Monday, October 19, 2015

गढ़वाल भूूकंप और मैं


कई  बार ज्यादा सुरक्षा भी खतरा लेकर आती है। ऐसा ही  गढ़वाल भूूकंप के समय| मेरे साथ हुआ |
  बिजनौर में 1990 में दंगा हुआ था। हमारी  गली के अंदर पांच परिवार रहते हैं। गली मंदिर की साइड में ही खुली है। गली के हम पांचों परिवारों ने मिलकर गली के मुह पर चैनल लगा कर इसे बंद करा दिया। सुरक्षा के लिए रात में दस बजे चैनल को बंद कर उसमें ताला लगा देते। ताले की पाचों परिवार पर चाबी थी । जिसे आना होता अपनी चाबी से दरवाजा खोल लेता। चैनल के पास दीवार पर लगे बोर्ड पर पांचों परिवार की घंटी लगी थीं। सो किसी मेहमान को भी परेशानी नहीं थी। जिसका मेहमान आता।  उसकी घंटी बजा देता। संबधित परिवारजन ताला  खोल देते।
20 अक्तूबर 1991  की रात। किसी को कुछ पता नहीं था क्या होने वाला है। कुछ समय बाद प्रलय आने वाली है, इसका किसी को गुमान भी न था। सब  आराम से सोए। रात में जोर से पंलग हिलने  और भूूकंप का शोर मचने पर मैं घर से बाहर निकलने के लिए भागा। दूसरे कमरे में बच्चों के साथ सोई पत्नी को  आवाज दी । उससे  बच्चों को उठाकर बाहर आने को कहा। इस दौरान लाइट भाग चुकी थी । किसी तरह घर के मेन गेट का कुंडा खोकर बाहर भागा। घुप अंधेरा | हाथ को  हाथ नजर नहीं आ रहा था। किसी तरह झपट कर चैनल पर पंहुचा । वहां ताला लगा  था। घर से बाहर निकलते चाबी लानी भूल गया था । चाबी लाने की याद आई तो सोचा अंधेरे में  ताला खुलेगा कैसे। ऐसी आपदा के समय बचने के लिए चार से पांच सेंकेड का समय होता है। यदि आप ऐसे में खुले मैदान में पंहुचे तो ठीक । नहीं तो प्रकृति आपका भाग्य तै करेगी। मौसम कुछ ठंडा था किंतु ये सब   ख्याल आने पर घबराह ट के कारण मुझे पसीना आ गया। पर कुछ बस में नहीं था। वैसे भी मेरा घर बिजनौर की पुरानी आबादी में है।पुरानी आबादी में खुुला स्थान होता कहां है। घर से सटा मंदिर तो है ।  उसमें कुछ जगह भी है किंतु उसके चारों ओर तो ऊंंचे- ऊंचे भवन है। मैं  बहुत तनाव में था कि कैसे कंरू ,  अब क्या होगा? उधर घर के अंदर से पत्नी की आवाज आई। ये बच्चे तो उठ ही नही  रहें। क्या करू?
क्या जवाब देता । इस दौरान पड़ौसी भी निकल आए। हरेक का अपना  तजुर्बा। अपना अनुभव।लगे बतियाने।  अपनी- अपनी बीती सुनाने ।
मैं तो सब कुछ  कुछ प्रकृति पर  छोड़ में भी घर में आकर पलंग पर लेट गया। सवेरे पता चला रात में भूूकंप ने उत्तराचंल में प्रलय ला  दी है।
प्रलय मैने कभी देेखी नहीं। बस इतिहास की किताबों में उसे  जरूर पढ़ा है। मै समझता हूं कि गढ़वाल का 91 का भूकंप, सूनामी की समुद्र तट क्षेत्र में तबाही और केदारनाथ आपदा अलग- अलग रूप में प्रलय ही तो थीं।प्रलय भी ऐसी ही होती होगी।
अशोक मधुप

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