Sunday, June 20, 2021

पड़ोस के बिजनौर भी तो जाइए! शंभूनाथ शुक्ल

 पड़ोस के बिजनौर भी तो जाइए!

शंभूनाथ शुक्ल

यह एक कथा है जो किसी किताब में तो नहीं मिलती पर बिजनौर जिले का हर आदमी इस कथा को सुना देगा। किस्सा कुछ यूं है कि हस्तिनापुर में तो महाराज धृतराष्ट्र रहते थे जबकि उनके छोटे भाई नीतिनिपुण विदुर बिजनौर जिले में। विदुर हस्तिनापुर तब ही आते थे जब उनकी भाभियां महारानी गांधारी अथवा कुंती उन्हें बुलावा भेजतीं। वर्ना विदुर महाराज अपनी कुटिया छोड़कर कहीं नहीं जाते अलबत्ता महाराज धृतराष्ट्र या पांडवों के बड़े युधिष्ठिर विदुर से मिलने विदुर की कुटिया अवश्य जाते। महाराज धृतराष्ट्र जब बिजनौर जाते तो रास्ते में गंगा नदी पार करते। आधे रास्ते वे यही सोचते कि विदुर  दरअसल पांडवों के प्रति कुछ ज्यादा ही झुके हुए हैं इसीलिए वे युधिष्ठिर के हित की और दुर्योधन के खिलाफ बात ही करते हैं। वह हरदम मुझे ही दुर्योधन को दबाने को कहता है पर कभी भी पांडवों के खिलाफ कुछ नहीं बोलता। अब भला अपने बेटे को छोड़कर कोई भतीजों को राजपाट सौंपता है! पर जैसे ही महाराज धृतराष्ट्र गंगा का आधा हिस्सा पार कर लेते उन्हें भी लगता कि वे गलत कर रहे हैं। विदुर ठीक ही तो समझाता है। आखिर हस्तिनापुर का राजपाट तो छोटे भाई पांडु को ही मिला था वह तो अपना सिंहासन मुझे सौंप कर वानप्रस्थ पर चला गया था। इसलिए सिंहासन पर हक तो युधिष्ठिर का ही बनता है। विदुर मुझे ठीक ही समझाता है। महाराज विदुर से मिलते और विदुर की बातों से सहमति जताते हुए कहते कि मैं अब हस्तिनापुर जाकर युधिष्ठिर को बुलाकर उसका हक उसको दे दूंगा। पर लौटते ही वे जैसे ही फिर गंगा के इस पार आते तो उनका दिमाग कुलबुलाने लगता कि नहीं यह गलत होगा। अगर वे नेत्रहीन नहीं होते तो हस्तिनापुर का सिंहासन उन्हें ही मिलता। अब नेत्रहीन पैदा होने में उनकी क्या गलती? यह अन्याय तो विधाता ने उनके साथ किया है। वाकई दुर्योधन ठीक ही कहता है कि सिंहासन पर हक हम कौरवों का पहले पांडवों का नहीं। दुर्योधन ठीक कहता है कि पांडु पुत्रों को सुई की नोक बराबर जमीन नहीं देनी चाहिए। और वे बुझे मन से हस्तिनापुर लौट आते।

यह एक कथा भर है। पर मेरी मानिए तो कभी बिजनौर अवश्य जाएं। छोटा सा गंगा पार का कस्बा। मेरठ और मुजफ्फर नगर की तुलना में एकदम शांत। हालांकि यहां भी उन्हीं जातियों का वर्चस्व है जिनका मेरठ और मुजफ्फर नगर में है लेकिन इसके उलट न तो यहां चोरी न डकैती न लूट न बलात्कार न दंगा न फसाद। यद्यपि अब सपा सरकार में हालात उतने शांत इस जिले में भी नहीं रह गए हैं किन्तु ये सारे बदमाश यहां बाहर से आ जाते हैं। वर्ना जब मेरठ और मुजफ्फर नगर जल रहा था तो भी यहां शांति थी और मुजफ्फर नगर के जो लोग राहत शिविरों में नहीं जा पाए वे यहां आकर बस गए थे। मेरठ से मवानाबहसूमा होते हुए आप घनी अमराइयों के बीच से गुजरते ही रामराज पहुंचते हैं तो पाते हैं कि आधा कस्बा तो मेरठ पुलिस के अंतर्गत है और आधा मुजफ्फर नगर पुलिस के तहत। मुजफ्फर नगर जिला पुलिस का थाना भी रामराज में है तो गुरद्वारे के समीप बनी हुुई पुलिस चौकी मेरठ जिले के बहसूमा थाने की है। रामराज में हिंदू व्यापारी हैंमुस्लिम कारीगर हैं और सिख किसान। गुरद्वारामंदिर और मस्जिद भी। रामराज से मीरापुर के बीच कुल छह किमी की दूरी है। पठानों और रांगड़ मुसलमानों की खूब तादाद है मीरापुर में। यहां आपको तोमरचौहान और त्यागी मुसलमान मिल जाएंगे और राजस्थान से बनिज हेतु आए माहेश्वरी सेठ। यहां के रांगड़ मुसलमानों के  परिवारों में आधी रस्में वही हैं जो उनके हिंदू जात भाइयों के यहां हैं। मीरापुर कस्बे को पार कर एक किमी पर एक तिराहा है जिस से आप दाएं मुड़ जाएं। यहां रुककर आप कुछ खा-पी सकते हैं। भोजन भी और अल्पाहार भी। सबसे खास बात यह है कि यहां आप निपट भी सकते हैं। यहां पर जो दो ढाबे बने हैं उनमें से एक तो एसी है और दूसरा एसी न होते हुए भी साफ सुथरा है। कुछ दूर जाने पर आप सड़क की ही दिशा में बाएं मुड़ जाएंगे और गंगा बैराज पर पहुंच जाएंगे जहां से बिजनौर जिला शुरू होता है। गंगा बैराज तक की सड़क सकरी है और एक्सीडेंट प्रोन हैै। साथ ही यहां रोडवेज की बसों से अपनी गाड़ी बचानी भी होगी। क्योंकि अन्य प्रांतों की तरह भी यूपी रोडवेज की बसें सड़क को अपनी दासी समझती हैं। बिजनौर में गंगा बैराज पार करते ही एक टोल टैक्स पड़ेगा जो लीगल और अनलीगल के बीच का है। आप गाड़ी निकाल लें और उसे कस कर घूर दें तो वह खुद भाग जाएगा अन्यथा एक डांट पिला दें। यहां रुककर आप मीठे तरबूजमतीरे खरीद सकते हैं। अब आप बिजनौर में हैं। कस्बा यहां से कुल 11 किमी है। पर कस्बा पहुंचने तक आपको जिन घने वृक्षों की छाया के बीच निकलना पड़ता है उससे ऐसा लगता है कि यूपी में कहीं अगर स्वर्ग है तो इसी क्षेत्र में। अब आप मुस्कराइए कि आप बिजनौर में हैं। कस्बा कुल मिलाकर दो या तीन किलोमीटर लंबा और आधा किमी चौड़ा होगाा। कस्बे में मुसलमानों और हिंदुओं की व्यापारी जाति की संख्या करीब-करीब बराबर है। पर तनाव दूर-दूर तक नहीं। आधी रात को भी निकल जाएं कहीं कोई घटना-दुर्घटना नहीं। आप बिजनौर से धामपुरशेरकोट और अफजलगढ़ होते हुए कालागढ़ जा सकते हैं। मालूम हो कि कालागढ़ अपने बांधों के लिए तो जाना ही जाता है और यहां एक सैडिलर डैम भी है जो एशिया का सबसे पुराना डैम है। कालागढ़ मशहूर टाइगर रिजर्ब जिम कार्बेट का एक गेट भी है। आप अफजलगढ़ से यूपी के टाइगर रिजर्ब अमानगढ़ जा सकते हैं और अफजलगढ़ की द्वारिकेश चीनी मिल के गेस्ट हाउस में रुक सकते हैं। द्वारिकेश चीनी मिल राजस्थान के उद्यमियों की है इसलिए यहां की मेहमाननवाजी में आपको राजस्थानी लुक भी मिलेगा। बिजनौर खुद में हिंदी पत्रकारिता का गढ़ भी है। आजादी के पहले से यहां दैनिक प्रकाशित होने शुरू हो गए थे। आज यहां पर मेरठ और दिल्ली से छपने वाले सारे अखबार पहुंचते हैं। अमर उजाला यहां नंबर वन पर है। अमर उजाला के यहां के ब्यूरो चीफ श्री अशोक मधुप अच्छे कवि भी हैं। बिजनौर से आप नजीबाबाद होते हुए कोटद्वारदुगड्डा लैंसडाउन भी जा सकते हैं। नजीबुल्लाह नामके एक पठान सरदार द्वारा बसाया गया बिजनौर जिले का सबसे बड़ा कस्बा है। नजीबुल्लाह के किले के अवशेष अभी भी हैं। यूं नजीबाबाद आकाशवाणी का एक केंद्र भी है और बहुत पुराना केंद्र है। अमृतसर-हावड़ा रेल लाइन का यह एक मशहूर जंक्शन है। दिल्ली वाले यूपी में एक तो घूमने जाते नहीं और जाएंगे तो बस मथुराआगरा या बनारस जाएंगे पर कभी घर से निकलिए और बिजनौर आइए। तब पता चलेगा कि आप घूम तो चारों तरफ आए पर अपना ही घर नहीं देखा। बस दिल्ली से कुल ढाई घंटे की दूरी पर है बिजनौर। यहां से आप ला सकते हैं आम की एक से एक बेहतरीन किस्में और आर्गेनिक गुड़ और पीली सरसों का तेल। यकीन मानिए कि जिन चीजों के लिए आप बड़े-बड़े डिपार्टमेंटल स्टोरों के चक्कर काटते हैं और बाबा जी का ठुल्लू लेकर वापस आ जाते हैं वे सब चीजें अपने मूल रूप में बिजनौर में मौजूद हैं।

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी पर शंभूनाथ शुक्ल के संस्मरणा

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