Thursday, November 30, 2023

सभी श्रमिकों को सुरक्षित निकलने में कामयाब हुए फौलादी इरादे

अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार दुनियां भर की दुआंए काम आ गईं। फौलादी इंसानी इरादों के आगे आखिर चट्टान हार गई।उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को आखिरकार 17 वें दिन बाहर निकाल लिया गया। उन्हें मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया। खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह दोनों लगातार सुरंग के पास डटे रहे। पीएमओ के प्रधान सचिव पीके मिश्र भी मौके पर मौजूद रहे। सबसे पहले पांच श्रमिकों को बाहर निकाला गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे थे।उन्होंने एक श्रमिक से खुद बात की।उत्तराखंड सरकार ने प्रत्येक श्रमिक को एक−एक लाख रूपया देने की घोषणा की।ये आपरेशन प्रदेश और केंद्र सरकार के संयुक्त प्रयास से कामयाब हुआ।सरकार की 17 एजेंसी के अलावा विदेशी विशेषज्ञ भी इसमें लगे रहे। यह बहुत ही अच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस तरह के प्रत्येक मामले में खुद रूचि लेने लगते हैं।इस मामले में भी ऐसा ही हुआ।आपरेशन के उपकरण लाने के लिए सेना के हरक्युलिस विमान का प्रयोग हुआ। अमेरिका की ड्रिल करने वाली आगर मशीन तक लाकर लगाई गई। इस मामले में ऐसा नही हुआ कि अकेले एक ही एजेंसी बचाव में जुटी रही हो।पूरे देश का तंत्र इसमें लगा था। इस अभियन में सभी सुरक्षा एजेंसी की एकजुटता भी सामने आई। अन्यथा अन्य जगह सबकी अपनी −अपनी ढपली सबका अपना−अपना राग होता है। यह पहला अभियान नही था।वर्ष 2010 में चिली में कॉपर-सोने की खदान में काम करने वाले 33 श्रमिकों को 69 दिनों के लंबे अंतराल के बाद खदान से सकुशल बाहर निकाला गया था। ये खदान में काम करते थे। खदान में रास्ता अचानक टूटा और सभी लोग 700 मीटर नीचे फंस गए।13 नवंबर 1989 को पश्चिम बंगाल के रानीगंज की महाबीर खदान में 71 मजदूर अपना काम करते खदान में बाढ़ आने से फंस गए थे। ।इनमें से छह की डूबने से मौत हो गई। सुंरग के बराबर दूसरी सुंरग खोदकर 65 मजदूरों को बचाया जा सका था। 23 जून 2018 को थाईलैंड में 12 बच्चे यहां एक लंबी गुफा में फंस गए थे। थाईलैंड सरकार ने विदेशों से मदद मांगी।100 तैराक दुनिया भर से बुलाए गए । 18 दिन बाद ये बच्चे सकुशल निकल आए। उत्तरकाशी की सिल्क्यारा सुरंग घटना के बाद से मीडिया में आ रहा है कि हिमालय में सुंरग नही बननी चाहिए।इससे पहाड़ दरक रहे हैं। बड़े हादसे हो सकते हैं।जबकि विकास कार्य करते इस तरह का हादसा होता है।ऐसी बात होती हैं। ये भारत में नही पूरी दुनिया में होता है।हादसे होते हैं। होते रहेंगे किंतु इससे विकास का पहिंया तो नही रोका जा सकता। सड़के बनाना तो नही रूक सकता। ये सड़क चारधाम यात्रा को सुगम बनाने के साथ देश को सीमा से जोड़ने के लिए बनाई जा रही है। बार्डर तक सेना और उसके भारी उपकरणों की सरल आवाजाही के लिए बनाई जा रही है। ये तो देश की बडी जरूरत है। पहाड़ों पर जब भी विकास होता है तभी कुछ अपने को विशेषज्ञ मानने वाले और पर्यावरणविद शोर मचाने लगतें हैं।इनका यही कहना रहता है कि इससे पहाड़ दरकेंगे।वहां का पर्यावरण संतुलन बिगड़ेगा। टिहरी डैम बनते भी ऐसा ही हुआ था।उसके विरोध में लंबा आंदोलन चला था।इस परियोजना के विरोध में तो पर्यावरणाविद सुंदरलाल बहुगुणा ने तो 1995 में 45 दिन तक उपवास किया। इन सबके बावजूद टिहरी डैम बन गया। केदारनाथ आपदा के समय पहाड़ों से आए भारी जल को इसी डैम में लिया गया।इसी के कारण प्लेन में होने वाली भारी आपदा टल गई।अगर पानी टिहरी डैम में न लिया जाता तो नीचे प्लेन में भारी तबाही का सामना करना पड़ता। पहाड़ों में विकास कार्य के दौरान ही हादसे नही होते। हादसे सभी जगह होतें हैं। कहीं बनते पुल गिर जाते हैं तो कही कार्य में लगी विशाल क्रेन श्रमिकों पर आ गिरती है। अभी 23 अगस्त को मिजोरम के सैरांग इलाके के पास एक निर्माणाधीन रेलवे पुल गिरने से 17 मजदूरों की मौत हो गई। 18 मई 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में वाराणसी कैंट से लहरतारा के बीच बन रहे पुल के गिरन से 18 श्रमिक मरे । 31 मार्च 2016 को कोलकत्ता का विवेकानन्द फ्लाईओवर गिरने से क्रॉसिंग से गुजर रहे 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जबकि 90 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। हादसे होते हैं। होते रहेंगे। इनकी वजह से विकास कार्य नही रोके जा सकते।हादसे होने का कारण श्रमिकों और यात्रियों की सुरक्षा में बरती गई लापरवाही होता है।इसमें भी ऐसा ही हुआ।सुरक्षा मानकों के परीक्षण के लिए बनी एजेंसी सही से जांच और कार्य नही करतीं।इन्ही के कारण हादसे जन्म लेते हैं।इस हादसे में भी ऐसा ही हुआ। बताया जाता है कि इस सुरंग के बराबर में एक और सुरंग बननी थी।दोनों सुरंगों को बीच− बीच में आपस में जोड़ा जाना था।सुरंग निर्माता कंपनी और निर्माण के मानकों की जांच में लगी एजेंसियों के अधिकारियों की जिम्मेदारी तै होनी चाहिए।उनके विरूद्ध कठोर तक कार्रवार्ई हो। एक बात और इस बचाव में रैट-होल खनिकों का भी बड़ा यागदान रहा। जबकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण ( एनडीएमए)ने रैट-होल खनन पर रोक लगाई हुई है। अच्छा यह है कि रोक के बावजूद देश की पुरानी परंपरागत ये तकनीक अभी जिंदा है। ये महाभारतकालीन तकनीक है।इसी तकनीक से विदुर ने लाक्षागृह में सुरंग बनवाकर पांडवों को सुरक्षित निकलवा लिया था।ये ही तकनीक हादसे के शिकार श्रमिकों को बाहर निकालने में कामयाब हुई। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के रोक के बावजूद इस तकनीक को जिंदा रखने के प्रयास होने चाहिए। जहां तक सुरंग के निर्माण की बात है।श्रमिकों के बचाने के अभियान में यह साफ हो गया कि यहां सामग्री अच्छी क्वालिटी की थी।इसी कारण अमेरिका की आगर मशीन भी गिरे मलबें में फंसे सुरंग के सरियों के आगे विवश हो गई। इंसान कठिन से कठिन चुनौती को स्वीकार करने का शुरू से आदि है।आदिम अवस्था से आज तक उसकी यही जद्दोजहद उसे जिंदा रखे हुए है। इसी की बदौलत वह चांद पर पंहुचा तो कभी उसने माउंट एवरेस्ट का फतह किया। प्रकृति और इंसान का ये संघर्ष अनवरत चलने वाली प्रकिया है। कभी ये चुनौती हैजे के रूप में सामने आती है तो कभी कोरोना के। इनसे हारकर तो नही बैठा जा सकता। जलप्रलय, भूकंप से डरकर निकलना ही जिजिविषा है।यही इस मामले में सामने आई। इस हादसे में फंसे श्रमिकों के बचाव से भारत की शाख दुनिया में बढ़ी है। पूरी दुनिया के चैनल और मीडिया इस बचाव कार्य को कवर कर रहा था।इन सबने इस बचाव में भारत की बचाव एजेंसियों की एकजुटता देखी और प्रशंसा की। अशोक मधुप (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Friday, November 24, 2023

राम रहीम को ही बार बार क्यों मिलती है पैरोल

विवादास्पद धर्मगुरू और डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम को एक साल में पांचवी बार पैरोल मिल गई। डेढ़ साल की जेल की अवधि में उन्हें 182 दिन पैरोल या फरलो मिल चुकी है। उन्हें अब तक आठ बार पैरोल/फरलो मिल चुकी है। डेढ़ साल की अवधि में 182 दिन यानी लगभग आधा साल और एक साल में पांचवी बार राम रहीम को पैरोल मिलना बताता है कि कानून प्रभावशाली लोगों के लिए नही है। कानून आम आदमी के लिए है।एक बार इसकी जद में आया आम आदमी तिल −तिल कर खत्म हो जाता है किंतु कानून से उसे मुक्ति नही मिलती। अपराध मुक्त समाज का दावा करने वाली भाजपा शासित हरियाणा में राम रहीम को मिल रही ये सुविधा बताती है कि उसका दावा कितना खोखला है। राम रहीम को अपनी दो साध्वियों के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में 28 अगस्त 2017 को 20 साल की सजा सुनाई थी। वहीं, इसके बाद दोबारा से उसका अपराध सिद्ध हुआ था, जिसके चलते उसे उम्रकैद हुई थी। पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के जुर्म में अदालत ने गुरमीत राम रहीम को 17 जनवरी, 2019 को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। राम रहीम तभी से हरियाणा की सुनारिया जेल में अपनी सजा काट रहा है।इसके बाद जेल में एक साल से अधिक का समय बिताने के बाद उसे पैरोल मिलना शुरू हो गई थी। अब तक उसे आठवीं बार पैरोल या फरलो मिली है। जेल नियमावली के अनुसार, एक दोषी एक वर्ष में दस सप्ताह की पैरोल का हकदार है। दोषी के जेल से बाहर बिताई गई अवधि को सजा में जोड़ा जाता है और कुल सजा से नहीं घटाया जाता है। एक दोषी (जिसे 10 साल से अधिक की जेल की सजा सुनाई जाती है) एक वर्ष में चार सप्ताह के फरलो का हकदार होता है और इस अवधि को जेल का समय माना जाता है। इसके साथ, एक दोषी वर्ष में अधिकतम 98 दिनों तक जेल से बाहर रह सकता है। हालांकि, ऐसी स्वतंत्रता सभी जेल कैदियों को आसानी से नहीं दी जाती है और यह अधिकारियों के विवेक और प्रशासन से मंजूरी सहित कई कारकों पर निर्भर करती है।किसी भी कैदी को पैरोल देना राज्य का सरकार अधीन आता है। राम रहीम को कभी मां के बीमार होने पर पेरोल मिलती है, तो कभी जन्मदिन मनाने के लिए। कभी खेती की देखभाल के लिए। एक साल तक जेल में सजा काटने के बाद राम रहीम को साल 2020 में पहली बार पैरोल दी गई थी। 24 अक्टूबर 2020 को राम रहीम को एक दिन की पैरोल दी गई थी। उसकी यह पहली पैरोल बहुत सीक्रेट थी। ये पैरोल इतनी गुप्त थी कि पूरे हरियाणा में केवल चार लोगों को इसके बारे में जानकारी थी। पहली पैरोल में राम रहीम को उसकी बीमार मां से मिलने के लिए जेल से बाहर आने की अनुमति दी गई थी।2022 में राम रहीम को तीसरी बार 21 दिनों की पैरोल दी गई । इस बार उसने पैरोल पाने के लिए यह दलील दी थी कि उसे अपनी गोद ली हुई बेटियों की शादी करनी है। तो 21 जनवरी 2023 को छटी बार पैरोल डेरा प्रमुख शाह सतनाम की जयंती में शामिल होने के लिए उसे पैरोल मिली थी। एक बार तो उन्हें अपनी खेती की देखभाल के लिए भी पैरोल दी गई । डेरा सच्चा सौदा के प्रवक्ता जितेंद्र खुराना कहतें हैं कि कानून के तहत ही कैदी को जेल से बाहर आने की अनुमति मिलती है। उनका कहना है कि जो भी जेल के अंदर होता है, उन्हें एक साल के अंदर 70 दिन की पैरोल दी जाती है। इसी के साथ कैदी को 21 से 28 दिन की फरलो मिलना उनका अधिकार है।प्रवक्ता ने कहा कि जेल मैनुअल के मुताबिक डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पैरोल दी गई है। यह पूरी तरह से कानून के दायरे में है। उन्होंने कहा कि साढ़े चार महीने पहले राम रहीम को 40 दिन की पैरोल दी गई थी उसमें से जो शेष बची थी। वहीं पैरोल राम रहीम को अब दी गई। दिवंगत पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने राम रहीम को पैराल देना दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। इसके साथ ही उन्होंने इसे न्यायिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र का खिलवाड़ करना कहा है। अंशुल ने कहा कि राम रहीम को बार बार फ़रलो देना सरकारी तंत्र का न्याययिक व्यवस्था से खिलवाड़ है। उनका कहना है कि सरकारी तंत्र सजा के बाद भी क़ानून में बदलाव करके एक बलात्कारी व कातिल को वीआईपी ट्रीटमेंट दे रही है। उसे बार −बार फरलो देकर बाहर की हवा खिलाने का काम शर्मनाक है।अंशुल ने कहा कि हर बार यही कहा जाता है कि फ़रलो या पैरोल क़ानून के तहत दी जा रही है। देश में ऐसे बहुत से मामले हैं, जहां लोग सालों से सलाख़ों के पीछे बंद हैं। उन्हें ये सुविधा नहीं दी जाती है। वहीं अंशुल ने कहना है कि जिस तरह से पहले भी गुरमीत राम रहीम अपने धन बल व अपने प्रभाव का उपयोग कर व्यवस्था को अपने अनुसार चलाया था, वह जेल जाने के बाद भी नहीं बदला है।राम रहीम की पैरोल की कांग्रेस विधायक शमशेर गोगी ने आलोचना की। कहा कि आरएसएस के लोग बिना फायदे के कुछ नहीं करते। इतनी हमदर्दी है तो छोड़ क्यों नहीं देते। दिवंगत पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति का कथन ज्यादा तर्कपूर्ण है। प्रश्न यह भी है कि ये रहमोकरम राम रहीम पर ही क्योंॽ और भी धर्मगुरू जेलों में बदं हैं।उन्हें ये सुविधा क्यों नही। देश की जेलों में तो करोड़ो कैदी होंगे।यदि जेल मैनूअल है, तो ये सुविधा अन्य कैदियों को क्यों नही मिलती।उन्हें भी मिलनी चाहिए। क्या ये जनहित का विषय नहीं।छोटे –छोटे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने वाले सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले में स्वतःसंज्ञान नही लेना चाहिए। उसे स्वतःसंज्ञान लेकर कैदियों को मिलने वाली पैरोल/फरलो सभी कैदी को दिलाने की व्यवस्था करनी चाहिए।धर्मगुरू तो आशाराम बापू भी हैं।उन्हें पैराल क्यों नही मिल रही।अपराध तो दोनों के एक जैसे ही हैं । दोनों योन शोषणकारी, बलात्कारी और हत्या के अपराधी हैं । पैरोल पर आना एक संवैधानिक अधिकार होते हुए भी अपनी और प्रशासन की इच्छा पर भी निर्भर करता है । हरियाणा सरकार की इस मेहरबानी ने पीछे राजनैतिक कारण ज्यादा बताया जा रहा है। आरोप लगाते रहे हैं कि राम रहीम के लाखों फोलाअर हैं। राजनैतिक हित साधने के लिए चुनाव से पूर्व राम रहीम को पैरोल दी जाती है। इस समय राजस्थान में चुनाव चल रहे हैं।राम रहीम के राजस्थान में लाखों फालोबर बताए जाते हैं। राम रहीम पहले ही राजनैतिक दलों का समर्थन करते रहे हैं।इसीलिए शायद राजस्थान के चुनाव के मौके पर उन्हें जेल से बाहर लाया गया है। एक बात और बताया जा रहा है कि रामरहीम को पैरोल की अवधि में सिख आतंकवादियों का खतरा बताकर शासन की ओर से उन्हें जैड कैटेगरी की सुरक्षा दी जाती है।वह सुरक्षा जो देश में अति वीवीआईपी को मिलती है।जेड कैटेगरी की सुरक्षा का एक दिन का खर्च ही लाखों रूपया बताया जाता है।एक बलात्कारी को जेड केटेगरी की सुरक्षा देना बिल्कुल उचित नही। यदि इन्हें खतरा है तो जेल से बाहर ही क्यों लाया जाता है।प्रदेश सरकार प्रदेश के राजस्व का बड़ा हिस्सा इनकी सुरक्षा पर क्यों खर्च कर रही है। राम रहीम पर खर्च होने वाला सरकारी राजस्व तो राज्य के विकास पर व्यय होना चाहिए। यदि राम रहीम को रिहा करना बहुत ही जरूरी है तो होना यह चाहिए कि उनके पैरोल के समय में उनकी सुरक्षा पर हुआ व्यय खुद राम रहीम से वसूला जाए। राम रहीम और उनका आश्रम तो इस व्यय का वहन करने में सक्षम हैं। राम रहीम के पैरोल के समय जेड कैटेगरी की सुरक्षा के व्यय पर तो हरियाणा उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।एक बात और यदि प्रभावशाली हत्यारे और बलात्कारी को इस तरह की सुविधा और पैरोल मिलेंगी तो इस प्रकार के अपराध बढ़ेंगे ।कम नही होंगे। अशोक मधुप

Monday, November 20, 2023

इस हार के लिए वीवीआईपी की मौजूदगी तो जिम्मेदार नहीं

अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार वनडे विश्व कप 2023 के फाइनल में भारत को हार का सामना करना पड़ा। लगातार 10 मैच जीतकर फाइनल में पहुंचने वाली टीम इंडिया का विजय रथ ऑस्ट्रेलिया ने तोड़ा और फाइनल अपने नाम किया।वर्ल्ड कप के फ़ाइनल मुक़ाबले में भारतीय टीम की हार के बाद क्रिकेट प्रशंसक काफ़ी निराश हैं।वे मानते हैं कि टीम का अति आत्मविश्वास हार का कारण बना। इस फाइनल मैच को देखने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,गृह मंत्री अमित शाह समेत बडी संख्या में फिल्मी हस्तियों जैसे अति वीवीआईपी स्टेडियम में मौजूद थे। ये भी हो सकता है कि इन वीवीआईपी की मौजूदगी के कारण भारतीय टीम पर अच्छा प्रदर्शन दिखाने के प्रेशर रहा हो।इसीके कारण भारतीय टीम चूक करने लगी।वह अच्छा प्रदर्शन न कर सकी हो। भारत की इस हार के बाद भारतवासियों समेत भारत के सभी खिलाड़ी निराश थे। कप्तान रोहित और मोहम्मद सिराज तो अपने आंसू भी नहीं रोक सके। मैच के बाद जब रोहित से टीम की हार पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा "नतीजा हमारे अनुकूल नहीं रहा। हम आज उतना अच्छा नहीं खेले। हमने सब कुछ करने की कोशिश की, लेकिन यह हमारी किस्मत में नहीं था। हम 20-30 रन और बनाते तो अच्छा होता। केएल और कोहली अच्छी साझेदारी कर रहे थे और हम 270-280 के स्कोर की ओर देख रहे थे, लेकिन हम लगातार विकेट खोते रहे। जब आपके पास बोर्ड पर 240 रन होते हैं, तो आप विकेट लेना चाहते हैं, लेकिन हमें खेल से बाहर करने का श्रेय हेड और लाबुशेन को जाता है, लेकिन मुझे लगता है कि रात में बल्लेबाजी के लिए विकेट थोड़ा बेहतर हो गया था। मैं इसे कोई बहाना नहीं बनाना चाहता। हमने पर्याप्त रन नहीं बनाए। शानदार साझेदारी करने के लिए उन दोनों ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को श्रेय जाता है। प्रशंसक कहते हैं कि भारतीय टीम अति आत्मविश्वास के कारण हारी है। बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ''खिलाड़ियों की ऊर्जा कम लग रही थी। गेंदबाज़ी और फील्डिंग में कमी थी। जिस दिन ज़रूरत थी उस दिन टीम चूक गई। उनका मानना था भारत ने आज अपना केवल 40 प्रतिशत प्रदर्शन ही ठीक दिया। रोहित शर्मा का विकेट गिरना मैच का टर्निंग प्वाइंट था। इस सवाल के जवाब में कि भारतीय टीम अच्छे फॉर्म में थी, फिर भी क्या हुआ, प्रशंसक कहते हैं, ''टीम में आज अनुशासन की कमी थी।"वहीं एक प्रशंसक कहते हैं, ''आज ऑस्ट्रेलिया का दिन था. भारतीय टीम की इतनी आलोचना करना ठीक नहीं है।'' भारत की हार के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर टीम का हौसला बढ़ाया ।उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि वर्ल्ड कप के दौरान टीम इंडिया का टैलेंट और दृढ़ संकल्प उल्लेखनीय था।पीएम मोदी ने लिखा, "आपने बहुत अच्छे जज्बे के साथ खेला है और देश को गौरवान्वित किया है। हम आज आपके साथ खड़े हैं और आगे भी खड़े रहेंगे।"ट्रैविस हेड और मानर्स लाबुशेन की दमदार पारियों की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने भारत को छह विकेट से हराते हुए वनडे वर्ल्ड कप छठी बार जीत लिया है।ऑस्ट्रेलियाई पारी की शुरुआत अच्छी नहीं रही और इसके तीन बल्लेबाज़ केवल 47 रन पर आउट हो गए लेकिन इसके बाद ट्रेविस हेड और मार्नस लाबुशेन ने चौथे विकेट के लिए शतकीय साझेदारी निभाई और टीम को जीत की दहलीज तक ले गए।इससे पहले विराट कोहली और केएल राहुल की अर्धशतकीय पारियों की बदौलत भारत ने ऑस्ट्रेलिया के सामने वर्ल्ड कप 2023 जीतने के लिए 241 रनों का लक्ष्य रखा।टॉस जीत कर पैट कमिंस ने जब भारत को पहले बल्लेबाज़ी के लिए आमंत्रित किया तो रोहित शर्मा बोले कि वे भी पहले बैटिंग ही करना चाह रहे थे। रोहित के नेतृत्व में टीम ने ज़ोरदार शुरुआत भी की लेकिन बड़ा स्कोर नहीं खड़ा कर सकी। खेल में हार− जीत चलती रहती है। क्रिकेट तो पूरा भाग्य का खेल माना जाता है। इसके बावजूद ये तो विचार करना ही है कि पूरे विश्व कप के दौरान शुरूआत से अब तक बढ़िया प्रदर्शन करने वाली टीम इंडिया, फाइनल में कोई करिश्मा क्यों नही कर सकी। इस मैच में उसके साथ ऐसा क्या हुआ, जो वह बढ़िया प्रदर्शन करने से चूक गई । इस मैच में न उसकी बॉलिंग अच्छी रही, फिल्डिंग । न सिर्फ गेंदबाजी बल्कि बल्लेबाजी में भी भारतीय खिलाड़ी फ्लॉप हुए। भारतीय गेंदबाजों ने जहां इस मैच से पहले तक पूरे विश्व कप में विपक्षी टीम को अपनी सीम और स्विंग से परेशान किया था, इस मैच में शुरुआती कुछ ओवरों में जरूर सीम और स्विंग देखने को मिली, लेकिन बाद में नहीं। 15 ओवर के बाद ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज पूरी तरह जम गए। भारत की टीम मानकर चल रही थी कि इस बार भी वह ही टास जितेगी। टास जीत कर दूसरी टीम को खेलने का अवसर देगी। लगता है कि टास के विपरित होते ही उसे झटका लगा।वह मानसिक तनाव महसूस करने लगी। ये भी सोचना होगा कि लगातार 10 मैच जीतकर फाइनल में पहुंचने वाली टीम इंडिया के साथ फाइनल में क्या हुआ, जो वह अच्छा प्रदर्शन नही कर सकी।गेंदबाजी के बूते फइनल में पहुंची टीम इंडिया कोई करिश्मा क्यों नही दिखा पाई? इसके पीछे कहीं स्टेडियम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत वीवीआईपी की मौजूदगी तो इसका कारण नही । कहीं ऐसा तो नही कि वीवीआईपी की मौजूदगी के कारण टीम ने मनोवैज्ञानिक प्रेशर महसूस किया हो। ज्यादा सचेत रहकर खेलने की कोशिश की हो और इसी कोशिश में वह बिखरती चली गई हो। मैडिकल सांइस में एक टर्म है वीआईपी सिंड्रोम। इसमें कहा जाता है कि किसी वीआईवी के अस्पताल आते ही अस्पताल के चिकित्सक और स्टाफ मानसिक दबाव में आ जाते हैं।इसी कारण उनसे गलतियां होती चली जाती हैं। माना जाता है अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ॰ केनेडी और भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर हमले के समय भी चिकित्सक मानसिक दबाव में आ गए। माना जाता है कि इसी कारण उनसे गलतियां हुईं और वे दोनों वीवीआईपी को नही बचा पाए।यह भी कहा जाता है कि बड़ी घटना के समय वीवीआईपी को मौके पर नही जाना चाहिए।बचाव कार्य में लगी टीम वीआईपी के दौरे में लग जाती है। बचाव में व्यय होने वाली उसकी एनर्जी वीवीआईपी की सुरक्षा आदि पर व्यय हो जाती है। अपने काम से बचाव टीम की एकाग्रता कम होती है। इस मैच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गृहमंत्री अमित शाह के अलावा फिल्म हस्तियां शाहरूक खान, गौरी खान, आशा भोंसले,अनुष्का शर्मा और शालिया शेट्टी समेत कई दिग्गज हस्तिंया मौजूद थी।फाइनल में भारत की विजय देखने के लिए एक लाख से ज्यादा उत्सुक भारतीयों से स्टेडियम भरा था। ये भारतीय टीम के कलर की टीशर्ट पहने थे।इन सब लोगों की आशा और उम्मीदों पर खरा उतरने के प्रयास में टीम मानसिक प्रेशर में आ गई हो।मानसिक प्रेशर आदमी− आदमी पर अलग होता है।इस मैच में आस्ट्रेलिया के डिप्टी पीएम रिचर्ड मार्लेस भी मौजूद थे,किंतु हो सकता है कि आस्ट्रेलिया की टीम ने उनकी मौजूदगी पर मानसिक दबाव न महसूस किया हो। भारतीय टीम प्रेशर में आ गई हो।कुछ भी हो इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि स्टेडियम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत वीवीआईपी और टीम के कलर की टीशर्ट शर्ट पहले लाखों भारतीयों की मौजूदगी टीम पर मानसिक दबाव तो रहा ही होगा। इसलिए खेल की हार में कारणों के साथ मनोवैज्ञानिकों को मैच के दौरान भारतीय टीम के मानसिक स्तर ,उसपर मैच के दौरान के मानसिक दबाव की भी जांच होनी चाहिए। इन सबके बावजूद हमें अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्षमता की प्रशंसा करनी होती कि वह ऐसे अवसर पर बुलावे पर पंहुच जाते हैं। चंद्रयान दो के चंद्रमा पर उतरने के समय भी वह इस कार्य में लगे सांइस्टिस्ट के साथ थे। पीएम मोदी काफी पहले बेंगलुरु स्थित इसरो के मुख्यालय पहुंच गए थे। पीएम चंद्रयान-2 की ऐतिहासिक कामयाबी का गवाह बनना चाहते थे लेकिन आख़िरी पल में संपर्क टूट गया।ऐसा होते ही प्रधानमंत्री की मौजूदगी में इसरो मुख्यालय में तनाव फैल गया. बाद में पीएम मोदी ख़ुद ही सामने आए और वैज्ञानिकों से कहा कि विज्ञान में नाकामी जैसी कोई चीज़ नहीं होती , बल्कि हर क़दम एक नया प्रयोग होता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोते इसरो प्रमुख के सिवन का ढाढस भी बंधाया था।चंद्रयान तीन के भी चंद्रमा पर उतरने के समय वह विदेश में होकर भी इसरो के केंद्र से जुड़े थे। ऐसा ही उन्होंने इस फाइनल में भारतीय टीम के साथ किया। ट्विट कर टीम के खेल की प्रशंसा की और यह भी कहा कि वह टीम के साथ हैं। एक बात और हम भारत आशावादी हैं। ईश्वरवादी हैं।देश की 178 करोड़ आबादी इस मैच में भारत को विजयी देखना चाहती थी।कई दिन पहले से भारत की जनता इसके लिए प्रार्थनाएं कर रही थी।दुआ मांग रही थी। अरदास कर रही थी।इतना सब होने के बाद भी यदि भारत हारा तो यह मानना चाहिए कि प्रभु की ऐसी ही इच्छा थी। अशोक मधुप (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Saturday, November 18, 2023

कागजी ही रहा एससी का पटाखों पर रोक का आदेश

अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार सर्वोच्च न्यायालय का दीपावली पर आतिबाजी की रोक का आदेश कागजी ही रह गया। दीपावली पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने राजधानी दिल्ली एनसीआर में पूरी तरह आतिशबाज़ी पर प्रतिबंध लगाया था । सुप्रीम कोर्ट ने सात नवंबर को यह भी कहा था कि बेरियम युक्त पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश हर राज्य पर लागू होता है। आदेश हुआ। आदेश सरकारों को भी गया। आदेश को लागू करने वाली नियामक एसेंसियों को भी गया। किंतु इसका असर कहीं दिखाई नही दिया। दीपावली पर आतिशबाजी के प्रतिबंध के बावजूद राजधानी दिल्ली और एनसीआर में जमकर पटाखे फोड़े गए। अन्य प्रदेशों में तो लगा ही नही कि कहीं कोई आदेश भी है। दिल्ली एनसीआर की रिपोर्ट के अनुसार रविवार (12 नवंबर) को दीपावली के दिन सुबह से ही कई इलाकों में आतिशबाजी शुरू हो गई थी जो शाम होते ही बड़े पैमाने पर बढ़ती चली गई। राजधानी के कमोबेश हरेक इलाके समेत एनसीआर में हर तरफ रात करीब 10 बजे तक चंद सेकेंड के अंतराल पर 90 डेसीबल की आवाज की सीमा को पार कर पटाखों का शोर सुना जाता रहा है। दस बजे के बाद भी कई जगह से पटाखों के छूटने की आवाज आती रही।इस भारी आतिशबाजी के कारण और इसकी वजह से दिल्ली−एनसीआर में प्रदूषण भी सामान्य से कई गुना बढ़ गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी ) के आंकड़े के अनुसार दिल्ली में सोमवार (13 नवंबर) की सुबह ही एयर क्वालिटी इंडेक्स (आईक्यूआई) 296 रहा जो सामान्य से करीब छह गुना अधिक है। सीपीसीबी के मुताबिक –तड़के 2.5 पर और छह बजे लोनी गाजियाबाद में एक्यूआई- 414 था जबकि नोएडा सेक्टर 62 में - 488 , पंजाबी बाग - 500 और रोहिणी में एक्यूआई 456 रहा है। आईक्यूआई के डाटा के मुताबिक सोमवार को दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित शहर है. यहां सुबह पांच बजे दिल्ली में वायु गुणवत्ता का स्तर 514 पर है जो खतरनाक रूप में चिन्हित है। मौसम एजेंसी एक्यूआईसीएन.ओआरजी के अनुसार दिल्ली के आनंद विहार क्षेत्र में वायु प्रदूषण सबसे खराब दर्ज किया गया है। यहां सुबह पांच बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर पर 969 था ।यह सामान्य से 20 गुना अधिक है। हालाकि दीपावली के दिन रविवार को राजधानी दिल्ली में इस साल साफ हवा रही। उसने ने पिछले इठ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, राजधानी में रविवार सुबह साफ आसमान और खिली धूप के साथ हुई और शहर के वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 218 रहा, जो पिछले आठ साल में दीपावली के दिन सबसे कम था। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में पिछले साल दिवाली पर एक्यूआई 2022 में 312, 2021 में 382, 2020 में 414, 2019 में 337, 2018 में 281, 2017 में 319 और 2016 में 431 दर्ज किया गया था. अपने आदेश में वायु प्रदूषण से जूझ रहे दिल्ली एनसीआर के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर लिया था की राजधानी में आतिशबाजी नहीं होनी चाहिए। दिल्ली में तो आतिशबाजी रूकी ही नही। पूरे देश में भी ये ही साल रहा। जमकर बेरियम युक्त पटाखे फोड़े गए। देश के अन्य प्रदेशों में तो लगाही नही कि बेरियम से बने पटाखों पर रोक है। वहां तो हर साल जैसा ही माहौल रहा। आतिशबाजी का जमकर प्रयोग हुआ। रात एक बजे तक जमकर आतिशबाजी हुई। उसके बाद भी पटाखें छूटने की आवाज आती रहीं। दरअस्ल हर साल दीपावली से कुछ पहले ही पटाखों के प्रयोग का आदेश होता है। इनके निर्माण और बिक्री पर रोक का आदेश नही होता। 12 नवंबर को दीपावली थी। यह आदेश सात नवंबर को हुआ तब तक आतिशबाजी बड़ी संख्या में बाजार से छोड़ने वालों के पास पंहुच गई थी। आतिशबाजी की आवाजाही प्रायः बरसात के मौसम में होती है।ऐसा इसलिए होता है कि तुरंत बनी नमी वाली आतिशबाजी को ले जाने के दौरान ऐसा न हो।सुरक्षा के लिहाज से आतिशबाजी बरसात में ले जाई जाती है। जो बरसात में ही बाजार में या व्यापारियों के गोदाम में पंहुच जाती है। इस सीजनल सामान से व्यापारी को भी गोदाम खाली करने होते हैं।इसलिए उन्होंने इस आदेश को धत्ता बताया और अपना माल बेचा। इस तरह का आदेश नियामक एजेंसियों के लिए भी लाभकर होता है। वे जानती है कि व्यापारी मानेगा नहीं।इसलिए वह भी इसे अपने आर्थिक हित में मान उनके बिकी करने को नजर अंदाज कर देते हैं।एक बात और दीपावली पर आतिशबाजी हिंदुओं की आस्थाओं से जुड़ी है।पिछले कुछ दिन से इस प्रकार का अभियान चल रहा है। कुछ लोग प्रचार कर रहे हैं कि बहुंसख्यकों की धार्मिक आस्थाओं के मामले में न्यायालय इस तरह के आदेश करते हैं। अन्य लोगों की आस्थाओं के बारे में नहीं। ऐसे में अब इन आदेश के विपरित बहुसंख्यक आचरण करने लगे हैं। जानकर वह आतिशबाजी छोड़ते हैं।दिखाते हैं कि उसकी आस्था का मामला है,वह आदेश तोड़ेगा। न्यायालय के आदेश को लागू करने वाली एजेंसी और पुलिस आम लोगों का क्यों विरोध ले,इसलिए वह भी चुप्पी साध लेतें है। न्यायालय हर साल आदेश करता है। करता है दीपावली से कुछ पूर्व । जब वह जानता और मानता है कि बेरियम वाले पटाखें नुकसान दायक हैं।पूरे देश में उनके प्रयोग पर उसने रोक भी लगाई है।प्रश्न यह है कि बेरियम युक्त पटाखों के प्रयोग पर ही रोक क्यों लगती है। उनके निर्माण पर रोक क्यों नही लगती। सर्वोच्च न्यायालय एक बार आदेश पर इनके निर्माण पर रोक लगवा दे।ज्यादा आवाज करने वाले पटाखों के निर्माण पर भी प्रतिबंध लगा दे। आदेश के पालन से जुड़ी एजेंसी को सख्त आदेश करे कि इनका निर्माण ही न होने दिया जाए।समय− समय पर आतिशबाजी निर्माताओं के प्रतिष्ठानों का निरीक्षण कर देखा जाए कि आदेश का पालन हो रहा है, या नही। अपने इस आदेश की मोनिटरिंग को आदेश जिला न्यायालयों को सौंपे।ऐसा आदेश होगा तभी घातक श्रेणी के पटाखों पर रोक लग सकेगी। एक चीज और न्यायालय के आदेश के साथ ही प्रदेश सरकार और नियामक एजेंसियों को इनके प्रयोग पर रोकके ,इनके बारे में जनजागरण अभियान चलाना होगा। जनजागरण अभियान में समाज और जनता को बताना होगा कि ये पटाखें, अतिशबाजी प्रदूषण बहुत करती हैं। ये हमारे स्वास्थय के लिए हानिकारण है। नुकसानदेह है। अस्थमा के साथ कई तरह की बीमारी पैदा करते हैं। हमें अपने और अपने परिवार के स्वास्थय के लिए इतना प्रयोग नही करना चाहिए।ये ही बात पटाखा निर्माताओं को समझानी होगी, तभी इन पर रोक लग सकेंगी। बेरियम से बने पटाखें क्या हैं? उनके नुकसान क्या हैं? इसके लिए भी जनजागरण चलाने की जरूरत है। एक बात और न्यायलय को पटाखों पर बिक्री पर रोक के आदेश से पूर्व यह भी देखना चाहिए कि भारत चीन के बाद दूसरा सबसे ज्यादा पटाखा उत्पादक देश है। । तमिलनाडु के शिवकाशी में पहली पटाखा फैक्ट्री शुरू हुई। आज शिवकाशी भारत में पटाखों का सबसे बड़ा बाजार है। देश के 85 प्रतिशत पटाखे सिर्फ शिवकाशी में ही बनते हैं। भारत में पटाखों का शिवकाशी का ही व्यापार 2600 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।बाकी पटाखे भारत में आतिशबाजों द्वारा अपने स्तर पर परंपरात ढंग से लघू उद्योग के रूप में बनाए जाते हैं। उनके उत्पादन और उनके बाजार के कोई आंकडे नही हैं।न्यायालय को ये भी देखना होगा कि लगभग 3000 करोड़ रूपये का यह व्यापार चलता भी रहे। केंद्र और प्रदेश सरकारों को भी चाहिए कि वह पटाखा निर्माताओं के लिए ऐसी तकनीकि विकसित कराकर इन्हें अवगत कराए कि पटाखों से कम से कम प्रदूषण हो।भारतीय पटाखा उद्योग को ग्रीन पटाखें विकसित करने के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा। अशोक मधुप ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

ऐसे संयुक्त राष्ट्र संघ औचित्य क्या है?

ऐसे संयुक्त राष्ट्र संघ औचित्य क्या है? अशोक मधुप पिछले एक माह से ज्यादा समय से हमास पर इस्राइल के हमले जारी हैं।रूस− यूक्रेन युद्ध एक साल दस माह से ज्यादा से जारी है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में की गई बरबादी पूरी दुनिया ने देखी। संयुक्त राष्ट्र संघ मानव जीवन की बरबादी देख रहा है। यह असहाय बना बैठा है। मानव जीवन का विनाश रोकने के लिए वह कुछ नही कर पा रहा।उसकी भूमिका शून्य होकर रह गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नही कर सकता। मानव जाति का विनाश रोक नही सकता।युद्ध रोकने की उसकी शक्ति नही तो उसका औचित्य क्या है? क्यों कोई देश उसका सदस्य बने।ऐसे नाकारा संगठन को भंग क्यों न कर दिया जाए। पूरी दुनिया में शांति स्थापना के लिए बना संयुक्त राष्ट्र संघ अब हाथी के सफैद दांत बन कर रह गया। वह सिर्फ दिखाने मात्र को है।संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज क्या हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में सक्षम नहीं है। हमास− इस्राइल युद्ध एक माह से ज्यादा से जारी है।हमास ने पहले इस्राइल पर अचानक बड़े पैमाने पर हमला किया। 20 मिनट में पांच हजार से ज्यादा राकेट दागे।इस्राइल में घुंसकर उसके नागरिकों का संहार किया। महिलाओं को सड़कों पर नंगाकर घुमाया गया। बच्चों , महिलाओं समेत इस्राइलवासियों का निर्ममतापूर्वक कत्ल किया गया। 250 से ज्यादा इस्राइली नागरिक बंधक बनाकर ले गए। ये घटना के एक माह बाद भी उनके कब्जे में हैं। अब हमास− इस्राइल युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रयास चल रहे हैं।कई बार प्रस्ताव के प्रयास हुए पर विटो पायर वाले देशों के अडंगे के कारण कुछ नही हो सका।हाल में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस युद्ध को रोकने के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव स्वीकार किया , किंतु इस्राइल ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। होना यह चाहिए था कि प्रस्ताव होता कि हमास ने इस्राइल पर हमला किया है, वह इस्राइल के नुकसान की भारपाई करे।इस्राइल के बंदी रिहा करे।ये भी व्यवस्था होती कि भविष्य में हमास ऐसा दुस्साहस न कर सकें। इसके बाद इस्राइल से कहा जाता कि वह युद्ध रोके,किंतु पूरी दुनिया जानती है कि हमास किसी की सुनने वाला नही। जब हमास सुनने वाला नही तो इस्राइल पर ही दबाव क्यों दिया जाए, कि वह युद्ध रोके।हमास ने इस्राइल पर हमला कर पहल की है। अब ये इस्राइल को तै करना है कि वह क्या करता हैं। कितना लड़ता है। कहां तक लड़ता है।इसका कहना है कि अब वह हमास को खत्म करके ही रूकेगा।दूसरे यदि हमास द्वारा बंदी बनाए इस्राइली नागरिक रिहा हो जांए तो इस्राइल का रवैया कुछ नरम हो सकता है, किंतु ऐसा कुछ होता नही दीख रहा। सब चाहतें हैं कि इस्राइल युद्ध रोके । कोई ये पहल नही कर रहा कि पहले हमास इस्राइल के बंदी रिहा करे। इस्राइल के हमलों में बच्चों और महिलाओं के मरने की बात हो रही है। हमास के हमले में इस्राइल में बच्चों− महिलाओं का जिस तरह कत्ल किया गया, उनकी गर्दन काटी गई। नंगा घुमाया गया, उसका कहीं जिक्र नही हो रहा। इस तरह का दूहरा आचरण दुनिया का विखंडित ही करेगा, रोकेगा नही। पिछले एक साल दस माह से रूस −यूक्रेन युद्ध जारी है। इस युद्ध में मरने और घायल होने वाले दोनों देशों के सैनिकों की संख्या पांच लाख के आसपास है।अपने सैनिकों की मौत के बारे में न रूस कुछ बता रहा है, न ही यूक्रेन।न्यूयार्क् टाइम्स ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से अगस्त में कहा है कि रूस इस युद्ध के नुकसान के बारे में कुछ नही बता रहा।यूक्रेन भी चुप्पी साधे है।अनुमान के मुताबिक युद्ध से रूस के तीन लाख सैनिक प्रभावित हुए हैं।एक लाख तीस हजार सैनिक की मौत हुई है।वहीं एक लाख सत्तर हजार से एक लाख अस्सी हजार तक सैनिक धायल हैं।वहीं यूक्रन के 70 हजार के आसपास सैनिकों की मौत हुई है।जबकि एक लाख से एक लाख बीस हजार तक घायल हुए हैं। इस युद्ध में पांच लाख से ज्यादा परिवार विस्थापत हुए।इतना सब होने के बाद भी संयुक्त राष्ट्र इस युद्ध को नही रोक पाया। न रोक पा रहा है।इस युद्ध से दोनों देशों के विकास तो रूका ही। मानव कल्याण के लिए भवन, पुल,स्कूल और उद्योग खंडहर बन गए। ये दोनों देश बड़े नाज उत्पादक देश हैं। इनके युद्ध के कारण दुनिया के अन्य देशों को होने वाली अनाज की आपूर्ति रूकी है। इससे पूरी दुनिया में मंहगाई बढ़ रही है। आज संयुक्त राष्ट्र महासभा एक ऐसा संगठन बनकर रह गया है जो कुछ देश के हाथों की कठपुलती है। न अपनी ताकत का प्रयोग कर सकता है ना अपनी क्षमता का। संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज के हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में वह सक्षम नहीं है। पांच विटो पावर देश उसे अपनी मर्जी से नचा रहे हैं।उनके एकजुट हुए बिना संयुक्त् राष्ट्र महासभा कुछ नही कर सकता।ये पांचों विटो पावर देश खुद खेमों में बंटे है।ऐसे में सर्व सम्मत प्रस्ताव पास होना एक प्रकार से नामुमकीन हो गया है। म्यांमार में सेना का जुल्म कायम है। चीन में उइगर मुसलमानों पर जुल्म जग जाहिर हैं। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। उसके यहां सरे आम आतंकवादियों को प्रशिक्षण दे रहा है। यह इन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहा।तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की बरबादी दुनिया ने देखी ।तालिबानी मदरसे तो उड़ाते ही रहे । लड़कियों के स्कूल तोड़े और जलाए ।औरतों की आजादी और शिक्षा खत्म कर दी गई। उन्हें घर की चाहरदीवारी में कैद कर दिया गया।पूरा विश्व सब देखता रहा। कोई कुछ नही कर सका। संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज क्या हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में सक्षम नहीं है। । कोरोना से दुनिया में हुई लाखों मौत के सूत्रधार को वह नही खोज पाता। दुनिया में शांति स्थापना और निरपराध का कत्ल रोकने उसकी क्षमता नहीं, फिर ऐसे संयुक्त राष्ट्र की क्या जरूरत है। हर एक को अपनी डफली अपना राग अलापना है तो क्या फायदा। जब ताकत की ही पूजा होनी है तो इस फालतू के बोझ को क्यों झेला जाए?अब समय आ गया है कि एक बार फिर से सोचा जाए किस संयुक्त राष्ट्र संघ क्योंॽ इसका क्या लाभ ॽक्यों इसका बोझ पूरी दुनिया ढोएॽ कैसे बर्दाश्त किया जाए ॽक्यों कुछ ही देशों के हाथ में वीटो पावर दे कर के उन्हें दुनिया के सामने नंगा नाच नाचने की अनुमति दी जाए । आज जरूरत आ गई है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की उपयोगिता पर विचार किया जाए ।इसे उपयोग उपयोगी बनाने पर कार्य किया जाए। खड़ा किया जाए ऐसा ढांचा कि एक देश दूसरे देश का मददगार बने।मुसीबत में उसके साथ खड़े हो ,उसकी रक्षा कर सकें। ऐसा नहीं आपदा के समय सिर्फ तमाशा देखें । सब दुनिया के सभी देश बराबर हैं तो पूरी दुनिया के पांच देशों को ही वीटो पावर का अधिकार क्यों ॽइस पर विचार किए जाने की जरूरत है ।यह प्रजातंत्र है ।संयुक्त राष्ट्र संघ में डिक्टेटरशिप लागू नहीं है जो किसी का निर्णय फाइनल होगा। किसी निर्णय को रोक सकेगा। आज के हालात में सामूहिकता बढ़ाने ,सामूहिक निर्णय पर चलने ,सामूहिक विकास का सोचने की जरूरत है। और एक ऐसे संगठन की दुनिया को जरूरत है जो निष्पक्ष और तटस्थ होकर के पूरी दुनिया में शांति स्थापना के लिए काम कर सके। ऐसे संगठन की जरूरत नहीं है जिसमें चार या पांच दादाओं का ही निर्णय चलें। अशोक मधुप

Friday, November 10, 2023

लक्ष्मी जी को पूजिए , लक्ष्मी पुत्रों को भी सम्मान दीजिए

  लक्ष्मी जी को पूजिए ,  लक्ष्मी पुत्रों को  भी सम्मान दीजिए

अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार हैं

दीपावली  का माहौल है।इस अवसर पर हम घर की सफाई करते  हैं।अंधकार को दूर करने के लिए दीप  जलाते  हैं। लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी की पूजा  इसलिए करते हैं कि   हमारे घर धन− संपदा से परिपूर्ण रहे।  हमारे  घर धन संपदा से भरपूर रहें,  इसलिए लक्ष्मी  जी की पूजा  करते  हैं।अपने शहर ,प्रदेश और देश के बारे में नही सोचते।हमें  यह भी  सोचना  चाहिए कि कैसे हमारा शहर, प्रदेश और देश  संपन्न  हो।कैसे लक्ष्मी पुत्र उनमें कल कारखाने लगाकर विकास  का रास्ता  खोलें।  कैसे अपने लोगों को रोजगार  मिले।  हम दीपावली पर लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं,किंतु  लक्ष्मी पुत्रों का निरादर करते हैं। जबकि लक्ष्मी के पुत्र देश और समाज को बनाने , उसके विकास करने में  बड़ा  योगदान करते हैं।दीपावली पर लक्ष्मी को पूजने के साथ−साथ हमें लक्ष्मी  पुत्रों का सम्मान भी करें। लक्ष्मी पुत्रों का  विश्व,देश और समाज के निर्माण में सदा बड़ा  योगदान रहा है।उस योगदान को हम सभी को  स्वीकारना चाहिए।उनका अपमान  नही करना चाहिए।  

हाल ही में देश के बड़े  उद्योगपति  और वेदान्ता ग्रुप के चेयरमैन  अनिल अग्रवाल की एक पोस्ट प्रसिद्ध  हो रही है। इसमें पोस्ट में उन्होंने  राष्ट्र के निर्माण में उद्योगपतियों की भूमिका पर प्रकाश डाला है। वह   कहते हैं कि वे जब अमेरिका ,ब्रिटेन या जापान आदि  किसी लोकतांत्रिक देश को देखते हैं, तो इस बात का अहसास करते हैं कि जहां राजनेता देश का नेतृत्व करते और उसे शक्तिशाली  हैं, वहीं उद्यमी उस देश को बनाते हैं।वे  अमेरिका का उदाहरण देते  हुए कहते  हैं कि अमेरिका

 

का निर्माण पांच उद्यमी रॉकफेलर,एंड्रयू कार्नेगी,  जेपी मार्गन,फोर्ड  और वेंडर बिल्ट ने किया।इस सभी उद्योगपतियों ने अधिकांश  संपत्ति परोपकार के लिए  दान कर दी। अमेरिका ,ब्रिटेन और  जापान जैसे देशों का उदाहरण देते  हुए  वह कहतें हैं कि हमारे भारत में  घरेलू उद्यमियों की भूमिका  को कभी− कभी कम करके आंका  जाता  है।लेकिन देश के लिए वह जो  कर सकतें  हैं,वह कोई  और नही कर सकता।वे विदेशी तकनीक और फंडों के साथ  मजबूत गठजोड़ कर सकतें हैं। पोस्ट के अंत  में वह कहते हैं कि अगर घरेलू  उद्यमियों की कमाई होगी  तो वह अमेरिकी उद्यमियों की तरह ही  परोपकार के लिए अपनी कमाई का  हिंस्सा  दान कर सकेंगे।उनकी राय है कि सरकार को घरेलू कारोबारियों को अधिक सम्मान और मान्यता  देनी चाहिए, जिससे  उन्हें प्रोत्साहन मिले।उनकी धारणा  है कि व्यापारी मुकदमें बाजी आडिट और लंबी सरकारी प्रक्रियाओं से डरते  हैं। उद्यमियों  पर भरोसा करना और लाभ देना  महत्वपूर्ण  है।प्रत्येक लोकतांत्रिक देश जो अमीर बना है,वह ऐसा इसलिए कर पाया कि क्योंकि उन्होंने उद्यमियों पर विश्वास रखा ।उन्हें मान्यता दी और प्रेरित किया।

आज  सरकारें राजनैतिक हित के लिए किसानों की ही बात करती हैं। उनके लाभ के बारे में  सोचती हैं।उन्हें खेती में प्रयोग होने वाला  कच्चा माल, बिजली, कीटनाशक  सस्ते दाम पर  उपलब्ध  कराती हैं। उनकी फसल का न्यूनतम मूल्य  निर्धारित करती हैं।क्या कोई  प्रदेश  या देश अकेले किसानों के बूते  तरक्की कर सकता है। कभी  नही।किसी देश के विकास में जितना  योगदान किसान का है,  उतनी ही व्यापारी का।इनके बराबर ही मजदूर का।  किसी को भी कमतर नहीं किया  जा सकता।

देश के विकास में प्रत्येक व्यापारी का योगदान है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। उनकी जरूरत और सुविधा  का धयान रखा  जाना  चाहिए। सम्मान किया  जाना  चाहिए।किंतु  ऐसा  होता  नही।हम व्यापारी  को चोर और बेईमान बताने में लगे रहतें हैं।कांग्रेस  के एक नेता का तो सदा आरोप रहता  है कि प्रधानमंत्री एक व्यापारी को अपने  साथ  लिए घूमते  हैं।वे  ये  नही देखते कि जिस व्यापारी को लेकर वह ये बात करते हैं,उनके देश में कितने  कारखाने हैं। उन्होंने कितने करोड़ का निवेश किया हुआ है। कितने  लाख लोगों का रोजगार दिया  हुआ है।उनसे  संपर्क  बनाकर ,उन्हें सुविधाएं  देकर हम देश  का और कितना  विकास  कर सकतें हैं।

पिछले  दिनों दिल्ली के आसपास चले किसान आंदोलन के दौरान  तो व्यपारी को बड़े पैमाने पर चोर और बेईमान बताने का अभियान चला। मोबाइल  टावरों पर तोड़फोड़ की गई।उद्योगों का  घेराव किया गया। रास्तों पर धरना  देकर आपूर्ति और माल की निकासी बाधित की गई। बंगाल में ममता  दीदी द्वारा  नेनों के सिंगूर में कारखाना  लगने के स्थान पर दिए  धरने का प्रभाव रहा कि वे मुख्यमंत्री तो  बन गईं किंतु  बंगाल के विकास का रास्ता अवरूद्ध कर गईं। 2008 में शुरू  हुए विवाद के बाद से अब तक कोई भी बड़ा प्राइवेट  उद्योग बंगाल में नही लगा।प्रदेश  और देश के विकास के लिए उद्योगपतियों को सुविधा  और सुरक्षित माहौल देना  होगा।पिछले  दिनों पंजाब में भी  उद्योगों  के विरूद्ध भी कुछ विपरीत सोच  दिखाई  दिया।परिणाम  यह है कि आज व्यपारी वहां  भी  जाने से   बच रहा है।

पुराने समय  से  व्यापारियों का विकास में योगदान रहा है।वे पहले से  सड़क ,स्कूल और धर्मशालाएं   बनवाते  रहे हैं। अपितु  राज गंवा  चुके महाराणा  प्रताप को अपनी सेना  खड़ी  करने के लिए    भामाशाह ही मदद करते हैं।  हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात महाराणा  प्रताप जब  अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थेतब भामाशाह ने उन्हें खोजकर अपनी सारी जमा पूंजी  समर्पित कर दी। भामाशाह ने  अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। भामाशाह से  सहयोग से महाराणा प्रताप  में नया उत्साह उत्पन्न हुआ। उन्होंने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित करा और फिर से मेवाड़  का राज्य प्राप्त किया। भामाशाह का  ये काम आज भी जारी है।  देश के बड़े उद्योगपति रतन टाटा हर साल  1100 करोड़ रुपये डोनेट करते हैं साल 2022 में सबसे बड़े दानवीर बनकर उभरे एचसीएल के फाउंडर शिव नादार ने पूरे वित्त वर्ष में 1161 करोड़ रुपये की बड़ी रकम दान की थी।  यही बात विप्रो के स्वामी अजित प्रेम जी के बारे  में प्रसिद्ध है। इस बड़े व्यापारी द्वारा  जो  काम बडे  सतर पर हो  रहा है,  वही काम छोटे व्यापारी अपने स्तर पर करते हैं।

   

आज  गुजरात के विकास  का ये ही कारण  है।अपने मुख्यमंत्री काल में नरेंद्र मोदी ने सिंगूर के विवाद के दौरान टाटा अकेले को गुजरात में कारखाना  लगाने का  आमंत्रण नही दिया, अपितु उनके माध्यम से  अपृत्यक्ष रूप से अन्य  उद्योगपतियों के भी गुजरात आने का रास्ता खोला।  इसीका फल है कि गुजराज आज विकास के क्षेत्र में बहुत आगे हैं।यहीं काम आज उत्तर प्रदेश में हो  रहा है।यहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा  प्रदेश में सुरक्षा का  माहौल पैदा करने से व्यापारियों में विश्वास बढ़ा  है। आज  योगी जी के आहवान पर प्रदेश में बड़े पैमाने  पर निवेश हो रहा है।

हम अमेरिका गए हुए थे। क्रूज पर न्यूयार्क घूम रहे  थे।कूज के चालक की उस समय  की बात मैं  आज तक नही भूला।उन्होंने  कहा था कि वे  जो  विशाल भवन,बड़े उद्योग सामन   देख  रहे हैं।  ये सब आपके −हमारे पूर्वजों की देन हैं।भारत, बंगला देश, पाकिस्तान,श्रीलंका अफ्रीका  से आप से सब के पूर्वज यहां  आए ।उन्होंने ये  सब खड़ा किया।

ऐसा  ही सब जगह है। किंतु भारत में हम देश को विकास  में आगे  बढ़ाने वाले व्यापारी को  गाली देते  हैं। कहते  हैं कि बैंको  का पैसा लेकर भाग  रहे हैं। ध्यान रहे कि बैंक ऋण मूल्य से ज्यादा की व्यापारी  की संपत्ति गिरवीं रखकर कर्ज देते  हैं। व्यापार में नफा नुकसान होता रहता  है।घपला  करने  वाले तो  दो चार ही हैं,उनके आचरण का दोष  पूरे समाज को  तो नही दिया जा सकता।    भारत को आगे बढ़ाने के लिए देश के विकास के लिए  व्यापारियों को हमे चोर और बेईमान कहना छोड़ ना  होगा।  वे  भामाशाह के वंशज हैं।उन्हें विकास पुत्र  या  विकास  पुरूष  की संज्ञा देनी होगी।उन्हें भी सम्मान देना  होगा।सुविधाएं देनी होंगी।  । दीपावली पर लक्ष्मी का  आह्वान करने के साथ इन विकास पुरूषों के स्वागत के लिए नगर प्रदेश और देश में रंगोली सजानी होगी।

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Thursday, November 9, 2023

युद्ध कैसे रूके ,हमास−इस्राइल तो मानने को तैयार ही नहीं






 युद्ध कैसे रूके ,हमास−इस्राइल तो मानने को तैयार ही नहीं


अशोक मधुप


वरिष्ठ  पत्रकार


ये यक्ष  प्रश्न दुनिया में गूंजने लगा है कि हमास और इस्राइल युद्ध  कैसे  रूके? दुनिया  चाहती है कि युद्ध  रूके ,शांति हो। इस युद्ध में हो  रहे मानवता का विनाश  बंद  हो। पर प्रश्न है कि हो कैसे ?न इस्राइल मानने  को तैयार है न हमास।इन दोनों  की जंग में गाजापट्टी   का आम नागरिक बच्चे  और औरतें मर रही हैं।घायल और बीमार को इलाज नही मिल रहा। गाजापट्टी में हुआ  विकास बड़े− बड़े भवन, व्यापारिक केंद्र अस्पताल खंडहर में तबदील होते जा रहे हैं।


हमास ने सात  अक्टूबर को इज़राइल में हमला  करके


इज़राइल के साथ-साथ क्षेत्र में  चल रहे  सामान्यीकरण और शांति के प्रयासों  को बंद कर दिया। इस्राइल  पर हमास ने औचक हमला  कर सबको चौंका दिया। किया।इस हमले में 20  मिनट में पांच  हजार के आसपास राकेट दागे गए।इतना ही नहीं यह इस्राइल का  सुरक्षा घेरा  और दीवार तोड़कर अपनी सुरक्षा और मारक क्षमता के  लिए विख्यात इस्राइल में घुंस गए।उन्होंने  इस्राइल में भारी तबाही मचाई।  इस हमले में  इस्राइल के एक हजार से ज्यादा नागरिक मारे गए। तीन हजार के आसपास घायल हुए हैं। सूचनाएं हैं कि 250 के आसपास महिला और बच्चों सहित इस्राइल के  नागरिकों  का अपहरण कर लिया।हमास के आंतकियों ने महिलाओं का निवस्त्र कर उनके सम्मान को  तार− तार करने  कोई  कसर नही छोड़ी। हमास ने सड़कों पर महिलाओं के नग्न शव घुमाए गए थे और बच्चों को काटकर, जलाकर या अन्य क्रूर तरीकों से मार डाला गया था। इसके बाद इजराइल जवाबी कार्रवाई कर रहा है।


इस्राइल की सुरक्षा व्यवस्था, सेना और गुप्तचर व्यवस्था  पूरी दूनिया में  विख्यात हैं।इस सबके  बावजूद वहां इतना बड़ा नुकसान हुआ।इस्राइल के पास दुनिया  का आधुनिकतम  सुरक्षा, प्रतिरक्षा  और विश्व विख्यात सूचनातंत्र है।फिर भी वह इस हमले के सामने विफल  होकर रह गया। इससे भी महत्वपूर्ण और बडी बात यह है कि इस्राइल  की सैन्य अजेयता की प्रतिष्ठा धूमिल हो गई है। इससे इजराइल बौखलाया हुआ है। वह गुस्से में बुरी तरह तिलमिला रहा है।  परिणाम स्वरूप उसका इरादा हमास  को खत्म कर देने का  है।  एक माह से चालू युद्ध  में वह गाजा पर बड़े  पैमाने पर हमले कर रहा है।उसका इरादा हमास को पूरी तरह खत्म कर देने का  है।इस्राइल गाजा पर बड़े पैमाने पर हमले का सहारा ले रहा है ताकि वह उस प्रतिरोध को बहाल करने की कोशिश कर सके जो उसे कभी मिला था, फिर भी यह निश्चित नहीं है कि अगर गाजा को नष्ट कर दिया जाता है और फिर से कब्जा कर लिया जाता है तो भी वह इसे पूरा कर पाएगा।


 दरअस्ल  युद्ध  हमास  और इस्राइल  के बीच  है।हमास फ़लस्तीन का इस्लामिक चरमपंथी समूह है, जो गाज़ा पट्टी से संचालित होता है। 2007 में गाज़ा पर नियंत्रण के बाद हमास के विद्रोहियों ने इसराइल को बर्बाद करने की कसम खाई थी।तब से लेकर हालिया हमले तक ये चरमपंथी संगठन इस्राइल के साथ कई बार युद्ध छेड़ चुका है।दूसरा पक्ष  इस्राइल है।  हमास और इस्राइल के युद्ध में  गाजापट्टी   का आम नागरिक बच्चे पिस रहे हैं,इसका युद्ध से कोई वास्ता नही।  युद्ध से कोई  लेना −देना नही। हमास इन्ही गाजापट्टी नागिरिकों  बीच छिपे  बैठे हैं।इस्राइल की परेशानी है कि वह हमास लड़ाकों और आम नागरिक  में भेद कैसे करे?  उसने गाजापट्टी   का आम नागरिक  से पिछले दिनों  अपील भी की कि वह गाजा  छोड जांए।काफी चले गए ,किंतु अब भी बड़ी संख्या में गाजा में रहने को मजबूर हैं।  आरोप है कि हमास  उन्हें नही जाने दे रहा। वह आम नागरिक की आड़ लेकर  बचना चाह रहा है।  


दुनिया  चाहती है कि यह विनाशकारी युद्ध रूके।इस्राइल पर दबाव भी है,किंतु  सात अक्तूबर का औचक और बड़े पैमान  पर हुए हमले को इस्राइल भुलाने को तैयार नही।  वह हमास को खत्म करके ही रूकने की बात कर रहा है। उधर इसके 250 के आसपास बंदी भी  अभी रिहा नही हुए। उस पर मानसिक दबाव है कि अपने इन बंदियों को सुरक्षित रूप से छुडाए। 


  


इसी दौरान फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास के प्रवक्ता गाजी हमद  ने दावा किया है कि हमास सात अक्टूबर को इज़राइल पर किए गए हमलों को बार-बार दोहराएगा। बता दें कि, इस दिन हमास ने भूमि, वायु और समुद्र के माध्यम से यहूदी राष्ट्र में एक आश्चर्यजनक घुसपैठ शुरू की थी।इसी बीच 24 अक्टूबर को लेबनानी टीवी चैनल एलबीसी  के साथ एक साक्षात्कार में, हमास के प्रवक्ता गाजी हमद ने कहा कि, 'हमें पूरी ताकत के साथ यह कहने में कोई शर्म नहीं है। हमें इज़राइल को सबक सिखाना होगा और हम ऐसा बार-बार करेंगे।' गाजी हमद ने कहा कि 'इज़राइल एक ऐसा देश है जिसका "हमारी भूमि पर कोई स्थान नहीं है और फिलिस्तीनी "कब्जे के शिकार" थे।' उन्होंने "कब्जा समाप्त करने" का भी आह्वान किया।


उधर इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि जंग ख़त्म होने के बाद "अनिश्चित काल" के लिए ग़ज़ा पट्टी की "पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी" इसराइल के पास होगी।अमेरिकी चैनल एबीसी न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में ये कहा है.इस इंटरव्यू में उन्होंने हमास के कब्ज़े से बंधकों को छुड़ाए जाने तक युद्ध रोकने की मांग को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया।उन्होंने कहा, “जहां तक समय-समय पर छोटे-छोटे विरामों की बात है - एक घंटा या दो घंटे रुकना - हम पहले भी ऐसा कर चुके हैं। मेरा मानना है कि हम परिस्थितियों को देखेंगे, ताकि सामान, मानवीय मदद अंदर आ सके।”अमेरिका, फ्रांस सहित कई यूरोपीय देश इस संघर्ष को अस्थायी रूप से रोकने (पॉज़) की अपील कर रहे हैं।उधर इसराइली सरकार में मंत्री एमिचाई एलियाहू ने हमास के ख़िलाफ़ ‘ग़ज़ा पट्टी में परमाणु हथियार के इस्तेमाल’ की बात की है।  हालाकि  इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू  ने  इसका खंडन  किया है,किंतु  सरकार के एक मंत्री के बयान से स्पष्ट हो  जाताहै कि इस्राइल इस समस्या  से निपटने के लिए किसी भी  सीमातक जा सकता है।


  हमास के बारे में जानकारी रखने वाले मानते हैं कि सात  अक्टूबर को जब हमास ने हमला किया तो उसकी प्लानिंग ने सबको हैरान कर दिया। सात  अक्टूबर को किए गए हमले की प्लानिंग से पता चलता है कि हमास लबी अवधि  के लिए जंग लड़ने की तैयारी करके बैठा है।जंग शुरू होने से पहले हमास के पास 40 हजार लड़ाके बताए जा रहे थे। इजराइल की बमबारी में नौ हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इजराइल के पास अभी इस सवाल का जवाब नहीं है कि इनमें से कितने हमास के लड़ाके हैं और कितने आम लोग।इजराइली सेना के मुताबिक वो हमास के 50 से ज्यादा टॉप कमांडरों को खत्म कर चुकी है।जंग से पहले हमास के पास 15 हजार रॉकेट्स का जखीरा था। इसमें 8100 से ज्यादा रॉकेट्स इजराइल पर दागे जा चुके हैं। अब भी सात हजार रॉकेट्स बचे हैं। 2008 की जंग के वक्त हमास के रॉकेटों की अधिकतम सीमा 40 किमी (25 मील) थी, लेकिन 2021 तक यह बढ़कर 230 किमी हो चुकी है।गाजा में 80 फीट की गहराई में बनी सुरंगें भी हमास के लिए किसी हथियार से कम नहीं हैं। हमास का प्लान था कि वो इजराइली सैनिकों को सुरंगों के जरिए घेर कर मारेंगे, ताकि इजराइल परेशान होकर जल्द सीजफायर का ऐलान कर दे।  इजराइल ने दावा किया है कि वो 100 ऐसी सुरंगों को तबाह कर चुका है। चार  नवंबर को इजराइली सेना के प्रवक्ता डेनियल हागरी ने  दावा किया  कि अब तक की जंग में गाजा अब दो हिस्सों में बंट चुका है। उत्तरी गाजा और दक्षिणी गाजा। उत्तरी गाजा में हम हमास का सफाया कर रहे हैं और दक्षिण में घायलों की मदद। अगर हमें लगता है कि दक्षिण में भी  कोई हमास लड़ाका है तो उसे भी मार गिराया जा रहा है। इससे साफ हो गया है कि जंग के 30 दिन पूरे होते-होते इजराइली सेना ने गाजा के दो टुकड़े कर दिए हैं। इतना ही नहीं, महीने भर की इस जंग ने फिलिस्तीन के नक्शे के अलावा हमास की ताकत और मुस्लिम देशों की सियासत को बदलकर रख दिया है। गाजा को हथियारों की सप्लाई ईरान और लीबिया से होती है।  इस्राइल काप्रयास इस आपूर्ति और हमास की आर्थिक  मदद रोकने का  होगा ताकि वह जल्दी हथियार डाल दे।


हमास की तैयारी को देखते हुए  लगता है कि वह जल्दी हार नही मानेगा। उसने हमला बहुत सोच समय कर किया होगा।उसने हमले से पूर्व उसके परिणाम पर गंभीरता के साथ  सोचा होगा।  जैसे  उसका हमला चौकाने वाला था, हो सकता है कि हमले के बाद इस्राइल से निपटने  की तैयारी भी चौंकाने  वाली हों।  ऐसे में युद्ध  कितना  लंबा चलेगा,  यह नही कहा जा सकता। 


अशोक मधुप


 (लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

Saturday, November 4, 2023

प्रदूषण रोकने को जमीन से आक्सीजन क्यों नही उगाते?








 अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

 दिल्ली एनसीआर समेत 30 के आसपास नगर  आज बुरी तरह प्रदूषण की चपेट में हैं। बृहस्पतिवार के आंकडों के अनुसार दिल्ली की हवा  काफी  जहरीली हो गई है। इंडिया गेटअक्षरधामरोहिणीआनंद विहार समेत 13 इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 400 के ऊपर दर्ज किया गया। एक्यूआई 300 से ऊपर की रेंज बेहद खतरनाक कैटेगरी में मानी जाती है।हवा की क्वालिटी खराब होने पर कमीशन फॉर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने दिल्ली-एनसीआर में  में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के थर्ड स्टेज को लागू कर दिया। GRAP का स्टेज III तब लागू किया जाता है जब एक्यूआई 401-450 की सीमा में गंभीर हो जाता है।इसके चलते गैर-जरूरी निर्माण-तोड़फोड़ और रेस्टोरेंट में कोयले के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। बीएस−3 पेट्रोल और बीएस−4डीजल चार पहिया वाहनों के इस्तेमाल पर सरकार ने 20 हजार रुपए चालान काटने का निर्देश दिया है।मुख्यमंत्री  अरविंद केजरीवाल ने पांचवीं क्लास तक के सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों को शुक्रवार और शनिवार के लिए बंद करने का आदेश दिया है। दिल्ली में प्रदूषण पर अपोलो हॉस्पिटल के डॉ. निखिल मोदी ने लोगों को मास्क पहनने की सलाह दी है।प्रदूषण के कारण दिल्ली−एनसीआर  में  रहने वालों की अस्थमा जैसी बीमारी विकसित हो  रही हैं । प्रदूषण  बढ़ने से यहां रहने वालों की आयु कम हो रही है। सासें कम  हो रही हैं। हालत अन्य घनी आबादी वाले महानगरों की होती जा रही है। जाड़े शुरू होते ही सांसों पर संकट आ जाता है। दिल्ली एनसीआर में सरकारी  स्तर के प्रयास असफल होते देख  हर वर्ष सर्वोच्च  न्यायालय को दखल देना पड़ता है। सर्वोच्च  न्यायालय प्रदेश  सरकारों से प्रदूषणा रोकने के किए जा रहे उपाए पूछता है। प्रदेश  सरकार उपाय के नाम पर की गई  खानापूरी से अवगत करा देती हैं। मामला  अगले  साल के लिए टल जाता  है।अगले साल शीत का मौसम आते ही फिर प्रदूषण की समस्या खड़ी हो जाती है।प्रदूषण  की इस समस्या के स्थाई  निदान  के प्रयास क्यों  नही होतें? प्रदूषण  वाले क्षेत्र  में  आक्सीजन क्यों  नही उगाई  जाती। क्यों नहीं सांसों के लिए जमीन से आक्सीजन उगाने के प्रवंध होते।प्रदूषण  दूर करने के हमारे प्रयास कृत्रिम होते हैं।प्रकृति प्रदत्त संसाधन बढ़ाने की ओर हमारा ध्यान क्यों नहीं?इसके लिए हम अभियान क्यों नही चलाते?  

आक्सीजन उगाने का प्रयोग उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में एक भागीरथ  ने शुरू किया। पिछले तीन साल में बिजनौर में  इतनी आक्सीजन उगा दी कि  आने वाली सन्तति भी  उसका लाभ  उठाएंगी।   कोरोना  काल में आक्सीजन की कमी को लेकर मारामारी मची थी।  पूरी दुनिया  आक्सीजन के लिए  परेशान थी।आक्सीजन सिलेंडर पर भारी ब्लैक था।एक −एक सिलेंडर के लिए हाय− तौबा मची थी,तब उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग में कार्यरत बिजनौर नगर के विक्रांत  शर्मा  के मस्तिष्क में    जमीन से आक्सीजन उगाने का विचार आया।आइडिया   आया कि आज इंसान की सांसों  का संकट  है। सांसों के लिए आक्सीजन चाहिए।आक्सीजन को मशीन से पैदा करने की जगह जमीन से क्यों न पैदा किया जाए। इसके  लिए उन्होंने पढ़ा और सोचा कि  शहर के आसपास ऐसे  वृक्ष   लगाए जाएं जो  24 घंटे  आक्सीजन देतें  हो।बस  वह इस भगीरथ अभियान में लग गए।कोरोना  काल में जब लोग घरों में बंद थे। वे अपने बेटे को लेकर सवेरे रेलवे  लाइन और सड़क से  निकल  जाते। यहां  उन्हें  पीपल,  बरगद,  नीम आदि  के 24 घंटे आक्सीजन देने वाले जो  पौधे  दिखाई  देते,  उन्हें आराम से निकाल लेते।इन पौधों को  लाकर ये शहर की सड़कों के किनारे खाली जगह पर लगाने लगे।इनके इस कार्य को देख इनकी पत्नी  ने इन्हें पिट्ठू  बैग सिल  दिए।  अब ये  पौधे निकालते  और पिट्ठू  बैग में रख  लेते।विक्रांत शर्मा ने ये पौधे  लगाए ही नही। उन्हें पानी दिया और पाला भी। पौधों की सुरक्षा के लिए  ये  बांस खरीदते।उसकी खप्पच बनाते ।इन खप्पचों को पौधे के चारों और जमीन में गाड़कर पर सबको आपस में बांध देते।पौधों की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर  पुराना  कपड़ा लगा  देते।इनके इस जुनून  को देख काफला बनना  शुरू हो गया।  इस काफले को इन्होंने नाम दिया  पर्यावरण  प्रहरी।आज इस काफले में 150 के  आसपास कार्यकर्ता हैं। 16 के आसपास महिलायें भी इस संगठन से  जुड़ी हैं।ये अपने− अपने क्षेत्र में खाली  जगह में पौधे  लगाते  हैं।उन्हें नियमित पानी देते  और देखभाल करते है।  इन पर्यावरण प्रहरियों ने  दो−ढाई किलोमीटर में बसे  बिजनौर शहर में आज साढे   चार हजार से कहीं  से ज्यादा  आक्सीजन देने वाले पौधे  लगा  दिए।  अकेले  इसी बरसात में एक हजार  से ज्यादा पौधे  रोपें।इनकी उपलब्धि यह है कि इनके लगाए 90  प्रतिशत पौधे  चल रहे हैं।  वे ही नही चले,जिन्हें किसी ने उखाड़ दिया  या जला दिया। । बीते रक्षाबंधन पर इन पर्यावरण प्रेमियों ने  नगर में संकल्प रैली निकाली। अपने लगाए  पौधों को रक्षा सूत्र बांधे और उनकी देखरेख तथा  सुरक्षा का  संकल्प  लिया।   ये पर्यावरण  प्रेमी  ग्रीष्मकाल में यह सेवा कार्य प्रातः 05:30 से 07:30 तक व शीत ऋतु में छह बजे से आठ बजे तक कम से कम दो घण्टे अवश्य करते  हैं। इस सेवा कार्य को इन्होंने प्रकृति वन्दन का नाम दिया गया है।सुबह सबेरे ये पर्यावरण  प्रेमी नियमित रूप से प्रकृति की सेवा में लगातें हैं।  उसके बाद अपने− अपने कार्य में लग जाते हैं। विक्रांत बताते  हैं  कि लगभग  तीन साल के अपने इस कार्य में उन्होंने पाया कि पीपल और बरगद प्रायः  जंगल  में नही मिलते।ये पुरानी बस्तियों में  बहुतायत ये पाए जातें  हैं। पुराने शहर और पुराने भवन में पीपलबरगद और नीम के पौधों का  बहुतायात ये मिलने का कारण संभवतःउस क्षेत्र में आक्सीजन की कमी का होना  है।प्रकृति शायद इस कमी को महसूस  करती है।इन हर समय  आक्सीजन देने   वाले पौधों को उसी पुरानी आबादी में उगाती है।

जो काम बिजनौर शहर में विक्रांत शर्मा ने अकेले किया। वहीं काम सरकारी स्तर पर क्यों नही होता।  सरकार  प्रत्येक वर्ष  बरसात में पौधरोपण  करती हैं। करोड़ों पौधे  लगाती हैं।यदि  इनकी जगह  24 घंटे  आक्सीजन देने वाले पौधे  लगाए जांए तो कितना  बेहतर हो।सड़कों के डिवाइडर पर हम शो  के फूल वाले  पौधे लगाते हैं।इस जगह यदि  24 घंटे ऑक्सीजन  देने  वाले  आमरिका बामएलोवेरीतुलसीवाइल्ड जरबेरास्नेक प्लांटआरकिडक्रिसमस केक्टस लगांए तो ज्यादा बेहतर रहेगा। नोयडा में  कुछ मार्ग पर पीपल  लगाने का  काम हुआ  भी है। गर्मी के दिनों में बरगद छाया के साथ ठंडक प्रदान करता है। वट वृक्ष दिन ही नहींबल्कि रात में भी ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। वट वृक्ष में फैलाव अधिक होने के चलते ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलती है। इसके अलावा वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से वट वृक्ष यानि बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है। विज्ञानियों का कहना है कि बरगद पेड़ अन्य पेड़-पौधे की अपेक्षा चार-पांच गुना अधिक ऑक्सीजन देता है। शुद्ध हवा और प्रकृति ऑक्सीजन से शरीर निरोगी रहता जिस जगह बरगद पेड़ होता है उसके आसपास के 200 मीटर का क्षेत्र ठंडा रहता है।  24 घंटे आक्सीजन देने वाले आमरिका बामएलोवेरीतुलसीवाइल्ड जरबेरास्नेक प्लांटआरकिडक्रिसमस केक्टस को सोसायटी,  कॉलोनी, बस्ती के संकरे  रास्ते घर  के आसपास ,मकान की छतों  पर भी  लोगों को  लगाने के लिए प्रेरित किया  जाना  चाहिए। इन जगह के रहने वालों को  इन पौधों को लगाने के  लाभ  बतांए  जांए।कुछ एनजीओ को भी  इस कार्य के लिए प्रेरित किया जा सकता है।राजकोट गुजरात में एक वृद्धाआश्रम सेवा   समिति  इस कार्य में लगी हैं।  ये डिवाइडर पर भी  सहजन के  आठ− दस  फिट के पौधे  लगा रही है।    

एक बात और  विकास के नाम पर पेड़  काटें  न जाए।उनको  शिफ्ट किया जाना चाहिए।  इसके कार्य  में  कर्नाटक  आदि में कुछ कंपनी लगी भी है।  सड़को को चौड़ा करते समय किनारे  के पेड़  डिवाइडर पर लगाए जा सकतें हैं।

जाड़ों में आने  वाले  सांसों के संकट का खत्म करने के लिए आक्सीजन उगाने और नगरों को  आक्सीजन बैंक  में बदलना  होगा। ये भी ध्यान रहे कि आज का लगाया  पौधा  आगे 50−60  साल तक जीवित रहकर जनता को मुफ्त में आक्सीजन देगा। पीपलबरगद और नीम की आयु तो  अन्य वृक्षों से  और भी ज्यादा होती है।  हमारा आजका  लगाया  पौधा हमारी आने  वाली पीढ़ियों   को भी  भरपूर  आक्सीजन देता रहेगा।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)