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Saturday, September 23, 2023
आर्य विद्वान डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती)
Thursday, September 21, 2023
नही रहे जाने माने चित्रकार सुशील वत्स
Thursday, September 14, 2023
हिंदी पर दोहे
हिंदी अपनी है सखे,
अपना हिंदुस्तान,
Wednesday, September 13, 2023
हिंदी दिवस पर विदेशों में बसे भारतीय परिवार घरों में तो हिंदी में ही बोलते हैं
आज हिंदी दिवस है। हिंदी भाषी अपने –अपने स्तर से हिंदी को बढ़ाने और बचाए रखने में लगे हैं। विदेशों में काम करने वाले भारतीय परिवार अपने घर में हिंदी को जिंदा रखे हैं। भले ही उनकी
कामकाज और घर बाहर की बोलचाल की भाषा अंग्रेजी हो किंतु घर में तो हिंदी में ही बातचीत होती है।
तीन बार छह− छह माह के लिए मैं अमेरिका में बड़े बेटे अंशुल के पास रहा । अंशुल यहां पिछले लगभग 15 साल से रह रहा है।यहां अमेरिका में पैदा हुई अंशु और उसकी पत्नी शिल्पी के पास तीन बेटियां हैं। ऐसे ही लाखों भारतीय परिवार अमेरिका बसे हैं। यहां बसे इन भारतीय परिवार की कामकाज की भाषा अंग्रेजी है । घर से बाहर की भाषा अंग्रेजी है। बाजार की भाषा अंग्रेजी है । बच्चों के स्कूल की भाषा अंग्रेजी है, इसके बावजूद इनके घर की भाषा हिंदी है।ये खुद घर में हिंदी बोलते हैं,बच्चों को हिंदी बुलवाते भी हैं। उन्हें हिंदी सिखाते हैं।इनमें से अधिकतर बच्चे हिंदी पढ़ नही पाते। कुछ परिवार जरूर बच्चों को घर पर हिंदी पढ़ा रहे हैं।
अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की दोस्ती प्रायःअपने ही भारतीयों से हैं।यहां बसे अंग्रेज और अफ्रि
रिश्ते हैं। जन्मदिन की पार्टी या शादी की वर्षगांठ के अवसर पर ये आपस के सर्किल के भारतीय परिवार ही मिलते हैं । मिलते हैं तो आपस में हिंदी में ही बात करते हैं।पंजाबी ,बंगाली या मराठी मूल के परिवार तो घर में पंजाबी, बंगाली या मराठी में आपस में बात करते हैं किंतु ये भारतीय परिवार जब आपस में मिलते हैं तो हिंदी में ही ज्यादा बोलते और बात करते हैं।अमेरिका ही नही,दुनिया में जहां− जहां भारतीय हैं,उनके परिवार की घर की बोलचाल की भाषा हिंदी ही है।
त्यौहार पर भारतीय परिधान शान से पहले जाते हैं। युवक कुर्ता − पायजामा और युवतियां साड़ी पहनती हैं।यहां मंदिर हैं। भारतीय हिंदू परिवार मंदिर जाते हैं। मंदिर ये लोग ज्यादातर भारतीय परिधान कुर्ता −पायजामा महिलांए साड़ी या भारतीय सूट पहनकर जाना पसंद करती हैं।मंदिर की बोलचाल की भाषा भी प्रायः हिंदी ही है। मंदिर के पुजारी विद्वान हैं। उनका संस्कृत का तो उच्चारण तो बढ़िया है ही ,हिंदी भी बढ़िया बोलते हैं।तबियत खराब होने पर पिछली बार अंशुल ने मुझे अमेरिका में डाक्टर का दिखाया। अंशुल ने मेरी परेशानी अंग्रेजी में डाक्टर को बता रहा था। इसके बावजूद डाक्टर से अपनी कंपनी के हिंदी – अंग्रेजी ट्रांसलेटर को स्पीकर आन कर फोन पर लिया। ट्ररंसलेटर उनकी बात सुन मुझे हिंदी में बताता। मेरे उत्तर को अंग्रेजी में अनुवाद कर डाक्टर को । पूरी तरह से मेरी जानकारी से संतुष्ठ होने पर ही डाक्टर ने मुझे दवा दी।
दुबई तो लगता ही हिंदीभाषियों का देश है।वहां चाहे भारतीय हो, बंगलादेशी हो या पाकिस्तानी सब हिंदी बोलते मिलेंगे। उनकी बोलचाल से नहीलगता कि वे भारतीय नही हैं। उनके बताने से पता चलता है कि वे पाकिस्तानी हैं या बंगला देशी।भारत में दक्षिण में हिंदी भाषियों के साथ समस्या आ सकती है। यहां के लोग जानकर हिंदी नही बोलते , किंतु दुबई में ऐसा नही है।यहीं हालत नेपाल में भी है।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Monday, September 11, 2023
हिंदुस्तानी गजल से मशहूर हुए दुष्यंत कुमार
आज एक सिंतबर हिंदी साहित्यकार −गजलकार दुष्यंत कुमार का जन्म दिन है। बिजनौर के राजपुर नवादा गांव में एक सिंतबर 1933 में जन्मे दुष्यंत कुमार का मात्र 43 वर्ष की आयु में 30 दिसंबर 1975 को भोपाल में उनका निधन हुआ।
हिंदी साहित्यकार −गजलकार दुष्यंत कुमार हिंदी गजल के लिए जाने जाते हैं। वे हिंदी गजल के लिए विख्यात है किंतु उन्हें यह ख्याति हिंदी गजलों के लिए नहीं ,
हिंदुस्तानी गजलों के लिए मिली। संसद से सड़क तब मशहूर हुए उनके शेर हिंदुस्तानी हिंदी में हैं। हिंदुस्तानी हिंदी में उन्होंने सभी प्रचलित शब्दों को इस्तमाल किया। शब्दों को प्रचलित रूप में इस्तमाल किया।
वे अपनी पुस्तक “साए में धूप“ की भूमिका में खुद कहते हैं “ ग़ज़लों को भूमिका की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए; लेकिन,एक कैफ़ियत इनकी भाषा के बारे में ज़रूरी है। कुछ उर्दू—दाँ दोस्तों ने कुछ उर्दू शब्दों के प्रयोग पर एतराज़ किया है .उनका कहना है कि शब्द ‘शहर’ नहीं ‘शह्र’ होता है, ’वज़न’ नहीं ‘वज़्न’ होता है।
—कि मैं उर्दू नहीं जानता, लेकिन इन शब्दों का प्रयोग यहाँ अज्ञानतावश नहीं, जानबूझकर किया गया है।
यह कोई मुश्किल काम नहीं था कि ’शहर’ की जगह ‘नगर’ लिखकर इस दोष से मुक्ति पा लूँ,किंतु मैंने उर्दू शब्दों को उस रूप में इस्तेमाल किया है,जिस रूप में वे हिन्दी में
घुल−मिल गये हैं। उर्दू का ‘शह्र’ हिन्दी में ‘शहर’ लिखा और बोला जाता है ।ठीक उसी तरह जैसे हिन्दी का ‘ब्राह्मण’ उर्दू में ‘बिरहमन’ होगया है और ‘ॠतु’ ‘रुत’ हो गई है।
—कि उर्दू और हिन्दी अपने—अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के बीच आती हैं तो उनमें फ़र्क़ कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। मेरी नीयत और कोशिश यही रही है कि इन दोनों भाषाओं को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब ला सकूँ। इसलिए ये ग़ज़लें उस भाषा में लिखी गई हैं जिसे मैं बोलता हूँ।
—कि ग़ज़ल की विधा बहुत पुरानी,किंतु विधा है,जिसमें बड़े—बड़े उर्दू महारथियों ने काव्य—रचना की है।
हिन्दी में भी महाकवि निराला से लेकर आज के गीतकारों और नये कवियों तक अनेक कवियों ने इस विधा को आज़माया है।”
ग़ज़ल पर्शियन और अरबी से उर्दू में आयी। ग़ज़ल का मतलब हैं औरतों से अथवा औरतों के बारे में बातचीत करना। यह भी कहा जा सकता हैं कि ग़ज़ल का सर्वसाधारण अर्थ हैं माशूक से बातचीत का माध्यम। उर्दू के साहित्यकार स्वर्गीय रघुपति सहाय ‘फिराक’ गोरखपुरी ने ग़ज़ल की भावपूर्ण परिभाषा लिखी हैं। कहते हैं कि, ‘जब कोई शिकारीजंगल में कुत्तों के साथ हिरन का
पीछा करता हैं और हिरन भागते −भागते किसी ऐसी झाड़ी में फंस जाता हैं जहां से वह निकल नहीं सकता,
उस समय उसके कंठ से एक दर्द भरी आवाज़ निकलती हैं। उसी करूण स्वर को ग़ज़ल कहते हैं। इसीलिये विवशता का दिव्यतम रूप में प्रगट होना, स्वर का करूणतम हो जाना ही ग़ज़ल का आदर्श हैं’।
दुष्यंत की गजलों की खूबी है साधारण बोलचाल के शब्दों का प्रयोग, हिंदी− उर्दू के घुले मिले शब्दों का प्रयोग । चुटीले व्यंग उनकी गजल की खूबी है।वे व्यवस्था और समाज पर चोट करते हैं। ये ही उन्हें सीधे आम आदमी के दिल तक ले जाती है। उनकी
ये शैली उन्हें अन्य कवियों से अलग और लोकप्रिय करती है।
आम आदमी और व्यवस्था पर चोट करने वाले उनके शेर, व्यवस्था पर चोट करते उनके शेर सड़कों से संसद गूंजतें है।1
शायद दुष्यंत कुमार अकेले ऐसे साहित्यकार होंगे , जिसके शेर सबसे ज्यादा बार संसद में पढ़े गए हों। सभाओं में नेताओं ने उनके शेर सुनाकर व्यवस्था पर चोट की हो।सरकार को जगाने और जनचेतना का कार्य किया हो।उन्होंने हिंदी गजल भी लिखी, पर वह इतनी प्रसिद्धि नही पा सकी, जितनी हिंदुस्तानी हिंदी में लिखी गजल लोकप्रिस हुईं।
उनके गुनगुनाए जाने वाले उनके कुछ हिंदुस्तानी हिंदी के शेर हैं−
−वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है,
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है।
−रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारों।−कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता ,
एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारों।
− यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसतें है,खुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा,
−गूँगे निकल पड़े हैं ज़बाँ की तलाश में ,
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए।−पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं,
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं ।आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है ,
पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं।
इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो,
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं ।
−सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी ,
इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है ।
−ये जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,मै सज्दे में नही था, आपको धोखा हुआ होगा।
−तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए,
छोटी—छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं।
−हम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत
तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठा कर फेंक दीं।
गजलहो गई है पीर पर्वत सी पिंघलनी चाहिए,अब हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
भारत की बड़ी कामयाबी है'जी20' शिखर सम्मलेन की सफलता
भारत की बड़ी कामयाबी है'जी20' शिखर सम्मलेन की सफलता
शंकाओं और आशकांओं के बीच 'जी20' शिखर सम्मलेन सफलता के साथ संपन्न हो गया। जी20 में 'नई दिल्ली डिक्लेरेशन' का स्वीकार होना, यह कूटनीतिक मोर्चे पर भारत की बड़ी जीत है। जी 20 में सभी महाशक्तियां शामिल हैं। उनकी मौजूदगी में भारत द्वारा सहमति का रास्ता निकालना भारत की बड़ी कामयाबी है। अफ्रीकन यूनियन को जी20 में शामिल कराना भी भारत की बडी सफलता है ।अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और जापान ने भी 'एयू' को स्थायी सदस्य बनाने के मामले में बाधा खड़ी नहीं की।भारत की छवि खराब करने का प्रयास कर रहे आंतकवादी दिल्ली की सुदृढ सुरक्षा देख कुछ नही कर पाए। मेट्रो स्टेशन पर रात के अंधेरे में खालिस्तान के समर्थन में चोरी छिपे कुछ नारे ही लिखे जा सके। मुंबई और दिल्ली की संसद में घुंसकर हमला करने वाले आतंकी अब ऐसी घटना करने की सोच भी नही पा रहे। शनिवार को 'जी20' शिखर सम्मलेन के पहले दिन जब 'नई दिल्ली डिक्लेरेशन' के स्वीकार होने की घोषणा हुई, तो सम्मेलन को कवर करने आए सारे पत्रकार आश्चर्य चकित रह गए। एक− दो ने तो यहां तक कह दिया कि अब दूसरे दिन के कायर्क्रम कवर के लिए रूकना बेकार है। किसी को यह उम्मीद नही थी कि घोषणापत्र सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया जाएगा। जी20 घोषणापत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसके सभी 83 पैराग्राफ चीन और रूस के साथ 100 प्रतिशत सर्वसम्मति से पारित किए गए थे। यह पहली दफा था कि घोषणा में कोई नोट या अध्यक्ष का सारांश शामिल नहीं था।विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने पत्रकारों का बताया कि 'गत वर्ष इंडोनेशिया में हुए सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन ने पीएम मोदी से आग्रह किया था कि उसे भी समूह का सदस्य बनाया जाए। इस पर पीएम मोदी ने उन्हें गारंटी दी थी कि वे अफ़्रीकन यूनियन को जी20 का सदस्य बनवाएंगे। अब पीएम मोदी ने वह गारंटी पूरी कर दी है। जानकारों का कहना है, 'एयू' को जी20 की स्थायी सदस्यता दिलाना आसान नहीं था। इस बाबत रूस और चीन का रूख कुछ अलग था। चीन को 'जी20' का विस्तार पसंद नहीं था। वजह, इससे ग्लोबल साउथ में उसका कद प्रभावित होता है। करीब एक दशक से चीन का फोकस ऐसे देशों पर रहा है जो अमेरिका, ब्रिटेन या भारत के ज्यादा करीब नहीं हैं। ऐसे देशों को चीन उन समूहों का सदस्य बनवाने की कोशिश कर रहा है, जो उसके प्रभाव में हैं। भारत ने यहीं पर कूटनीतिक दांव चला और एयू (अफ़्रीकन यूनियन )को जी20 का सदस्य बनवा दिया। चीन का प्रयास था कि वह अफ्रीकी संघ के देशों में भारी निवेश के माध्यम से अपने आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति करे।अब इन देशों के जी20 का सदस्य बनने पर अब चीन उन देशों का शोषण करने की साजिश में सफल नहीं हो सकेगा। एयू के 55 देशों के प्राकृतिक संसाधन, चीन के प्रभाव में आने से बच जाएंगे। आंशका थी कि रूस – यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर सर्व सम्मत निर्णय नही हो सकेगा। अमेरिका और यूरोपियन देश चाहेंगे,कि यूक्रेन हमले के लिए रूस को जिम्मेदार माना जाए। इसके लिए उसकी निंदा की जाएं।रूस और चीन का रूख इसके विपरीत होगा। भारत भी नही चाहता कि उसकी भूमि से उसके परंपरागत मित्र के विरूद्ध कोई निदां या उन्य कोई प्रस्ताव पारित न हो। भारत ने घोषणापत्र पर सर्व समर्थन बनाने के लिए पहल से ही काम शुरू कर दिया था। उसके राजनयिक इस पर सहमति बनाने में लगे थे। साझा घोषणा पत्र पर सभी देशों की सहमति इसलिए खास है, क्योंकि नवंबर 2022 में इंडोनेशिया समिट में जारी घोषणा पत्र में रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई थी। तब रूस और चीन ने अपने आप को युद्ध के बारे में की गई टिप्पणियों से अलग कर लिया था। तब घोषणा पत्र के साथ ही इन देशों की लिखित असहमति शामिल की गई थी।डिक्लेरेशन पास होने के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था- सभी देशों ने नई दिल्ली घोषणा पत्र मंजूर किया। उन्होंने माना कि G20 राजनीतिक मुद्दों को डिस्कस करने का प्लेटफॉर्म नहीं है। लिहाजा अर्थव्यवस्था से जुड़े अहम मुद्दों को डिस्कस किया गया। 'नई दिल्ली डिक्लेरेशन' की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसके सभी 83 पैराग्राफ चीन और रूस के साथ 100 प्रतिशत सर्वसम्मति से पारित किए गए थे। यह पहली दफा था कि घोषणा में कोई नोट या अध्यक्ष का सारांश शामिल नहीं था।घोषणापत्र के नौवें पहरे में लिखा था, हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि जी20, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच है। यह समूह भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों को हल करने का मंच नहीं है।हालाँकि हम स्वीकार करते हैं कि इन मुद्दों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण परिणाम हो सकता है। भारत ने यह बात कह कर चीन और रूस, दोनों को संदेश दे दिया। हालांकि चीन का कहीं नाम नहीं लिया। 'नई दिल्ली डिक्लेरेशन' के 13वें पहरे में लिखा है, हम सभी राज्यों से क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को, अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक, बनाए रखने की अपील करते हैं। मानवीय कानून, शांति और स्थिरता की रक्षा करने वाली बहुपक्षीय प्रणाली सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को बनाए रखने का आह्वान करते हैं। विभिन्न देशों के मध्य संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान और संकटों के हल के हल के लिए प्रयास करने के साथ ही कूटनीति और संवाद महत्वपूर्ण हैं। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था पर युद्ध के प्रतिकूल प्रभाव को संबोधित करने के अपने प्रयास में एकजुट होंगे। यूक्रेन में व्यापक एवं न्यायसंगत और टिकाऊ शांति का समर्थन करने वाली सभी प्रासंगिक और रचनात्मक पहलों का स्वागत करेंगे। बशर्ते, ये सभी पहल, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सभी उद्देश्यों और सिद्धांतों को कायम रखें। एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य की भावना से राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण, मैत्रीपूर्ण और अच्छे पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा देना होगा। भारत ने ऐसा कर 'रूस और यूक्रेन' के लिए एक संदेश और जी20 का स्टैंड क्लीयर करदिया।
भारत की जी20 अध्यक्षता की विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने जमकर तारीफ की है। बांगा ने कहा कि भारत ने जी20 की अध्यक्षता में दुनिया के लिए एक नया आयाम तय किया है। उन्होंने इस बात की भी सराहना की कि भारत ने जी20 घोषणापत्र पर सभी देशों की आम सहमति आसानी से बना ली।एक न्यूज एजेंसी से बात करते हुए बंगा ने इस बात पर जोर दिया कि चुनौतियां हमेशा मौजूद रहेंगी, लेकिन भारत ने आम सहमति बनाकर दुनिया को रास्ता दिखाया है। बंगा ने कहा कि हर देश अपना फायदा देखता है, लेकिन मैंने इस सम्मेलन में जो मूड देखा, उससे मैं आशावादी हूं। विश्व बैंक अध्यक्ष ने कहा कि यहां हर देश अपने राष्ट्रीय हितों का ध्यान तो दे रहा था, लेकिन दूसरे के विचारों को भी सुन रहा था। जी20 शिखर सम्मेलन में बारे में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने शनिवार को 'जी20' की बैठक को सफल करार दिया है। दोनों राष्ट्रों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) को लेकर सार्थक नीति बनी है। गत मई में पीएम मोदी, ऑस्ट्रेलिया गए थे। तब भी दोनों देशों ने 'निवेश' की संभावनाएं तलाशी थी।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप शिपिंग और रेलवे कनेक्टिविटी कॉरिडोर की घोषणा को एक बड़ी बात करार देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, अगले दशक में, भागीदार देश निम्न-मध्यम आय वाले देशों में बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करेंगे। बाइडेन ने कहा, मैं प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं। एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य, यही इस जी20 शिखर सम्मेलन का फोकस है। पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (पीजीआईआई) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी व संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़े कनेक्टिविटी एवं बुनियादी ढांचे के विकास में सहयोग पर एक ऐतिहासिक पहल है।
सउदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान ने इकानॉमिक कॉरिडोर की पहल के लिए इसके लिए काम करने वालों को धन्यवाद दिया।यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष, प्रेसीडेंट उर्सुला वॉन डेर लेन ने कहा, अर्थव्यवस्थाओं के इन्फ्रास्ट्रक्चर में इनवेस्टमेंट मिडिल इनकम वाले देशों की जरूरत है। इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकॉनामिक कॉरिडोर, ऐतिहासिक है। यह इंडिया, अरेबियन गल्फ और यूरोप के बीच सीधा संपर्क बनाने वाला है। इसके चलते भारत और यूरोप के बीच व्यापार में 40 प्रतिशत की तेजी आएगी। यह महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच ग्रीन एंड डिजिटल ब्रिज होगा। ट्रांस अफ्रीकन कॉरिडोर, यह घोषणा भी बड़े स्तर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश की पहल है। इसका लाभ सभी सदस्यों को होगा। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, ये एक बहुत महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। सभी सदस्य देश, लंबी अवधि के लिए निवेश करने के प्रतिबद्ध हैं। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने भी इसे एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट करार दिया है। इसमें जर्मनी 3500 मिलियन यूरो का वर्ल्ड बैंक के साथ अतिरिक्त निवेश करेगा।
पीएम मोदी ने समुद्र में केबल के डिजाइन, निर्माण, बिछाने और रखरखाव में क्वाड की सामूहिक विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए 'केबल संचार-संपर्क और सहनीयता के लिए साझेदारी पर बल दिया था। राजनेताओं ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में विकास के बारे में महत्वपूर्ण बातचीत की। एक मुक्त, खुले और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपने दृष्टिकोण के तहत, इन नेताओं ने संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्व को दोहराया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा- हमें चुनौतीपूर्ण समय में अध्यक्षता मिली। G20 का साझा घोषणा पत्र 37 पेज का है। इसमें 83 पैराग्राफ हैं। यहां मुख्य प्रस्तावों यह हैं−सभी देश सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल पर काम करेंगे। भारत की पहल पर वन फ्यूचर अलायंस बनाया जाएगा।प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी देशों को यूएन चार्टर के नियमों के मुताबिक काम करना चाहिए।बायो फ्यूल अलायंस बनाया जाएगा। इसके फाउंडिंग मेंबर भारत, अमेरिका और ब्राजील होंगे।एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य पर जोर दिया जाएगा।मल्टीलेट्रल डेवलपमेंट बैंकिंग को मजबूती दी जाएगी।ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं पर फोकस किया जाएगा।क्रिप्टोकरेंसी पर ग्लोबल पॉलिसी बनाई जाएगी।कर्ज को लेकर बेहतर व्यवस्था बनाने पर भारत ने कॉमन फ्रेमवर्क बनवाने की बात पर जोर दिया है।ग्रीन और लो कार्बन एनर्जी टेक्नोलॉजी पर काम किया जाएगा।सभी देशों ने आतंकवाद के हर रूप की आलोचना की है। चांद के दक्षिण ध्रुव पर कामयाब लैंडिग और भारत का अंतरिक्ष यान के कामयाबी के साथ प्रेक्षण के बाद जी20 शिखर सम्मेलन की सफलता भारत की बड़ी कामयाबी है।कभी सांप और सपेरों का देश कहलाने वाला भारत आज दुनिया के चंद प्रमुख देशों की लाइन में आकर खड़ा हो गया है। पहले नारा दिया गया था इंडियन एंड डॉग्स आर नाट अलाउट। आज सब बदल गया।आज भारत दुनिया का नेतृत्व करने की हालत में है। इस भारत की बडी कामयाबी कहा जाएगा कि भारत द्वारा कही बात अब दुनिया में गंभीरता के साथ सुनी जाती है।
अशोक मधुप
Sunday, September 3, 2023
बिजनौर के इतिहास से गायब हैं क्रांति की मशाल जलाने वाले
बिजनौर के इतिहास से गायब हैं क्रांति की मशाल जलाने वाले
अशोक मधुप
बिजनौर जनपद में 1857 की क्राति में प्रथम आहूति देने वाले जेल के राम स्वरूप जमादार को कोई जानता भी नहीं।पूरे देश में शुरू हुई 1857 की क्रांति दस मई को मेरठ से शुरू हुई।नौ मई 1857 को चर्बी लगी कारतूस का इस्तेमाल करने से मना करने वाले 85 सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर मेरठ की विक्टोरिया पार्क स्थित जेल में बंद कर दिया था। सैनिकों पर हुई इस कार्रवाई और अपमान ने क्रांति को जन्म दे दिया। 10 मई को शाम होते-होते अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़क उठा। आम जनता और पुलिस ने जहां सदर बाजार में मोर्चा संभाला। उधर उसी समय 11वीं व 20वीं पैदल सेना के भारतीय सिपाही परेड ग्राउंड (अब रेस कोर्स) में इकट्ठे हुए और वहीं से अंग्रेजी सिपाहियों और अफसरों पर हमला बोल दिया। पहली गोली 20वीं पैदल सेना के सिपाही ने 11वीं पैदल सेना के सीओ कर्नल जार्ज फिनिश को रेस कोर्स के मुख्य द्वार पर मारी थी। इस बीच थर्ड कैवेलरी के जवान अश्वों पर सवार होकर अपने उन 85 सिपाहियों को बंदी मुक्त कराने विक्टोरिया पार्क स्थित जेल पहुंच गए, जिन्हें कोर्ट मार्शल के तहत सजा दी गई थी। इस तरह से रात होते-होते क्रांति पूरे शहर में फैल गई और सभी परतापुर के पास गांव रिठानी में एकजुट हुए और दिल्ली की ओर कूच कर गए। अंग्रेजों के खिलाफ मेरठ से शुरू हुए इस विद्रोह की आग पूरे देश में फैल गई। सर सैयद अपनी पुस्तक सरकशे जिला बिजनौर में बिजनौर में 1857 के पूरे घटनाक्रम का तारीख अनुसार वर्णन करते हैं।वह 1857 के विद्रोह के समय बिजनौर में सदर अमीन थे। उनकी यह पुस्तक उनकी डायरी है। इसमें उन्होंने तरीख अनुसार घटनांए दर्ज की हैं।
वे सरकशे जिला बिजनौर में कहते हैं कि मेरठ की दस तारीख के विद्रोह की सूचना 12 मई में बिजनौर पंहुची।पर कोई विशेष घटना नही हुई। 16 मई को बिजनौर थाने के अंतर्गत आने वाले झाल और उलेढ़ा गांव के बीच देवीदास बजाज को लूट लिया गया। मेरठ की क्रांति की सूचना मिलते ही अधिकारियों हर हालत से निपटने के लिए तैयारी शुरू कर दी थीं1 20 मई को सेपर और माइनर कंपनी के 300 जवान विद्रोह कर नजीबाबाद पंहुचे। वहां वे नवाब महमूद से मिले। वे चाहते थे कि नवाब उन्हें संरक्षण दं किंतु नवाब ने ने उन्हें बिजनौर जाकर उत्पात करनेके के लिए कहा। किंतु ये नगीना पंहुच गए और वहां लूटमार की।तहसील में रखा खजाना लूट लिया।
धामपुर के रईस हरसुख लाल लोहिया की बेटी की बारात आई हुई थी।उसके लिए बढ़िया खाना और मिठाई बन रही थीं।हरसुख लाल लोहिया जी नगीना से मुरादाबाद जा रहे इन विद्रोही जवानों का अपने घर ले आए। सबको पेटभर कर खाना और मिठाई खिलाईं। ये देख धामपुर के लोग भी एकत्र हो गए। जिससे जो बन पड़ा, देकर इन जवानों की मदद की।
इधर बिजनौर के जेल के जमादार रामस्वरूप ने जेल का दरवाजा खोल दिया।लगभग एक बजे के आसपास अधिकारियों को जेल से फायर की आवाज सुनाई दी।अधिकारी जवानों के साथ जेल की और भागे। इन्हें डर था कि जेल से निकले बदमाश स्थानीय शरारती लोगों को लेकर लूटमार न शुरू कर दें। किंतु ये बदमाश जेल से निकल कर जंगल की और भाग लिए।अधिकारियों ने इनका पीछा किया। गोली लगने से कई कैदी मारे गए और घायल हुए।इस समय नदियां उफान पर भी। कुछ भागते कैदी लहपी नदी के बहाव में बह गए।
लहपी नदी मंडावली और रावली क्षेत्र में बहने वाली गंगा की एक सहयोगी नदी थी।अब यह लुप्त हो गई। कुछ पुराने लोग ही इसके बारे में
जानते हैं। काफी कैदी पकड़ लिए गए।पकड़े जाने वालों को जेल में लाकर बंद कर दिया गया।
सर सैयद अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि नवाब महमूद ने विद्रोही सेपर और माइनर कंपनी के जवानों से बिजनौर जाकर हंगामा करने का कहा था, किंतु वे बिजनौर न आकर नगीना धामपुर होते मुरादाबाद चले गए1पहले लगा कि शायद रामस्वरूप ने स्थानीय बदमाशों के हमले के डर से जेल का फाटक खेल दिया।किंतु हो सकता है कि इसे इन विद्रोही जवानों के बिजनौर आने की सूचना मिल गई हो,यह रामस्वरूप भी इसी सैनिक कंपनी का जमादार था।इसलिए उसने ऐसा किया हो। सर सैयद लिखते हैं कि नवाब महमूद को 6−7 जून की रात में जिले का चार्ज देकर अंग्रेज अधिकारी अपने परिवार के साथ रूडकी चले गए।जिले का चार्ज मिलने के बाद से नवाब के दरबार में रामस्वरूप का सम्मान बहुत ही बढ़ गया।उनकी अदालत में उसकी रोज आवाजाही होने लगी।नवाब महमूद को जिले की बागडोर मिलने के बाद रामस्वरूप हवलदार ने नवाब के लिए सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी।
रामस्वरूप ने अपने द्वारा भर्ती किये गए सिपाही बिजनौर में बांके राय के घर के आसपास तैनात कर दिए गए।बाद में रामस्वरूप ने इन्हें बहुत प्रताड़ित किया।उनके भाई बिहारी लाल को परेशान किया तथा कुछ रूपया भी वसूला।
सर सैयद की डायरी में रामस्वरूप जमादार का एक दो जगह और जिक्र है।इसके बाद से वह गायब है।
इतिहास के जानकारों और खोज करने वाले आजादी के इन नायकों का पता करने का कोई प्रयास नही किया।किसी ने यह जानना गंवारा नहीं किया कि रामस्वरूप कौन था। कहां का रहने वाला था। इसके परिवार में कौन −कौन था।राम स्वरूप का क्या हुआ।इतना महत्वपूर्ण व्यक्ति इतिहास की अंधेरी गलियों में गायब हो गया।
जिले में अंग्रेज जब दुबारा आया तो उनसे जमकर जुल्म किया।नवाब महमूद के साथी के संदेह में जाने कितनों को सरेराह गोलियों से भून दिया गया।फांसी भी दीं गईं।कितने लोग मरे , इस बारे में सर सैयद चुप हैं।रामस्वरूप का क्या हुआ,वह नही बताते।
जानी मानी लेखिका कुरतुल एन हैदर अपनी किताब कारे जहां दराज है ,में कहती हैं कि आजादी की जंग के असफल होने के बाद 27 हजार मुसलमानों को फांसी हुई। शेष को काले पानी की सजा हुई। जिला बिजनौर के बागियों की एक लाख तिरेसठ हजार एकड़ जमीन सरकार के हक में जब्त हुई।जब्त जमीन का बड़ा हिस्सा वफादर चौधरियों को अता किया गया।शेरकोट और हल्दौर के चौधरी साहेबान को राजा की उपाधि दी गई।ताजपुर के चौधरी साहब का अमीर खां पिंडारी के विरूद्ध सरकार की मदद करने में राय बहादुर की उपाधि से नवाजा गया।सैयदों की साढ़े 15 हजार एकड़ जमीन सरकारी हक में जब्त हुई।दिल्ली की आजादी की लड़ाई में शामिल हुए मीर अहमद अली की जान बक्श दी गई किंतु उनकी पुशतैनी जमीन भी इस जब्त खुदा जमीन के साथ जब्त कर ली गई।
वे कहती हैं कि 1857 की क्रांति के बाद जब बागियों की मिलकियतें जब्त हुईं तो चांदपुर के रहने वाले मीर सादिक अली और मीर रूस्तम अली रईसों का इलाका बगावत के जुर्म में सरकार ने जब्त कर लिया। यह इलाका सरकार ने सैयद अहमद (सरकशे बिजनौर के लेखक) को देना चाहा किंतु उन्होंने लेने से मनाकर दिया। 1857 की आजादी की लड़ाई के बारे में जो कुछ सर सैयद से छूटा, उसे कुरतुल एन हैदर ने अपनी पुस्तक में दर्ज किया। किंतु फिर भी सब कुछ अधूरा सा है। जो कुछ है, वह न के बराबर।
अशोक मधुप