Wednesday, December 31, 2008

नव वर्ष पर सबको हार्दिक शुभकांमनाए! यह वर्ष सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं सुयश लेकर आए।

Monday, December 22, 2008

नेताओं की मौत पर राष्ट्रध्वज तिरगें का झुकाया जाना क्या उचित है

पंतजलि योग पीठ हरिद्वार में आयोजित कवि सम्मेलन का आज आस्था चैनल पर प्रसारण हो रहा था ।इस कवि सम्मेलन के एक कवि की कविता ने मुझे बहुत प्रभावित किया। कवि का नाम एवं कविता तो याद नही किंतु उसका भाव यह है कि आज देश में नेताओं के मरने पर राष्ट्रीय ध्वज तिंरगें को झुकाने का प्रचलन है। नेताओं के मरने पर इसे झुकाना आम हो गया है।
कवि का कहना था कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिंरगा देश के गौरव, सम्मान एवं उसकी स्मिता का प्रतीक हैं। यह देश की शान है। इसे फहराने की खातिर देश के सैंकड़ों क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्यौछावर किए। उन्होंने हंसते - हंसते सीने पर गोली खाकर प्राण न्योछावर कर दिए किंतु तिंरगे को झुकने नही दिया।देश के जवान भी तिंरगे के सम्मान की खातिर अपने प्राण दे देते हैं।
राष्ट्रध्वज तिंरगा देश के सम्मान का प्रतीक हैं। देश सबसे बडा़ है, नेताओं से भी ।नेता देश एवं तिंरगे से बडे़ नही हैं। ऍसे में उनकी मौत पर राष्ट्रीयध्वज झुकाया जाना उचित नहीं ।वह इसे राष्टी्यध्वज ही नही पूरे देश का अपमान मानतें हैं।
इस विषय पर आपकी क्या राय है।

हम भी आंतकवादी होते जा रहे हैं

हो सकता है कि आपको मेरी बात अजीब या अटपटी लगे किंतु है सहीं । हममें भी कुछ आंतकवादियों के गुण आते जा रहे हैं । हम अपनी मांग मनवाने के लिए दूसरों का अपहरण नही कर रहे। अपने बच्चों को दांव पर लगाने लगे हैं। आतंकवादी अब तक विमान ,ट्रेन या बस के यात्रियों का अपहरण करके सरकार पर दबाव डाल कर अपनी मांग मनवाते रहे है। ये हथियार अब हम प्रयोग करने लगे हैं। अपनी मांगों को मनवाने के लिए हम अपने बच्चों का जीवन दांव पर लगा रहे हैं।

भारत सहित दुनिया के कई देशों में बच्चों में वायरस से आने वाली शारीरिक विकलांगता दूर करने के लिए पोलियो अभियान चलाया हुआ है। भारत को भी पोलियो मुक्त करने के लिए अभियान चला हुआ हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की और से चलने वाले इस अभियान पर हमारी सरकार खरबों रूपया व्यय कर चुकी हैं। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि वायरसजनित बीमारी से देश का कोई बच्चा विकलांग न हो पाए। सरकार का ये अभियान आपके एवं हमारे बच्चों के लिए है किंतु हम अब यह मान बैठे हैं कि पोलियो की दवा पिलाना सरकार की मजबूरी है। पहले सरकार बूथों पर आने वाले बच्चों को दवाई पिलाती थी। क्योकि सारे बच्चे बूथ तक नही आ पाते , इसलिए सरकार ने यह किया कि पोलियो कर्मी एक सप्ताह तक लोगों के घर जाकर उनके बच्चों को दवा पिलांएगे।

हमारे बच्चो को विकलांगता से बचाने के लिए सरकार की कोशिश ,जद्दोजहद को हमने उसकी मजबूरी समझ लिया। हम समझने लगे कि इसमें सरकार की कोई मजबूरी है, जो इस प्रकार बार बार अभियान चला रही है। सरकार के प्रयास को हमने उसकी मजबूरी मान उसे ब्लैक मेल करना शुरू कर दिया। जग ह-जगह से समाचार आने लगे है कि गांव वाले किसी न किसी मांग को लेकर अड़ जाते है एवं दबाव देते है कि जब तक उनकी मांग पूरी नही होगी, वह बच्चों को दवा नही पिलांएगें। मेरे जनपद के एक गावं में आज दो घंटे तक बच्चों को इसलिए पोलियो ड्राप नही दी गई कि वहां का बिजली का ट्रांसफार्मर खराब था एवं बदला नही जा रहा था। गांव वालों के दबाव पर बिजली कर्मी आए आश्वासन दिया । उसके बाद ही बच्चों को दवा पिलाई गई।

कया यह ब्लैकमेल करना नही हैं। दवा न पीने से किसके बच्चे प्रभावित होंगे। क्या पोलियो की बीमारी को खत्म करने की सराकर की ही जिम्मेदारी हैं। ट्रांसफार्मर बदलवाने के लिए भूख हडताल या किसी अन्य प्रकार का कोई आंदोलन शुरू किया जा सकता थां। अपने बच्चो की कीमत पर तो यह सौदा नही होना चाहिए ।बच्चों को आगे करके इस प्रकार मांग मनवाना मेरी राय में तो ठीक नही हैं । अपने बच्चों कों दाव पर लगाकर कोई मांग पूरी करना ठीक नही हैं ।

Wednesday, December 17, 2008

बेटों से कम नही बेटिंया







युग बदल गया हैं। कभी लड़के लड़कियों में फर्क समझा जाता था किंतु अब ऐसा नही है। बेटी भी बेटों से कम नही है।यहां आज कुछ ऐसा ही हुआ।


मेरे पड़ौस में एक सेवानिवृत अवर अभिंयता रहते हैं किशन खन्ना । उम्र होगी ६५ साल ।पति पत्नी बहुत मस्त। बहुत मिलनसार। इनके चार बेटिंया। चारों बेटियों की उन्होंने शादी कर दी। रात किशन खन्ना की तबियत खराब हुईं। दो बार पहले हार्ट अटेक हो चुका था। ठीक से उपचार न मिलने पर रात में उनका निधन हो गया। मुहल्ले वाले परेशान थे कि अंतिम संस्कार कौन करेगा। सबसे छोटी लड़की इनके पास आई हुई थी! एक और लड़की की शहर में ही शादी हुई थी। वह तथा गाजियाबाद वाली आ चुकी थी! चौथी सबसे बड़ी लड़की नही आई थी।


बिजनौर जैसे छोटे शहर में कोई सोच भी नही सकता था। कि गाजियाबाद में रहने वाली बेटी मुक्ता ने पिता के अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। उसने घर पर पिता का पिंडदान किया। तीनों बहने नंगे पांव शव यात्रा में साथ नहीं । गंगा बैराज पर गईं। वही चौथी भी आ गई। मुक्ता ने पिता की चिता को आग दी आैर कपाल क्रिया सहित सभी रस्म अदा की। गंगा बैराज पर कई शवों का अंतिम संस्कार चल रहा था ,उनके साथ आए व्यक्ति एक युवती को अंतिम संस्कार की क्रिया करते देख आश्चर्यचकित थे। शहरों में तो लड़कियां यह कार्य करने लगी है किंतु बिजनौर जैसे छोटे शहर के लिए यह सब नया था किंतु मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि इन बेटियों ने साबित कर दिया कि वे बेटों से कम नही हैं ।

Monday, December 15, 2008

छपास रोग


आज बड़ी अजीब हुई। सबेरे मोबाइल पर एक साहब का संदेशा आया कि बिजनौर गंगा बेराज से आगे नहर की पटरी पर एक दस फुट लंबा सापं पडा़ है, अनाकोंडा भी हो सकता है। संदेश था, सो भागना पडा़।रास्ते में संदेशा आया कि अमुक जगह पर जैन मुनि सफेद कार में हैं, उनके पास उस सांप के फोटो है। जैन मुनि से बात की । उनके मोबाइल में सापं के फोटो देखे। यह फोटो देते समय चाहतें थे कि सापं के साथ उनका भी फोटो पत्र में छपे। मैं बात कर मौके की ओर रवाना हो गया ! देखता क्यां हूं कि विपरीत दिशा में जाने वाले मुनि जी की गाडी हमारे पीछे है। फिर वह आगे हो गईं तथा सांप वाली जगह जाकर रूक गई।सांप एक साइड में झाडियो में पडा़ था। हमने उसे सीधा कर फोटो खींचने को सड़क पर डाला तो मुनि जी उसके पास बैठ गए एंव कहने लगे कि सांप के साथ उनका फोटो भी खींचों। फोटों खींचे जाने के दौरान वह सांप पर इस प्रकार हाथ फैरने लगे जैसे उसे प्यार कर रहे हों।


सांप अनाकोंडा नही था किंतु लगभग नौ फुट लंबा अजगर था। किसी जीव के खाने से उसका पेट बुरी तरह फूला था। उसके मुंह पर चोट के निशान नहीं थे किंतु मुंह पर खून जरूर लगा था। हो सकता है कि खून उस प्राणी का रहा हो जो अजगर के पेट में था! लगता था कि ज्यादा खा लेने के करण सांप ठंड से बचने को कहीं छुप नही सका तथा ठंड से उसकी मौत हो गई। हमारा काम हो चुका था, अत:हम बाइक उठाकर वापस लोट लिए। किंतु मुझे सारे रास्ते मुनि जी की छपास की भूख परेशान करते रही । नेता तो इस बीमारी के शिकार होतें हैं किंतु वस्त्र तक त्याग चुके मुनि जी इसरोग के शिकार होंगे ,इस प्रकार की उम्मीद न थी।


पोष्ट के साथ सांप के पास बैठे मुनि का चि़त्र यहां दे रहा हूं किंतु उनका चेहरा पोस्ट से हटा दिया है ताकि मुनि जी के प्रियजन कुछ एेसा वैसा न महसूस करें।

Sunday, December 14, 2008

एक फोटो




अब समारोह में मेहमानो के मनोरजंन के लिए भी व्यापक प्रबंध होने लगे है। कहीं शहनाई बादक शहनाई बजाते मिलते हैं तो कहीं म्युजिक कंपनी कार्यक्रम प्रस्तुत करती नजर आती हैं। हाल में एक विवाह समारोंह में एक मोटा युगल लोगो का मनोरजंन करता घूम रहा थां। यह बच्चो से हाथ मिलाता। बाद में डीजे पर डांस करता नजर आया। मुझे कुछ नया सा लगा तो मैने दोनो से फोटो खिंचाने का अनुरोध किया तो वह तैयार हो गए। मैने अपना मोबाइल निकाला एवं उनका चित्र ले लिया। मन बात करने का तो था किंतु शोर ज्यादा होने के कारण चला आया।

Saturday, December 13, 2008

मुंबई का हमला ,हमारी सोच



क्या पूरा पाकिस्तान अपराधी है


मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद देश भर से एक आवाज आ रही है कि पाकिस्तान पर हमला किया जाना चाहिए। मीडिया चिल्ला-चिल्लाकर कर रहा है कि बाप द्वारा एक आंतकवादी की शनाख्त किए जाने के बाद पाकिस्तान को और क्या सबूत चाहिए।



मै कुछ और कह रहा हूं। पाकिस्तान पर हमले की बात करने से पूर्व हमें बहुत कुछ सोचना चाहिएं। पहला प्रश्न यह उठता है कि पाकिस्तान हमले की बात कर क्या हमने यह नही मान लिया कि पूरा पाकिस्तान आंतकवादी है। क्या एक कौम या एक पूरा देश आतंकवादी हो सकता है। अब तक आंतकवाद में शामिल रहे शत प्रतिशत युवक मुस्लिम हैं,इसके बावजूद मुस्लिम समाज का बड़ा तबका इसका विरोध करता है। आंतकवाद के कारण शक के आधार पर बेगुनाह मुस्लिम के उत्पीड़न के लिए आज वह सुरक्षा बलो को कम आंतकवाद के नाम पर रास्ता भटके युवाऔ को ज्यादा जिम्मेदार मानता है। इसीका कारण है मुंबई के हमले मे मरने वाले आंतकवादियों को अपने कब्रिस्तान मे दफनाने की मुंबई के मुस्लिमों ने इजाजत नही दी।

पाकिस्तान में बड़ी तादाद में आतंकवाद है, यह भी सही है कि वहां आंतकवादियों के खुलेआम ट्रेनिग कैंप चल रहे हैं किंतु यह तो नही कहा जा सकता कि वहां पूरा देश ही आतंकवादी है । पाकिस्तान सरकार दावेकर रही है कि मंबई की आतंकवादी बारदात में उसका हाथ नही ,वह इसके सबूत भी हमसे मांग रही है किंतु मुंबई में मरने वाले आंतकवादी के गांव के लोगों से बातचीत वहां का गियो चैनल सबूत दे देता कि मुंबई के आतंकवादी हमले में फोर्स के हाथ मरने वाला पाकिस्तान का अजमल कसाब है । वह पाकिस्तान द्वारा भारत से मुंबई के हमले में पाकिस्तान के हाथ होने के सबूत खुद उपलब्ध कराता हैं। पाकिस्तान में बड़ी तादाद में आंतकवादी शिविर या उनके प्रश्यदाता हों किंतु पूरे देश के नागरिक आंतकवादी नही हो सकते।एक दो सिरफिरे की गलती पर पूरे देश कों दंड देना तो न्याय नही है। क्या आप इसे उचित मानेंगे। मै तो कमसे कम इसके लिए तैयार नही हू।

मुंबई के आंतकवादी हमले में मरने वाले युवक को उसके मां-बाप से इस रास्ते पर चलने को नही कहा होगा,मेरा एेसा मानना है।हम पूरे पाकिस्तान को आज सबक सिखाने पर उतारू होते समय यह भूल जाते है कि हम ही नही आंतकवाद का दंशा उतला ही पाकिस्तान झेल रहा है,जितना हम झेल रहे हैं। आंतकवाद के विरोध में हम ही कुरबानी नही दे रहे, पाकिस्तान भी दे रहा है! जरदारी भी दे रहे हैं। उनका भी बहुत कुछ इस आंतकवाद की बदोलत गया है।

हमारे देश में सैना अनुशासित है,उसके जवान आतंकवाद के विरूद्ध संघर्ष कर रहे है जबकि पाकिस्तानी सेना आंतकवादियों की पीठ पर खड़ी है। यही मूल फर्क भारत एंव पाक में हैं।

इसके लिए हमें अंतर्राष्टीय दबाव बनाना होगां। इसमें हम कामयाब भी हों रहे हैं। कारगिल मे आंतकवादियो को जमाने का जिम्मा पाकिस्तानी सेना का नही था अपितु उसके जवान भी उनमें शामिल थे किंतु दुनिया के सामने पूरे घटनाक्रम को लाकर जब हमने आपरेशन चलाया तो पाकिस्तानी सेना चुप ही नही रही, उसने अपने सैनिकों के शवों को भी नही स्वीकारा।

हम अपने मुंबई कांड मे लगे जख्मों के आगे आतंकवाद में पिस रहे पाकिस्तान के आवाम के जख्मो को भूल रहे है, जरदारी के जख्मों को भूल रहे हैं।







Sunday, December 7, 2008

मुंबई, धर्मशाला और मै

[ एक हास्य व्यंग]
आज मोहन लाल मिले। बहुत प्रसन्न नजर आ रहे थे। राजे महाराजों के समय की एक धर्मशाला के मैनेजर हैं। बहुत दिनों बाद उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि धर्मशाला में आना । आज कल उसके मोड्रनाईजेशन का काम रहा चल रहा है। मोहन लाल को अंग्रेजी बोलते देख मुझे कुछ अटपटा लगा, पर सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ धर्मशाला में मोड्रनाइजेशन की बात सुनकर। मै 25 साल से ज्यादा से मोहन लाल के संपर्क में हूं। मोहन लाल एवं उसकी धर्मशाला के प्रबंधकों से मैने एवं मेरे जैसे लोगो ने धर्मशाला में सुधार करवाने का अनेक अनुरोध किया ,पर उनके कानों पर कभी जूं नही रेंगी। धर्मशाला शहर के प्रमुख स्थान पर स्थित हैं, यदि इसका प्रबंधन थोडा़ सा परिवर्तन करा लेता, तो उसकी आय बहुत बढ़ सकती थी, किंतु कभी हुआ नहीं,।


एक बार किसी प्रकार ईंट आ गई तो वह तबसे ऍसे ही रखी जगह घेर रही हैं। धर्मशाला का प्रबंधन बनाने वालों को वह रेट देने की बबात कर रहा था जो कभी बीस साल या उससे पहले रहे होंगे । इसी कशमकशा में धर्मशाला में कुछ नया नहीं हुआ।


मोहन लाल की बातों से मै आश्चर्यचकित था, सो अपने को न रोक सका एवं मोहन लाल को अपनी बाइक के पीछे बैठाकर धर्मशाला का मोड्रनाइजेशान होता देखने चला गया। मोहन लाल ने मुझे धर्मशाला मे हो रहा कार्य दिखाया। उन्होंने बताया कि सभी कमरों को हवादार बनाया जा रहा है। कमरों में पंखे ही नही अब कूलर लगेंगे। कुछ में एेसी भी लगाए जाने है। जिस धर्मशाला के कमरों में कभी पंखे तक न लगे हों। शोचालय सामूहिक रहा हो बाबा आदम के जमाने का, उसमे यह परिवर्तन होते देख मै आशचर्य में था, एक दो बार मुझे लगा कि मै सपना तो नही देख रहा ।


मै मोहन लाल से बात करही रहा था कि इतनी देर में धर्मशाला का चौकीदार भी आ गया।वह शराबी के फिल्म के मांगे लाल की भांति छोटे कद का था एवं मूछ बिल्कुल मांगे लाल की तरह रखता था। उसका नाम रामू था किंतु हम उसे मांगे लाल कहकर चिड़ाते थे। हम कहते थे,मूछ हो तो मांगे लाल जैसी आैर वह कहा करता था नही सर आप गलत कह रहे हैं सुधार करें आैर कहें कि मूछ हो तो रामू जैसी।आज उसकी मूछों मे मुझे कुछ ज्यादा ही चमक नजर आई। बालों को भी काला कराया हुआ था।रामू ने बाल भी बड़े स्टाइल से बा रखे थे।


मै अब तक मोहन लाल की ही बातों से आश्चर्य में था कि रामू को देखकर मुझे लग गया कि हाल में कोई बडा़ परिर्वतन जरूर हो गया जो ,पुराने जमाने के इन दोनो में इतना परिवर्तन आ गया है। मै सोचने लगा कि कहीं इनके हाथ कारू का खजाना तों नही लग गया।


उनकी बातों से मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। मैनू पूछा माजरा क्या है। मोहन लाल बोले कैसे अखबार वाले हों , तुमने सुना नही कि मुंबई के ताज जैसे बड़े होटलों पर आंतकवादियों ने हमला कर वहां रह रहे 20 से ज्यादा विदेशी नागरिकों का कत्ल किया है। इस घटना के बाद अब विदेशी नागरिक वहां तो जाकर रूकेंगे नहीं, उन्हें ठहरने को सुरक्षित जगह चाहिए तो हमारी धर्मशाला से सुरक्षित जगह थोडा़ई होगी किसी आंतकवादी को भनक तक नही लगेगी कि विदेशी कहां टिके हैं। अब तक तो एेरा गैरा नत्थूखेरा हमारी धर्मशाला में आकर टिकते थे, इसलिए हमने कभी ध्यान नही दिया,अब विदेशी मेहमान आने वाले हैं। आराम से सस्ते मे रहेंगें। अब तक हमे कभी कभाक कोई ग्राहक एक दो पैग देशी पिला देता था, अब तो रोज अंग्रेजी बढ़िया वाली मिलेगी।


उनकी बातों को मै सुनकर चकरा रहा था कि रामू ने अपनी मूछो को ताव देते हुए जेब से पास्पोर्ट निकाल कर दिखाते हुए कहा कि देख लेना अब कोई अंग्रेज मेम अपनी भी मूछो पर फिदा हो जाएगी।अभी से पास्पोर्ट बनवा लिया है कि एेसा मौका आया तो छोडूंगा नही, यदि वह अपने साथ ले जाने कौ तैयार हो गई, तो तुंरत उसके साथ उड़ जाउगां। उनकी बातो में मुझे मजा तो बहुत आ रहा था कितु आफिस का टाइम होते देख मैने वहां से खिसकना ही बेहतर समझा।

Friday, December 5, 2008

क्या हमारा आक्रोश सही दिशा की ओर है



मुंबई में हुई आतंकवादी घटना के बाद देश भर में आक्रोश है। प्रत्येक व्यक्ति उसे अपने ढंग से व्यक्त करने में लगा है। कोई नेताआें को जूते मारने की बात कह रहा है, तो कोई पाकिस्तान पर हमले की सलाह का पिटारा खोले है। हरेक की अपनी ढपली एवं अपन राग है। चैनल नेताआें के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं,।



इन सब के बीच भी कुछ लोग है जो अपनी दुकान लगाए कमाई कर रहे हैं! उन्होंने देख लिया कि


लोंगो में आक्रोश है। इसे भुनाने के लिए मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियो ने अपने लोगों को लगाकर आक्रोशा व्यक्त करने वाले संदेश कुछ के मोबाइल पर भेज दिए। जिसे यह एस एम एस मिला , उसने इसे अपने मित्रों को फावर्ड कर दिया। कुछ मैसेज में तो लिख दिया कि इसे आगे बढाकर राष्ट्रभक्ति का परिचय दीजिए। हम सब ने अपने गुस्से का इजहार करने के लिए ही संदेश भेजे। क्या हुआ ,इससे देश के हालात पर कुछ असर नही पडा, हां मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियो ने जरूर लाखों रूपये के वारे न्यारे कर लिए।



इससे कुछ होने वाला नही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में पुलिस में एक साल अस्सी हजार से ज्यादा भर्ती की घोषणा की। उधर एसटीएफ के गठन की घोषणा कर दी । इससे कुछ होने वाला नही है। पुलिस कर्मी को आप देखे तो वह सबेरे से शाम तक वाहनों से वसूली करते नजर आंएगे। गुप्तचर सूचना जुटाने के लिए बनी स्थानीय अभिसूचना इकाई के साथी प्राय: पास्पोर्ट की जांच के नाम पर धन बसूल करते नजर आते है। रेलवे पुलिस का काम रेलवे संपत्ति आेर इसके यात्रियों की सुरक्षा करना है किंतु वह यात्रियों के टिकेट चैक करते या यात्रियों का लगेज ज्यादा बताकर धन वसूलते नजर आते।


एसटीएम में मनमर्जी से अधिकारियों का पोस्टिंग किया जा रहा है। इनमें बे युवक लिए जाए जो खुद कुछ कर गुजरने का हौसला रखते हों। इन्हें अलग कैडर आैर वेतन मिलना चाहिए।


हमें इस प्रकार की घटनाआें केा रोकने के लिए समीक्षा करनी होगी। कंधार विमान अपहरण कांड के समय की घटना मुझे याद आती है। मीडिया विमान अपहृताआे के परिवारों को दिखाकर बार बार यही कह रहा था कि मंत्री की बेटी के लिए आंतकवादी छोडे़ जा सकते हैं तों इनके लिए क्यों नहीं। एक फिल्म आई थी 36 घंटे! एक अखबार के संपादक के घर में चार बदमाश घुंस जाते हैं। पत्रकार अपनी बेटी आैर पत्नी को बचाने के लिए बदमाशों को पुलिस की सूचनांए एकत्र कर देने लगता है। हम सबको सोचना होगा कि इन सबसे उपर हमारा देश है। उससे उपर कोई नही है।


इन सब के साथ देश में मजबूत सुरक्षां तंत्र के साथ प्रत्येक नागरिक को एक सिपाही बनाना होगा , जो जरूरत पड़ने पर जान पर खेल कर दशमन का मुकाबला कर सके। प्राचीन युद्धकला में लठैत को बहुत मजबूत माना जाता था। लाठी चलाने मे माहिर बहुत से लोगों को इसी प्रकार मार डालता था , जैसे आज आंतकवादी मार डालता है। किंतु बुजुर्ग बताते रहे है कि लठैत का एक उपाए है कि एक आदमी भागकर उसकी कौली भर ले। वह खुद तो मरेगा या घायन होगा किंतु अन्य को तो बचा पाएगा। मुंबई रेलवे स्टेशन पर हमला करने वालो मे से एक आंतकवादी के मारे जाने के पीछे की भी तो कहानी यही है।एक सिपाही ने आतंकवादी की राइफल की नाल ही नही पकडी़, अपितु सारी गोंलिया अपने सीने पर झेली। उसने खुद जान देकर दूसरो को बचा लिया। एे से अवसरों के लिए हमे अब युद्ध के समय अपनी जान पर खेल कर समाज को बचाने की कला सीख्ननी होगी। मै श्री वेद प्रकाश वैदिक जी की इस बात का कायल हूं कि हमे पूरे देश केा इन हालात से बचने के लिए आर्मी प्रशिक्षण आवशयक करना होगा। दो साल का प्रत्येक के लिए सैनिक प्रशिक्षण आवशयक किया जाना चाहिए। आज हमारे घर पर हमला था इसलिए हम परेशान हैं किंतु आंतकवाद तो विश्व व्यापी समस्या है। इससे निपटने को हमे इंस्त्राइल जैसे देशो से देशभक्ति सीख्ननी होगी ।


बशीर बद्र के एक शेर से मै अपनी बात खत्म करता हूं..


असूलों पर जो आंच आए तो टकराना जरूरी है,


जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है।