Saturday, December 18, 2010

गोपाल दास नीरज से एक भेंट

हरेक पल को जिया पूरी एक सदी की तरह...
‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे’
स्
अशोक मधुप
बिजनौर।पद्य विभूषण गोपालदास नीरज गीतों की दुनिया और हिन्दी साहित्य का जाना माना नाम है। उनकी गजल और दोहे साहित्य जगत की अनमोल धरोहर है। नीरज जी के एक कार्यक्रम में आने की सूचना पर उनके साक्षात्कार को जब नजीबाबाद रोड स्थित डॉ निरंकार सिंह त्यागी के आवास पर पहुंचा तो नीरज एक कमरे में रजाई में आराम कर रहे थे। उनके पलंग के पास उनका वाकर रखा था। 86 साल की उम्र में आज वे इसके सहारे चलते हैं।इस तरह शुरू हुआ प्रश्नोत्तर का सिलसिला
प्रश्न : नीरज जी कविता लिखनी कब शुरू की?
उत्तर: माँ बचपन में गुजर गई थी। एटा में मै अपनी बुआ के यहां रह कर पढ़ता था, गाने का शौक था तथा अच्छा गाने के कारण साथी और परिचित मुझे सहगल कहकर पुकारते थे। वहां एक कवि सम्मेलन में मैने बलबीर सिंह रंग को काव्य पाठ करते सुना। रंग अपने समय के प्रसिद्ध कवि थे। वे अपने गीत गाकर पढ़ते थे। उनसे प्रभावित होकर ही मैने कविता लिखनी शुरू की। मेरी पहली कविता है-
मुझको जीवन आधार नहीं मिलता,
आशाओं का संसार नहीं मिलता
एटा में जागरण नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र निकलता था उसके सम्पादक कुंवर बहादुर बेचैन ने यह कविता अपने अंक में छपवाई थी। उस कविता को लंबे समय तक मै सीने से चिपकाए घूमता रहा। मुझे हरिवंश राय बच्चन की पुस्तक निशा निमंत्रण पढ़ने को मिली।जीवन से निराशा थी ऐसे में कविता पाठ लिखना शुरू कर दिया और संघर्ष नाम की पहली पुस्तक 1943 में प्रकाशित कराई। इस पुस्तक को निशा निमंत्रण को समर्पित किया। धीरे-धीरे कविता लिखते रहे, किन्तु अपना रास्ता अलग बनाया। बच्चन जी की कविता में लक्षण व्यंजनाओं का अभाव है। दिन जल्दी जल्दी ढलता है सीधी कविता है। मैने प्रेम को देखा। उसके के लिए सदा नई परिभाषा गढ़ी।
गीत लिखा: कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे, जिन्दगी मैंने गुजारी नहीं सभी की तरह,
हरेक पल को जिया पूरी एक सदी की तरह।
तुम्हारी याद जो ता उम्र मेरे साथ रही,
छुपा है रखा उसे, ख्वाबे आखरी की तरह।
लोग मुझे शृंगार का कवि कहते हैं लेकिन मैं शृंगार का कवि नहीं, एक दार्शनिक कवि हूं। कुछ विद्वान कहते हैं कि दर्शन कविता के लिए नहीं हैं जबकि मैं कहता हूं कविता दर्शन के बिना नहीं हो सकती।
आज जी भर देख लो तुम चांद को क्या पता यह रात फिर आए न आए। यहां दर्शन है।
प्रश्न: आपने ज्योतिष पर भी काफी लिखा है?
उत्तर: ज्योतिष एक विज्ञान है। इस संसार में कोई स्थिर नही है। सूर्य चांद तारे ही नहीं चल रहे। हर चीज लय में चल रही है। नदी लय में चल रही है। हमारा रक्त लय में चल रहा है। इसी पर ज्योतिष केंद्रित है।
चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनते ही कह दिया था कि 30 को कुछ गड़बड़ हो जाएगी। हुआ भी ऐसा हीं। यह संक्रांति काल था। इसमें गड़बड़ होती ही है। ज्योतिष में तीन पुस्तकें लिखी, किन्तु परिचितों ने कहा कि यह तुम्हारा विषय नहीं समय बरबाद मत करो। और मैं अपने रास्ते पर आ गया।
प्रश्न: अपने विशाल साहित्य में अपनी सर्वश्रेष्ठ कविता कौन सी मानते हैं?
उत्तर:
कविता बच्चों की तरह है। आदमी को अपने सभी बच्चे प्यारे होते हैं, कोई ज्यादा प्यारा या कम प्यारा नहीं। किन्तु मैने मां संबोधन से चार पांच कविताएं लिखी हैं इन्हें मैं सर्व श्रेष्ठ मानता हूं। दो वर्ष मेरे अवसाद में बीते एक तरह से विक्षिप्त की तरह जीवन जिया। लगता था कि मां मुझे बुला रही हैं। कहती है तुम परेशान हो मेरे पास आ जाओ ऐसे में मैने लिखा:
मां मत ऐसे टेर की मेरा मन अकुलाए। ,तू तो दे आवाज वहां से, यहां न मुझसे बजे बांसुरी।
तू डाटे उस ठौर, चढ़ाए यहां हर एक फूल पांखुरी, तेरा करु न तो तू बिगडे़, जग की सुनु न तो वह झगडे़।
समझ में नहीं ंआता कि इस पार जाऊं या उस पार।
प्रश्न: नीरज अगर कवि नहीं होते तो क्या होते
उत्तर:
क्लर्क होता, काफी समय क्लर्की की है। उसी समय की लिखी पुस्तक संघर्ष है।
प्रश्न: आप अपनी परिभाषा क्या कहेंगे?
उत्तर:
नीरज के दो रूप हैं एक : कमल और दूसरा मोती मैं अपने आपको कमल मानता हूं जो गंदगी में रह कर भी उससे दूर रहता है।
प्रश्न: आप और संतोषानन्द जैसे कद्दावर कवि गीतकार फिल्मों में गए किन्तु वहां से चले क्यों आए?
उत्तर:
नीरज: मैं फिल्मी दुनिया में गया नहीं बुलाया गया था आज भी बुलाया जाता हूं। मेरे गीतों की
पिक्चरों ने सिलवर जुबली मनाई। खूब चली मैरे लिखे गीत आज भी गुन गुनाए जाते हैं। राज कपूर, शंकर जयकिशन मेरे साथी थे। एस डी वर्मन ने मेरे गीत खूब गाए। फिल्मी दुनिया में राजनीति की जोड़ तोड़ चलता है, मैं यह सब नहीं कर सकता इसीलिए लौट आया।
प्रश्न: आज के फिल्मी गीतों ्रकुछ कहें?
उत्तर:
आज के गीत पचास शब्दों में ही सिमटे हैं उसमें भाव नहीं हैं।
प्रश्न: पुराने समय के कवि सम्मेलन और आज के कवि सम्मेलन में क्या फर्क है?
उत्तर: पहले कवि सम्मेलन की अध्यक्षता जाने माने कवि मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, रामधारी सिंह दिनकर, निराला एवं महादेवी वर्मा आदि करते थे आज राजनेता करते हैं। आज तो मंच से कविता ही नहीं कही जा रही।
प्रश्न: आज हिंदी कवि भी गजल लिख रहे हैं क्या कारण हैं?
उत्तर:
गजल लिखना बहुत सरल है उसकी हर दो पंक्तियां अपने में अलग होती है। विपरीत भाव भी हो सकते हैं किन्तु गीत में ऐसा नहीं हैं। गीत में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक भाव नहीं बदल सकता। गजल उर्दू की विद्या है गीत हिंदी की। हिंदी में गजल लिखना बहुत कठिन हैं वह भाव ही नहीं आ सकता। मुगल शासन में उर्दू कोर्ट की भाषा बनी। उर्दू दरबारी भाषा बनी तो हिंदी गांव खेत और खलिहान की ओर चली गई।
गजल का अर्थ प्रेमिका से बात करना है। प्रेमिका से बात आंखों से ज्यादा होती है। होंठों से कम। संकेत भाषण नहीं हो सकते। इसी में अध्यात्म आ जाए तो अच्छा हो जाता है।
खुशी भी नहीं, बेखुदी भी नहीं हैं,
चले आइए अब कोई भी नहीं है।
हम तेरी याद में ए यार वहां तक पहुंचे
होश ये भी न रहा कि कहां तक पहुंचे
कौन ज्ञानी , न ध्यानी, न ब्राह्मण, न शेख
वो कोई और थे जो तेरे मंका तक पहुंचे।
अंदाज-ए नीरज
Amar Ujala Meerut me 18 me prakashit

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