पत्रकारिता की भूली बिसरी कहानी -3
बिजनौर
में रामलीला मैदान में भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल विहारी बाजपेयी जी की
सभा थी। उस दिन अचानक रेहड़ के पत्रकार साथी अशोक कुमार शर्मा आ गए। बोले-
पुलिस के एक दरोगा को मकान किराए पर दे दिया था। उसका तबादला हो गया
किंतु वह मकान खाली नहीं कर रहा।
मैंने पूरी बात सुनी। उन्हें सभास्थल पर अपने साथ ले गया। मुझे उम्मीद थी कि वहां एसपी साहब मिलेंगे।पुलिस अधीक्षक उस समय दिलीप त्रिवेदी जी ही थे। वह कार्यक्रम स्थल पर बाहर ही मिल गए। मैंने अशोक शर्मा जी को उनसे मिलवाया। उन्होंने समस्या सुनी। कहा कि एक सप्ताह में मकान खाली हो जाएगा। एक सप्ताह की बात सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ।
इसपर उन्होंने कहा कि कल बरेली में आईजी की मीटिंग है। मुझे उसमें जाना है। आई जी साहब से कहकर इस दरोगा का बरेली जनपद में तबादला करा दूंगा। आर्डर आने के बाद तुरंत उसे रिलीव कर दिया जाए्गा।ऐसे में वह स्वतः मकान खाली कर जाएगा। या करा दिया जाएगा। ऐसा ही हुआ भी।
ऐसा ही मकान का एक मामला मेरे मित्र रज्जी खन्ना उर्फ राजकिशोर खन्ना का फंसा। स्वर्गीय रज्जी खन्ना की मुख्य डाक घर के सामने जोली टीवी नाम से दुकान थी। जैन मंदिर के पास डाक्टर दीपक के क्लिनिक के ऊपर का एक पोर्शन खाली था। पुलिस के एक हैड कांस्टेबिल ने इसे किराए के लिए मांगा। रज्जी खन्ना ने उस समय के हिसाब से किराया काफी ज्यादा, पांच हजार रुपये के आसपास प्रतिमाह बताया। सही राशि मुझे अब याद नहीं। वह मकान में आकर रहने लगा। एक महीना बीता ।दो महीने बीते। उसने रज्जी खन्ना को किराया नहीं दिया। किराया मांगा तो बोला कि मै तुम्हारे मुहल्ले की सुरक्षा कर रहा हूं। तुम खुद मुझे इसके लिए 20 हजार रूपये महीना दो। मामला चलता रहा। उसका अम्हेड़ा चौकी केे लिए तबादला हो गया। वह अपना सामान तो ले गया किंतु मकान से ताला नही खोल कर गया। रज्जी खन्ना से कह गया कि मेरी बंदूक रखी है। ताला मत तोड़ लेना।
यह सुन रज्जी खन्ना हक्के - बक्के रह गए। वे थे तुनक मिजाज। भ्रष्टाचार विरोधी एक संगठन भी चलाते थे। जरा जरा सी बात पर गुुस्सा आ जाता था।उन्होंने आव देखा न ताव । इस घटना का इश्तहार छपवाया। शहर में बंटवा दिया। एसपी को भी दे आए। मामला नहीं निपटा। हमारे पत्रकार साथी शिवकुमार जी उनके पास बैठते थे। शिवकुमार जी ने यह कहानी मुझे बताई। हल्दौर के थानाध्यक्ष बल्ले सिंह हमारे मित्र थे।अम्हेड़ा चौकी उनके अधीन थी।वे जब भी बिजनौर आते थे तो मुझसे जरूर मिलते थे। मैने समस्या उन्हें बताई। उन्होंने कहा कि मामला निपट जाएगा। एक दो दिन बाद उन्होंने उस दीवान से लेकर मकान की चाबी मुझे भिजवा दी। तब मैंने कहा - रज्जी भाई मकान देते समय देख तो लेते कि लेने वाले की हालत किराया देने की है भी या नहीं। मकान ऐसे ही ,बिना सोचे समझे किसी को भी किराये पर देना उचित नहीं है । फालतू के लफड़े लेते हो।