Friday, October 2, 2009

बेनजीरभुट्टों की आत्म कथा में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की प्रशंसा


बेनजीर भुट्टो की आत्म कथा मेरी बीती पढने का अवसर इस सप्ताह मिला: बेनजीर ने मेरी आप बीती में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की खूब प्रशंसा की है_
वे कहती हैं कि हम इस्लामाबाद की सुर्खवादियों मे सार्क सम्मेलन के दौरान मिले। मैने राजीव गांधी को बताया कि उनकी मां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एंव उनके पिता १९७२ के शिमला समझौते को स्वीकार कर बहुत प्रसन्न थे! जिसे मैने एक किशोरी भर ने देखा भर था।
राजीव एंव मैं दोनों ही राजनैतिक घरानों की संतान थे। हम दोनों के ही अभिभावको की हत्या हुई थी। हम दोंनो इस उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद पैदा हुए थे। मेरे और आसिफ के लिए राजीव एंव सोनिया से बात करना आसान था। राजीव गांधी की हत्या ने मुझे एक गहरे दुख:एवं सदमें में भर दिया था।
सार्क के बाद मै और राजीव आपस में मिलते रहे थे। हमारी बातचीत निजी स्तर पर भी हो जाती थी।मैने उनसे कहा था कि हिंदुस्तान बडा देश है एवं इस बात की जरूरत है कि वह पाकिस्तान के साथ बात करते भी अपने बडे दिल का परिचय दे। मैने उन्हें याद दिलाया कि कैसे उनकी मां ने शिमला में पश्चिमी पाकिस्तान से अपनी फोजे हटा लीं,जिसे हम १९७१ में खो चुके थे।शिमला की वह भावना अभी भी जिंदा है,तनाव एवं उकसाए जाने के बाद हिंदुस्तान एवं पाकिस्तान में ७२ के समझौते के बाद कोई युद्ध नहीं हुआ।
जिया की हकूमत के दौरान , पाकिस्तान ने हिंदुस्तान के हाथों शियाचीन ग्लैशियर का इलाका गंवा दिया था। हालाकि जनरल जिया ने यह कहकर उस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की थी, कि उस इलाके में कुछ उपजता नहीं।______
बेनजीर कहती हैं कि राजीव गांधी ने इस बात पर सहमति जताई थी कि हमारे बीच एेसे कार्यक्रमों की जरूरत है, जो विशवास बढाए। इस दिशा में हमने एक कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए कि हम एक दूसरे के नाभकीय ठिकानों पर हमले नहीं करेंगे। हमने इस समझौते पर भी दस्तखत किए कि हम आपसी तौर पर सेनाएं कम करने एवं उनके जमावडों के ठिकानों मे बदलाव करेंगें। बाद में हमने इस मसौदे पर भी हस्ताक्षर किए हम दोनो कारगिल तक वापस लौट जांए भले ही ग्लशियर के बारे मे हमारे मत कुछ हों। विडंवना यह रही कि इस मसौदे पर दस्तखत करने के लिए सत्ता मे दोंनों मे से कोई नही रहा।
बेनजीर कहती हैं कि मै कभी कभी सोचती हूं कि दक्षिण एशिया एवं सारी दुनिया हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच नए रिश्तों का रूप देखती ,यदि राजीव गांधी जिंदा रह जाते और मुझे अपना कार्यकाल पूरा करने को मिल जाता। हमने एक दूसरे को समझ लिया था और हम एक दूसरे के साथ बेहतर ढंग से काम कर सकते थे।_ राजीव की और मेरी मुलाकात मलेशिया के कावी शहर में कामनवेल्थ मीटिंग के दौरान तय थी, लेकिन हिंदुस्तान मे समय पूर्व चुनाव एवं फिर राजीव गांधी की दर्दनाक हत्या के बाद बात बन नही पाई।इसके बाद तो हिंदुस्तान एवं पाकिस्तान के बीच रिश्ते बिगडतें ही चले गए।
बेनजीर ने अपनी पुस्तक में राजीवं गांधी एवं अपने बारे मे कई समानतांए बताई किंतु एक समानता उनकी मौत के बाद बनी कि दोंनो ही सभाआें के दौरान दर्दनाक मौत के शिकार हुए ।

5 comments:

दिगम्बर नासवा said...

काश ये हो जाता .......... पर राजनीति में कहने और करने के दांत अलग होते हैं ..........

Pawan Kumar said...

bahut accha vivran do deshon ke rajnayikon ke baare me

RAJ SINH said...

बेनजीर की किताब पढने का मुझे भी मौका मिला . आपका प्रयास, उद्धृत करने का, स्तुत्य है .
पर एक बात जो विश्वास बनाने की है उसमे बेनजीर ही नहीं अब तक किसी भी पाकिस्तानी नेता , चाहे वह फौजी रहा हो या चुना हुआ हो मैं भरोसा नहीं कर पाता . लिखने में भी राजनीती ही झलकती है . इस किताब में भी .
जो घृणा का माहौल भारत के प्रति बना या बनाये रखा गया है पाकिस्तान में , योजना बद्ध तरीके से , जब तक वह है , मित्रता सोची भी नहीं जा सकती है . वही घृणा पाकिस्तानी नेताओं को खाद पानी भी देती है .
वह घृणा बच्चों से शुरू की जाती है . स्कूली किताबों से शुरू कर दी जाती है ,इतिहास को विकृत कर के .
भारत से द्वश और घृणा घुट्टी में पिलाई जाती है.
और कोई भी नेता पाकिस्तान का उस पर कुछ नहीं कहता . विश्वास कहने से नहीं बन पाता .बनाना पड़ता है .

दीप पर्व की शुभकामनाओं सहित .

सर्वत एम० said...

बेनजीर को मैं पढ़ नहीं सका था, आपने यह अवसर दिलाया, अब अफ़सोस है कि इतनी सकारात्मक सोच रखने वाली महिला को मैंने पूर्वाग्रह के तहत क्यों छोडा? आप धन्यवाद के हकदार हैं. आप मेरे ब्लॉग पर आये, पढा, हस्ताक्षर दिए, शुक्रिया.
प्रकाश पर्व पर मंगल कामनाएं.

Pushpendra Singh "Pushp" said...

इस सुन्दर रचना के लिए
बहुत बहुत आभार ..............
एवं नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं .........