक्षित हैं, इसका अर्थ है कि उन पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है. इसलिए, चुनाव के लिए उपलब्ध सीटों की प्रभावी संख्या 90 है. जम्मू संभाग में 43 और कश्मीर संभाग में 47. राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद यहां पहली बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।

राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव दस साल पहले नवंबर-दिसंबर 2014 में हुए थे ।चुनाव के बाद, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन ने राज्य सरकार बनाई

1 इसमें मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का सात जनवरी 2016 को निधन हो गया।  राज्यपाल शासन लगा पर  कम समय के लिए लगा। फिर महबूबा मुफ्ती ने वहां मुख्यमंत्रेी पद के लिए रूप में शपथ ली1 पिछली राज्य सरकार से जून 2018 में भाजपा ने पीडीपी के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू हो गया। नवंबर 2018 में, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने राज्य विधानसभा भंग कर दी। 20 दिसंबर 2018 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

भाजपा की ओर से  हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव  के लिए आज अपना घोषणापत्र जारी किया। इसमें  आतंकवाद के सफाए और हिंदू मंदिरों और धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण से लेकर कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी और पुनर्वास तक, भाजपा ने  कई प्रमुख वादे किए हैं। अमित शाह ने कहा कि यह क्षेत्र में विकास, सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पार्टी के वादों और योजनाओं के अनुरूप है।

नए जम्मू और कश्मीर' के लिए 25 वादों में से, भाजपा ने 'जम्मू और कश्मीर को राष्ट्र के विकास और प्रगति में अग्रणी बनाने' के लिए आतंकवाद और अलगाववाद को खत्म करने की कसम खाई। कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन ने जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा देने और अनुच्छेद 370 को हटाने से पहले की राजनीतिक स्थिति बहाल करने का भी वादा किया है। इस बीच नेशनल कॉन्फ्रेंस ने शंकराचार्य पहाड़ी का नाम बदलकर तख्त-ए-सुलेमान और हरि पर्वत का नाम बदलकर कोह-ए-मरान करने की बात कही है। इसे कश्मीर की मुस्लिम बहुल आबादी की भावनाओं को भुनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर के चुनाव के विभिन्न दलों के स्थानीय नेता तो चुनाव प्रचार में उतर ही चुके हैं1  बड़ी पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं की भी सभांए शुरू हो गई हैं1 जनसंपर्क अभियान चल रहा है। रोड शो निकाले जा रहे हैं1 घर-घर जाकर नेता लोगों से वोट मांग रहे हैं।इस बार का विधानसभा चुनाव इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि कश्मीर घाटी में परिवारवादी दलों के दिन अब खत्म  नजर आ रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में जम्मू-कश्मीर के बुनियादी ढांचे का इस तरह विकास किया गया है कि पिछले दिनों  श्रीनगर में जी-20 देशों की बैठक शांतिपूर्वक संपन्न हुई। इस साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर मुख्य कार्यक्रम भी श्रीनगर में ही आयोजित किया गया। इसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया।

हालात तो ये बता रहे हैं कि कश्मीर बदल रहा है किंतु जम्मू-कश्मीर की बारामुला सीट लोकसभा सीट से  आतंकवादियों को फंडिग करने के आरोप में जेल में बंद निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल रशीद शेख़ की जीत कुछ और ही इशारा कर रही है।उन्होंने जेल में रहते हुए जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस उमर अब्दुल्ला को दो लाख से भी ज़्यादा वोटों से शिकस्त दी है1बारामुला सीट पर रशीद को चार लाख 72 हज़ार वोट मिले जबकि उमर अब्दुल्ला को दो लाख 68 हज़ार वोट मिले1 तीसरे स्थान पर रहे जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ़्रेंस के सज्जाद लोन।उन्हें एक लाख 73 हज़ार वोट मिले।अब्दुल रशीद शेख़ के स्थानीय समर्थक अब्दुल माजिद इस जीत पर बीबीसी से कहते हैं कि साल 2019 के बाद जो कुछ भी कश्मीर में हुआ, इंजीनियर रशीद की जीत उसी बात का जवाब है।उनका कहना था कि कश्मीर के युवाओं ने जिस तरह इंजीनियर रशीद का समर्थन किया है, वो इस बात को दर्शाता है कि नई पीढ़ी नए चेहरों को ढूंढ रही है और पारंपरिक राजनीति से तंग आ चुकी हैं।इंजीनियर रशीद को 'आतंकवाद की फ़ंडिंग' के आरोप में यूएपीए के तहत साल 2019 में गिरफ़्तार किया गया था और इस समय वो दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद हैं।रशीद अवामी इत्तेहाद पार्टी के संस्थापकों में से एक हैं1 2019 में भी उन्होंने बारामुला से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और तीसरे नंबर पर रहे थे1इस बार उन्होंने बतौर स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव लड़ा था1जेल जाने से पहले इंजीनियर रशीद शांतिपूर्ण तरीक़े से कश्मीर समस्या को हल करने की वकालत करते रहे हैं।इंजीनियर रशीद जम्मू कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने के सख़्त ख़िलाफ़ थे और इस मुद्दे को लेकर वह सड़कों पर भी उतरे थे1 उन्होंने इसके विरोध में  कई धरने भी दिए हैं।सरकार का दावा है कि 370 हटाने के बाद कश्मीर विकास कि राह पर आगे बढ़ रहा है और जम्मू -कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा भी बार -बार 'नए कश्मीर' की बात कर रहे हैं1लेकिन कश्मीर में कुछ लोग इसे 'जबरन ख़ामोशी' भी कहते हैं। उनका आरोप है कि किसी को खुलकर बात करने नहीं दी जाती है।

इंजीनियर रशीद को  चुनाव प्रचार के  लिए जमानत मिल गई है।देखिए क्या  होता है। अमेरिका और मित्र देशों ने 20 साल अफगानिस्तान को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए जमकर निवेश किया था, किंतु एक झटके में वह इस्लाम के रास्ते पर चला गया। यही डर है। अभी तो कश्मीर में फौज है। देखना यह है कि बिना  फौज के भी कश्मीर का रूख  ये ही रहता है,या वह फिर पुराने आतंकवाद के रास्ते पर लौटता है। हालाकि हम भारतीय आशावादी है। आशा करते हैं कि सब ठीक होगा।कश्मीरी नागरिक और युवा नए कश्मीर,  विकसित कश्मीर को स्वीकार कर विकास का रास्ता अपनाएगें।

अशोक मधुप

( लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

      

Monday, September 9, 2024

नार्मल के बीटीसी बनने का सफर

 

नार्मल के बीटीसी बनने का सफर

 

जब मैने जूनियर हाई स्कूल यानी कक्षा आठ की परीक्षा जूनियर हाई स्कूल झालू से पास की तो मेरे बाबा (ग्रांड फादर) ने मुझ से कहा था, जानार्मल की ट्रेनिंग कर ले। मास्टर बन जाएगा। पंडित केशव शरण शर्मा जी जिला परिषद के

चैयरमैन है, तो तेरा चयन भी हो जाएगा। मैने उनकी बात मानी और नार्मल की ट्रेनिंग के होने वाले साक्षात्कार में गया। पंडिंत जी उस साक्षात्कार में बैठे किंतु मेरी उम्र कम होने के कारण मेरा चयन न हो सका और मै प्राइमरी स्कूल का

मास्टर बनते बनते रह गया। पंडित जी रिश्ते के मेरे बाबा

लगते थे, वे जिला पंचायत के चयरमैन

होते थे पर मेरा नार्मल की ट्रेनिंग में चयन न हो सका। हां एम. ए करने के बाद में मैने बीएड किया पर शिक्षण का

व्यवसाय रास न आया और तीन साल बाद उसे अलविदा कह पत्रकार बन गया।

 आज जिस बीटीसी की परीक्षा के लिए प्रवेश परीक्षा  हो रही है,  इतनी मारामारी मची हुई है, और बीटेक ,एमबीए , एमसीए, पीएचडी डिगरीधारक तक इसे करने के लिए आवेदन कर रहे हैं,प्राय मैरिट भी सत्तर प्रतिशत से ज्यादा रही है। मेरी

किशोरावस्था के समय इसमें प्रवेश की योग्यता मात्र कक्षा आठ पास थी। उस समय बीटीसी को नार्मल की ट्रेनिंग कहते

थे। इस ट्रेनिंग को कराने वाले स्कूलों को नार्मल स्कूल कहा जाता था।

क क्षा आठ तक की शिक्षा जिला पंचायत के अधीन थी। वही शिक्षकों को प्रशिक्षण दिलाती और उनकी नियुक्ति करती थी। बाद में लडक़ों के लिए नार्मल की ट्रेर्निंग करने की योग्यता हाई स्कूल हो गई जबकि लड़कियों की योगयता कक्षा आठ पास ही रही । १९६७ में ट्रेनिंग करने वाले शिक्षकों के प्रमाण पत्र पर इस योग्यता का बाकायदा उल्लेख है। इस प्रशिक्षण का नाम हिंदुस्तानी सर्टिफिकेट ट्रेनिंग था। इस ट्रेनिंग के लिए योग्यता बढऩी शुरू हुई तो इंटर होकर अब बीए हो गई। बाद में इसका नाम भी बदल कर बीटीसी हो गया। पहले यह ट्रेनिंग दो साल की होती थी , बाद में बीटीसी होने पर प्रशिक्षण की अवधि एक साल हुई, अब बढक़र इसकी अवधि फिर दो साल हो गई। पहले देहात में कक्षा आठ तककी शिक्षा का संचालन जिला पंचायत

और नगर में नगर पालिका करती थी।अब यह बेसिक शिक्षा के अधीन है।

       किसी समय गुरू को बहुत सम्मान मिलता था, शिक्षा पूरी करने पर गुरू दक्षिणा देने का प्रावधान था। महाभारत काल में  तो द्रोणाचार्य ने गुरू दक्षिणा में अपने शिष्य का दाएं हाथ का अंगूठा ही मांग लिया  था।

इन्ही द्रोणाचार्य ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए पांडवोंसे अपने दुश्‌मन राजा द्रुपद को बंदीके रूप में लाने को कहा था । उस समय तक गुरूकुल शिक्षा के साथ साथ देश के

संचालन में मददगार होते थे। तक गुरू छात्र को ज्ञान के साथ साथ तकनीकि शिक्षा और युद्धकला भी सिखाते थे।

हस्तिनापुर राज्य के राजकुमारों को पढ़ाने के लिए द्रोणाचार्य और कृपाचार्य जैसे गुरू के दरबारी होने और छात्रों से भेदभाव करने के कारण गुरू का पतन होना शुरू हुआ।गुरू की गरिमा गिरी तो शिक्षा कास्तर भी गिरा। गुरू दक्षिणा में अंगूठा

मांगे जाने की मिसाल भी महाभारत में ही मिलती है। शिक्षक के पतन कीयहां से हुई शुरूआत अब तक जारी रही। गुलामी के दौर में शिक्षक कासम्मान बहुत गिरा। आजादी के बाद भी कोई खास फर्क नहीं पडा़। और सबसेसरल छोटे बच्चों को पढ़ाने का

कार्य हो गया। जो कुछ नहीं कर पाता वह टीचर बन जाता।

    शिक्षा जगत से आए डा. राधाकृष्णनके समय से शिक्षकों को सम्मान मिलनाशुरू हुआ। उनके जन्म दिन पांच सितंबर

 को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा और शुरू हुआ

शिक्षकों के सम्मान का सिलसिला। आज शिक्षा का सुधार हुआ, शिक्षकों के वेतन बहुत अच्छे हुए तो योग्य युवकयुवतियों का इस और रूझान बढ़ा है। अब एमबीए, बीटेक यहां शिक्षक

बनने आ रहे है, किंतु वह यहां करेंगे क्या, काश वह अपनी योग्यतावाली तकनीकि शिक्षा में पढ़ाने जाते तो बहुत अच्छा रहता। यहां वे शिक्षा के प्रति समर्पण या कुछ नया करने की

भावना से नही आ रहे हैं। वे सरकारी नौकरी पाने की आस में

यहां आए है। उनका सोच यह है कि सरकारी नौकरी एक बार मिल गई तो फिर पूरी उम्र चैन से कटेगी।

हालात कैसे भी हो हमें आशा नहीं छोडऩी चाहिए ,उम्मीद रखनी चाहिएकि इनमें भी पंडित मदन मोहनमालवीय,नजीर अकबराबादी ,रविंद्र नाथ टैगोर जैसे गुरू निकलेंगे और शिक्षा के नए आयाम बनांएगे। आने वाला समय में शिक्षा का स्तर ही नहीं बढेग़ा ,अपितु शिक्षकों का समान भी

बढ़ेगा।

अशोक मधुप