Sunday, January 21, 2024

कुर्अतुल ऐन हैदर का भारत

  कुर्अतुल ऐन हैदर का भारत 

अशोक मधुप

कुर्अतुल ऐन हैदर उर्फ  एनी आपा पूरी दुनिया घूमीं पर मन भारत में ही रमा।आग का दरिया’ उनका सबसे चर्चित उपन्यास है। इसे आजादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था। आग का दरिया एक ऐतिहासिक उपन्यास है। यह चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से लेकर 1947 के बंटवारे तक भारत और पाकिस्तान की कहानी सुनाता है।उपन्यास के तीनों युग के पात्र गौतम और चंपा की एक ही इच्छा है काशी पंहुचना।  उनकी एक ही तमन्ना  है कि काशी उनके सपनों का  नगर बने। आनन्द  नगर बने।काश कुर्अतुल ऐन हैदर  या उनके उपन्यास  के    पात्र गौतम और चंपा  आज  जिंदा होते, वे आज काशी जाते  तो देखते प्रदेश और केंद्र सरकार  ने इस नगर को आज उनके सपनों का नगर बना दिया।

आज 20 जनवरी कुर्अतुल ऐन हैदर (एनी आपा) का जन्मदिन है। उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में लिखा। किंतु इससे पहले उन्होंने वेदभाष्यभारतीय दर्शन को पढ़ा ही नही गुना भी। उसे ही उन्होंने अपनी रचनाओं में जगह दी। उनके विश्व प्रसिद्ध उपन्यास आग के दरिया में तो पूरा भारत का जीवन दर्शन है। इसमें उन्होंने भारत की तीन हजार साल की तहजीबरहन−सहनकलासंस्कृति और दर्शन को उतारा।

आग का दरिया’ उनका सबसे चर्चित उपन्यास है। इसे आजादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास माना गया था। आग का दरिया एक ऐतिहासिक उपन्यास है। यह चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से लेकर 1947 के बंटवारे तक भारत और पाकिस्तान की कहानी सुनाता है।

पुस्तक के अनुवादक नंद किशोर विक्रम कहते हैं कि आग का दरिया की कहानी बौद्ध धर्म के उत्थान और ब्राह्मणत्व पतन से शुरू होती है। ये तीन काल में विभाजित हैकिंतु इसके पात्र गौतमचंपाहरिशंकर और निर्मला तीनों काल में मौजूद रहते हैं कहानी बौद्धमत और ब्राह्मणत्व के टकराव से शुरूकांग्रेस और मुस्लिम लीग के टकराव तक पंहुचती है। उपन्यास देश के विभाजन की त्रासदी पर समाप्त होता है। तीनों युग के पात्र गौतम और चंपा की एक ही इच्छा है काशी पंहुचना। उपन्यास के कुछ दृश्य

− लो चम्पावती तुमने उस दिन कहा था− तुम अपनी तलवार उतार फेंको ,तो तुम मुझे अपने साथ काशी ले चलोगी और मैं काशी पंहुच गया हूं। तुम कहां हो.. यहां तलवार की बात कहां थीं मैं वापिस बनारस जा रही हूं।

−− जानते हो मेरे पुरखों के शहर का क्या नाम है।..

शिवपुरी हांआनन्द नगर। वह भी सचमुच एक न एक दिन आनन्द नगर बनेगामेरे सपनों का शहर। देश के सारे शहरों की तरह। इस देश को दुख या आनन्द का नगर बनाना मेरे हाथ में हैं। यह उपन्यास कुर्तुल एन हैदर ने 1959 में लिखकर पूरा किया। काश वो आज जिंदा होता जो कहतीं बनारस मेरे सपनों का नगर बन गया।

वह कहती हैं कि जब वह बनारस में पढ़ती थी तो कभी दो कौमों के सिद्धांत पर गौर नही किया। काशी की गलियांशिवालय और घाट मेरे भी इतने ही थेजितने मेरी दोस्त लीना भार्गव के। फिर क्या हुआ कि जब मैं बड़ी हुई तो मुझे पता चला कि इन शिवालयों पर मेरा कोई हक नहींक्योंकि मैं माथे पर बिंदी नही लगाती।

− श्रृष्टि के बाहर कोई ईश्वर नही है और ईश्वर के बाहर कोई श्रृष्टि नही है। सत्य और असत्य में कोई अंतर नहींलेकिन इनके ऊपर परम शून्य एक सत्य है।... मुझे इस सन्नाटे से डर लगता है। शून्य सन्नाटाशून्यताजो अंतिम सत्य हैजो शून्य की परिक्लना है।

पिछले तीन सौ साल में इस भक्ति मार्ग का एक खूबसूरत काफिला चल रहा था। इस काफिले में अजमेर के मोइनुद्दीन चिश्तीएटा के अमीर खुसरोंदिल्ली के निजामुद्दीनगुजरात के नरसिंह मेहतावीर भूमि के चंडीदासबिहार की मिथिलापुरी के विद्यादासमहाराष्ट्र के दर्जी नामदेवप्रयाग के रामानन्ददक्षिण के माधव और बल्लभ। बादशाहोंछत्रपति राजाओं के दरबारों और सेनापतियों की दुनिया से निकल कर कमाल ने देखा कि एक अलग दुनिया भी है। इसमें मजदूरनाईकामगार और कारीगर आबाद हैं। यहां पर गुदड़ीवालोंसूफी और संतों का शासन था।.. यहां प्रेम का राज था।

गंगा के किनारे−किनारे आम के बाग में छिपी खानाकहों में−− निर्वाण और फना की खोज में उसने योगियों और सूफियों को मराकबे (चिंतन) और समाधियों में खोए देखा।

..बगदाद का अबुल समद कमालुद्दीन पचास वर्ष इराक से भारत आया थाकोई दूसरा इंसान था। कोई भिन्न व्यक्ति थाजो बालों की लट और दाढ़ी बढ़ाए हाथ में इकतारा लिए वैष्णव गीत अलाप रहा था।

..और ये अवध के वासी हैं जो न कभी दुखी होते हैंन दूसरों को दुखी करते हैंजो हजारों सालों से घाघरा और गोमती के किनारे रहते आए हैं। रामचंद्र के समय में भी यहीं लोग थेशुजाउद्दीन के समय में भी ये ही लोग जिंदा थे,ये किसान और जोगीनागा गुसांईं धूनी रमाए बैठा था।

लेखिका हिंदुत्व की प्रशंसा करती हैं कहती हैं कि यहां हजारों देवी−देवता हैं। आप चाहे जिसे मानो या न मानो। किंतु इस्लाम में ऐसा नहीं हैवहां आपके लिए कोई आजादी नही दी गई है।

..विभाजन पर चंपा कहती है− कमाल। यहां से मुसलमानों के नहीं जाना चाहिए था। क्यों नहीं देखते कि ये तुम्हारा अपना वतन है।

इस उपन्यास की खास बात यह है कि पांच सौ से ज्यादा पेज होने पर भी आदमी एक पढ़ना शुरू करता हैतो पूरा करके ही उठता है। और फिर वह भारतीय वेददर्शनकला संस्क़ृति के बारे में सोचता रहता है।

कुर्अतुल ऐन हैदर का जन्म 20 जनवरी 1927 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। नहटौर के रहने वाले उनके पिता सज्जाद हैदर यलदरम कुर्अतुल ऐन हैदर के जन्म के समय अलीगढ़ विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार थे। पिता सज्जाद हैदर यलदरम खुद उर्दू के अच्छे लेखक थे। कुर्अतुल ऐन की मां नज़र ज़हरा भी उर्दू की लेखिका थी।

कुर्अतुल ऐन हैदर को लिखने का शौक और कला अपने परिवार से ही मिली। उन्होंने छह साल की उम्र से से लिखना शुरू किया। उनकी पहली कहानी बी चुहिया’ बच्चों की पत्रिका फूल में छपी। 17-18 साल की उम्र में 1945 में उनका पहला कहानी संकलन शीशे का घर’ छपा। बचपन में वह कहानियां लिखती थी फिर उपन्यासलघु उपन्याससफरनामें लिखने लगी। कुर्तुल एन हैदर ने लिखा। पूरी उम्र लिखा। जमकर लिखा। निधन की तारीख 21 अगस्त 2007 तक वे लगातार लिखाती रहीं। कुर्अतुल ऐन की प्रारंभिक शिक्षा लालबागलखनऊ से हुई। दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से भी अपनी शिक्षा हासिल की। पिता की मौत और देश के बंटवारे के बाद कुछ समय के लिए वह अपने भाई मुस्तफा के साथ पाकिस्तान चली गई। पाकिस्तान से आगे की पढ़ाई के लिए वे लंदन चली गईं। साहित्य लिखने के अलावा वहां उन्होंने अंग्रेजी में पत्रकारिता भी की। उन्होंने बीबीसी लंदन में काम किया।

1956 में जब वे भारत भ्रमण पर आईं तो उनके वालिद के गहरे दोस्तमौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने उनसे पूछा कि क्या वे भारत आना चाहतीं हैंकुर्रतुल ऐन हैदर के हामी भरने पर उन्होंने कोशिश की और उन्हें वे कामयाब हो गए।वे हिंदुस्तान आ गईं। विज़िटिंग प्रोफेसर के रूप में कैलिफोर्नियाशिकागो और एरीज़ोना विश्वविद्यालय से भी जुड़ी रहीं। काम के सिलसिले में उन्होंने खूब घूमना-फिरना किया। कुर्अतुल ऐन हैदर उर्दू में लिखती और अंग्रेज़ी में पत्रकारिता करती। उन्होंने लगभग बारह उपन्यास और ढेरों कहानियां लिखीं। उनकी प्रमुख कहानियां में पतझड़ की आवाजस्ट्रीट सिंगर ऑफ लखनऊ एंड अदर स्टोरीजरोशनी की रफ्तार जैसी कहानियां शामिल हैं। उन्होंने हाउसिंग सोसायटीआग का दरिया (1959), सफ़ीने- ग़मे दिलआख़िरे- शब के हमसफरकारे जहां दराज है जैसे उपन्यास भी लिखें। आख़िरे- शब के हमसफर के लिए इन्हें 1967 में साहित्य अकादमी और 1989 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें 1984 में पद्मश्री और 1989 में उन्हें पद्मभूषण से पुरस्कृत किया गया। कारे जहां दराज हैके तीन भाग में उनके अपने परिवार का एक हजार साल का इतिहास है।उन्होंने ता-उम्र विवाह नहीं किया. 21 अगस्त 2007 को, 80 वर्ष की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली ।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Wednesday, January 10, 2024

राम मंदिर के माध्यम से हिंदुओं को एकजुट करने का प्रयास


अशोक मधुप

वरिष्ठ  पत्रकार

इस समय  राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा उत्सव की तैयारी चल रहीं हैं।अयोध्या सज रहा है।पूरी दुनिया  इस भव्य आयोजन को निहारने का आतुर है।दुनिया भर में बसे हिंदुओं के लिए यह गौरव का पल है।मुस्लिम काल से अब तक उनके पूर्वक अब तक मंदिर टूटते देखते  आए  हैं।यह हिंदुओं की वह पीढ़ी है  जो विदेशी आक्रांता  द्वारा  अयोध्या में बनाई मश्जिद की जगह मंदिर बनता  देख  रही है। अयोध्या  को सजता निहार रही है।उसे  इंतजार है  उस पल का जब इस मंदिर का 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा  समारोह होगा।इस मंदिर निर्माण  और मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा  समारोह के माध्यम से  विश्व हिंदू परिषद,राष्री  य स्वयं सवेक संघ विश्व के हिंदुओं को  आपस में जोड़ने का प्रयास  कर रहे हैं।  उसका प्रयास  है कि छोटी −मोटी आस्थाओं में फंसे हिंदू राम के नाम पर एक हो।  अलग− अलग जाति और संप्रदाय में बंटे सब हिंदू भगवान राम को अपना आदर्श स्वीकारें। एकजुट रहें।

 आरएसएस और संघ से जुड़े संगठनों ने राम मंदिर के निर्माण को लेकर रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए देशभर में 10 करोड़ से अधिक परिवारों को निमंत्रण देने की योजना बनाई है।  उनका  कहा कि हम भगवान श्रीराम के 14 वर्ष बाद अयोध्या लौटने की खुशी में दिवाली मनाते हैं।  आगामी 22 जनवरी को तो वह दूसरी दीपावली होगी, जब भगवान राम 500 वर्षों के बाद, भारत की स्वतंत्रता की अमृतवेला में अपने जन्म-स्थान पर लौटेंगे। इसलिए, यह आवश्यक है कि विश्व का समस्त हिन्दू समाज इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रत्यक्ष शामिल हो।उनका  कहना है कि सब रामभक्तों को तो उसी दिन अयोध्या नहीं बुलाया जा सकता। इसलिए उनका आह्वान है कि विश्व भर के हिंदू अपने मोहल्ले या गांव के मंदिर को ही अयोध्या मानकर वहां एकत्र हों। वहां की परंपरानुसार पूजा-पाठ, आराधना व अनुष्ठान करें, पूज्य संतों द्वारा दिए गए विजय महामंत्र – “श्रीराम जय राम जय जय राम” का जाप करें तथा अयोध्या के भव्य-दिव्य कार्यक्रम के सीधे प्रसारण को साक्षात देखें। आरती में अपना स्वर मिलाएं। प्रसाद बांटें और इस ऐतिहासिक कार्यक्रम के प्रत्यक्षदर्शी बनकर आनंद मनाएं। विहिप कार्याध्यक्ष ने इस योजना के बारे में कहाकि  कि इसी महीने 5 नवंबर को श्रीराम मंदिर में पूजित अक्षत (पीले चावल) कलश लेकर संगठन की दृष्टि से बने 45 प्रांतों में भेजे जा चुके हैं। तीर्थ क्षेत्र न्यास के आह्वान पर इस अक्षत निमंत्रण को लेकर, विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता अन्य हिंदू संगठनों के साथ मिलकर, 15 जनवरी तक , देश के नगर ग्रामों में, हिंदू परिवारों तक जाएंगे। ऐसा ही कार्यक्रम विदेशों में रहने वाले हिंदुओं के लिए भी आयोजित किया गया है। प्रत्येक परिवार को इस निमंत्रण के साथ भगवान और उनके मंदिर का पूजा में रखने लायक एक चित्र और अन्य आवश्यक जानकारियां भी दी जा  रही है।उनका मानना है  कि अभी तक का आकलन है कि यह आयोजन विश्व भर में पांच लाख से अधिक मन्दिरों में अवश्य होगा और करोड़ों हिंदू इसमें शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि पिछले 100 वर्षों में इस तरह का इतना बड़ा आयोजन नहीं हुआ होगा। विहिप का कहना है  कि इस बार विहिप समाज के पास कुछ मांगने नहीं जा रहा है इसलिए इस कार्य में जुटी टोलियां या कार्यकर्ता कोई भी भेंट, दान या अन्य सामग्री स्वीकार नहीं करेंगे।

विहिप ने  यह भी कहा कि 1984 से चले मुक्ति अभियान में लाखों हिंदुओं की सहभागिता रही है। अनेक मुक्ति योद्धा बलिदान भी हुए हैं या अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके भी परिवार, उनके स्वप्न की इस पूर्ति को देखना चाहते हैं। विहिप ने देश को 45 भागों में बांटकर प्रत्येक भाग के लिए 27 जनवरी से 22 फरवरी के बीच में उस भाग के लिए निश्चित दिन अयोध्या पधारने का निवेदन किया है। ऐसे लगभग एक लाख लोगों के दर्शनों की व्यवस्था की गई है।विहिप  ने यह भी आह्वान किया कि 22 जनवरी की पुण्यरात्रि को प्रत्येक हिंदू परिवार कम से कम पांच  दीपक अवश्य जलाए और उसके बाद किसी भी दिवस को सपरिवार, ईष्ट-मित्रों सहित अयोध्या दर्शन हेतु पधारें। विश्व हिंदू परिषद को विश्वास है कि भगवान राम का यह मंदिर विश्व में हिंदुओं में समरसता, एकत्व व आत्मगौरव का संचार करेगा और भारत को परम वैभव की ओर ले जाने के लिए एक राष्ट्र मंदिर बन कर उभरेगा।

इसी के अनुपालन में विहप और  संघ के कार्यकर्ता ढोलक घंटे और घडियाल बजाते, राम भजन गाते घर −घर जा  रहे हैं।उन्हें राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा  समारोह के निमंत्रण के लिए पीले चावल और निमंत्रण पत्रक भेंट कर रहे हैं।  उनसे कह रहे है कि 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा  के लिए  अपने घर और आसपास के मंदिर को संजाए।  दीप  जलांए। दीपावली मनांए। राम मंदिर प्राण  प्रतिष्ठा समारोह का लाइव प्रसारण देखें। इन कार्यकर्ताओं को आदेश है कि यह कार्य वाल्मीकि , दलित और आदिवासी बस्ती से प्रांरभ करें। प्रत्येक हिंदू  के घर जाए।  उन्हें आमंत्रण  दें। ऐसा ही हो  रहा है।

भगवान राम ने  उत्तर से दक्षिण तक पूरे देश को एक जुट करने  का बड़ा   कार्य किया था।  सीताहरण के बाद उत्तर से लेकर दक्षिण तक के सर्व समाज को अपने  साथ जोड़ा था। दक्षिण के आदिवासी,वनवासी ,पिछड़े गुफाओं में रहने वाले  भील   आदि को  अपने  साथ लिया था। उन्होंने देश को एकीकरण के लिए बड़ा  काम किया किंतु कुछ हिंदुओं के  के प्रयास  से वह आगे नही चला।  हमने राम के साथ युद्ध के साथी रहे आदिवासी, वनवासी ,भील और अन्यों का बंदर, भालू कहकर उपहास उड़ाया। उन्हें समानता और बराबरी का दर्जा नही दिया। काश भगवान राम का मन्तव्य  समझकर उसे आगे बढ़ाया गया होता तो  देश उत्तर दक्षिण, में ना बंटा होता।

उस पुरानी गलती को विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अब दूर करने  में लगा  हैं।  राम मंदिर के  लिए सभी  ने बलिदान दिया  है, चाहे वह सिख हो, जैन हो या बौद्ध,  वाल्मिकी हो या दलित। भगवान राम सभी हिंदुओं के आदर्श और पूज्य रहे हैं।  सबके मन मे  उनके लिए आस्थाएं हैं। विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  इन आस्थाओं को उभार कर हिंदू  समाज को एकजुट कर रहा है। उन्हें एक मंच  पर ला रहा है।

ढांचा  गिरने के बाद से  बहुत ने राम मदिर निर्माण के लिए  सकल्प लिए थे। कोई  नंगे पांव  रह रहा था तो किसी ने अपने  बाल नही कटाए थे।झारखंड की एक महिला तभी से मौनवृत पर हैं। बहुतों के अपने वृत और अपने− अपने संकल्प है।  अब  सबके वृत औंर संकल्प पूरे  होने का  दिन नजदीक है। ऐसे में सब प्रसन्न हैं। 22 जनवरी को राम मंदिर  प्राण प्रतिष्ठा के बाद वह सब अपने− अपने  संक्ल्प को विदा कहेंगे।

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूरी  दुनिया में उत्साह है। अमेरिका के टाइम्स स्कवायर में राम मंदिर  के प्राण  प्रतिष्ठा समारोह  के लाइव प्रसारण की व्यवस्था की गई है।अमेरिकी समुदाय के हिंदुओं   ने राम मंदिर के लिए हयूटन में कार रैली निकाली। पूरी दुनिया के हिंदुओं में उत्साह का माहौल है। सब राम मंदिर से जुड़े नजर आ रहे हैं। आज राम और हनुमान को  जानने की लोगों में इतनी  उत्सुकता  है कि हिंदुओं की धार्मिक पुस्तक छापने वाली गीता प्रेस इतनी पुस्तक नही छाप पा रहा , जितनी  मांग है राम चरित्र मानस की तीन माह में 5.27 लाख प्रति विभिन्न भाषांओं में छपी। हनुमान चालिसा की 13.50  लाख  प्रतियां छपी। सब बिक गईं। मामूली प्रतियों ही  बची है।आरती संग्रह की तीन लाख प्रतियों की मांग है। गीता  प्रेस  मांग के अनुरूप पुस्तके नही छाप पा रहा।  उसने हाथ खड़े कर दिए। 

प्रदेश सरकारें  इस अवसर को और भव्य  बनाने में लगी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में में 22 जनवरी को शिक्षण संस्थाएं और   शराब की दुकान बंद करने के निर्देश  दे दिए हैं।  इसी तरह के निर्देश और जगह भी  होने की सूचनांए  हैं। अयोध्या  आकर राम जन्म भूमि के दर्शन का हिंदुओं में भारी  उत्साह है।22 के लिए पहले ही होटल और धर्मशालाएं बुक हो गए थे,किंतु 22 को वीवीआईपी के आगमन को और उनकी सुरक्षा को  देखते हुए ये  रिजर्वेशन कैंसिल कर दिए गए हैं।उम्मीद है कि 22 को 100  से ज्यादा विमान अयोध्या  आएंगे।अयोध्या दुनिया भर के हिंदुओं का जल्दी ही भव्य  तीर्थ बनेगा, ऐसी उम्मीद है।उम्मीद है कि यहां बना अंतरराष्ट्रीय  एयरपोर्ट जल्द ही विश्व के व्यस्ततम एयरपोर्ट में शामिल हो  जाएगा। ये भी  उम्मीद है कि विहिप और राष्ट्रीय स्वयं  सेवक संघ सभी  हिंदुओं को राम  मंदिर और राम आस्था  से जोड़ने में सफल हो  जाएंगे।  


अशोक मधुप


( लेखक वरिष्ठ  पत्रकार  हैं)

Thursday, January 4, 2024

अब ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं प्रवासी भारतीय