Monday, July 23, 2012



रेहड़ में थी जाहरवीर की ननसाल
हर साल लगता है रेहड़ में जाहरदीवान का मेला
लाखों श्रद्धालु उनकी म्हाढ़ी पर चढ़ाते हैं निशान
हिंदू व मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग में माने जाते हैं जाहरवीर(जाहरपीर)
अशोक मधुप
बिजनौर,देश भर में गोगा जाहरवीर उर्फ जाहरपीर के करोड़ों भक्त  हैं। सावन में हरियाली तीज से भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी तक  देश भर में बनी इनकी म्हाढ़ी पर  श्रद्धालु आकर  निशान चढ़ाते और पूजन अर्चन करते हैं। गोगा हिंदुओं में जाहरवीर है तो मुस्लिमों में जाहरपीर । दोनों संप्रदाय में  इनकी बड़ी  मान्यता है।  यह बात कम ही लोग जानते है कि राजस्थान में जन्में गोगा उर्फ  जहरवीर की ननसाल बिजनौर जनपद के रेहड़ गांव में थी। उनके नाना का नाम  राजा कोरापाल सिंह था। गर्भावस्था में काफी समय उनकी मां बाछल अपने  पिता के घर रहीं। रेहड़ गांव में आज भी जाहरदीवान का बड़ा मेला लगता है।
रेहड़ के राजा कुंवरपाल की बिटिया  बाछल और कांछल का विवाह राजस्थान के चुरू जिले के ददरेजा गांव में राजा जेवर सिंह व उनके भाई राजकुमार नेबर सिंह से हुआ। जाहरवीर के इतिहास के जानकार रेहड़ के डाक्टर आशुतोष शर्मा के अनुसार जाहरवीर की मां  बांछल ने पुत्र प्राप्ति के लिए गुरू गोरखनाथ की लंबे समय पूजा की। गोरखनाथ ने उन्हेें झोली से गूगल नामक औषधि निकालकर दी और कहा जिन्हें बच्चा न होता हो  उन्हें यह औषधि खिला देना। रानी बाछल से थोड़ा-थोड़ा गूगल अपनी पंडितानी, बांदी को और अपनी घोड़ी को देकर बचा काफा भाग खुद खा लिया। उनके द्वारा आशीर्वाद स्वरूप दी गुग्गल नाम की औषधि के खाने से जन्में बच्चे का नाम गूगल से गोगा हो गया। वैसे रानी ने अपने बेटे का नाम जाहरवीर रखा। पंडितानी ने अपने बेटे का नाम नरङ्क्षसह पांडे और बांदी के बेटे का नाम भज्जू कोतवाल पड़ा। घोड़ी के नीले  रंग का बछेड़ा हुआ। गोगा की मौसी के भी गुरू गोरखनाथ के आशीर्वाद से दो बच्चे हुए। ये सब साथ साथ खेलकर बड़े हुए। बाछल ने जाहरवीर को वंश  परपंरा के अनुसार शस्त्र कला सिखाई और विद्वान बनाया। जाहरवीर नीले घोड़े पर चढ़कर  निकलता और सबके साथ मिल जुलकर रहता। गुरू गोरखनाथ के ददरेजा  आने पर जाहरवीर ने गुरू की सेवा की  और फिर उन्हीं के साथ उनकी जमात में निकल गए। गुरू के साथ वह काबुल, गजनी,  इरान, अफगानिस्तान  आदि देशों में घूमे, उनके उपदेश हिंदू मुस्लिम एकता पर आधारित होते थे। भाषा के कारण वे मुस्लिमों में जाहरपीर हो गए। जाहरपीर का नीला घोड़ा और  हाथ का निशान उनकी पहचान बन गए।
मां बाछल द्वारा किसी बात पर इन्हें घर न आने की शपथ दी गई थी, किंतु ये पत्नी से मिलने छिपकर महल आते। श्रावण मास की हरियाली तीज के अवसर पर  मां के द्वारा देख लिए जाने और पीछा किए  जाने पर हनुमानगढ़ के निर्जन स्थान में अपने घोड़े समेत जमीन में समा गए। उस दिन भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी थी तभी से देश के कोने कोने से आज तक प्रतिबर्ष लाखों श्रृद्धालु राजस्थान के ददरेवा में स्थित जाहरवीर के महल एवं गोगामेढ़ी नामक स्थान पर उनकी म्हाढ़ी पर प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगते है।  देश भर में जहां जहां जाहरवीर गए। वहां उनकी म्हाड़ी बन गई। इन स्थान पर  प्रत्येक वर्ष हरयाली तीज से शुरू होकर भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी तक जाहरवीर के विशाल मेले लगते है। मान्यता है कि गर्भावस्था  में  रेहड़ में  राजा कोरापाल के महल में जहॉ पर मां बाछल रही थी, वहॉ पर महल के नष्ट हो जाने के बाद जाहरवीर गोगा जी की म्हाढी़ बना दी गई। जहॉ प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की नवमी को हजारों श्रृद्धालु प्रसाद चढ़ाकर अपना सुखी वैवाहिक जीवन शुरू करते है। बिजनौर के पास गंज, फीना और गुहावर में भी इस अवधि में मेले लगते हैं। किवंदति है कि जिस दंपति को संतान सुख नही मिलता उन्हे जाहरवीर गोगा जी की म्हाढ़ी पर सच्चे मन से मुराद मांगने पर संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है।

  

झंडे के साथ पीले वस्त्र पहनकर पंखे से हवा करते हुए चलते हैं भक्त
बिजनौर,जाहरवीर के भक्त पीले कपड़े पहनकर हाथ में झंडे  और  पंखे लेकर  चलते हैं। पंखो से ये आसपास के व्यक्ति को हवा करते चलते हैं। इसके बारे में जनपद के इतिहास के जानकर प्रसिद्ध  आर्य समाज जयनारायण अरूण कहते हैं कि झंडा जाहरवीर के निशान का प्रतीक है। यह म्हाढ़ी पर जाकर चढ़ाया जाता है।   मेले  लगने के  समय गर्मी  ज्यादा पड़ती है, इसलिए मेले में जाने वाले हाथ में लिए पखेें से आसपास के व्यक्ति को हवा करते चलते हैं। जनपद के किसान नेता शूरवीर सिंह कहते हैं कि प्राय: महिलाएं कह देती है कि वे बच्चा होने पर जाहरदीवान की जात देंगी। कुछ श्रद्धालु बच्चे के दीर्घायु की कामना के लिए जाहरदीवान की जात दिलाने  उनकी म्हाढ़ी पर ले जाते हैं। जाहरदीवान के  बारे में विख्यात है कि उन्हें सांप के काटे  के जहर उतारने की कला आती थी। इस मौसम में सांप का  प्रकोप ज्यादा होता है। इसलिए सांप के काटें के बचाव के इरादे से भी भक्त इनकी माढ़ी पर प्रसाद चढ़ाने आते हैं। जात देने वाले बच्चे या व्यक्ति को मोटे खादी के पीले कपड़े  पहनाए जाते हैं। जात देने वाले के हाथ में जाहरदीवान का झंड़ा  होता है और गर्मी से उसे राहत देने के लिए परिवार के सदस्य पंखों से हवा करते चलते हैं। वर्धमान कालेज के हिंदी के पूर्व  प्रवक्ता डा चंद्रपाल शर्मा मधु का कहना है कि जाहरदीवान गुरू गेारखनाथ क भक्त थे, इसीलिए ये योगियों के पहने जाने  वाले   पीले कपड़े पहनते हैं। वर्धमान कालेज के  हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा  राम स्वरूप आर्य कहते हैं कि  देश भर में जाहर दीवान के करोड़ों भक्त हैं। उनकी बड़ी मान्यता है।

मेरा यह लेख अमर उजाला के 23 जुलाई के बिजनोर   संस्करण में प्रकाशित हुआ 
अशोक मधुप

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