Friday, March 11, 2022

हरसुख लाल लोहिया

अशोक मधुप किसी के यहां बेटी की शादी हो। बारात घर पर आई हुई हो, ऐसी हालत में क्या कोई बारात के लिए तैयार खाना किसी अनजान व्यक्तियों को खिला सकता है। कल्पना भी नहीं होती, किंतु एक भामाशाह ने ऐसा किया। 1857 की क्रांति के समय उनके शहर से अंग्रेज फोज के विद्रोही जवान की टुकड़ी जा रही था।उन्हें पता चला। घर से भागकर शहर के बाहर सड़क पर पंहुचे।इन जवानों को रोका । अपने साथ घर चल कर भोजन करने का आग्रह किया।उन सबको सम्मान के साथ अपनी हवेली लिवा लाए। बारातियों को समझा कर खाना खाने से रोका। कहा−यह आजादी के दीवाने हैं। पता नही कब से इन्हें अच्छा भोजन नही मिला।आप भोजन बाद में खा लेना। पहले इन्हें खा लेने दो। अब तो सब व्यवस्थाएं सरलता से हो जाती हैं। एक बात 1857 की उस समय की है ,जब शादी व्याह के लिए एक −एक छोटा मोटा सामान सब परिवार को एकत्र करना पड़ता था ।ये घटना है उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के धामपुर नगर की। 1857 की क्रांति के समय उत्तर प्रदेश के धामपुर (बिजनौर)के सेठ हरसुख राय लोहिया हुए हैं।इस जंग ए आजादी के दौरान इनकी बेटी की शादी थी।बारात आई हुई थी।इनकी हवेली में बारात के खाने का प्रबंध था।शानदार व्यवस्था थी।तरह- तरह के भोजन औऱ मिठाई बनी थीं। इन्हें पता चला कि अंग्रेज सेना के भारतीय जवानों का एक दल विद्रोह करके रुड़की से बरेली जा रहा है। शहर से गुजर रहे आजादी के मस्तानों को इन्होंने हाथ जोड़कर रोक लिया।अपनी हवेली ले आये।सबसे कहा- भोजन करो।पता नही कबसे ठीक से खाना नहीं मिला होगा।बारातियों को भी हाथ जोड़ें।कहा -कुछ देर रुक जाए।इनके बाद आप जीम लेना। ये नजारा देख बाराती भी क्रांतिकारी जवानों की सेवा में लग गये। कोई दाल परोसने लगा।कोई चावल। कोई मिठाई देने में लग गया।सूचना पर शहरवासी भागकर इनकी हवेली आने लगे। वह भी ये नजारा देखकर भाव विभोर हो गए। वे सब भी इन क्रांतिकारियों की सेवा श्रुवा में लग गए।शहरवासी भी जवानों के लिए अपने घर से कुछ न कुछ लेकर आये।काफी राशन एकत्र करके इन्हें सौंपा।ताकि इन्हें रास्ते में भोजन की कमी न रहे। इन वीरों का बारात से बड़ा स्वागत हुआ।क्या नजारा होगा। ऐसे देशभक्त भामाशाह हरसुख राय लोहिया को आज धामपुर में कोई जानता भी।धामपुर में पूरा लोहियों का मुहल्ला है लोहियान। किसी को कुछ पता नहीं।हो सकता है अंग्रेजों ने पूरे परिवार का कत्ल कर दिया हो। 1857 की क्रांति के समय बिजनौर में तैनात रहे सदर अमीन सर सैयद ने उस समय की घटनाओं की डायरी लिखी। नाम दिया सरकशे बिजनौर। वे कहते हैं कि सैपर्स एंड माइनर्स की एक कंपनी के तीन सौ जवान विद्रोही हो गए।इन्हें सहारनपुर में कमांडर-इन-चीफ के शिविर में शामिल होने के लिए भेजा गया था, पर ये रुड़की लौट आई। वहां से बरेली के लिए चले। 20 मई को इन्होंने नजीबाबाद में नवाब महमूद को बागवत के लिए तैयार किया।खुद बरेली के लिए निकल गए। विभिन्न सूत्रों से मिल रही सूचनाओं से नगीना प्रशासन सचेत था। तहसील कार्यालय का दरवाजा बंद था, लेकिन खिड़की खुली रह गई। अचानक तीन सिपाही खिड़की के रास्ते तहसील कार्यालय में घुसे । तहसीलदार से सामान की मांग की। इसी दौरान कई अन्य जवानों ने तहसील कार्यालय में घुसकर तहसीलदार को संगीनों से घेर लिया। उसे जबरदस्ती दरबार की इमारत में ले गए। उन्होंने बंदूक की बटमार कर संदूक तोड़ दिए और खजाने को लूटने के लिए ताला तोड़ दिया। इस दौरान तहसीलदार व पुलिस उपायुक्त एक घर में छिपने के लिए फरार हो गए। जब सिपाही उनके पीछे आए, तो वे थोड़े समय के लिए शहर से चले गए। बादमें वे दूसरे रास्ते से दूसरे स्थान पर छिपने के लिए वापस आ गए। उन्होंने कलेक्टर को रिपोर्ट भेजी है। तहसीलदार के प्रभाव को लूटने और बाजार में तोड़फोड़ करने के लिए शहर के कई शरारती सैनिकों में शामिल हो गए थे। इन्होंने एक बहुत धनी व्यक्ति भगीरथ को भी लूट लिया। । इन्होंने तहसील में खजाने में जमा 10344 रूपये और 14 आना लूट लिए। नगीना के बाद सैपर एंड माइनर कंपनी के सोल्जर्स धामपुर पंहुचे।उसकी खबर पहले धामपुर पहुंच चुकी थी। तहसीलदार ने अपना कार्यालय बंद कर दिया था, जबकि उसके आदमी अंदर अलर्ट पर थे। सर सैयद कहतें हैं कि गनीमत यह भी रही कि आज ही के दिन हर सुख राय लोहिया के घर लड़की की बारात आई हुई थी। उसने बारात के लिए तैयार खाना उत्तम मिठाइयाँ इन जवानों को बड़े प्यार से खिलाईं। । नगरवासियों ने उन्हें राशन भी दिया। सैनिकों ने वहां कोई परेशानी नहीं की और मुरादाबाद के लिए रवाना हो गए। सर सैयद ने यह नही लिखा कि अंग्रेजों ने वापास जनपद पर कब्जा करने के बाद हरसुख लाला लोहिया पर क्या कार्र्वाई की। जबकि विद्रोही जवानों को भोजन कराना बड़ा अपराध था। धामपुर के रहने वालों ने भी इस महान आत्मा का पता लगाने का प्रयास नही किया कि उनका क्या हुआॽ हो सकता है कि अग्रेज ने इन्हें फांसी दे दी हो। अंग्रेज के जिले पर कब्जा होने के बाद सरकारी जुल्म के डर से ये ही शहर छोड़कर चले गए हों। अशोक मधुप (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Thursday, March 10, 2022

आपरेशन गंगा और सीनियर सिटीजन का अहसास

−−−−−− यूक्रेन में फंसे छात्रों में 18400 आसपास भारतीय छात्र अब तक स्वदेश वापिस आ गए। उम्मीद है कि वहां बचे बाकी भारतीय छात्र भी जल्दी ही वापिस आ जाएंगे।भारत ने यूक्रेन में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों को वापिस लाने के अभियान को आपरेशन गंगा नाम दिया। यूक्रेन से भारतीयों को निकालने के अभियान की मानीटरिंग स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। उन्होंने इसमें केंद्र के चार मंत्रियों को लगाया गया। यूक्रेन की सीमा से सटे चार देश और 19 हजार के आसपास भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकालना देश के सामने एक बड़ी चुनौती थी । इन मंत्रियों को इन चार अलग− अलग देशों में भेजा गया ताकि वह वहां की सरकार से समन्वय बनाकर सही से आपरेशन को कामयाब कर सकें। इन सबकी मेहनत , मिला −जुला प्रयास रंग लाया। 22 फरवरी, 2022 को अभियान प्रारंभ हुआ। अब तक 18400 के लगभग छात्र यूक्रेन से लाए गए। इस अभियान में वायुसेना को भी लगाया गया। सूमी में फंसे 680 वे छात्र भी बसों से लेकर सीमा तक ले आये गए जो वीडियो जारी कर उन्हें न निकालने के लिए भारतीय दुतावास को जिम्मेदार बता रहे थे। वह कह रहे थे कि उन्हें कुछ हो गया तो यूक्रेन का भारतीय दूतावास जिम्मेदार होगा।इसी दूतावास ने उन्हें निकालने की जिम्मेदारी उठाई , जिसे ये कोस रहे थे। वैसे तो यूक्रेन में कई देशों के नागरिक फंसे हैं ,लेकिन अपने लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए भारत ने दुनिया का सबसे तेज ऑपरेशन चलाया।अपने नागरिक और वहां फंसे छात्रों को बाहर निकाला। आपरेशन की कामयाबी यह है कि युद्ध के बीच ये छात्र सुरक्षित देश लौटे। एक छात्र का ही जान गवांनी पड़ी। इस अभियान की खास बात यह रहीं कि युद्धरत रूस और यूक्रेन ने तिरंगा लगी बसों को सेफ पैसेज दिया गया। खबर तो यहां तक आई कि भारतीयों की सुरक्षित निकासी के लिए रूसी सेना की तरफ से छह घंटे हमले भी रोक दिए गए थे। इस अभियान की खास बात यह है कि भारत सरकार ऑपरेशन का पूरा खर्च खुद वहन कर रही है। छात्रों को यूक्रेन से निकालकर लाने, दूसरे सीमावर्ती देश में उनके रहने और खाने आदि की व्यवस्था करना सरल काम नही था, किंतु केंद्र सरकार के दृढ़ संकल्प के कारण यह हो सका। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि यूक्रेन में फंसे एक− ए छात्र को निकालकर लाया जाएगा। एक छात्र के भी यूक्रेन में रहने तक आपरेशन जारी रहेगा। इस आपरेशन और भारत सरकार की कार्रवाई की पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है। पर यूक्रेन में पढ़ने गए छात्र और उनके अभिभावकों के बयान पीड़ादायक रहे। एक छात्रा की मांग थी कि उसे मुंबई से दिल्ली अपने पैसे से आना पड़ा। सरकार यह पैसा उसे दे, क्योंकि यह छात्रों को निशुल्क लाने का दावाकर रही है। एक अभिभावक ने कहा कि उसने 50 लाख रूपये कर्ज लेकर बेटे को पढ़ने भेजा था, अब क्या होगा। उनका मन्तव्य रहा कि सरकार यह पैसा भी उसे दे। किसी की शर्त थी, कि वह भारत आएगा तो अपने पालतू कुत्ते के साथ तो किसी की जिद थी कि उसे अपनी पालतू बिल्ली लेकर प्लेन में नहीं आने दिया जा रहा। आज सुबह मैं रोज की तरह घूमने पार्क में पहुंचा तो वहां कुछ सीनियर सिटीजन में रोज की तरह जोरदार बहस चल रही थी। आज का बहस का मुद्दा भारत सरकार का आपरेशन गंगा ही था।एक का कहना था कि भारत के नागरिक हैं , विपरीत परिस्थिति में उन्हें वापस लाने की जिम्मेदारी देश ही है, किंतु देश उनके आने और आने की व्यवस्था का खर्च क्यों उठाए। ये छात्र वहां समाज सेवा करने नहीं गए थे। वहां से लौटकर भी समाज सेवा नहीं करेंगे। योग्य भी नही थे। योग्य होते तो देश के मेडिकल काँलेजों में प्रवेश मिल जाता। मां बाप ने पैसे के बल पर उन्हें यूक्रेन डाक्टर बनाने भेजा था।अब वहां से उल्टी −सीधी डाक्टरी पढ़कर अपना अस्पताल चलांएगे।मरीज देखने की मोटी फीस लेंगे। अपने मोटे कमीशन के लिए उल्टे −सीधे टैस्ट करांएगे । दवाई भी कमीशन वाली लिखेंगे। जिस तरह से बस चलेगा मरीज के परिवार को लूटेंगे।इनपर क्यों सरकारी पैसा लुटाया जा रहा हैॽ एक का कहना था कि ये पैसा देश के टैक्स पैयर ( टैक्स देने वाले नागरिक )का है। सरकार का नही कि खैरात बांट दे । ये कहीं और देश की जरूरत पर लगाया जा सकता था । एक अन्य की राय थी कि आज चीन के आक्रामक रूख को देखते हुए सेना के संसाधान बढाने,उसे आधुनिक शास्त्रों की खरीद पर खर्च होना चाहिए था।फालतू के लिए टैक्सदाताओं की खून पसीने की कमाई का खरबों रूपया इन पर बर्बाद कर दिया। एक ने कहा कि यह तो जीवन के खतरे हैं। चुरू का एक व्यापारी छह माह पूर्व आठ लाख रूपये लेकर यूक्रेन गया था। युद्ध के हालात में सब छोड़कर भागना पडा, फिर तो सरकार उसके भी नुकसान की भरपाई करे।एक अन्य ने यूक्रेन से भारत लौटी उसे बेटी के अभिभावकों की प्रशंसा की जिन्होंने बेटी के भारत आने पर उसके के किराये के 32 हजार रूपया प्रधानमंत्री और मुख्य मंत्री कोष में जमाकर दिया। बहस में शामिल सबने इस बिटिया के अभिभावकों की प्रशंसा की। उनके लिए ताली बजाईं।कहा कि अन्य छात्र− छात्राओं के अभिभावकों को इस तरह की जिम्मेदारी का परिचय देना चाहिए। एक व्यक्ति ने इसी को लेकर वायरल हो रहा एक युवती का वीडियो सबको सुनाया।इसमें भी कुछ ऐसा ही है कहा गया जो आज बहस में कहा जा रहा था।सबने इस वीडियो की तारीफ की। सबने इन छात्र और अभिभावकों के रवैये की आलोचना की ।मांग की कि सरकार इन छात्रों पर व्यय हुआ पैसा इनके परिवार से वसूल करें। देर होती देख मैंने बहस बीच में ही छोड़ खिसकना बेहतर समझा।वैसे इन सीनियर सिटीजन की बात मुझे तो सही सी लगी,आप क्या महसूस करते हैं ये आप पर निर्भर हैॽ अशोक मधुप (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) %%% ये मेरा लेखा10 मार्च् के देश रोजाना और 9 मार्च के प्रभासाक्षाी ने प्रकाशाित किया।