पत्रकारिता
जीवन की भूली बिसरी कहानी 4
जब देहरादून
प्रशासन ने मुझ पर लगानी चाही एनएसए---
कौन? कब? , यहाँ पर काम आ जाता है, कुछ पता नहीं चलता। हम सोच भी नहीं सकते कि ऐसा भी हो सकता है। ऐसा मेरे साथ तो
कईं बार हुआ। कवि मनोज अबोध मेरे छोटे भाई की तरह से हैं। उनकी पत्रकारिता में
रुचि शुरू से ही रही है। उत्तर भारत टाइम्स में काम करने के दौरान उनकी ,पोस्ट आफिस
में नौकरी लग गई। सरकारी नौकरी के बाद भी उनका मन पत्रकारिता में रमा रहा। अपना
शौक पूरा करने के लिए मनोज ने 'मंथन फीचर' नाम से फीवर सर्विस शुरू की। संपादक अपनी
पत्नी इंदु भारद्वाज को बनाया।उसने मुझ से एक लेख मांगा। उस समय उत्तरांचल आंदोलन
जोरों पर था। समय की मांग देखते हुए मैने इस आंदोलन के समर्थन में एक लेख लिख
दिया। मनोज ने उसे संपादित किया। समाचार पत्रों को भेज दिया। उसने भेजी प्रति मुझे
दिखाई। मैंने देखा कि उसमें एक वाक्य गलत हो गया है । यह वाक्य पहाड़ के रहने
वालों के लिए भारी आपत्ति जनक था।मैंने उसे गलती से अवगत कराया। मनोज ने जब तक
संशोधन भेजा तब तक विश्व मानव सहारनपुर में लेख छप चुका था।
लेख छपने के
बाद पहाड़ के रहने वालों में गुस्सा होना स्वभाविक था। सो अगले दिन अखबार लेकर गई
विश्व मानव की टैक्सी और अखबार को देहरादून में जला दिया गया। मेरे और विश्वमानव
के खिलाफ प्रदर्शन हुए। विश्वमानव सहारनपुर के संपादक और मेरी गिरफ्तारी की मांग
को लेकर आंदोलन हुए। दोनों पर रासुका लगाने की मांग हुई।
मेरे खिलाफ
मुकदमा दर्ज होने की सूचना देहरादून अमर उजाला से मेरठ आयी। मेरठ में उस समय डेस्क
पर मेरे छोटे भाई जैसे सुभाष गुप्ता कार्यरत थे। उन्होंने वह सूचना टैक्सी से मुझे
भिजवा दी। चिंता होना स्वभाविक था।उस समय एच के बलवारिया बिजनौर में एसपी थे। के
के सिह डीएम ।
हमारी मित्र
मंडली के एक साथी हैं। हुकम सिंह । पेशे से वकील हैं। कचहरी में बैठते हैं। मिलना
कम होता है। पर होता रहता है। वे बलवारिया साहब के कैंप आफिस पर किसी काम से गए
थे। बलवारिया साहब किसी काम में व्यस्त थे। स्टेनो ने उन्हें अपने पास बैठा लिया।
इसी दौरान घंटी बजी। अर्दली ने स्टेनो से कहा साहब बुला रहे हैं। स्टेनो बलवारिया
साहब के कक्ष में चले गए। हुकम सिंह ने स्टेनो की मेज पर नजर दौड़ाई तो
स्टेनो की मेज पर डीएम देहरादून का ,बिजनौर के डीएम और एस पी के नाम वायरलैस
मैसेज पड़ा दिखा। इस मैसेज में मुझे एनएसए में निरूद्ध् करने का अनुरोध किया गया
था। हुकम सिंह धीरे से इस पत्र की नकल कर लाए। उन्होंने ये नकल हमारे
पत्रकार साथी वीरेश बल को दी। वीरेश बल ने मुझे बताया ।मैं, वीरेश बल, शिव कुमार शर्मा राजेंद्र पाल सिंह कश्पय साहब के पास गए।
राजेंद्र पाल
सिंह उस समय दैनिक उत्तर भारत टाइम्स के संपादक थे। बिजनौर मुख्यालय पर पीटीआई
सहित कईं अंग्रेजी दैनिक के रिपोर्टर भी थे। एक तरह सेहमारे अभिभावक थे।उनसे बातचीत हुई।
तय हुआ कि डीएम और एसपी से मिला जाए।हम लोग डीएम के के सिंह से मिले। मदद की बात की।
केके सिंह प्रमोशन ने डीएम बने थे। देहरादून के डीएम सीधे आईएएस थे। के के सिंह ने
साफ मनाकर दिया । कहा कि वहां के डीएम ने लिखकर भेजा है। मैं इसमें कुछ भी मदद
नहीं कर सकता।
हम सब
बलवारिया साहब से मिले। उनसे हम लोगों की उठ -बैठ ठीक थी।
उन्होंने मेरे से कहा कि एनएसए लगना आपके लाभ में है। आप गिरफ्तार होते ही हीरो बन
जाओगे। देश भर में प्रदर्शन होंगे। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री निवास तक शोर
मचेगा। दो तीन दिन में छूट जाओगे,पर मैं आपको हीरो नहीं बनने दूंगा। मैंने
डीएम और एसपी देहरादून से कह दिया है कि हमारे यहां अशोक मधुप की इमेज बहुत अच्छी
है। उनके किसी समाचार लेख से यहां कभी कोई विवाद नहीं हुआ। आपके यहां हुआ है। आप
एनएसए का वारंट बनाकर भेज दें। मैँ तामीज करा दूंगा। मेरे यहां कुछ नहीं है, इसलिए अपने यहां से वारंट नही बनाऊंगा। उन्होंने कहा कि मैने बता दिया है कि पत्रकार का
मामला है, एक दिन बाद ही देश भर में हंगामा मचेगा। आप करोगे आप झेलोगे।
पत्नी निर्मल
भी मानसिक रूप से तैयार हो गईं।उन्होंने मुझे समझाया जो होगा।देखा जाएगा।चिंता मत
करो ।हम जॉब में हैं।परेशानी वहाँ होती है।जहाँ अन्य आय का स्रोत न हो। मैं भी
मानसिक रूप से तैयार होगया।सोचा जेल में आराम से पढ़ा लिखा जाएगा।चिंतन होगा।
पर समय इसके
लिए तैयार नहीं था।
एनएसए टल गई।
पर पता लगा कि मेरे और संपादक विश्व मानव सहारनपुर के विरूद्ध 295ए में देहरादून में मुकदमा दर्ज है।समाज में साम्प्रदायिक भावना भड़काने का।
विश्वमानव की ओर से भी उसकी टैक्सी में आग लगाने , नुकसान होने आदि का मुकदमा दर्ज कराया गया था
।देहरादून वाला मुकदमा भी सहारनपुर भेज दिया गया ।
सहारनपुर में
सुंदर लाल मुयाल एडीएम होते थे। पहले ये बिजनौर भी
डीडीओ और एडीएम रह गए थे। वर्धमान कॉलेज के विज्ञान विभाग के प्रवक्ता ओ पी
गुप्ता जी जनसत्ता के संवादादाता हैं। गुप्ता जी की अधिकारियों के साथ निकटता जग जाहिर थी। सुंदर लाल मुुयाल जी से
भी उनकी घनिष्ठता थी। मैँ और ओपी गुप्ता जी दोनों सहारनपुर गए। विश्वमानव पहुंचे तो वहां
बढ़ापुर के साथी शराफत हुसैन मिले। उन्होंने अपने साहित्य संपादक से मिलवाया। साहित्य
संपादक का नाम अब याद नहीं। उन्होंने कहा कि आपका लेख बिल्कुल सही था। उसमें कुछ गलत
नहीं था। वे गढ़वाल का गजेटियर पेश कर सकते हैं।
खैर! कुछ देर
वहां रुके। शराफत बाहर तक छोड़ने आए।यहां से हम मुयाल साहब के पास गए। उहोंने केस के
आईओ को बुला रखा था। आईओ ने कहा कि क्रास केस है। खत्म करने के आदेश हैं। मुयाल
साहब ने कहा कि आज ही खत्म कर के एफआर की प्रति शाम तक मुझे पहुंचा दें। एक
दो-दिन बाद उन्होंने एफआर की प्रति हमें भिजवादी । इस तरह इस प्रकरण का समापन हुआ।
बहुत तनाव रहा।पर सुभाष गुप्ता जी,हुक्म सिंह जी,वीरेश बल जी, ओपी गुप्ता जी सुन्दर लाल
मुयाल जी इस प्रकरण को निपटाने में बहुत मददगार रहे।
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