Tuesday, July 28, 2020

पत्रकारिता की भूली बिसरी कहानी -3

पत्रकारिता की भूली बिसरी कहानी -3

बिजनौर में रामलीला मैदान में भाजपा के व‌रिष्ठ नेता अटल विहारी बाजपेयी जी की सभा थी। उस दिन अचानक रेहड़ के पत्रकार साथी अशोक कुमार शर्मा  आ गए। बोले- पुलिस के एक दरोगा को  मकान किराए पर दे दिया था। उसका तबादला हो गया किंतु वह मकान खाली नहीं कर रहा।

मैंने पूरी बात सुनी। उन्हें सभास्थल पर अपने साथ ले गया।  मुझे  उम्मीद थी कि वहां एसपी साहब मिलेंगे।पुलिस अधीक्षक उस समय दिलीप त्रिवेदी जी ही  थे।  वह कार्यक्रम स्थल पर बाहर ही मिल गए। मैंने अशोक शर्मा  जी को उनसे मिलवाया। उन्होंने समस्या सुनी। कहा कि एक सप्ताह में मकान खाली हो जाएगा। एक सप्ताह की बात सुनकर मुझे आश्चर्य  हुआ।
इसपर उन्होंने कहा कि कल बरेली में आईजी की मी‌ट‌िंग है। मुझे उसमें जाना  है। आई जी साहब से कहकर इस दरोगा का  बरेली जनपद में तबादला करा दूंगा। आर्डर आने के बाद तुरंत उसे रिलीव कर   दिया जाए्गा।ऐसे में वह स्वतः मकान खाली कर जाएगा। या करा दिया जाएगा। ऐसा ही हुआ भी।

ऐसा ही मकान का एक मामला मेरे मित्र रज्जी खन्ना उर्फ  राजकिशोर खन्ना का फंसा। स्वर्गीय रज्जी खन्ना की मुख्य डाक घर के सामने  जोली टीवी नाम से  दुकान थी। जैन मंदिर के पास डाक्टर दीपक के क्लिनिक के ऊपर का एक पोर्शन खाली था। पुलिस के एक हैड कांस्टेबिल ने  इसे किराए के लिए मांगा। रज्जी खन्ना ने उस समय के हिसाब से  किराया काफी ज्यादा,  पांच हजार रुपये के आसपास प्रतिमाह बताया। सही राशि मुझे अब याद नहीं। वह मकान में आकर रहने लगा। एक म‌हीना बीता ।दो महीने बीते। उसने रज्जी खन्ना को किराया नहीं  दिया। किराया मांगा  तो बोला कि मै  तुम्हारे मुहल्ले  की सुरक्षा कर रहा हूं। तुम खुद मुझे  इसके लिए 20 हजार रूपये महीना दो।  मामला चलता रहा। उसका अम्हेड़ा चौकी केे लिए तबादला हो गया। वह अपना सामान तो ले गया किंतु मकान से ताला नही खोल कर गया। रज्जी खन्ना से कह गया कि मेरी बंदूक रखी है। ताला मत तोड़ लेना।

यह सुन रज्जी खन्ना हक्के - बक्के रह  गए। वे थे  तुनक मिजाज। भ्रष्टाचार विरोधी एक संगठन भी चलाते थे। जरा जरा सी बात पर गुुस्सा आ जाता था।उन्होंने आव देखा न ताव ।  इस घटना का इश्तहार छपवाया। शहर में बंटवा दिया। एसपी को भी दे आए। मामला नहीं ‌निपटा। हमारे पत्रकार साथी शिवकुमार जी  उनके पास बैठते थे। शिवकुमार जी ने यह कहानी मुझे बताई। हल्दौर के थानाध्यक्ष बल्ले सिंह हमारे मित्र थे।अम्हेड़ा चौकी उनके अधीन थी।वे जब भी बिजनौर आते थे  तो मुझसे  जरूर मिलते  थे। मैने समस्या उन्हें बताई। उन्होंने कहा कि मामला निपट जाएगा। एक दो दिन बाद उन्होंने उस दीवान से लेकर मकान की चाबी मुझे भिजवा दी। तब मैंने कहा - रज्जी भाई मकान देते समय देख तो लेते कि लेने वाले की हालत किराया देने की है भी या नहीं।  मकान ऐसे ही ,बिना सोचे समझे किसी को भी किराये पर देना उचित नहीं है । फालतू के लफड़े लेते हो।

Monday, July 27, 2020

प्रदीप जैन पर हमला

पत्रकारिता की भूली बिसरी कथाएं -2
--प्रदीप जैन पर हमला
वर्ष 1995 । मैं श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के पांडिचेरी सम्मेलन में भाग लेने परिवार सहित गया था। 25 दिन के अवकाश पर निकला था । सफर में पता चला कि नगीना के हमारे साथी पत्रकार प्रदीप जैन को पुलिस ने पकड़ लिया है। पूरे शहर में पिटाई करते हुए जुलूस भी निकाला गया । तमंचे के साथ उनकी गिरफ्तारी दिखा दी गयी है।प्रदीप जैन नगीने की अपनी ठसक के लिए मशहूर थे ।सम्मान बहुत था। यद‌ि कहीं प्रशासन उन्हें ले जाता तो एसडीएम की गाड़ी में प्रदीप जैन अकेले जाते। एसडीएम सीओ की गाड़ी में होते। नगीना में प्रदीप ने अलग तरह की पत्रकारिता पैदा की।अलग हटकर पत्रकारिता की।
इंस्पेक्टर की वहां के लाटरी माफियाओं उठ-बैठ थी।ये माफिया प्रदीप जैन से नाराज थे।उन्हें सबक सिखाना चाहते थे।
मैं लखनऊ पहुॅचा तो ऑफिस के साथी शैलेंद्र का फोन आया। अतुल जी (अमर उजाला के मालिक अतुल माहेश्वरी जी) का आदेश है कि तुंरत बिजनौर आओ। कई दिन का अवकाश बकाया था। परिवार का लखनऊ घूमने का मन था। मैंने भी ढंग से कभी लखनऊ नहीं देखा था।मैंने अतुल जी से बात की। उन्होंने कहा कि हमारे रिपोर्टर के सम्मान का मामला है। नगीने का इंस्पैक्टर हटना चाहिए। मैंने पुलिस अधीक्षक ‌निरंजन लाल से फोन पर बात की। मेरी उनसे अच्छी उठ -बैठ थी। उन्होंने कहा कि इंस्पैक्टर से ज्यादा वहां का सीओ बदमाश है। पहले वह हटेगा। फिर इंस्पैक्टर। कल तक सीओ हट जाएगा। इसके बाद इंस्पैक्टर भी हट जाएगा। मैंने एसपी से हुई बात अतुल जी को बता दी। बच्चों की नाराजगी के बावजूद मैं बिजनौर लौट आया।मेरे बिजनौर आने से पहले ही सीओ हट चुका था। उससे अगले दिन इंसपेक्टर नगीना हटे।
प्रदीप जैन को प्रताड़नाएं देने के बाद उनका हत्या के प्रयास (307) का झूठा मुकदमा दर्ज कर बिजनौर जेल तो भेज दिया।अगले दिन यह खबर समाचार पत्रों में छपने के बाद बिजनौर समेत आसपास के कई जिलों(जिनमें वर्तमान के उत्तराखंड के क्षेत्र भी)के पत्रकार एकजुट होकर बिजनौर में एकत्र हुए। जिला मुख्यालय पर विशाल विरोध प्रदर्शन हुआ।
पत्रकारों की एकता व दबाव को देखकर तत्कालीन मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने अपर पुलिस अधीक्षक को नगीना भेजकर जांच कराई । पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मुकदमे को वापस लिया।पत्रकारों की एकता के कारण ही प्रदीप जैन दो दिन बाद ही जेल से छूटकर आ गए। सीओ ओर इन्स्पेक्टर के हटने से सारे में संदेश गया कि अमर उजाला के रिपोर्टर के साथ ज्यादती की थी, इसलिए हटे। बिजनौर आकर मैं निरंजन लाल जी से मिला। उन्हें धन्यवाद दिया।

Sunday, July 26, 2020

जब बढ़ापुर के पत्रकार शराफत हुसैन का कत्ल होते बचा -

पत्रकारिता की भूली बिसरी कथाएं --
जब बढ़ापुर के पत्रकार शराफत हुसैन का कत्ल होते बचा -

बिजनौर में पुलिस अधीक्षक दिलीप त्रिवेदी का समय था।वह एक ईमानदार अधिकारी का कार्यकाल था। उनके कुछ किस्सेे आज भी याददाश्त से नहीं निकलते। जबकि अब वह सीआरपीएफ के डीजी पद से सेवानिवृत हो चुके हैं।‌त्रिवेदी जी का  आदेश था कि डांस कंपनी नहीं चलेंगी। बढ़ापुर  से उस समय 'अमर उजाला' के लिए शराफत हुसैन कार्य  कर रहे थे।  वहां डांस कंपनी चल रही थी।शराफत हुसैन द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट  हमने फोटो के साथ छापी। दिलीप त्रिवेदी साहब ने छापा लगवाया। चलती कंपनी पकड़ ली गयी। मजबूरन  थानाध्यक्ष महोदय को उसे बंद कराना पड़ा। उनका बहुत आ‌र्थिक नुकसान हुआ।  एक ईमानदार अधिकारी की नजर में इमेज भी खराब हुई।शराफत कम्युनिष्ट पार्टी से जुड़े थे। वे पुलिस की ज्यादती समय- समय पर उठाते रहते थे।ईद से पहली रात को  मैं  आराम से सोया था। तीन बजे दरवाजा खड़कने पर आंख खुली । बढ़ापुर के दो कम्युनिष्ट साथी थे। मैँ उन्हें रात को तीन बजे देख कर चौंका ।उन्हें  बैठाया। ठंड थी। वे दोनों कंबल लपेटे थे।उन्होंने बताया कि आज  ईद की नमाज पढ़ने जाते समय शराफत का कत्ल हो जाएगा। थानाध्यक्ष ने जिन तीन बदमाशों को इसके लिए तैयार किया है।  इनमें से एक की माँ ने यह बात शराफत की मां को बता दी है।मैँ नींद में था। मेरी समझ में नही आ  रहा था कि क्या हो रहा है?मेरी पत्नी निर्मल चाय  बना लायीं। चाय पीते समय मेरी समझ में आया कि  मामला कुछ गंभीर  है। उनके जाने पर निर्मल बोलीं---बढ़ापुर से ये एक बजे चले होंगे। ।तब तीन बजे आए। इतनी ठंड में ।मामला बहुत गंभीर है। 
उस समय लैंड लाइन फोन थे।पांच बजे  के आसपास मैने दिलीप त्रिवेदी साहब को फोन किया।  वे बोले --सब ठीक तो है? इतनी जल्दी? मैंने उनको पूरी बात बतायी। उन्होंने कहा - चिंता मत करो। पता लगा कि उन्होंने सीओ नगीना को वायरलैस पर फौरन बताया कि आज ईद की नमाज पढ़ने  जाते समय बढ़ापुर के पत्रकार शराफत  हुसैन का कत्ल होना है। बढ़ापुर के एस. ओ.  ने बदमाशों के साथ ये प्लॉन किया है। आप तुरंत  बढ़ापुर जाएं और शराफत की सुरक्षा करें।अगर  उसे कुछ होता है  तो वहां के थानाध्यक्ष को गिरफ्तार कर जेल भेज दें।
बढ़ापुर एसओ ईदगाह जाने के लिए तैयार हो रहे थे। हैड मोहर्रिर ने ये मैसेज सुना। भागकर एसओ को बताया। एसओ नहाना - धोना  सब भूल गए। जल्दी तैयार होकर अपने दफ्तर पहुंचे। इतनी देर में सीओ नगीना पहुॅच गए।सीओ नगीना के रूख को देखकर थानाध्यक्ष महोदय घबरा गए। पहले वह शराफत को मरवाना चाहते थे। अब उसकी सुरक्षा में  लग गए। ईद ठीक बीत गई। शराफत साहब का  बाल भी बांका नहीं  हुआ। दिलीप त्रिवेदी साहब के पास मेरा शाम को जाकर बैठना होता था। शाम को गया तो उन्होंने   सारी कहानी बतायी।
इसके बाद शराफत साहब उस स्थान से बाहर चले गए। उन्होंने चीनी मिल नजीबाबाद में लंबे समय तक कार्य किया । अब वे सेवानिवृत हो भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की राजनीति कर रहे हैं। आज संचार तंत्र बहुत विकसित हो गया है पर  फिर भी यदि आज का युग होता तो आप फोन करते रहते, कोई  अधिकारी अटैंड भी नहीं करता। बदमाश अपना काम कर चुके होते ।

अशोक  मधुप