Wednesday, April 20, 2022

ये अनुभव अच्छा नहीं रहा

ये अनुभव अच्छा नहीं रहा
हाल में कर्नाटक एक कांफ्रेस में जाना पड़ा। कार्यक्रम था बंगलौर से120 किलो मीटर दूर नांगामंडला ताल्लुक के आदिचुनचुनगिरी मेडिकल कॉलेज में। व्यवस्था के लिए मेडिकल कॉलेज के छात्र- छात्रा लगे थे। पर कोई हिंदी में बात करने को तैयार नहीं था।हालाकि उनकी बातों से लगता था कि वे हिंदी जानते हैं। कार्यक्रम का उद्घाटन श्री आदि चुनचुनगिरी महासमस्थान मथ के स्वामी जी ने किया। स्वामी जी के आने के रास्ते में दोनों ओर प्राचीन काल के सैनिकों के वस्त्रों में बच्चों की फौज थी। ये दोनों और खड़े हवा में तलवार भांज रहे थे। लगता था जैैस युद्ध चल रहा हो। स्वामी के आगे साड़ी पहने नंगे पांव कुछ कन्यांए चल रही थीं। इनके हाथों में धारण थाल में कलश उसमें जल ,कलश के ऊपर नारियल और आम के पत्ते रखे थे। दो प्राचीन काल के राजा जैसे वस्त्र धारे व्यक्ति आपस में युद्ध करते चल रहे थे। एक ने लाल पीले रंग के शाही वस्त्र पहन रखे थे तो दूसरे ने हरें रंग के । स्वामी जी के हाल में प्रवेश कर जाने पर कन्यांए और दोनों योद्धा बाहर ही रह गए। ये कौन थे? काफी पूछने पर भी कोई कुछ नहीं बता सका। मठ के इतिहास और इस परंपरा के बारे में अंग्रेजी में भी पूछने पर कोई कुछ नहीं पता सका। कनोटका यूनियन के पदाधिकारियों को फुर्सत नहीं था। एक दो कोई मिला, पर वह भी कुछ नहीं मदद कर पाया। दिल्ली के एक साथी ने यह जरूर बताया कि ये आदि भैरव का स्थल है।
हमारा घूमने का क्या कार्यक्रम है, इसे भी कोई बताने वाला नहीं था। हमारी पांच मार्च की रात नौ बजे की फ्लाइट थी। हम मैसूर घूमना चाहते थे। मैसूर से बंगलौंर एयर पोर्ट पहुंचने में कितना समय लगेगा। क्या वाहन होगा ,कोई बताने को तैयार नहीं था। विवश हो हमनें बंगलौर लौटने का निर्णय लिया। एक बस चालक ने हमारी मदद की। उसने कहा कि केआरटीसी की बस कॉलेज गेट पर मिल जाएगी। उसे पकड़ लेना ,लगभग तीन घंटे में बंगलौर पंहुचा देगी।
इससे कुछ साल पहले कर्नाटक की ही तुमकुर की एक कांफ्रेस में जाने का अवसर मिला था। तीन दिन वहां रहे । तीनों दिन कन्नड़ में ही भाषण हुए।कहां गया कि सप्ताह के एक दिन हम कन्नड़ में ही बोलते हैं, अन्य भाषा में नहीं, किंतु अधिकतर वक्ता तीनों दिन कन्नड़ में ही बोले। भाई जिन दिनों आप हिंदी -अंग्रेजी में नही बोलते , जिन दिनों इन दोंनो भाषाओं में बात नहीं करते, उन दिनों कांफ्रेस ही क्यों रखते हो?इस बार तो एक वक्ता को बोलते देख के यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के विक्रम राव ने टोक दिया । कहा कि यहां बड़ी सख्यां में हिंदी भाषी भी हैं,तुमकुर सम्मेलन में वे नहीं थे। अन्य यूनियन नेताओं को कोई चिंता नहीं थी।
खैर बाकी अगली कड़ी में
यहां आप स्वामी जी के आगे चलने वाले दोनों योद्धाओं और कलश लेकर चलने वाली कन्याओं के च‌ित्रों,युद्धरत बच्चों की सेना को को देख्रिए।