Tuesday, September 8, 2020

गंगा जल और मेरी प्यास पत्रकारिता जीवन की भूली बिसरी कहानी






पत्रकारिता जीवन की भूली बिसरी कहानी-13
गंगा जल और मेरी प्यास
---------
मुझे बहुत तेज प्यास लगी थी। गंगा पास से बह रही थी। मजबूरी ,मैं दुनिया का प्यास बुझाने वाली पतिति पावनी से अपनी प्यास नहीं बुझा सकता था।
कई साल पहले की घटना है। खिरनी गांव के पास गंगा में नाव पलट गई। नाव में सवार छह व्यक्ति डूब गए। मैंने तय किया कि इस क्षेत्र का भ्रमण किया जाए।मैं अपने साथी संजीव शर्मा को लेकर खिरनी के लिए चल दिया। बस ने हमें खिरनी गांव के पास उतार दिया। पैदल चलकर हम खिरनी गांव के पास बहती गंगा के तट पर पहुंचे।
एक नाविक दिखाई दिया।मैंने उससे गंगा पार ले जाने का अनुरोध किया।उसने पूछा।कहाँ जाओगे।मेरे बताने पर की खादर में घूमना चाहते हैं।
उसने कहा कि कोई फायदा नहीं ।जंगल के सभी रास्तों में पानी भरा है।वह तो अपने खेत से पशुओं के लिए चारा लेने जा रहा है। मजबूरी है बाबू।हमें पशुओं का पेट भरना है।आप मत जाओ।
हमने उसका कहना माना।
वहां से गंगा के किनारे बिजनौर साइड में चलने का निर्णय लिया। बरसात का मौसम था। गंगा पूरे उफान पर बह रही थी। हम गंगा के किनारे- किनारे चल दिए। खोलों में उतरते चढ़ते।कुछ आगे चलकर एक किले के खडंहर दिखाई दिए। महल के किनारे बने गोले जैसा था। वहां बड़ी ईंट के अद्धे लगे हुए थे।यहां पुराने समय की ईट लगभग दो इंच मोटी और एक से डेढ फीट तक लंबी होती थी। मैंने देखा कि इसमें लगी ईंट अधिकतर आधी है। महल का अधिकांश हिस्सा गंगा में बह गया था। यही भाग बचा था।लगाकी यहां ईट किसी पुराने महल /भवन की निकाल कर यहां लाकर लगाई गई है। कुछ फोटो आदि खींचे और एक ईंट अपने साथ लेकर हम चल दिए।
इससे पहले कभी ऐसा सफर नहीं किया था। सो सफर की कोई व्यवस्था भी नहीं की थी। सफर के लिए पानी नहीं लिया था। जबकि बहुत जरूरी था।कुछ दूर गंगा के खोलों में ऊंचे -नीचे चलकर थकान हो गई। प्यास लगने लगी। गर्मी ज्यादा थी।रास्ते में एक दो किसान मिले ।उनसे पूछा कि कहीं पानी मिलेगा। प्यास लगी है। उन्होंने आश्चर्य से हमें देखा कहा -गंगा बह तो रही है।
बरसात के कारण मिट्टी कट रही थी पानी मटमैला था। प्यास बहुत थी। पर गंगा के जल को देखकर पीने की इच्छा नहीं थी।ऐसे चलते दो घंटे बीत गए। प्यास से जीभ बाहर निकल आई थी।होठ सूख गये थे।
कैसी विवशता थी कि कल -कल करती मां पावनी के तट के किनारे चलने के वाबजूद जल नहीं पी सकते है। लग रहा था कि कहीं बरसात का मटमैला पानी बीमार न कर दे।
कुछ दूर बसा एक गांव दिखाई दिया ।हम उसकी ओर बढ़ गए। प्यास बर्दास्त से बाहर होती जा रही थी। गांव में घुसते ही छप्पर की बस्ती दिखाई दी।कुछ खपरैल के मकान भी थे। यहां जगह -जगह बरसात का पानी जमा था। उसमें सुअर पड़ेआराम कर रहे थे। लगा कि वाल्मीकियों का मुहल्ला है। एक जगह नल दिखाई दिया। उसके चारों ओर भी बेइंतहा गंदगी पसरी थी। पर प्यास ने सब कुछ भुला दिया।जगह - जगह पसरी गदंगी,उससे उठती बदबू का ध्यान छोड़ हमने बढ़कर जमकर पानी पिया। रुक- रुक कर दो तीन बार पानी पीने के बाद तृप्त हो पाएं ।कुछ जान में जान आई।तब आगे बढ़े।
अशोक मधुप