Wednesday, August 5, 2020

जब सलूजा पर हुआ हमला ।उनपर ही दर्ज हुआ हत्या का मुकदमा

पत्रकारिता जीवन की भूली बिसरी कहानी -6
जब सलूजा पर हुआ हमला ।उनपर ही दर्ज हुआ हत्या का मुकदमा

11 मार्च 19 94 । बिजनौर सूचना आई कि धामपुर में अमर उजाला के पत्रकार महेंद्र सलूजा के खिलाफ धारा 302 में मुकदमा दर्ज हुआ है। कुछ लोगों से सलूजा को हमला कर घायल कर दिया है।मैँ और वरिष्ठ साथी जनसत्ता संवाददाता ओपी गुप्ता जी टैक्सी कर धामपुर पंहुच गए। यहां के के शर्मा इंस्पैक्टर थे। के के शर्मा अलग तरह के पुलिस अधिकारी रहे। ऐसे अधिकारी जो बड़े - बड़े अधिकारी के दबाव के आगे भी नहीं झुके। वे दंगा रोकने के स्पेशलिस्ट थे। संभल दंगों के लिए मशहूर था। वे संभल में छह साल तैनात रहे। जबकि तीन साल से ज्यादा पुलिस अधिकारी का एक स्थान पर तैनाती का नियम नहीं था।के के शर्मा हमारे बहुत नजदीक थे। सलूजा धामपुर ‌थाने में ही मिले। डीएम अशोक कुमार चतुर्थ और कप्तान निरंजन लाल भी मौजूद थे। पता लगा कि एक दलित युवक को कहीं से सांप मिल गया था। युवक नसेड़ी था।वह उससे खेल रहा था। जैतरा के पास तालाब में उसे एक और सांप मिल गया। वह उससे भी खेलने लगा । तालाब में मिला सांप जहरीला था। उसने एक दो जगह काट लिया । पर ध्यान नहीं दिया। सलूजा को पता चला । वे मौके पर गए। फोटो खींचे। इसी दौरान थाने के दरोगा रविंद्र कुमार भी दो सिपाही के साथ मौके पर आ गए।उन्होंने समझाया। युवक की समझ में नहीं आया। काफी भीड़ एकत्र थी। सांप से खेलते युवक की मौत हो गई। युवक के परिजनों को लोगों ने चढ़ा दिया। यहां कि अखबार वाले फोटो खींचकर ले गए हैं । ये अखबार में छापेंगे। तो तुम फंस जाओंगे। महेंद्र सलूजा सरदार हैं। सरल हैं। दिन रात सड़क पर घूमने वाले कबीर परम्परा के पत्रकार।युवक के परिवार जनों से सलूजा को पकड़ लिया। उसे बुरी तरह मारा- पीटा। पकड़ कर थाने ले आए। सलूजा, दरोगा रविद्र स‌िंह थाने के दो सिपाही सहित कई लोगों ‌के खिलाफ आई पीसी की धारा 147, 302, 323 के अंतर्गत मुकदमा लिखाया कि इन्होंने षडयंत्र कर उनके परिवार जन को मारा। वह सांप से खेल रहा था। तालाब में दूसरा जहरीला सांप दिखाई दिया। इन्होंने एक राय की। दरोगा रविंद्र कुमार ने सांप को लाठी से उठाया। युवक के गले में डाल दिया। कहा खेल । इससे खेल। ये सांप जहरीला था। इसके काटने से सांप से खेलने वाले की मौत हो गई।प्रदेश में बसपा की सरकार थी। लगभग एक सप्ताह बाद मुख्यमंत्री मायावती जी को बिजनौर आना था। अतः दलित नेताओं ने पीड़ित परिवार को चढ़ा दिया। डटे रहना। इसकी पत्नी को सरकारी नौकरी भी मिलेगी । मुआवजा भी। हम पंहुचे । बात हुई। डीएम अशोक कुमार ने कहा कि मरने वाले की पत्नी को नौकरी दिलाई जाएगी। हमने कहा कि हमारे पत्रकार सलूजा पर हमला हुआ है। उसे क्या मिलेगा? डीएम ने कहा कि पांच हजार रुपये दिए जाएंगे।हम सलूजा केे इलाज के लिए बिजनौर को लेकर चलने लगे । एसपी निरंजन लाल ने कहा कि उपचार करा कर भिजवा देना। मैंने कहा कि हम माने की सलूजा मुलजिम है? इस पर इंस्पैक्टर के के शर्मा ने कहा कि कोई जरुरत नहीं। सलूजा मुलजिम नहीं हैं। आप जहां चाहें ले जांए। जहां रखे। निरंजन लाल अलग तरह के अधिकारी थे। पर के के शर्मा के सामने वे कुछ नहीं बोले।हम सलूजा  केे इलाज के लिए बिजनौर को लेकर चलने लगे । एसपी निरंजन लाल ने कहा कि उपचार करा कर भिजवा देना। मैंने कहा कि हम माने कि सलूजा मुलजिम है?  इस पर इंस्पैक्टर के के  शर्मा  ने कहा कि कोई जरुरत नहीं। सलूजा   मुलजिम नहीं हैं। आप जहां चाहें ले जाएॅ।  जहां रखे। निरंजन लाल  अलग तरह के अधिकारी थे। पर के के शर्मा के सामने वे कुछ नहीं बोले।
हम सलूजा को बिजनौर ले आए। जिला अस्पताल में भर्ती  करा दिया।अगले दिन डीएम  अशोक कुमार को अस्पताल ले जाकर सलूजा  को पांच  हजार रुपये  दिलाए। रुपये  देते फोटो  खिंचाया। कुलदीप सिंह ने कहा कि ये फोटो अखबार में छपना चाह‌‌िए ताकि लगे कि ये मुलजिम नहीं हैं। हमने  फोटो छपने भेज दिया।
डेस्क् को फोन कर कहा । तो उन्होंने कहा कि भदोरिया जी को बता दो। भदोरिया जी प्रदेश प्रभारी होते थे।उनसे फोटो छापने का अनुरोध  किया।
सुबह फोटो अखबार में नही था। मैने डैक्स के साथी से पूछा ।  उसने कहा क‌ि  पेेज पर लग चुका था। आपके फोन करने पर आलोक भदौरिया जी ने रुकवा दिया। मैने एडमिन के साथी राजीव  धीरज से बात की । धीरज  स्योहारा से हैं। स्योहारा में मेरे अधीन अमर उजाला के रिपोर्टर होते थे। फिर मेरठ चले गए। मैने उन्हें किस्सा सुनाया और कहा -  इस्तीफा भेज रहा हूॅ । उन्होंने कहा कि राजेंद्र ‌त्रिपाठी जी को बता दो। आज के अमर उजाला मेरठ के संपादक राजेंद्र त्रिपाठी उस समय क्राइम रिपोर्टर होते थे।  देर से सोए होंगे। मैंने उन्हें  फोन कर स्थ‌िति बता दी। कहा कि टैक्सी से इस्तीफा भेज रहा हूं।
अतुल जी के रहने के टाइम में मैं  नाराज होकर साल में एक -दो बार इस्तीफा भेज देता था। वह बुलाकर मना लेते थे।
दुपहर एक  बजे  अतुल जी का फोन आया। लोगों को सोने भी नहीं देते । मेरठ आइये।
मैँ  और साथी कुलदीप सिंह अखबार की टैक्सी से मेरठ  चले गए। उन्होंने हमारी आराम से बात सुनी।आलोक भदोरिया को  बुलाया। फोटो न छापने का कारण पूछा। उनसे कहा कि जिले में बैठकर ब्यूरो प्रमुख को वहां के हालात से काम करने पड़ते है। इसलिए  उनकी सुनिए। उसी के हिसाब से काम करिए। फोटो   सुबह के अखबार  में छप  जाना चाह‌िए।और इस तरह वह फोटो छप गया।
मुख्यमंत्री मायावती बिजनौर  आयीं। चलीं गईं। इस प्रकरण का जिक्र भी नहीं हुआ। 11 मार्च  1994 को दर्ज  मुकदमा एक माह बाद 12अप्रेल 94 को खत्म हो गया।  सलूजा पर हमले की आशंका को देख एसपी ने उन्हें तीन -तीन माह के लिए एक एक सशस्त्र गार्ड  दिया। तीन माह के बाद मंडलायुक्त की संस्तुति से इनके पास तीन ‌माह और गार्ड रहा।
सलूजा फक्कड़ रहे । शुरू से लेकर । अब भी ऐसे ही हैं। गार्ड रहा। कोई  वाहन तो था नहीं। सलूजा जी दिन भर साइकिल पर लिए घूमते। कभी सलूजा साइकिल चलाते । कभी गार्ड।।सलूजा जी आज अमर उजाला में नहीं हैं,पर सरलता वैसी ही है।अशोक मधुप

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