Wednesday, June 8, 2011

कभी रिजल्ट आता था तो मेले लगते थे

• अशोक मधुप
बिजनौर। आज बोर्ड का रिजल्ट आया । न कोई हो हल्ला , न शोरशराबा । पता ही नहीं चला कि कब रिजल्ट आया और कब छात्र अपना नतीजा पता करके निकल लिए। कंप्यूटर और नेट तो रिजल्ट की दुनिया ही बदल दी। लेकिन दस साल पहले जब इंटरनेट और कंप्यूटर सपना था, बोर्ड का रिजल्ट जानना बेहद उलझन और तनाव का काम होता था, छात्रों के लिए भी और उनके लिए भी जो रिजल्ट छात्रों तक पहुंचाते थे। नतीजा हासिल करने के लिए मेले लगते थे। हजारों की भीड़ सड़कों पर उमड़ती थी। बिजनौर मुख्यालय पर तो 24 घंटे तक पूरे जनपद के रिजल्ट देखने वालों वालों का मेला लगा रहता था।
संचार क्रांति से अब हमें परिणाम फटाफट तो मिल जाता है , पर का रिजल्ट का रोमांच कई दिनों से चंद घंटों में सिमट कर रह गया है। रिजल्ट आने के दिन सबेरे से ही जिला मुख्यालय पर रिजल्ट देखने वाले हजारों युवकों की भीड़ उमड़ती थी। कई - कई घंटे रिजल्ट का इंतजार रहता । कई बार तो पूरी - पूरी रात बिजनौर की सड़कों पर बेताब युवाओं की भीड़ रिजल्ट जानने के लिए जमी रहती। चाय - पानी के नए नए खोखे लग जाते थे। कोई गाड़ी आती दिखाई देती तो भीड़ भागकर उसके पास चली जाती। बाद में यह पता चलने पर की अखबार की गाड़ी नहीं है, लौट आती।
हाईस्कूल और इंटर के रिजल्ट के समय हम झालू से साइकिल से बिजनौर आते थे। बात 66-68 की है। तब बिजनौर - झालू सड़क नहीं बनी थी। 10 किमी का कच्चा रास्ता था। इस बीच मौका मिलता तो फिल्म देख कर कुछ टेंशन कम कर लेतेे। रिजल्ट का अखबार आता तो दस रुपये में अखबार खरीदकर घर के लिए साइकिल दौड़ाते। डर रहता कि कोई दूसरा अखबार लेकर पहले न पहुंच जाए। जितने पहले पहुंचे उतने ज्यादा दाम मिलते। झालू में भी रिजल्ट देखने वालों का ऐसा ही जमावड़ा रहता।रेट होता दो रुपये में एक रिजल्ट । अब तो विषय अनुसार रिजल्ट मिल जाता है। पहले तो बस डिवीजन पता चलती थी। अंक की जानकारी रिजल्ट आने के 10-12 दिन बाद स्कूल में मार्कशीट आने पर ही पता लगती। बिजनौर से रिजल्ट का अखबार खरीद कर ले जाने और अपने छोटे से कस्बे के छात्रों को रिजल्ट दिखाने से लोगों के बीच में खासा रौब रहता था। रिजल्ट दिखाने से हुई आय से एक माह की पाकेट मनी निकल आती थी। बाद में जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ने लगी तो रिजल्ट के पेपर के लुट जानेे के डर के कारण थानों में रिजल्ट के पेपर बांटने का इंतजाम किया गया । आज ये मेले कौतूहल के विषय हो सकते हैं , पर आज यहां पहुंचे हम इन रिजल्ट मेलों से गुजर कर ही।
•गांव में अखबार ले जाने पर खास रौब
•लुटने के डर से थाने मंे बंटता अखबार



मेरा यह लेख अमर उजाला मेरठ के बिजनौर डाक संस्करण में सात जून के अंक में पेज दो पर बाटम में छपा है

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